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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 650 | View Detail | ||
Mool Sutra: पृथिवीजलतेजोवायु-वनस्पतयः विविधस्थावरैकेन्द्रियाः।
द्विकत्रिकचतुपञ्चाक्षाः, त्रसजीवाः भवन्ति शङ्खादयः।।२७।। Translated Sutra: संसारीजीव भी त्रस और स्थावर दो प्रकार के हैं। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ये सब एकेन्द्रिय स्थावर जीव हैं और शंख, पिपीलिका, भ्रमर तथा मनुष्य-पशु आदि क्रमशः द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय त्रस जीव हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१२ |
Hindi | 22 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कितिकम्मस्स य करणे, वेयावच्चकरणे इ अ ।
समोसरणं संनिसेज्जा य, कहाए अ पबंधने ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१२ |
Hindi | 23 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवालसावत्ते कितिकम्मे पन्नत्ते, [तं जहा –] Translated Sutra: कृतिकर्म बारह आवर्त वाला कहा गया है। जैसे – कृतिकर्म में दो अवनत (नमस्कार), यथाजात रूप का धारण, बारह आवर्त, चार शिरोनति, तीन गुप्ति, दो प्रवेश और एक निष्क्रमण होता है। सूत्र – २३, २४ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१२ |
Hindi | 24 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुओणयं जहाजायं, कितिकम्मं बारसावयं ।
चउसिरं तिगुत्तं च, दुपवेसं एगनिक्खमणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१ |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–
इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियट्ट-च्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्व-दरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउका- मेणं Translated Sutra: हे आयुष्मन् ! उन भगवान ने ऐसा कहा है, मैने सूना है। [इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के अन्तिम समय में विद्यमान उन श्रमण भगवान महावीर ने द्वादशांग गणिपिटक कहा है, वे भगवान] – आचार आदि श्रुतधर्म के आदिकर हैं (अपने समय में धर्म के आदि प्रणेता हैं), तीर्थंकर हैं, (धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक हैं)। स्वयं सम्यक् बोधि को | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२ |
Hindi | 2 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दो दंडा पन्नत्ता, तं जहा–अट्ठादंडे चेव, अणट्ठादंडे चेव।
दुवे रासी पन्नत्ता, तं जहा–जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव।
दुविहे बंधने पन्नत्ते, तं जहा–रागबंधने चेव, दोसबंधने चेव।
पुव्वाफग्गुणीनक्खत्ते दुतारे पन्नत्ते।
उत्तराफग्गुणीनक्खत्ते दुतारे पन्नत्ते।
पुव्वाभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पन्नत्ते।
उत्तराभद्दवयानक्खत्ते दुतारे पन्नत्ते।
इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
दुच्चाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दो सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दो पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरिंदवज्जियाणं भोमिज्जाणं Translated Sutra: दो दण्ड हैं, अर्थदण्ड और अनर्थदण्ड। दो राशि हैं, जीवराशि और अजीवराशि। दो प्रकार के बंधन हैं, रागबंधन और द्वेषबंधन। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है। पूर्वा – भाद्रपदा नक्षत्र दो तारा वाला कहा गया है और उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र दो तारा वाला कहा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३ |
Hindi | 3 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ दंडा पन्नत्ता, तं जहा–मनदंडे वइदंडे कायदंडे।
तओ गुत्तीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मनगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती।
तओ सल्ला पन्नत्ता, तं जहा–मायासल्ले णं नियाणसल्ले णं मिच्छादंसणसल्ले णं।
तओ गारवा पन्नत्ता, तं जहा–इड्ढीगारवे रसगारवे सायागारवे।
तओ विराहणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणविराहणा दंसणविराहणा चरित्तविराहणा।
मिगसिरनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
पुस्सनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
जेट्ठानक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
अभीइनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
सवणनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
असिनिनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
भरणीनक्खत्ते तितारे पन्नत्ते।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए Translated Sutra: तीन दण्ड कहे गए हैं, जैसे – मनदंड, वचनदंड, कायदंड। तीन गुप्तियाँ कही गई हैं, जैसे – मनगुप्ति, वचन – गुप्ति, कायगुप्ति। तीन शल्य कहे गए हैं, जैसे – मायाशल्य, निदानशल्य, मिथ्यादर्शन शल्य। तीन गौरव कहे गए हैं, जैसे – ऋद्धिगौरव, रसगौरव, सातागौरव। तीन विराधना कही गई हैं, जैसे – ज्ञानविराधना, दर्शनविराधना, चारित्र – | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५ |
Hindi | 5 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच किरिया पन्नत्ता, तं जहा–काइया अहिगरणिया पाउसिआ पारियावणिआ पाणाइवायकिरिया।
पंच महव्वया पन्नत्ता, तं जहा–सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं।
