Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (18391)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-७ संसृष्ट Hindi 621 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपच्चक्खायए णं भंते! अनगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति? हंता गोयमा! भत्तपच्चक्खायए णं अनगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भत्तपच्चक्खायए णं अनगारे मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेति, अहे णं वीससाए कालं करेइ, तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति? गोयमा! भत्तपच्चक्खायए णं अनगारे मुच्छिए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! भक्तप्रत्याख्यान करने वाला अनगार क्या (पहले) मूर्च्छित यावत्‌ अत्यन्त आसक्त होकर आहार ग्रहण करता है, इसके पश्चात्‌ स्वाभाविक रूप से काल करता है और तदनन्तर अमूर्च्छित, अगृद्ध यावत्‌ अनासक्त होकर आहार करता है ? हाँ, गौतम ! भक्तप्रत्याख्यान करने वाला अनगार पूर्वोक्त रूप से आहार करता है। भगवन्‌ ! किस कारण
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-७ संसृष्ट Hindi 622 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा, वीहीण वा, गोधूमाण वा, जवाण वा, जवजवाण वा पक्काणं, परियाताणं, हरियाणं, हरियकंडाणं तिक्खेणं नवपज्जणएणं असिअएणं पडिसाहरिया-पडिसाहरिया पडिसंखिविया-पडिसंखिविया जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु सत्त लवे लुएज्जा, जदि णं गोयमा! तेसिं देवाणं एवतियं कालं आउए पहुप्पते तो णं ते देवा तेणं चेव भवग्गहणेणं सिज्झंता बुज्झंता मुच्चंता परिनिव्वायंता सव्वदुक्खाणं अंतं करेंता। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–लवसत्तमा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवसप्तम देव ‘लवसप्तम’ होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! उन्हें ‘लवसप्तम’ देव क्यों कहते हैं ? गौतम ! जैसे कोई तरुण पुरुष यावत्‌ शिल्पकला में निपुण एवं सिद्धहस्त हो, वह परिपक्व, काटने योग्य अवस्था को प्राप्त, पीले पड़े हुए तथा पीले जाल वाले, शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ, और जवजव की बिखरी हुई नालों को हाथ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-७ संसृष्ट Hindi 623 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अनुत्तरोववाइया देवा, अनुत्तरोववाइया देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अनुत्तरोववाइया देवा, अनुत्तरोववाइया देवा? गोयमा! अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं अनुत्तरा सद्दा, अनुत्तरा रूवा, अनुत्तरा गंधा, अनुत्तरा रसा, अनुत्तरा फासा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–अनुत्तरोववाइया देवा, अनुत्तरोववाइया देवा। अनुत्तरोववाइया णं भंते! देवा केवतिएणं कम्मावसेसेनं अनुत्तरोववाइयदेवत्ताए उववन्ना? गोयमा! जावतियं छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतिएणं कम्मावसेसेनं अनुत्तरोव-वाइयदेवत्ताए उववन्ना। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव, अनुत्तरौपपातिक होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! वे अनुत्त – रौपपातिक देव क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तर शब्द, यावत्‌ – अनुत्तर स्पर्श प्राप्त होते हैं, इस कारण, हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देवों को अनुत्तरौपपातिक देव कहते हैं। भगवन्‌ ! कितने कर्म
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 624 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए य पुढवीए केवतिए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए बालुयप्पभाए य पुढवीए केवतिए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? एवं चेव। एवं जाव तमाए अहेसत्तमाए य। अहेसत्तमाए णं भंते! पुढवीए अलोगस्स य केवतिए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए जोतिसस्स य केवतिए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तनउए जोयणसए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। जोतिसस्स णं भंते! सोहम्मीसाणाण य कप्पाणं केवतिए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभा पृथ्वी का कितना अबाधा – अन्तर है ? गौतम ! असंख्यात हजार योजन का है। भगवन्‌ ! शर्कराप्रभापृथ्वी और बालुकाप्रभापृथ्वी का कितना अबाधा – अन्तर है ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना। भगवन्‌ ! अधःसप्तमपृथ्वी और अलोक का कितना अबाधा – अन्तर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 625 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! सालरुक्खे उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पच्चायाहिती। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय-पाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सइ। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। एस णं भंते! साललट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! यह शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ पर अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित – प्रातिहार्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 626 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिपुत्ते नगरे पाडलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइय-महिए यावि भविस्सइ। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीड़ित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत्‌ पूजनीय होगी।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 627 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते? एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए आहारमाहरेइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बहुत – से लोग परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार कहते हैं यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में भोजन करता है तथा रहता है, (इत्यादि प्रश्न)। हाँ, गौतम ! यह सत्य है; इत्यादि औपपातिकसूत्रमें कथित अम्बड – सम्बन्धी वक्तव्यता, यावत्‌ – महर्द्धिक दृढप्रतिज्ञ होकर सर्व दुःख
