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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५२ |
Hindi | 130 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–
[१] कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए
[११] माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे गव्वे परपरिवाए उक्कोसे अवक्कोसे उन्नए
[२१] उन्नामे माया उवही नियडी वलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे
[३१] कूडे जिम्हे किब्बिसिए अनायरणया गूहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे लोभे इच्छा [४१] मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा
[५१]नंदी रागे।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स पच्चत्थि-मिल्ले चरिमंते, एस णं बावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए Translated Sutra: मोहनीय कर्म के बावन नाम कहे गए हैं। जैसे – क्रोध, कोप, रोष, द्वेष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, चंडिक्य, भंडन, विवाद, मान, मद, दर्प, स्तम्भ, आत्मोत्कर्ष, गर्व, परपरिवाद, अपकर्ष, परिभव, उन्नत, उन्नाम, माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, न्यवम, कल्क, कुरुक, दंभ, कूट, जिम्ह, किल्बिष, अनाचरणता, गूहनता, वंचनता, पलिकुंच – नता, सातियोग, लोभ, ईच्छा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५७ |
Hindi | 135 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झ-देसभाए, एस णं सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं दओभासस्स केउयस्स य, संखस्स जूयकस्स य दयसीमस्स ईसरस्स य।
मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावन्नं मनपज्जवनाणिसया होत्था।
महाहिमवंतरूप्पीणं वासधरपव्वयाणं जीवाणं धनुपट्ठा सत्तावन्नं-सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: आचारचूलिका को छोड़कर तीन गणिपिटकों के सत्तावन अध्ययन हैं। जैसे आचाराङ्ग के अन्तिम निशीथ अध्ययन को छोड़कर प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ, द्वीतिय श्रुतस्कन्ध के आचारचूलिका को छोड़कर पन्द्रह, दूसरे सूत्र – कृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह, द्वीतिय श्रुतस्कन्ध के सात और स्थानाङ्ग के दश, इस प्रकार सर्व सतावन अध्ययन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५८ |
Hindi | 136 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमदोच्चपंचमासु–तिसु पुढवीसु अट्ठावण्णं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
नाणावरणिज्जस्स वेयणिज्जस्स आउयनामअंतराइयस्स य– एयासि णं पंचण्हं कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं दओभासस्स णं केउकस्स, संखस्स जूयकस्स, दयसीमस्स ईसरस्स। Translated Sutra: पहली, दूसरी और पाँचवी इन तीन पृथ्वीयों में अट्ठावन लाख नारकावास कहे गए हैं। ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम, अन्तराय इन पाँच कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियाँ अट्ठावन कही गई हैं गोस्तुभ आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से वड़वामुख महापाताल के बहुमध्य देश – भाग का अन्तर अट्ठावन हजार योजन बिना किसी बाधा के कहा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-६० |
Hindi | 138 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्ठिए-सट्ठिए मुहुत्तेहिं संघाएइ।
लवणस्स णं समुद्दस्स सट्ठिं नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारेंति।
विमले णं अरहा सट्ठिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स सट्ठिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
बंभस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सट्ठिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
सोहम्मीसानेसु–दोसु कप्पेसु सट्ठिं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: सूर्य एक एक मण्डल को साठ – साठ मुहूर्त्तों से पूर्ण करता है। लवणसमुद्र के अग्रोदक (१६,००० ऊंची वेला के ऊपर वाले जल) को साठ हजार नागराज धारण करते हैं विमल अर्हन् साठ धनुष ऊंचे थे। बलि वैरोचनेन्द्र के साठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं। ब्रह्म देवेन्द्र देवराज के साठ हजार सामानिक देव कहे गए हैं। सौधर्म और ईशान इन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-६३ |
Hindi | 141 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए तेसट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
हरिवासरम्मयवासेसु मनुस्सा तेवट्ठिए राइंदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति।
निसेहे णं पव्वए तेवट्ठिं सूरोदया पन्नत्ता।
एवं नीलवंतेवि। Translated Sutra: कौशलिक ऋषभ अर्हन् तिरेसठ लाख पूर्व वर्ष तक महाराज के मध्य में रहकर अर्थात् राजा पद पर आसीन रहकर फिर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। हरिवर्ष और रम्यक वर्ष में मनुष्य तिरेसठ रात – दिनों में पूर्ण यौवन को प्राप्त हो जाते हैं, अर्थात् उन्हें माता – पिता द्वारा पालन की अपेक्षा नहीं रहती। निषधपर्वत | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 216 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति। Translated Sutra: सूत्रकृत क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? सूत्रकृत के द्वारा स्वसमय सूचित किये जाते हैं, पर – समय सूचित किये जाते हैं, स्वसमय और परसमय सूचित किये जाते हैं, जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं, जीव और अजीव सूचित किये जाते हैं, लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोकअलोक सूचित किया जाता है। सूत्रकृत | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८० |
Hindi | 159 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जंसे णं अरहा असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
तिविट्ठू णं वासुदेवे असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अयले णं बलदेवे असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
तिविट्ठू णं वासुदेवे असीइं वाससयसहस्साइं महाराया होत्था।
आउबहुले णं कंडे असीइं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरन्नो असीइं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
जंबुद्दीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्ठोवगए पढमं उदयं करेई। Translated Sutra: श्रेयांस अर्हन् अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। अचल बलदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी लाख वर्ष महाराज पद पर आसीन रहे। रत्नप्रभा पृथ्वी का तीसरा अब्बहुल कांड अस्सी हजार योजन मोटा कहा गया है। देवेन्द्र देवराज ईशान के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गए हैं। जम्बूद्वीप | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-९८ |
Hindi | 177 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नंदनवनस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंडयवणस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउदिसिंपि।
दाहिणभरहद्धस्स णं धनुपट्ठे अट्ठाणउइं जोयणसयाइं किंचूणाइं आयामेणं पन्नत्ते।
उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमीणे एगूणपंचासतिमे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चारं चरइ।
दक्खिणाओ णं कट्ठाओ सूरिए Translated Sutra: नन्दनवन के ऊपरी चरमान्त भाग से पांडुक वन के नीचले चरमान्त भाग का अन्तर अट्ठानवे हजार योजन का है। मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से गोस्तुभ आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग अट्ठानवे हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में अवस्थित आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए। दक्षिण भरतक्षेत्र | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 226 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाणि?