पंच कामगुणा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा रूवा रसा गंधा फासा।
पंच आसवदारा पन्नत्ता, तं जहा–मिच्छत्तं अविरई पमाया कसाया जोगा।
पंच संवरदारा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मत्तं विरई अप्पमाया अकसाया अजोगा।
पंच निज्जरट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ वेरमणं, अदिन्नादाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं।
पंच समिईओ Translated Sutra: क्रियाएं पाँच कही गई हैं। जैसे – कायिकी क्रिया, आधिकरणिकी क्रिया, प्राद्वेषीकि क्रिया, पारितापनिकी क्रिया, प्राणातिपात क्रिया। पाँच महाव्रत कहे गए हैं। जैसे – सर्व प्राणातिपात से विरमण, सर्वमृषावाद से विरमण, सर्व अदत्तादन से विरमण, सर्व मैथुन से विरमण, सर्व परिग्रह से विरमण। इन्द्रियों के विषयभूत कामगुण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-६ |
Hindi | 6 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छल्लेसा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा।
छज्जीवनिकाया पन्नत्ता, तं जहा–पुढवीकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए।
छव्विहे बाहिरे तवोकम्मे पन्नत्ते, तं जहा–अनसने ओमोदरिया वित्तिसंखेवो रसपरिच्चाओ काय-किलीसो संलीणया
छव्विहे अब्भिंतरे तवोकम्मे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं उस्सग्गो।
छ छाउमत्थिया समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्वियसमुग्घाए तेयसमुग्घाए आहारसमुग्घाए।
छव्विहे अत्थुग्गहे पन्नत्ते, तं जहा– सोइंदियअत्थुग्गहे चक्खिंदियअत्थुग्गहे Translated Sutra: छह लेश्याएं कही गई हैं। जैसे – कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल लेश्या। (संसारी) जीवों के छह निकाय कहे गए हैं। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय। छह प्रकार के बाहिरी तपःकर्म हैं। अनशन, ऊनोदर्य, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और संलीनता। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७ |
Hindi | 7 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त भयट्ठाणा पन्नत्ता, जहा–इहलोगभए परलोगभए आदाणभए अकम्हाभए आजीवभए मरणभए असिलोगभए।
सत्त समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा– वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए वेउव्विय-समुग्घाए तेयसमुग्घाए आहारसमुग्घाए केवलिसमुग्घाए।
समणे भगवं महावीरे सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सत्त वासहरपव्वया पन्नत्ता, तं जहा–चुल्लहिमवंते महाहिमवंते निसढे नीलवंते रुप्पी सिहरी मंदरे।
सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा– भरहे हेमवते हरिवासे महाविदेहे रम्मए हेरण्णवते एरवए।
खीणमोहे णं भगवं मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ वेएई।
महानक्खत्ते सत्ततारे पन्नत्ते।
कत्तिआइया सत्त Translated Sutra: सात भयस्थान कहे गए हैं। जैसे – इहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्मात् भय, आजीवभय, मरणभय और अश्लोकभय। सात समुद्घात कहे गए हैं, जैसे – वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिक – समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवलिसमुद्घात। श्रमण भगवान महावीर सात रत्नि – हाथ प्रमाण शरीर से ऊंचे थे। इस जम्बूद्वीप | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८ |
Hindi | 10 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमद्दं जोगं जोएंति, तं जहा–कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अनुराहा जेट्ठा
इमीसे णं रणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
जे देवा अच्चिं अच्चिमालिं वइरोयणं पभंकरं चंदाभं सूराभं सुपइट्ठाभं अग्गिच्चाभं रिट्ठाभं अरुणाभं Translated Sutra: आठ नक्षत्र चन्द्रमा के साथ प्रमर्द योग करते हैं। जैसे – कृत्तिका १, रोहिणी २, पुनर्वसु ३, मघा ४, चित्रा ५, विशाखा ६, अनुराधा ७ और ज्येष्ठा ८। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ पल्योपम की कही गई है। चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति आठ सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१० |
Hindi | 18 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
चउत्थीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
असुरिंदवज्जाणं भोमेज्जाणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
बायरवणप्फतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं Translated Sutra: इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कितनेक नारकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कितनेक नारकों की स्थिति दस पल्योपम की कही गई है। चौथी नरक पृथ्वी में दस लाख नरकावास हैं। चौथी पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति दस सागरोपम की होती है। पाँचवी पृथ्वी में किन्हीं – किन्हीं नारकों की जघन्य स्थिति | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१२ |
Hindi | 21 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवही सुअ भत्तपाणे, अंजलीपग्गहेत्ति य ।
दायणे य निकाए अ, अब्भुट्ठाणेत्ति आवरे ॥ Translated Sutra: सम्भोग बारह प्रकार का है – १. उपधि – विषयक सम्भोग, २. श्रुत – विषयक सम्भोग, ३. भक्त – पान विषयक सम्भोग, ४. अंजली – प्रग्रह सम्भोग, ५. दान – विषयक सम्भोग, ६. निकाचन – विषयक सम्भोग, ७. अभ्युत्थान – विषयक सम्भोग। ८. कृतिकर्म – करण सम्भोग, ९. वैयावृत्य – करण सम्भोग, १०. समवसरण – सम्भोग, ११. संनिषद्या – सम्भोग और १२. कथा – प्रबन्धन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१७ |
