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Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 41 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं। अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं। से किं तं अंडयं? अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं। से किं तं बोंडयं? बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं। से किं तं कीडयं? कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं। से किं तं वालयं? वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं। से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं। से तं

Translated Sutra: ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्त – द्रव्यश्रुत क्या है ? ताड़पत्रों अथवा पत्रों के समूहरूप पुस्तक में लिखित श्रुत ज्ञायकशरीर – भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुत हैं। अथवा वह पाँच प्रकार का है – अंडज, बोंडज, कीटज, वालज, बल्कज। अंडज किसे कहते हैं ? हंसगर्भादि से बने सूत्र को अंडज कहते हैं। बोंडज किसे कहते हैं ?
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 59 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनेगदवियखंधे? अनेगदवियखंधे–तस्सेव देसे अवचिए तस्सेव देसे उवचिए। से तं अनेगदवियखंधे। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वखंधे। से तं दव्वखंधे।

Translated Sutra: अनेकद्रव्यस्कन्ध क्या है ? एकदेश अपचित्त और एकदेश उपचित्त भाग मिलकर उनका जो समुदाय बनता है, वह अनेकद्रव्यस्कन्ध हैं।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 62 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावखंधे? नोआगमओ भावखंधे–एएसिं चेव सामाइय-माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय-समिति-समागमेणं निप्फन्ने आवस्सयसुयखंधे भावखंधे त्ति लब्भइ। से तं नोआगमओ भावखंधे। से तं भावखंधे।

Translated Sutra: नोआगमभावस्कन्ध क्या है ? परस्पर – सम्बन्धित सामायिक आदि छह अध्ययनों के समुदाय के मिलने से निष्पन्न आवश्यकश्रुतस्कन्ध नोआगमभावस्कन्ध है।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 66 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवस्सयस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तं जहा–

Translated Sutra: आवश्यक के अर्थाधिकारों के नाम इस प्रकार हैं – सावद्ययोगविरति, उत्कीर्तन, गुणवत्‌ प्रतिपत्ति, स्खलित – निन्दा, व्रण – चिकित्सा और गुणधारणा। इस प्रकार से आवश्यकशास्त्र के समुदायार्थ का संक्षेप में कथन करके अब एक – एक अध्ययन का वर्णन करूँगा। उनके नाम यह हैं – सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 217 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो । मंडण-विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमणलिंगो ॥

Translated Sutra: शृंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य – लीला और रमण ये सब शृंगाररस के लक्षण हैं। कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा क्षुद्र घंटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है। सूत्र – २१७, २१८
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 249 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्‌, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्‌, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्‌, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्‌, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्‌। से तं दंदे। से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही। से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए। से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि

Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्‌’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्‌’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्‌’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 256 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-रचिय-कर-कचिय-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दव्वाणं ओमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं ओमाणे। से किं तं गणिमे? गणिमे–जण्णं गणिज्जइ, तं जहा–एगो दस सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी। एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं गणिमप्पमाणेणं भित्तग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्वयसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं गणिमे। से किं तं पडिमाणे? पडिमाणे–जण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहा–गुंजा कागणी निप्फावो कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो। पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ, तिन्नि निप्फावा

Translated Sutra: अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से खात, कुआ आदि, ईंट, पत्थर आदि से निर्मित प्रासाद, पीठ, क्रकचित, आदि, कट, पट, भींत, परिक्षेप, अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लंबाई – चौड़ाई, गहराई और ऊंचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है। गणिमप्रमाण क्या है ? जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 265 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य। तत्थ सुहुमो ठप्पो। से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ। १. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। २. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। ३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु क्या है ? दो प्रकार का सूक्ष्म परमाणु और व्यवहार परमाणु। इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है। अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। व्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? हाँ, कर सकता है। तो क्या वह उस से छिन्न – भिन्न हो सकता
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अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 267 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? । अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं

Translated Sutra: अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन – भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान्‌ परमाणु कहते हैं। वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है। उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्‌श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व – रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 275 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि–से जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासी–जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे। कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं

Translated Sutra: समय किसे कहते हैं ? समय की प्ररूपणा करूँगा। जैसे कोई एक तरुण, बलवान्‌, युगोत्पन्न, नीरोग, स्थिरहस्ताग्र, सुद्रढ़ – विशाल हाथ – पैर, पृष्ठभाग, पृष्ठान्त और उरु वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट – अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक, मुद्‌गर मुष्टिक
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 311 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया

Translated Sutra: संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 18 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भवियसरीरदव्वावस्सयं? भवियसरीरदव्वावस्सयं–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्स-एणं जिनदिट्ठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं।