पण्हावागरणेसु अट्ठुत्तरं पसिणसयं अट्ठुत्तरं अपसिणसयं अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति।
पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पन्नवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासा-भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-नाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खीम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिण-विज्जा-मनपसिणविज्जा-देवय-पओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव-नरगणमइ-विम्हयकारीणं अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुर- वगाहस्स Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्नों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्ना – प्रश्नों को, विद्याओं को, अतिशयों को तथा नागों – सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों को कहा गया है। प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय – परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के विविध अर्थों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 238 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णियासंठाणसंठिया उक्किन्नंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयच-रिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घि-परिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-उज्झंत-धूव-मघ-मघेंत-गंधुद्धुयाभिरामा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के आवास (भवन) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली रत्नप्रभा पृथ्वी में ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में रत्नप्रभा पृथ्वी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गए हैं। वे भवन बाहर गोल हैं, भीतर चौकोण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं। जैसे – १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 327 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 355 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे ।
सव्वानुभूई अरहा, देवउत्ते य होक्खति ॥ Translated Sutra: १. महापद्म, २. सूरदेव, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. सर्वानुभूति, ६. देवश्रुत, ७. उदय, ८. पेढ़ालपुत्र, ९. प्रोष्ठिल, १०. शतकीर्ति, ११. मुनिसुव्रत, १२. सर्वभाववित् , १३. अमम, १४. निष्कषाय, १५. निष्पुलाक, १६. निर्मम, १७. चित्रगुप्त, १८. समाधिगुप्त,१९. संवर, २०. अनिवृत्ति, २१. विजय, २२. विमल, २३. देवोपपात और २४. अनन्तविजय ये चौबीस तीर्थंकर | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 360 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वभविया चउवीसं नामधेज्जा भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: इन भविष्यकालीन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौबीस नाम इस प्रकार हैं, यथा – १. श्रेणिक, २. सुपार्श्व, ३. उदय, ४. प्रोष्ठिल अनगार, ५. दृढ़ायु, ६. कार्तिक, ७. शंख, ८. नन्द, ९. सुनन्द, १०. शतक, ११. देवकी, १२. सात्यकि, १३. वासुदेव, १४. बलदेव, १५. रोहिणी, १६. सुलसा, १७. रेवती, १८. शताली, १९. भयाली, २०. द्वीपायन, २१. नारद, २२. अंबड, २३. स्वाति, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 383 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयं एवमाहिज्जति, तं जहा– कुलगरवंसेति य, एवं तित्थगरवंसेति य चक्कवट्टिवंसेति व दसारबंधेति य गणधर-वंसेति य इसिवंसेति य जतिवंसेति य मुनिवंसेति य सुतेति वा सुतंगेति वा सुयसमासेति वा सुयखंधेति वा समाएति वा संखेति वा। समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं। Translated Sutra: इस प्रकार यह अधिकृत समवायाङ्ग सूत्र अनेक प्रकार के भावों और पदार्थों को वर्णन करने के रूप से कहा गया है। जैसे – इसमें कुलकरों के वंशों का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार तीर्थंकरों के वंशों का, चक्रवतियों के वंशों का, दशार – मंडलों का, गणधरों के वंशों का, ऋषियों के वंशों का, यतियों के वंशों का और मुनियों के वंशों | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-३३ |
Gujarati | 109 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गंता भवइ– आसायणा सेहस्स।
२. सेहे राइणियस्स पुरओ गंता भवइ–आसायणा सेहस्स।
३. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ–आसायणा सेहस्स।
४. सेहे राइणियस्स आसन्नं ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
५. सेहे राइणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
६. सेहे राइणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ–आसायणा सेहस्स।
७. सेहे राइणियस्स आसन्नं निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
८. सेहे राइणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
९. सेहे राइणियस्स सपक्खं निसीइत्ता भवइ–आसायणा सेहस्स।
