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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 13 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्ध रागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुणभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। Translated Sutra: तत्पश्चात् अगले दिन रात बीत जाने पर, प्रभात हो जाने पर, नीले तथा अन्य कमलों के सुहावने रूप में खिल जाने पर, उज्ज्वल प्रभायुक्त एवं लाल अशोक, पलाश, तोते की चोंच, घुंघची के आधे भाग के सदृश लालिमा लिए हुए, कमलवन को विकसित करने वाले, सहस्रकिरणयुक्त, दिन के प्रादुर्भावक सूर्य के उदित होने पर, अपने तेज से उद्दीप्त होने | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो– अप्पेगइया उग्गपव्वइया भोगपव्वइया राइण्ण नाय कोरव्व खत्तियपव्वइया भडा जोहा सेनावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अन्ने य बहवे एवमाइणो उत्तमजाइ कुल रूव विनय विन्नाण वण्ण लावण्ण विक्कम पहाण सोभग्ग कंतिजुत्ता बहुधण धण्ण निचय परियाल फिडिया नरवइगुणाइरेगा इच्छियभोगा सुहसंप-ललिया किंपागफलोवमं च मुणियविसयसोक्खं, जलबुब्बुयसमाणं कुसग्ग जलबिंदुचंचलं जीवियं च नाऊण, अद्धुवमिणं रयमिव पडग्गलग्गं संविधुणित्ताणं, ...
... चइत्ता हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं चिच्चा धनं एवं–धन्नं बलं वाहनं कोसं कोट्ठागारं रज्जं रट्ठं Translated Sutra: तब श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से श्रमण संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे। उनमें अनेक ऐसे थे, जो उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञात, कुरुवंशीय, क्षत्रि, सुभट, योद्धा, सेनापति, प्रशास्ता, सेठ, इभ्य, इन इन वर्गों में से दीक्षित हुए थे। और भी बहुत से उत्तम जाति, उत्तम कुल, सुन्दररूप, विनय, विज्ञान, वर्ण, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उनमें कईं मतिज्ञानी यावत् केवलज्ञानी थे। कईं मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे। कईं मन से, कईं वचन से, कईं शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कईं खेलौषधिप्राप्त, कईं जल्लौषधिप्राप्त थे। कईं | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 16 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो–जाइसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी, जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियनिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभय विप्पमुक्का, वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अज्जवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जप्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा, चारुवण्णा Translated Sutra: तब श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से स्थविर, भगवान, जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बल – सम्पन्न, रूप – सम्पन्न, विनय – सम्पन्न, ज्ञान – सम्पन्न, दर्शन – सम्पन्न, चारित्र – सम्पन्न, लज्जा – सम्पन्न, लाघव – सम्पन्न – ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी – प्रशस्तभाषी। क्रोधजयी, मानजयी, मायाजयी, लोभजयी, इन्द्रियजयी, निद्राजयी, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे सब्भिंतर बाहिरए तवोवहाणे होत्था, तं जहा– अब्भिंतरए वि छव्विहे, बाहिरए वि छव्विहे। Translated Sutra: इस प्रकार विहरणशील वे श्रमण भगवान आभ्यन्तर तथा बाह्य तपमूलक आचार का अनुसरण करते थे। आभ्यन्तर तप छह प्रकार का है तथा बाह्य तप भी छह प्रकार का है। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 19 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बाहिरए? बाहिरए छव्विहे, तं जहा–अनसने ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसंलीनया।
से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिएभत्ते। से तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइमे य Translated Sutra: बाह्य तप क्या है ? बाह्य तप छह प्रकार के हैं – अनशन, अवमोदरिका, भिक्षाचर्या, रस – परित्याग, काय – क्लेश और प्रतिसंलीनता। अनशन क्या है ? अनशन दो प्रकार का है – १. इत्वरिक एवं २. यावत्कथिक। इत्वरिक क्या है ? इत्वरिक अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जैसे – चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त, दशम भक्त – चार दिन के उपवास, द्वादश | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: आभ्यन्तर तप क्या है ? आभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया है – १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. व्युत्सर्ग। प्रायश्चित्त क्या है ? प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है – १. आलोचनार्ह, २. प्रतिक्रमणार्ह, ३. तदुभयार्ह, ४. विवेकार्ह, ५. व्युत्सर्गार्ह, ६. तपोऽर्ह, ७. छेदार्ह, ८. मूलार्ह, ९. अनवस्थाप्यार्ह, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 21 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अनगारा भगवंतो– अप्पेगइया आयारधरा अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपन्नत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसा-धरा अप्पेगइया अनुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, ...
...अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टंति अप्पेगइया अनुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ निव्वेयणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया–संजमेणं तवसा अप्पाणं Translated Sutra: उस काल, उस समय – जब भगवान महावीर चम्पा में पधारे, उनके साथ उनके अनेक अन्तेवासी अनगार थे। उनके कईं एक आचार यावत् विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहीं भिन्न – भिन्न स्थानों पर एक – एक समूह के रूप में, समूह के एक – एक भाग के रूप में तथा फूटकर रूप में विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कईं आगमों</em> की वाचना देते थे। कईं प्रतिपृच्छा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 22 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भुत हुए। काले महा – नीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उसका काला वर्ण तथा दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे। नेत्रों की भौहें निर्मल थीं। उनके नेत्रों का वर्ण कुछ – कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था। उनकी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 23 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरिंदवज्जिया भवनवासी देवा अंतियं पाउब्भवित्था– नागपइणो सुवण्णा, विज्जू अग्गीया दीवा ।
उदही दिसाकुमारा य, पवणथणिया य भवनवासी ॥
नागफडा गरुल वइर पुण्णकलस सीह हयवर गयंक मयरंकवर मउढ वद्धमाण णिज्जुत्त विचित्त चिंधगया सुरूवा महिड्ढिया जाव पज्जुवासंति। Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के पास असुरेन्द्रवर्जित, भवनवासी देव प्रकट हुए। उनके मुकूट क्रमशः नागफण, गरुड़, वज्र, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी, मगर तथा वर्द्धमानक थे। वे सुरूप, परम ऋद्धिशाली, परम द्युतिमान, अत्यन्त बलशाली, परम यशस्वी, परम सुखी तथा अत्यन्त सौभाग्यशाली थे। उनके वक्षःस्थलों पर हार सुशोभित हो | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 24 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के समीप पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत – ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए। वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहासप्रिय थे। उन्हें गंभीर हास्य | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 25 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे? जोइसिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था –विहस्सती चंदसूरसुक्कसनिच्छरा राहू धूमकेतुबुहा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा जे य गहा जोइसंमि चारं चरंति केऊ य गइरइया अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा नानासंठाणसंठियाओ य पंचवण्णाओ ताराओ ठियलेसा चारिणो य अविस्साममंडलगई पत्तेयं नामंक पागडिय चिंधमउडा महिड्ढिया जाव पज्जुवासंति। Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के सान्निध्य में बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राहु, धूमकेतु, बुध तथा मंगल, जिनका वर्ण तपे हुए स्वर्ण – बिन्दु के समान दीप्तिमान था – (ये) ज्योतिष्क देव प्रकट हुए। इनके अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करने वाले केतु आदि ग्रह, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, नाना | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 26 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था–सोहम्मीसाण सणंकुमार माहिंद बंभ लंतग महासुक्क सहस्साराणय पाणयारण अच्चुयवई पहिट्ठा देवा जिनदंसणुस्सुयागमण जणियहासा पालग पुप्फग सोमणस सिरिवच्छ नंदियावत्त कामगम पीइगम मनोगम विमल सव्वओभद्द णामधेज्जेहिं विमानेहिं ओइण्णा वंदनकामा जिणाणं मिग महिस वराह छगल दद्दुर हय गयवइ भूयग खग्ग उसभंक विडिम पागडिय चिंधमउडा पसिढिल वर-मउड तिरीडधारी कुंडलुज्जोवियाणणा मउड दित्त सिरया रत्ताभा पउम पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमवेउव्विणो विविहवत्थगंधमल्लधारी महिड्ढिया जाव पज्जुव Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर समक्ष सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत देवलोकों के अधिपति – इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रादुर्भूत हुए। जिनेश्वरदेव के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हर्ष से वे प्रफुल्लित | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 28 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालं-कियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपं णयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–
जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं पीहंति, जस्स णं देवानुप्पिया! Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदक को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने स्नान किया, यावत् संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। अपने घर से नीकला। नीकलकर वह चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वर्त्ती राजसभा – भवन था वहाँ आया। राजा सिंहासन पर बैठा। साढ़े बारह लाख रजत | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क-पाडियक्काइं जत्ताभि-मुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठवेहि, चंपं नयरिं सब्भिंतर बाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु आसित्त सित्त सुइ सम्मट्ठ रत्थंतरावणं वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग ऊसिय ज्झय पडागाइपडाग मंडियं लाउल्लोइय महियं गोसीस सरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचंगुलितलं उवचियवं-दणकलसं Translated Sutra: तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने बलव्यापृत को बुलाकर उससे कहा – देवानुप्रिय ! आभिषेक्य, प्रधान पद पर अधिष्ठित हस्ति – रत्न को सुसज्ज कराओ। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना को तैयार करो। सुभद्रा आदि देवियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जोते हुए यानों को बाहरी सभाभवन | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 30 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं Translated Sutra: राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया – महाराज की जैसी आज्ञा। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति – व्यापृत को बुलाया। उससे कहा – देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 32 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभि-णंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी–जयजय णंदा! जयजय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि।
इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं Translated Sutra: जब राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से गुजर रहा था, बहुत से अभ्यर्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, वर्धमान, पूष्यमानव, खंडिक – गण, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, मनोभिराम, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाली वाणी से एवं जय विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 33 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय कोउय मंगल पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ बहूहिं खुज्जाहिं चिलाईहि वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं पउसियाहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमिलीहिं आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवाल वरिसधर कंचुइज्ज महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निग्गच्छंति, ...
...निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छंति, Translated Sutra: तब सुभद्रा आदि रानियों ने अन्तःपुर में स्नान किया, नित्य कार्य किये। कौतुक की दृष्टि से आँखों में काजल आंजा, लालट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त हेतु चन्दन, कुंकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल – विधान किया। वे सभी अलंकारों से विभूषित हुईं। फिर बहुत सी देश – विदेश की दासियों, जिनमें से अनेक कुबड़ी थीं; अनेक किरात देश की | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ।
तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद् को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की धर्मदेशना सूनने को उपस्थित परिषद् में, अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि, यति, देवगण तथा सैकड़ों – सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघबली, अतिबली, महाबली, अपरिमित बल, तेज, महत्ता तथा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 35 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह नरगा गम्मंती, जे नरगा जा य वेयणा नरए ।
सारीरमाणसाइं, दुक्खाइं तिरिक्खजोणीए ॥ Translated Sutra: जो नरक में जाते हैं, वे वहाँ नैरयिकों जैसी वेदना पाते हैं। तिर्यंच योनि में गये हुए वहाँ होने वाले शारीरिक और मानसिक दुःख प्राप्त करते हैं।मनुष्यजीवन अनित्य है। उसमें व्याधि, वृद्धावस्था, मृत्यु और वेदना आदि प्रचुर कष्ट हैं। देवलोक में देव दैवीऋद्धि और दैवीसुख प्राप्त करते हैं। सूत्र – ३५, ३६ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 36 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माणुस्सं च अनिच्चं, वाहि जरा मरण वेयणा पउरं ।
देवे य देवलोए, देविड्ढिं देवसोक्खाइं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 37 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नरगं तिरिक्खजोणिं, मानुसभावं च देवलोगं च ।
सिद्धे य सिद्धवसहिं, छज्जीवणियं परिकहेइ ॥ Translated Sutra: भगवान ने नरक तिर्यंचयोनि, मानुषभाव, देवलोक तथा सिद्ध, सिद्धावस्था एवं छह जीवनिकाय का विवेचन किया। जैसे – जीव बंधते हैं, मुक्त होते हैं, परिक्लेश पाते हैं। कईं अप्रतिबद्ध व्यक्ति दुःखों का अन्त करते हैं। पीड़ा वेदना या आकुलतापूर्ण चित्तयुक्त जीव दुःख – सागर को प्राप्त करते हैं, वैराग्य प्राप्त जीव कर्म – बल | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 38 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह जीवा बज्झंती, मुच्चंती जह य संकिलिस्संति ।