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 628 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा? गोयमा! पभू णं एगमेगे अव्वाबाहे देवे एगमेगस्स पुरिसस्स एगमेगंसि अच्छिपत्तंसि दिव्वं देविड्ढिं, दिव्वं देवज्जुतिं, दिव्वं देवानुभागं, दिव्वं बत्तीसतिविहं नट्ठविहिं उवदंसेत्तए, नो चेव णं तस्स पुरिसस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएइ, छविच्छेयं वा करेइ, एसुहुमं च णं उवदंसेज्जासे तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–अव्वाबाहा देवा, अव्वाबाहा देवा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! किसी को बाधा – पीड़ा नहीं पहुँचाने वाले अव्याबाध देव हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन्‌ ! अव्या – बाध देव, अव्याबाध देव किस कारण से कहे जाते हैं ? गौतम ! प्रत्येक अव्याबाध देव, प्रत्येक पुरुष की, प्रत्येक आँख की पलक पर दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति, दिव्य देवानुभाव और बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि दिखलाने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 629 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! सक्के देविंदे देवराया पुरिसस्स सीसं सपाणिणा असिणा छिंदित्ता कमंडलुंसि पक्खिवित्तए? हंता पभू। से कहमिदाणिं पकरेति? गोयमा! छिंदिया-छिंदिया च णं पक्खिवेज्जा, भिंदिया-भिंदिया च णं पक्खिवेज्जा, कोट्टिया-कोट्टिया च णं पक्खिवेज्जा, चुण्णिया-चुण्णिया च णं पक्खिवेज्जा, तओ पच्छा खिप्पामेव पडिसंघाएज्जा, नो चेव णं तस्स पुरिसस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएज्जा, छविच्छेयं पुण करेइ, एसुहुमं च णं पक्खिवेज्जा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ में ग्रहण की हुई तलवार से, किसी पुरुष का मस्तक काट कर कमण्डलू में डालने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन्‌ ! वह किस प्रकार डालता है ? गौतम ! शक्रेन्द्र उस पुरुष के मस्तक को छिन्न – भिन्न करके डालता है। या भिन्न – भिन्न करके डालता है। अथवा वह कूट – कूट कर डालता है। या
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 630 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जंभगा देवा, जंभगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा? गोयमा! जंभगा णं देवा निच्चं पमुदित-पक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला। जे णं ते देवे कुद्धे पासेज्जा, से णं पुरिसे महंतं अयसं पाउणेज्जा। जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा, से णं महंतं जसं पाउणेज्जा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा। कतिविहा णं भंते! जंभगा देवा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा– अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुप्फजंभगा, फलजं-भगा, पुप्फ-फल-जंभगा, विज्जाजंभगा अवियत्तिजंभगा। जंभगा णं भंते! देवा कहिं वसहिं उवेंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जृम्भक देव होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! वे जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं? गौतम ! जृम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीड़ाशील, कन्दर्प में रत और मोहन शील होते हैं। जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान्‌ अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट हुए देखता है, वह महान्‌ यश को प्राप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-९ अनगार Hindi 631 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ-पासइ। हंता गोयमा! अनगारे णं भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणइ, न पासइ, तं पुण जीवं सरूविं सकम्मलेस्सं जाणइ पासइ। अत्थि णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति जाव पभासेंति? गोयमा! जाओ इमाओ चंदिम-सूरियाणं देवाणं विमानेहिंतो लेस्साओ बहिया अभिनिस्स-डाओ पभावेंति, एए णं गोयमा! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानने – देखने वाला भावितात्मा अनगार, क्या सरूपी (सशरीर) और कर्मलेश्या – सहित जीव को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! भावितात्मा अनगार, जो अपनी कर्मलेश्या को नहीं जानता – देखता, वह सशरीर एवं कर्मलेश्या वाले जीव को जानता – देखता है। भगवन्‌ ! क्या सरूपी, सकर्मलेश्य पुद्‌गलस्कन्ध अवभासित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-९ अनगार Hindi 635 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे इमे भंते! अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, ते णं कस्स तेयलेस्सं वीईवयंति? गोयमा! मासपरियाए समणे निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। दुमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरिंदवज्जियाणं भवनवासीणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। एवं एएणं अभिलावेणं–तिमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरकुमाराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। चउम्मासपरियाए समणे निग्गंथे गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयई। पंचमासपरियाए समणे निग्गंथे चदिम-सूरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसराईणं तेयलेस्सं वीईवयइ। छम्मासपरियाए समणे निग्गंथे सोहम्मीसाणाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ। सत्तमासपरियाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो ये श्रमण निर्ग्रन्थ आर्यत्वयुक्त होकर विचरण करते हैं, वे किसकी तेजोलेश्या का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! एक मास के दीक्षापर्याय वाला श्रमण – निर्ग्रन्थ वाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है; दो मास के दीक्षापर्याय वाला श्रमण – निर्ग्रन्थ असुरेन्द्र के सिवाय (समस्त) भवनवासी देवों की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-१० केवली Hindi 636 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! छउमत्थं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। जहा णं भंते! केवली छउमत्थं जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। केवली णं भंते! आहोहियं जाणइ-पासइ? एवं चेव। एवं परमाहोहियं, एवं केवलिं, एवं सिद्धं जाव– जहा णं भंते! केवली सिद्धं जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। केवली णं भंते! भासेज्ज वा? वागरेज्जा वा? हंता भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा। जहा णं भंते! केवली भासेज्ज वा वागरेज्ज वा, तहा णं सिद्धे वि भासेज्ज वा वागोज्ज वा? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं केवली भासेज्ज वा वागरेज्ज वा नो तहा णं सिद्धे भासेज्ज