१०. सेहे राइणिएण सद्धिं बहिया वियारभूमिं निक्खंते समाणे पुव्वामेव Translated Sutra: ૩૩ – આશાતનાઓ કહી છે – (રાત્નીક અર્થાત્ જ્ઞાનાદિ ગુણોમાં જે અધિક હોય તે ગુરુજન). હવે ૩૩ આશાતનાઓ જણાવે છે – ૧. જે શિષ્ય રાત્નિકની નજીક ચાલે તેને આશાતના થાય છે. એ પ્રમાણે... જે શિષ્ય. ... ૨. રાત્નિકની આગળ ચાલે. ૩. રાત્નિકની પડખો પડખ ચાલે. ૪. રાત્નિકની અતિ પાસે ઉભો રહે. ૫. રાત્નિકની આગળ ઉભો રહે. ૬.રાત્નીકની અડોઅડ ઉભો રહે. ૭.રાત્નીક | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-१२ |
Gujarati | 21 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवही सुअ भत्तपाणे, अंजलीपग्गहेत्ति य ।
दायणे य निकाए अ, अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे ॥ Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: સંભોગ(સમાન આચારવાળા સાધુનો પરસ્પર વ્યવહાર) બાર ભેદે કહ્યો, તે આ પ્રમાણે –. અનુવાદ: સૂત્ર– ૨૧. ઉપધિ, શ્રુત, ભક્તપાન, અંજલિપગ્રહ, દાન, નિકાય, અભ્યુત્થાન. સૂત્ર– ૨૨. કૃતિકર્મકરણ, વૈયાવચ્ચકરણ, સમવસરણ, સંનિષધા, કથાપ્રબંધ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૧, ૨૨ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-१५ |
Gujarati | 35 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमी णं अरहा पन्नरस धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
धुवराहू णं बहुलपक्खस्स पाडिवयं पन्नरसइ भागं पन्नरसइ भागेणं चंदस्स लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं बीआए बीयं भागं तइआए तइयं भागं चउत्थीए चउत्थं भागं पंचमीए पंचमं भागं छट्ठीए छट्ठं भागं सत्तमीए सत्तमं भागं अट्ठमीए अट्ठमं भागं नवमीए नवमं भागं दसमीए दसमं भागं एक्कारसीए एक्कारसमं भागं बारसीए बारसमं भागं तेरसीए तेरसमं भागं चउद्दसीए चउद्दसमं भागं पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं।
तं चेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं।
छ नक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजुत्ता Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૫. અરહંત નમિ ૧૫ – ધનુષ ઊંચા હતા. ધ્રુવ રાહુ કૃષ્ણપક્ષની એકમથી રોજ ચંદ્રની લેશ્યાનો પંદરમો – પંદરમો ભાગ આવરીને રહે છે, તે આ રીતે – એકમે પહેલો પંદરમો ભાગ, બીજે બે ભાગ, ત્રીજે ત્રણ ભાવ, ચોથે ચાર ભાગ, પાંચમે પાંચ ભાગ, છઠ્ઠે છ ભાગ, સાતમે સાત ભાગ, આઠમે આઠ ભાગ, નોમે નવ ભાગ, દશમે દશ ભાગ, અગિયારસે ૧૧ – ભાગ, બારસે ૧૨ – ભાગ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-१८ |
Gujarati | 43 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठारसविहे बंभे पन्नत्ते, तं जहा–ओरालिए कामभोगे नेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अन्नं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि अन्नं न समणुजाणाइ।
ओरालिए कामभोगे नेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अन्नं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं पि अन्नं न समणुजाणाइ।
ओरालिए कामभोगे नेव सयं कायेणं सेवइ, नोवि अन्नं काएणं सेवावेइ, काएणं सेवंतं पि अन्नं न समणुजाणाइ।
दिव्वे कामभोगे नेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अन्नं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि अन्नं न समणुजाणाइ।
दिव्वे कामभोगे नेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अन्नं वायाए सेवावेइ, वायाए सेवंतं पि अन्नं न समणुजाणाइ।
दिव्वे कामभोगे नेव सयं काएणं सेवइ, नोवि अन्नं काएणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩. બ્રહ્મચર્ય ૧૮ ભેદે છે. તે આ – ઔદારિક શરીરી મનુષ્ય, તિર્યંચોના કામભોગને પોતે મનથી સેવે નહીં, બીજાને મન વડે સેવડાવે નહીં, મન વડે સેવતા અન્યને અનુમોદે નહીં, ઔદારિક કામભોગ વચન વડે પોતે ન સેવે, બીજા પાસે ન સેવડાવે, વચનથી સેવતા અન્યને ન અનુમોદે. ઔદારિક કામભોગ કાયાથી સ્વયં ન સેવે, બીજાને કાયા વડે ન સેવડાવે, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-१९ |
Gujarati | 46 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एकूनवीसं नायज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૬. જ્ઞાતાધર્મકથા સૂત્રના પહેલા શ્રુતસ્કંધના ૧૯ – અધ્યયનો કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – સૂત્ર– ૪૭. ઉત્ક્ષિપ્તજ્ઞાન, સંઘાટક, અંડ, કૂર્મ, શેલક, તુંબ, રોહિણી, મલ્લી, માકંદી અને ચંદ્રિકા. સૂત્ર– ૪૮. દાવદવ, ઉદકજ્ઞાત, મંડુક્ક, તેતલી, નંદીફલ, અપરકંકા, આકીર્ણ, સુંસમા, ઓગણીસમું પુંડરીકજ્ઞાત. સૂત્ર– ૪૯. જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-२१ |
Gujarati | 51 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले।
२. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले।
४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. उद्देसियं, कीयं, आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले।
११. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
