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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 411 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमित्थिए संलावुल्लावंगोवंग-निरिक्खणं वज्जेज्जा, से णं उयाहु मेहुणं गोयमा उभयमवि (२) से भयवं किमित्थि-संजोग-समायरणे मेहुणे परिवज्जिया, उयाहु णं बहुविहेसुं सचित्ता-चित्त-वत्थु-विसएसुं। (३) मेहुण-परिणामे तिविहं तिविहेणं मणो-वइ-काय-जोगेणं सव्वहा सव्व-कालं जावज्जीवाए त्ति । गोयमा सव्वहा विवज्जेज्जा॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! स्त्री के साथ बातचीत न करना, अंगोपांग न देखना या मैथुन सेवन का त्याग करना ? हे गौतम! दोनों का त्याग करो। हे भगवंत ! क्या स्त्री का समागम करने समान मैथुन का त्याग करना या कईं तरह के सचित्त अचित्त चीज विषयक मैथुन का परिणाम मन, वचन, काया से त्रिविध से सर्वथा यावज्जीवन त्याग करे ? हे गौतम ! उसे सर्व तरीके से त्याग
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 412 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जे णं केई साहू वा साहूणी वा मेहुणमासेवेज्जा से णं वंदेज्जा गोयमा जे णं केई साहू वा साहूणी वा मेहुणं सयमेव अप्पणा सेवेज्ज वा परेहि उवइसेत्तुं सेवावेज्जा वा सेविज्ज-माणं समनुजाणेज्जा वा दिव्वं वा मानुसं वा तिरिक्ख-जोणियं वा जाव णं कर-कम्माइं सचित्ताचित्त-वत्थुविसयं वा विविहज्झवसाएण कारमाकारिमोवगरणेणं मनसा वा वयसा वा काएण वा (२) से णं समणे वा समणी वा दूरंत-पत-लक्खण अदट्ठव्वे अमग्ग-समायारे महापाव-कम्मे नो णं वंदेज्जा, नो णं वंदावेज्जा नो णं वंदिज्जमाण वा समनुजाणेज्जा तिविहं तिविहेणं जाव णं विसोहिकालं ति। (३) से भयवं जं वंदेज्जा से किं लभेज्जा (४) गोयमा

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई साधु – साध्वी मैथुन सेवन करे वो दूसरों के पास वन्दन करवाए क्या ? हे गौतम ! यदि कोई साधु – साध्वी दीव्य, मानव या तिर्यंच संग से यावत्‌ हस्तकर्म आदि सचित्त चीज विषयक दुष्ट अध्यवसाय कर के मन, वचन, काया से खुद मैथुन सेवे, दूसरों को प्रेरणा उपदेश देकर मैथुन सेवन करवाए, सेवन करनेवाले को अच्छा माने, कृत्रिम
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 413 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विप्पहिच्चित्थियं सम्मं सव्वहा मेहुणं पि य। अत्थेगे गोयमा पाणी जे नो चयइ परिग्गहं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! ऐसे कुछ जीव होते हैं कि जो स्त्री का त्याग अच्छी तरह से कर सकते हैं। मैथुन को भी छोड़ देते हैं। फिर भी वो परिग्रह की ममता छोड़ नहीं सकते। सचित्त, अचित्त या उभययुक्त बहुत या थोड़ा जितने प्रमाण में उसकी ममता रखते हैं, भोगवटा करते हैं, उतने प्रमाण में वो संगवाला कहलाता है। संगवाला प्राणी ज्ञान आदि तीन की साधना
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 416 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे पयहित्ता परिग्गहं। आरंभं नो विवज्जेज्जा जं चीयं भवपरंपरा॥

Translated Sutra: हे गौतम ! ऐसे जीव भी होते हैं कि जो परिग्रह का त्याग करते हैं, लेकिन आरम्भ का नहीं करते, वो भी उसी तरह भव परम्परा पानेवाले कहलाते हैं।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 417 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आरंभे पत्थियस्सेग-वियल-जीवस्स वइयरे। संघट्टणाइयं कम्मं जं बद्धं गोयमा सुण॥

Translated Sutra: हे गौतम ! आरम्भ करने के लिए तैयार हुआ और एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीव के संघट्टन आदि कर्म करे तो हे गौतम ! वो जिस तरह का पापकर्म बाँधे उसे तू समझ।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 418 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एगे बेइंदिए जीवे एगं समयं अनिच्छमाणे बलाभिओगेणं हत्थेण वा पाएण वा अन्नयरेण वा सलागाइ-उव-गरण-जाएणं जे केइ पाणी अगाढं संघट्टेज्जा वा संघट्टावेज्ज वा संघटिज्जमाणं वा अंगाढं परेहिं-समनुजाणेज्जा, (२) से णं गोयमा जया तं कम्मं उदयं गच्छेज्जा तया णं महया केसेणं छम्मासेणं वेदेज्जा गाढं, दुवालसहिं संवच्छरेहिं। (३) तमेव अगाढं परियावेज्जा वास-सहस्सेणं गाढं, दसहिं वास-सहस्सेहिं। (४) तमेव अगाढं किलामेज्जा, वास-लक्खेणं गाढं, दसहिं वासलक्खेहिं। (५) अहा णं उद्दवेज्जा, तओ वास-कोडिए। (६) एवं ति-चउ-पंचिंदिएसु दट्ठव्वं॥

