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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 137 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निसहस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हरिवासे नामं वासे पन्नत्ते। एवं जाव पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, अट्ठ जोयणसहस्साइं चत्तारि य एगवीसे जोयणसए एगं च एगूनवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं तेरस जोयणसहस्साइं तिन्नि य एगसट्ठे जोयणसए छच्च एगूनवीसइभाए जोयणस्स अद्धभागं च आयामेणं।
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् हरिवर्ष नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के है। वह दोनों किनारे से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। उसका विस्तार ८४२१ – १/१९ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 174 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते? एवं जह चेव उत्तरिल्ले सीयामुहवणं तह चेव दाहिणंपि भाणियव्वं, नवरं– निसहस्स वासहर-पव्वयस्स उत्तरेणं, सीयामहानईए दाहिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, वच्छस्सविजयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सीयाए महानईए दाहिणिल्ले सीयामुहवने नामं वने पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए, तहेव सव्वं, नवरं–निसहवासहरपव्वयंतेणं एगमेगूणवीसइभागं जोयणस्स विक्खंभेणं, किण्हे किण्होभासे जाव आसयंति, उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वनवण्णओ।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवे Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में शीतामुखवन कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर – दिग्वर्ती शीतामुखवन के समान ही दक्षिण दिग्वर्ती शीतामुखवन समझ लेता। इतना अन्तर है – दक्षिण – दिग्वर्ती शीतामुखवन निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शीता महानदी के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, वत्स विजय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 178 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! निसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणपुरत्थिमेणं, मंगलावईविजयस्स पच्चत्थिमेणं, देवकुराए पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमनसे नामं वक्खारपव्वए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणविच्छिन्नेजहा मालवंते वक्खारपव्वए तहा, नवरं–सव्वरययामए अच्छे जाव पडिरूवे निसहवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउयसयाइं उव्वेहेणं, सेसं तहेव सव्वं, नवरं–अट्ठो से गोयमा! सोमनसे णं वक्खारपव्वए बहवे देवा य देवीओ य सोमा सुमना Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में सौमनस वक्षस्कार पर्वत कहाँ है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, अन्दर पर्वत के – आग्नेय कोण में, मंगलावती विजय के पश्चिम में, देवकुरु के पूर्व में है। वह सर्वथा रजतमय है, उज्ज्वल है, सुन्दर है। वह निषध वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊंचा है। ४०० कोश जमीन में गहरा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 194 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरकुराए दक्खिणेणं, देवकुराए उत्तरेणं, पुव्वविदेहस्स वासस्स पच्चत्थिमेणं, अवरविदेहस्स वासस्स पुरत्थिमेणं, जंबुद्दीवस्स दीवस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरे नामं पव्वए पन्नत्ते–
नवनउतिजोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयण-सहस्साइं नवइं च जोयणाइं दस य एगारसभाए जोयणस्स विक्खंभेणं, धरणितले दस जोयण-सहस्साइं विक्खंभेणं, तयनंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणे-परिहायमाणे उवरितले एगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं, मूले एकत्तीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में मन्दर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरकुरु के दक्षिण में, देवकुरु के उत्तर में, पूर्व विदेह के पश्चिम में और पश्चिम विदेह के पूर्व में है। वह ९९००० योजन ऊंचा है, १००० जमीन में गहरा है। वह मूल में १००९० – १०/१९ योजन तथा भूमितल पर १०००० योजन चौड़ा है। उसके बाद वह चौड़ाई की मात्रा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 198 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरए पव्वए सोमनसवणे नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! नंदनवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमि भागाओ अद्धतेवट्ठिं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सोमनसवणे नामं वने पन्नत्ते– पंचजोयणसयाइं चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरं पव्वयं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– चत्तारि जोयणसहस्साइं दुन्नि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिविक्खंभेणं, तेरस जोयणसहस्साइं पंच य एक्कारे जोयणसए छच्च इक्कारसभाए जोयणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिन्नि जोयणसहस्साइं दुन्नि य बावत्तरे जोयणसए अट्ठ य एक्कारसभाए जोयणस्स अंतो Translated Sutra: भगवन् ! सौमनसवन कहाँ है ? गौतम ! नन्दनवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२५०० योजन ऊपर जाने पर है। वह चक्रवाल – विष्कम्भ से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है। वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए हे। वह पर्वत से बाहर ४२७२ – ८/१९ योजन विस्तीर्ण है। बाहर उसकी परिधि १३५११ – ६/१९ योजन | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 199 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए पंडगवने नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! सोमनसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवने नामं वने पन्नत्ते– चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं जाव किण्हे देवा आसयंति।
पंडगवनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया नामं चूलिया पन्नत्ता–चत्तालीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस Translated Sutra: भगवन् ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है। चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है। वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह एक | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 212 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं एक्कमेक्के चक्कवट्टिविजए भगवंतो तित्थयरा समुप्पज्जंति, तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामा णियसाहस्सीहिं चउहिं य महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अनियाहिवईहिं सोलसएहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहि य बहूहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडाओ महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणीओ विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: जब एक एक – किसी भी चक्रवर्ती – विजय में तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं, उस काल – उस समय – अधोलोकवा – स्तव्या, महत्तरिका – आठ दिक्कुमारिकाएं, जो अपने कूटों, भवनों और प्रासादों में अपने ४००० सामानिक देवों, सपरिवार चार महत्तरिकाओं, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, १६००० आत्मरक्षक देवों तथा अन्य अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 214 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति।
तए णं ताओ अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलियाइं पासंति, पासित्ता ओहिं पउंजंति, पउंजित्ता भगवं तित्थयरं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– उप्पन्ने खलु भो! जंबुद्दीवे दीवे भयवं तित्थयरे, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पन्नमनागयाणं अहेलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं जम्मनमहिमं करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि भगवओ जम्मनमहिमं करेमो त्तिकट्टु एवं वयंति, वइत्ता पत्तेयं-पत्तेयं आभिओगिए Translated Sutra: जब वे अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने आसनों को चलित होते देखती हैं, वे अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करती हैं। तीर्थंकर को देखती हैं। कहती हैं – जम्बूद्वीप में तीर्थंकर उत्पन्न हुए हैं। अतीत, प्रत्युत्पन्न तथा अनागत – अधोलोकवास्तव्या हम आठ महत्तरिका दिशाकुमारियों का यह परंपरागत आचार है कि हम भगवान् तीर्थंकर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 215 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या – आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत् अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव – देवियों से संपरिवृत्त, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्य – ध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 217 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तासिं उड्ढलोगवत्थव्वाणं अट्ठण्हं दिसाकुमारीमहत्तरियाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसनाइं चलंति, एवं तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव अम्हे णं देवानुप्पिए! उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारी-महत्तरियाओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मनमहिमं करिस्सामो, तुब्भाहिं ण भाइयव्वं तिकट्टु उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयणाणं जाव रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता अब्भवद्दलए विउव्वंति, ...
... से जहानामए–कम्मगरदारए Translated Sutra: तब उन देवी के आसन चलित होते हैं, शेष पूर्ववत्। वे दिक्कुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं – देवानुप्रिये ! हम उर्ध्वलोकवासिनी दिक्कुमारिकाएं भगवान् का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना। यों कहकर वे – ईशान कोण में चली जाती हैं। यावत् वे आकाश में बादलों की विकुर्वणा करती हैं, वे | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 218 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: उस काल, उस समय पूर्वदिग्वर्ती रुचककूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने – अपने कूटों पर सुखोपभोग करती हुई विहार करती हैं। उनके नाम इस प्रकार है – नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती तथा अपराजिता। सूत्र – २१८, २१९ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 220 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेसं तं चेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमायाए य पुरत्थिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ तहेव जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् है। देवानुप्रिये ! पूर्वदिशावर्ती रुचककूट निवासिनी हम आठ दिशाकुमारिकाएं भगवान् तीर्थंकर का जन्म – महोत्सव मनायेंगी। अतः आप भयभीत मत होना।’ यों कहकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के शृंगार, शोभा, सज्जा आदि विलोकन में उपयोगी, प्रयोजनीय दर्पण हाथ में लिये वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 222 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य दाहिणेणं भिंगार-हत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पच्चत्थिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: वे भगवान् तीर्थंकर की माता से कहती हैं – ‘आप भयभीत न हों।’ यों कहकर वे भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता के स्नपन में प्रयोजनीय सजल कलश हाथ में लिए दक्षिण में आगान, परिगान करने लगती हैं। उस काल, उस समय पश्चिम रूचक कूट – निवासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 224 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य पच्चत्थिमेणं तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरिल्लरुयगवत्थव्वाओ जाव विहरंति, तं जहा– Translated Sutra: | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 226 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव जाव वंदित्ता भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगयाओ आगाय-माणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति
तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसिरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ जाव विहरंति, तं जहा–
चित्ता य चित्तकनगा, सतेरा य सोदामिणी ॥
तहेव जाव ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए य चउसु विदिसासु दीवियाहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठंति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं तहेव जाव विहरंति, तं जहा–रूया रूयंसा सुरूया रूयगावई। तहेव जाव तुब्भाहिं ण भाइयव्वंतिकट्टु भगवओ तित्थयरस्स Translated Sutra: वे भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माता को प्रणाम कर उनके उत्तर में चँवर हाथ में लिए आगान – परिगान करती हैं। उस काल, उस समय रुचककूट के मस्तक पर – चारों विदिशाओं में निवास करने वाली चार दिक्कुमारि – काएं हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – चित्रा, चित्रकनका, श्वेता तथा सौदामिनी। वे आकर तीर्थंकर तथा उनकी माता के चारों विदिशाओं | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 227 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने।
से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 243 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] काऊण करेइ उवयारं, किं ते? पाडल मल्लिय चंपग असोग पुन्नाग चूयमंजरि नवमालिय बकुल तिलग कणवीर कुंद कोज्जय कोरंट पत्त दमनग वरसुरभिगंधगंधियस्स कयग्गहिय करयलपब्भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ रयण वइर वेरुलियविमलदंडं कंचनमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टिं विनिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धुवं दाऊण जिनवरिंदस्स सत्तट्ठपयाइं ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलिं करिय मत्थयंसि पयओ अट्ठसयविसुद्धगंथ-जुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुनरुत्तेहिं Translated Sutra: पूजोपचार करता है। गुलाब, मल्लिका, आदि सुगन्धयुक्त फूलों को कोमलता से हाथ में लेता है। वे सहज रूप में उसकी हथेलियों से गिरते हैं, उन पँचरंगे पुष्पों का घुटने – घुटने जितना ऊंचा एक विचित्र ढेर लग जाता है। चन्द्रकान्त आदि रत्न, हीरे तथा नीलम से बने उज्ज्वल दंडयुक्त, स्वर्णमणि एवं रत्नों से चित्रांकित, काले अगर, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 263 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! तं चेव जाव दीसंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता तं चेव जाव उच्चत्तेणं।
जइ णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं, कम्हा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य (दो) उद्गमन – मुहूर्त्त में – स्थानापेक्षया दूर होते हुए भी द्रष्टा की प्रतीति की अपेक्षा से समीप दिखाई देते हैं ? मध्याह्न – काल में समीप होते हुए भी क्या वे दूर दिखाई देते हैं ? अस्तमन – वेलामें दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं ? हा गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 264 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीतं खेत्तं गच्छंति? पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति? अनागयं खेत्तं गच्छंति? गोयमा! नो तीतं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति, नो अनागयं खेत्तं गच्छंति।
तं भंते! किं पुट्ठं गच्छंति? अपुट्ठं गच्छंति? गोयमा! पुट्ठं गच्छंति, नो अपुट्ठं गच्छंति।
तं भंते! किं ओगाढं गच्छंति? अणोगाढं गच्छंति? गोयमा! ओगाढं गच्छंति, नो अनोगाढं गच्छंति।
तं भंते! किं अनंतरोगाढं गच्छंति? परंपरोगाढं गच्छंति? गोयमा! अनंतरोगाढं गच्छंति, नो परंपरोगाढं गच्छंति।
तं भंते! किं अणुं गच्छंति? बायरं गच्छंति? गोयमा! अणुंपि गच्छंति, बायरंपि गच्छंति।
तं भंते! किं उड्ढं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत – क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न या अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्शपूर्वक ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 265 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ? पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ? अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ? गोयमा! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, नो अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ।
सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसिं। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में, या प्रत्युत्पन्न – क्षेत्र में अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन आदि क्रिया प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में ही की जाती है। सूर्य अपने तेज द्वारा क्षेत्र – स्पर्शन पूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं। वह अवभासन आदि क्रिया | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 268 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेंति? गोयमा! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थण्णे इंदे उववण्णे भवइ।
इंदट्ठाणे णं भंते! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए।
बहिया णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवा, तं चेव नेयव्वं, नाणत्तं– विमानोववन्नगा, नो चारोववन्नगा, चारट्ठिइया, नो गइरइया नो गइसमावन्नगा पक्किट्टगसंठाणसंठिएहिं जोयणसयसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट Translated Sutra: भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! चार या पाँच सामानिक देव मिल कर इन्द्रस्थान का संचालन करते हैं। इन्द्र का स्थान कम एक समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है। मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती ज्योतिष्क | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 277 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंति, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण -पाईणमागच्छंति? हंता गोयमा! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे जाव णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती सूरप-ण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे चंदिमा उदीण-पाईणमुग्गच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती चंदपन्नत्ती Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य – ईशान कोण में उदित होकर क्या आग्नेय कोण में अस्त होते हैं, आग्नेय कोण में उदित होकर नैर्ऋत्य कोण में अस्त होते हैं, नैर्ऋत्य कोण में उदित होकर वायव्य कोण में अस्त होते हैं, वायव्य कोण में उदित होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 281 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विसमं पवालिणो परिणमंति, अनुदूसु देंति फुप्फफलं ।
वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥ Translated Sutra: जिसमें विषम काल में – वनस्पति अंकुरित होती है, अन् – ऋतु में – पुष्प एवं फल आते हैं, जिसमें सम्यक् – वर्षा नहीं होती, वह कर्म – संवत्सर है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 284 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सनिच्छरसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठावीसइविहे पन्नत्ते, जाव उत्तराओ आसाढाओ जं वा सनिच्चरे महग्गए तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं नक्खत्तमंडलं समानेइ। सेत्तं सनिच्चरसंवच्छरे। तं जहा– Translated Sutra: भगवन् ! शनैश्चर संवत्सर कितने प्रकार का है ? अठ्ठाईस प्रकार का – १. अभिजित, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. शतभिषक्, ५. पूर्वा भाद्रपद, ६. उत्तरा भाद्रपद, ७. रेवती, ८. अश्विनी, ९. भरिणी, १०. कृत्तिका, ११. रोहिणी यावत् तथा २८. उत्तराषाढा। अथवा शनैश्चर महाग्रह तीस संवत्सरों में समस्त नक्षत्र – मण्डल का समापन करता है – वह काल शनैश्चर | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 319 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ?
गोयमा! नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ। एवं इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वं– Translated Sutra: भगवन् ! अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र कितने मुहूर्त्त पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ९ – २७/६७ मुहूर्त्त रहता है। इन नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग इस प्रकार है। अभिजित नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ एक अहोरात्र में उनके २६/३७ भाग परिमित योग होता है। इससे अभिजित चन्द्रयोग काल ९ – २७/६७ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 332 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वासाणं भंते! पढमं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि नक्खत्ता नेंति, तं जहा–उत्तरासाढा अभिई सवणो धणिट्ठा। उत्तरासाढा चउद्दस अहोरत्ते नेइ। अभिई सत्त अहोरत्ते नेई। सवणो अट्ठ अहोरत्ते णेई। धनिट्ठा एगं अहोरत्तं नेइ। तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अनुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पया चत्तारि य अंगुला पोरिसी भवइ।