१२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले।
१३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले।
१४. आउट्टिआए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले।
१५. आउट्टिआए अनंतरहिआए पुढवीए Translated Sutra: શબલ દોષો – (જેના સેવનથી ચારિત્ર કાબરચીતરુ અર્થાત્ દૂષિત થાય તેવા દોષો) ૨૧ કહ્યા, તે આ – ૧. હસ્તકર્મ કરનાર, ૨. મૈથુન સેવનાર, ૩. રાત્રિભોજન કરનાર, ૪. આધાકર્મને ખાતો, ૫. સાગારિક પિંડ ખાતો, ૬. ઔદ્દેશિકક્રીત – આહૃત આપેલ આહારને ખાતો, ૭. વારંવાર પ્રત્યાખ્યાન કરીને ખાતો, ૮. છ માસમાં એક ગણથી બીજા ગણમાં જતો, ૯. એક માસમાં ત્રણ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-२३ |
Gujarati | 53 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेवीसं सूयगडज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– समए वेतालिए उवसग्गपरिण्णा थीपरिण्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए गंथे जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा आहारपरिण्णा अपच्चक्खाणकिरिया अनगारसुयं अद्दइज्जं णालंदइज्जं।
जंबुद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसाए जिणाणं सूरुग्गमनमुहुत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे
जंबुद्दीवे णं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो होत्था, तं जहा–अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे Translated Sutra: ‘સૂયગડ’ અંગસૂત્ર (૨) ના ૨૩ અધ્યયનો છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. સમય, વૈતાલિક, ઉપસર્ગપરિજ્ઞા, સ્ત્રીપરિજ્ઞા, નરકવિભક્તિ, ૬. મહાવીરસ્તુતિ, કુશીલપરિભાષિત, વીર્ય, ધર્મ, સમાધિ, ૧૧. માર્ગ, સમવસરણ, યથાતથ્ય, ગ્રંથ, યમકીય, ૧૬.ગાથા, પુંડરીક, ક્રિયાસ્થાન, આહાર – પરિજ્ઞા, અપ્રત્યાખ્યાનક્રિયા, ૨૧. અનગારશ્રુત, આર્દ્રકીય, નાલંદીય. જંબૂદ્વીપના | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-२४ |
Gujarati | 54 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्वीसं देवाहिदेवा पन्नत्ता, तं जहा– उसभे अजिते संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे।
चुल्लहिमवंतसिहरीणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ चउव्वीसं-चउव्वीसं जोयणसहस्साइं नवबत्तीसे जोयणसए एगं च अट्ठत्तीसइं भागं जोयणस्स किंचिविसेसाहिआओ आयामेणं पन्नत्ताओ।
चउवीसं देवट्ठाणा सइंदया पन्नत्ता, सेसा अहमिंदा अनिंदा अपुरोहिआ।
उत्तरायणगते णं सूरिए चउवीसंगुलियं पोरिसियछायं निव्वत्तइत्ता णं निअट्टति।
गंगासिंधूओ णं महानईओ पवहे सातिरेगे चउवीसं कोसे Translated Sutra: આ અવસર્પિણી કાળમાં આ ભારતક્ષેત્રમાં દેવાધિદેવો – (તીર્થંકરો) ૨૪ કહ્યા છે, તે આ – ઋષભ, અજિત, સંભવ, અભિનંદન, સુમતિ, પદ્મપ્રભ, સુપાર્શ્વ, ચંદ્રપ્રભ, સુવિધિ, શીતલ, શ્રેયાંસ, વાસુપૂજ્ય, વિમલ, અનંત, ધર્મ, શાંતિ, કુંથુ, અર, મલ્લી, મુનિસુવ્રત, નમિ, નેમિ, પાર્શ્વ અને વર્ધમાન. ચુલ્લહિમવંત અને શિખરી બે વર્ષધર પર્વતની જીવા ૨૪,૯૩૨ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-३४ |
Gujarati | 110 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं Translated Sutra: તીર્થંકરના ૩૪ – અતિશયો કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. કેશ, શ્મશ્રૂ, રોમ, નખમાં વૃદ્ધિ ન થાય. ૨. રોગ અને મળરહિત શરીરલતા. ૩. ગાયના દૂધ જેવા શ્વેત માંસ અને લોહી. ૪. પદ્મ, કમલ જેવા સુગંધી ઉચ્છ્વાસ – નિઃશ્વાસ, ૫. ચર્મ – ચક્ષુથી જોઈ ન શકાય તેવા આહાર – નિહાર. ૬. આકાશે રહેલું ધર્મચક્ર, ૭. આકાશે રહેલ છત્ર, ૮. આકાશે રહેલ શ્વેત ઉત્તમ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-४२ |
Gujarati | 118 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्त सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिं पि दओभासे संखे दयसीमे य।
कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा।
संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
नामे णं कम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સાધિક ૪૨ વર્ષ શ્રામણ્ય પર્યાયને પાળીને સિદ્ધ થયા યાવત્ સર્વ દુઃખથી મુક્ત થયા. જંબૂદ્વીપ દ્વીપની પૂર્વ દિશાના અંતથી ગોસ્તૂભ આવાસ પર્વતની પશ્ચિમ દિશાના અંત સુધી ૪૨,૦૦૦ યોજનનું અબાધાથી આંતરુ છે. એ જ પ્રમાણે ચારે દિશામાં દકભાસ, શંખ, દકસીમ પર્વતનું પણ આંતરું જાણવું. કાલોદ સમુદ્રે ૪૨ ચંદ્રો | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-४३ |
Gujarati | 119 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेयालीसं कम्मविवागज्झयणा पन्नत्ता।
पढमचउत्थपंचमासु–तीसु पुढवीसु तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिंपि दओभासे संखे दयसीमे।