जह दुक्खाणं अंतं करेंति केई अपडिबद्धा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 39 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्टा अट्टियचित्ता, जह जीवा दुक्खसागरमुवेंति ।
जह वेरग्गमुवगया, कम्मसमुग्गं विहाडेंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 40 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जह रागेण कडाणं, कम्माणं पावगो फलविवागो । जह य परिहीणकम्मा, सिद्धा सिद्धालयमुवेंति ।
तमेव धम्मं दुविहं आइक्खइ, तं जहा–अगारधम्मं अनगारधम्मं च।
अनगारधम्मो ताव–इह खलु सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइयस्स सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावाय अदत्तादाण मेहुण परिग्गह राईभोयणाओ वेरमण। अयमाउसो! अनगारसामाइए धम्मे पन्नत्ते। एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए निग्गंथे वा निग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति।
अगारधम्मं दुवालसविहं आइक्खइ, तं जहा–पंच अणुव्वयाइं, तिन्नि गुणव्वयाइं, चत्तारि सिक्खावयाइं। पंच अणुव्वयाइं, तं जहा–थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, Translated Sutra: देखो सूत्र ३७ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 41 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा महतिमहालिया मनूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्त-मानंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवन्ना।
अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सुअक्खाए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुपन्नत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे Translated Sutra: तब वह विशाल मनुष्य – परिषद् श्रमण भगवान महावीर से धर्म सूनकर, हृदय में धारण कर, हृष्ट – तुष्ट हुई, चित्त में आनन्द एवं प्रीति का अनुभव किया, अत्यन्त सौम्य मानसिक भावों से युक्त तथा हर्षातिरेक से विकसित – हृदय होकर उठी। उठकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा, वंदन – नमस्कार किया, उनमें से कईं | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सुयक्खाए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुपन्नत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, अनुत्तरे ते भंते! निग्गंथे पावयणे। धम्मं णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खाणा विवेगं आइक्खह, विवेगं आइक्खमाणा Translated Sutra: तत्पश्चात् भंभसार का पुत्र राजा कूणिक श्रमण भगवान महावीर से धर्म का श्रवण कर हृष्ट, तुष्ट हुआ, मन में आनन्दित हुआ। अपने स्थान से उठा। श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की। वन्दन – नमस्कार किया। बोला – भगवन् ! आप द्वारा सुआख्यात, सुप्रज्ञप्त, सुभाषित, सुविनीत, सुभावित, निर्ग्रन्थ प्रवचन अनुत्तर | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 43 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदियाओ पीइमणाओ परमसोमणस्सियाओ हरिसवस विसप्पमाण हिययाओ उट्ठाए उट्ठेंति, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सुयक्खाए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुपन्नत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुविणीए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभाविए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, अनुत्तरे ते भंते! निग्गंथे पावयणे। धम्मं णं आइक्खमाणा उवसमं आइक्खह, उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह, Translated Sutra: सुभद्रा आदि रानियाँ श्रमण भगवान महावीर से धर्म का श्रवण कर हृष्ट, तुष्ट हुई, मन में आनन्दित हुई। अपने स्थान से उठीं। उठकर श्रमण भगवान महावीर की तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की। वैसा कर भगवान को वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार कर वे बोली – ‘‘निर्ग्रन्थ – प्रवचन सुआख्यात है सर्वश्रेष्ठ है इत्यादि पूर्व | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 45 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंडू य करकंटे य, अंबडे य परासरे।
कण्हे दीवायाणे चेव, देवगुत्ते य नारए । Translated Sutra: कर्ण, करकण्ट, अम्बड, पाराशर, कृष्ण, द्वैपायन, देवगुप्त तथा नारद। आठ क्षत्रिय – परिव्राजक – क्षत्रिय जाति में से दीक्षिप्त परिव्राजक होते हैं। शीलधी, शशिधर, नग्नक, भग्नक, विदेह, राजराज, राजराम तथा बल। सूत्र – ४५–४७ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तिय-परिव्वाया भवंति, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र ४५ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 47 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीलई मसिंहारे, नग्गई भग्गई ति य।
विदेहे राया, रामे बले ति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४५ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 48 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था।
ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ।
एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो।