वासाणं भंते! दोच्चं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि, तं जहा–धनिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। धनिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते नेइ। सयभिसया सत्त। पुव्वाभद्दवया अट्ठ। उत्तराभद्दवया एगं। तंसि च णं मासंसि अट्ठंगुलपोरिसीए Translated Sutra: भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार – उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा। उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र, अभिजित नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। उस मास में सूर्य चार अंगुल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 352 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इंगालए वियालए लोहितक्खे सणिच्छरे चेव ।
आहुणिए पाहुणिए, कनगसणामा य पंचेव ॥ Translated Sutra: अङ्गारक, विकालक, लोहिताङ्ग, शनैश्चरस आधुनिक, प्राधुनिक, कण, कणक, कणकणक, कणवित्तानक, कणसन्तानक, सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कुर्बुरक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, शंखवर्णाभ – । यों भावकेतु पर्यन्त ग्रहों का उच्चारण करना। उन सबकी अग्रमहिषियाँ उपर्युक्त नामों की हैं। सूत्र – ३५२–३५४ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 355 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं।
चंदविमाने णं देवीणं जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिमब्भहियं
सूरविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं।
सूरविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं।
गहविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
गहविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
नक्खत्तविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? गौतम ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति जघन्य – १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट – पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है। सूर्य – विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नपए अट्ठावीसं उक्कोसेणं दोन्नि दसुत्तरा एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं उव्वेहेणं, केवइयं उड्ढं उच्च-त्तेणं, केवइयं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्निय कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस य अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसे-साहियं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, नवनउइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं ? २१० हैं। उसमें – कम से कम २८ तथा अधिक से अधिक २१० एकेन्द्रिय – रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई १,००,००० योजन तथा परिधि ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे किं पुढविपरिणामे? आउपरिणामे? जीवपरिणामे? पोग्गलपरिणामे? गोयमा! पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी – परिणाम है, अप् – परिणाम है, जीव – परिणाम है, पुद्गलपरिणाम है ? गौतम! पृथ्वी, जल, जीव तथा पुद्गलपिण्डमय भी है। भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण, सर्वजीव, सर्वभूत, सर्वसत्त्व – ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 243 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] काऊण करेइ उवयारं, किं ते? पाडल मल्लिय चंपग असोग पुन्नाग चूयमंजरि नवमालिय बकुल तिलग कणवीर कुंद कोज्जय कोरंट पत्त दमनग वरसुरभिगंधगंधियस्स कयग्गहिय करयलपब्भट्ठ-विप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमनिगरस्स तत्थ चित्तं जण्णुस्सेहप्पमाणमेत्तं ओहिनिगरं करेत्ता चंदप्पभ रयण वइर वेरुलियविमलदंडं कंचनमणिरयणभत्तिचित्तं कालागरु पवरकुंदुरुक्क तुरुक्क धूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टिं विनिम्मुयंतं वेरुलियमयं कडुच्छुयं पग्गहेत्तु पयते धुवं दाऊण जिनवरिंदस्स सत्तट्ठपयाइं ओसरित्ता दसंगुलियं अंजलिं करिय मत्थयंसि पयओ अट्ठसयविसुद्धगंथ-जुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुनरुत्तेहिं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૧ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरहंताणं।
तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नयरी होत्था–रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ।
से णं मिहिलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था, वण्णओ। जियसत्तू राया, धारिणी देवी, वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढो, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે મિથિલા નામની નગરી હતી. ઋદ્ધ – સ્તિમિત અને સમૃદ્ધ હતી, (ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું) વર્ણન કરવું. તે મિથિલા નગરીની બહાર ઉત્તર – પૂર્વ દિશામાં અહીં માણિભદ્ર નામક ચૈત્ય હતું. (ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ચૈત્યનું) વર્ણન કરવું. જિતશત્રુ રાજા હતો, ધારિણી રાણી હતી. તે કાળે તે સમયે સ્વામી પધાર્યા, પર્ષદા નીકળી, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 2 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपह्मगोरे उग्ग-तवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्न-कोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર, ગૌતમ ગોત્રથી હતા. તે સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાનવાળા યાવત્ ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણા કરે છે, વંદે છે – નમે છે, વાંદી – નમીને આમ કહ્યું – સૂત્ર– ૩. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ ક્યાં છે ? કેટલો મોટો છે ? તેનું સંસ્થાન શું છે ? તેના આકાર | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 11 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते?
गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરત નામે ક્ષેત્ર ક્યાં કહ્યું છે ? ગૌતમ ! લઘુ હિમવંત વર્ષધર પર્વતની દક્ષિણેથી દક્ષિણ લવણસમુદ્રની ઉત્તરેથી પૂર્વ લવણસમુદ્રની પશ્ચિમથી પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વે. અહીં જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરત નામે ક્ષેત્ર કહેલ છે. આ ભરતક્ષેત્રમાં સ્થાણુ, કંટક, વિષમ, દુર્ગ, પર્વત, પ્રવાદ, ઉજ્ઝર, નિર્ઝર, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 22 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य।
ओसप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समा-काले।
उस्सप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दुस्समदुस्समाको दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले।
एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं सम-याणं समुदय-समिइ-समागमेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં કેટલા કાળ કહેલ છે? ગૌતમ ! બે ભેદે કાળ કહેલ છે, તે આ – અવસર્પિણીકાળ અને ઉત્સર્પિણીકાળ. ભગવન્ ! અવસર્પિણીકાળ કેટલા ભેદે કહેલ છે ? ગૌતમ ! છ ભેદે કહેલ છે, તે આ – સુષમસુષમાકાળ, સુષમા કાળ, સુષમદુઃષમાકાળ, દુષમ સુષમાકાળ, દુઃષમાકાળ, દુઃષમ દુઃષમાકાળ. ભગવન્ ! ઉત્સર્પિણીકાળ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 29 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणूणं समुदय-समिइ-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिआइ वा सण्ह-सण्हियाइ वा उद्धरेणूइ वा तस-रेणूइ वा रहरेणूइ वा वालग्गेइ वा लिक्खाइ वा जूयाइ वा जवमज्झेइ वा उस्सेहंगुलेइ वा अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उद्धरेणू, अट्ठ उद्धरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ सा एगे देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ देवकुरूत्तरकुराणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे हरिवास-रम्मयवासाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ हेमवय-एरण्णवयाणं मनुस्साणं वालग्गा से एगे पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मनुस्साणं वालग्गे, अट्ठ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 31 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं सागरोवमप्पमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा, तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो सुसमा दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमदुस्समा, एगा सागरोवम-कोडाकोडीओ बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दुस्सम-सुसमा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समा, एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा। पुनरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वास-सहस्साइं कालो दुस्समदुस्समा, एवं पडिलोमं नेयव्वं जाव चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमसुसमा। दससागरोवमकोडाकोडीओ ओसप्पिणी, दससागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी, वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 35 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते मनुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ?
गोयमा! अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ पुढवी पुप्फफलाहारा णं ते मनुआ पन्नत्ता समणाउसो।
तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदंसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा, भवे एयारूवे? नो इणट्ठे समट्ठे। सा णं पुढवी इत्तो इट्ठतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुन्नतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पन्नत्ते? Translated Sutra: ભગવન્ ! તે મનુષ્યોને કેટલા કાળે આહારની ઇચ્છા ઉત્પન્ન થાય છે ? ગૌતમ ! તેમને અઠ્ઠમભક્ત એટલે કે ત્રણ દિવસ પછી આહારની ઇચ્છા ઉત્પન્ન થાય છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! તે મનુષ્યોને પૃથ્વી, પુષ્પ, ફળનો આહાર કહેલો છે. ભગવન્ ! તે પૃથ્વીનો આસ્વાદ કેવા પ્રકારે કહેલો છે ? ગૌતમ! જેમ કોઈ ગોળ કે ખાંડ કે શર્કરા કે મત્સંડી કે પર્પટ, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 38 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए भारहे वासे मनुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
तीसे णं समाए भरहे वासे मनुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं।