महालियाए णं विमानपविभत्तीए ततिये वग्गे तेयालीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता। Translated Sutra: કર્મવિપાકના ૪૩ અધ્યયનો છે. પહેલી, ચોથી, પાંચમી નરક પૃથ્વીમાં કુલ ૪૩ લાખ નરકાવાસો છે. જંબૂદ્વીપની પૂર્વેથી આરંભી ગોસ્તૂભ આવાસ પર્વતના પૂર્વ છેડા સુધી ૪૩,૦૦૦ યોજન અબાધાએ કરીને આંતરુ છે. એ પ્રમાણે ચારે દિશામાં દકભાસ, શંખ, દકસીમ પર્વતનું આંતરુ છે. મહલિયા વિમાનપ્રવિભક્તિના ત્રીજા વર્ગના ૪૩ – ઉદ્દેશનકાળ કહ્યા | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-४८ |
Gujarati | 126 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अडयालीसं पट्टणसहस्सा पन्नत्ता।
[सूत्र] धम्मस्स णं अरहओ अडयालीसं गणा अडयालीसं गणहरा होत्था।
[सूत्र] सूरमंडले णं अडयालीसं एकसट्ठिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: પ્રત્યેક ચાતુરંત ચક્રવર્તીને ૪૮,૦૦૦ પટ્ટણો છે. અર્હત્ ધર્મનાથને ૪૮ ગણો અને ૪૮ ગણધરો હતા. સૂર્ય મંડલનો વિષ્કંભ એક યોજનના એકસઠીયા અડતાલીસ ભાગ ૪૮/૬૧. કહ્યો છે. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-५२ |
Gujarati | 130 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–
[१] कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए
[११] माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे गव्वे परपरिवाए उक्कोसे अवक्कोसे उन्नए
[२१] उन्नामे माया उवही नियडी वलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे
[३१] कूडे जिम्हे किब्बिसिए अनायरणया गूहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे लोभे इच्छा [४१] मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा
[५१]नंदी रागे।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स पच्चत्थि-मिल्ले चरिमंते, एस णं बावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए Translated Sutra: મોહનીયકર્મના – ૫૨ નામો કહ્યા છે – ૧ થી ૧૦. ક્રોધ, કોપ, રોષ, દોષ, અક્ષમા, સંજ્વલન, કલહ, ચાંડિક્ય, ભંડણ, વિવાદ, ૧૧ થી ૨૧. માન, મદ, દર્પ, સ્તંભ, આત્મોત્કર્ષ, ગર્વ, પરપરિવાદ, આક્રોશ, અપકર્ષ, ઉન્નત, ઉન્નામ, ૨૨ થી ૩૮. માયા, ઉપધિ, નિકૃતિ, વલય, ગ્રહણ, ન્યવમ, કલ્ક, કુરુક, દંભ, કૂટ, જિમ્હ, કિલ્બિષ, અનાદરતા, ગૂહનતા, વંચનતા, પરિકુંચનતા, સાતિયોગ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-५७ |
Gujarati | 135 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिण्हं गणिपिडगाणं आयारचूलियावज्जाणं सत्तावन्नं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झ-देसभाए, एस णं सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं दओभासस्स केउयस्स य, संखस्स जूयकस्स य दयसीमस्स ईसरस्स य।
मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावन्नं मनपज्जवनाणिसया होत्था।
महाहिमवंतरूप्पीणं वासधरपव्वयाणं जीवाणं धनुपट्ठा सत्तावन्नं-सत्तावन्नं जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: આચાર – ચૂલિકાને વર્જીને ત્રણ ગણિપિટકના ૫૭ – અધ્યયનો છે. તે આ – આચાર, સૂયગડ, ઠાણ. ગોસ્તૂભ આવાસ પર્વતના પૂર્વાંતથી આરંભી વડવામુખ મહાપાતાળકળશના બહુમધ્ય દેશભાગમાં ૫૭,૦૦૦ યોજન અબાધાએ અંતર છે. એ જ પ્રમાણે દકભાસથી કેતુક, શંખથી યૂપ, દકસીમથી ઇશ્વર પાતાળ કળશનું અંતર જાણવુ. મલ્લિ અરહંતના ૫૭૦૦ સાધુઓ મનઃપર્યવજ્ઞાની હતા. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-५८ |
Gujarati | 136 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमदोच्चपंचमासु–तिसु पुढवीसु अट्ठावण्णं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
नाणावरणिज्जस्स वेयणिज्जस्स आउयनामअंतराइयस्स य– एयासि णं पंचण्हं कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ।
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए, एस णं अट्ठावण्णं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं दओभासस्स णं केउकस्स, संखस्स जूयकस्स, दयसीमस्स ईसरस्स। Translated Sutra: પહેલી, બીજી, પાંચમી એ ત્રણ પૃથ્વીમાં ૫૮ – લાખ નરકાવાસો છે. જ્ઞાનાવરણીય, વેદનીય, આયુ, નામ, અંતરાય એ પાંચ કર્મોની ૫૮ – ઉત્તરપ્રકૃતિઓ છે. ગોસ્તૂભ આવાસ પર્વતના પશ્ચિમાંતથી વડવામુખ મહાપાતાળ કળશના બહુમધ્ય ભાગ સુધી ૫૮,૦૦૦ યોજન અબાધાએ આંતરુ છે. આ પ્રમાણે ચારે દિશામાં જાણવું. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-६० |
Gujarati | 138 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्ठिए-सट्ठिए मुहुत्तेहिं संघाएइ।
लवणस्स णं समुद्दस्स सट्ठिं नागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारेंति।
विमले णं अरहा सट्ठिं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स सट्ठिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
बंभस्स णं देविंदस्स देवरन्नो सट्ठिं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
सोहम्मीसानेसु–दोसु कप्पेसु सट्ठिं विमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: પ્રત્યેક સૂર્ય ૬૦ – ૬૦ મુહૂર્ત્તે કરીને એકૈક મંડલને નીપજાવે છે. લવણસમુદ્રના અગ્રોદકને ૬૦,૦૦૦ નાગકુમારો ધારણ કરે છે. અર્હત્ વિમલ ૬૦ ધનુષ ઊંચા હતા. વૈરોચનેન્દ્ર બલિને ૬૦,૦૦૦ સામાનિક દેવો છે. દેવેન્દ્ર દેવરાજ બ્રહ્મને ૬૦,૦૦૦ સામાનિક દેવો છે. સૌધર્મ, ઈશાન બે કલ્પમાં થઈને ૬૦ લાખ વિમાનો છે. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-६३ |
