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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 467 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगिंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविधे संजमे कज्जति, तं जहा– पुढविकाइयसंजमे, आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे, वणस्सतिकाइयसंजमे। एगिंदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, तं जहा– पुढविकाइयअसंजमे, आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वनस्सतिकाइयअसंजमे।

Translated Sutra: एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाले को पाँच प्रकार का संयम होता है, यथा – पृथ्वीकायिक संयम – यावत्‌ वनस्पतिकायिक संयम। एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वाले को पाँच प्रकार का असंयम होता है, यथा – पृथ्वीकायिक असंयम – यावत्‌ – वनस्पतिकायिक असंयम।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 7 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे धम्मे।

Translated Sutra: धर्मास्तिकाय एक है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 8 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे अहम्मे।

Translated Sutra: अधर्मास्तिकाय एक है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 51 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगा नेरइयाणं वग्गणा। एगा असुरकुमाराणं वग्गणा। एगा नागकुमाराणं वग्गणा। एगा सुवण्णकुमाराणं वग्गणा। एगा विज्जुकुमाराणं वग्गणा। एगा अग्गिकुमाराणं वग्गणा। एगा दीवकुमाराणं वग्गणा। एगा उदहिकुमाराणं वग्गणा। एगा दिसाकुमाराणं वग्गणा। एगा वायुकुमाराणं वग्गणा। एगा थणियकुमाराणं वग्गणा। एगा पुढविकाइयाणं वग्गणा। एगा आउकाइयाणं वग्गणा। एगा तेउकाइयाणं वग्गणा। एगा वाउकाइयाणं वग्गणा। एगा वणस्सइकाइयाणं वग्गणा। एगा बेइंदियाणं वग्गणा। एगा तेइंदियाणं वग्गणा। एगा चउरिंदियाणं वग्गया। एगा पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं वग्गणा। एगा मनुस्साणं वग्गणा। एगा वाणमंतराणं वग्गणा। एगा

Translated Sutra: नारकीय के जीवों की वर्गणा एक है। असुरकुमारों की वर्गणा एक है, यावत्‌ – वैमानिक देवों की वर्गणा एक है भव्य जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य जीवों की वर्गणा एक है। भव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। अभव्य नरक जीवों की वर्गणा एक है। इस प्रकार – यावत्‌ – भव्य वैमानिक देवों की वर्गणा एक है। अभव्य वैमानिक देवों की वर्गणा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१

Hindi 54 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनुत्तरोववाइया णं देवा ‘एगं रयणिं’ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।

Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई एक हाथ की है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Hindi 58 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आगासे चेव, नोआगासे चेव। धम्मे चेव, अधम्मे चेव।

Translated Sutra: अजीव का द्वैविध्य इस प्रकार है – आकाशास्तिकाय और नो आकाशास्तिकाय, धर्मास्तिकाय और अध – र्मास्तिकाय।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 90 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे–दो चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। दो सूरिआ तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा। दो कित्तियाओ, दो रोहिणीओ, दो मग्गसिराओ, दो अद्दाओ, दो पुणव्वसू, दो पूसा, दो अस्सलेसाओ, दो महाओ, दो पुव्वाफग्गुणीओ, दो उत्तराफग्गुणीओ, दो हत्था, दो चित्ताओ, दो साईओ, दो विसाहाओ, दो अनुराहा ओ, दो जेट्ठाओ, दो मूला, दो पुव्वासाढाओ, दो उत्तरासाढाओ, दो अभिईओ, दो सवना, दो धणिट्ठाओ, दो सयभिसया, दो पुव्वाभद्दवयाओ, दो उत्तराभद्दवयाओ, दो रेवतीओ दो अस्सिणीओ, दो भरणीओ [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा?] ।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा प्रकाशित होते थे, होते हैं और होते रहेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपते रहेंगे। दो कृतिका, दो रोहिणी, दो मृगशिर, दो आर्द्रा इस प्रकार निम्न गाथाओं के अनुसार सब दो – दो जान लेने चाहिए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 91 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कत्तिया रोहिणी मगसिर, अद्दा य पुनव्वसू य पूसो य । तत्तो वि अस्सलेसा महा य दो फ़ग्गुणीओ य॥

