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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 322 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–एवं खलु सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं। अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता वेमायाए वेदनं वेदेंति–आहच्च सायमसायं। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया एगंतदुक्खं वेदनं वेदेंति, आहच्च सायं। भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया एगंतसायं वेदनं वेदेंति, आहच्च अस्सायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एकान्तदुःखरूप वेदना को वेदते हैं, तो भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! अन्यतीर्थिक जो यह कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत्‌ प्ररूपणा करता हूँ – कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 324 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! आयाणेहिं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! केवली णं पुरत्थिमे णं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ जाव निव्वुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणट्ठेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली भगवान इन्द्रियों द्वारा जानते – देखते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! केवली भगवान पूर्व दिशा में मित को भी जानते हैं और अमित को भी जानते हैं; यावत्‌ केवली का (ज्ञान और) दर्शन परिपूर्ण और निरावरण होता है। हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 326 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 328 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वदासी–जीवे णं भंते! कं समयमणाहारए भवइ? गोयमा! पढमे समए सिय आहारए सिय अनाहारए, बितिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, ततिए समए सिय आहारए सिय अनाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए। एवं दंडओ–जीवा य एगिंदिया य चउत्थे समए, सेसा ततिए समए। जीवे णं भंते! कं समयं सव्वप्पाहारए भवति? गोयमा! पढमसमयोववन्नए वा चरिमसमयभवत्थे वा, एत्थ णं जीवे सव्वप्पाहारए भवति। दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में, यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन्‌ ! (परभव में जाता हुआ) जीव किस समय में अनाहारक होता है ? गौतम ! (परभव में जाता हुआ) जीव, प्रथम समय में कदाचित्‌ आहारक होता है और कदाचित्‌ अनाहारक होता है; द्वीतिय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌ अनाहारक होता है, तृतीय समय में भी कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 329 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किंसंठिए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! सुपइट्ठगसंठिए लोए पन्नत्ते–हेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले; अहे पलियंकसंठिए, मज्झे वरवइरवि-ग्गहिए, उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठिए। तंसि च णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली जीवे वि जाणइ-पासइ, अजीवे वि जाणइ-पासइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! सुप्रतिष्ठिक के आकार का है। वह नीचे विस्तीर्ण है और यावत्‌ ऊपर मृदंग के आकार का है। ऐसे इस शाश्वत लोक में उत्पन्न केवलज्ञान – दर्शन के धारक, अर्हन्त, जिन, केवली जीवों को भी जानते और देखते हैं तथा अजीवों को भी जानते और देखते हैं। इसके पश्चात्‌ वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 330 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नो रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स आया अहिगरणी भवइ, आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्स नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से तेणट्ठेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण के उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक किये हुए श्रमणोपासक को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उसे साम्परायिकी क्रिया लगती है, ऐर्यापथिकी क्रिया नहीं लगती। भगवन्‌ ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए सामयिक किए हुए श्रमणोपासक की आत्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 331 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव तसपाणसमारंभे पच्चक्खाए भवइ, पुढविसमारंभे अपच्चक्खाए भवइ। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव वणप्फइसमारंभे पच्चक्खाए। से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेज्जा, से णं भंते! तं वयं अतिचरति? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिस श्रमणोपासक ने पहले से ही त्रस – प्राणियों के समारम्भ का प्रत्याख्यान कर लिया हो, किन्तु पृथ्वीकाय के समारम्भ का प्रत्याख्यान नहीं किया हो, उस श्रमणोपासक से पृथ्वी खोदते हुए किसी त्रसजीव की हिंसा हो जाए, तो भगवन्‌ ! क्या उसके व्रत (त्रसजीववध – प्रत्याख्यान) का उल्लंघन होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 333 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! अकम्मस्स गती पण्णायति? गोयमा! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं, बंधनछेदणयाए, निरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गती पण्णायति कहन्नं भंते! निस्संगयाए, निरंगणयाए, गतिपरिणामेणं अकम्मस्स गती पण्णायति? से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तुंबं निच्छिड्डं निरूवहयं आनुपुव्वीए परिकम्मेमाणे-परिकम्मेमाणे दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयति, भूतिं-भूतिं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कर्मरहित जीव की गति होती है ? हाँ, गौतम ! अकर्म जीव की गति होती – है। भगवन्‌ ! अकर्म जीव की गति कैसे होती है ? गौतम ! निःसंगता से, नीरागता से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद हो जाने से, निरिन्धता – (कर्मरूपी इन्धन से मुक्ति) होने से और पूर्वप्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है। भगवन्‌ ! निःसंगता से, नीरागता से,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 334 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुक्खी भंते! दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दुक्खेणं फुडे। दुक्खी भंते! नेरइए दुक्खेणं फुडे? अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे? गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे। एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं पंच दंडगा नेयव्वा–१. दुक्खी दुक्खेणं फुडे २. दुक्खी दुक्खं परियायइ ३. दुक्खी दुक्खं उदीरेइ ४. दुक्खी दुक्खं वेदेति ५. दुक्खी दुक्खं निज्जरेति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या दुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है अथवा अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी जीव ही दुःख से स्पृष्ट होता है, किन्तु अदुःखी जीव दुःख से स्पृष्ट नहीं होता। भगवन्‌ ! क्या दुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है या अदुःखी नैरयिक दुःख से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! दुःखी नैरयिक ही दुःख से स्पृष्ट होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 335 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारस्स णं भंते! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा, चिट्ठमाणस्स वा, निसीयमाणस्स वा, तुयट्टमाणस्स वा, अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा, निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते! किं रियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! नो रियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं रियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह-मान-माया -लोभा अवोच्छिन्ना भवंति तस्स णं संपराइया किरिया कज्जइ। अहासुत्तं रीयमाणस्स रियावहिया किरिया कज्जइ, उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ। से णं उस्सुत्तमेव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोगरहित गमन करते हुए, खड़े होते हुए, बैठते हुए या सोते हुए और इसी प्रकार बिना उपयोग के वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन ग्रहण करते हुए या रखते हुए अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! ऐसे अनगार को साम्परायिकी क्रिया लगती है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 336 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सइंगालस्स, सधूमस्स, संजोयणादोसदुट्ठस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सइंगाले पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता महया अप्पत्तियं कोहकिलामं करेमाणे आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सधूमे पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता गुणुप्पायणहेउं अन्नदव्वेणं सद्धिं संजोएत्ता आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! संजोयणादोसदुट्ठे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अंगारदोष, धूमदोष और संयोजनादोष से दूषित पान भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? गौतम! जो निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी प्रासुक और एषणीय अशन – पान – खादिम – स्वादिमरूप आहार ग्रहण करके उसमें मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित और आसक्त होकर आहार करते हैं, हे गौतम ! यह अंगारदोष से दूषित आहार – पानी हैं। जो निर्ग्रन्थ अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 337 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! खेत्तातिक्कंतस्स, कालातिक्कंतस्स, मग्गातिक्कंतस्स, पमाणातिक्कंतस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं अणुग्गए सूरिए पडिग्गाहेत्ता उग्गए सूरिए आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! खेत्तातिक्कंते पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असनं-पान-खाइम-साइमं पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्ता आहारमाहारेइ एस णं गोयमा! कालातिक्कंते पान-भोयणे। जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा फासु-एसणिज्जं असन-पान-खाइम-साइमं पडिग्गाहेत्ता परं अद्धजोयणमेराए वीइक्कमावेत्ता आहारमाहारेइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त पान – भोजन का क्या अर्थ है ? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी, प्रासुक और एषणीय अशन – पान – खादिम – स्वादिमरूप चतुर्विध आहार को सूर्योदय से पूर्व ग्रहण करके सूर्योदय के पश्चात्‌ उस आहार को करते हैं, तो हे गौतम ! यह क्षेत्रातिक्रान्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१ आहार Hindi 338 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सत्थातीतस्स, सत्थपरिणामियस्स, एसियस्स, वेसियस्स, सामुदाणियस्स पान-भोयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? गोयमा! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगयमाला-वन्नग-विलेवने ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं, जीव-विप्पजढं, अकयं, अकारियं, असंकप्पियं, अनाहूयं, अकीयकडं, अनुद्दिट्ठं, नव-कोडीपरिसुद्धं, दसदोसविप्पमुक्कं, उग्गमुप्पायणेसणासुपरिसुद्धं, वीतिंगालं, वीतधूमं, संजोयणा- दोसविप्पमुक्कं, असुरसुरं, अचवचवं, अदुयं, अविलंबियं, अपरिसाडिं, अक्खोवंजण वणाणुलेवणभूयं, संजमजायामायवत्तियं, संजमभारवहणट्ठयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेइ, एस णं गोयमा! सत्थातीतस्स,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, व्येषित, सामुदायिक भिक्षारूप पान – भोजन का क्या अर्थ है? गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी शस्त्र और मूसलादि का त्याग किये हुए हैं, पुष्प – माला और विलेपन से रहित हैं, वे यदि उस आहार को करते हैं, जो कृमि आदि जन्तुओं से रहित, जीवच्युत और जीवविमुक्त है, जो साधु के लिए नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 339 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! सव्वपाणेहिं, सव्वभूएहिं, सव्वजीवेहिं, सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति? दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति, सिय दुपच्चक्खायं भवति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति सिय दुपच्चक्खायं भवति? गोयमा! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स नो एवं अभिसमन्नागयं भवति– इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं पच्चक्खायमिति वदमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! ‘मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान होता है ? गौतम ! ‘मैंने सभी प्राण यावत्‌ सभी तत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है’, ऐसा कहने वाले के कदाचित्‌ सुप्रत्याख्यान होता है कदाचित्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 340 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पच्चक्खाणे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पच्चक्खाणे पन्नत्ते, तं जहा–मूलगुणपच्चक्खाणे य, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य। मूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे य, देसमूलगुणपच्चक्खाणे य। सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। देसमूलगुणपच्चक्खाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है। मूलगुणप्रत्याख्यान और उत्तरगुणप्रत्याख्यान। भगवन्‌ ! मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का – सर्वमूलगुणप्रत्या – ख्यान और देशमूलगुणप्रत्याख्यान। भगवन्‌ ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 341 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १, २. अनागयमइक्कंतं ३. कोडीसहियं ४. नियंटियं चेव । ५, ६. सागारमनागारं ७. परिमाणकडं ८. निरवसेसं । ९. संकेयं चेव १. अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥

Translated Sutra: अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित, नियंत्रित, साकार, अनाकार, परिणामकृत, निरवशेष, संकेत और अद्धा – प्रत्याख्यान।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 343 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? उत्तरगुणपच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी वि, उत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि। नेरइया णं भंते! किं मूलगुणपच्चक्खाणी? पुच्छा। गोयमा! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मनुस्सा य जहा जीवा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। एएसि णं भंते! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं, अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी ? गौतम ! नैरयिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-२ विरति Hindi 344 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! जीवा सिय सासया, सिय असासया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सिय सासया? सिय असासया? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासया, भावट्ठयाए असासया। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवा सिय सासया, सिय असासया। नेरइया णं भंते! किं सासया? असासया? एवं जहा जीवा तहा नेरइया वि। एवं जाव वेमाणिया सिय सासया, सिय असासया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? गौतम ! जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं और कथंचित्‌ अशाश्वत हैं। भगवन्‌ ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! द्रव्य की दृष्टि से जीव शाश्वत है और भाव की दृष्टि से जीव अशाश्वत हैं। इस कारण कहा गया है कि जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं, कथंचित्‌ अशाश्वत हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव शाश्वत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 345 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइक्काइया णं भंते! कं कालं सव्वप्पाहारगा वा, सव्वमहाहारगा वा भवंति? गोयमा! पाउस-वरिसारत्तेसु णं एत्थ णं वणस्सइकाइया सव्वमहाहारगा भवंति, तदानंतरं च णं सरदे, तदानंतरं च णं हेमंते, तदानंतरं च णं वसंते, तदानंतरं च णं गिम्हे। गिम्हासु णं वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति। जइ णं भंते! गिम्हासु वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति, कम्हा णं भंते! गिम्हासु बहवे वणस्सइ-काइया पत्तिया, पुप्फिया, फलिया, हरियगरेरिज्जमाणा, सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति? गोयमा! गिम्हासु णं बहवे उसिणजोणिया जीवा य, पोग्गला य वणस्सइकाइयत्ताए वक्कमंति, चयंति, उववज्जंति। एवं खलु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वनस्पतिकायिक जीव किस काल में सर्वाल्पाहारी होते और किस काल में सर्वमहाहारी होते हैं ? गौतम ! प्रावृट्‌ – ऋतु (श्रावण और भाद्रपद मास) में तथा वर्षाऋतु (आश्विन और कार्तिक मास) में वनस्पतिकायिक जीव सर्वमहाहारी होते हैं। इसके पश्चात्‌ शरदऋतु में, तदनन्तर हेमन्तऋतु में इसके बाद वसन्तऋतु में और तत्पश्चात्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 346 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! मूला मूलजीवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा, खंधा खंधजीवफुडा, तया तयाजीवफुडा, साला सालजीवफुडा, पवाला पवालजीवफुडा, पत्ता पत्तजीवफुडा, पुप्फा पुप्फजीवफुडा, फला फलजीव-फुडा, बीया बीयजीवफुडा? हंता गोयमा! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा। जइ णं भंते! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीयजीवफुडा, कम्हा णं भंते! वणस्सइकाइया आहारेंति? कम्हा परिणामेंति? गोयमा! मूला मूलजीवफुडा पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति। कंदा कंदजीव-फुडा मूलजीवपडिबद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति। एवं जाव बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वनस्पतिकायिक के मूल, निश्चय ही मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं, कन्द, कन्द के जीवों से स्पृष्ट, यावत्‌ बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं ? हाँ, गौतम ! मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत्‌ बीज, बीज के जीवों से स्पृष्ट होते हैं। भगवन्‌ ! यदि मूल, मूल के जीवों से स्पृष्ट होते हैं यावत्‌ बीज, बीज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 348 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सिय भंते! कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए? हंता सिय। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–कण्हलेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? नीललेसे नेरइए महाकम्मतराए? गोयमा! ठितिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव महाकम्मतराए। सिय भंते! नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए? हंता सिय। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए? काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए? गोयमा! ठितिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव महाकम्मतराए। एवं असुरकुमारे वि, नवरं–तेउलेसा अब्भहिया। एवं जाव वेमाणिया। जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियव्वाओ। जोइसियस्स न भण्णइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ अल्पकर्म वाला और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ महाकर्म वाला होता है ? हाँ, गौतम ! कदाचित्‌ ऐसा होता है। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि कृष्णलेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ अल्पकर्म वाला होता है और नीललेश्या वाला नैरयिक कदाचित्‌ महाकर्म वाला होता है ? गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 349 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! जा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जा वेदना न सा निज्जरा? जा निज्जरा न सा वेदना? गोयमा! कम्मं वेदना, नोकम्मं निज्जरा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जा वेदना न सा निज्जरा, सा निज्जरा न सा वेदना। नेरइया णं भंते! जा वेदना सा निज्जरा? जा निज्जरा सा वेदना? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं जा वेदना न सा निज्जरा? जा निज्जरा न सा वेदना? गोयमा! नेरइयाणं कम्मं वेदना, नोकम्मं निज्जरा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं जा वेदना न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेदना। एवं जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वास्तव में जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है ? और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जो वेदना है, वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती ? गौतम ! वेदना कर्म है और निर्जरा नोकर्म है। इस कारण से ऐसा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-३ स्थावर Hindi 350 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! सिय सासया, सिय असासया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सिय सासया? सिय असासया? गोयमा! अव्वोच्छित्तिनयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिनयट्ठयाए असासया। से तेणट्ठेणं जाव सिय सासया, सिय असासया। एवं जाव वेमाणिया जाव सिय असासया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव शाश्वत हैं या अशाश्वत हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव कथंचित्‌ शाश्वत हैं और कथंचित्‌ अशाश्वत हैं। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! अव्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव शाश्वत है और व्युच्छित्ति नय की अपेक्षा से नैरयिक जीव अशाश्वत हैं। इन कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि नैरयिक
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शतक-७

उद्देशक-४ जीव Hindi 351 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि– कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता? गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा–सम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं त्रस – कायिक। इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-५ पक्षी Hindi 353 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! कतिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे जोणीसंगहे पन्नत्ते, तं जहा–अंडया, पोयया, संमुच्छिमा। एवं जहा जीवाभिगमे जाव नो चेव णं ते विमाने वीतीवएज्जा, एमहालया णं गोयमा! ते विमाना पन्नत्ता। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर स्वामी से पूछा – हे भगवन्‌ ! खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। अण्डज, पोतज और सम्मूर्च्छिम। इस प्रकार जीवा – जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत्‌ ‘उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान्‌ कहे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 355 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पकरेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ? गोयमा! इहगए नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ। एवं असुरकुमारेसु वि, एवं जाव वेमाणिएसु। जीवे णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! किं इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ? गोयमा! नो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ, उववन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ। एवं जाव वेमाणिएसु। जीवे