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवलज्ञानी छद्मस्थ को जानते – देखते हैं ? हाँ (गौतम !) जानते – देखते हैं। भगवन्‌ ! केवल – ज्ञानी, छद्मस्थ के समान सिद्ध भगवन्‌ भी छद्मस्थ को जानते – देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) जानते – देखते हैं। भगवन्‌ ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक को जानते – देखते हैं ? हाँ, गौतम ! जानते – देखते हैं। इसी प्रकार परमावधिज्ञानी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 637 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो सुयदेवयाए भगवईए तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं सावत्थीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, तत्थ णं कोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए हालाहला नामं कुंभकारी आजीविओवासिया परिवसति–अड्ढा जाव बहुजणस्स अपरिभूया, आजीविय-समयंसि लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिंजपेम्माणुरागरत्ता अयमाउसो! आजीवियसमये अट्ठे, अयं परमट्ठे, सेसे अणट्ठे त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं गोसाले मंखलिपुत्ते चउव्वीसवासपरियाए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजी-वियसंघसंपरिवुडे

Translated Sutra: भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो। उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तरपूर्व – दिशाभाग में कोष्ठक नामक चैत्य था। उस श्रावस्ती नगरी में आजीविक (गोशालक) मत की उपासिका हालाहला नामकी कुम्भारिन रहती थी। वह आढ्य यावत्‌ अपरिभूत थी। उसने आजीविकसिद्धान्त का अर्थ प्राप्त कर लिया
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 638 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरइ। से कहमेयं मन्ने एवं? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिधस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे

Translated Sutra: इसके बाद श्रावस्ती नगरी में शृंगाटक पर, यावत्‌ राजमार्गों पर बहुत – से लोग एक दूसरे से इस प्रकार कहने लगे, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करने लगे – हे देवानुप्रियो ! निश्चित है कि गोशालक मंखलिपुत्र ‘जिन’ होकर अपने आप को ‘जिन’ कहता हुआ, यावत्‌ ‘जिन’ शब्द में अपने आपको प्रकट करता हुआ विचरता है, तो इसे ऐसा कैसे माना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 639 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए। तए णं अहं गोयमा! पढमं

Translated Sutra: उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता – पिता के दिवंगत हो जाने पर भावना नामक अध्ययन के अनुसार यावत्‌ एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। हे गौतम ! मैं प्रथम वर्ष में अर्द्धमास – अर्द्धमास क्षमण करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 640 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! अन्नया कदायि पढमसरदकालसमयंसि अप्पवुट्ठिकायंसि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं सिद्धत्थगामाओ नगराओ कुम्मगामं नगरं संपट्ठिए विहाराए। तस्स णं सिद्धत्थगामस्स नगरस्स कुम्मगामस्स नगरस्स य अंतरा, एत्थ णं महं एगे तिलथंभए पत्तिए पुप्फिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ, पासित्ता ममं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं भंते! तिलथंभए किं निप्फज्जिस्सइ नो निप्फज्जिस्सइ? एए य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता कहिं गच्छिहिंति? कहिं गच्छिहिंति? कहिं उववज्जिहिंति? तए

Translated Sutra: तदनन्तर, हे गौतम ! किसी दिन प्रथम शरत्‌ – काल के समय, जब वृष्टि का अभाव था; मंखलिपुत्र गोशालक के साथ सिद्धार्थग्राम नामक नगर से कूर्मग्राम नामक नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थान कर चूका था। उस समय सिद्धार्थग्राम और कूर्मग्राम के बीच में तिल का एक बड़ा पौधा था। जो पत्र – पुष्प युक्त था, हराभरा होने की श्री से अतीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 641 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं जेणेव कुम्मग्गामे नगरे तेणेव उवागच्छामि। तए णं तस्स कुम्मग्गामस्स नगरस्स बहिया वेसियायणे नामं बालतवस्सी छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। आइच्चतेयतवियाओ य से छप्पदीओ सव्वओ समंता अभिनिस्सवंति, पान-भूय-जीव-सत्त-दयट्ठयाए च णं पडियाओ-पडियाओ तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चोरुभेइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सिं पासइ, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ,