Translated Sutra: दो कृतिका, दो रोहिणी, दो मृगशिर, दो आर्द्रा, दो पुनर्वसु, दो पुष्य, दो अश्लेषी, दो मघा, दो पूर्वाफाल्गुनी, दो उत्तराफाल्गुनी।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 94 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो अग्गी, दो पयावती, दो सोमा, दो रुद्दा, दो अदिती, दो बहस्सती, दो सप्पा, दो पिती, दो भगा, दो अज्जमा दो सविता, दो तट्ठा, दो वाऊ, दो इंदग्गी, दो मित्ता, दो इंदा, दो निरती, दो आऊ, दो विस्सा, दो बम्हा, दो विण्हू, दो वसू, दो वरुणा, दो अया, दो विविद्धी, दो पुस्सा, दो अस्सा, दो यमा। दो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सनिच्चरा, दो आहुणिया, दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कनकनगा, दो कनगविताणगा, दो कनगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कज्जोवगा, दो कब्बडगा, दो अयकरगा, दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवण्णा, दो संखवण्णाभा, दो कंसा, दो कंसवण्णा, दो कंसवण्णाभा, दो रुप्पी, दो रुप्पा भासा, दो निला, दो णीलोभासा,

Translated Sutra: अट्ठाईस नक्षत्रों के देवता – १ दो अग्नि, २. दो प्रजापति, ३. दो सोम, ४. दो रुद्र, ५. दो अदिति, ६. दो बृहस्पति, ७. दो सर्प, ८. दो पितृ, ९. दो भग, १०. दो अर्यमन्‌, ११. दो सविता, १२. दो त्वष्टा, १३. दो वायु, १४. दो इन्द्राग्नि, १५. दो मित्र, १६. दो इन्द्र, १७. दो निर्ऋति, १८. दो आप, १९. दो विश्व, २०. दो ब्रह्मा, २१. दो विष्णु, २२. दो वसु, २३. दो वरुण,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 96 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडे दीवे पच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा –भरहे चेव, एरवए चेव। एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, पियदंसणे चेव। धायइसंडे णं दीवे दो भरहाइं, दो एरवयाइं, दो हेमवयाइं, दो हेरण्णवयाइं, दो हरिवासाइं, दो रम्मगवासाइं, दो पुव्वविदेहाइं, दो अवरविदेहाइं, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमह-द्दुमा, दो उत्तरकुरुमहद्दुमवासी

Translated Sutra: पूर्वार्ध धातकीखंडवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं जो अति समान हैं – यावत्‌ उनके नाम – भरत और ऐरवत। पहले जम्बूद्वीप के अधिकार में कहा वैसे यहाँ भी कहना चाहिए यावत्‌ – दो क्षेत्र में मनुष्य छः प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं, उनके नाम – भरत और ऐरवत। विशेषता यह है कि वहाँ कूटशाल्मली
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 98 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो असुरकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–चमरे चेव, बली चेव। दो नागकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–धरणे चेव, भूयानंदे चेव। दो सुवण्णकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेणुदेवे चेव, वेणुदाली चेव। दो विज्जुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–हरिच्चेव, हरिस्सहे चेव। दो अग्गिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अग्गिसिहे चेव, अग्गिमाणवे चेव। दो दीवकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–पुण्णे चेव, विसिट्ठे चेव। दो उदहिकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–जलकंते चेव, जलप्पभे चेव। दो दिसाकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–अमियगती चेव, अमितवाहने चेव। दो वायुकुमारिंदा पन्नत्ता, तं जहा–वेलंबे चेव, पभंजणे चेव। दो थणियकुमारिंदा

Translated Sutra: असुरकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – चमर और बलि। नागकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – धरन और भूता – नन्द सुवर्णकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, वेणुदेव और वेणुदाली। विद्युतकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – हरि और हरिसह। अग्निकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा – अग्निशिख और अग्निमाणव। द्वीपकुमारेन्द्र दो कहे गए हैं, यथा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 133 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–पाणे अतिवातित्ता भवति, मुसं वइत्ता भवति, तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अनेसणिज्जेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवति–इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पगरेंति। तिहिं ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–नो पाणे अतिवातित्ता भवइ, नो मुसं वइत्ता भवइ, तहारूवं समणं वा माहणं वा ‘फासुएणं एसणिज्जेणं’ असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता भवइ–इच्चेतेहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति। तिहिं ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–पाणे अतिवातित्ता भवइ,

Translated Sutra: तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं, यथा – वह प्राणियों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, और तथारूप श्रमण – माहन को अप्रासुक अशन आहार, पान, खादिम तथा स्वादिम वहराता है, इन तीन कारणों से जीव अल्पायु रूप कर्म का बंध करते हैं। तीन कारणों से जीव दीर्घायु रूप कर्मों का बंध करते हैं, यथा – यदि वह प्राणियों
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 140 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं तओ लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। एवं जाव थणियकुमाराणं। एवं–पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सतिकाइयाणवि। तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं बेंदियाणं तेंदियाणं चउरिंदिआणवि तओ लेस्सा, जहा नेरइयाणं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं तओ लेसाओ असंकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। मनुस्साणं तओ लेसाओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। मनुस्साणं

