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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१३ [६] परक्रिया विषयक |
Hindi | 506 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं–नो तं साइए, नो तं नियमे।
‘से से’ परो पादाइं आमज्जेज्ज वा, ‘पमज्जेज्ज वा’ – नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा – नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा–नो तं साइए, नो तं
नियमे।
से से परो पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा–णो
तं साइए, नो तं नियमे।
से से परो पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज वा–नो तं साइए, नो तं नियमे।
से Translated Sutra: पर (गृहस्थ के द्वारा) आध्यात्मिकी मुनि के द्वारा कायव्यापार रूपी क्रिया (सांश्लेषिणी) कर्मबन्धन जननी है, (अतः) मुनि उसे मन से भी न चाहे, न उसके लिए वचन से कहे, न ही काया से उसे कराए। कदाचित् कोई गृहस्थ धर्म – श्रद्धावश मुनि के चरणों को वस्त्रादि से थोड़ा – सा पोंछे अथवा बार – बार पोंछ कर, साधु उस परक्रिया को मन से | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१४ [७] अन्योन्य क्रिया |
Hindi | 508 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे।
से अन्नमन्नं पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज Translated Sutra: साधु या साध्वी की अन्योन्यक्रिया जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से न चाहे न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। साधु या साध्वी परस्पर एक दूसरे के चरणों को पोंछकर एक बार या बार – बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी इसे न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 510 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 512 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक – धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक – धर्म का पालन करके षड्जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्हा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 528 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वनसंडं व कुसुमियं, पउमसरो वा जहा सरयकाले ।
सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥ Translated Sutra: उस समय देवों के आगमन से आकाशमण्डल वैसा ही सुशोभित हो रहा था, जैसे खिले हुए पुष्पों से वनखण्ड, या शरत्काल में कमलों के समूह से पद्म सरोवर। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 529 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धत्थवणं व जहा, कणियारवणं व चंपगवणं वा ।
सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥ Translated Sutra: उस समय देवों के आगमन से गगनतल भी वैसा ही सुहावना लग रहा था, जैसे सरसों, कचनार या कनेर या चम्पकवन फूलों के झुण्ड से सुहावना प्रतीत होता है। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 532 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिर बहुलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, ‘हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं’ जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, छट्ठेण भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए, सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे-समण्णिज्जमाणे उत्तरखत्तिय कुंडपुर-संणिवेसस्स मज्झंमज्झेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव नायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ईसिंरयणिप्पमाणं अच्छुप्पेणं भूमिभागेणं सणियं-सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ, Translated Sutra: उस काल और उस समय में, जबकि हेमन्त ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात् मार्गशीर्ष मास का कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के सुव्रत के विजय मुहूर्त्त में, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पूर्व गामिनी छाया होने पर, द्वीतिय पौरुषी प्रहर के बीतने पर, निर्जल षष्ठभक्त – प्रत्याख्यान के साथ एकमात्र | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Hindi | 535 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ।
तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-४ अध्ययन-१६ विमुक्ति |
Hindi | 542 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहागअं भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विण्णु चरंतमेसणं ।
तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ॥ Translated Sutra: उस तथाभूत अनन्त (एकेन्द्रियादि जीवों) के प्रति सम्यक् यतनावान अनुपसंयमी आगमज्ञ विद्वान एवं आगमानुसार एषणा करने वाले भिक्षु को देखकर मिथ्यादृष्टि असभ्य वचनों के तथा पथ्थर आदि प्रहार से उसी तरह व्यथित कर देते हैं, जिस तरह संग्राम में वीर योद्धा, शत्रु के हाथी को बाणों की वर्षा से व्यथित कर देता है। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-४ अध्ययन-१६ विमुक्ति |
