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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 383 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियपयोगपरिणया, बेइंदियपयोगपरिणया, तेइंदिय-पयोग-परिणया, चउरिंदियपयोगपरिणया, पंचिंदियपयोगपरिणया। एगिंदियपयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया, आउकाइयएगिंदिय-पयोगपरिणया, तेउकाइय-एगिंदियपयोगपरिणया, वाउकाइय-एगिंदियपयोगपरिणया, वणस्सइ-काइय-एगिंदियपयोगपरिणया। पुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणया, बादरपुढवि-काइयएगिंदियपयोगपरिणया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रयोग – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के कहे गए हैं, एकेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत यावत्‌, त्रीन्द्रिय – प्रयोग – परिणत, चतुरिन्द्रिय – प्रयोग – परिणत, पंचेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत पुद्‌गल। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय – प्रयोग – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 384 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मीसापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया। एगिंदियमीसापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? एवं जहा पयोगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया, एवं मीसापरिणएहिं वि नव दंडगा भाणियव्वा, तहेव सव्वं निरवसेसं, नवरं–अभिलावो मीसापरिणया भाणियव्वं, सेसं तं चेव जाव जे पज्जत्ता-सव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइय जाव आयतसंठाणपरिणया वि।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मिश्रपरिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – एकेन्द्रिय – मिश्रपरिणत पुद्‌गल यावत्‌ पंचेन्द्रिय – मिश्रपरिणत पुद्‌गल। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय – मिश्रपुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! प्रयोगपरिणत पुद्‌गलों के समान मिश्र – परिणत पुद्‌गलों के विषय में भी नौ दण्डक कहना। विशेषता यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 385 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीससापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया। जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– कालवण्णपरिणया जाव सुक्किल-वण्णपरिणया। जे गंधपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणया, दुब्भिगंधपरिणया। जे रसपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–तित्तरसपरिणया जाव महुररसपरिणया। जे फासपरिणया ते अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–कक्खडफासपरिणया जाव लुक्खफास- परिणया। जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणया जाव आयतसंठाण परिणया। जे वण्णओ कालवण्णपरिणया ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! विस्रसा – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत। जो पुद्‌गल वर्णपरिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा – कृष्णवर्ण के रूप में परिणत यावत्‌ शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्‌गल। जो गन्ध – परिणत – पुद्‌गल हैं, वे दो प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 386 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! दव्वे किं पयोगपरिणए? मीसापरिणए? वीससापरिणए? गोयमा! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा। जइ पयोगपरिणए किं मनपयोगपरिणए? वइपयोगपरिणए? कायपयोगपरिणए? गोयमा! मनपयोगपरिणए वा, वइपयोगपरिणए वा, कायपयोगपरिणए वा। जइ मनपयोगपरिणए किं सच्चमनपयोगपरिणए? मोसमनपयोगपरिणए? सच्चामोसमन-पयोग-परिणए? असच्चामोसमनपयोगपरिणए? गोयमा! सच्चमनपयोगपरिणए वा, मोसमनपयोगपरिणए वा, सच्चामोसमनपयोगपरिणए वा, असच्चामोसमनपयोगपरिणए वा। जइ सच्चमनपयोगपरिणए किं आरंभसच्चमनपयोगपरिणए? अनारंभसच्चमनपयोग-परिणए? सारंभसच्चमनपयोगपरिणए? असारंभसच्चमनपयोगपरिणए? समारंभसच्चमनपयोग-परिणए? असमारंभसच्चमनपयोगपरिणए? गोयमा!