Hindi | 42 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तरसविहे असंजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिंदियअसंजमे पंचिं-दियअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसंजमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणा असंजमे मणअसंजमे वइअसंजमे कायअसंजमे।
सत्तरसविहे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिंदियसंजमे पंचिंदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपेहासंजमे अवहट्टुसंजमे पमज्ज-णासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे।
मानुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे Translated Sutra: सत्तरह प्रकार का असंयम है। पृथ्वीकाय – असंयम, अप्काय – असंयम, तेजस्काय – असंयम, वायुकाय – असंयम, वनस्पतिकाय – असंयम, द्वीन्द्रिय – असंयम, त्रीन्द्रिय – असंयम, चतुरिन्द्रिय – असंयम, पंचेन्द्रिय – असंयम, अजीवकाय – असंयम, प्रेक्षा – असंयम, उपेक्षा – असंयम, अपहृत्य – असंयम, अप्रमार्जना – असंयम, मनःअसंयम, वचन – असंयम, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१८ |
Hindi | 45 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं पन्नत्ताइं।
बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखविहाणे पन्नत्ते, तं जहा–
१. बंभी २. जवलाणिया ३. दोसऊरिया ४. खरोट्ठिया ५. खरसाहिया ६. पहाराइया ७. उच्चत्तरिया ८. अक्खरपुट्ठिया ९. भोगवइया १. वेणइया ११. निण्हइया १२. अंकलिवी १३. गणियलिवी १४. गंधव्वलिवी १५. आयंसलिवी १६. माहेसरी १७. दामिली १८. पोलिंदी।
अत्थिनत्थिप्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पन्नत्ता।
धूमप्पभा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ता।
पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ता राती Translated Sutra: चूलिका – सहित भगवद – आचाराङ्ग सूत्र पद – प्रमाण से अठारह हजार पद हैं। ब्राह्मीलिपि के लेखन – विधान अठारह प्रकार के कहे गए हैं। जैसे – ब्राह्मीलिपि, यावनीलिपि, दोषउपरि – कालिपि, खरोष्ट्रिकालिपि, खर – शाविकालिपि, प्रहारातिकालिपि, उच्चत्तरिकालिपि, अक्षरपृष्ठिकालिपि, भोगवति – कालिपि, वैणकियालिपि, निह्नविकालिपि, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२० |
Hindi | 50 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वीसं असमाहिठाणा पन्नत्ता, तं जहा–१. दवदवचारि यावि भवइ २. अपमज्जियचारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ४. अतिरित्तसेज्जासणिए ५. रातिणियपरिभासी ६. थेरोवघातिए ७. भूओवघातिए ८. संजलणे ९. कोहणे १. पिट्ठिमंसिए ११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ १२. नवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओसवियाणं पुणोदीरेत्ता भवइ १४. ससरक्खपाणिपाए १५. अकालसज्झायकारए यावि भवइ १६. कलहकरे १७. सद्दकरे १८. ज्झंज्झकरे १९. सूरप्पमाणभोई २. एसणाऽसमिते आवि भवइ।
मुनिसुव्वए णं अरहा वीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सव्वेवि णं घनोदही वीसं जोयणसहस्साइं Translated Sutra: बीस असमाधिस्थान हैं। १. दव – दव करते हुए जल्दी – जल्दी चलना, २. अप्रमार्जितचारी होना, ३. दुष्प्रमा – र्जितचारी होना, ४. अतिरिक्त शय्या – आसन रखना, ५. रात्निक साधुओं का पराभव करना, ६. स्थविर साधुओं को दोष लगाकर उनका उपघात या अपमान करना, ७. भूतों (एकेन्द्रिय जीवों) का व्यर्थ उपघात करना, ८. सदा रोष – युक्त प्रवृत्ति करना, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२१ |
Hindi | 51 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले।
२. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले।
४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. उद्देसियं, कीयं, आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले।
११. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
१२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले।
१३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले।
१४. आउट्टिआए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले।
१५. आउट्टिआए अनंतरहिआए पुढवीए Translated Sutra: इक्कीस शबल हैं (जो दोष रूप क्रिया – विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) १. हस्त – मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधाकर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक का भोजन – पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२२ |
Hindi | 52 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा– दिगिंछापरीसहे पिवासापरीसहे सीतपरीसहे उसिणपरीसहे दंस-मसगपरीसहे अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जा-परीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जल्लपरीसहे सक्कारपुरक्कारपरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे पण्णापरीसहे।
दिट्ठिवायस्स णं बावीसं सुत्ताइं छिन्नछेयणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं अछिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं तिकणइयाइं तेरासिअसुत्तपरिवाडीए।
बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए।