ते णं भंते! मनुया किं संघयणी पन्नत्ता? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणी पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! मनुयाणं सरीरा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं मनुयाणं बेछप्पणा पिट्ठिकरंडगसया पन्नत्ता समणाउसो! ।
ते णं भंते! मनुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! छम्मासावसेसाउया Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સમયે ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોની કેવી કાલ સ્થિતિ કહેલી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી દેશોન ત્રણ પલ્યોપમ, ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમ છે. ભગવન્ ! તે સમયે ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોના શરીરની કેટલી ઊંચાઈ કહેલી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી દેશોન ત્રણ ગાઉ અને ઉત્કૃષ્ટ પણ ત્રણ ગાઉ. ભગવન્ ! તે મનુષ્યો કેવા સંઘયણવાળા કહ્યા છે ? ગૌતમ ! વજ્રઋષભનારાચ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 39 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे Translated Sutra: તે સમયે – (જ્યારે પ્રથમ આરો) ચાર કોડાકોડી સાગરોપમનો કાળ વીતી ગયા પછી અનંતા વર્ણપર્યાય, અનંતા ગંધપર્યાય, અનંતા રસપર્યાય, અનંતા સ્પર્શપર્યાય, અનંતા સંઘયણ પર્યાય, અનંતા સંસ્થાન પર્યાય, અનંતા ઉચ્ચત્વ પર્યાય, અનંતા આયુ પર્યાય, અનંતા ગુરુલઘુ અને અગુરુલઘુ પર્યાય, અનંતા ઉત્થાન – કર્મ – બલ – વીર્ય – પુરુષકાર પરાક્રમ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 40 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
सा णं समा तिहा विभज्जइ–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे Translated Sutra: બીજા આરાનો ત્રણ કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ વીત્યા પછી અનંતા વર્ણ પર્યાયો યાવત્ અનંતગુણ પરિહાનિથી ઘટતા – ઘટતા હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! આ સુષમ દુઃષમા કાળ શરૂ થયો. તે ત્રીજો. આરો ત્રણ ભેદે છે – પહેલાં ત્રિભાગ, વચલા ત્રીજા ભાગ અને છેલ્લા ત્રિભાગ. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપના આ અવસર્પિણીના સુષમાદુઃષમા આરાના પહેલા અને વચલા ત્રિભાગમાં | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 43 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाभिस्स णं कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए कुच्छिंसि, एत्थ णं उसहे नामं अरहा कोसलिए पढमराया पढमजिणे पढमकेवली पढमतित्थकरे पढमधम्मवरचक्कवट्टी समुप्पज्जित्था।
तए णं उसभे अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारावासमज्झावसइ, अज्झावसित्ता तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसइ, तेवट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झा-वसमाणे लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चोसट्ठिं महिला गुणे सिप्पसयं च कम्माणं तिन्नि वि पयाहियाए उवदिसइ, उवदिसित्ता पुत्तसयं रज्जसए अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावस, अज्झावसत्ता...
...जेसे Translated Sutra: નાભિ કુલકરની મરુદેવા નામે પત્નીની કુક્ષિમાં તે સમયે ઋષભ નામે અર્હત્, કૌશલિક, પ્રથમ રાજા, પ્રથમ જિન, પ્રથમ કેવલી, પ્રથમ તીર્થંકર, પ્રથમ શ્રેષ્ઠ ધર્મ ચક્રવર્તી ઉત્પન્ન થયા. ત્યારે તે ઋષભ કૌશલિક અર્હત્ ૨૦ – લાખ પૂર્વ કુમારવાસ મધ્યે રહ્યા. રહીને ૬૩ – લાખ પૂર્વ મહારાજાપણે રહ્યા. ૬૩ – લાખ પૂર્વ મહારાજાપણે વસતા | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત સાધિક એક વર્ષ વસ્ત્રધારી રહ્યા. ત્યારપછી અચેલક થયા. જ્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત મુંડ થઈને ગૃહવાસત્યાગી નિર્ગ્રન્થ પ્રવ્રજ્યા લીધી, ત્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત નિત્ય કાયાને વોસિરાવીને, દેહ મમત્ત્વ ત્યજીને, જે કોઈ ઉપસર્ગો ઉપજે છે, તે આ પ્રમાણે – દેવે કરેલ યાવત્ પ્રતિકૂળ કે અનુકૂળ ઉપસર્ગોને સહે | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 46 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए वज्जरिसहनारायसंघयणे समचउरंससंठाणसंठिए पंच धनुसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
उसभे णं अरहा कोसलिए वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता, तेवट्ठिं पुव्वसय-सहस्साइं रज्जवासमज्झा वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साइं अगारवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