Translated Sutra: किसी बेइन्द्रिय जीव को बलात्कार से उसी अनिच्छा से एक वक्त के लिए हाथ से पाँव से दूसरे किसी सली आदि उपकरण से अगाढ़ संघट्ट करे। संघट्टा करवाए, ऐसा करनेवाले को अच्छा माने। हे गौतम ! यहाँ इस प्रकार बाँधा हुआ कर्म जब वो जीव के उदय में आता है, तब उसके विपाक बड़े क्लेश से छ महिने तक भुगतना पड़ता है। वो ही कर्म गाढ़पन से संघट्ट
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 421 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु सम्मिलंतेहिं कम्मुक्कुरुडेहिं गोयमा। से सोट्ठब्भेअनंतेहिं जे आरंभे पवत्तए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! उस तरह उत्कट कर्म अनन्त प्रमाण में इकट्ठे होते हैं। जो आरम्भ में प्रवर्तते हैं वो आत्मा उस कर्म से बँधता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

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उद्देशक-३ Hindi 424 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे एयं परिबुज्झिउं। एगंत-सुह-तल्लिच्छे न लभे सम्मग्गवत्तणिं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जगत में ऐसे भी जीव हैं कि जो यह जानने के बाद भी एकान्त सुखशीलपन के कारण से सम्यग्‌ मार्ग की आराधना में प्रवृत्त नहीं हो सकते। किसी जीव सम्यग्‌ मार्ग में जुड़कर घोर और वीर संयम तप का सेवन करे लेकिन उसके साथ यह जो पाँच बातें कही जाएगी उसका त्याग न करे तो उसके सेवन किए गए संयम तप सर्व निरर्थक हैं। १. कुशील,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 431 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा भट्ठ-सीलाणं दुत्तरे संसार-सागरे। धुवं तमनुकंपित्ता पायच्छित्ते पदरिसिए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! शीलभ्रष्ट आत्मा को संसार सागर पार करना काफी मुश्किल है। इसलिए यकीनन वैसे आत्मा की अनुकंपा करके उसे प्रायश्चित्त दिया जाता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 432 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं किं पायच्छित्तेणं छिंदिज्जा नारगाउयं । अनुचरिऊण पच्छित्तं बहवे दुग्गइं गए॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या प्रायश्चित्त करने से नरक का बँधा हुआ आयु छेदन हो जाए ? हे गौतम ! प्रायश्चित्त करके भी कईं आत्माए दुर्गति में गई है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 433 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा जे समज्जेज्जा अनंत-संसारियत्तणं। पच्छित्तेणं धुवं तं पि छिंदे, किं पुणो नरयाउयं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जिन्होंने अनन्त संसार उपार्जन किया है ऐसे आत्मा यकीनन प्रायश्चित्त से उसे नष्ट करते हैं, तो फिर वो नरक की आयु क्यों न तोडे ? इस भुवन में प्रायश्चित्त से छ भी असाध्य नहीं है। एक बोधिलाभ सिवा जीव को प्रायश्चित्त से कुछ भी असाध्य नहीं है। एक बार पाया हुआ बोधिलाभ हार जाए तो फिर से मिलना मुश्किल है सूत्र
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 438 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा दुविहे पहे अक्खाए सुस्समणे य सुसावए। महव्वय-धरे पढमे, बीएऽनुव्वय-धारए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! मोक्ष मार्ग दो तरह का बताया है। एक उत्तम श्रमण का और दूसरा उत्तम श्रावक का। प्रथम महाव्रतधारी का और दूसरा अणुव्रतधारी का। साधुओं ने त्रिविध त्रिविध से सर्व पाप व्यापार का जीवन पर्यन्त त्याग किया है। मोक्ष के साधनभूत घोर महाव्रत का श्रमण ने स्वीकार किया है। गृहस्थ ने परिमित काल के लिए द्विविध, एकविध
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 451 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नारायादीहिं संगामे गोयमा सल्लिए नरे। सल्लुद्धरणे भवे दुक्खं नानुकंपा विरुज्झए॥

Translated Sutra: हे गौतम! राजादि जब संग्राममें युद्ध करते हैं, तब उसमें कुछ सैनिक घायल होते हैं, तीर शरीर में जाता है तब तीर बाहर नीकालने से या शल्य उद्धार करने से उसे दुःख होता है। लेकिन शल्य उद्धार करने की अनुकंपा में विरोध नहीं माना जाता। शल्य उद्धार करनेवाला अनुकंपा रहित नहीं माना जाता, वैसे संसार समान संग्राम में अंगोपांग
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 462 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा जह पमाएणं अनिच्छंतोऽहि-डंकिए । आउत्तस्स जहा पच्छा विसं वड्ढे, तह चेव पावगं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जैसे प्रमाद से साँप का ड़ंख लगा हो लेकिन जरुरतवाले को पीछे से विष की वृद्धि हो वैसे पाप की भी वृद्धि होती है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 463 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं जे विदिय-परमत्थे सव्व-पच्छित्त-जाणगे। ते किं परेसिं साहिंति नियम-कज्जं जहट्ठियं ॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो परमार्थ को जाननेवाले होते हैं, तमाम प्रायश्चित्त का ज्ञाता हो उन्हें भी क्या अपने अकार्य जिस मुताबिक हुए हो उस मुताबिक कहना पड़े ? हे गौतम ! जो मानव तंत्र मंत्र से करोड़ को शल्य बिना और ड़ंख रहित करके मूर्च्छित को खड़ा कर देते हैं, ऐसा जाननेवाले भी ड़ंखवाले हुए हो, निश्चेष्ट बने हो, युद्ध में बरछी के घा से
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 480 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुसीले ताव दुस्सयहा, ओसन्ने दुविहे मुणे। पसत्थे नाणमादीणं सबले बाइसई विहे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! आम तोर पर उनके लक्षण इस प्रकार समझना और समझकर उसका सर्वथा संसर्ग त्याग करना, कुशील दो सौ प्रकार के जानना, ओसन्न दो तरह के बताए हैं। ज्ञान आदि के पासत्था, बाईश तरह से और सबल चारित्रवाले तीन तरह के हैं। हे गौतम ! उसमें जो दो सौ प्रकार के कुशील हैं वो तुम्हें पहले कहता हूँ कि जिसके संसर्ग से मुनि पलभर में भ्रष्ट
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 492 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं (२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं (३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं, (४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो (५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं (६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं (७)