Translated Sutra: नारक जीवों की तीन लेश्याएं कही गई हैं, यथा – कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या। असुरकुमारों की तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं, यथा – कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की लेश्या समझना चाहिए। इसी
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 142 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं लोगंधयारे सिया, तं जहा–अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंतपन्नत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे। तिहिं ठाणेहिं लोगुज्जोते सिया, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं नाणुप्पायमहिमासु। तिहिं ठाणेहिं देवंधकारे सिया, तं जहा–अरहंतेहिं वोच्छिज्जमाणेहिं, अरहंतपन्नत्ते धम्मे वोच्छिज्जमाणे, पुव्वगते वोच्छिज्जमाणे। तिहिं ठाणेहिं देवुज्जोते सिया, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं पव्वयमाणेहिं, अरहंताणं नाणुप्पायमहि-मासु। तिहिं ठाणेहिं देवसण्णिवाए सिया, तं जहा–अरहंतेहिं जायमाणेहिं, अरहंतेहिं

Translated Sutra: तीन कारणों से (तीन प्रसंगों पर) लोक में अन्धकार होता है, यथा – अर्हन्त भगवान के निर्वाण – प्राप्त होने पर अर्हन्त – प्ररूपित धर्म (तीर्थ) के विच्छिन्न होने पर, पूर्वगत श्रुत के विच्छिन्न होने पर। तीन कारणों से लोक में उद्योत होता है, यथा – अर्हन्त के जन्म धारण करते समय, अर्हन्त के प्रव्रज्या अंगीकार करते समय, अर्हन्त
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 149 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहा तणवणस्सइकाइया पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जजीविका, असंखेज्जजीविका, अनंतजीविका।

Translated Sutra: तृण (बादर) वनस्पतिकाय तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा – संख्यात जीव वाली, असंख्यात जीव वाली और अनन्त जीव वाली।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-२ Hindi 177 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहा तसा पन्नत्ता, तं जहा–तेउकाइया, वाउकाइया, उराला तसा पाणा। तिविहा थावरा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया।

Translated Sutra: त्रस जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा – तेजस्काय, वायुकाय और उदार (स्थूल) त्रस प्राणी। स्थावर तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा – पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 201 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे धम्मे पन्नत्ते, तं जहा–सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। तिविधे उवक्कमे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मिए उवक्कमे, अधम्मिए उवक्कमे, धम्मियाधम्मिए उवक्कमे। अहवा–तिविधे उवक्कमे पन्नत्ते, तं जहा–आओवक्कमे, परोवक्कमे, तदुभयोवक्कमे। तिविधे वेयावच्चे पन्नत्ते, तं जहा–आयवेयावच्चे, परवेयावच्चे, तदुभयवेयावच्चे। तिविधे अनुग्गहे पन्नत्ते, तं जहा–आयअनुग्गहे, परअनुग्गहे, तदुभयअनुग्गहे। तिविधा अनुसट्ठी पन्नत्ता, तं जहा–आयअनुसट्ठी, परअनुसट्ठी, तदुभयअनुसट्ठी। तिविधे उवालंभे पन्नत्ते, तं जहा–आओवालंभे, परोवालंभे, तदुभयोवालंभे।

Translated Sutra: धर्म तीन प्रकार का है, श्रुतधर्म, चारित्रधर्म और अस्तिकाय – धर्म। उपक्रम तीन प्रकार का कहा गया है, यथा – धार्मिक उपक्रम, अधार्मिक उपक्रम और मिश्र उपक्रम। अथवा तीन प्रकार का उपक्रम कहा गया है, यथा – आत्मोपक्रम, परोपक्रम और तदुभयोपक्रम। इसी तरह वैयावृत्य, अनुग्रह, अनुशासन और उपालम्भ। प्रत्येक के तीन – तीन आलापक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 215 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे पायच्छित्ते पन्नत्ते, तं जहा–नाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरित्तपायच्छित्ते। तओ अणुग्घातिमा पन्नत्ता, तं जहा–हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राईभोयणं भुंजमाने। तओ पारंचिता पन्नत्ता, तं जहा–दुट्ठे पारंचिते, पमत्ते पारंचिते, अन्नमन्नं करेमाणे पारंचिते। तओ अणवट्ठप्पा पन्नत्ता, तं जहा–साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अन्नधम्मियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थातालं दलयमाणे।

Translated Sutra: प्रायश्चित्त तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा – ज्ञानप्रायश्चित्त, दर्शनप्रायश्चित्त और चारित्र – प्रायश्चित्त। तीन को अनुद्‌घातिक ‘गुरु’ प्रायश्चित्त कहा गया है, यथा – हस्तकर्म करने वाले को, मैथुन सेवन करने वाले को, रात्रिभोजन करने वाले को। तीन को पारांचिक प्रायश्चित्त कहा गया है, यथा – कषाय और विषय से अत्यन्त
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 216 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ नो कप्पंति पव्वावेत्तए, तं जहा– पंडए, वातिए, कीवे। तओ नो कप्पंति– मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावेत्तए, संभुंजित्तए, संवासित्तए, तं जहा– पंडए, वातिए, कीवे।