Hindi | 550 | Gatha | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुद्दं व भुयाहि दुत्तरं ।
अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुनी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: कहा है – अपार सलिल – प्रवाह वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना दुस्तर है, वैसे ही संसाररूपी महासमुद्र को भी पार करना दुस्तर है। अतः इस संसार समुद्र के स्वरूप को जानकर उसका परित्याग कर दे। इस प्रकार पण्डित मुनि कर्मों का अन्त करने वाला कहलाता है। | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Gujarati | 4 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि।
एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए।
जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं। Translated Sutra: કોઈ જીવ પોતાના જાતિસ્મરણ જ્ઞાનથી, તીર્થંકર આદિના વચનથી કે અન્ય વિશિષ્ટજ્ઞાનીની પાસેથી સાંભળી જાણી શકે છે કે, હું પૂર્વદિશાથી આવ્યો છું – યાવત્ – અન્ય દિશા કે વિદિશાથી આવેલો છું. એ જ રીતે કેટલાક જીવોને એવું જ્ઞાન હોય છે કે મારો આત્મા પુનર્ભવ કરવાવાળો છે, જે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. જે સર્વે | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Gujarati | 5 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई। Translated Sutra: પૂર્વાદિ દિશામાં જે ગમનાગમન કરે છે, તે આત્મા હું જ છું એવું જે જ્ઞાન કે એવો નિશ્ચય જેને થઇ જાય છે તે પોતાને નિત્ય અને અમૂર્ત લક્ષણવાળો જાણે છે, આ સોऽહં) ‘તે હું જ છું’ એવું જ્ઞાન જેને છે તે જ જીવ આત્મ – વાદી છે. જે આત્મવાદી છે તે લોક અર્થાત્ પ્રાણીગણનો પણ સ્વીકાર કરે છે તેથી તે લોકવાદી છે. લોક – પરિભ્રમણ દ્વારા તે | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-१ जीव अस्तित्व | Gujarati | 8 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति। Translated Sutra: કર્મ અને કર્મબંધના સ્વરૂપને નહીં જાણનાર પુરૂષ અર્થાત્ આત્મા જ કર્મબંધના કારણે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. અને પોતાનાં કર્મો અનુસાર સર્વે દિશા અને વિદિશામાં જાય છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा |
उद्देशक-५ वनस्पतिकाय | Gujarati | 47 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे।
अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। (जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए।
से बेमि–इमंपि जाइधम्मयं, एयंपि जाइधम्मयं। इमंपि बुड्ढिधम्मयं, एयंपि बुड्ढिधम्मयं। इमंपि चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं। इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि छिन्नं मिलाति। इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं। इमंपि अनिच्चयं, एयंपि अनिच्चयं। इमंपि असासयं, एयंपि असासयं। इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं। इमंपि विपरिनामधम्मयं, एयंपि विपरिनामधम्मयं। Translated Sutra: તે હું તમને કહું છું – માનવ શરીર સાથે વનસ્પતિકાયની સમાનતા દર્શાવતા કહે છે) જે રીતે માનવ શરીર જન્મ લે છે, વૃદ્ધિ પામે છે, ચેતનવંત છે, છેદાતા કરમાય છે, આહાર લે છે, અનિત્ય છે, અશાશ્વત છે, વધે – ઘટે છે અને વિકારને પામે છે એ જ રીતે વનસ્પતિ પણ ઉત્પન્ન થાય છે, વૃદ્ધિ પામે છે, ચેતનાયુક્ત છે, છેદાતા કરમાય છે, આહાર લે છે, અનિત્ય | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-२ अद्रढता | Gujarati | 75 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विमुक्का हु ते जना, जे जना पारगामिणो।
लोभं अलोभेण दुगंछमाणे, लद्धे कामे नाभिगाहइ। Translated Sutra: જે મનુષ્ય જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્રનાં પારગામી’ છે તે જ ખરેખર પૂર્વ સંબંધોથી મુક્ત થાય છે. અલોભથી લોભને પરાજિત કરનારો કામભોગ પ્રાપ્ત થાય તો પણ ન સેવે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-३ मदनिषेध | Gujarati | 82 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो।
सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा।
सव्वेसिं जीवियं पियं।
तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा।
से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए।
तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ।
तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ।
इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।
मुनिणा हु एयं पवेइयं।
अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए ।
अतीरंगमा Translated Sutra: મૃત્યુ માટે કોઈ અકાળ નથી, સર્વે પ્રાણીને આયુષ્ય પ્રિય છે, સર્વેને સુખ ગમે છે, દુઃખ પ્રતિકૂળ લાગે છે, બધાને જીવન પ્રિય છે, સૌ જીવવા ઇચ્છે છે. પરિગ્રહમાં આસક્ત પ્રાણી દ્વિપદ, ચતુષ્પદને કામમાં જોડીને ધન સંચય કરે છે. પોતાના, બીજાના, ઉભયના માટે તેમાં મત્ત બની અલ્પ કે ઘણું ધન ભેગું કરી તેમાં આસક્ત થઈને રહે છે. વિવિધ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-५ लोकनिश्रा | Gujarati | 89 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] समुट्ठिए अनगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी ‘अयं संधीति अदक्खु’।
से नाइए, नाइआवए, न समणुजाणइ।
सव्वामगंधं परिण्णाय, निरामगंधो परिव्वए। Translated Sutra: સંયમમાં ઉદ્યત, આર્ય, બુદ્ધિસંપન્ન, ન્યાયદર્શી, અવસરજ્ઞ, તત્ત્વજ્ઞ, અણગાર સદોષ આહાર ગ્રહણ કરે નહીં, કરાવે નહીં, અનુમોદે નહીં તે સર્વે પ્રકારના દૂષણો રહિત નિર્દોષપણે સંયમ પાળે – ભિક્ષાચરી કરે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-५ लोकनिश्रा | Gujarati | 95 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ।
गढिए अणुपरियट्टमाणे।
संधिं विदित्ता इह मच्चिएहिं।
एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए।
जहा अंतो तहा बाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो।
अंतो अंतो पूतिदेहंतराणि, पासति पुढोवि सवंताइं।
पंडिए पडिलेहाए। Translated Sutra: દીર્ઘદર્શી અર્થાત્ આ – લોક પર – લોકના દુઃખને જોનાર, અને લોકદર્શી અર્થાત્ લોકના સ્વરૂપને જાણનાર – પુરુષ લોકના અધોભાગને, ઉર્ધ્વભાગને, તિર્છાભાગને જાણે છે. વિષયમાં આસક્ત લોકો સંસારમાં વારંવાર ભ્રમણ કરે છે. જે ‘સંધિ’ અર્થાત્ ધર્મના અવસરને જાણીને વિષયોથી દૂર રહે તે વીર છે, પ્રશંસનીય છે. જે સંસાર બંધનમાં બંધાયેલને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 102 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे य फासे अहियासमाणे। निव्विंव नंदिं इह जीवियस्स।
मुनी मोनं समादाय, धुणे कम्म-सरीरगं॥ Translated Sutra: શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શજન્ય કષ્ટોને સહન કરતા હે મુનિ! આ લોકના પુદ્ગલજન્ય અર્થાત્ બાહ્ય આનંદરૂપ અસંયમ જીવિતથી વિરત થા. નિર્વેદભાવને પામ, હે મુનિ! સંયમને ગ્રહણ કરી કર્મ શરીરને ખંખેરી નાખ. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-६ अममत्त्व | Gujarati | 104 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दुव्वसु मुनी अणाणाए। तुच्छए गिलाइ वत्तए। एस वीरे पसंसिए।
अच्चेइ लोयसंजोयं। एस णाए पवुच्चइ। Translated Sutra: જિન આજ્ઞા ન માનનાર, સ્વેચ્છાચારી મુનિ મોક્ષગમન માટે અયોગ્ય છે. તે ધર્મકથનમાં ગ્લાનિ પામે છે કેમ કે તે તુચ્છ છે અર્થાત્ જ્ઞાન આદિથી રહિત છે. તે સાધક ‘વીર’ પ્રશસ્ય છે જે લોક સંયોગ અર્થાત્ ધન, પરિવાર આદિ સંસારની જંજાળથી દૂર થઇ જાય છે. તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત આ જ માર્ગને ન્યાય્યમાર્ગ કહેલ છે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-२ दुःखानुभव | Gujarati | 123 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे निरयं महंतं ।
तम्हा हि वीरे विरते वहाओ, छिंदेज्ज सोयं लहुभूयगामी ॥ Translated Sutra: વીર પુરૂષ ક્રોધ અને માન આદિને મારે, લોભને દુઃખદાયી નરકરૂપે જુએ, લઘુભૂતગામી અર્થાત્ મોક્ષ કે સંયમનો અભિલાષી વીર, હિંસા આદિ પાપકર્મોથી વિરત થઈ વિષય વાસનાને છેદે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 126 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] समयं तत्थुवेहाए, अप्पाणं विप्पसायए।
अनन्नपरमं नाणी, नोपमाए कयाइ वि ॥
आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाए जावए ।
विरागं रूवेहिं गच्छेज्जा, महया खुड्डएहि वा॥ Translated Sutra: સમતાનો વિચાર કરી આત્માને પ્રસન્ન રાખે. જ્ઞાની મુનિ સંયમમાં કદાપિ પ્રમાદ ન કરે. આત્માનું ગોપન કરી સદૈવ વીર બની દેહને સંયમયાત્રાનું સાધન માની નિર્વાહ કરે. નાના – મોટા રૂપોમાં આસક્તિ ન કરે, વિરક્ત રહે | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 128 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ‘अवरेण पुव्वं न सरंति एगे, किमस्सतीतं? किं वागमिस्सं?
भासंति एगे इह माणव उ, जमस्सतीतं आगमिस्सं ॥ Translated Sutra: કેટલાક મૂઢ જીવો ભૂતકાળ કે ભાવિના બનાવોને યાદ કરતા નથી કે આ જીવ પહેલાં કેવો હતો ? ભાવિમાં શું થનાર છે ? કેટલાંક એવું માને છે કે જેવો તે ભૂતકાળમાં હતો તેવો ભાવિમાં થશે અર્થાત્ મનુષ્ય મરીને મનુષ્ય થશે, પશુ મારીને પશુ. પરંતુ... | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-३ अक्रिया | Gujarati | 129 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नातीतमट्ठं न य आगमिस्सं, अट्ठं नियच्छंति तहागया उ ।
विधूत-कप्पे एयाणुपस्सी, निज्झोसइत्ता खवगे महेसी ॥ Translated Sutra: તથાગત અર્થાત્ બૌદ્ધ દાર્શનિકો અતીત કે અનાગતના અર્થનું સ્મરણ કરતા નથી. પણ વિદ્યુતકલ્પી અર્થાત્ અનેક પ્રકારે આઠ કર્મને ધોવાના આચારવાળા સાધુઓ, શુદ્ધ સંયમપાલક મહર્ષિ ત્રણે કાળનું અન્વેષણ કરી, આ સત્યને જાણી તપના આચરણ દ્વારા કર્મનો ક્ષય કરે છે. | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-४ कषाय वमन | Gujarati | 137 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगं विगिंचमाणे पुढो विगिंचइ, पुढो विगिंचमाणे एगं विगिंचइ।
सड्ढी आणाए मेहावी।
लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं।