Gujarati | 141 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए तेसट्ठिं पुव्वसयसहस्साइं महारायवासमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
हरिवासरम्मयवासेसु मनुस्सा तेवट्ठिए राइंदिएहिं संपत्तजोव्वणा भवंति।
निसेहे णं पव्वए तेवट्ठिं सूरोदया पन्नत्ता।
एवं नीलवंतेवि। Translated Sutra: અર્હત્ ઋષભ કૌશલિક ૬૩ લાખ પૂર્વ મહારાજ્યમાં વસીને મુંડ થઈ, ઘેરથી નીકળી અનગાર – પ્રવ્રજિત થયા. હરિવર્ષ, રમ્યકવર્ષ ક્ષેત્રમાં મનુષ્યો ૬૩ રાત્રિદિને યૌવન વય પામે છે. નિષધ પર્વ તે ૬૩ સૂર્યમંડલ કહ્યા. એ પ્રમાણે જ નીલવંતે પણ જાણવા. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-८० |
Gujarati | 159 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जंसे णं अरहा असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
तिविट्ठू णं वासुदेवे असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अयले णं बलदेवे असीइं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
तिविट्ठू णं वासुदेवे असीइं वाससयसहस्साइं महाराया होत्था।
आउबहुले णं कंडे असीइं जोयणसहस्साइं बाहल्लेणं पन्नत्ते।
ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरन्नो असीइं सामाणियसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
जंबुद्दीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्ठोवगए पढमं उदयं करेई। Translated Sutra: અરિહંત શ્રેયાંસ ૮૦ ધનુષ ઊંચા હતા. ત્રિપૃષ્ઠ વાસુદેવ ૮૦ – ધનુષ ઊંચા હતા. અચલ બળદેવ ૮૦ ધનુષ ઊંચા હતા. ત્રિપૃષ્ઠ વાસુદેવ ૮૦ લાખ વર્ષ મહારાજા રહ્યા. અપ્બહુલ કાંડ ૮૦,૦૦૦ યોજન બાહલ્યથી છે. દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનને ૮૦,૦૦૦ સામાનિક દેવો છે. જંબૂદ્વીપમાં ૧૮૦ યોજન જતા ઉત્તર દિશામાં ગયેલો સૂર્ય પ્રથમ ઉદયને કરે છે. | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-९८ |
Gujarati | 177 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नंदनवनस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ पंडयवणस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं अट्ठाणउइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउदिसिंपि।
दाहिणभरहद्धस्स णं धनुपट्ठे अट्ठाणउइं जोयणसयाइं किंचूणाइं आयामेणं पन्नत्ते।
उत्तराओ णं कट्ठाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमीणे एगूणपंचासतिमे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसट्ठिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता णं सूरिए चारं चरइ।
दक्खिणाओ णं कट्ठाओ सूरिए Translated Sutra: નંદનવનના ઉપરના ચરમાંતથી પાંડુકવનના નીચેના છેડા સુધી ૯૮,૦૦૦ યોજન અબાધાએ આંતરું કહ્યું છે. મેરુ પર્વતના પશ્ચિમાંતથી ગોસ્તુભ આવાસ પર્વતના પૂર્વ ચરમાંત સુધી ૯૮,૦૦૦ યોજન અબાધાએ અંતર છે. એ જ પ્રમાણે ચારે દિશામાં જાણવું. દક્ષિણ ભરતાર્ધનું ધનુપૃષ્ઠ કંઈક ન્યૂન ૯૮૦૦ યોજન લંબાઈથી કહ્યું છે. ઉત્તર દિશામાં પહેલા છ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 215 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विआहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए।
से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंगाणं आयार-गोयर-विनय-वेनइय-ट्ठाण-गमन-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासा-समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि-भत्तपाण-उग्गम-उप्पायणएसणाविसोहि-सुद्धासुद्धग्ग-हण-वय-नियम-तवोवहाण-सुप्पसत्थमाहिज्जइ।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे।
आयारस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा Translated Sutra: બાર અંગરૂપ ગણિપિટક કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આચાર, સૂત્રકૃત, ઠાણ, સમવાય, વિવાહપ્રજ્ઞપ્તિ, નાયાધમ્મ – કહા, ઉવાસગદસા, અંતગડદસા, અનુત્તરોપપાતિક દશા, પણ્હાવાગરણ, વિપાકશ્રુત, દૃષ્ટિવાદ. તે ‘આચાર’ શું છે ? આચાર સૂત્રમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોના આચાર, ગોચર, વિનય, વૈનયિક, સ્થાન, ગમન, સંક્રમણ, પ્રમાણ, યોગયુંજન, ભાષા, સમિતિ, ગુપ્તિ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 216 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइ ज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