Translated Sutra: गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्रसापरिणत होता है ? गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा विस्रसापरिणत भी होता है। भगवन्‌ ! यदि एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन – प्रयोग परिणत होता है, अथवा काय – प्रयोग – परिणत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 387 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते दव्वा! किं पयोगपरिणया? मीसापरिणया? वीससापरिणया? गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. मीसापरिणया वा ३. वीससापरिणया वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, एगे मीसापरिणए ५. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए ६. अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए। जइ पयोगपरिणया किं मनपयोगपरिणया? वइपयोगपरिणया? कायपयोगपरिणया? गोयमा! १. मनपयोगपरिणया वा २. वइपयोगपरिणया वा ३. कायपयोगपरिणया वा ४. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे वइपयोगपरिणए ५. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए ६. अहवेगे वइपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए। जइ मनपयोगपरिणया किं सच्चमनपयोगपरिणया? असच्चमनपयोगपरिणया? सच्चमोसमनपयोगपरिणया? असच्चमोसमनपयोगपरिणया? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ? गौतम ! वे प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होते हैं और दूसरा मिश्रपरिणत होता है; या एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 388 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! पोग्गलाणं पयोगपरिणयाणं, मीसापरिणयाणं, वीससापरिणयाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पोग्गला पयोगपरिणया, मीसापरिणया अनंतगुणा, वीससापरिणया अनंतगुणा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत, इन तीनों प्रकार के पुद्‌गलों में कौन – से (पुद्‌गल), किन (पुद्‌गलों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रयोगपरिणत पुद्‌गल सबसे थोड़े हैं, उनसे मिश्रपरिणत पुद्‌गल अनन्तगुणे और उनसे विस्रसापरिणत पुद्‌गल अनन्तगुणे हैं। ‘भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 389 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आसीविसा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता, तं जहा– जातिआसीविसा य, कम्मआसीविसा य। जातिआसीविसा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विच्छुयजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजाति-आसीविसे, मनुस्सजातिआसीविसे। विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विस ट्ठयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं। जाति – आशीविष और कर्म – आशीविष भगवन्‌ ! जाति – आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के जैसे – वृश्चिकजाति – आशीविष, मण्डूक – जाति – आशीविष, उरगजाति – आशीविष और मनुष्यजाति – आशीविष। भगवन्‌ ! वृश्चिकजाति – आशीविष का कितना विषय है ? गौतम ! वह अर्द्धभरतक्षेत्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 390 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दस ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणइ न पासइ, तं जहा–१. धम्मत्थिकायं २. अधम्मत्थिकायं ३. आगासत्थिकायं ४. जीवं असरीरपडिबद्धं ५. परमाणुपोग्गलं ६. सद्दं ७. गंधं ८. वातं ९. अयं जिने भविस्सइ वा न वा भविस्सइ १. अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ। एयाणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणइ-पासइ, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, अयं जिने भविस्सइ वा न वा भविस्सइ, अयं सव्वदु-क्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ।

Translated Sutra: छद्मस्थ पुरुष इन दस स्थानों को सर्वभाव से नहीं जानता और नहीं देखता। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति – काय, आकाशास्तिकाय, शरीर से रहित जीव, परमाणुपुद्‌गल, शब्द, गन्ध, वायु, यह जीव जिन होगा या नहीं ? तथा यह जीव सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं ? इन्हीं दस स्थानों को उत्पन्न (केवल) ज्ञान – दर्शन के धारक अरिहन्त – जिनकेवली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 391 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे। से किं तं आभिनिबोहियनाणे? आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे। अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे। से किं तं मइअन्नाणे? मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। से किं तं ओग्गहे? ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। राजप्रश्नीयसूत्र में ज्ञानों के भेद के कथनानुसार ‘यह है वह केवल – ज्ञान’; यहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 392 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरयगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। तिन्नि नाणाइं नियमा, तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए। तिरियगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा। मनुस्सगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! तिन्नि नाणाइं भयणाए, दो अन्नाणाइं नियमा। देवगतिया जहा निरयगतिया। सिद्धगतिया णं भंते! जीवा किं नाणी? जहा सिद्धा। सइंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! चत्तारि नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए। एगिंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी? जहा पुढविकाइया। बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिया णं दो नाणा, दो अन्नाणा नियमा। पंचिंदिया जहा सइंदिया। अनिंदिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! निरयगतिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं, वे भजना से तीन अज्ञान वाले हैं। भगवन्‌ ! तिर्यंचगतिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! उनमें नियमतः दो ज्ञान या दो अज्ञान होते हैं। भगवन्‌ ! मनुष्यगतिक जीव ज्ञानी हैं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 393 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते लद्धी पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा लद्धी पन्नत्ता, तं जहा–१. नाणलद्धी २. दंसणलद्धी ३. चरित्तलद्धी ४. चरित्ताचरित्तलद्धी ५. दानलद्धी ६. लाभलद्धी ७. भोगलद्धी ८. उवभोगलद्धी ९. वीरियलद्धी १. इंदियलद्धी। नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–आभिनिबोहियनाणलद्धी जाव केवलनाणलद्धी। अन्नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–मइअन्नाणलद्धी, सुयअन्नाणलद्धी, विभंगनाणलद्धी। दंसणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मदंसणलद्धी, मिच्छादंसणलद्धी, सम्मामिच्छा-दंसणलद्धी। चरित्तलद्धी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लब्धि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! लब्धि दस प्रकार की कही गई है – ज्ञानलब्धि, दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि और इन्द्रियलब्धि। भगवन्‌ ! ज्ञानलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, यथा – आभिनिबोधिकज्ञान – लब्धि यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 394 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? पंच नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए। आभिनिबोहियनाणसागारोवउत्ता णं भंते? चत्तारि नाणाइं भयणाए। एवं सुयनाणसागारोवउत्ता वि। ओहिनाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया। मनपज्जवनाणसागारोवउत्ता जहा मनपज्जवनाणलद्धीया। केवलनाण-सागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धीया। मइअन्नाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए। एवं सुयअन्नाणसागारोवउत्ता वि। विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाइं नियमा। अनगारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? पंच नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए। एवं चक्खुदंसण-अचक्खुदंसणअनागारोवउत्ता वि,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं, जो ज्ञानी होते हैं, उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं और जो अज्ञानी होते हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान – साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम !
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 395 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 396 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणी णं भंते! नाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! नाणी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सादीए वा अपज्जवसिए २. सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से सादीए सप-ज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं सातिरेगाइं। आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहिय नाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! एवं चेव। एवं सुयनाणी वि। ओहिनाणी वि एवं चेव, नवरं–जहन्नेणं एक्कं समयं। मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। केवलनाणी णं भंते! केवलनाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। अन्नाणी, मइअन्नाणी,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानी ’ज्ञानी’ के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं। – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें से जो सादि – सपर्यवसित ज्ञानी हैं, वे जघन्यतः अन्तमुहूर्त्त तक और उत्कृष्टतः कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक ज्ञानीरूप में रहते हैं। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबो – धिकज्ञानी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-३ वृक्ष Hindi 397 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! रुक्खा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा रुक्खा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जजीविया, असंखेज्जजीविया, अनंतजीविया से किं तं संखेज्जजीविया? संखेज्जजीविया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा– ताल तमाले तक्कलि, तेयलि साले य सालकल्लाणे ।सरले जावति केयइ, कंदलि तह चम्मरुक्खे य भुयरुक्ख हिंगुरुक्खे, लवंगरुक्खे य होति बोधव्वे । पूयफली खज्जूरी, बोधव्वा नालिएरी य ॥ जे यावण्णे तहप्पगारा। सेत्तं संखेज्जजीविया। से किं तं असंखेज्जजीविया? असंखेज्जजीविया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगट्ठिया य बहुबीयगा य। से किं तं एगट्ठिया? एगट्ठिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा– निबंब जंबु कोसंब, साल अंकोल्ल

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! वृक्ष तीन प्रकार के कहे गए हैं, संख्यात जीव वाले, असंख्यात जीव वाले और अनन्त जीव वाले। भगवन्‌ ! संख्यातजीव वाले वृक्ष कौन – से हैं ? गौतम ! अनेकविध, जैसे – ताड़, तमाल, तक्कलि, तेतली इत्यादि, प्रज्ञापनासूत्र में कहे अनुसार नारिकेल पर्यन्त जानना। ये और इस प्रकार के जितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-३ वृक्ष Hindi 398 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अह भंते! कुम्मे, कुम्मावलिया, गोहा, गोहावलिया, गोणा, गोणावलिया, मनुस्से, मनुस्सावलिया, महिसे, महिसावलिया–एएसि णं दुहा वा तिहा वा संखेज्जहा वा छिन्नाणं जे अंतरा ते वि णं तेहिं जीवपएसेहिं फुडा? हंता फुडा। पुरिसे णं भंते! अंतरे हत्थेण वा पादेण वा अंगुलियाए वा सलागाए वा कट्ठेण वा किलिंचेण वा आमुसमाणे वा संमुसमाणे वा आलिहमाणे वा विलिहमाणे वा अन्नयरेसु ण वा तिक्खेणं सत्थजाएणं आछिंदमाणे वा विछिंदमाणे वा, अगनिकाए वा समोडहमाणे तेसिं जीवपएसाणं किंचि आबाहं वा विबाहं वा उप्पाएइ? छविच्छेदं वा करेइ? नो तिणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कछुआ, कछुओं की श्रेणी, गोधा, गोधा की श्रेणी, गाय, गायों की पंक्ति, मनुष्य, मनुष्यों की पंक्ति, भैंसा, भैंसों की पंक्ति, इन सबके दो या तीन अथवा संख्यात खण्ड किये जाएं तो उनके बीच का भाग क्या जीवप्रदेशों में स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! वह स्पृष्ट होता है। भगवन्‌ ! कोई पुरुष उन कछुए आदि के खण्डों के बीच के भाग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-३ वृक्ष Hindi 399 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा, ईसीपब्भारा। इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी किं चरिमा? अचरिमा? चरिमपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव– वेमाणिया णं भंते! फासचरिमेणं किं चरिमा? अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि, अचरिमा वि। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ – रत्नप्रभापृथ्वी यावत्‌ अधःसप्तमा पृथ्वी और ईषत्प्राग्भारा। भगवन्‌ ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी चरम है, अथवा अचरम ? यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का चरमपद। वैमानिक तक कहना। गौतम ! वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-४ क्रिया Hindi 400 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! किरियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! पंच किरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– काइया, अहिगरणिया, पाओसिया, पारिया-वणिया, पाणाइवायकिरिया–एवं किरियापदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव सव्वत्थोवाओ मिच्छादंसण-वत्तियाओ किरियाओ, अप्पच्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ, पारिग्गहियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसा-हियाओ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन्‌ ! क्रियाएं कितनी हैं ? गौतम ! पाँच – कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र क्रियापद – ‘माया – प्रत्ययिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं;’ – यहाँ तक कहना चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 401 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–आजीविया णं भंते! थेरे भगवंते एवं वयासी–समणोवासगस्स णं भंते! सामाइय-कडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, से णं भंते! तं भंडं अनुगवेसमाणे किं सभंडं अनुगवेसइ? परायगं भंडं अनुगवेसइ? गोयमा! सभंडं अनुगवेसइ, नो परायगं भंडं अनुगवेसइ। तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवइ? हंता भवइ। से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सभंडं अनुगवेसइ, नो परायगं भंडं अनुगवेसइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे हिरण्णे, नो मे सुवण्णे, नो मे कंसे, नो मे दूसे, नो मे विपुलधन-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणमादीए

Translated Sutra: राजगृह नगर के यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन्‌ ! आजीविकों ने स्थविर भगवंतों से पूछा कि ‘सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए किसी श्रावक के भाण्ड – वस्त्र आदि सामान को कोई अपहरण कर ले जाए, वह उस भाण्ड – वस्त्रादि सामान का अन्वेषण करे तो क्या वह अपने सामान का अन्वेषण करता है या पराये सामान का ? गौतम ! वह अपने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 402 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ? हंता भवइ। से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते एवं वुच्चइ–जायं चरइ? नो अजायं चरइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिनी, नो मे भज्जा, नो मे पुत्ता, नो मे धूया, नो मे सुण्हा; पेज्जबंधने पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जायं चरइ, नो अजायं चरइ। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ? गोयमा! तीयं पडिक्कमति, पडुप्पन्नं संवरेति, अनागयं पच्चक्खाति। तीयं पडिक्कममाणे किं १. तिविहं तिविहेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार किये हुए श्रावक का वह अपहृत भाण्ड उसके लिए तो अभाण्ड हो जाता है ? हाँ, गौतम ! वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है। भगवन्‌ ! तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का नहीं ? गौतम ! सामायिक आदि करने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 403 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आजीवियसमयस्स णं अयमट्ठे–अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता; से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपित्ता, विलुंपित्ता, उद्दवइत्ता आहारमाहारेंति। तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तं जहा–१. ताले २. तालपलंबे ३. उव्विहे ४. संविहे ५. अवविहे ६. उदए ७. नामुदए ८. णम्मुदए ९. अणुवालए १. संखवालए ११. अयंपुले १२. कायरए – इच्चेते दुवालस आजीविओवासगा अरहंतदेवतागा, अम्मापिउसुस्सूसगा, पंचफल-पडिक्कंता, तं जहा–उंबरेहिं, वडेहिं, बोरेहिं, सतरेहिं, पिलक्खूहिं पलंडु-ल्हसुणकंदमूलविवज्जगा, अनिल्लंछिएहिं अनक्कभिन्नेहिं गोणेहि तसपाणविवज्जिएहिं छेत्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। एए वि ताव एवं

Translated Sutra: आजीविक के सिद्धान्त का यह अर्थ है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी होते हैं। इसलिए वे हनन करके, काटकर, भेदन करके, कतर कर, उतार कर और विनष्ट करके खाते हैं। ऐसी स्थिति (संसार के समस्त जीव असंयत और हिंसादिदोषपरायण हैं) में आजीविक मत में ये बारह आजीविकोपासक हैं – ताल, तालप्रलम्ब, उद्विध, संविध, अवविध, उदय, नामोदय, नर्मोदय,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 404 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: कतिविहा णं भंते! देवलोगा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवलोगा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवलोक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के, यथा – भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 405 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिला-भेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से निज्जरा कज्जइ, नत्थि य से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! बहुतरिया से निज्जरा कज्जइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मं फासुएण वा, अफासुएण वा, एसणिज्जेण वा, अनेसणिज्जेण वा असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभे-माणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काइ निज्जरा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण अथवा माहन को प्रासुक एवं एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ? गौतम ! वह एकान्त रूप से निर्जरा करता है; उसके पापकर्म नहीं होता। भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 406 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए, अनुप्पविट्ठं केइ दोहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, एगं थेराणं दलयाहि। से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अनुगवेसियव्वा सिया। जत्थेव अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेव अनुप्पदायव्वे सिया, नो चेव णं अनुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अनावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमज्जित्ता परिट्ठावेयव्वे सिया। निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुप्पविट्ठं केइ तिहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जा–एगं आउसो! अप्पणा भुंजाहि, दो थेराणं दलयाहि। से य ते पडिग्गाहेज्जा,