अत्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं। Translated Sutra: ક્ષપકશ્રેણીએ ચઢેલ સાધુ એક અનંતાનુબંધી ક્રોધને ખપાવતા બીજા દર્શનાદિને પણ ખપાવે છે. અથવા અન્યને ખપાવતા એક અનંતાનુબંધીને પણ અવશ્ય ખપાવે છે. વીતરાગની આજ્ઞામાં શ્રદ્ધા રાખનાર મેધાવી સાધક છ – કાયરૂપ અથવા કષાય – લોકને જાણીને જિન – આગમ અનુસાર જીવોને ભય ન થાય તેમ વર્તે તેમ કરવાથી ‘અકુતોભય’ થાય છે. શસ્ત્ર અર્થાત્ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ शीतोष्णीय |
उद्देशक-४ कषाय वमन | Gujarati | 138 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे कोहदंसी से माणदंसी, जे माणदंसी से मायदंसी।
जे मायदंसी से लोभदंसी, जे लोभदंसी से पेज्जदंसी।
जे पेज्जदंसी से दोसदंसी, जे दोसदंसी से मोहदंसी।
जे मोहदंसी से गब्भदंसी, जे गब्भदंसी से जम्मदंसी।
जे जम्म-दंसी से मारदंसी, जे मारदंसी से निरयदंसी।
जे निरयदंसी से तिरियदंसी, जे तिरियदंसी से दुक्खदंसी।
से मेहावी अभिनिवट्टेज्जा कोहं च, माणं च, मायं च, लोहं च, पेज्जं च, दोसं च, मोहं च, गब्भं च, जम्मं च, मारं च, नरगं च, तिरियं च, दुक्खं च।
एयं पासगस्स दंसणं उवरयसत्थस्स पलियंतकरस्स।
आयाणं णिसिद्धा सगडब्भि।
किमत्थि उवाही पासगस्स न विज्जइ? नत्थि। Translated Sutra: જે ક્રોધના અનર્થકારી સ્વરૂપને જાણે છે અને તેનો પરિત્યાગ કરે છે તે માનદર્શી છે અર્થાત્ માનને પણ જાણે છે અને ત્યાગ કરે છે, એ જ પ્રમાણે જે માનદર્શી છે તે માયાને જાણીને તજે છે, જે માયાદર્શી છે તે લોભદર્શી છે, જે લોભદર્શી છે તે રાગદર્શી છે, જે રાગદર્શી છે તે દ્વેષદર્શી છે, જે દ્વેષદર્શી છે તે મોહદર્શી છે, જે મોહદર્શી | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Gujarati | 139 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा।
एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए।
तं जहा–उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा।
तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सिं चेयं पवुच्चइ। Translated Sutra: હે જમ્બૂ! હું તીર્થંકરના વચનથી કહું છું – ભૂતકાળમાં થયેલા, વર્તમાનમાં છે તે અને ભાવિમાં થશે તે બધા તીર્થંકર ભગવંતો આ પ્રમાણે કહે છે, આવું બોલે છે, આવું પ્રજ્ઞાપન કરે છે, પ્રરૂપણા કરે છે કે સર્વે પ્રાણી, સર્વે ભૂતો, સર્વે જીવો અને સર્વે સત્ત્વોને મારવા નહીં, તેના પર હૂકમ ન કરવો, નોકરની જેમકબજામાં ન રાખવા, ન સંતાપ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा | Gujarati | 144 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आघाइ नाणी इह माणवाणं संसारपडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विण्णाणपत्ताणं।
अट्टा वि संता अदुआ पमत्ता। अहासच्चमिणं- ति बेमि।
नानागमो मच्चुमुहस्स अत्थि, इच्छापणीया वंकाणिकेया ।
कालग्गहीआ णिचए णिविट्ठा, ‘पुढो-पुढो जाइं पकप्पयंति’ ॥ Translated Sutra: જ્ઞાની આ વિષયમાં સંસાર સ્થિત, સારી રીતે સમજનાર, હિત – અહિતની સમજ રાખનાર મનુષ્યને ઉપદેશ આપે છે – જેના વડે આર્ત્તધ્યાન પીડિત કે પ્રમાદી પણ ધર્માચરણ કરી શકે છે. આ યથાતથ્ય સત્ય છે. તેમ હું કહું છું. જીવોને મૃત્યુ નહીં આવે એવું તો નથી છતાં ઇચ્છાવશ થઈ, અસંયમમાં લીન બનેલ પ્રાણી કાળના મુખમાં પડ્યો એવો કર્મનાં સંગ્રહમાં | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-३ अनवद्यतप | Gujarati | 149 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमं निरुद्धाउयं संपेहाए
दुक्खं च जाण अदुवागमेस्सं।
पुढो फासाइं च फासे।
लोयं च पास विप्फंदमाणं।
जे निव्वुडा पावेहिं कम्मेहिं, अनिदाणा ते वियाहिया।
तम्हा तिविज्जो नो पडिसंजलिज्जासि। Translated Sutra: આ મનુષ્યભવને અલ્પકાલીન જાણીને ક્રોધથી ઉત્પન્ન થનારા દુઃખો અને ભાવિમાં ઉત્પન્ન થનાર દુઃખોને જાણ. ક્રોધી જીવ ભિન્ન – ભિન્ન દુઃખોનો અનુભવ કરે છે. સંસારના દુઃખનો પ્રતિકાર કરવા માટે અહીં – તહીં ભાગદોડ કરતા જીવોને જો. જે પાપકર્મોથી નિવૃત્ત છે, તે અનિદાન અર્થાત્ કર્મોથી મુક્ત કહેવાય છે. તેથી હે અતિવિદ્વાન ! તું | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-४ संक्षेप वचन | Gujarati | 150 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं।
तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए।
दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं।
विगिंच मंस-सोणियं।
एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए ।
जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥ Translated Sutra: મુનિ પૂર્વ સંયોગનો ત્યાગ કરી ઉપશમને પ્રાપ્ત કરી પહેલા અલ્પ અને પછી વિશેષ પ્રકારે દેહનું દમન કરે. છેવટે સંપૂર્ણ રૂપે દેહનું દમન કરે. આ રીતે તપ – આચરણ કરનાર મુનિ સદા સ્વસ્થચિત્ત રહે, તપ કરતા કદી ખેદિત ન થાય, પ્રસન્ન રહે, આત્મભાવમાં લીન રહે, સ્વમાં રમણ કરે, સમિતિ યુક્ત થઈ, યતનાપૂર્વક ક્રિયા કરે. અપ્રમત્ત બની સંયમ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
उद्देशक-४ संक्षेप वचन | Gujarati | 152 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कओ सिया?