Translated Sutra: तीन को प्रव्रजित करना नहीं कल्पता है, यथा – पण्डक को, वातिक को, क्लीब – असमर्थ को। इसी तरह ‘उक्त तीन को’ मुण्डित करना, शिक्षा देना, महाव्रतों का आरोपण करना, एक साथ बैठकर भोजन करना तथा साथ में रखना नहीं कल्पता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 224 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं समये निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– १. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा सुयं अहिज्जिस्सामि? २. कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अनवकंखमाने विहरिस्सामि? एवं समनसा सवयसा सकायसा पागडेमाने समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति। तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– १. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि? २. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारितं पव्वइस्सामि? ३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झुसिते

Translated Sutra: तीन कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा वाला और महापर्यवसान वाला होता है, यथा – कब मैं अल्प या अधिक श्रुत का अध्ययन करूँगा, कब मैं एकलविहार प्रतिमा को अंगीकार करके विचरूँगा, कब मैं अन्तिम मारणान्तिक संलेखना से भूषित होकर आहार पानी का त्याग करके पादपोपगमन संथारा अंगीकार करके मृत्यु की ईच्छा नहीं करता हुआ
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 258 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहा तणवणस्सतिकाइया पन्नत्ता, तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया।

Translated Sutra: तृण वनस्पतिकायिक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा – अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज और स्कंधबीज।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 266 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अत्थिकाया अजीवकाया पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए चत्तारि अत्थिकाया अरूविकाया पन्नत्ता, तं जहा–धम्मित्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए

Translated Sutra: चार अजीव अस्तिकाय कहे हैं, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्‌गलास्तिकाय। चार अरूपी अस्तिकाय कहे गए हैं, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 278 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे काले पन्नत्ते, तं जहा–पमाणकाले, अहाउयनिव्वत्तिकाले, मरणकाले, अद्धाकाले।

Translated Sutra: चार प्रकार का काल कहा गया है, यथा – प्रमाणकाल, यथायुर्निवृत्तिकाल, मरणकाल, अद्धाकाल।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 287 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। एवं–जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स। बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मित्तगा सुभद्दा, विज्जुता, असनी। एवं–जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स। धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा –असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा। एवं जाव संखवालस्स। भूतानंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ,

Translated Sutra: असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के सोम महाराजा (लोकपाल) की चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा – कनका, कनकलता, चित्रगुप्त और वसुंधरा। इसी तरह – यम, वरुण और वैश्रमण के भी इसी नाम की चार – चार अग्रमहिषियाँ हैं। वेरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सोम लोकपाल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा – मित्रता, सुभद्रा, विद्युता और अशनी।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 290 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउविहा ओगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वोगाहणा, खेत्तोगाहणा, कालोगाहणा, भावोगाहणा।

Translated Sutra: अवगाहना (शरीर का प्रमाण) चार प्रकार की हैं, यह इस प्रकार की हैं – द्रव्यावगाहना – अनंतद्रव्ययुता, क्षेत्रावगाहना – असंख्यप्रदेशागाढ़ा, कालावगाहना – असंख्यसमय – स्थितिका, भावावगाहना – वर्णादिअनंतगुणयुता।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 306 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–तहे नाममेगे, णोतहे नाममेगे, सोवत्थी नाममेगे, पधाणे नाममेगे। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आयंतकरे नाममेगे नो परंतकरे, परंतकरे नाममेगे नो आयंतकरे, एगे आयंतकरेवि परंतकरेवि, एगे नो आयंतकरे नो परंतकरे। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आयंतमे नाममेगे नो परंतमे, परंतमे नाममेगे नो आयंतमे, एगे आयंतमेवि परंतमेवि, एगे नो आयंतमे नो परंतमे। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आयंदमे नाममेगे नो परंदमे, परंदमे नाममेगे नो आयंदमे, एगे आयंदमेवि परंदमेवि, एगे नो आयंदमे नो परंदमे।