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को कोई गृहस्थ दो पिण्ड ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे – ‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! इन दो पिण्डों में से एक पिण्ड आप स्वयं खाना और दूसरा पिण्ड स्थविर मुनियों को देना। वह निर्ग्रन्थ श्रमण उन दोनों पिण्डों को ग्रहण कर ले और स्थविरों की गवेषणा करे। गवेषणा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 407 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविट्ठेणं अन्नयरेसु अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति– इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि, पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, विउट्टामि, विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुट्ठेमि, अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि। १. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य पुव्वामेव अमुहा सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। २. से य संपट्ठिए असंपत्ते, अप्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया। से णं भंते! किं आराहए? विराहए? गोयमा! आराहए, नो विराहए। ३. से य संपट्ठिए असंपत्ते, थेरा य

Translated Sutra: गृहस्थ के घर आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्क्षण उसके मन में ऐसा विचार हो कि प्रथम मैं यहीं इस अकृत्यस्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दा और गर्हा करूँ; (उसके अनुबन्ध का) छेदन करूँ, इस (पाप – दोष से) विशुद्ध बनूँ, पुनः ऐसा अकृत्य न करने के लिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 409 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए। नेरइए णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। असुरकुमारे णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए? एवं चेव। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–मनुस्से जहा जीवे। जीवे णं भंते! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए जाव सिय अकिरिए। नेरइए णं भंते! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिए? एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियव्वो जाव वेमाणिए, नवरं–मनुस्से जहा जीवे। जीवा णं भंते! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया? गोयमा! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया। नेरइया णं भंते! ओरालियसरीराओ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक जीव एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! वह कदाचित्‌ तीन क्रिया वाला, कदाचित्‌ चार क्रिया वाला, कदाचित्‌ पाँच क्रिया वाला होता है और कदाचित्‌ अक्रिय भी होता है भगवन्‌ ! एक नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम वह कदाचित्‌ तीन, कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-७ अदत्तादान Hindi 410 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे–वण्णओ, गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढवि-सिलावट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चारित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघव-संपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ गुणशीलक चैत्य था। यावत्‌ पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के आसपास बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे। उस काल और उस समय धर्मतीर्थ की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर यावत्‌ समवसृत हुए यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर परीषद्‌ वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-७ अदत्तादान Hindi 411 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे गइप्पवाए पन्नत्ते, तं जहा–पयोगगई, ततगई, बंधनछेयणगई, उववायगई, विहायगई। एत्तो आरब्भ पयोगपयं निरवसेसं भाणियव्वं जाव सेत्तं विहायगई। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गतिप्रपात कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! गतिप्रपात पाँच प्रकार का है। यथा – प्रयोग गति, ततगति, बन्धन – छेदनगति, उपपातगति और विहायोगति। यहाँ से प्रारम्भ करके प्रज्ञापनासूत्र का सोलहवाँ समग्र प्रयोगपद यावत्‌ ‘यह वियोगगति का वर्णन हुआ’; यहाँ तक कथन करना। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 412 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– गुरू णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, थेरपडिनीए। गति णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं० इहलोगपडिनीए, परलोगपडिनीए, दुहओलोग पडिनीए। समूहण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–कुलपडिनीए, गणपडिनीए, संघपडिनीए। अणुकंपं पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–तवस्सिपडिनीए, गिलाणपडिनीए, सेहपडिनीए। सुयण्णं भंते! पडुच्च कति पडिनीया पन्नत्ता? गोयमा! तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तपडिनीए,

Translated Sutra: राजगृह नगर में (गौतम स्वामी ने) यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! गुरुदेव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गए हैं ? गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गए हैं, आचार्य प्रत्यनीक, उपाध्याय प्रत्यनीक और स्थविर प्रत्यनीक। भगवन्‌ ! गति की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक हैं ? गौतम ! तीन – इहलोकप्रत्यनीक, परलोकप्रत्यनीक और उभयलोकप्रत्यनीक।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 413 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! ववहारे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे ववहारे पन्नत्ते, तं जहा–आगमे, सुतं, आणा, धारणा, जीए। जहा से तत्थ आगमे सिया आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहार पट्ठवेज्जा। नो य से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्ठवेज्जा। इच्चेएहिं पंचहिं ववहारं पट्ठवेज्जा, तं जहा–आगमेणं, सुएणं आणाए, धारणाए, जीएणं। जहा-जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा-तहा ववहारं पट्ठवेज्जा। से