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जो जीव नारकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, क्या वह इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य बाँधता है, वहाँ उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य बाँधता है या फिर (नरक में) उत्पन्न होने पर नारका – युष्य बाँधता है ? गौतम ! वह इस भव में रहता हुआ ही नारकायुष्य बाँधता लेता है, परन्तु नरक में उत्पन्न हुआ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 357 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाइवाएण जाव मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु गोयमा! जीवाणं कक्कस-वेयणिज्जा कम्मा कज्जंति। अत्थि णं भंते! नेरइया णं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। अत्थि णं भंते! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाइवायवेरमणेणं जाव परिग्गहवेरमणेणं, कोहविवेगेणं जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगेणं–एवं खलु गोयमा! जीवाणं अकक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति। अत्थि णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों के कर्कश वेदनीय कर्म करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! जीव कर्कश – वेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणातिपात से यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य से बाँधते हैं। क्या नैरयिक जीव कर्कशवेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! पहले कहे अनुसार बाँधते हैं। इसी प्रकार वैमानिकों तक कहना। भगवन्‌ ! क्या
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 358 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए, जीवाणुकंपयाए, सत्ताणुकंपयाए, बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणयाए असोयणयाए अजूरणयाए अतिप्पणयाए अपिट्टणयाए अपरिया-वणयाए–एवं खलु गोयमा! जीवाणं सातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति। एवं नेरइयाण वि, एवं जाव वेमाणियाणं। अत्थि णं भंते! जीवाणं असातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! जीवाणं असातावेयणिज्जा कम्मा कज्जंति? गोयमा! परदुक्खणयाए, परसोयणयाए, परजूरणयाए, परतिप्पणयाए, परपिट्टणयाए, परपरिया-वणयाए,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव सातावेदनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन्‌ ! जीव सातावेदनीय कर्म कैसे बाँधते हैं ? गौतम ! प्राणों पर अनुकम्पा करने से, भूतों पर अनुकम्पा करने से, जीवों के प्रति अनुकम्पा करने से और सत्त्वों पर अनुकम्पा करने से; तथा बहुत – से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःख न देने से, उन्हें शोक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 359 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए दुस्सम-दुस्समाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ? गोयमा! कालो भविस्सइ हाहाभूए, भंभब्भूए कोलाहलभूए। समानुभावेण य णं खर-फरुस-धूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा वाया संवट्टगा य वाहिंति। इह अभिक्खं धूमाहिंति य दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुस-तमपडल-निरालोगा। समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छंति। अहियं सूरिया तवइस्संति। अदुत्तरं च णं अभिक्खणं बहवे अरसमेहा विरसमेहा खार-मेहा खत्तमेहा अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा असणिमेहा–अपिवणिज्जोदगा, वाहिरोगवेदणोदीरणा-परिणामसलिला, अमणुन्नपा-णियगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल का दुःषमदुःषम नामक छठा आरा जब अत्यन्त उत्कट अवस्था को प्राप्त होगा, तब भारतवर्ष का आकारभाव – प्रत्यवतार कैसा होगा ? गौतम ! वह काल हाहाभूत, भंभाभूत (दुःखार्त्त) तथा कोलाहलभूत होगा। काल के प्रभाव से अत्यन्त कठोर, धूल से मलिन, असह्य, व्याकुल, भयंकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-६ आयु Hindi 360 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभाव-पडोयारे भविस्सइ? गोयमा! मनुया भविस्संति दुरूवा दुवण्णा दुग्गंधा दुरसा दुफासा अनिट्ठा अकंता अप्पिया असुभा अमणुन्ना अमणामा हीनस्सरा दीनस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अप्पियस्सरा असुभस्सरा अमणुन्नस्सरा अमणामस्सरा अनादेज्जवयणपच्चायाया, निल्लज्जा, कूड-कवड-कलह-वह-बंध-वेरनिरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा, अकज्जनिच्चुज्जता, गुरुनियोग-विनयरहिया य, विकल-रूवा, परूढनह-केस-मंसु-रोमा, काला, खर-फरुस-ज्झामवण्णा, फुट्टसिरा, कविलपलियकेसा, बहुण्हारु- संपिणद्ध-दुद्दंसणिज्जरूवा, संकुडितवलीतरंगपरिवेढियंगमंगा, जरापरिणतव्व थेरगनरा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उस समय भारतवर्ष की भूमि का आकार और भावों का आविर्भाव किस प्रकार का होगा ? गौतम ! उस समय इस भरतक्षेत्र की भूमि अंगारभूत, मुर्मूरभूत, भस्मीभूत, तपे हुए लोहे के कड़ाह के समान, तप्तप्राय अग्नि के समान, बहुत धूल वाली, बहुत रज वाली, बहुत कीचड़ वाली, बहुत शैवाल वाली, चलने जितने बहुत कीचड़ वाली होगी, जिस पर पृथ्वीस्थित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 361 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संवुडस्स णं भंते! अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स, आउत्तं चिट्ठमाणस्स, आउत्तं निसीयमाणस्स, आउत्तं तुयट्टमाणस्स, आउत्तं वत्थं पडिग्गह कंबलं पादपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा, तस्स णं भंते! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ? संपराइया किरिया कज्जइ? गोयमा! संवुडस्स णं अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, नो संपराइया किरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–संवुडस्स णं अनगारस्स आउत्तं गच्छमाणस्स जाव नो संपराइया, किरिया कज्जइ? गोयमा! जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा वोच्छिन्ना भवंति, तस्स णं इरियावहिया किरिया कज्जइ, जस्स णं कोह-मान-माया-लोभा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उपयोगपूर्वक चलते – बैठते यावत्‌ उपयोगपूर्वक करवट बदलते तथा उपयोगपूर्वक वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोंछन आदि ग्रहण करते और रखते हुए उस संवृत्त अनगार को क्या ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है अथवा साम्परायिकी क्रिया लगती है ? गौतम ! उस संवृत्त अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है, साम्परायिकी नहीं। भगवन्‌ ! ऐसा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 362 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रूवी भंते! कामा? अरूवी कामा? गोयमा! रूवी कामा, नो अरूवी कामा। सचित्ता भंते! कामा? अचित्ता कामा? गोयमा! सचित्ता वि कामा, अचित्ता वि कामा। जीवा भंते! कामा? अजीवा कामा? गोयमा! जीवा वि कामा, अजीवा वि कामा। जीवाणं भंते! कामा? अजीवाणं कामा? गोयमा! जीवाणं कामा, नो अजीवाणं कामा। कतिविहा णं भंते! कामा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा कामा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा य, रूवा य। रूवी भंते! भोगा? अरूवी भोगा? गोयमा! रूवी भोगा, नो अरूवी भोगा। सचित्ता भंते! भोगा? अचित्ता भोगा? गोयमा! सचित्ता वि भोगा, अचित्ता वि भोगा। जीवा भंते! भोगा? अजीवा भोगा? गोयमा! जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा। जीवाणं भंते! भोगा? अजीवाणं भोगा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! काम रूपी है या अरूपी है ? आयुष्मन्‌ श्रमण ! काम रूपी है, अरूपी नहीं है। भगवन्‌ ! काम सचित्त है अथवा अचित्त है ? गौतम ! काम सचित्त भी हैं और काम अचित्त भी हैं। भगवन्‌ ! काम जीव हैं अथवा अजीव हैं ? गौतम ! काम जीव भी हैं और काम अजीव भी हैं। भगवन्‌ ! काम जीवों के होते हैं या अजीवों के होते हैं ? गौतम ! काम जीवों के होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 363 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसकार-परक्कमेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? से नूनं भंते! एयमट्ठं एवं वयह? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। पभू णं से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसक्कार-परक्कमेण वि अन्नयराइं विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। आहोहिए णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य, जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, भगवन्‌ ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम के द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 364 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे इमे भंते! असण्णिणो पाणा, तं जहा–पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य एगतिया तसा–एए णं अंधा, मूढा, तमपविट्ठा, तमपडल-मोहजाल-पडिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदनं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया। अत्थि णं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! पभू वि अकामनिकरणं वेदनं वेदेंति? गोयमा! जे णं नो पभू विणा पदीवेणं अंधकारंसि रूवाइं पासित्तए, जे णं नो पभू पुरओ रूवाइं अनिज्झाइत्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू मग्गओ रूवाइं अनवयक्खित्ता णं पासित्तए, जे णं नो पभू पासओ रूवाइं अनवलोएत्ता णं पासित्तए, जे णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ये जो असंज्ञी प्राणी हैं, यथा – पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक ये पाँच तथा छठे कईं त्रस – कायिक जीव हैं, जो अन्ध हैं, मूढ़ हैं, तामस में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणरूप) तमःपटल और (मोहनीयरूप) मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण (अज्ञान रूप में) वेदना वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! जो ये
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 365 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीयमनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिनिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे जाव– से नूनं भंते! उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा! उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, अनन्त और शाश्वत अतीतकाल में केवल संयम द्वारा, केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य से तथा केवल अष्टप्रवचनमाताओं के पालन से सिद्ध हुआ है, यावत्‌ उसने सर्व दुःखों का अन्त किया है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस विषय में प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार वह,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 366 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे? हंता गोयमा! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे। से नूनं भंते! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव एवं अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहा-रतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव अप्पिड्ढितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्पज्जुइतराए चेव? कुंथूओ हत्थी महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महाहारतराए चेव महानीहारतराए चेव महाउस्सासतराए चेव महानीसासतराए चेव महिड्ढितराए चेव महामहतराए चेव महज्जुइतराए चेव? हंता गोयमा! हत्थीओ कुंथू अप्पकम्मतराए चेव कुंथूओ वा हत्थी महाकम्मतराए चेव,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वास्तव में हाथी और कुन्थुए का जीव समान है ? हाँ, गौतम ! हाथी और कुन्थुए का जीव समान है। इस विषय में राजप्रश्नीयसूत्र में कहे अनुसार ‘खुड्डियं वा महालियं वा’ इस पाठ तक कहना चाहिए।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 367 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे? हंता गोयमा! नेरइयाणं पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे। एवं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, किया जाता है और किया जाएगा, क्या वह सब दुःख रूप हैं और (उनके द्वारा) जिसकी निर्जरा की गई है, क्या वह सुखरूप है ? हाँ, गौतम ! नैरयिक द्वारा जो पापकर्म किया गया है, यावत्‌ वह सब दुःखरूप है और (उनके द्वारा) जिन (पापकर्मों) की निर्जरा की गई है, वह सब सुखरूप है। इस प्रकार वैमानिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 369 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? हंता गोयमा! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ? गोयमा! अविरतिं पडुच्च। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–हत्थिस्स य कुंथुस्स य समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वास्तव में हाथी और कुन्थुए के जीव को समान रूप में अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! हाथी और कुन्थुए के जीव को अप्रत्याख्यानिकी क्रिया समान लगती है। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि हाथी और कुन्थुए के यावत्‌ क्रिया समान लगती है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा समान लगती है।
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शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 370 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहाकम्मं णं भंते! भुंजमाणे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? गोयमा! अहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनिय-बंधनबद्धाओ पकरेइ जाव सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आधाकर्म का उपयोग करने वाला साधु क्या बाँधता है ? क्या करता है ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ? गौतम ! इस विषय का सारा वर्णन प्रथम शतक के नौंवे उद्देशक में कहे अनुसार – ‘पण्डित शाश्वत है और पण्डितत्व अशाश्वत है’ यहाँ तक कहना चाहिए। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 371 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? गोयमा! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ, नो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ। एवं २ एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या असंवृत अनगार बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले, एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! क्या असंवृत अनगार बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके एक वर्ण वाले एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! वह ऐसा करने में समर्थ हैं। भगवन्‌ ! वह असंवृत अनगार
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 372 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विन्नाणमेयं अरहया–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया

Translated Sutra: अर्हन्त भगवान ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान ने यह सूना है – तथा अर्हन्त भगवान को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है। (अतः) भगवन्‌ ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा ? गौतम ! वज्जी विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काश
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 373 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुवमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया–रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था; नव मल्लई, नव लेच्छई पराजइत्था। तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! भूयानंदं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अर्हन्त भगवान ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेषरूप से जाना है कि यह रथमूसल – संग्राम है। भगवन्‌ ! यह रथमूसलसंग्राम जब हो रहा था तब कौन जीता, कौन हारा ? हे गौतम ! वज्री – इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी राजा हार गए। तदनन्तर रथमूसल – संग्राम
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 374 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कम्हा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रन्नो साहेज्जं दलइत्था? गोयमा! सक्के देविंदे देवराया पुव्वसंगतिए, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया परियायसंगतिए। एवं खलु गोयमा! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियस्स रन्नो साहेज्जं दलइत्था।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज शक्र और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन दोनों ने कूणिक राजा को किस कारण से सहायता दी ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र तो कूणिक राजा का पूर्वसंगतिक था और असुरेन्द्र असुरकुमार राजा चमर कूणिक राजा का पर्यायसंगतिक मित्र था। इसीलिए, हे गौतम ! उन्होंने कूणिक राजा को सहायता दी।
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 375 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि – अनेक प्रकार के छोटे – बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत – से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! बहुत – से मनुष्य, जो इस
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 376 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वरुणे णं भंते! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमा! सोहम्मे कप्पे, अरुणाभे विमाने देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता तत्थ णं वरुणस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं भंते! वरुणे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिति। वरुणस्स णं भंते! नागनत्तुयस्स पियबालवयंसए कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमा! सुकुले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वरुण नागनप्तृक कालधर्म पाकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह सौधर्मकल्प में अरुणाभ नामक विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। उस देवलोक में कतिपय देवों की चार पल्योपम की स्थिति कही गई है। अतः वहाँ वरुण – देव की स्थिति भी चार पल्योपम की है। भगवन्‌ ! वह वरुण देव उस देवलोक से आयु – क्षय होने पर, भव – क्षय
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शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 377 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था यावत्‌ (एक) पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के पास थोड़ी दूर पर बहुत से अन्यतीर्थि रहते थे, यथा – कालोदयी, शैलोदाई शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्नपालक, शैलपालक, शंखपालक और सुहस्ती गृहपति। किसी समय सब अन्यतीर्थिक एक स्थान पर आए, एकत्रित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 378 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ, गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे, गुणसिलए चेइए। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ जाव समोसढे, परिसा जाव पडिगया। तए णं से कालोदाई अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! जीवाणं पावा कम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कज्जंति? कालोदाई! से जहानामए केइ पुरिसे मणुण्णं

Translated Sutra: किसी समय श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशीलक चैत्य से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करते हुए विचरण करने लगे। उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। गुणशीलक नामक चैत्य था। किसी समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी पुनः वहाँ पधारे यावत्‌ उनका समवसरण लगा। यावत्‌ परीषद्‌ धर्मोपदेश सूनकर लौट गई। तदनन्तर अन्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 379 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं अगनिकायं समारंभंति तत्थ णं एगे पुरिसे अगनिकायं उज्जालेइ, एगे पुरिसे अगनिकायं निव्वावेइ। एएसि णं भंते! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव? महाकिरियतराए चेव? महासवतराए चेव? महावेयणतराए चेव? कयरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव? अप्पकिरियतराए चेव? अप्पासवतराए चेव? अप्पवेयणतराए चेव? जे वा से पुरिसे अगनिकायं उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगनिकायं निव्वावेइ? कालोदाई! तत्थ णं जे से पुरिसे अगनिकायं उज्जालेइ, से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव। तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (मान लीजिए) समान उम्र के यावत्‌ समान ही भाण्ड, पात्र और उपकरण वाले दो पुरुष एक – दूसरे के साथ अग्निकाय का समारम्भ करें, उनमें से एक पुरुष अग्निकाय को जलाए और एक पुरुष अग्निकाय को बुझाए, तो हे भगवन्‌ ! उन दोनों पुरुषों में से कौन – सा पुरुष महाकर्म वाला, महाक्रिया वाला, महा – आस्रव वाला और महावेदना वाला है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 380 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? हंता अत्थि। कयरे णं भंते! ते अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति? उज्जोवेंति? तवेंति? पभासेंति? कालोदाई! कुद्धस्स अनगारस्स तेयलेस्सा निसट्ठा समाणी दूरं गता दूरं निपतति, देसं गता देसं निपतति, जहिं-जहिं च णं सा निपतति तहिं-तहिं च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। एतेणं कालोदाई! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासेंति। तए णं से कालोदाई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अचित्त पुद्‌गल भी अवभासित होते हैं, वे वस्तुओं को उद्योतित करते हैं, तपाते हैं और प्रकाश करते हैं ? हाँ, कालोदायी ! अचित्त पुद्‌गल भी यावत्‌ प्रकाश करते हैं। भगवन्‌ ! अचित्त होते हुए भी कौन – से पुद्‌गल अवभासित होते हैं, यावत्‌ प्रकाश करते हैं ? कालोदायी ! क्रुद्ध अनगार की नीकली हुई तेजोलेश्या दूर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 382 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वदासी–कतिविहा णं भंते! पोग्गला पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पोग्गला पन्नत्ता, तं जहा–पयोगपरिणया, मीसापरिणया, वीससापरिणया।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! पुद्‌गल कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पुद्‌गल तीन प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं – प्रयोग – परिणत, मिश्र – परिणत और विस्रसा परिणत।
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