Translated Sutra: हे भगवंत ! यदि ऐसा है तो क्या पंच मंगल के उपधान करने चाहिए ? हे गौतम ! प्रथम ज्ञान और उसके बाद दया यानि संयम यानि ज्ञान से चारित्र – दया पालन होता है। दया से सर्व जगत के सारे जीव – प्राणी – भूत – सत्त्व को अपनी तरह देखनेवाला होता है। जगत के सर्व जीव, प्राणी, भूत सत्त्व को अपनी तरह सुख – दुःख होता है, ऐसा देखनेवाला होने
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 493 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करे ? हे गौतम ! आगे हम बताएंगे उस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करना चाहिए। अति प्रशस्त और शोभन तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल हो तब आठ तरह के मद स्थान से मुक्त हो, शंका रहित श्रद्धासंवेग जिसके अति वृद्धि पानेवाले हो, अति तीव्र महान उल्लास पानेवाले, शुभ
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररूपेल हैं। वो इस प्रकार – जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 500 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेसिं च णं सुगहिय-नामग्गहणाणं तित्थयराणं गोयमा एस जग-पायडे महच्छेरयभूए भुयणस्स वि पयडपायडे महंताइसए पवियंभे, तं जहा–

Translated Sutra: हे गौतम ! जिनका पवित्र नाम ग्रहण करना ऐसे उत्तम फलवाला है ऐसे तीर्थंकर भगवंत के जगत में प्रकट महान आश्चर्यभूत, तीन भुवन में विशाल प्रकट और महान ऐसे अतिशय का विस्तार इस प्रकार का है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 501 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीणट्ठ-कम्म-पाया मुक्का बहु-दुक्ख-गब्भवसहीनं। पुनरवि अ पत्तकेवल-मनपज्जव-नाण-चरिततनू॥

Translated Sutra: केवलज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और चरम शरीर जिन्होंने प्राप्त नहीं किया ऐसे जीव भी अरिहंत के अतिशय को देखकर आठ तरह के कर्म का क्षय करनेवाले होते हैं। ज्यादा दुःख और गर्भावास से मुक्त होते हैं, महायोगी होते हैं, विविध दुःख से भरे भवसागर से उद्विग्न बनते हैं। और पलभर में संसार से विरक्त मनवाला बन जाता है। या हे गौतम
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 515 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेसि य तिलोग-महियाण धम्मतित्थंकराण जग-गुरूणं। भावच्चण-दव्वच्चण-भेदेण दुहऽच्चणं भणियं॥

Translated Sutra:
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 518 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एत्थं च गोयमा केई अमुनिय-समय-सब्भावे, ओसन्न-विहारी, नीयवासिणो, अदिट्ठ-परलोग-पच्चवाए, सयंमती, इड्ढि-रस-साय-गारवाइमुच्छिए, राग-दोस-मोहाहंकार-ममीकाराइसु पडिबद्धे, (२) कसिण संजम-सद्धम्म-परम्मुहे, निद्दय-नित्तिंस-निग्घिण-अकुलण-निक्किवे, पावायर-णेक्क-अभिनिविट्ठ-बुद्धी, एगंतेणं अइचंड-रोद्द-कूराभिग्गहिय-मिच्छ-द्दिट्ठिणो, (३) कय-सव्व-सावज्ज-जोग-पच्चक्खाणे, विप्पमुक्कासेस-संगारंभ परिग्गहे, तिविहं तिविहेणं पडिवन्न-सामाइए य दव्वत्ताए न भावत्ताए, नाम-मेत्तंमुडे, अनगारे महव्वयधारी समणे वि भवित्ता णं एवं मन्नमाने, सव्वहा उम्मग्गं पवत्तंति, (४) जहा–किल अम्हे अरहं-ताणं

Translated Sutra: हे गौतम ! यहाँ कुछ शास्त्र के परमार्थ को न समजनेवाले अवसन्न शिथिलविहारी, नित्यवासी, परलोक के नुकसान के बारे में न सोचनेवाले, अपनी मति के अनुसार व्यवहार करनेवाले, स्वच्छंद, ऋद्धि, रस, शाता – गारव आदि में आसक्त हुए, राग – द्वेष, मोह – अंधकार – ममत्त्व आदि में अति प्रतिबद्ध रागवाले, समग्र संयम समान सद्धर्म से पराङ्मुख,
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 519 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वत्थवाओ भावत्थयं तु, दव्वत्थ[वा]ओ बहु गुणो भवउ तम्हा। अबुहजने बुद्धीयं, छक्कायहियं तु गोयमाऽनुट्ठे॥

Translated Sutra: द्रव्यस्तव और भावस्तव इन दोनों में भाव – स्तव बहुत गुणवाला है। ‘‘द्रव्यस्तव’’ काफी गुणवाला है ऐसा बोलनेवाले की बुद्धि में समजदारी नहीं है। हे गौतम ! छ काय के जीव का हित – रक्षण हो ऐसा व्यवहार करना। यह द्रव्यस्तव गन्ध पुष्पादिक से प्रभुभक्ति करना उन समग्र पाप का त्याग न किया हो वैसे देश – विरतीवाले श्रावक
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 521 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं मन्ने गोयमा एस बत्तीसिंदाणु चिट्ठिए। जम्हा, तम्हा उ उभयं पि अणुट्ठेज्जेत्थ नु बुज्झसी॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जिस कारण से यह द्रव्यस्तव और भावस्तव रूप दोनों पूजा बत्तीस इन्द्र ने की है तो करने लायक है ऐसा शायद तुम समज रहे हो तो उसमें इस प्रकार समजना। यह तो केवल उनका विनियोग पाने की अभिलाषा समान भाव – स्तव माना है। अविरति ऐसे इन्द्र को भावस्तव (छ काय जीव की त्रिविध त्रिविध से दया स्वरूप) नामुमकीन है। दशार्णभद्र
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 523 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चक्कहर-भाणु-ससि-दत्त-दमगादीहिं विनिद्दिसे। पुव्वं ते गोयमा ताव-जं सुरिंदेहिं भत्तिओ॥