उसभे णं अरहा कोसलिए एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जेसे हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત વજ્રઋષભનારાચ સંઘયણી, સમચતુરસ્ર સંસ્થાનથી સંસ્થિત, ૫૦૦ ધનુષ ઉર્ધ્વ ઊંચા હતા. ઋષભ અરહંત ૨૦ લાખ પૂર્વ કુમારવાસ મધ્યે રહીને, ૬૩ લાખ પૂર્વ મહારાજાપણે રહીને, એમ કુલ ૮૩ લાખ પૂર્વ ગૃહવાસમાં રહીને મુંડ થઈને ગૃહત્યાગ કરી સાધુપણે દીક્ષા લીધી. ઋષભ અરહંત ૧૦૦૦ વર્ષ છદ્મસ્થ પર્યાય પાળીને, એક લાખ પૂર્વમાં | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 47 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमप-ज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए० परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭. ત્રીજા આરાનો બે કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ વીત્યા પછી અનંત વર્ણ પર્યાયોથી યાવત્ અનંત ઉત્થાન કર્મ યાવત્ હ્રાસ થતા થતા આ દુષમસુષમા નામક આરાનો હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! આરંભ થયો. ભગવન્ ! તે સમયમાં ભરતક્ષેત્રના કેવા પ્રકારના આકારભાવ પ્રત્યાવતાર કહેલા છે ? ગૌતમ ! બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગ કહેલ છે, જેમ કોઈ આલિંગપુષ્કર | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 48 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणियाए काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहि अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण कम्म बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कम पज्जवेहिं अनंतगुण परिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा नामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! ।
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो! ।
तीसे णं भंते! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! काले भविस्सई Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सावणबहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइनक्खत्ते चोद्ददसपढमसमये अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुय-पज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण कम्म बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कम-पज्जवेहिं अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमाणामं समा काले पडि-वज्जिस्सइ समणाउसो!।
तीसे णं भंते! Translated Sutra: તે છઠ્ઠા આરાના ૨૧,૦૦૦ વર્ષનો કાળ વીત્યા પછી આગામી ઉત્સર્પિણીમાં શ્રાવણ માસના કૃષ્ણ પક્ષની એકમે, બાલવકરણમાં અભિજિત નક્ષત્રમાં ચૌદશમાં કાળના પહેલા સમયમાં અનંત વર્ણપર્યાયો યાવત્ અનંતગુણની પરિવૃદ્ધિથી વૃદ્ધિ પામતા – પામતા આ દુષમદુષમા નામનો આરો – સમયકાળ હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! પ્રાપ્ત થશે. ભગવન્ ! તે આરામાં | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 51 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पुक्खलसंवट्टए नामं महामेहे पाउब्भविस्सइ–भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं, तदणुरूवं च णं विक्खंभ-बाहल्लेणं। तए णं से पुक्खलसंवट्टए महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुयाइस्सइ, पविज्जयाइत्ता खिप्पामेव जुग मुसल मुट्ठिप्पमाण-मेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासिस्सइ, जेणं भरहस्स वासस्स भूमिभागं इंगालभूयं मुम्मुरभूयं छारियभूयं तत्तकवेल्लुगभूयं तत्तसमजोइभूयं निव्वाविस्सति।
तंसिं च णं पुक्खलसंवट्टगंसि महामेहंसि सत्तरत्तं निवतितंसि समाणंसि, एत्थ णं खीरमेहे नामं महामेहे पाउब्भविस्सइ–भरप्पमाणमेत्ते Translated Sutra: તે કાળે – તે સમયે પુષ્કલ સંવર્તક નામક મહામેઘ ઉત્પન્ન થશે. તે મહામેઘ લંબાઈથી ભરતને અનુરૂપ હશે અને વિષ્કંભ તથા બાહલ્યથી પણ અનુરૂપ હશે. ત્યારપછી તે પુષ્કલ સંવર્તક મહામેઘ શીઘ્રતાથી ગર્જના કરશે. શીઘ્રતાથી ગર્જના કરીને, શીઘ્રતાથી વિદ્યુતયુક્ત થશે. શીઘ્રતાથી વિદ્યુતયુક્ત થઈને શીઘ્રતાથી યુગ મુસલ મુષ્ટિ પ્રમાણ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 53 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! बहुसम-रमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा–कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव।
तीसे णं भंते! समाए मनुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! तेसिं णं मनुयाणं छव्विहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहूईओ रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेहिंति, पालेत्ता अप्पेगइया निरयगामी, अप्पेगइया तिरिय-गामी, अप्पेगइया मनुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, न सिज्झंति।
तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨ |