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Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 190 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे भव-सय-साहस्सिए। सज्झाय-ज्झाण-जोगेणं घोर-तव-संजमेण य॥

Translated Sutra:
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 193 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं सामग्गिं लभित्ताणं जे पमाय-वसंगए। ते मुसिए सव्व-भावेणं कल्लाणाणं भवे भवे॥

Translated Sutra: उस प्रकार फिर से भी शल्योद्धार करने की सामग्री किसी भी तरह पाकर, जो कोई प्रमाद के वश में होता है वो भवोभव के कल्याण प्राप्ति के सर्व साधन हर तरह से हार जाता है। प्रमादरूपी चोर कल्याण की समृद्धि लूँट लेता है। हे गौतम ! ऐसी भी कुछ जीव होते हैं कि जो प्रमाद के आधीन होकर घोर तप का सेवन करने के बावजूद भी सर्व तरह से अपना
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 197 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयम भाव-दोसेणं आया वंचिज्जई परं। जेणं चउ-गइ-संसारे हिंडइ सोक्खेहिं वंचिओ॥

Translated Sutra: हे गौतम ! चार गति समान संसार में मृगजल समान संसार के सुख से ठगित, भाव दोष समान शल्य से धोखा खाता है और संसार में चारों गति में घूमता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 226 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निम्मूलुद्धिय-सल्लेणं सव्व-भावेण गोयमा झाणे पविसित्तु सम्मेयं पच्चक्खं पासियव्वयं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! सर्व भाव सहित निर्मूल शल्योद्धार कर के सम्यग्‌ तरह से यह प्रत्यक्ष सोचो कि इस जगत में जो संज्ञी हो, असंज्ञी हो, भव्य हो या अभव्य हो लेकिन सुख के अर्थी किसी भी आत्मा तिरछी, उर्ध्व अधो, यहाँ वहाँ ऐसे दश दिशा में अटन करते हैं। सूत्र – २२६, २२७
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 446 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयमा सहियएणं एवं वीमंसिउं दढं। विभावय जइ बंधेज्जा गिहि नो उ अबोहिलाभियं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! काफी दृढ़ सोचकर यह कहा है कि यति अबोधिलाभ का कर्म बाँधे और गृहस्थ अबोधिलाभ न बाँधे। और फिर संयत मुनि इन तीन आशय से अबोधिलाभ कर्म बाँधते हैं। १. आज्ञा का उल्लंघन, २. व्रत का भंग और ३. उन्मार्ग प्रवर्तन। सूत्र – ४४६, ४४७
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 450 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं मंदसद्धेहिं पायच्छित्तं न कीरई। अह काहिंति किलिट्ठ-मने तो अनुकंपं विरुज्झए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जो मंद श्रद्धावाला हो, वो प्रायश्चित्त न करे, या करे तो भी क्लिष्ट मनवाला होकर करता है। तो उनकी अनुकंपा करना विरुद्ध न माना जाए ?
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 605 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा गोयमा णं पव्वज्जा दिवसप्पभिईए जहुत्त-विहिणो वहाणेणं जे केई साहू वा साहुणी वा अपुव्व-नाण-गहणं न कुज्जा, तस्सासइं चिराहीयं सुत्तत्थोभयं सरमाणे एगग्ग-चित्ते पढम-चरम-पोरिसीसु दिया राओ य नाणु गुणेज्जा, से णं गोयमा नाण-कुसीले नेए। से भयवं जस्स अइगरुय-णाणावरणोदएणं अहन्निसं पहोसेमाणस्स संवच्छरेणा वि सिलोग-बद्धमवि नो थिरपरि-चियं भवेज्जा से किं कुज्जा गोयमा तेणा वि जावज्जीवाभिग्गहेणं सज्झाय-सीलाणं वेयावच्चं, तहा अनुदिनं अड्ढाइज्जे सहस्से [२५००] पंच मंगलाणं सुत्तत्थोभए सरमाणेगग्ग-मानसे पहोसेज्जा। (१) से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा जे भिक्खू जावज्जीवाभिग्गहेणं

Translated Sutra: हे भगवंत ! जिस किसी को अति महान ज्ञानावरणीय कर्म का उदय हुआ हो, रात – दिन रटने के बाद भी एक साल के बाद केवल अर्धश्लोक ही स्थिर परीचित हो, वो क्या करे ? वैसे आत्मा को जावज्जीव तक अभिग्रह ग्रहण करना या स्वाध्याय करनेवाले का वेयावच्च और प्रतिदिन ढ़ाई हजार प्रमाण पंचमंगल के सूत्र, अर्थ और तदुभय का स्मरण करते हुए एकाग्र
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 607 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केण अट्ठेणं एवं वुच्चइ, जहा णं चाउक्कालियं सज्झायं कायव्वं गोयमा

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि चार काल में स्वाध्याय करना चाहिए ? हे गौतम ! मन, वचन और काया से गुप्त होनेवाली आत्मा हर वक्त ज्ञानावरणीय कर्म खपाती है। स्वाध्याय ध्यान में रहता हो वो हर पल वैराग्य पानेवाला बनता है। स्वाध्याय करनेवाले को उर्ध्वलोक, अधोलोक, ज्योतिष लोक, वैमानिक लोक, सिद्धि, सर्वलोक और अलोक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 611 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एग-दु-ति-मास-खमणं संवच्छरमवि य अनसिओ होज्जा। सज्झाय-झाण-रहिओ एगोवासप्फलं पि न लभेज्जा॥

Translated Sutra: एक, दो, तीन मासक्षमण करे, अरे ! संवत्सर तक खाए बिना रहे या लगातार उपवास करे लेकिन स्वाध्याय – ध्यान रहित हो वो एक उपवास का भी फल नहीं पाता। उद्‌गम उत्पादन एषणा से शुद्ध ऐसे आहार को हंमेशा करनेवाला यदि मन, वचन, काया के तीन योग में एकाग्र उपयोग रखनेवाला हो और हर वक्त स्वाध्याय करता हो तो उस एकाग्र मानसवाले को साल तक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 735 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जा कप्पं पाण-च्चाए वि रोरव-दुब्भिक्खे। ण य परिभुज्जइ सहसा गोयम गच्छं तयं भणियं॥

Translated Sutra: चाहे कैसा भी भयानक अकाल हो, प्राण परित्याग करना पड़े वैसा अवसर प्राप्त हो तो भी सहसात्कारे हे गौतम ! साध्वीने वहोरकर लाई हुई चीज इस्तमाल न करे उसे गच्छ कहते हैं।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 834 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अत्थि केई जेणमिणमो परम गुरूणं पी अलंघणिज्जं परमसरन्नं फुडं पयडं पयड पयडं परम कल्लाणं कसिण कम्मट्ठ दुक्ख निट्ठवणं पवयणं अइक्कमेज्ज वा, वइक्कमेज्ज वा लंघेज्ज वा, खंडेज्ज वा, विराहेज्ज वा, आसाएज्ज वा, से मनसा वा, वयसा वा, कायसा वा, जाव णं वयासी गोयमा णं अनंतेणं कालेणं परिवत्तमाणेणं सययं दस अच्छग्गे भविंसु। तत्थ णं असंखेज्जे अभव्वे असंखेज्जे मिच्छादिट्ठि असंखेज्जे सासायणे दव्व लिंगमासीय सढत्ताए डंभेणं सक्करिज्जंते एत्थए धम्मिग त्ति काऊणं बहवे अदिट्ठ कल्लाणे जइणं पवयणमब्भुवगमंति। तमब्भुवगामिय रसलोलत्ताए विसयलोलत्ताए दुद्दंत्तिंदिय दोसेणं अनुदियहं

Translated Sutra: हे भगवंत ! ऐसा कोई (आत्मा) होगा कि जो इस परम गुरु का अलंघनीय परम शरण करने के लायक स्फुट – प्रकट, अति प्रकट, परम कल्याण रूप, समग्र आँठ कर्म और दुःख का अन्त करनेवाला जो प्रवचन – द्वादशांगी रूप श्रुतज्ञान उसे अतिक्रम या प्रकर्षपन से अतिक्रमण करे, लंघन करे, खंड़ित करे, विराधना करे, आशातना करे, मन से, वचन से या काया से अतिक्रमण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 835 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते णं काले णं दस अच्छेरगे भविंसु गोयमा णं इमे ते अनंतकाले णं दस अच्छेरगे भवंति, तं जहा तित्थयराणं उवसग्गे (१) गब्भ संकामणे, (२) वामा तित्थयरे, (३) तित्थयरस्स णं देसणाए अभव्व समुदाएण परिसा बंधि सवि-माणाणं चंदाइच्चाणं तित्थयरसमवसरणे। (५) आगमने वासुदेवा णं संखज्झुणीए, अन्नयरेणं वा राय कउहेणं परोप्पर मेलावगे, (६) इहइं तु भारहे खेत्ते हरिवंस कुलुप्पत्तीए, (७) चमरुप्पाए, (८) एग समएणं अट्ठसय सिद्धिगमणं, (९) असंजयाणं पूयाकारगे त्ति (१०) ।

Translated Sutra: हे भगवंत ! अनन्ता काल कौन – से दश अच्छेरा होंगे ? हे गौतम ! उस समय यह दश अच्छेरा होंगे। वो इस प्रकार – १. तीर्थंकर भगवंत को उपसर्ग, २. गर्भ पलटाया जाना, ३. स्त्री तीर्थंकर, ४. तीर्थंकर की देशना में अभव्य, दीक्षा न लेनेवाले के समुदाय की पर्षदा इकट्ठी होना, ५. तीर्थंकर के समवसरण में चंद्र और सूरज का अपना विमान सहित आगमन,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 836 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केई कहिंचि कयाई पमायदोसाओ पवयणमासाएज्जा से णं किं आयरियं पयं पावेज्जा। गोयमा जे णं केई कहिंचि कयाई पमायदोसओ असई कोहेण वा, माणेण वा, मायाए वा, लोभेए वा, रागेण वा, दोसेण वा, भएण वा, हासेण वा, मोहेण वा, अन्नण दोसेण वा, पवयणस्स णं अन्नयरे ट्ठाणे वइमित्तेणं पि अनायारं असमायारी परूवेमाणे वा, अनुमन्नेमाणे वा, पवयणमा-साएज्जा। से णं बोहिं पि नो पावे, किमंगं आयरियपयलंभं से भयवं किं अभव्वे मिच्छादिट्ठी आयरिए भवेज्जा गोयमा भवेज्जा। एत्थ च णं इंगालमद्दगाई नेए। से भयवं किं मिच्छादिट्ठी निक्खमेज्जा गोयमा निक्खमेज्जा। से भयवं कयरेणं लिंगेणं से णं वियाणेज्जा जहा

Translated Sutra: हे भगवंत ! यदि किसी तरह से कभी प्रमाद दोष से प्रवचन – जैनशासन की आशातना करे क्या वो आचार्य पद पा सकते हैं ? हे गौतम ! जो किसी भी तरह से शायद प्रमाद दोष से बार – बार क्रोध, मान, माया या लोभ से, राग से, द्वेष से, भय से, हँसी से, मोह से या अज्ञात दोष से प्रवचन के किसी भी दूसरे स्थान की आशातना करे, उल्लंघन करे, अनाचार, असामाचारी
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 837 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केई आयरिए, इ वा मयहरए, इ वा असई कहिंचि कयाई तहाविहं संविहाणगमासज्ज इणमो निग्गंथं पवयणमन्नहा पन्नवेज्जा, से णं किं पावेज्जा गोयमा जं सावज्जायरिएणं पावियं। से भयवं कयरे णं से सावज्जयरिए किं वा तेणं पावियं ति। गोयमा णं इओ य उसभादि तित्थंकर चउवीसिगाए अनंतेणं कालेणं जा अतीता अन्ना चउवीसिगा तीए जारिसो अहयं तारिसो चेव सत्त रयणी पमाणेणं जगच्छेरय भूयो देविंद विंदवं-दिओ पवर वर धम्मसिरी नाम चरम धम्मतित्थंकरो अहेसि। तस्से य तित्थे सत्त अच्छेरगे पभूए। अहन्नया परिनिव्वुडस्स णं तस्स तित्थंकरस्स कालक्कमेणं असंजयाणं सक्कार कारवणे नाम अच्छेरगे वहिउमारद्धे। तत्थ

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई आचार्य जो गच्छनायक बार – बार किसी तरह से शायद उस तरह का कारण पाकर इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को अन्यथा रूप से – विपरीत रूप से प्ररूपे तो वैसे कार्य से उसे कैसा फल मिले ? हे गौतम ! जो सावद्याचार्य ने पाया ऐसा अशुभ फल पाए, हे गौतम ! वो सावद्याचार्य कौन थे ? उसने क्या अशुभ फल पाया? हे गौतम ! यह ऋषभादिक तीर्थंकर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 838 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केई साहू वा साहुणी वा निग्गंथे अनगारे दव्वत्थयं कुज्जा से णं किमालावेज्जा गोयमा जे णं केई साहू वा साहूणी वा निग्गंथे अनगारे दव्वत्थयं कुज्जा से णं अजये इ वा, असंजए इ वा, देवभोइए इ वा, देवच्चगे इ वा, जाव णं उम्मग्गपए इ वा, दूरुज्झिय सीले इ वा, कुसीले इ वा, सच्छंदयारिए इ वा आलवेज्ज।

Translated Sutra:
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 839 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं गोयमा तेसिं अनायार पवत्ताणं बहूणं आयरिय मयहरादीणं एगे मरगयच्छवी कुवलयप्पहा-भिहाणे नाम अनगारे महा तवस्सी अहेसि। तस्स णं महा महंते जीवाइ पयत्थेसु तत्त परिण्णाणे सुमहंतं चेव संसार सागरे तासुं तासुं जोणीसुं संसरण भयं सव्वहा सव्व पयारेहिं णं अच्चंतं आसायणा भीरुयत्तणं तक्कालं तारिसे वी असमंजसे अनायारे बहु साहम्मिय पवत्तिए तहा वी सो तित्थयरा-णमाणं णाइक्कमेइ। अहन्नया सो अनिगूहिय बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमे सुसीस गण परियरिओ सव्वण्णु-पणीयागम सुत्तत्थो भयाणुसारेणं ववगय राग दोस मोह मिच्छत्तममकाराहंकारो सव्वत्थापडिबद्धो किं बहुना सव्वगुणगणा हिट्ठिय सरीरो

Translated Sutra: उसी तरह हे गौतम ! इस तरह अनाचारमे प्रवर्तनेवाले कईं आचार्य एवं गच्छनायक के भीतर एक मरकत रत्न समान कान्तिवाले कुवलयप्रभ नाम के महा तपस्वी अणगार थे। उन्हें काफी महान जीवादिक चीज विषयक सूत्र और अर्थ सम्बन्धी विस्तारवाला ज्ञान था। इस संसार समुद्र में उन योनि में भटकने के भयवाले थे। उस समय उस तरह का असंयम प्रवर्तने
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 840 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया तेसिं दुरायाराणं सद्धम्म परंमुहाणं अगार धम्माणगार धम्मोभयभट्ठाणं लिंग मेत्त णाम पव्वइयाणं कालक्कमेणं संजाओ परोप्परं आगम वियारो। जहा णं सड्ढगाणमसई संजया चेव मढदेउले पडिजागरेंति खण्ड पडिए य समारावयंति। अन्नं च जाव करणिज्जं तं पइ समारंभे कज्ज-माणे जइस्सावि णं नत्थि दोस संभवं। एवं च केई भणंति संजम मोक्ख नेयारं, अन्ने भणंति जहा णं पासायवडिंसए पूया सक्कार बलि विहाणाईसु णं तित्थुच्छप्पणा चेव मोक्खगमणं। एवं तेसिं अविइय परमत्थाणं पावकम्माणं जं जेण सिट्ठं सो तं चेवुद्दामुस्सिंखलेणं मुहेणं पलवति। ताहे समुट्ठियं वाद संघट्टं। नत्थि य कोई तत्थ आगम कुसलो

Translated Sutra: अब किसी समय दुराचारी अच्छे धर्म से पराङ्मुख होनेवाले साधुधर्म और श्रावक धर्म दोनों से भ्रष्ट होनेवाला केवल भेष धारण करनेवाले हम प्रव्रज्या अंगीकार की है – ऐसा प्रलाप करनेवाले ऐसे उनको कुछ समय गुजरने के बाद भी वो आपस में आगम सम्बन्धी सोचने लगे कि – श्रावक की गैरमोजुदगी में संयत ऐसे साधु ही देवकुल मठ उपाश्रय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1514 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तीए मयहरीए तेहिं से तंदुलमल्लगे पयच्छिए किं वा णं सा वि य मयहरी तत्थेव तेसिं समं असेस कम्मक्खयं काऊणं परिणिव्वुडा हवेज्ज त्ति। गोयमा तीए मयहरिए तस्स णं तंदुल मल्लगस्सट्ठाए तीए माहणीए धूय त्ति काऊणं गच्छमाणी अवंतराले चेव अवहरिया सा सुज्जसिरी, जहा णं मज्झं गोरसं परिभोत्तूणं कहिं गच्छसि संपयं त्ति। आह वच्चामो गोउलं। अन्नं च–जइ तुमं मज्झं विनीया हवेज्जा, ता अहयं तुज्झं जहिच्छाए ते कालियं बहु गुल घएणं अणुदियहं पायसं पयच्छिहामि। जाव णं एयं भणिया ताव णं गया सा सुज्जसिरि तीए मयहरीए सद्धिं ति। तेहिं पि परलोगाणुट्ठाणेक्क सुहज्झवसायाखित्तमाणसेहिं न

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो महियारी – गोकुलपति बीबी को उन्होंने डांग से भरा भाजन दिया कि न दिया ? या तो वो महियारी उन के साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाई थी ? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढ़ने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समझकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया। फिर मधु, दूध खाकर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1516 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ति भाणिऊणं चिंतिउं पवत्तो सो महापावयारी। जहा णं किं छिंदामि अहयं सहत्थेहिं तिलं तिलं सगत्तं किं वा णं तुंगगिरियडाओ पक्खिविउं दढं संचुन्नेमि इनमो अनंत-पाव संघाय समुदयं दुट्ठं किं वा णं गंतूण लोहयार सालाए सुतत्त लोह खंडमिव घन खंडाहिं चुण्णावेमि सुइरमत्ताणगं किं वा णं फालावेऊण मज्झोमज्झीए तिक्ख करवत्तेहिं अत्ताणगं पुणो संभरावेमि अंतो सुकड्ढिय तउय तंब कंसलोह लोणूससज्जियक्खारस्स किं वा णं सहत्थेणं छिंदामि उत्तमंगं किं वा णं पविसामि मयरहरं किं वा णं उभयरुक्खेसु अहोमुहं विणिबंधाविऊण-मत्ताणगं हेट्ठा पज्जलावेमि जलणं किं बहुना णिद्दहेमि कट्ठेहिं अत्ताणगं

Translated Sutra: ऐसा बोलकर महापाप कर्म करनेवाला वो सोचने लगा कि – क्या अब मैं शस्त्र के द्वारा मेरे गात्र को तिल – तिल जितने टुकड़े करके छेद कर डालूँ ? या तो ऊंचे पर्वत के शिखर से गिरकर अनन्त पाप समूह के ढ़ेर समान इस दुष्ट शरीर के टुकड़े कर दूँ ? या तो लोहार की शाला में जाकर अच्छी तरह से तपाकर लाल किए लोहे की तरह मोटे घण से कोई टीपे उस
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1517 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं तं तारिसं महापावकम्मं समायरिऊणं तहा वी कहं एरिसेणं से सुज्जसिवे लहुं थेवेणं कालेणं परिनिव्वुडे त्ति गोयमा ते णं जारिसं भावट्ठिएणं आलोयणं विइन्नं जारिस संवेगगएणं तं तारिसं घोरदुक्करं महंतं पायच्छित्तं समनुट्ठियं जारिसं सुविसुद्ध सुहज्झवसाएणं तं तारिसं अच्चंत घोर वीरुग्ग कट्ठ सुदुक्कर तव संजम किरियाए वट्टमाणेणं अखंडिय अविराहिए मूलुत्तरगुणे परिपालयंतेणं निरइयारं सामन्नं णिव्वाहियं, जारिसेणं रोद्दट्टज्झाण विप्पमुक्केणं णिट्ठिय राग दोस मोह मिच्छत्त मय भय गारवेणं मज्झत्थ भावेणं अदीनमाणसेणं दुवालस वासे संलेहणं काऊणं पाओवगमणमणसणं पडिवन्नं।

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस प्रकार का घोर महापाप कर्म आचरण करके यह सुज्ञशिव जल्द थोड़े काल में क्यों निर्वाण पाया ? हे गौतम ! जिस प्रकार के भाव में रहकर आलोयणा दी, जिस तरह का संवेग पाकर ऐसा घोर दुष्कर बड़ा प्रायश्चित्त आचरण किया। जिस प्रकार काफी विशुद्ध अध्यवसाय से उस तरह का अति घोर वीर उग्र कष्ट करनेवाला अति दुष्कर तप – संयम
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1518 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काले णं तु खवे कम्मं, काले णं तु पबंधए। एगं बंधे खवे एगं, गोयमा कालमनंतगं॥

Translated Sutra: काल से तो कर्म खपाता है, काल के द्वारा कर्म बाँधता है, एक बाँधे, एक कर्म का क्षय करे, हे गौतम ! समय तो अनन्त है, योग का निरोध करनेवाला कर्म वेदता है लेकिन कर्म नहीं बाँधते। पुराने कर्म को नष्ट करते हैं, नए कर्म की तो उसे कमी ही है, इस प्रकार कर्म का क्षय जानना। इस विषय में समय की गिनती न करना। अनादि समय से यह जीव है तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 242 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संखेवत्थमिमं भणियं सव्वेसिं जग-जंतुणं। दुक्खं मानुस-जाईणं गोयम जं तं निबोधय॥

Translated Sutra: यह तो जगत के सारे जीव का संक्षेप से दुःख बताया। हे गौतम ! मानव जात में जो दुःख रहा है उसे सून
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Hindi 246 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घोरं-मनुस्स-जाईणं घोर-पयंडं मुणे तिरिच्छासुं। घोर-पयंडमहारोद्दं नारय-जीवाण गोयमा॥

Translated Sutra: मानव जातिमे घोर दुःख है। तिर्यंचगति में घोर प्रचंड़ दुख है और हे गौतम ! नारक के जीव का दुख घोर प्रचंड़ महारौद्र होता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Hindi 254 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सारीरेयर-भेदमियं जं भणियं तं पवक्खई। सारीरं गोयमा दुक्खं सुपरिफुडं तमवधारय॥

Translated Sutra: शारीरिक और मानसिक ऐसे दो भेदवाले दुःख बताए, उसमें अब हे गौतम ! वो शारीरिक दुःख अति स्पष्टतया कहता हूँ। उसे तुम एकाग्रता से सूनो।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Hindi 263 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह तं कुंथुं वावाए जइ नो अन्नत्थ-गयं भवे। कंडुएमाणोऽह भित्तादी अनुघसमाणो किलम्मए॥

Translated Sutra: यह अध्यवसायवाला मानव अब क्या करता है वो हे गौतम ! तुम सूनो अब यदि उस कुंथु का जीव कहीं ओर चला गया न होता तो वो खुजली खुजलाते खुजलाते उस कुंथु के जीव को मार डालते हैं। या दीवार के साथ अपने शरीर को घिसे यानि कुंथु का जीव क्लेश पाए यावत्‌ मौत हो, मरते हुए कुंथुआ पर खुजलाते हुए वो मानव निश्चय से अति रौद्र ध्यान में पड़ा
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 319 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्चा केइ कह कह वि लब्भंती मानुसत्तणं। तप्पुव्व-सल्ल-दोसेणं मानुसत्ते वि आगया।

Translated Sutra: और फिर वैसे किसी शुभ अध्यवसाय विशेष से किसी भी तरह मनुष्यत्व पाए लेकिन अभी पूर्व किए गए शल्य के दोष से मनुष्य में आने के बाद भी जन्म से ही दरिद्र के वहाँ उत्पन्न होता है। वहाँ व्याधि, खस, खुजली आदि रोग से घिरे हुए रहता है और सब लोग उसे न देखने में कल्याण मानते हैं। यहाँ लोगों की लक्ष्मी हड़प लेने की दृढ़ मनोभावना
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 351 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा पाणी जे एयं मन्नए विसं। आसव-दार-निरोहादी-इयर-हेय-सोक्खं चरे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! ऐसे जीव भी होते हैं कि जो आश्रवद्वार बन्ध कर के क्षमादि दशविध संयम स्थान आदि पाया हुआ हो तो भी दुःख मिश्रित सुख पाता है। इसलिए जब तक समग्र आठ कर्म घोर तप और संयम से निर्मूल – सर्वथा जलाए नहीं, तब तक जीव को सपने में भी सुख नहीं हो सकता। इस जगतमें सर्व जीव को विश्रान्ति बिना दुःख लगातार भुगतना होता है। एक
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 354 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थेवमवि थेवतरं थेवयरस्सावि थेवयं। जेणं गोयम ता पेच्छ कुंथू तस्सेव य तनू॥

Translated Sutra: कुंथुआ के जीव का शरीर कितना ? हे गौतम ! वो तु यदि सोचे – छोटे से छोटा, उससे भी छोटा, उससे भी काफी अल्प उसमें कुंथु, उसका पाँव कितना ? पाँव की धार तो केवल छोटे से छोटा हिस्सा, उसका हिस्सा भी यदि हमारे शरीर को छू ले या किसी के शरीर पर चले तो भी हमारे दुःख का कारण न बने। लाख कुंथुआ के शरीर को इकट्ठे करके छोटे तराजू से तोल
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 356 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कुंथूणं सय-सहस्सेणं तोलियं नो पलं भवे। एगस्स केत्तियं गत्तं, किं वा तोल्लं भवेज्ज से॥

Translated Sutra: कुंथु समान छोटा जानवर मेरे मलीन शरीर पर भ्रमण करे, संचार करे, चले तो भी उसको खुजलाकर नष्ट न करे लेकिन रक्षण करे, यह हंमेशा यहाँ नहीं रहेगा। शायद दूसरे पल में चला जाए, दूसरे पल में नहीं रहेगा। शायद दूसरे पल में न चला जाए तो हे गौतम ! इस प्रकार भावना रखनी, यह कुंथु राग से नहीं बसा या मुज पर उसे द्वेष नहीं, क्रोध से, मत्सर
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 456 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उद्धरिउं गोयमा सल्लं वण-भंगे जाव नो कये। वण-पिंडीपट्ट-बंधं च ताव नो किं परुज्झए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! शरीर में से शल्य बाहर नीकाला लेकिन झख्म भरने के लिए जब तक मल्हम लगाया न जाए, पट्टी न बाँधी जाए तब तक वो झख्म नहीं भरता। वैसे भावशल्य का उद्धार करने के बाद यह प्रायश्चित्त मल्हम पट्टी और पट्टी बाँधने समान समझो। दुःख से करके रूझ लाई जाए वैसे पाप रूप झख्म की जल्द रूझ लाने के लिए प्रायश्चित्त अमोघ उपाय है। सूत्र
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 458 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं किमनुविज्जंते सुव्वंते जाणिए इ वा। सोहेइ सव्व-पावाइं पच्छित्ते सव्वण्णु-देसिए ॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! सर्वज्ञ ने बताए प्रायश्चित्त थोड़े से भी आचरण में, सूनने में या जानने में क्या सर्व पाप की शुद्धि होती है ? हे गौतम ! गर्मी के दिनों में अति प्यास लगी हो, पास ही में अति स्वादिष्ट शीतल जल हो, लेकिन जब तक उसका पान न किया जाए तब तक तृषा की शान्ति नहीं होती उसी तरह प्रायश्चित्त जानकर जब तक निष्कपट भाव से सेवन
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 764 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवमणियत्त-विहारं, नियय-विहार न ताव साहूणं। कारण नीयावासं जो सेवे तस्स का वत्ता॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! साधुओं को अनियत विहार या नियत विहार नहीं होते, तो फिर कारण से नित्यवास, स्थिरवास जो सेवन करे उसकी क्या हकीकत समजे ? हे गौतम ! ममत्वभाव रहित होकर निरंहकारपन से ज्ञान, दर्शन, चारित्र में उद्यम करनेवाला हो, समग्र आरम्भ से सर्वथा मुक्त और अपने देह पर भी ममत्वभाव रहित हो, मुनिपन के आचार का आचरण करके एक क्षेत्र
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 769 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अववाएण वि कारण-वसेण अज्जा चउण्हमूणाओ। गाऊयमवि परिसक्कंति जत्थ तं केरिसं गच्छं॥

Translated Sutra: अपवाद से और कारण हो तो चार से कम साध्वी एक गाऊं भी जिसमें चलते हो वो गच्छ किस तरह का ? हे गौतम! जिस गच्छमें आँठ से कम साधु मार्गमें साध्वी के साथ अपवाद से भी चले तो उस गच्छ में मर्यादा कहां ? सूत्र – ७६९, ७७०
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 772 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जा लद्धं पडिग्गहमादि-विविहमुवगरणं। परिभुज्जइ साहूहिं तं गोयमा केरिसं गच्छं॥

Translated Sutra: जिसमें आर्या के वहोरे हुए पात्रा दंड़ आदि तरह – तरह के उपकरण का साधु परिभोग करे हे गौतम ! उसे गच्छ कैसे कहें ?
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 906 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा तित्थयरेणेस किमट्ठं वाइओ विही जेनेयं अहीयमाणोऽहं पायच्छित्तस्स मेलिओ॥ अहवा–

Translated Sutra: मेरे लिए यह प्रायश्चित्त अधिक नहीं है क्या ? या तीर्थंकर भगवंत ने यह विधि की कल्पना क्यों की होगी ? मैं उसका अभ्यास करता हूँ। और जिसने मुझे प्रायश्चित्त में जुड़ा, वो सर्व हकीकत सर्वज्ञ भगवंत जाने, मैं तो प्रायश्चित्त का सेवन करूँगा। जो कुछ भी यहाँ दृष्ट चिन्तवन किया वो मेरा पाप मिथ्या हो। इस प्रकार कष्टहारी
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 385 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं सद्धिं संलावं अद्धाणं वा वि गोयमा । अन्नासुं वा वि इत्थीसुं खणद्धं पि विवज्जए॥

Translated Sutra: हे गौतम ! उनके साथ मार्ग में सहवास – संलाप – बातचीत न करना, उसके सिवा बाकी स्त्रीयों के साथ अर्धक्षण भी वार्तालाप न करना। साथ मत चलना।
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 386 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमित्थीयं नो णं निज्झाएज्जा गोयमा नो णं निज्झाएज्जा। (२) से भयवं किं सुनियत्थं वत्थालंकरिय-विहूसियं इत्थीयं नो णं निज्झाएज्जा, उयाहु णं विनियंसणिं गोयमा उभयहा वि णं नो निज्झाएज्जा। (३) से भयवं किमित्थीयं नो आलवेज्जा गोयमा नो णं आलवेज्जा। (४) से भयवं किमित्थीसुं सद्धिं खणद्धमवि नो संवसेज्जा गोयमा नो णं संखसेज्जा। (५) से भयवं किमित्थीसुं सद्धिं नो अद्धाणं पडिवज्जेज्जा गोयमा एगे बंभयारी एगित्थीए सद्धिं नो पडिवज्जेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या स्त्री की ओर सर्वथा नजर ही न करना ? हे गौतम ! ना, स्त्री की ओर नजर नहीं करनी या नहीं देखना, हे भगवंत ! पहचानवाली हो, वस्त्रालंकार से विभूषित हो वैसी स्त्री को न देखना या वस्त्रालंकार रहित हो उसे न देखना ? हे गौतम ! दोनों तरह की स्त्री को मत देखना। हे भगवंत ! क्या स्त्रीयों के साथ आलाप – संलाप भी न करे ? हे
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 387 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा (२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ। (३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा (४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा, (५) जाव णं

Translated Sutra: हे भगवंत ! आप ऐसा क्यों कहते हैं कि – स्त्री के मर्म अंग – उपांग की ओर नजर न करना, उसके साथ बात न करना, उसके साथ वास न करना, उसके साथ मार्ग में अकेले न चलना ? हे गौतम ! सभी स्त्री सर्व तरह से अति उत्कट मद और विषयाभिलाप के राग से उत्तेजित होती है। स्वभाव से उस का कामाग्नि हंमेशा सुलगता रहता है। विषय की ओर उसका चंचल चित्त
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 388 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (३९) एयावसरम्मि उ गोयमा संजोगेणं संजुज्जेज्जा। (४०) से वि णं संजोए पुरिसायत्ते (४१) पुरिसे वि णं जे णं न संजुज्जे, से धन्ने; जे णं संजुज्जे से अधन्ने॥

Translated Sutra: हे गौतम ! अब ऐसे वक्त में जो पुरुष संयोग के आधीन होकर उस स्त्री का योग करे और स्त्री के आधीन होकर काम सेवन करे वो अधन्य है। संयोग करना या न करना पुरुष आधीन है। इसलिए जो उत्तम पुरुष संयोग को आधीन न हो वो धन्य है।
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 389 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेण एवं वुच्चइ जहा पुरिसे वि णं जे णं न संजुज्जे से णं धन्ने जे णं संजुज्जे से अधन्ने (२) गोयमा जे य णं से तीए इत्थीए पावाए बद्ध-पुट्ठ-कम्म-ट्ठिइं चिट्ठइ। से णं पुरिससंगेणं निकाइज्जइ (३) तेणं तु बद्ध-पुट्ठ-निकाइएणं कम्मेणं सा वराई (४) तं तारिसं अज्झवसायं पडुच्चा एगिंदियत्ताए पुढवादीसुं गया समाणी अनंत-काल-परियट्टेण वि णं नो पावेज्जा बेइंदियत्तणं (५) एवं कह कह वि बहुकेसेण अनंत-कालाओ एगिंदियत्तणं खविय बेइंदियत्तं, एवं तेइंदियत्तं चउरिं-दियत्तमवि केसेणं वेयइत्ता पंचिंदियत्तेणं आगया समाणी (६) दुब्भगित्थिय-पंड-तेरिच्छ-वेयमाणी। हा-हा-भूय-कट्ठ-सरणा,

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि जो पुरुष उस स्त्री के साथ योग न करे वो धन्य और योग करे वो अधन्य ? हे गौतम ! बद्धस्पृष्ट – कर्म की अवस्था तक पहुँची हुई वो पापी स्त्री पुरुष का साथ प्राप्त हो तो वो कर्म निकाचितपन में बदले, यानि बद्धस्पृष्ट निकाचित कर्म से बेचारी उस तरह के अध्यवसाय पाकर उसकी आत्मा पृथ्वीकाय
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 390 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) भयवं केस णं पुरिसे स णं पुच्छा जाव णं धन्नं वयासि (२) गोयमा छव्विहे पुरिसे नेए। तं जहा–अह-माहमे, अहमे, विमज्झिमे, उत्तमे, उत्तमुत्तमे, सव्वुत्तमुत्तमे।

Translated Sutra: हे भगवंत ! कितनी तरह के पुरुष हैं जिससे आप इस प्रकार कहते हो ? हे गौतम ! पुरुष छ तरह के बताए हैं वो इस प्रकार – १. अधमाधम, २. अधम, ३. विमध्यम, ४. उत्तम, ५. उत्तमोत्तम, ६. सर्वोत्तम।
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उद्देशक-३ Hindi 393 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं बंभयारी कयपच्चक्खाणाभिग्गहे (६) अहा णं नो बंभयारी नो कयपच्चक्खाणाभिग्गहे, तो णं निय-कलत्तेभयणा न तु णं तिव्वेसु कामेसु अभिलासी भवेज्जा (७) तस्स एयस्स णं गोयमा अत्थि बंधो, किंतु अनंत-संसारियत्तणं नो निबंधेज्जा।

Translated Sutra: यदि वो पुरुष ब्रह्मचारी या अभिग्रह प्रत्याख्यान किया हो। या ब्रह्मचारी न हो या अभिग्रह प्रत्याख्यान किए न हो तो अपनी पत्नी के विषय में भजना – विकल्प समझने के कामभोग में तीव्र अभिलाषावाला न हो। हे गौतम ! इस पुरुष को कर्म का बंध हो लेकिन वो अनन्त संसार में घूमने के उचित कर्म न बाँधे।
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उद्देशक-३ Hindi 396 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) भयवं जे णं से अहमे जे वि णं से अहमाहमे पुरिसे तेसिं च दोण्हं पि अनंत-संसारियत्तणं समक्खायं, तो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे (२) एतेसिं दोण्हं पि पुरिसावत्थाणं के पइ-विसेसे (३) गोयमा जे णं से अहम-पुरिसे, से णं जइ वि उ स-पर-दारासत्त-माणसे कूरज्झवसाय-ज्झवसिएहिं चित्ते हिंसारंभ-परिग्गहासत्त-चित्ते, तहा वि णं दिक्खियाहिं साहुणीहिं अन्नयरासुं च। सील-संरक्खण-पोसहोववास-निरयाहिं दिक्खियाहिं गारत्थीहिं वा सद्धिं आवडिय-पेल्लियामंतिए वि समाणे नो वियम्मं समायरेज्जा, (४) जे य णं से अहमाहमे पुरिसे, से णं निय-जणणि-पभिईए जाव णं दिक्खियाईहिं साहुणीहिं पि समं वियम्मं समायरेज्जा (५)

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो अधम और अधमाधम पुरुष दोनों का एक समान अनन्त संसारी इस तरह बताया तो एक अधम और अधमाधम उसमें फर्क कौन – सा समझे ? हे गौतम ! जो अधम पुरुष अपनी या पराई स्त्री में आसक्त मनवाला क्रूर – परिणामवाले चित्तवाला आरम्भ परिग्रह में लीन होने के बावजूद भी दीक्षित साध्वी और शील संरक्षण करने की ईच्छावाली हो। पौषध, उपवास,
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) कासिं चि इत्थीणं गोयमा भव्वत्तं सम्मत्त-दढत्तं च अंगी-काऊणं जाव णं सव्वुत्तमे पुरिसविभागे ताव णं चिंतणिज्जे। नो णं सव्वेसिमित्थीणं

Translated Sutra: हे गौतम ! कुछ स्त्री भव्य और दृढ़ सम्यक्‌त्ववाली होती है। उनकी उत्तमता सोचे तो सर्वोत्तम ऐसे पुरुष की कक्षा में आ सकते हैं। लेकिन सभी स्त्री वैसी नहीं होती।
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उद्देशक-३ Hindi 402 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (२) एवं तु गोयमा जीए इत्थीए-ति कालं पुरिससंजोग-संपत्ती न संजाया। अहा णं पुरिस-संजोग-संपत्तीए वि साहीणाए जाव णं तेरसमे चोद्दसमे पन्नरसमे णं च समएणं पुरिसेणं सद्धिं न संजुत्ता नो वियम्मं समायरियं, (३) से णं, जहा घन-कट्ठ-तण-दारु-समिद्धे केई गामे इ वा नगरे इ वा, रन्ने इ वा, संपलित्ते चंडानिल-संधुक्किए पयलित्ताणं पय-लित्ताणं णिडज्झिय निडज्झिय चिरेणं उवसमेज्जा (४) एवं तु णं गोयमा से इत्थी कामग्गी संपलित्ता समाणी णिडज्झिय-निडज्झिय समय-चउक्केणं उवसमेज्जा (५) एवं इगवीसमे वावीसमे जाव णं सत्ततीसइमे समए जहा णं पदीव-सिहा वावण्णा पुन-रवि सयं वा तहाविहेणं चुन्न-जोगेणं वा पयलिज्जा

Translated Sutra: हे गौतम ! उसी तरह जिस स्त्री को तीन काल पुरुष संयोग की प्राप्ति नहीं हुई। पुरुष संयोग संप्राप्ति स्वाधीन होने के बावजूद भी तेरहवे – चौदहवे, पंद्रहवे समय में भी पुरुष के साथ मिलाप न हुआ। यानि संभोग कार्य आचरण न किया। तो जिस तरह कईं काष्ठ लकड़े, ईंधण से भरे किसी गाँव, नगर या अरण्य में अग्नि फैल उठा और उस वक्त प्रचंड़
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उद्देशक-३ Hindi 403 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) एत्थं च गोयमा जं इत्थीयं भएण वा, लज्जाए वा, कुलंकुसेण वा, जाव णं धम्म-सद्धाए वा तं वेयणं अहि-यासेज्जा नो वियम्मं समायरेज्जा (२) से णं धन्ना, से णं पुण्णा, से य णं वंदा, से णं पुज्जा, से णं दट्ठव्वा, से णं सव्व-लक्खणा, से णं सव्व-कल्लाण-कारया, से णं सव्वुत्तम-मंगल-निहि (३) से णं सुयदेवता, से णं सरस्सती, से णं अंबहुंडी, से णं अच्चुया, से णं इंदाणी, से णं परमपवित्तुत्तमा सिद्धी मुत्ती सासया सिवगइ त्ति

Translated Sutra: हे गौतम ! ऐसे वक्त यदि वो स्त्री भय से, लज्जा से, कुल के कलंक के दोष से, धर्म की श्रद्धा से, काम का दर्द सह ले और असभ्य आचरण सेवन न करे वो स्त्री धन्य है। पुन्यवंती है, वंदनीय है। पूज्य है। दर्शनीय है, सर्व लक्षणवाली है, सर्व कल्याण साधनेवाली है। सर्वोत्तम मंगल की नीधि है। वो श्रुत देवता है, सरस्वती है। पवित्र देवी
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उद्देशक-३ Hindi 404 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जामत्थियं तं वेयणं नो अहियासेज्जा वियम्मं वा समायरेज्जा से णं अधन्ना, से णं अपुन्ना, से णं अवंदा, से णं अपुज्जा, से णं अदट्ठव्वा, से णं अलक्खणा, से णं भग्ग-लक्खणा, से णं सव्व अमंगल-अकल्लाण-भायणा। (५) से णं भट्ठ-सीला, से णं भट्ठायारा से णं परिभट्ठ-चारित्ता, से णं निंदणीया, से णं गरहणीया, से खिंसणिज्जा, से णं कुच्छणिज्जा, से णं पावा, से णं पाव-पावा, से णं महापाव-पावा, से णं अपवित्ति त्ति॥ (१) एवं तु गोयमा चडुलत्ताए भीरुत्ताए कायरत्ताए लोलत्ताए, उम्मायओ वा दप्पओ वा कंदप्पओ वा अणप्प-वसओ वा आउट्टियाए वा, (२) जमित्थियं संजमाओ परिभस्सिय, दूरद्धाणे वा गामे वा नगरे वा रायहाणीए वा,

Translated Sutra: यदि वो स्त्री वेदना न सहे और अकार्याचरण करे तो वो स्त्री, अधन्या, अपुण्यवंती, अवंदनीय, अपूज्य, न देखने लायक, बिना लक्षण के तूटे हुए भाग्यवाली, सर्व अमंगल और अकल्याण के कारणवाली, शीलभ्रष्टा, भ्रष्टाचारवाली, नफरतवाली, धृणा करनेलायक, पापी, पापी में भी महा पापीणी, अपवित्रा है। हे गौतम ! स्त्री होंशियारी से, भय से, कायरता
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 405 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किं पच्छित्तेणं सुज्झेज्जा (२) गोयमा अत्थेगे जे णं सुज्झेज्जा। अत्थेगे जे णं नो सुज्झेज्जा (३) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ । जहा णं गोयमा अत्थेगे जे णं सुज्झेज्जा, अत्थेगे जे णं नो सुज्झेज्जा। (४) गोयमा अत्थेगे जे णं नियडी-पहाणे सढ-सीले वंक-समायारे। से णं ससल्ले आलोइत्ताणं ससल्ले चेव पायच्छित्तमनुचरेज्जा। से णं अवि-सुद्ध-सकलुसासए नो सुज्झेज्जा (५) अत्थेगे जे णं उज्जू पद्धर-सरल-सहावे, जहा-वत्तं नीसल्लं नीसंकं सुपरिफुडं आलोइ-त्ताणं जहोवइट्ठं चेव पायच्छित्तमनुचिट्ठेज्जा। से णं निम्मल-निक्कलुस-विसुद्धासए वि सुज्झेज्जा। (६) एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या प्रायश्चित्त से शुद्धि होती है ? हे गौतम ! कुछ लोगों की शुद्धि होती है और कुछ लोगों की नहीं होती। हे भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हो कि एक की होती है और एक की नहीं होती ? हे गौतम ! यदि कोई पुरुष माया, दंभ, छल, ठगाई के स्वभाववाले हो, वक्र आचारवाला हो, वह आत्मा शल्यवाले रहकर, प्रायश्चित्त का सेवन करते हैं।
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 406 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा णं गोयमा इत्थीयं नाम पुरिसाणं अहमाणं सव्व-पाव-कम्माणं वसुहारा, तम-रय-पंक-खाणी सोग्गइ-मग्गस्स णं अग्गला, नरयावयारस्स णं समोयरण-वत्तणी (२) अभूमयं विसकंदलिं, अणग्गियं चडुलिं अभोयणं विसूइयं अणामियं वाहिं, अवेयणं मुच्छं, अणोवसग्गं मारिं अनियलिं गुत्तिं, अरज्जुए पासे, अहेउए मच्चू, (३) तहा य णं गोयमा इत्थि-संभोगे पुरिसाणं मनसा वि णं अचिंतणिज्जे, अणज्झव-सणिज्जे, अपत्थणिज्जे, अणीहणिज्जे, अवियप्पणिज्जे, असंकप्पणिज्जे, अणभिलसणिज्जे, असंभरणिज्जे तिविहं तिविहेणं ति। (४) जओ णं इत्थियं नाम पुरिसस्स णं, गोयमा सव्वप्पगारेसुं पि दुस्साहिय-विज्जं पि व दोसुप्पपायणिं, सारंभ

Translated Sutra: हे गौतम ! यह स्त्री, पुरुष के लिए सर्व पापकर्म की सर्व अधर्म की धनवृष्टि समान वसुधारा समान है। मोह और कर्मरज के कीचड़ की खान समान सद्‌गति के मार्ग की अर्गला – विघ्न करनेवाली, नरक में उतरने के लिए सीड़ी समान, बिना भूमि के विषवेलड़ी, अग्नि रहित उंबाडक – भोजन बिना विसूचिकांत बीमारी समान, नाम रहित व्याधि, चेतना बिना मूर्छा,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 408 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा य इत्थीओ नाम गोयमा पलय-काल-रयणी-मिव सव्व-कालं तमोवलित्ताओ भवंति। (२) विज्जु इव खणदिट्ठ-नट्ठ-पेम्माओ भवंति। (३) सरणागय-घायगो इव एक्क-जम्मियाओ तक्खण-पसूय-जीवंत-मुद्ध-निय-सिसु-भक्खीओ इव महा-पाव-कम्माओ भवंति। (४) खर-पवणुच्चालिय-लवणोवहि-वेलाइव बहु-विह-विकप्प-कल्लोलमालाहिं णं। खणं पि एगत्थ हि असंठिय-माणसाओ भवंति। (५) सयंभुरमणोवहिममिव दुरवगाह-कइतवाओ भवंति। (६) पवणो इव चडुल-सहावाओ भवंति (७) अग्गी इव सव्व-भक्खाओ, वाऊ इव सव्व-फरिसाओ, तक्करो इव परत्थलोलाओ, साणो इव दानमेत्तमेत्तीओ, मच्छो इव हव्व-परिचत्त-नेहाओ, (१) एवमाइ-अनेग-दोस-लक्ख-पडिपुन्न-सव्वंगोवंग-सब्भिंतर-बाहिराणं

Translated Sutra: हे गौतम ! यह स्त्री प्रलयकाल की रात की तरह जिस तरह हंमेशा अज्ञान अंधकार से लिपीत है। बीजली की तरह पलभर में दिखते ही नष्ट होने के स्नेह स्वभाववाली होती है। शरण में आनेवाले का घात करनेवाले लोगों की तरह तत्काल जन्म दिए बच्चे के जीव का ही भक्षण करनेवाले समान महापाप करनेवाली स्त्री होती है, सज्जक पवन के योग से घूंघवाते
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