Translated Sutra: चक्रवर्ती, सूर्य, चन्द्र, दत्त, दमक आदि ने भगवान को पूछा कि क्या सर्व तरह की ऋद्धि सहित कोई न कर सके उस तरह भक्ति से पूजा – सत्कार किए वो क्या सर्व सावद्य समजे ? या त्रिविध विरतिवाला अनुष्ठान समजे या सर्व तरह के योगवाली विरती के लिए उसे पूजा माने ? हे भगवंत, इन्द्र ने तो उनकी सारी शक्ति से सर्व प्रकार की पूजा की है।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 527 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयमेव सव्व-तित्थंकरेहिं जं गोयमा समायरियं। कसिणट्ठ-कम्मक्खय-कारयं तु भावत्थयमनुट्ठे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! सर्व तीर्थंकर भक्त ने समग्र आठ कर्म का निर्मूलक्षय करनेवाले ऐसे चारित्र अंगीकार करने समान भावस्तव का खुद आचरण किया है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 541 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कह तं भन्नउ सोक्खं सुचिरेण वि जत्थ दुक्खमल्लियइ। जं च मरणावसाणं सुथेव-कालीय-तुच्छं तु॥

Translated Sutra: हे गौतम ! लवसत्तम देव यानि सर्वार्थसिद्ध में रहनेवाले देव भी वहाँ से च्यवकर नीचे आते हैं फिर बाकी के बारे में सोचा जाए तो संसार में कोई शाश्वत या स्थिर स्थान नहीं है। लम्बे काल के बाद जिसमें दुःख मिलनेवाला हो वैसे वर्तमान के सुख को सुख कैसे कहा जाए ? जिसमें अन्त में मौत आनेवाली हो और अल्पकाल का श्रेय वैसे सुख
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 543 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसारिय-सोक्खाणं सुमहंताणं पि गोयमा नेगे। मज्झे दुक्ख-सहस्से घोर-पयंडेणुभुंजंति॥

Translated Sutra: हे गौतम ! अति महान ऐसे संसार के सुख की भीतर कईं हजार घोर प्रचंड़ दुःख छिपे हैं। लेकिन मंद बुद्धिवाले शाता वेदनीय कर्म के उदय में उसे पहचान नहीं सकता। मणि सुवर्ण के पर्वत में भीतर छिपकर रहे लोह रोड़ा की तरह या वणिक पुत्री की तरह (यह किसी अवसर का पात्र है। वहाँ ऐसा अर्थ नीकल सकता है कि जिस तरह कुलवान, लज्जावाली और
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 548 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरएसु जाइं अइदूसहाइं दुक्खाइं परम-तिक्खाइं। को वन्नेही ताइं जीवंतो वास-कोडिं पि ।

Translated Sutra: नरकगति के भीतर अति दुःसह ऐसे जो दुःख हैं उसे करोड़ साल जीनेवाला वर्णन शूरु करे तो भी पूर्ण न कर सके। इसलिए हे गौतम ! दस तरह का यतिधर्म घोर तप और संयम का अनुष्ठान आराधन वो रूप भावस्तव से ही अक्षय, मोक्ष, सुख पा सकते हैं। सूत्र – ५४८, ५४९
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 551 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुमहऽच्चंत-पहीणेसु संजमावरण-नामधेज्जेसु। ताहे गोयम पाणी भावत्थय-जोगयमुवेइ॥

Translated Sutra: अति महान बहोत चारित्रावरणीय नाम के कर्म दूर हो तब ही हे गौतम ! जीव भावस्तव करने की योग्यता पा सकते हैं।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 562 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा धम्मतित्थंकरे जिने अरहंते। अह तारिसे वि इड्ढी-पवित्थरे, सयल-तिहुयणाउलिए। साहीणे जग-बंधू मनसा वि न जे खणं लुद्धे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! धर्म तीर्थंकर भगवंत, अरिहंत, जिनेश्वर जो विस्तारवाली ऋद्धि पाए हुए हैं। ऐसी समृद्धि स्वाधीन फिर भी जगत्‌ बन्धु पलभर उसमें मन से भी लुभाए नहीं। उनका परमैश्वर्य रूप शोभायमय लावण्य, वर्ण, बल, शरीर प्रमाण, सामर्थ्य, यश, कीर्ति जिस तरह देवलोक में से च्यवकर यहाँ अवतरे, जिस तरह दूसरे भव में, उग्र तप करके देवलोक
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 592 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं एवं जहुत्तविणओवहाणेणं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ताणं पुव्वानु-पुव्वीए, पच्छानुपुव्वीए, अनानुपुव्वीए, सर-वंजन-मत्ता-बिंदु-पयक्खर-विसुद्धं थिर-परिचियं काऊणं महया पबंधेणं सुत्तत्थं च विन्नाय, तओ य णं किम-हिज्जेज्जा (२) गोयमा इरियावहियं। (३) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ, जहा णं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ता णं पुणो इरियावहियं अहीए (४) गोयमा जे एस आया से णं जया गमणाऽगमणाइ परिणए अनेग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अणो वउत्त-पमत्ते संघट्टण-अवद्दावण-किलामणं-काऊणं, अणालोइय-अपडिक्कंते चेव असेस-कम्मक्खयट्ठयाए किंचि चिइ-वंदन-सज्झाय -ज्झाणाइसु अभिरमेज्जा, तया