Translated Sutra: तदनन्तर, हे गौतम ! मैं गोशालक के साथ कूर्मग्राम नगर में आया। उस समय कूर्मग्राम नगर के बाहर वैश्यायन नामक बालतपस्वी निरन्तर छठ – छठ तपःकर्म करने के साथ – साथ दोनों भुजाएं ऊंची रखकर सूर्य के सम्मुख खड़ा होकर आतापनभूमि में आतापना ले रहा था। सूर्य की गरमी से तपी हुई जूएं चारों ओर उसके सिर से नीचे गिरती थीं और वह तपस्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 642 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! अन्नदा कदायि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं कुम्मगामाओ नगराओ सिद्धत्थग्गामं नगरं संपट्ठिए विहाराए। जाहे य मो तं देसं हव्वमागया जत्थ णं से तिलथंभए। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! तदा ममं एवमाइक्खह जाव परूवेह–गोसाला! एस णं तिलथंभए निप्फज्जिस्सइ, नो न निप्फज्जिस्सइ। एते य सत्त तिलपु-प्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति, तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ–एस णं से तिलथंभए नो निप्फन्ने, अन्निप्फन्नमेव। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता नो एयस्स

Translated Sutra: हे गौतम ! इसके पश्चात्‌ किसी एक दिन मंखलिपुत्र गोशालक के साथ मैंने कूर्मग्रामनगर से सिद्धार्थग्राम – नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थान किया। जब हम उस स्थान के निकट आए, जहाँ वह तिल का पौधा था, तब गोशालक मंखलिपुत्र ने मुझसे कहा – ‘भगवन्‌ ! आपने मुझे उस समय कहा था, यावत्‌ प्ररूपणा की थी की हे गोशालक ! यह तिल का पौधा निष्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 643 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते एगाए सणहाए कुम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासएणं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते अंतो छण्हं मासाणं संखित्तविउलतेयलेसे जाए।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ मंखलिपुत्र गोशालक नखसहित एक मुट्ठी में आवें, इतने उड़द के बाकलों से तथा एक चुल्लूभर पानी से निरन्तर छठ – छठ के तपश्चरण के साथ दोनों बाहें ऊंची करके सूर्य के सम्मुख खड़ा रहकर आतापना – भूमि में यावत्‌ आतापना लेने लगा। ऐसा करते हुए गोशालक को छह मास के अन्त में, संक्षिप्त – विपुल – तेजोलेश्या प्राप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 644 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अन्नदा कदायि इमे छ दिसाचरा अंतियं पाउब्भवित्था, तं जहा–साणे, कलंदे, कण्णियारे, अच्छिदे, अग्गिवेसायणे, अज्जुणे, गोमायुपुत्ते। तए णं तं छ दिसाचरा अट्ठविहं पुव्वगयं मग्गदसमं सएहिं-सएहिं मतिदंसणेहिं निज्जूहंति, निज्जूहित्ता गोसालं मंखलिपुत्तं उवट्ठाइंसु। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं अट्ठंगस्स महानिमित्तस्स केणइ उल्लोयमेत्तेणं सव्वेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूयानं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं इमाइं छ अणइक्कमणिज्जाइं वागर-णाइं वागरेति, तं जहा– लाभं अलाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तेणं

Translated Sutra: इसके बाद मंखलिपुत्र गोशालक के पास किसी दिन ये छह दिशाचर प्रकट हुए। यथा – शोण इत्यादि सब कथन पूर्ववत्‌, यावत्‌ – जिन न होते हुए भी अपने आपको जिन शब्द से प्रकट करता हुआ विचरण करने लगा है। अतः हे गौतम ! वास्तव में मंखलिपुत्र गोशालक ‘जिन’ नहीं है, वह ‘जिन’ शब्द का प्रलाप करता हुआ यावत्‌ ‘जिन’ शब्द से स्वयं को प्रसिद्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 645 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं से आनंदे थेरे

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत्‌ – गौतमस्वामी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 646 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं पभू णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? विसए णं भंते! गोसा-लस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? समत्थे णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगा-हच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए? पभू णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। विसए णं आनंदा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए। समत्थे णं आनंदा! गोसाले मंखलिपुत्ते तवेणं तेएणं एगाहच्चं कूडाहच्चं भासरासिं करेत्तए, नो चेव णं अरहंते भगवंते, पारियावणियं पुण करेज्जा।

Translated Sutra: (आनन्द स्थविर – ) [प्र.] ‘भगवन्‌ ! क्या मंखलिपुत्र गोशालक अपने तप – तेज से एक ही प्रहार में कूटाघात के समान जलाकर भस्मराशि करने में समर्थ हैं ? भगवन्‌ ! मंखलिपुत्र गोशालक का यह यावत्‌ विषयमात्र है अथवा वह ऐसा करने में समर्थ भी हैं ?’ ‘हे आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशालक अपने तप – तेज से यावत्‌ भस्म करने में समर्थ हैं। हे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 647 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं गच्छ णं तुमं आनंदा! गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेहि–मा णं अज्जो! तुब्भं केई गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएउ, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेउ, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेउ, गोसाले णं मंखलिपुत्ते समणेहिं निग्गंथेहिं मिच्छं विप्पडिवन्ने। तए णं से आनंदे थेरे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमादी समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोयमादी समणे निग्गंथे आमंतेति, आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अज्जो! छट्ठक्खमणपारणगंसि समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे

Translated Sutra: (भगवन्‌ – ) ‘इसलिए हे आनन्द ! तू जा और गौतम आदि श्रमण – निर्ग्रन्थों को यह बात कही कि – हे आर्यो! मंखलिपुत्र गोशालक के साथ कोई भी धार्मिक चर्चा न करे, धर्मसम्बन्धी प्रतिसारणा न करावे तथा धर्मसम्बन्धी प्रत्युपचार पूर्वक कोई प्रत्युपचार (तिरस्कार) न करे। क्योंकि (अब) मंखलिपुत्र गोशालक ने श्रमण – निर्ग्रन्थों के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 648 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी। जे णं

Translated Sutra: जब आनन्द स्थविर, गौतम आदि श्रमणनिर्ग्रन्थों को भगवान का आदेश कह रहे थे, तभी मंखलिपुत्र गोशालक आजीवकसंघ से परिवृत्त होकर हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकलकर अत्यन्त रोष धारण किए शीघ्र एवं त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आया। फिर श्रमण भगवान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 649 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे गोसालं मंखलिपुत्तं एवं वयासी–गोसाला! से जहानामए तेणए सिया, गामेल्लएहिं परब्भमाणे-परब्भमाणे कत्थ य गड्डं वा दरिं वा दुग्गं वा निन्नं वा पव्वयं वा विसमं वा अणस्सादेमाणे एगेणं महं उण्णालोमेण वा सणलोमेण वा कप्पासपम्हेण वा तणसूएण वा अत्ताणं आवरेत्ताणं चिट्ठेज्जा, से णं अणावरिए आवरियमिति अप्पाणं मण्णइ, अप्पच्छण्णे य पच्छण्णमिति अप्पाणं मण्णइ, अणिलुक्के णिलुक्कमिति अप्पाणं मण्णइ, अपलाए पलायमिति अप्पाणं मण्णइ, एवामेव तुमं पि गोसाला! अनन्ने संते अन्नमिति अप्पाणं उपलभसि, तं मा एवं गोसाला! नारिहसि गोसाला! सच्चेव ते सा छाया नो अन्ना।

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कहा – गोशालक ! जैसे कोई चोर हो और वह ग्रामवासी लोगों के द्वारा पराभव पाता हुआ कहीं गड्ढा, गुफा, दुर्ग, निम्न स्थान, पहाड़ या विषम नहीं पा कर अपने आपको एक बड़े ऊन के रोम से, सण के रोम से, कपास के बने हुए रोम से, तिनकों के अग्रभाग से आवृत्त करके बैठ जाए, और नहीं ढँका हुआ भी स्वयं को ढँका हुआ माने, अप्रच्छन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 650 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिविकए मिसिमिसेमाणे समणं भगवं महावीरं उच्चावयाहिं आओसणाहिं आओसइ, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसेति, उच्चावयाहिं निब्भंछणाहिं निब्भंछेति, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडेति, निच्छोडेत्ता एवं वयासी– नट्ठे सि कदाइ, विणट्ठे सि कदाइ, भट्ठे सि कदाइ, नट्ठ-विनट्ठ-भट्ठे सि कदाइ, अज्ज न भवसि, नाहि ते ममाहिंतो सुहमत्थि।