बावीसइविहे पोग्गलपरिणामे Translated Sutra: बाईस परीषह कहे गए हैं। जैसे – दिगिंछा (बुभुक्षा) परीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, चर्यापरीषह, निषद्यापरीषह, शय्यापरीषह, आक्रोश – परीषह, वधपरीषह, याचनापरीषह, अलाभपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह, जल्लपरीषह, सत्कार – पुरस्कार – परीषह, प्रज्ञापरीषह, अज्ञानपरीषह | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२७ |
Hindi | 61 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तावीसं अनगारगुणा पन्नत्ता, तं जहा–
पाणातिवायवेरमणे मुसावायवेरमणे अदिन्नादानवेरमणे मेहुणवेरमणे परिग्गहवेरमणे सोइंदियनिग्गहे चक्खिंदियनिग्गहे घाणिंदियनिग्गहे जिब्भिंदियनिग्गहे फासिंदियनिग्गहे कोहविवेगे माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे भावसच्चे करणसच्चे जोगसच्चे खमा विरागता मनसमाहरणता वतिसमाहरणता कायसमाहरणता नाणसंपण्णया दंसणसंपण्णया चरित्तसंपण्णया वेयण-अहियासणया मारणंतियअहियासणया।
जंबुद्दीवे दीवे अभिइवज्जेहिं सत्तावीसाए नक्खत्तेहिं संववहारे वट्टति।
एगमेगे णं नक्खत्तमासे सत्तावीसं राइंदियाइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: अनगार – निर्ग्रन्थ साधुओं के सत्ताईस गुण हैं। जैसे – प्राणातिपात – विरमण, मृषावाद – विरमण, अदत्तादान – विरमण, मैथुन – विरमण, परिग्रह – विरमण, श्रोत्रेन्द्रिय – निग्रह, चक्षुरिन्द्रिय – निग्रह, घ्राणेन्द्रिय – निग्रह, जिह्वेन्द्रिय – निग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय – निग्रह, क्रोधविवेक, मानविवेक, मायाविवेक, लोभविवेक, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२८ |
Hindi | 62 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे पन्नत्ते, तं जहा–
मासियाआरोवणा, सपंचरायमासिया आरोवणा, सदसरायमासिया आरोवणा, सपन्नरस-रायमासिया आरोवणा, सवीसइरायमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायमासिया आरोवणा।
दोमासिया आरोवणा, सपंचरायदोमासिया आरोवणा, सदसरायदोमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायदोमासिया आरोवणा, सवीसइरायदोमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायदोमासिया आरोवणा।
तेमासिया आरोवणा, सपंचरायतेमासिया आरोवणा, सदसरायतेमासिया आरोवणा, सपन्नरसरायतेमासिया आरोवणा, सवीसइरायतेमासिया आरोवणा, सपंचवीसरायतेमासिया आरोवणा।
चउमासियाआरोवणा, सपंचरायचउमासियाआरोवणा, सदसरायचउमासियाआरोवणा, सपन्नरसरायचउमासिया Translated Sutra: आचारप्रकल्प अट्ठाईस प्रकार का है। मासिकी आरोपणा, सपंचरात्रिमासिकी आरोपणा, सदशरात्रि – मासिकी आरोपणा, सपंचदशरात्रिमासिकी आरोपणा, सविशतिरात्रिकोमासिकी आरोपणा, सपंचविशत्तिरात्रि – मासिकी आरोपणा। इसी प्रकार छ द्विमासिकी आरोपणा, ६ त्रिमासिकी आरोपणा, ६ चतुर्मासिकी आरोपणा, उपघातिका आरोपणा, अनुपघातिका आरोपणा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२९ |
Hindi | 63 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगूणतीसइविहे पावसुयपसंगे णं पन्नत्ते, तं जहा–
भोमे उप्पाए सुमिणे अंतलिक्खे अंगे सरे वंजणे लक्खणे।
भोमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा– सुत्ते वित्ती वत्तिए, एवं एक्केक्कं तिविहं। विकहानुजोगे विज्जाणुजोगे मंताणुजोगे जोगाणुजोगे अन्नतित्थियपवत्ताणुजोगे।
आसाढे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
भद्दवए णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
कत्तिए णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
पोसे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
फग्गुणे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
वइसाहे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं Translated Sutra: पापश्रुतप्रसंग – पापों के उपार्जन करने वाले शास्त्रों का श्रवण – सेवन उनतीस प्रकार का है। जैसे – भौमश्रुत, उत्पातश्रुत, स्वप्नश्रुत, अन्तरिक्षश्रुत, अंगश्रुत, स्वरश्रुत, व्यंजनश्रुत, लक्षणश्रुत। भौमश्रुत तीन प्रकार का है, जैसे – सूत्र, वृत्ति और वार्तिक। इन तीन भेदों से उपर्युक्त भौम, उत्पात आदि आठों प्रकार | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३२ |
Hindi | 103 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आलोयणा निरवलावे, आवईसु दढधम्मया ।
अणिस्सिओवहाणे य, सिक्खा निप्पडिकम्मया ॥ Translated Sutra: आलोचना – व्रत – शुद्धि के लिए शिष्य अपने दोषों की गुरु के आगे आलोचना करे। निरपलाप – शिष्य – कथित दोषों को आचार्य किसी के आगे न कहे। आपत्सु दृढ़धर्मता – आपत्तियों के आने पर साधक अपने धर्म से दृढ़ रहे। अनिश्रितोपधान – दूसरे के आश्रय की अपेक्षा न करके तपश्चरण करे। शिक्षा – सूत्र और अर्थ का पठन – पाठन एवं अभ्यास करे। निष्प्रतिकर्मता | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३२ |
Hindi | 106 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पच्चक्खाणे विउस्सग्गे, अप्पमादे लवालवे ।
ज्झाणसंवरजोगे य, उदए मारणंतिए ॥ Translated Sutra: मूलगुण – प्रत्याख्यान – अहिंसादि मूल गुण विषयक प्रत्याख्यान करे। उत्तर – गुण – प्रत्याख्यान – इन्द्रिय – निरोध आदि उत्तर – गुण – विषयक प्रत्याख्यान करे। व्युत्सर्ग – वस्त्र – पात्र आद बाहरी उपधि और मूर्च्छा आदि आभ्यन्तर उपधि को त्यागे। अप्रमाद – अपने दैवसिक और रात्रिक आवश्यकों के पालन आदि में प्रमाद न करे। लवालव | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३२ |
Hindi | 107 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संगाणं च परिण्णा, पायच्छित्तकरणेत्ति य ।