Translated Sutra: हे गौतम ! इस प्रकार आगे कहने के अनुसार विनय – उपधान सहित पंचमंगल महा – श्रुतस्कंध (नवकार) को पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी से स्वर, व्यंजन, मात्रा, बिन्दु और पदाक्षर से शुद्ध तरह से पढ़कर उसे दिल में स्थिर और परिचित करके महा विस्तार से सूत्र और अर्थ जानने के बाद क्या पढ़ना चाहिए ? हे गौतम ! उसके बाद
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 593 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहीए तं इरियावहियमहिए (२) गोयमा जहा णं पंचमंगल-महासुयक्खंधं।

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस विधि से इरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए ? हे गौतम ! पंच मंगल महाश्रुतस्कंध की विधि के अनुसार पढ़ना चाहिए।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 594 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (३) से भयवं इरियावहियमहिज्जित्ता णं तओ किमहिज्जे (४) गोयमा सक्कत्थयाइयं चेइय-वंदन-विहाणं। नवरं सक्कत्थयं एगट्ठम -बत्तीसाए आयंबिलेहिं, अरहंतत्थयं एगेणं चउत्थेणं तिहिं आयंबिलेहिं, चउवीसत्थयं एगेणं छट्ठेणं एगेण य चउत्थेणं पणुवीसाए आयंबिलेहिं णाणत्थयं एगेणं चउत्थेणं पंचहिं आयंबिलेहिं। (५) एवं सर-वंजन-मत्ता-बिंदु-पयच्छेय-पयक्खर-विसुद्धं अविच्चामेलियं अहीएत्ता णं गोयमा तओ कसिणं सुत्तत्थ विन्नेयं। (६) जत्थ य संदेहं भवेज्जा, तं पुणो पुणो वीमंसिय नीसंकमवधारेऊणं नीसंदेहं करेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवंत ! इरियावहिय सूत्र पढ़कर फिर क्या करना चाहिए ? हे गौतम ! शक्रस्तव आदि चैत्यवंदन पढ़ना चाहिए। लेकिन शक्रस्तव एक अठ्ठम और उसके बाद उसके उपर बत्तीस आयंबिल करना चाहिए। अरहंत सत्व यानि अरिहंत चेईआणं एक उपवास और उस पर पाँच आयंबिल करके। चौबीस स्तव – लोगस्स, एक छठ्ठ, एक उपवास पर पचीस आयंबिल करके। श्रुतस्तव – पुक्खरवरदीवड्ढे
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 596 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (३) तओ परम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहं च दायव्वं। जहा णं (४) सहली-कयसुलद्ध-मनुय भव, भो भो देवानुप्पिया (५) तए अज्जप्पभितीए जावज्जीवं ति-कालियं अनुदिणं अनुत्तावलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्वे। (६) इणमेव भो मनुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति। (७) तत्थ पुव्वण्हे ताव उदग-पाणं न कायव्वं, जाव चेइए साहू य न वंदिए। (८) तहा मज्झण्हे ताव असण-किरियं न कायव्वं, जाव चेइए न वंदिए। (९) तहा अवरण्हे चेव तहा कायव्वं, जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेज्जा।

Translated Sutra: उसके बाद परम श्रद्धा संवेग तत्पर बना जानकर जीवन पर्यन्त के कुछ अभिग्रह देना। जैसे कि हे देवानुप्रिय ! तुने वाकई ऐसा सुन्दर मानवभव पाया उसे सफल किया। तुझे आज से लेकर जावज्जीव हंमेशा तीन काल जल्दबाझी किए बिना शान्त और एकाग्र चित्त से चैत्य का दर्शन, वंदन करना, अशुचि अशाश्वत क्षणभंगुर ऐसी मानवता का यही सार है।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 598 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा साहु-साहुणि-समणोवासग-सड्ढिगाऽसेसा-सन्न-साहम्मियजण-चउव्विहेणं पि समण-संघेणं नित्थारग-पारगो भवेज्जा धन्नो संपुन्न-सलक्खणो सि तुमं। ति उच्चारेमाणेणं गंध-मुट्ठीओ घेतव्वाओ। (२) तओ जग-गुरूणं जिणिंदाणं पूएग-देसाओ गंधड्ढाऽमिलाण-सियमल्लदामं गहाय स-हत्थेणोभय-खं धेसुमारोवयमाणेणं गुरुणा नीसंदेहमेवं भाणियव्वं, जहा। (३) भो भो जम्मंतर-संचिय-गुरुय-पुन्न-पब्भार सुलद्ध-सुविढत्त-सुसहल-मनुयजम्मं देवानुप्पिया ठइयं च नरय-तिरिय-गइ-दारं तुज्झं ति। (४) अबंधगो य अयस-अकित्ती-णीया-गोत्त-कम्म-विसेसाणं तुमं ति, भवंतर-गयस्सा वि उ न दुलहो तुज्झ पंच नमोक्कारो, । (५) भावि-जम्मंतरेसु