से हु पण्णाणमंते बुद्धे आरंभोवरए। सम्ममेयंति पासह।
जेण बंधं वहं घोरं, परितावं च दारुणं।
पलिछिंदिय बाहिरगं च सोयं, णिक्कम्मदंसी इह मच्चिएहिं।
‘कम्मुणा सफलं’ दट्ठुं, तओ णिज्जाइ वेयवी। Translated Sutra: જેને પૂર્વભવમાં ધર્મ – આરાધન કરેલ નથી, ભાવિમાં પણ તેવી યોગ્યતા નથી તેને વર્તમાનમાં તો ધર્મારાધન ક્યાંથી હોય ? જે ભોગ આદિથી નિવૃત્ત છે, તે જ પ્રજ્ઞાવાન, બુદ્ધ અને હિંસાથી વિરત છે. આ જ સમ્યક્ વ્યવહારછે એવું તું જો. સાધક જુએ કે હિંસાને કારણે બંધન, વધ, પરિતાપ આદિ ભયંકર દુઃખો સહન કરવા પડે છે. તેથી પાપના બાહ્ય – અભ્યંતર | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-१ एक चर | Gujarati | 157 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए।
‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया।
लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए Translated Sutra: જે કુશળ છે તે મૈથુન સેવે નહીં, જે મૈથુન સેવીને પણ, ગુરુ જ્યારે પૂછે ત્યારેછૂપાવે છે, તે એ અજ્ઞાનીની બીજી મૂર્ખતા છે. દીર્ઘદૃષ્ટિથી વિચારીને અને કટુ વિપાકોને જાણીને, ઉપલબ્ધ કામભોગોનું સેવન ન કરે અને બીજાને પણ સેવન કરવાનો ઉપદેશન આપે. તેમ હું કહું છું. | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 166 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एयं नियाय मुनिणा पवेदितं–इह आणाकंखी पंडिए अणिहे, पुव्वावररायं जयमाणे, सया सीलं संपेहाए, सुणिया भवे अकामे अज्झंज्झे।
इमेणं चेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ? Translated Sutra: આ ઉત્થાન – પતન)ને કેવલજ્ઞાનથી જાણી તીર્થંકરે કહ્યું છે કે ભગવદ્ આજ્ઞાના ઈચ્છુક સાધક કોઈ સ્થાને રાગ – ભાવ કરે નહિ. રાત્રિના પહેલા અને છેલ્લા ભાગમાં સદા સંયમ માટે પ્રયત્નશીલ રહે. સદા શીલનું અનુશીલન કરે. સંયમ – પાલનના ફળને સાંભળીને કામરહિત અને માયા – લોભેચ્છા રહિત બને. વિષય – કષાય મુક્ત બને) | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-३ अपरिग्रह | Gujarati | 168 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से वसुभं सव्व-समन्नागय-पण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पाव कम्मं।
तं नो अन्नेसिं।
जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा । जं मोणं ति पासहा, तं सम्मं ति पासहा ॥
न इमं सक्कं सिढिलेहिं अद्दिज्जमाणेहिं गुणासाएहिं वंकसमायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसंतेहिं।
मुनी मोणं समायाए, धुणे कम्म-सरीरगं।
पंतं लूहं सेवंति, वीरा समत्तदंसिणो।
एस ओहंतरे मुनी, तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए। Translated Sutra: એવા સંયમવાન્ સાધુ સર્વ રીતે ઉત્તમ બોધને પ્રાપ્ત કરી ન કરવા યોગ્ય પાપકર્મ તરફ દૃષ્ટિ રાખતા નથી. જે સમ્યક્ત્વ છે અર્થાત્ સમ્યક્ આચરણવાળા છે તે મુનિધર્મ અર્થાત્ ભાવમુનિપણામાં છે અને જે ‘ભાવમુનિપણામાં છે તે સમ્યક્ આચરણવાળા છે’ એમ જાણો. શિથિલાચારી, સ્નેહમાં આસક્ત, વિષય આસ્વાદનમાં લોલુપ, કપટી, અને પ્રમાદી, તથા | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
उद्देशक-४ अव्यक्त | Gujarati | 171 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से अभिक्कममाणे पडिक्कममाणे संकुचेमाणे पसारेमाणे विणियट्टमाणे संपलिमज्जमाणे।
एगया गुणसमियस्स रीयतो कायसंफासमणुचिण्णा एगतिया पाणा उद्दायंति।
इहलोग-वेयण वेज्जावडियं।
जं ‘आउट्टिकयं कम्मं’, तं परिण्णाए विवेगमेति।
एवं से अप्पमाएणं, विवेगं किट्टति वेयवी। Translated Sutra: તે સાધુ જતા – આવતા, અવયવોને સંકોચતા – ફેલાવતા, હિંસાદિથી નિવૃત્ત થતા પ્રમાર્જનાદિ ક્રિયા કરતા સદા ગુરુઆજ્ઞા પૂર્વક વિચરે. સદ્ગુણી અને યતનાપૂર્વક વર્તનાર મુનિના શરીરના સ્પર્શથી કદાચિત્ કોઈ પ્રાણી ઘાત પામે તો તેને આ જન્મમાં જ વેદન કરવા યોગ્ય કર્મનો બંધ થાય છે. જો કોઈ પાપ જાણીને કર્યું હોય તો તેને જ્ઞ પરિજ્ઞાથી | |||||||||
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उद्देशक-४ अव्यक्त | Gujarati | 172 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: કર્મવિપાકના સ્વભાવને જોનાર , વિશિષ્ટજ્ઞાની અર્થાત્ સંસારના સ્વરૂપને જાણનાર, ઉપશાંત, સમિતિયુક્ત, જ્ઞાનાદિ સહિત, સદા યતનાશીલ મુનિ સ્ત્રીજનને જોઈને પોતે પોતાનું પર્યાલોચન કરે કે, આ સ્ત્રીજન મારું શું કલ્યાણ કરશે ? લોકમાં જે સ્ત્રીઓ છે તે ચિત્તને લોભાવનાર છે. આ પ્રમાણે તીર્થંકરે ફરમાવેલ છે. કદાચિત્ ઇન્દ્રિયોના | |||||||||