Translated Sutra: पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। वह इस प्रकार है – तथापुरुष – जो सेवक, स्वामी की आज्ञानुसार कार्य करे। नो तथापुरुष – जो सेवक स्वामी की आज्ञानुसार कार्य न करे। सौवस्थिक पुरुष – जो स्वस्तिक पाठ करे और प्रधान पुरुष – जो सबका आदरणीय हो। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। आत्मांतकर – एक पुरुष अपने भव का अंत करता है दूसरे के
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 324 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं तिन्नि-तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पन्नत्ता, तं जहा–एगरुयदीवे, आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, णंगोलियदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मनुस्सा परिवसंति, तं जहा–एगूरुया, आभासिया, वेसाणिया, णंगोलिया। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पन्नत्ता, तं जहा–हयकण्णदीवे, गयकण्णदीवे, गोकण्णदीवे, सक्कुलिकण्णदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विधा मनुस्सा परिवसंति, तं०–हयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा। तेसि

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में और चुल्ल (लघु) हिमवंत वर्षधर पर्वत के चार विदिशाओं में लवण समुद्र तीन सौ तीन सौ योजन जाने पर चार – चार अन्तरद्वीप हैं। यथा – एकोरुक द्वीप, आभाषिक द्वीप, वेषाणिक द्वीप और लांगोलिक द्वीप। उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं। यथा – एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक और लाँगुलिक। उन
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 325 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसिं लवणसमुद्दं पंचानउइं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालता महालंजरसंठाणसंठिता चत्तारि महापायाला पन्नत्ता, तं जहा–वलयामुहे, केउए, जूवए, ईसरे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमुद्दं बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे, उदओभासे, संखे, दगसीमे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया

Translated Sutra: जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) चार दिशाओं में लवण समुद्र में ९५००० योजन जाने पर महा – घटाकार चार महापातालकलश हैं। यथा – वलयामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर। इन चार महापाताल कलशों में पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। यथा – काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन। जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि)
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 348 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अवायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–अविनीए, विगइपडिबद्धे, अविओसवितपाहुडे, माई। [सूत्र] चत्तारि वायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–विणीते, अविगतिपडिबद्धे, विओसवितपाहुडे, अमाई।

Translated Sutra: चार प्रकार के व्यक्ति आगम वाचना के अयोग्य होते हैं। यथा – अविनयी, दूध आदि पौष्टिक आहारों का अधिक सेवन करने वाला, अनुपशांत अर्थात्‌ अति क्रोधी मायावी। चार प्रकार के आगम वाचना के योग्य होते हैं। यथा – विनयी, दूध आदि पौष्टिक आहारों का अधिक सेवन न करने वाला, उपशान्त – क्षमाशील, कपट रहित।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 351 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उड्ढलोगे णं चत्तारि विसरीरा पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा। अहोलोगे णं चत्तारि विसरीरा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा तिरियलोगे णं चत्तारि विसरीरा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, वणस्सइकाइया, उराला तसा पाणा।

Translated Sutra: ऊर्ध्वलोक में दो देह धारण करने के पश्चात्‌ मोक्ष में जाने वाले जीव चार प्रकार के हैं। यथा – पृथ्वीकायिक जीव, अप्कायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीव, स्थूल त्रसकायिक जीव, अधोलोक और तिर्यग्लोक सम्बन्धी सूत्र इसी प्रकार कहें।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 355 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं अत्थिकाएहिं लोगे फुडे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थिकाएणं, जीवत्थिकाएणं, पुग्गलत्थिकाएणं। चउहिं बादरकाएहिं उववज्जमाणेहिं लोगे फुडे पन्नत्ते, तं जहा–पुढविकाइएहिं, आउकाइएहिं, वाउकाइएहिं, वणस्सइकाइएहिं।

Translated Sutra: लोक में व्याप्त अस्तिकाय चार हैं। – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्‌गलास्तिकाय। उत्पद्यमान चार बादरकाय लोक में व्याप्त हैं। यथा – पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 356 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पएसग्गेणं तुल्ला पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे, एगजीवे।

Translated Sutra: समान प्रदेश वाले द्रव्य चार हैं। यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीव।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 357 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउण्हमेगं सरीरं नो सुपस्सं भवइ, तं जहा– पुढविकाइयाणं, आउकाइयाणं, तेउकाइयाणं, वणस्सइ-काइयाणं।

Translated Sutra: चार प्रकार के जीवों का एक शरीर आँखों से नहीं देखा जा सकता। यथा – पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय और वनस्पतिकाय।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 370 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि करंडगा पन्नत्ता, तं जहा–सोवागकरंडए, वेसियाकरंडए, गाहावतिकरंडए, रायकरंडए। एवामेव चत्तारि आयरिया पन्नत्ता, तं जहा– सोवागकरंडगसमाने, वेसियाकरंडगसमाने, गाहावति-करंडगसमाने, रायकरंडगसमाने।

Translated Sutra: करंडक चार प्रकार के हैं। श्वपाक का करंडक, वेश्याओं का करंडक, समृद्ध गृहस्थ का करंडक, राजा का करंडक। इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं। श्वपाक करंडक समान आचार्य केवल लोकरंजक ग्रन्थों का ज्ञाता होता है किन्तु श्रमणाचार का पालक नहीं होता। वेश्याकरंड समान आचार्य जिनागमों का सामान्य ज्ञाता होता है किन्तु
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 381 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे अवद्धंसे पन्नत्ते, तं जहा– आसुरे, आभिओगे, संमोहे, देवकिब्बिसे। चउहिं ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–कोवसीलताए, पाहुडसीलताए, संसत्त-तवोकम्मेणं निमित्ताजीवयाए। चउहिं ठाणेहिं जीवा आभिओगत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–अत्तुक्कोसेणं, परपरिवाएणं, भूतिकम्मेणं, कोउयकरणेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा सम्मोहत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–उम्मग्गदेसणाए, मग्गंतराएणं, कामा-संसपओगेणं, भिज्जानियाणकरणेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा देवकिब्बिसियत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा–अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंत पन्नत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणमवण्णं वदमाणे,

Translated Sutra: अपध्वंश (चारित्र के फल का नाश) चार प्रकार का है। यथा – आसुरी भावनाजन्य – आसुर भाव, अभियोग भावनाजन्य – अभियोग भाव, सम्मोह भावनाजन्य – सम्मोह भाव, किल्बिष भावनाजन्य – किल्बिष भाव। असुरायु का बंध चार कारणों से होता है। यथा – क्रोधी स्वभाव से, अतिकलह करने से, आहार में आसक्ति रखते हुए तप करने से, निमित्त ज्ञान द्वारा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 387 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि कुंभा पन्नत्ता, तं जहा– पुण्णे नाममेगे पुण्णे, पुण्णे नाममेगे तुच्छे, तुच्छे नाममेगे पुण्णे, तुच्छे नाममेगे तुच्छे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा– पुण्णे नाममेगे पुण्णे, पुण्णे नाममेगे तुच्छे, तुच्छे नाममेगे पुण्णे, तुच्छे नाममेगे तुच्छे। चत्तारि कुंभा पन्नत्ता, तं जहा– पुण्णे नाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे नाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे नाममेगे पुण्णोभासी, तुच्छे नाममेगे तुच्छोभासी। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–पुण्णे नाममेगे पुण्णोभासी, पुण्णे नाममेगे तुच्छोभासी, तुच्छे नाममेगे पुण्णो भासी, तुच्छे नाममेगे तुच्छोभासी। चत्तारि

Translated Sutra: कुम्भ चार प्रकार के हैं। यथा – एक कुम्भ पूर्ण (टूटा – पूटा) नहीं है और पूर्ण (मधु से भरा हुआ) है। एक कुम्भ पूर्ण है, किन्तु खाली है। एक कुम्भ पूर्ण (मधु से भरा हुआ) है किन्तु अपूर्ण (टूटा – फूटा) है। एक कुम्भ अपूर्ण (टूटा – फूटा) है और अपूर्ण (खाली है)। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं। एक पुरुष जात्यादि गुण से पूर्ण
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 393 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा–सुभे नाममेगे सुभे, सुभे नाममेगे असुभे, असुभे नाममेगे सुभे, असुभे नाममेगे असुभे। चउव्विहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा– सुभे नाममेगे सुभविवागे, सुभे नाममेगे असुभविवागे, असुभे नाममेगे सुभविवागे, असुभे नाममेगे असुभविवागे। चउव्विहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा– पगडीकम्मे, ठितीकम्मे, अनुभावकम्मे, पदेसकम्मे।

Translated Sutra: कर्म चार प्रकार के हैं। यथा – एक कर्म प्रकृति शुभ है और उसका हेतु भी शुभ है। एक कर्म प्रकृति शुभ है किन्तु उसका हेतु अशुभ है। एक कर्म प्रकृति अशुभ है किन्तु उसका हेतु शुभ है। एक कर्म प्रकृति अशुभ है और उसका हेतु भी अशुभ है। कर्म चार प्रकार के हैं। यथा – एक कर्म प्रकृति का बंध शुभ रूप में हुआ और उसका उदय भी शुभ
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 414 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं चत्तारि समुग्घाता पन्नत्ता, तं जहा– वेयणासमुग्घाते, कसायसमुग्घाते, मारणंतियसमुग्घाते, वेउव्वियसमुग्घाते। एवं–वाउक्काइयाणवि।

Translated Sutra: नैरयिक जीवों के चार समुद्‌घात हैं। यथा – वेदना समुद्‌घात, कषाय समुद्‌घात, मारणान्तिक समुद्‌घात और वैक्रिय समुद्‌घात। वायुकायिक जीवों के भी ये चार समुद्‌घात हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 427 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच थावरकाया पन्नत्ता, तं जहा– इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मती थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए। पंच थावरकायाधिपती पन्नत्ता, तं जहा– इंदे थावरकायाधिपती, बंभे थावरकायाधिपती, सिप्पे थावरकायाधिपती सम्मती थावरकायाधिपती, पायावच्चे थावरकायाधिपती।

Translated Sutra: पाँच स्थावरकाय कहे गए हैं। यथा – इन्द्र स्थावरकाय (पृथ्वीकाय), ब्रह्म स्थावरकाय (अप्काय), शिल्प स्थावरकाय (तेजस्काय), संमति स्थावरकाय (वायुकाय), प्राजापत्य स्थावरकाय (वनस्पतिकाय)। पाँच स्थावर कायों के ये पाँच अधिपति हैं। यथा – पृथ्वीकाय का अधिपति (इन्द्र), अप्काय का अधिपति (ब्रह्म), तेजस्काय का अधिपति (शिल्प),
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 430 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा– दुआइक्खं, दुव्विभज्जं, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं। पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा–सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरनुचरं। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चमब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे। पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं

Translated Sutra: पाँच कारणों से प्रथम और अन्तिम जिन का उपदेश उनके शिष्यों को उन्हें समझने में कठिनाई होती है। दुराख्येय – आयास साध्य व्याख्या युक्त। दुर्विभजन – विभाग करने में कष्ट होता है। दुर्दर्श – कठिनाई से समझ में आता है। दुःसह – परीषह सहन करने में कठिनाई होती है। दुरनुचर – जिनाज्ञानुसार आचरण करने में कठिनाई होती है। पाँच
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 433 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच वुग्गहट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा– १. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा नो सम्मं पउंजित्ता भवति। २. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आधारातिणियाए कितिकम्मं नो सम्मं पउंजित्ता भवति। ३. आयरियउवज्झाए णं गणंसि जे सुत्तपज्जवजाते धारेति ते काले-काले नो सम्ममणुप्पवाइत्ता भवति। ४. आयरियउवज्झाए णं गणंसि गिलाणसेहवेयावच्चं नो सम्ममब्भुट्ठित्ता भवति। ५. आयरियउवज्झाए णं गणंसि अणापुच्छियचारी यावि हवइ, नो आपुच्छियचारी। आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंचावुग्गहट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा– १. आयरियउवज्झाए णं गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवति। २. आयरियउवज्झाए

Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय के गण में विग्रह (कलह) के पाँच कारण हैं। यथा – आचार्य या उपाध्याय गण में रहने वाले श्रमणों को आज्ञा या निषेध सम्यक्‌ प्रकार से न करे। गण में रहने वाले श्रमण दीक्षा पर्याय के क्रम से सम्यक्‌ प्रकार से वंदना न करे। गण में काल क्रम से जिसको जिस आगम की वाचना देनी है उसे उस आगम की वाचना न दे। आचार्य
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 434 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच निसिज्जाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उक्कुडुया, गोदोहिया, समपायपुता, पलियंका, अद्धपलियंका। पंच अज्जवट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–साधुअज्जवं, साधुमद्दवं, साधुलाघवं, साधुखंति, साधुमुत्ती।

Translated Sutra: पाँच निषद्याएं (बैठने के ढंग) कही गई हैं। यथा – उत्कुटिका – उकडु बैठना। गोदोहिका – गाय दुहे उस आसन से बैठना। समपादपुता – पैर और पुत से पृथ्वी का स्पर्श करके बैठना। पर्यका – पलथी मारकर बैठना। अर्धपर्यका – अर्ध पद्मासन से बैठना। पाँच आर्जव (संवर) के हेतु कहे हैं। यथा – शुभ आर्जव, शुभ मार्दव, शुभ लाघव, शुभ क्षमा,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 447 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रेवतिति अनंतजिनो पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी । कुंथुस्स कत्तियाओ अरस्स तह रेवतीतो य ॥

Translated Sutra: अनन्त अर्हन्त के पाँच कल्याणक रेवति नक्षत्र में हुए। धर्मनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक पुष्य नक्षत्र में हुए शांतिनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक भरणी नक्षत्र में हुए। कुन्थुनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए। अरनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक रेवति नक्षत्र में हुए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 452 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच अनुग्घातिया पन्नत्ता, तं जहा– हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवेमाणे, रातीभोयणं भुंजेमाणे, सागारियपिंडं भुंजेमाणे, रायपिंडं भुंजेमाणे।