Translated Sutra: और फिर साधु – साध्वी श्रावक – श्राविका समग्र नजदीकी साधर्मिक भाई, चार तरह के श्रमण संघ के विघ्न उपशान्त होते हैं और धर्मकार्य में सफलता पाते हैं। और फिर उस महानुभाव को ऐसा कहना कि वाकई तुम धन्य हो, पुण्यवंत हो, ऐसा बोलते – बोलते वासक्षेप मंत्र करके ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद जगद्‌गुरु जिनेन्द्र की आगे के स्थान
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 599 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किं जहा पंचमंगलं तहा सामाइयाइयमसेसं पि सुय-नाणमहिज्जिणेयव्वं (२) गोयमा तहा चेव विणओवहाणेण महीएयव्वं, नवरं अहिज्जिणिउकामेहिं अट्ठविहं चेव नाणायरं सव्व-पयत्तेणं कालादी रक्खेज्जा, । (३) अन्नहा महया आसायणं ति। (४) अन्नं च दुवालसंगस्स सुयनाणस्स पढम-चरिमजाम-अहन्निसमज्झयणज्झावणं, पंच-मंगलस्स सोलस द्धजामियं च। (५) अन्नं च पंच-मंगलं कय-सामाइए इ वा, अकय-समाइए इ वा अहीए, सामाइयमाइयं तु सुयं चत्तारंभपरिग्गहे जावज्जीवं कय-सामाइए अहीज्जिणेइ, न उ णं सारंभ-परिग्गहे अकय-सामाइए। (६) तहा पंचमंगलस्स आलावगे आलावगे आयंबिलं, तहा सक्कत्थवाइसु वि, दुवालसंगस्स पुन सुय-नाणस्स

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या जिस तरह पंच मंगल उपधान तप करके विधिवत्‌ ग्रहण किया उसी तरह सामायिक आदि समग्र श्रुतज्ञान पढ़ना चाहिए ? हे गौतम ! हा, उसी प्रकार विनय और उपधान तप करने लायक विधि से अध्ययन करना चाहिए। खास करके वो श्रुतज्ञान पढ़ाते वक्त अभिलाषावाले को सर्व कोशीश से आठ तरह के कालादिक आचार का रक्षण करना चाहिए। वरना श्रुतज्ञान
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 600 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं सुदुक्करं पंच-मंगल-महासुयक्खंधस्स विणओवहाणं पन्नत्तं, महती य एसा नियंतणा, कहं बालेहिं कज्जइ (२) गोयमा जे णं केइ न इच्छेज्जा एयं नियंतणं, अविनओवहाणेणं चेव पंचमंगलाइ सुय-नाणमहिज्जिणे अज्झावेइ वा अज्झावयमाणस्स वा अणुन्नं वा पयाइ। (३) से णं न भवेज्जा पिय-धम्मे, न हवेज्जा दढ-धम्मे, न भवेज्जा भत्ती-जुए, हीले-ज्जा सुत्तं, हीलेज्जा अत्थं, हीलेज्जा सुत्त-त्थ-उभए हीलेज्जा गुरुं। (४) जे णं हीलेज्जा सुत्तत्थोऽभए जाव णं गुरुं, से णं आसाएज्जा अतीताऽणागय-वट्टमाणे तित्थयरे, आसाएज्जा आयरिय-उवज्झाय-साहुणो (५) जे णं आसाएज्जा सुय-नाणमरिहंत-सिद्ध-साहू, से तस्स णं सुदीहयालमणंत-संसार-सागरमाहिंडेमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवंत ! यह पंचमंगल श्रुतस्कंध पढ़ने के लिए विनयोपधान की बड़ी नियंत्रणा – नियम बताए हैं। बच्चे ऐसी महान नियंत्रणा किस तरह कर सकते हैं ? हे गौतम ! जो कोई ईस बताई हुई नियंत्रणा की ईच्छा न करे, अविनय से और उपधान किए बिना यह पंचमंगल आदि श्रुतज्ञान पढ़े – पढ़ाए या उपधान पूर्वक न पढ़े या पढ़ानेवाले को अच्छा माने उसे नवकार
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 601 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) नवरं गोयमा जे णं बाले, जाव अविण्णाय-पुन्न-पावाणं विसेसे, ताव णं से पंच-मंगलस्स णं गोयमा एगंतेणं अओग्गे, । (२) न तस्स पंचमंगल-महा-सुयक्खंधं दायव्वं, न तस्स पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स एगमवि आलावगं दायव्वं (३) जओ अनाइ-भवंतर-समज्जियाऽसुह-कम्म-रासि-दहणट्ठमिणं लभित्ता णं न बाले सम्ममारा-हेज्जा लहुत्तं च आणेइ, ता तस्स केवलं धम्म-कहाए गोयमा भत्ती समुप्पाइज्जइ। (४) तओ नाऊणं पिय-धम्मं दढ-धम्मं भत्ति-जुत्तं ताहे जावइयं पच्चक्खाणं निव्वाहेउं समत्थो भवति, तावइयं कारविज्जइ। (५) राइ-भोयणं च दुविह-तिविह-चउव्विहेण वा जहा-सत्तीए पच्चक्खाविज्जइ।

Translated Sutra: लेकिन हे गौतम ! जिसने अभी पाप – पुण्य का अर्थ न जाना हो, ऐसा बच्चा उस ‘‘पंच मंगल’’ के लिए एकान्ते अनुचित है। उसे पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध का एक भी आलावा मत देना। क्योंकि अनादि भवान्तर में उपार्जन किए कर्मराशी को बच्चे के लिए यह आलापक प्राप्त करके बच्चा सम्यक्‌ तरह से आराधन न करे तो उनकी लघुता हो। उस बच्चे को पहले
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 602 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (६) ता गोयमा णं पणयालाए नमोक्कार-सहियाणं चउत्थं चउवीसाए पोरुसीहिं, बारसहिं पुरिमड्ढेहिं, दसहिं अवड्ढेहिं, तिहिं निव्वी इएहिं, चउहिं एगट्ठाणगेहिं, दोहिं आयंबिलेहिं, एगेणं सुद्धत्थायंबिलेणं। (७) अव्वावारत्ताए रोद्दट्टज्झाण-विगहा-विरहियस्स सज्झा-एगग्ग-चित्तस्स गोयमा एगमेवा-ऽऽयंबिलं मास-खवणं विसेसेज्जा। (८) तओ य जावइयं तवोवहाणगं वीसमंतो करेज्जा, तावइयं अनुगणेऊणं, जाहे जाणेज्जा जहा णं एत्तियमेत्तेणं तवोवहाणेणं पंचमंगलस्स जोगीभूओ, ताहे आउत्तो पढेज्जा, न अन्नह त्ति।