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने जब मंखलिपुत्र गोशालक को इस प्रकार कहा तब वह तुरन्त अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा क्रोध से तिलमिला कर वह श्रमण भगवान महावीर की अनेक प्रकार के ऊटपटांग आक्रोशवचनों से भर्त्सना करने लगा, उद्‌घर्षणायुक्त वचनों से अपमान करने लगा, अनेक प्रकार की अनर्गल निर्भर्त्सना द्वारा भर्त्सना करने लगा, अनेक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 651 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वानुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए धम्मायरियाणुरागेणं एयमट्ठं असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसाले मंखलिपुत्ते एवं वयासी– जे वि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माणेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पूर्व देश में जन्मे हुए सर्वानुभूति नामक अनगार थे, जो प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत थे। वह अपने धर्माचार्य के प्रति अनुरागवश गोशालक के प्रलाप के प्रति अश्रद्धा करते हुए उठे और मंखलिपुत्र गोशालक के पास आकर कहने लगे – हे गोशालक ! जो मनुष्य तथारूप श्रमण या माहन से एक भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 652 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–अज्जो! से जहानामए तणरासी इ वा कट्ठरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगनिज्झामिए अगनिज्झूसिए अगनिपरिणामिए हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरित्ता हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, तं छंदेणं अज्जो! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, अट्ठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा राशि, तुष – राशि, भूसे की राशि, गोमय की राशि और अवकर राशि को अग्नि से थोड़ा – सा जल जाने पर, आग में झोंक देने पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 653 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्धसम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु अहं जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरिते अहण्णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए समणमारए समणपडिनीए आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहिं य अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता सएणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी, तब मंखलिपुत्र गोशालक को सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। उसके साथ ही उसे इस प्रकार का अध्यवसाय यावत्‌ मनोगत संकल्प समुत्पन्न हुआ – ‘मैं वास्तव में जिन नहीं हूँ, तथापि मैं जिन – प्रलापी यावत्‌ जिन शब्द से स्वयं को प्रकट करता हुआ विचरा हूँ। मैं मंखलिपुत्र गोशालक श्रमणों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 654 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराइं पिहेंति, पिहेत्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थिं नगरिं आलिहंति, आलिहित्ता गोसालस्स मंख-लिपुत्तस्स सरीरगं वामे पदे सुंबेणं बंधंति, बंधित्ता तिक्खुत्तो मुहे उट्ठुभंति, उट्ठुभित्ता सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर -चउम्मुह-महापह-पहेसु आकट्ट-विकट्टिं करेमाणा णीयं-णीयं सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिने जिनप्पलावी जाव विहरिए। एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे

Translated Sutra: तदनन्तर उन आजीविक स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशालक को कालधर्म – प्राप्त हुआ जानकर हालाहला कुम्भारिन की दुकान के द्वार बन्द कर दिए। फिर हालाहला कुम्भारिन की दुकान के ठीक बीचों बीच श्रावस्ती नगरी का चित्र बनाया। फिर मंखलिपुत्र गोशालक के बाएं पैर को मूंज की रस्सी से बाँधा। तीन बार उसके मुख में थूका। फिर उक्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 655 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपु-रत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं साणकोट्ठगस्स चेइयस्स अदूर-सामंते, एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था–किण्हे किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरि-ज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठति। तत्थ णं मेंढियगामे नगरे रेवती नामं गाहावइणी परिवसति–अड्ढा

Translated Sutra: तदनन्तर किसी दिन भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से नीकले और उससे बाहर अन्य जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल उस समय मेंढिकग्राम नगर था। उसके बाहर उत्तरपूर्व दिशा में शालकोष्ठक उद्यान था। यावत्‌ पृथ्वी – शिलापट्टक था, उस शालकोष्ठक उद्यान के निकट एक महान्‌ मालुकाकच्छ था वह श्याम, श्यामप्रभावाला,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 656 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं भंते! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ

Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – ‘भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी पूर्वदेश में उत्पन्न सर्वानुभूति नामक अनगार, जो कि प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था, और जिसे मंखलिपुत्र गोशालक ने अपने तप – तेज से भस्म कर दिया था, वह मरकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम! वह ऊपर चन्द्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 657 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते से णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं भंते! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊंचे चन्द्र और सूर्य का यावत्‌ उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन्‌ ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 658 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विमलवाहने णं भंते! राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! विमलवाहने णं राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ णं वि सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि – सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत्‌ उद्वर्त्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 659 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं

Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत्‌ काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 661 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–अत्थि णं भंते! अधिकरणिंसि वाउयाए वक्कमति? हंता अत्थि। से भंते! किं पुट्ठे उद्दाइ? अपुट्ठे उद्दाइ? गोयमा! पुट्ठे उद्दाइ, नो अपुट्ठे उद्दाइ। से भंते! किं ससरीरी निक्खमइ? असरीरी निक्खमइ? गोयमा! सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ? गोयमा! वाउयायस्स णं चत्तारि सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए, वेउव्विए, तेयए, कम्मए। ओरालिय-वेउव्वियाइं विप्प जहाय तेयय-कम्मएहिं निक्खमइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्ख

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन्‌! क्या अधिकरणीय पर (हथौड़ा मारते समय) वायुकाय उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन्‌ ! उस (वायुकाय) का स्पर्श होने पर वह मरता है या बिना स्पर्श हुए मर जाता है ? गौतम ! उसका दूसरे पदार्थ के साथ स्पर्श होने पर ही वह मरता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 662 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इंगालकारियाए णं भंते! अगनिकाए केवतियं कालं संचिट्ठइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाइं। अन्ने वि तत्थ वाउयाए वक्कमति, न विणा वाउयाएणं अगनिकाए उज्जलति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अंगारकारिकामें अग्निकाय कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीन रात – दिन तक, वहाँ अन्य वायुकायिक जीव भी उत्पन्न होते हैं; क्योंकि वायुकाय बिना अग्निकाय प्रज्वलित नहीं होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 663 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! अयं अयकोट्ठंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहमाणे वा पव्विहमाणे वा कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्ठंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहति वा पव्विहति वा, तावं च णं से पुरिसे काइ-याए जाव पाणाइवायकिरियाए–पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिं पि णं जीवाणं सरीरेहिंतो अए निव्वत्तिए, अयकोट्ठे निव्वत्तिए, संडासए निव्वत्तिए, इंगाला निव्वत्तिया, इंगालकड्ढणी निव्वत्तिया, भत्था निव्वत्तिया, ते वि णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए –पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। पुरिसे णं भंते! अयं अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिकरणिंसि उक्खिव्वमाणे वा निक्खिव्वमाणे वा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोहा तपाने की भट्ठी में तपे हुए लोहे का लोहे की संडासी से ऊंचा – नीचा करने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! जब तक वह पुरुष लोहा तपाने की भट्ठी में लोहे की संडासी से लोहे को ऊंचा या नीचा करता है, तब तक वह पुरुष कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी क्रिया तक पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है तथा जिन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 664 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं अधिकरणी? अधिकरणं? गोयमा! जीवे अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवे अधिकरणी वि, अधिकरणं पि? गोयमा! अविरतिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवे अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। नेरइए णं भंते! किं अधिकरणी? अधिकरणं? गोयमा! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। एवं जहेव जीवे तहेव नेरइए वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिए। जीवे णं भंते! किं साहिकरणी? निरहिकरणी? गोयमा! साहिकरणी, नो निरहिकरणी। से केणट्ठेणं–पुच्छा। गोयमा! अविरतिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं जाव नो निरहिकरणी। एवं जाव वेमाणिए। जीवे णं भंते! किं आयाहिकरणी? पराहिकरणी? तदुभयाहिकरणी? गोयमा! आयाहिकरणी वि,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? गौतम ! जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। भगवन्‌ ! किस कारण से यह कहा जाता है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा जीव अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। भगवन्‌ ! नैरयिक जीव अधिकरणी हैं या अधिकरण हैं ? गौतम ! वह अधिकरणी भी हैं और अधिकरण भी हैं। (सामान्य) के अनुसार नैरयिक के विषय में भी जानना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 665 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए, वेउव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए। कति णं भंते! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंच इंदिया पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदिए, चक्खिंदिए, घाणिंदिए, रसिंदिए, फासिंदिए। कतिविहे णं भंते! जोए पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे जोए पन्नत्ते, तं जहा–मनजोए, वइजोए, कायजोए। जीवे णं भंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी? अधिकरणं? गोयमा! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अधिकरणी वि, अधिकरणं पि? गोयमा! अविरतिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं जाव अधिकरणं पि। पुढविकाइएण णं भंते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी? अधिकरणं? एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा – औदारिक यावत्‌ कार्मण। भगवन्‌ इन्द्रियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! पाँच, यथा – श्रोत्रेन्द्रिय यावत्‌ स्पर्शेन्द्रिय। भगवन्‌ ! योग कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के, यथा – मनोयोग, वचनयोग और काययोग। भगवन्‌ ! औदारिकशरीर को बांधता हुआ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-२ जरा Hindi 666 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवाणं भंते! किं जरा? सोगे? गोयमा! जीवाणं जरा वि, सोगे वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवाणं जरा वि, सोगे वि? गोयमा! जे णं जीवा सारीरं वेदनं वेदेंति तेसि णं जीवाणं जरा, जे णं जीवा माणसं वेदनं वेदेंति तेसि णं जीवाणं सोगे। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवाणं जरा वि, सोगे वि। एवं नेरइयाण वि। एवं जाव थणियकुमाराणं। पुढविकाइयाणं भंते! किं जरा? सोगे? गोयमा! पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे? गोयमा! पुढविकाइया णं सारीरं वेदनं वेदेंति, नो माणसं वेदनं वेदेंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुढविकाइयाणं

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीवों के जरा और शोक होता है ? गौतम ! जीवों के जरा भी होती है और शोक भी होता है। भगवन्‌ ! किस कारण से जीवों को जरा भी होती है और शोक भी होता है ? गौतम ! जो जीव शारीरिक वेदना वेदते हैं, उन जीवों को जरा होती है और जो जीव मानसिक वेदना वेदते हैं, उनको शोक होता है इस कारण से हे गौतम ! ऐसा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-२ जरा Hindi 667 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे जाव दिव्वाइ भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति, एत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे। एवं जहा ईसाने तइयसए तहेव सक्के वि, नवरं–आभिओगे ण सद्दावेति, हरी पायत्ताणियाहिवई, सुघोसा घंटा, पालओ विमानकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए, सेसं तं चेव जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासति। धम्मकहा जाव परिसा पडिगया। तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं

Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत्‌ उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा – लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना। विशेषता यह है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-२ जरा Hindi 668 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सम्मावादी? मिच्छावादी? गोयमा! सम्मावादी, नो मिच्छावादी। सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सच्चं भासं भासति? मोसं भासं भासति? सच्चामोसं भासं भासति? असच्चामोसं भासं भासति? गोयमा! सच्चं पि भासं भासति जाव असच्चामोसं पि भासं भासति। सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सावज्जं भासं भासति? अणवज्जं भासं भासति? गोयमा! सावज्जं पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सक्के देविंदे देवराया सावज्जं पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति? गोयमा! जाहे णं सक्के देविंदे देवराया सुहुमकायं अणिज्जूहित्ता णं भासं भासति ताहे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र सम्यग्वादी है अथवा मिथ्यावादी है ? गौतम ! वह सम्यग्वादी है, मिथ्या – वादी नहीं है। भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है, मृषा बोलता है, सत्यामृषा भाषा बोलता है, अथवा असत्यामृषा भाषा बोलता है ? गौतम ! वह सत्य भाषा भी बोलता है, यावत्‌ असत्यामृषा भाषा भी बोलता है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-२ जरा Hindi 669 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! किं चेयकडा कम्मा कज्जंति? अचेयकडा कम्मा कज्जंति? गोयमा! जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति, नो अचेयकडा कम्मा कज्जंति? गोयमा! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थि अचेयकडा कम्मा समणाउसो! दुट्ठाणेसु, दुसेज्जासु, दुन्निसीहियासु तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थि अचेयकडा कम्मा समणाउसो! आयंके से वहाए होति, संकप्पे से वहाए होति, मरणंते से वहाए होति तहा तहा णं ते पोग्गला परिणमंति, नत्थिअचेयकडा कम्मा समणाउसो!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों के कर्म चेतनकृत होते हैं या अचेतनकृत होते हैं ? गौतम ! जीवों के कर्म चेतनकृत होते हैं, अचेतनकृत नहीं होते हैं। भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जीवों के आहार रूप से उपचित जो पुद्‌गल हैं, शरीररूप से जो संचित पुद्‌गल हैं और कलेवर रूप से जो उपचित पुद्‌गल हैं, वे तथा – तथा रूप से परिणत होते हैं, इसलिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-३ कर्म Hindi 670 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, एवं जाव वेमाणियाणं। जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ–एवं जहा पन्नवणाए वेदावेउद्देसओ सो चेव निरवसेसो भाणि-यव्वो। वेदाबंधो वि तहेव, बंधा-वेदो वि तहेव, बंधाबंधो वि तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं ति। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ।

Translated Sutra: राजगृह नगर में (गौतमस्वामी ने) यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ हैं, यथा – ज्ञानावरणीय यावत्‌ अन्तराय। इस प्रकार यावत्‌ वैमानिकों तक कहना चाहिए। भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म को वेदता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-३ कर्म Hindi 671 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वानुपुव्विं चर-माणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे एगजंबुए समोसढे जाव परिसा पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं

Translated Sutra: किसी समय एक दिन श्रमण भगवान महावीर राजगृहनगर के गुणशीलक नामक उद्यान से नीकले और बाहर के (अन्य) जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामका नगर था। (वर्णन) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर ईशानकोण में ‘एकजम्बुक’ उद्यान था। एक बार किसी दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत्‌ ‘एकजम्बूक’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-४ जावंतिय Hindi 672 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– जावतियं णं भंते! अन्नगिलायए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वासेण वा वासेहिं वा वाससएण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतियं णं भंते! चउत्थभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससएण वा वाससएहिं वा वाससहस्सेण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतियं णं भंते! छट्ठभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससहस्सेण वा वाससहस्सेहिं वा वाससयसहस्सेण वा खवयंति? नो इणट्ठे समट्ठे। जावतिय णं भंते! अट्ठमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरइया वाससयसहस्सेण

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! अन्नग्लायक श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक वर्ष में, अनेक वर्षों में अथवा सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन्‌ ! चतुर्थ भक्त करने वाले श्रमण – निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 673 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। एगजंबुए चेइए–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी–एवं जहेव बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू आगमित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए? हंता पभू। देवे णं भंते!

Translated Sutra: उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामक नगर था। वहाँ एकजम्बूक नामका उद्यान था। उसका वर्णन पूर्ववत्‌। उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ ने पर्युपासना की। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज वज्रपाणि शक्र इत्यादि सोलहवे शतक के द्वीतिय उद्देशक में कथित वर्णन के अनुसार दिव्य यान विमान से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 674 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अन्नदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सक्कारेति जाव पज्जुवासति, किण्णं भंते! अज्ज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता संभंतियवंदनएणं वंदइ नमंसइ जाव पडिगए? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए य। तए णं से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन्‌ ! अन्य दिनों में देवेन्द्र देवराज शक्र (आता है, तब) आप देवानुप्रिय को वन्दन – नमस्कार करता है, आपका सत्कार – सन्मान करता है, यावत्‌ आपकी पर्युपासना करता है; किन्तु भगवन्‌ ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र आप देवानुप्रिय से संक्षेप में आठ प्रश्नों
Showing 2201 to 2250 of 18391 Results