आराहणा य मरणंते, बत्तीसं जोगसंगहा ॥ Translated Sutra: संग – परिज्ञा – संग (परिग्रह) की परिज्ञा करे अर्थात् उसके स्वरूप को जानकर त्याग करे। प्रायश्चित्तकरण – अपने दोषों की शुद्धि के लिए नित्य प्रायश्चित्त करे। मारणान्तिक – आराधना – मरने के समय संलेखना – पूर्वक ज्ञान – दर्शन, चारित्र और तप की विशिष्ट आराधना करे। यह बत्रीस योग संग्रह हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३४ |
Hindi | 110 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं Translated Sutra: बुद्धों के अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३७ |
Hindi | 113 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कुंथूस्स णं अरहओ सत्ततीसं गणा, सत्ततीसं गणहरा होत्था।
हेमवयहेरण्णवइयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणसहस्साइं छच्च चोवत्तरे जोयणसए सोलसयएगूणवीसइभाए जोयणस्स किंचिविसेसूणाओ आयामेणं पन्नत्ताओ।
सव्वासु णं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियासु रायहाणीसु पागारा सत्ततीसं-सत्ततीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
खुड्डियाए णं विमाणप्पविभत्तीए पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसनकाला पन्नत्ता।
कत्तियबहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततीसंगुलियं पोरिसिच्छायं निव्वत्तइत्ता णं चारं चरइ। Translated Sutra: कुन्थु अर्हन् के सैंतीस गण और सैंतीस गणधर थे। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की जीवाएं सैंतीस हजार छह सौ चौहतर योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से कुछ कम सोलह भाग लम्बी कही गई हैं। क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति नामक कालिकश्रुत के प्रथम वर्ग में सैंतीस उद्देशनकाल हैं। कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 215 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तं जहा–आयारे सूयगडे ठाणे समवाए विआहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुए दिट्ठिवाए।
से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंगाणं आयार-गोयर-विनय-वेनइय-ट्ठाण-गमन-चंकमण-पमाण-जोगजुंजण-भासा-समिति-गुत्ती-सेज्जोवहि-भत्तपाण-उग्गम-उप्पायणएसणाविसोहि-सुद्धासुद्धग्ग-हण-वय-नियम-तवोवहाण-सुप्पसत्थमाहिज्जइ।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे दंसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियायारे।
आयारस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा Translated Sutra: गणिपिटक द्वादश अंग स्वरूप है। वे अंग इस प्रकार हैं – आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद। यह आचारांग क्या है ? इसमें क्या वर्णन किया गया है ? आचारांग में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार, गौचरी, विनय, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 219 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तव्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइणं च परूवणया आघविज्जति।
ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अनुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जु-त्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एक्कवीसं उद्देसनकाला एक्कवीसं समुद्देसनकाला बावत्तरिं पयसह-स्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अनंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा निबद्धा निकाइया जिनपन्नत्ता भावा आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति।
से एवं Translated Sutra: तथा एक – एक प्रकार के पदार्थों का, दो – दो प्रकार के पदार्थों का यावत् दश – दश प्रकार के पदार्थों का कथन किया गया है। जीवों का, पुद्गलों का तथा लोक में अवस्थित धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का भी प्ररूपण किया गया है। स्थानाङ्ग की वाचनाएं परीत (सीमित) हैं, अनुयोगद्वार संख्यात हैं, प्रतिपत्तियाँ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७२ |
Hindi | 150 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बावत्तरिं सुवण्णकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
लवणस्स समुद्दस्स बावत्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारंति।
समणे भगवं महावीरे बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
थेरे णं अयलभाया बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
अब्भंतरपुक्खरद्धे णं बावत्तरिं चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा बावत्तरिं सूरिया तविंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा।
एगमेगस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावत्तरिं पुरवरसाहस्सीओ पन्नत्ताओ।
बावत्तरिं कलाओ Translated Sutra: सुपर्णकुमार देवों के बहत्तर लाख आवास (भवन) कहे गए हैं। लवण समुद्र की बाहरी वेला को बहत्तर हजार नाग धारण करते हैं। श्रमण भगवान महावीर बहत्तर वर्ष की सर्व आयु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित हुए। आभ्यन्तर पुष्करार्ध द्वीप में बहत्तर चन्द्र प्रकाश करते थे, प्रकाश | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-७७ |
Hindi | 156 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्तत्तरिं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमज्झावसित्ता महारायाभिसेयं संपत्ते।