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उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Gujarati | 179 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अणाणाए एगे सोवट्ठाणा, आणाए एगे निरुवट्ठाणा।
एतं ते मा होउ।
एयं कुसलस्स दंसणं।
तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए, तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे। Translated Sutra: કેટલાક સાધકો અનાજ્ઞામાં અર્થાત્ સંયમ વિપરીત આચરણ કરવામાં ઉદ્યમી હોય છે, કેટલાક આજ્ઞામાં અનુદ્યમી હોય છે અર્થાત્ સંયમાચરણમાં પ્રવૃત્તિ કરતા નથી. હે મુનિ !) તમારા જીવનમાં આ બંને ન થાઓ. આ માટે તીર્થંકરનો ઉપદેશ છે કે – સાધક ગુરુમાં કે આગમમાં જ પોતાની દૃષ્ટિ રાખે, આજ્ઞામાં જ મુક્તિ માને, સર્વકાર્યોમાં આજ્ઞાને | |||||||||
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उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Gujarati | 181 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: निद्देसं नातिवट्टेज्जा मेहावी।
सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया।
इहारामं परिण्णाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए। निट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि Translated Sutra: મેધાવી સાધક નિર્દેશ અર્થાત્ સર્વજ્ઞની આજ્ઞાનું અતિક્રમણ ન કરે. તે સર્વ પ્રકારે વિચાર કરીને સત્યને જાણે, સત્યને ગ્રહણ કરીને સર્વજ્ઞની આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન ન કરે. સંયમને અંગીકાર કરી, જિતેન્દ્રિય બની પ્રવૃત્તિ કરે. મોક્ષાર્થી વીર સદા આગમ અનુસાર કર્મ નાશમાં પરાક્રમ કરે. એમ હું કહું છું. | |||||||||
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उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Gujarati | 183 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: ‘आवट्टं तु उवेहाए’ ‘एत्थ विरमेज्ज वेयवी’।
विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति।
पडिलेहाए नावकंखति, इह आगतिं गतिं परिण्णाय। Translated Sutra: આશ્રવોને સંસાર પરિભ્રમણનું કારણ જાણી આગમવિદ્ પુરુષ તેનાથી વિરક્ત થાય. વિષયાસક્તિ વગેરે આશ્રવોના દ્વારનો ત્યાગ કરીને પ્રવ્રજ્યા લઈ આ મહાપુરૂષ અ – કર્મા થઈને બધું જુએ અને જાણે. સારી રીતે વિચાર કરી પ્રાણીની આગતિ – ગતિને જાણીને વિષયજનિત સુખની આકાંક્ષા કરતા નથી. | |||||||||
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उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Gujarati | 184 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए।
सव्वे सरा णियट्टंति।
तक्का जत्थ न विज्जइ। मई तत्थ न गहिया।
ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयन्ने।
से न दोहे, न हस्से, न वट्टे, न तंसे, न चउरंसे, न परिमण्डले।
न किण्हे, न णीले, न लोहिए, न हालिद्दे, न सुक्किल्ले।
न सुब्भिगंधे, न दुरभिगंधे।
न तित्ते, न कडुए, न कसाए, न अंबिले, न महुरे।
न कक्खडे, न मउए, न गरुए, न लहुए, न सीए, न उण्हे, न णिद्धे, न लुक्खे।
न काऊ। न रुहे। न संगे।
न इत्थी, न पुरिसे, न अन्नहा।
परिण्णे सण्णे।
उवमा न विज्जए।
अरूवी सत्ता।
अपयस्स पयं नत्थि। Translated Sutra: સંસારના આવાગમનને જાણી જન્મ – મરણના માર્ગને તે પાર કરી લે છે અને મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. તે મુક્ત આત્માનું સ્વરૂપ બતાવવા માટે કોઈ શબ્દ સમર્થ નથી. તર્કની ત્યાં ગતિ નથી. બુદ્ધિનો ત્યાં પ્રવેશ નથી તે આત્મા સર્વ કર્મમળથી રહિત જ્યોતિ સ્વરૂપ છે. સમગ્ર લોકનો જ્ઞાતા છે. તે આત્મા લાંબો નથી, ટૂંકો નથી, ગોળ નથી, ત્રિકોણ | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Gujarati | 186 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे।
जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, अक्खाइ से नाणमणेलिसं।
से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं।
एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति।
पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे।
से बेमि–से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते, पच्छन्न-पलासे, उम्मग्गं से णोलहइ।
भंजगा इव सन्निवेसं णोचयंति, एवं पेगे – ‘अनेगरूवेहिं कुलेहिं’ जाया, ‘रूवेहिं सत्ता’ कलुणं थणंति, नियाणाओ ते न लभंति मोक्खं।