सूयगडे णं जीवाजीव-पुण्ण-पावासव-संवर-निज्जर-बंध-मोक्खावसाणा पयत्था सूइज्जंति, समणाणं अचिरकालपव्वइयाणं कुसमय-मोह-मोह-मइमोहियाणं संदेहजाय-सहजबुद्धि-परिणाम-संसइयाणं पावकर-मइलमइ-गुण-विसोहणत्थं आसीतस्स किरिया वादिसतस्स चउरासीए वेनइय-वाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेनइयवाईणं–तिण्हं तेसट्ठाणं अन्नदिट्ठियसयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति। Translated Sutra: તે ‘સૂયગડ’ શું છે ? સૂયગડ સૂત્રમાં સ્વસમયની સૂચના કરાય છે. પરસમયની સૂચના કરાય છે. સ્વસમય – પરસમય ની સૂચના કરાય છે. એ રીતે જીવ – અજીવ – જીવાજીવ સૂચિત કરાય છે. લોક – અલોક – લોકાલોક સૂચિત કરાય છે. સૂયગડ માં જીવ – અજીવ – પુન્ય – પાપ – આશ્રવ – સંવર – નિર્જરા – બંધ – મોક્ષ પર્યન્તના પદાર્થો સૂચિત કરાય છે. અલ્પકાળના પ્રવ્રજિત | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 221 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं ससमया वियाहिज्जंति परसमया वियाहिज्जंति ससमयपरसमया वियाहिज्जंति जीवा वियाहिज्जंति अजीवा वियाहि-ज्जंति जीवाजीवा वियाहिज्जंति लोगे वियाहिज्जइ अलोगे वियाहिज्जइ लोगालोगे वियाहिज्जइ। वियाहे णं नाणाविह-सुर-नरिंद-राय-रिसि-विविहसंसइय-पुच्छियाणं जिणेणं वित्थरेण भासियाणं दव्व-गुण-खेत्त-काल-पज्जव-पदेस-परिणाम-जहत्थिभाव-अणुगम-निक्खेव-नय-प्पमाण-सुनिउणोवक्कम-विविहप्पगार-पागड-पयंसियाणं लोगालोग-पगा-सियाणं संसारसमुद्द-रुंद-उत्तरण-समत्थाणं सुरपति-संपूजियाणं भविय-जणपय-हिययाभिनंदियाणं तमरय-विद्धंसणाणं सुदिट्ठं दीवभूय-ईहा-मतिबुद्धि-वद्धणाणं Translated Sutra: તે વ્યાખ્યા (વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ – ભગવતી) શું છે ? વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ અર્થાત ભગવતી સૂત્રમાં સ્વસમય કહેવાય છે, પરસમય કહેવાય છે, સ્વસમય – પરસમય કહે છે. એ રીતે જીવ – અજીવ – જીવાજીવ કહેવાય છે. લોક – અલોક – લોકાલોક કહેવાય છે. વ્યાખ્યાપ્રજ્ઞપ્તિ અર્થાત ભગવતી સૂત્રમાં વડે વિવિધ દેવ, નરેન્દ્ર, રાજર્ષિઓના પૂછેલા વિવિધ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: તે અનુત્તરોપપાતિકદશા કઈ છે ? અનુત્તરોપપાતિકદશામાં અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન થનારના નગરો, ઉદ્યાનો, ચૈત્યો, વનખંડો, રાજા, માતાપિતા, સમોસરણ, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આલોક – પરલોક સંબંધી ઋદ્ધિ – વિશેષ, ભોગપરિત્યાગ, પ્રવ્રજ્યા, શ્રુતગ્રહણ, તપ – ઉપધાન, પર્યાય, પ્રતિમા, સંલેખના, ભક્ત – પાન પ્રત્યાખ્યાન, પાદોપગમન, અનુત્તરમાં | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: તે વિપાકશ્રુત શું છે ? વિપાકશ્રુતમાં સુકૃત અને દુષ્કૃત કર્મના ફળવિપાક કહેવાય છે. તે સંક્ષેપથી બે પ્રકારે છે – દુઃખવિપાક અને સુખવિપાક. તેમાં દશ દુઃખવિપાક અને દશ સુખવિપાક છે. તે દુઃખવિપાક કેવા છે ? દુઃખવિપાકમાં દુઃખવિપાકી જીવોના નગર, ઉદ્યાન, ચૈત્ય, વનખંડ, રાજા, માતાપિતા, સમવસરણ, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, નગર પ્રવેશ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 228 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिकम्मं सुत्ताइं पुव्वगयं अनुओगे चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाहणसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउयापयाणि २. एगट्ठियपयाणि ३. अट्ठपयाणि ४. पाढो ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं १०. तिगुणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨૮. તે દૃષ્ટિવાદ શું છે ? દૃષ્ટિવાદમાં સર્વભાવની પ્રરૂપણા કહે છે. તે સંક્ષેપથી પાંચ ભેદે – પરિકર્મ, સૂત્ર, પૂર્વગત, અનુયોગ, ચૂલિકા. તે પરિકર્મ શું છે ? પરિકર્મ સાત ભેદે કહ્યું છે – સિદ્ધશ્રેણિકા પરિકર્મ, મનુષ્યશ્રેણિકા પરિકર્મ, પૃષ્ટશ્રેણિકા પરિકર્મ, અવગાહનાશ્રેણિકા પરિકર્મ, ઉપસંપદ્યશ્રેણિકા પરિકર્મ, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 233 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवइंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्ने काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवयंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले Translated Sutra: આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકની આજ્ઞા વિરાધીને ભૂતકાળમાં અનંતા જીવોએ ચાતુરંત સંસારાટવીમાં પરિભ્રમણ કરેલ છે. આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકની આજ્ઞા વિરાધીને વર્તમાનકાળે ચાતુરંત સંસારાટવીમાં ભ્રમણ કરે છે. આ દ્વાદશાંગી ગણિપિટકની આજ્ઞા આરાધીને ભાવિ કાળમાં અનંતા જીવો ચાતુરંત સંસારાટવીમાં ભ્રમણ કરશે. આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકની | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 238 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णियासंठाणसंठिया उक्किन्नंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयच-रिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घि-परिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-उज्झंत-धूव-मघ-मघेंत-गंधुद्धुयाभिरामा Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩૪ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 254 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! वेए पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा–इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए।
नेरइया णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया पन्नत्ता?