Translated Sutra: भगवन्‌ ! व्यवहार कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! व्यवहार पाँच प्रकार का कहा गया है, आगम व्यवहार, श्रुतव्यवहार, आज्ञाव्यवहार, धारणाव्यवहार और जीतव्यवहार। इन पाँच प्रकार के व्यवहारों में से जिस साधु के पास आगम हो, उसे उस आगम से व्यवहार करना। जिसके पास आगम न हो, उसे श्रुत से व्यवहार चलाना। जहाँ श्रुत न हो वहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 414 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य। इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ? गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का – ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध। भगवन्‌ ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है, या तिर्यंचयोनिक या तिर्यंचयोनिक स्त्री बाँधती है, अथवा मनुष्य, या मनुष्य – स्त्री बाँधती है, अथवा देव या देवी बाँधती है ? गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बाँधता है, न तिर्यंच –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 415 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? जाव देवी बंधइ? गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मनुस्सो वि बंधइ, मनुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ। तं भंते! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसगो बंधइ? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य अवगयवेदो य बंधइ, अहवा एते य अवगयवेदा य बंधंति। जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिसपच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! साम्परायिक कर्म नैरयिक बाँधता है, तिर्यंच या यावत्‌ देवी बाँधती है ? गौतम ! नैरयिक भी बाँधता है; तिर्यंच भी बाँधता है, तिर्यंच – स्त्री भी बाँधती है, मनुष्य भी बाँधता है, मानुषी भी बाँधती है, देव भी बाँधता है और देवी भी बाँधती है। भगवन्‌ ! साम्परायिक कर्म क्या स्त्री बाँधती है, पुरुष बाँधता है, यावत्‌ नोस्त्री
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शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 416 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– नाणावरणिज्जं दंसणावरणिज्जं वेदणिज्जं मोहणिज्जं आउगं नामं गोयं अंतराइयं। कइ णं भंते! परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा- दिगिंछापरीसहे, पिवासापरीसहे, सीतपरीसहे, उसिणपरीसहे, दंसमसगपरीसहे, अचेलपरीसहे, अरइपरीसहे, इत्थिपरीसहे, चरियापरीसहे, निसीहियापरीसहे, सेज्जापरीसहे, अक्कोसपरीसहे, वहपरीसहे, जायणापरीसहे, अलाभपरीसहे, रोगपरीसहे, तणफास परीसहे, जल्लपरीसहे, सक्कारपुरक्कारपरीसहे, पण्णापरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे। एए णं भंते! बावीसं परीसहा कतिसु कम्मप्पगडीसु समोयरंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा – ज्ञानावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! परीषह कितने कहे हैं ? गौतम ! परीषह बाईस कहे हैं, वे इस प्रकार – १. क्षुधा – परीषह, २. पिपासा – परीषह यावत्‌ २२ – दर्शन परीषह। भगवन्‌ ! इन बाईस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समावेश हो ता है ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 417 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचेव आनुपुव्वी, चरिया सेज्जा वहे य रोगे य । तणफास–जल्लमेव य, एक्कारस वेदणिज्जम्मि ॥

Translated Sutra: पहले पाँच (क्षुधा, शीत, उष्ण और दंशमशक), चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और जल्ल परीषह। इन का समवतार वेदनीय कर्म में होता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 419 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरती अचेल इत्थी, निसीहिया जायणा य अक्कोसे । सक्कार-पुरक्कारे, चरित्तमोहम्मि सत्तेते ॥

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चारित्रमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! सात परीषहों का – अरति, अचेल, स्त्री, निषद्या, याचना, आक्रोश, सत्कार – पुरस्कार।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 420 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अंतराइए णं भंते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति? गोयमा! एगे अलाभपरीसहे समोयरइ। सत्तविहबंधगस्स णं भंते! कति परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! बावीसं परीसहा पन्नत्ता। वीसं पुण वेदेइ–जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेदेइ, जं समयं चरियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ, जं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ। एवं अट्ठविहबंधगस्स वि। छव्विहबंधगस्स णं भंते! सरागछउमत्थस्स कति परीसहा पन्नत्ता? गोयमा! चोद्दस परिसहा पन्नत्ता। बारस पुण वेदेइ–जं समयं सीयपरीसहं वेदेइ नो तं समयं उसिणपरीसहं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! एक अलाभपरीषह का समवतार होता है। भगवन्‌ ! सात प्रकार के कर्मों को बाँधने वाले जीव के कितने परीषह हैं ? गौतम ! बाईस। परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्ण – परीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 421 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं। जइ णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में क्या दो सूर्य, उदय और अस्त के मुहूर्त्त में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त्तमें निकट में होते हुए दूर दिखाई देते हैं? हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीपमें दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-९ प्रयोगबंध Hindi 429 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेयाकम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं, सव्व-बंधगाणं, अबंधगाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वबंधगा २. तस्स चेव देसबंधगा संखेज्ज-गुणा ३. वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधगा असंखेज्जगुणा ४. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ५. तेया-कम्मगाणं अबंधगा अनंतगुणा ६. ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अनंतगुणा ७. तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया ८. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा ९. तेया-कम्मगाणं देसबंधगा विसे-साहिया १. वेउव्वियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ११. आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया सेवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मणशरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों मे कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े आहारकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे आहारकशरीर के देशबंधक जीव संख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, उनसे वैक्रियशरीर के देशबंधक जीव असंख्यातगुणे
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शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 430 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति–एवं खलु? १. सीलं सेयं २. सुयं सेयं ३. सुयं सीलं सेयं से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाहंसु, मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– एवं खलु मए चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–१. सीलसंपन्ने नामं एगे नो सुयसंपन्ने २. सुयसंपन्ने नामं एगे नो सीलसं-पन्ने ३. एगे सीलसंपन्ने वि सुयसंपन्ने वि ४. एगे नो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने। तत्थ णं जे से पढमे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलवं असुयवं–उवरए, अविण्णायधम्मे। एस णं गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन् ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं – (१) शील ही श्रेयस्कर हे; (२) श्रुत ही श्रेयस्कर है, (३) (शीलनिरपेक्ष) श्रुत श्रेयस्कर है, अथवा (श्रुतनिरपेक्ष) शील श्रेयस्कर है; अतः है भगवन् ! यह किस प्रकार सम्भव है ? गौतम। अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार
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शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 431 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आराहणा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा आराहणा पन्नत्ता, तं जहा–नाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा। नाणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। दंसणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। चरित्ताराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। जस्स णं भंते! उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया नाणाराहणा? गोयमा! जस्स उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की – ज्ञानधारना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना। भगवन् ! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीनप्रकार की। इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीनप्रकार की है। भगवन् ! जिस जीव के
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शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 433 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसे किं १. दव्वं? २. दव्वदेसे? ३. दव्वाइं? ४. दव्वदेसा? ५. उदाहु दव्वं च दव्वदेसे य? ६. उदाहु दव्वं च दव्वदेसा य? ७. उदाहु दव्वाइं च दव्वदेसे य? ८. उदाहु दव्वाइं च दव्वदेसा य? गोयमा! १. सिय दव्वं २. सिय दव्वदेसे ३. नो दव्वाइं ४. नो दव्वदेसा ५. नो दव्वं च दव्वदेसे य ६. नो दव्वं च दव्वदेसा य ७. नो दव्वाइं च दव्वदेसे य ८. नो दव्वाइं च दव्वदेसा य। दो भंते! पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दव्वं? दव्वदेसे? –पुच्छा। गोयमा! सिय दव्वं, सिय दव्वदेसे, सिय दव्वाइं, सिय दव्वदेसा, सिय दव्वं च दव्वदेसे य। सेसा पडिसेहेयव्वा। तिन्नि भंते पोग्गलत्थिकायपदेसा किं दव्वं? दव्वदेसे? –पुच्छा। गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश द्रव्य है, द्रव्यदेश है, बहुत द्रव्य हैं, बहुत द्रव्य – देश हैं ? एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं, बहुत द्रव्य और द्रव्यदेश है, या बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं ? गौतम ! वह कथञ्चित् एक द्रव्य है, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश है, किन्तु वह बुहत द्रव्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 435 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। नेरइयाणं भंते! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ। एवं सव्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयव्वाओ जाव वेमाणियाणं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं–पुच्छा। गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं जहा नाणावरणिज्जस्स अविभाग-पलिच्छेदा भणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियां कितनी हैं ? गौतम् ! कर्मप्रकृतियां आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियां हैं ? गौतम ! आठ। इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवो के आठ कर्मप्रकृतियों कहनी चाहिए। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग – परिच्छेद हैं ? गौतम ! अनन्त अविभाग – परिच्छेद हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 437 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं पोग्गली? पोग्गले? गोयमा! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि? गोयमा! से जहानामए छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं घडी, पडेणं पडी, करेणं करी, एवामेव गोयमा! जीवे वि सोइंदिय-चक्खिंदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदियाइं पडुच्च पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि। नेरइए णं भंते! किं पोग्गली! पोग्गले? एवं चेव। एवं जाव वेमाणिए, नवरं–जस्स जइ इंदियाइं तस्स तइ भाणियव्वाइं। सिद्धे णं भंते! किं पोग्गली? पोग्गले? गोयमा! नो पोग्गली, पोग्गले। से केणट्ठेणं भंते! एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव पुद्गली है अथवा पुद्गल है। गौतम ! जीव पुदगली भी है और पुद्गल भी। भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जैसे किसी पुरुष के पास छत्र हो तो उसे छत्री, दण्ड हो तो दण्डी, घट होने से घटी, पट होने से पटी और कर होने से करी कहा जाता है, इसी तरह हे गौतम ! जीव श्रोत्रेन्द्रिय – चक्षुरिन्द्रिय – घ्राणेन्द्रिय –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

Hindi 438 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. जंबुद्दीवे २. जोइस, ३. अंतरदीवा ३१. असोच्च ३२. गंगेय । ३३. कुंडग्गामे ३४. पुरिसे, णवमम्मि सतम्मि चोत्तीसा ॥

Translated Sutra: १. जम्बूद्वीप, २. ज्योतिष, ३. से ३० तक (अट्ठाईस) अन्तर्द्वीप, ३१. अश्रुत्वा ३२. गांगेय, ३३. कुण्डग्राम, ३४. पुरुष। नौवें शतक में चौंतीस उद्देशक हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-१ जंबुद्वीप Hindi 439 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। माणिभद्दे चेतिए–वण्णओ। सामी समोसढे, परिसा निग्गता जाव भगवं गोयमे पज्जुवासमाणे एवं वदासी–कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे! किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे? एवं जंबुद्दीवपन्नत्ती भाणियव्वा जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिला-सयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में मिथिला नगरी थी। वहाँ माणिभद्र चैत्य था। महावीर स्वामी का समवसरण हुआ। परिषद् निकली। (भगवान् ने) – धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान किस प्रकार है ? गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति में कहे अनुसार – जम्बूद्वीप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 440 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव–

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 453 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मनुस्स-पवेसणए, देवपवेसणए। नेरइयपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइयपवेसणए। एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। दो भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। अहवा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – नैरयिक प्रवेशनक, तिर्यग्योनिक – प्रवेशनक, मनुष्य – प्रवेशनक और देव – प्रवेशनक। भगवन् ! नैरयिक – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! सात प्रकार का – रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपत्रथ्वीनैरयिक – प्रवेशनक। भंते ! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिक – प्रवेशनक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 454 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियपवेसणए। एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। दो भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। अहवा एगे एगिंदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा, एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्जा। उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का – एकेन्द्रियतिर्यञ्चयो – निकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक। भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवो में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 455 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–समुच्छिममनुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमनुस्सपवेसणए य। एगे भंते! मनुस्से मनुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा? गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु होज्जा? गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। दो भंते! मनुस्सा–पुच्छा। गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा एगे गब्भव-क्कंतियमनुस्सेसु होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मनुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस। संखेज्जा भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? गांगेय ! दो प्रकार का है, सम्मूर्च्छिममनुष्य – प्रवेशनक ओर गर्भजमनुष्य – प्रवेशनक। भगवन् ! दो मनुष्य, मनुष्य – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यो में उत्पन्न होते है ? इत्यादि (पूर्ववत) प्रश्न। गांगेय ! दो मनुष्य या तो सम्मूर्च्छिममनुष्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 456 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–भवनवासिदेवपवेसणए जाव वेमानियदेवपवेसणए। एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं पविसमाणे किं भवनवासीसु होज्जा? वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु होज्जा? गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। दो भंते! देवा देवपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवनवासीसु एगे वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति। उक्कोसा भंते! –पुच्छा। गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवनवासीसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – भावनवासीदेव – प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव – प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव – प्रवेशनक और वैमानिकदेव – प्रवेशनक। भगवन् ! एक देव, देव – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों में होता है ? गांगेय
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