अह पास ‘तेहिं-तेहिं’ कुलेहिं आयत्ताए जाया– Translated Sutra: કેવલજ્ઞાની પુરૂષ સંસારના સ્વરૂપને જાણીને જનકલ્યાણને માટે ઉપદેશ આપે છે. એકેન્દ્રિયાદિ જાતિને સારી રીતે જાણનાર શ્રુતકેવલી આદિ પણ અનુપમ બોધ આપે છે. જ્ઞાની પુરૂષ ત્યાગમાર્ગમાં ઉત્સાહિત થયેલા, હિંસક ક્રિયાઓથી નિવૃત્ત બનેલ, બુદ્ધિમાન અને સાવધાન, સાધકોને મુક્તિનો માર્ગ બતાવે છે. તેમાં જે મહાવીર છે, તે જ પરાક્રમ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Gujarati | 187 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गंडी अदुवा कोढी, रायंसी अवमारियं ।
काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ॥ Translated Sutra: આ જીવોને થતા ૧૬ પ્રકારના રોગોના નામ જણાવે છે – ૧. કંઠમાળ, ૨. કોઢ, ૩. ક્ષય, ૪. મૂર્છા, ૫. કાળાપણું, ૬. હાથ – પગમાં શૂન્યતા, ૭. કુણિત્વ તથા ૮. કુબડાપણું અને. ... | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Gujarati | 190 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मरणं तेसिं संपेहाए, उववायं चयणं च नच्चा ।
परिपागं च संपेहाए, तं सुणेह जहा तहा ॥
संति पाणा अंधा तमंसि वियाहिया।
तामेव सइं असइं अतिअच्च उच्चावयफासे पडिसंवेदेंति।
बुद्धेहिं एयं पवेदितं।
संति पाणा वासगा, रसगा, उदए उदयचरा, आगासगामिणो।
पाणा पाणे किलेसंति। पास लोए महब्भयं। Translated Sutra: આ ૧૬ રોગ કે તેવા અન્ય રોગ આદિથી પીડિત તે મનુષ્યોના મૃત્યુનું નિરિક્ષણ કરીને વિચાર કે – જેમને રોગ નથી તેવા દેવોને પણ જન્મ અને મરણ થાય છે. તેથીકર્મોના વિપાકને સારી રીતે વિચારી તેના ફળને કહું છું તે સાંભળો. એવા પણ પ્રાણી છે જે કર્મના વશ થઈ અંધપણું પામે છે, ઘોર અંધકારમય સ્થાનોમાં રહે છે, તે જીવો ત્યાં જ વારંવાર જન્મ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 196 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘अहेगे धम्म मादाय’ ‘आयाणप्पभिइं सुपणिहिए’ चरे।
अपलीयमाणे दढे।
सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी।
अइअच्च सव्वतो संगं ‘ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि।’
जयमाणे एत्थ विरते अनगारे सव्वओ मुंडे रीयंते।
जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए।
से अक्कुट्ठे व हए व लूसिए वा।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे।
अतहेहिं सद्द-फासेहिं, इति संखाए।
एगतरे अन्नयरे अभिण्णाय, तितिक्खमाणे परिव्वए।
जे य हिरी, जे य अहिरीमणा। Translated Sutra: કેટલાક લોકો ધર્મ પ્રાપ્ત કરીને ધર્મોપગરણથી યુક્ત થઈને સર્વજ્ઞ કથિત ધર્મ આચરે છે. લીધેલ પ્રતિજ્ઞામાં દૃઢ રહે છે. સર્વ આસક્તિને દુઃખમય જાણી તેનાથી દૂર રહે તે જ મહામુનિ છે. તે સર્વે પ્રપંચોને છોડી ‘‘મારું કોઈ નથી – હું એકલો છું’’ એમ વિચારી પાપક્રિયાથી નિવૃત્ત થઈ, યતના કરતો અણગાર દ્રવ્ય અને ભાવથી મુંડિત થઈ વિચરે, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-२ कर्मविधूनन | Gujarati | 197 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चिच्चा सव्वं विसोत्तियं, ‘फासे फासे’ समियदंसणे।
एते भो! नगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अनागमणधम्मिणो।
आणाए मामगं धम्मं।
एस उत्तरवादे, इह माणवाणं वियाहिते।
एत्थोवरए तं झोसमाणे।
आयाणिज्जं परिण्णाय, परियाएण विगिंचइ।
‘इहमेगेसिं एगचरिया होति’।
तत्थियराइयरेहिं कुलेहिं सुद्धेसणाए सव्वेसणाए।
से मेहावी परिव्वए।
सुब्भिं अदुवा दुब्भिं।
अदुवा तत्थ भेरवा।
पाणा पाणे किलेसंति।
ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासेज्जासि। Translated Sutra: સર્વ વિસ્રોતિકા અર્થાત્ શંકા કે વિકલ્પોને છોડીને સમ્યગ્ દર્શની મુનિ ઉત્પન્ન થયેલ દુઃખોને સમભાવે સહે. હે મુનિઓ ! જે ગૃહવાસ છોડીને ફરી તેમાં ફસાતા નથી તે જ સાચા મુનિ છે. હે શિષ્ય! ‘આજ્ઞામાં મારો ધર્મ છે.’ એ મનુષ્યો માટે ઉત્તમ વિધાન છે માટે વિષયોથી વિરમેલ સાધક સંયમલીન બની કર્મો ખપાવે છે. તે કર્મોના સ્વરૂપને | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन | Gujarati | 198 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’।
जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि।
अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति।
एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले।
‘लाघवं आगममाणे’।
तवे से अभिसमण्णागए भवति।
जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।
एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं Translated Sutra: તીર્થંકર દ્વારા પ્રરૂપિત ધર્મમાં સ્થિત, સંયમમાં ઉપસ્થિત અને આચારનું સમ્યક પાલન કરનાર અને તપ દ્વારા કર્મોનો નાશ કરનાર મુની જ સાચા મુની છે. જે મુનિ અચેલક રહે છે, તેને એવી ચિંતા હોતી નથી કે મારું વસ્ત્ર જીર્ણ થયું છે, હું વસ્ત્રની યાચના કરીશ, સીવવા માટે સોય – દોરા લાવીશ. વસ્ત્ર સાંધીશ – સીવીશ, બીજું વસ્ત્ર જોડીશ, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 204 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नममाणा एगे जीवितं विप्परिणामेंति।
पुट्ठा वेगे णियट्ठंति, जीवियस्सेव कारणा।
णिक्खंतं पि तेसिं दुन्निक्खंतं भवति।
बालवयणिज्जा हु ते नरा, पुणो-पुनो जातिं पकप्पेंति।
अहे संभवंता विद्दायमाणा, अहमंसी विउक्कसे।
उदासीणे फरुसं वदंति।
पलियं पगंथे अदुवा पगंथे अतहेहिं।
तं मेहावी जाणिज्जा धम्मं। Translated Sutra: કેટલાક સાધકો પરીષહોથી ડરી અસંયમિત જીવન જીવવા માટે સંયમ છોડે છે. તેમની દીક્ષા કુદીક્ષા છે. કેમ કે તે સાધારણજન દ્વારા પણ તે નિંદિત થાય છે. પુનઃ પુનઃ જન્મ ધારણ કરે છે. નીચો હોવા છતાં પણ એ પોતાને વિદ્વાન માને છે કે, ‘‘જે છું તે હું જ છું’’ તેવો ગર્વ કરે છે. જે સાધક રાગ – દ્વેષ રહિત છે સાધકને કઠોર વચન કહે છે. તેમના પૂર્વ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन | Gujarati | 206 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमणेण भो! जणेण करिस्सामित्ति मण्णमाणा–‘एवं पेगे वइत्ता’,
मातरं पितरं हिच्चा, णातओ य परिग्गहं ।
‘वीरायमाणा समुट्ठाए, अविहिंसा सुव्वया दंता’ ॥
अहेगे पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे।
वसट्टा कायराजना लूसगा भवंति।
अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, ‘से समणविब्भंते समणविब्भंते’।
पासहेगे समण्णागएहिं असमण्णागए, णममाणेहिं अणममाणे, विरतेहिं अविरते, दविएहिं अदविए।
अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिट्ठियट्ठे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि। Translated Sutra: કેટલાક સાધક વિચારે છે આ સ્વજનોથી મારું શું કલ્યાણ થવાનું છે? એવું માનતા અને કહેતા કેટલાક લોકો માતા, પિતા, જ્ઞાતિજન અને પરિગ્રહનો ત્યાગ કરી, વીર પુરુષ સમાન આચરણ કરતા દીક્ષા લે છે, અહિંસક બને છે, સુવ્રતધારી બને છે, જિતેન્દ્રિય બને છે. છતાં અશુભકર્મના ઉદયથી સંયમથી પતિત થઈ તે દીન બને છે, તેવા વિષયોથી પીડિત અને કાયર | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Gujarati | 207 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से गिहेसु वा गिहंतरेसु वा, गामेसु वा गामंतरेसु वा, नगरेसु वा नगरंतरेसु वा, जणवएसु वा ‘जणवयंतरेसु वा’, संतेगइयाजना लूसगा भवति, अदुवा–फासा फुसंति ते फासे, पुट्ठो वीरोहियासए।
ओए समियदंसणे।
दयं लोगस्स जाणित्ता पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं, आइक्खे विभए किट्टे वेयवी।
से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए–संतिं, विरतिं, उवसमं, णिव्वाणं, सोयवियं,
अज्जवियं, मद्दवियं, लाघवियं, अणइवत्तियं।
सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खेज्जा। Translated Sutra: તે શ્રમણ ઘરોમાં, ઘરોની આસપાસમાં, ગામોમાં, ગામોના અંતરાલમાં, નગરોમાં, નગરોના અંતરાલમાં, જનપદોમાં, જનપદોના અંતરાલમાં, ગામ અને નગરોના અંતરાલમાં, ગામ અને જનપદોના અંતરાલમાં અથવા નગર અનેજનપદોના અંતરાલમાં વિચરતા કે કાયોત્સર્ગ સ્થિત મુનિને જોઈને કેટલાક લોકો હિંસક બની જાય છે. તેઓ ઉપસર્ગ કરે છે. ત્યારે અથવા કોઈ સંકટ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
उद्देशक-५ उपसर्ग सन्मान विधूनन | Gujarati | 209 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कायस्स विओवाए, एस संगामसीसे वियाहिए। से हु पारंगमे मुनी, अवि हम्ममाणे फलगावयट्ठि, कालोवणीते कंखेज्ज कालं, जाव सरीरभेउ। Translated Sutra: દેહનાશના ભય પર વિજય પ્રાપ્ત કરવો એ સંગ્રામશીર્ષ અર્થાત્ કર્મયુદ્ધનો મુખ્ય મોરચો કહ્યો છે. તે શરીર નો ત્યાગ કરનાર મુનિ જ સંસાર પારગામી છે. તે કષ્ટોથી પીડિત થવા છતાં લાકડાના પાટિયાની જેમ અચલ રહે છે. મૃત્યુકાળ આવવા પર જ્યાં સુધી જીવ અને શરીર ભિન્ન – ભિન્ન ન થાય ત્યાં સુધી મરણકાળ ની પ્રતીક્ષા કરે. એ પ્રમાણે હું |