तेसि णं परिव्वायाणं Translated Sutra: वे परिव्राजक ऋक्, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं नयरं संपट्ठिया विहाराए।
तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वे णं परिभुंजमाणे झीणे।
तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारम-पस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमनुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए Translated Sutra: उस काल, उस समय, एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। वे परिव्राजक चलते – चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल, उनकी निगरानी करने | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: भगवन् ! भावितात्मा अनगार केवलि – समुद्घात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं। भगवन् ! क्या उन निर्जरा – प्रधान पुद्गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! छद्मस्थ, विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 53 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकिया णं समुग्घायं, अनंता केवली जिना ।
जरमरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगइं गया ॥ Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी केवली समुद्घात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त होकर सिद्धि गति को प्राप्त हुए हैं। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 54 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइसमए णं भंते! आवज्जीकरणे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पन्नत्ते।
केवलिसमुग्घाए णं भंते! कइसमइए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छट्ठे समए मंथं पडिसा-हरइ, सत्तमे समए कबाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ।
से णं भंते! तहा समुग्घायगए किं मनजोगं जुंजइ? वयजोगं जुंजइ? कायजोगं जुंजइ? गोयमा! नो मणजोगं जुंजइ, नो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ।
कायजोगं जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ? ओरालियमीसासरीरकायजोगं Translated Sutra: भगवन् ! आवर्जीकरण का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त्त का कहा गया है। भगवन् ! केवली – समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! आठ समय का है। जैसे – पहले समय में केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं। दूसरे समय में वे आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 56 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कहिं पडिहया सिद्धा? कहिं सिद्धा पइट्ठिया? ।
कहिं बोदिं चइत्ताणं, कत्थ गंतूण सिज्झई ॥ Translated Sutra: सिद्ध किस स्थान पर प्रतिहत हैं – वे कहाँ प्रतिष्ठित हैं? वे वहाँ से देह को त्याग कर कहाँ जाकर सिद्ध होते हैं? सिद्ध लोक के अग्रभाग में प्रतिष्ठित हैं अतः अलोक में जाने में प्रतिहत हैं। इस मर्त्यलोक में ही देह का त्याग कर वे सिद्ध – स्थान में जाकर सिद्ध होते हैं। देह का त्याग करते समय अन्तिम समय में प्रदेशधन आकार, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 57 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया ।
इहं बोंदिं चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५६ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 58 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं संठाणं तु इहं, भवं चयंतस्स चरिमसमयंमि ।
आसी य पएसधणं, तं संठाणं तहिं तस्स ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५६ | |||||||||
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उपपात वर्णन |
Hindi | 59 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दीहं वा हस्सं वा, जं चरिमभवे हवेज्ज संठाणं ।
तत्तो तिभागहीणा, सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५६ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 60 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नि सया तेत्तीसा, धनुत्तिभागो य होइ बोद्धव्वो ।
एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥ Translated Sutra: सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना तीन सौ तैंतीस धनुष तथा तिहाई धनुष होती है, सर्वज्ञों ने ऐसा बतलाया है सिद्धों की मध्यम अवगाहना चार हाथ तथा तिहाई भाग कम एक हाथ होती है, ऐसा सर्वज्ञों ने निरूपित किया है। सिद्धों की जघन्य अवगाहना एक हाथ तथा आठ अंगुल होती है, ऐसा सर्वज्ञों द्वारा भाषित है। सिद्ध अन्तिम भव की अवगाहना | |||||||||
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उपपात वर्णन |
Hindi | 61 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चत्तारि य रयणीओ, रयणितिभागूणिया य बोद्धव्वा ।
एसा खलु सिद्धाणं, मज्झिमओगाहणा भणिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६० | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 62 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्का य होइ रयणी साहीया अंगुलाइ अट्ठ भवे ।
एसा खलु सिद्धाणं, जहन्न ओगाहणा भणिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६० |