अंगवंसाओ णं सत्तत्तरिं रायाणी मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइया।
गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्तत्तरिं देवसहस्सा परिवारा पन्नत्ता।
एगमेगे णं मुहुत्ते सत्तत्तरिं लवे लवग्गेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा सतहत्तर लाख पूर्व कोटि वर्ष कुमार अवस्था में रहकर महाराजपद को प्राप्त हुए – राजा हुए। अंगवंश की परम्परा में उत्पन्न हुए सतहत्तर राजा मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए। गर्दतोय और तुषित लोकान्तिक देवों का परिवार सतहत्तर हजार देवों वाला है। प्रत्येक मुहूर्त्त में | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 190 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महासुक्क-सहस्सारेसु–दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ठ-अट्ठ जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएसु वाणमंतर-भोमेज्ज-विहारा पन्नत्ता।
समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अट्ठसया अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइकल्लाणाणं ठिइ-कल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिआ अनुत्तरोववाइयसंपया होत्था।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठहिं जोयणसएहिं सूरिए चारं चरति।
अरहओ णं अरिट्ठनेमिस्स अट्ठ सयाइं वाईणं सदेवमणुयासुरम्मि लोगम्मि वाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था। Translated Sutra: महाशुक्र और सहस्रार इन दो कल्पों में विमान आठ सौ योजन ऊंचे हैं। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम कांड के मध्यवर्ती आठ सौ योजनों में वानव्यवहार भौमेयक देवों के विहार कहे गए हैं। श्रमण भगवान महावीर के कल्याणमय गति और स्थिति वाले तथा भविष्य में मुक्ति प्राप्त करने वाले अनु – त्तरीपपातिक मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 193 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
[सूत्र] पासस्स णं अरहओ इक्कारससयाइं वेउव्वियाणं होत्था। Translated Sutra: अनुत्तरौपपातिक देवों के विमान ग्यारह सौ योजन ऊंचे कहे गए हैं। पार्श्व अर्हत् के संघ में ११०० वैक्रिय लब्धि से सम्पन्न साधु थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 223 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वनसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, उवासयाणं च सीलव्वय-वेरमण-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणयाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्थर-धम्मसवणाणि बोहिलाभ-अभिगम-सम्मत्तविसुद्धया थिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा ठिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमा-भिग्गहग्गहणं-पालणा उवसग्गाहियासणा Translated Sutra: उपासकदशा क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? उपासकदशा में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, उपासकों के शीलव्रत, पाप – विरमण, गुण, प्रत्याख्यान, पोषधो – पवास – प्रतिपत्ति, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, ग्यारह प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 224 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमाओ बहुविहाओ, खमा अज्जवं मद्दवं च, सोअं च सच्चसहियं, सत्तरसविहो य संजमो उत्तमं च बंभं, आकिंचणया तवो चियाओ समिइगुत्तीओ चेव, तहं अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण य उत्तमाणं दोण्हंपि लक्खणाइं।
पत्ताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चउव्विहकम्मक्खयम्मि जह केवलस्स लंभो, परियाओ जत्तिओ य जह पालिओ मुणिहिं, पायोवगओ य जो जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता अंतगडो मुणिवरो Translated Sutra: अन्तकृद्दशा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? अन्तकृत्दशाओं में कर्मों का अन्त करने वाले महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, अनेक प्रकार की प्रतिमाएं, क्षमा, आर्जव, मार्दव, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 226 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाणि?
पण्हावागरणेसु अट्ठुत्तरं पसिणसयं अट्ठुत्तरं अपसिणसयं अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति।
पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पन्नवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासा-भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-नाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खीम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिण-विज्जा-मनपसिणविज्जा-देवय-पओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव-नरगणमइ-विम्हयकारीणं अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुर- वगाहस्स Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्नों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्ना – प्रश्नों को, विद्याओं को, अतिशयों को तथा नागों – सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों को कहा गया है। प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय – परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के विविध अर्थों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 227 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुए?