Translated Sutra: हे गौतम ! ४५ नवकारशी करने से, २४ पोरिसी करने से, १२ पुरिमुड्ढ करने से, १० अवड्ढ करने से और चार एकासणा करने से (एक उपवास गिनती में ले सकते हैं।) दो आयंबिल और एक शुद्ध, निर्मल, निर्दोष आयंबिल करने से भी एक उपवास गिना जाता है।) हे गौतम ! व्यापार रहितता से रौद्रध्यान – आर्तध्यान, विकथा रहित स्वाध्याय करने में एकाग्र चित्तवाला
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 603 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं पभूयं कालाइक्कमं एयं, (२) जइ कदाइ अवंतराले पंचत्तमुवगच्छेज्जा, तओ नमोक्कार विरहिए कहमुत्तिमट्ठं साहेज्जा गोयमा जं समयं चेव सुतोवयारनिमित्तेणं असढ-भावत्ताए जहा-सत्तीए किंचि तव-मारभेज्जा, तं समयमेव तमहीय-सुत्तत्थोभयं दट्ठव्वं। जओ णं सो तं पंच-नमोक्कारं सुत्तत्थोभयं न अविहीए गेण्हे, किंतु तहा गेण्हे जहा भवंतरेसुं पि न विप्पणस्से, एयज्झवसायत्ताए आराहगो भवेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवंत ! इस प्रकार करने से, दीर्घकाल बीत जाए और यदि शायद बीच में ही मर जाए तो नवकार रहित वो अंतिम आराधना किस तरह साध सके ? हे गौतम ! जिस वक्त सूत्रोपचार के निमित्त से अशठभाव से यथाशक्ति जो कोई तप की शुरूआत की उसी वक्त उसने उस सूत्र का, अर्थ का और तदुभय का अध्ययन पठन शुरू किया ऐसा समझना। क्योंकि वो आराधक आत्मा उस
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 604 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जेण उण अन्नेसिमहीयमाणाणं सुयायवरणक्खओवसमेणं कन्न-हाडित्तणेणं पंचमंगल-महीयं भवेज्जा, से वि उ किं तवोवहाणं करेज्जा (२) गोयमा करेज्जा (३) से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा सुलभ-बोहि-लाभ-निमित्तेणं। एवं चेयाइं अकुव्वमाणे नाणकुसीले नेए।

Translated Sutra: हे गौतम ! किसी दूसरे के पास पढ़ते हो और श्रुतज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से कान से सूनकर दिया गया सूत्र ग्रहण करके पंचमंगल सूत्र पढ़कर किसी ने तैयार किया हो – क्या उसे भी तप उपधान करना चाहिए ? हे गौतम ! हा, उसको भी तप कराके देना चाहिए। हे भगवंत ! किस कारण से तप करना चाहिए ? हे गौतम ! सुलभ बोधि के लाभ के लिए। इस प्रकार तप – विधान
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 620 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (२) एएणं अट्ठेणं गोयमा एवं वुच्चइ, जहा णं जावज्जीवं अभिग्गहेणं चाउक्कालियं सज्झायं कायव्वं ति। (३) तहा य गोयमा जे भिक्खू विहीए सुपसत्थनाणमहिज्जेऊण नाणमयं करेज्जा, से वि नाण-कुसीले। (४) एवमाइ नाण-कुसीले अनेगहा पन्नविज्जंति।

Translated Sutra: हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि – जावज्जीव अभिग्रह सहित चार काल स्वाध्याय करना। और फिर हे गौतम ! जो भिक्षु विधिवत्‌ सुप्रशस्त ज्ञान पढ़कर फिर ज्ञानमद करे वो ज्ञानकुशील कहलाता है। उस तरह ज्ञान कुशील की कईं तरह प्रज्ञापना की जाती है।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 621 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयरे ते दंसण-कुसीले गोयमा दंसण-कुसीले दुविहे नेए–आगमओ नो आगमओ य। तत्थ आगमो सम्मद्दंसणं, १ संकंते, २ कंखंते, ३ विदुगुंछंते, ४ दिट्ठीमोहं गच्छंते अणोववूहए, ५ परिवडिय-धम्मसद्धे सामन्नमुज्झिउ-कामाणं अथिरीकरणेणं, ७ साहम्मियाणं अवच्छल्लत्तणेणं, ८ अप्पभावनाए एतेहिं अट्ठहिं पि थाणंतरेहिं कुसीले नेए।

Translated Sutra: हे भगवंत ! दर्शनकुशील कितने प्रकार के होते हैं ? हे गौतम ! दर्शनकुशील दो प्रकार के हैं – एक आगम से और दूसरा नोआगम से। उसमें आगम से सम्यग्‌दर्शन में शक करे, अन्य मत की अभिलाषा करे, साधु – साध्वी के मैले वस्त्र और शरीर देखकर दुगंछा करे। घृणा करे, धर्म करने का फल मिलेगा या नहीं, सम्यक्त्व आदि गुणवंत की तारीफ न करना।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 623 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा घाण-कुसीले जे केइ सुरहि-गंधेसु संगं गच्छइ दुरहिगंधे दुगुंछे, से णं घाण-कुसीले। तहा सवण-कुसीले दुविहे नेए–पसत्थे, अपसत्थे य। तत्थ जे भिक्खू अपसत्थाइं काम-राग-संधुक्खणु द्दिवण-उज्जालण-पज्जालण-संदिवणाइं-गंधव्व-नट्ट-धनुव्वेद-हत्थिसिक्खा-काम-रती-सत्थाईणि गंथाणि सोऊणं णालोएज्जा, जाव णं नो पायच्छित्तमनुचरेज्जा, से णं अपसत्थ-सवण-कुसीले नेए। तहा जे भिक्खू पसत्थाइं सिद्धंताचरिय-पुराण-धम्म-कहाओ य अन्नाइं च गंथसत्थाइं सुणेत्ता णं न किंचि आयहियं अणुट्ठे णाण-मयं वा करेइ, से णं पसत्थ-सवणकुसीले नेए। तहा जिब्भा-कुसीले से णं अनेगहा, । तं जहा-तित्त-कडुय-कसाय महुरंबिल-लवणाइं

Translated Sutra: घ्राणकुशील उसे कहते हैं जो अच्छी सुगंध लेने के लिए जाए और दुर्गंध आती हो तो नाक टेढ़ा करे, दुगंछा करे और श्रवणकुशील दो तरह के समझना, प्रशस्त और अप्रशस्त। उसमें जो भिक्षु अप्रशस्त कामराग को उत्पन्न करनेवाले, उद्दीपन करनेवाले, उज्जवल करनेवाले, गंधर्वनाटक, धनुर्वेद, हस्त शिक्षा, कामशास्त्र, रतिशास्त्र आदि श्रवण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 650 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचेए सुमहा-पावे जे न वज्जेज्ज गोयमा। संलावादीहिं कुसीलादी, भमिही सो सुमती जहा॥

Translated Sutra: अति विशाल ऐसे यह पाँच पाप जिसे वर्जन नहीं किया, वो हे गौतम ! जिस तरह सुमति नाम के श्रावक ने कुशील आदि के साथ संलाप आदि पाप करके भव में भ्रमण किया वैसे वो भी भ्रमण करेंगे। भवस्थिति कायस्थितिवाले संसार से घोर दुःख में पड़े बोधि, अहिंसा आदि लक्षणयुक्त दश तरह का धर्म नहीं पा सकता। ऋषि के आश्रम में और भिल्ल के घर में
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अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 654 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कहं पुन तेण सुमइणा कुसील-संसग्गी कया आसी उ, जीए अ एरिसे अइदारुणे अवसाणे समक्खाए जेण भव-कायट्ठितीए अनोर-पारं भव-सायरं भमिही। से वराए दुक्ख-संतत्ते अलभंते सव्वण्णुवएसिए अहिंसा-लक्खण खंतादि-दसविहे धम्मे बोहिं ति गोयमा णं इमे, तं जहा– अत्थि इहेव भारहे वासे मगहा नाम जनवओ। तत्थ कुसत्थलं नाम पुरं। तम्मि य उवलद्ध-पुन्न-पावे समुनिय-जीवाजीवादि-पयत्थे सुमती-नाइल नामधेज्जे दुवे सहोयरे महिड्ढीए सड्ढगे अहेसि। अहन्नया अंतराय-कम्मोदएणं वियलियं विहवं तेसिं, न उणं सत्त-परक्कमं ति। एवं तु अचलिय-सत्त-परक्कमाणं तेसिं अच्चंतं परलोग-भीरूणं विरय-कूड-कवडालियाणं पडिवन्न-जहोवइट्ठ-दाणाइ-चउक्खंध-उवासग-धम्माणं

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस सुमति ने कुशील संसर्ग किस तरह किया था कि जिससे इस तरह के अति भयानक दुःख परीणामवाला भवस्थिति और कायस्थिति युक्त पार रहित भवसागर में दुःख संतप्त बेचारा वो भ्रमण करेगा। सर्वज्ञ – भगवंत के उपदेशीत अहिंसा लक्षणवाले क्षमा आदि दश प्रकार के धर्म को और सम्यक्‌त्व न पाएगा, हे गौतम ! वो बात यह है – इस भारतवर्ष
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अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 655 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह अन्नया अचलंतेसुं अतिहि-सक्कारेसुं अपूरिज्जमाणेसुं पणइयण-मनोरहेसुं, विहडंतेसु य सुहि-सयणमित्त बंधव-कलत्त-पुत्त-नत्तुयगणेसुं, विसायमुवगएहिं गोयमा चिंतियं तेहिं सड्ढगेहिं तं जहा–

Translated Sutra: अब किसी समय घर में महमान आते तो उसका सत्कार नहीं किया जा सकता। स्नेहीवर्ग के मनोरथ पूरे नहीं कर सकते, अपने मित्र, स्वजन, परिवार – जन, बन्धु, स्त्री, पुत्र, भतीजे, रिश्ते भूलकर दूर हट गए तब विषाद पानेवाले उस श्रावकों ने हे गौतम ! सोचा की, ‘‘पुरुष के पास वैभव होता है तो वो लोग उसकी आज्ञा स्वीकारते हैं। जल रहित मेघ को
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 661 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह एवमवरोप्परं संजोज्जेऊण गोयमा कयं देसपरिच्चाय-निच्छयं तेहिं ति। जहा वच्चामो देसंतरं ति। तत्थ णं कयाई पुज्जंति चिर-चिंतिए मणोरहे हवइ य पव्वज्जाए सह संजोगो जइ दिव्वो बहुमन्नेज्जा जाव णं उज्झिऊणं तं कमागयं कुसत्थलं। पडिवन्नं विदेसगमणं।

Translated Sutra: इस प्रकार वो आपस में एकमत हुए और वैसे होकर हे गौतम ! उन्होंने देशत्याग करने का तय किया कि – हम किसी अनजान देश में चले जाए। वहाँ जाने के बाद भी दीर्घकाल से चिन्तवन किए मनोरथ पूर्ण न हो तो और देव अनुकूल हो तो दीक्षा अंगीकार करे। उसके बाद कुशस्थल नगर का त्याग करके विदेश गमन करने का तय किया।
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