गोयमा! नो इत्थिवेया नो पुंवेया, नपुंसगवेया पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं भंते! किं इत्थिवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया?
गोयमा! इत्थिवेया पुरिसवेया, नो नपुंसगवेया जाव थणियत्ति।
पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चउरिंदिय-संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख-संमुच्छिममनुस्सा नपुंसगवेया।
गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचेंदियतिरिया य तिवेया।
जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૪. હે ભગવન્ ! વેદ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ત્રણ પ્રકારે – સ્ત્રીવેદ, પુરુષવેદ, નપુંસકવેદ. હે ભંતે ! નૈરયિકો સ્ત્રીવેદી – પુરુષવેદી કે નપુંસકવેદી છે ? ગૌતમ ! સ્ત્રી કે પુરુષ નહીં પણ નપુંસક વેદી છે. હે ભંતે! અસુરકુમારો સ્ત્રી – પુરુષ કે નપુંસકવેદી છે ? ગૌતમ ! સ્ત્રી વેદી છે, પુરુષ વેદી છે, નપુંસક વેદી નથી. યાવત્ | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Gujarati | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪ | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
संस्तारकस्वरूपं, लाभं |
Hindi | 49 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिप्पुरिसनाडयम्मि वि न सा रई जह महत्थवित्थारे ।
जिनवयणम्मि विसाले हेउसहस्सोवगूढम्मि ॥ Translated Sutra: वैक्रियलब्धि के योग से अपने पुरुषरूप को विकुर्वके, देवताएं जो बत्तीस प्रकार के हजार प्रकार से, संगीत की लयपूर्वक नाटक करते हैं, उसमें वो लोग वो आनन्द नहीं पा सकते कि जो आनन्द अपने हस्तप्रमाण संथारा पर आरूढ़ हुए क्षपक महर्षि पाते हैं। | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
भावना |
Hindi | 107 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय तहविहारिणो से विग्घकरी वेयणा समुट्ठेइ ।
तीसे विज्झवणाए अणुसट्ठिं दिंती निज्जवया ॥ Translated Sutra: इस अवसर पर, संथारा पर आरूढ़ हुए महानुभाव क्षपक को शायद पूर्वकालीन अशुभ योग से, समाधि भाव में विघ्न करनेवाला दर्द उदय में आए, तो उसे शमा देने के लिए गीतार्थ ऐसे निर्यामक साधु बावना चन्दन जैसी शीतल धर्मशिक्षा दे। | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
भावना |
Hindi | 112 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पोराणिय-पच्चुप्पन्निया उ अहियासिऊण वियणाओ ।
कम्मकलंकलवल्ली विहुणइ संथारमारूढो ॥ Translated Sutra: ‘संथारा पर आरूढ़ हुए क्षपक, पूर्वकालीन अशुभ कर्म के उदय से पैदा हुई वेदनाओं को समभाव से सहकर, कर्म स्थान कलंक की परम्परा को वेलड़ी की तरह जड़ से हिला देते हैं। इसलिए तुम्हें भी इस वेदना को समभाव से सहन करके कर्म का क्षय कर देना चाहिए।’ | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, संस्तारकगुणा |
Hindi | 4 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेरुलिओ व्व मणीणं, गोसीसं चंदणं व गंधाणं ।
जह व रयणेसु वइरं, तह संथारो सुविहियाणं ॥ Translated Sutra: मणिकी सर्व जाति के लिए जैसे वैडूर्य, सर्व तरह के खुशबूदार द्रव्य के लिए जैसे चन्दन और रत्न में जैसे वज्र होता है तथा – सर्व उत्तम पुरुषों में जैसे अरिहंत परमात्मा और जगत के सर्व स्त्री समुदाय में जैसे तीर्थंकरों की माता होती है वैसे आराधना के लिए इस संथारा की आराधना, सुविहित आत्मा के लिए श्रेष्ठतर है। सूत्र |