विवागसुए णं सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जति।
ते समासओ दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– दुहविवागे चेव, सुहविवागे चेव।
तत्थ णं दह दुहविवागाणि दह सुहविवागाणि।
से किं तं दुहविवागाणि?
दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ नगरगमणाइं संसारपबंधे दुहपरंपराओ य आघविज्जति।
सेत्तं दुहविवागाणि।
से किं तं सुहविवागाणि?
सुहविवागेसु सुहविवागाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया Translated Sutra: विपाकसूत्र क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? विपाकसूत्र में सुकृत (पुण्य) और दुष्कृत (पाप) कर्मों का विपाक कहा गया है। यह विपाक संक्षेप से दो प्रकार का है – दुःख विपाक और सुख – विपाक। इनमें दुःख – विपाक में दश अध्ययन हैं और सुख – विपाक में भी दश अध्ययन हैं। यह दुःख विपाक क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दुःख – विपाक में | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 228 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणया आघविज्जति। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिकम्मं सुत्ताइं पुव्वगयं अनुओगे चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाहणसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चोद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउयापयाणि २. एगट्ठियपयाणि ३. अट्ठपयाणि ४. पाढो ५. आगासपयाणि ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं १०. तिगुणं Translated Sutra: यह दृष्टिवाद अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? दृष्टिवाद अंग में सर्व भावों की प्ररूपणा की जाती है। वह संक्षेप से पाँच प्रकार का कहा गया है। जैसे – परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म क्या है ? परिकर्म सात प्रकार का कहा गया है। जैसे – सिद्धश्रेणीका परिकर्म, मनुष्यश्रेणिका परि – कर्म, पृष्टश्रेणिका | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 232 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए।
से किं तं अणुओगे?
अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य।
से किं तं मूलपढमाणुओगे?
मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का Translated Sutra: वह अनुयोग क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे – मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिबिका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 233 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा आणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अनंता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवइंसु।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्ने काले परित्ता जीवा आणाए आराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं विइवयंति।
इच्चेतं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की सूत्र रूप, अर्थरूप और उभयरूप आज्ञा का विराधन करके अर्थात् दुराग्रह के वशीभूत होकर अन्यथा सूत्रपाठ करके, अन्यथा अर्थकथन करके और अन्यथा सूत्रार्थ – उभय की प्ररूपणा करके अनन्त जीवों ने भूतकाल में चतुर्गतिरूप संसार – कान्तार (गहन वन) में परिभ्रमण किया है, इस द्वादशाङ्ग गणि – पिटक की | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 234 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दुवे रासी पन्नत्ता, तं जहा–जीवरासी अजीवरासी य।
अजीवरासी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– रूविअजीवरासी अरूविअजीवरासी य।
से किं तं अरूविअजीवरासी?
अरूविअजीवरासी दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। जाव–
से किं तं अनुत्तरोववाइआ?
अनुत्तरोववाइओ पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजित-सव्वट्ठसिद्धिया। सेत्तं अनुत्तरोववाइया। सेत्तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी।
दुविहा णेरइया पन्नत्ता, Translated Sutra: दो राशियाँ कही गई हैं – जीवराशि और अजीवराशि। अजीवराशि दो प्रकार की कही गई है – रूपी अजीव – राशि और अरूपी अजीवराशि। अरूपी अजीवराशि क्या है ? अरूपी अजीवराशि दश प्रकार की कही गई है। जैसे – धर्मास्तिकाय यावत् (धर्मास्तिकाय देश, धर्मास्तिकाय प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय देश, अधर्मास्तिकाय प्रदेश, आकाशा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 238 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवइया णं भंते! असुरकुमारावासा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए चउसट्ठिं असुरकुमारावाससयसहस्सा पन्नत्ता ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पोक्खरकण्णियासंठाणसंठिया उक्किन्नंतर-विपुल-गंभीर-खात-फलिया अट्टालयच-रिय-दारगोउर-कवाड-तोरण-पडिदुवार-देसभागा जंत-मुसल-मुसुंढि-सतग्घि-परिवारिया अउज्झा अडयाल-कोट्ठय-रइया अडयाल-कय-वणमाला लाउल्लोइयमहिया गोसीस-सरसरत्तचंदण-दद्दर-दिण्णपंचंगुलितला कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-उज्झंत-धूव-मघ-मघेंत-गंधुद्धुयाभिरामा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के आवास (भवन) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! इस एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली रत्नप्रभा पृथ्वी में ऊपर से एक हजार योजन अवगाहन कर और नीचे एक हजार योजन छोड़कर मध्यवर्ती एक लाख अठहत्तर हजार योजन में रत्नप्रभा पृथ्वी के भीतर असुरकुमारों के चौसठ लाख भवनावास कहे गए हैं। वे भवन बाहर गोल हैं, भीतर चौकोण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 246 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
ओरालियसरीरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा– एगिंदियओरालियसरीरे जाव गब्भवक्कंतियमनुस्स-पंचिंदियओरालियसरीरे य।
ओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं।
एवं जहा ओगाहणासंठाणे ओरालियपमाणं तहा निरवसेसं। एवं जाव मणुस्सेत्ति उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं।
कइविहे णं भंते! वेउव्वियसरीरे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते–एगिंदियवेउव्वियसरीरे य पंचिंदियवेउव्वियसरीरे Translated Sutra: भगवन् ! शरीर कितने कहे गए हैं ? गौतम ! शरीर पाँच कहे गए हैं – औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक शरीर, तैजस शरीर और कार्मण शरीर। भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गए हैं। जैसे – एकेन्द्रिय औदारिक शरीर, यावत् गर्भजमनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर तक जानना चाहिए। भगवन् ! औदारिक | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 253 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! संघयणे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे संघयणे पन्नत्ते, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणे रिसभनारायसंघयणे नारायसंघयणे अद्धनारायसंघयणे खालियासंघयणे छेवट्टसंघयणे।
नेरइया णं भंते! किंसंघयणी?
गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू, जे पोग्गला अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति।
असुरकुमारा णं भंते? किंसंघयणी पन्नत्ता?
गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू, जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति।
एवं जाव थणियकुमारत्ति।
पुढवीकाइया णं भंते? Translated Sutra: भगवन् ! संहनन कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संहनन छह प्रकार का कहा गया है। जैसे – वज्रर्षभ नाराच संहनन, ऋषभनाराच संहनन, नाराच संहनन, अर्धनाराच संहनन, कीलिका संहनन और सेवार्त संहनन। भगवन् ! नारक किस संहनन वाले कहे गए हैं ? गौतम ! नारकों के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है। वे असंहननी होते हैं, क्योंकि | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 254 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहे णं भंते! वेए पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा–इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए।
नेरइया णं भंते! किं इत्थीवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया पन्नत्ता?
गोयमा! नो इत्थिवेया नो पुंवेया, नपुंसगवेया पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं भंते! किं इत्थिवेया पुरिसवेया नपुंसगवेया?
गोयमा! इत्थिवेया पुरिसवेया, नो नपुंसगवेया जाव थणियत्ति।
पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फइ-बि-ति-चउरिंदिय-संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख-संमुच्छिममनुस्सा नपुंसगवेया।
गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचेंदियतिरिया य तिवेया।
जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया वेमाणियावि। Translated Sutra: भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वेद तीन हैं – स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद। भगवन् ! नारक जीव क्या स्त्री वेद वाले हैं, अथवा पुरुष वेद वाले हैं ? गौतम ! नारक जीव न स्त्री वेद वाले हैं, न पुरुष वेद वाले हैं, किन्तु नपुंसक वेद वाले होते हैं। भगवन् ! असुरकुमार देव स्त्री वेद वाले हैं, पुरुष वेद वाले हैं अथवा | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 276 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउवीसं सीया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शिबिकाएं (पालकियाँ) थीं। (जिन पर बिराजमान होकर तीर्थंकर प्रव्रज्या के लिए वन में गए।) जैसे – १. सुदर्शना शिबिका, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. सुप्रभा, १४. विमला, १५. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 279 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अभयकर निव्वुतिकरी, मनोरमा तह मनोहरा चेव ।
देवकुरु उत्तरकुरा, विसाल चंदप्पभा सीया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७६ | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 327 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 360 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वभविया चउवीसं नामधेज्जा भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: इन भविष्यकालीन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौबीस नाम इस प्रकार हैं, यथा – १. श्रेणिक, २. सुपार्श्व, ३. उदय, ४. प्रोष्ठिल अनगार, ५. दृढ़ायु, ६. कार्तिक, ७. शंख, ८. नन्द, ९. सुनन्द, १०. शतक, ११. देवकी, १२. सात्यकि, १३. वासुदेव, १४. बलदेव, १५. रोहिणी, १६. सुलसा, १७. रेवती, १८. शताली, १९. भयाली, २०. द्वीपायन, २१. नारद, २२. अंबड, २३. स्वाति, | |||||||||
Samavayang | સમવયાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवाय-१० |
Gujarati | 18 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
चउत्थीए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
असुरिंदवज्जाणं भोमेज्जाणं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
बायरवणप्फतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साइं Translated Sutra: આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં કેટલાક નૈરયિકોની જઘન્ય ૧૦,૦૦૦ વર્ષ સ્થિતિ છે. રત્નપ્રભામાં કેટલાક નૈરયિકોની દશ પલ્યોપમ સ્થિતિ છે. ચોથી નરકમાં દશ લાખ નરકાવાસ છે. ચોથી પૃથ્વીમાં નારકોની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ દશ સાગરોપમ છે. પાંચમી નરકમાં નારકોની જઘન્ય સ્થિતિ દશ સાગરોપમ છે. અસુરકુમારોની જઘન્ય સ્થિતિ ૧૦,૦૦૦ વર્ષ છે. અસુરેન્દ્ર |