Translated Sutra: पाँच अनुद्‌घातिक (महा प्रायश्चित्त देने योग्य) कहे गए हैं, यथा – हस्त कर्म करने वाले को, मैथुन सेवन करने वाले को, रात्रि भोजन करने वाले को, सागारिक के घर से लाया हुआ आहार खाने वाले को। राजपिंड़ खाने वाले को।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 454 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा, तं जहा– १. इत्थी दुव्वियडा दुन्निसण्णा सुक्कपोग्गले अधिट्ठिज्जा। २. सुक्कपोग्गलसंसिट्ठे व से वत्थे अंतो जोणीए अनुपवेसेज्जा। ३. सइं वा से सुक्कपोग्गले अनुपवेसेज्जा। ४. परो व से सुक्कपोग्गले अनुपवेसेज्जा। ५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए सुक्कपोग्गला अनुपवेसेज्जा– इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा। पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणीवि गब्भं नो धरेज्जा, तं जहा–१. अप्पत्त-जोव्वणा। २. अतिकंतजोव्वणा। ३. जातिवंज्झा। ४. गेलण्णपुट्ठा। ५. दोमणंसिया इच्चेतेहिं

Translated Sutra: पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास न करने पर भी गर्भ धारण कर लेती है, यथा – जिस स्त्री की योनि अनावृत्त हो और वह जहाँ पर पुरुष का वीर्य स्खलित हुआ है ऐसे स्थान पर इस प्रकार बैठे की जिससे शुक्राणु योनि में प्रविष्ट हो जाए तो – शुक्र लगा हुआ वस्त्र योनि में प्रवेश करे तो – जानबूझकर स्वयं शुक्र को योनि में प्रविष्ट
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 469 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहा तणवणस्सतिकाइया पन्नत्ता, तं जहा–अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा।

Translated Sutra: तृण वनस्पति कायिक जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा – अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 471 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहे आयारकप्पे पन्नत्ते, तं जहा–मासिए उग्घातिए, मासिए अनुग्घातिए, चउमासिए उग्घातिए, चउमासिए अनुग्घातिए, आरोवणा। आरोवणा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पट्ठविया, ठविया, कसिणा, अकसिणा, हाडहडा।

Translated Sutra: आचार प्रकल्प पाँच प्रकार का है, यथा – मासिक उद्‌घातिक – लघुमास, मासिक अनुद्‌घातिक – गुरुमास, चातुर्मासिक उद्‌घातिक – लघु चौमासी, चातुर्मासिक अनुद्‌घातिक – गुरु चौमासी, आरोपणा – प्रायश्चित्त में वृद्धि करना। आरोपणा पाँच प्रकार की है, यथा – प्रस्थापिता – आरोपणा करने के गुरुमास आदि प्रायश्चित्त रूप तपश्चर्या
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 477 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं आयरिय-उवज्झायस्स गणावक्कमने पन्नत्ते, तं जहा– १. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा नो सम्मं पउंजित्ता भवति। २. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आधारायणियाए कितिकम्मं वेणइयं नो सम्मं पउंजित्ता भवति। ३. आयरिय-उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते काले-काले नो सम्ममनुपवादेत्ता भवति। ४. आयरिय-उवज्झाए गणंसि सगणियाए वा परगणियाए वा निग्गंथीए बहिल्लेसे भवति। ५. मित्ते नातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवग्गहट्ठयाए गणावक्कमने पन्नत्ते।

Translated Sutra: पाँच कारणों से आचार्य और उपाध्याय गण छोड़कर चले जाते हैं। गण में आचार्य और उपाध्याय की आज्ञा या निषेध का सम्यक्‌ प्रकार से पालन न होता हो। गण में वय और ज्ञान ज्येष्ठ का वन्दनादि व्यवहार सम्यक्‌ प्रकार से पालन करवा न सके तो। गण में श्रुत की वाचना यथोचित रीति से न दे सके तो। स्वगण की या परगण की निर्ग्रन्थी में
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 479 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच अत्थिकाया पन्नत्ता, तं जहा– धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए धम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगं दव्वं। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ न कयाइ नासी, न कयाइ न भवति, न कयाइ न भविस्सइत्ति– भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे निइए सासते अक्खए अव्वए अवट्ठिते निच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ गमणगुणे। अधम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविधे पन्नत्ते,

Translated Sutra: पाँच अस्तिकाय हैं, यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्‌गलास्ति – काय धर्मास्तिकाय अवर्ण, अगंध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित लोकद्रव्य है। वह पाँच प्रकार का है, यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और गुण से। द्रव्य से – धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है, क्षेत्र से –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 488 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणति न पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं। एयाणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं।

Translated Sutra: इन पाँच स्थानों को छद्मस्थ पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है। यथा – धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति – काय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित जीव, परमाणुपुद्‌गल। किन्तु इन्हीं पाँचों स्थानों को केवलज्ञानी पूर्णरूप से जानते हैं और देखते हैं, यथा – धर्मास्तिकाय यावत्‌ परमाणु पुद्‌गल।
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