Translated Sutra: ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સમય પૂર્ણ થતાં જે જીવે યોનિસ્થાનમાંથી બહાર નીકળી જન્મને ધારણ કર્યો છે તેવું બાળક, તે પ્રાપ્ત શરીર સમુદાય દ્વારા જિનોપદિષ્ટ ભાવાનુસાર આવશ્યકપદ ભવિષ્યમાં શીખશે, વર્તમાનમાં શીખતો નથી, જીવના તે શરીરને ભવ્યશરીર દ્રવ્ય આવશ્યક કહે છે. તે માટે કોઈ દૃષ્ટાંત છે ? આ મધુકુંભ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 21 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं? कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ

Translated Sutra: કુપ્રાવચની દ્રવ્ય આવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જેઓ ચરક, ચીરિક, ચર્મખંડિક, ભિક્ષોદંડક, પાંડુરંગ, ગૌતમ, ગોવ્રતિક, ગૃહસ્થ, ધર્મચિંતક, વિનયવાદી, અક્રિયાવાદી, વૃદ્ધ શ્રાવક વગેરે વિવિધ વ્રતધારક પાષંડીઓ રાત્રિ વ્યતીત થઈ પ્રભાતકાળે સૂર્ય ઉદય પામે ત્યારે ઇન્દ્ર, સ્કંધ, રુદ્ર, શિવ, વૈશ્રમણદેવ અથવા દેવ, નાગ, યક્ષ, ભૂત,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 41 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं–पत्तय-पोत्थय-लिहियं। अहवा सुयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं। से किं तं अंडयं? अंडयं–हंसगब्भाइ। से तं अंडयं। से किं तं बोंडयं? बोंडयं–फलिहमाइ। से तं बोंडयं। से किं तं कीडयं? कीडयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे। से तं कीडयं। से किं तं वालयं? वालयं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–उन्निए उट्टिए मियलोमिए कुतवे किट्टिसे। से तं वालयं। से किं तं वक्कयं? वक्कयं–सणमाइ। से तं वक्कयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दव्वसुयं। से तं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૮
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 62 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नोआगमओ भावखंधे? नोआगमओ भावखंधे–एएसिं चेव सामाइय-माइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदय-समिति-समागमेणं निप्फन्ने आवस्सयसुयखंधे भावखंधे त्ति लब्भइ। से तं नोआगमओ भावखंधे। से तं भावखंधे।

Translated Sutra: આ સામાયિક વગેરે છ અધ્યયનો એકત્રિત થવાથી જે સમુદાય સમૂહ આવશ્યક સૂત્ર રૂપ એક શ્રુતસ્કંધ થાય છે. તે નોઆગમથી ભાવસ્કંધ કહેવાય છે. આ નોઆગમથી ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ છે. ભાવસ્કંધનું સ્વરૂપ પૂર્ણ થયું.
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 66 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवस्सयस्स णं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तं जहा–

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૬. આવશ્યક સૂત્રના અર્થાધિકારના નામ આ પ્રમાણે છે – સૂત્ર– ૬૭. ૧. સાવદ્યયોગ વિરતી, ૨. ઉત્કીર્તન, ૩. ગુણવાનની વિનય પ્રતિપત્તિ, ૪. સ્ખલિત પાપ – દોષની નિંદા, ૫. વ્રણ ચિકિત્સા, ૬. ગુણધારણા. સૂત્ર– ૬૮. આ રીતે આવશ્યક સૂત્રના સમુદાયાર્થનું સંક્ષેપ કથન કર્યું છે, હવે એક – એક અધ્યયનનું વર્ણન કરીશ. સૂત્ર– ૬૯. [૧] તે છ આવશ્યકના
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: [૧] છ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? છ નામમાં છ પ્રકારના ભાવ કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક, ૨. ઔપશમિક, ૩. ક્ષાયિક, ૪. ક્ષાયોપશમિક, ૫. પારિણામિક, ૬. સાન્નિપાતિક. [૨] ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔદયિક ભાવના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ઉદય અને ઉદયનિષ્પન્ન. ઉદય – ઔદયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જ્ઞાનાવરણીયાદિ આઠ પ્રકારના
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 217 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो । मंडण-विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमणलिंगो ॥

Translated Sutra: શૃંગારરસ રતિક્રીડાના કારણભૂત સાધનોના સંયોગની અભિલાષાનો જનક છે. મંડન, વિલાસ, વિબ્બોક, હાસ્ય, લીલા અને રમણ આદિ શૃંગારરસના લક્ષણ છે. શૃંગારરસનું બોધક ઉદાહરણ – કામચેષ્ટાઓથી મનોહર કોઈ શ્યામા – સોળ વરસની તરુણી, નાની ઘૂઘરીઓથી મુખરિત હોવાથી મધુર તથા યુવકોના હૃદયને ઉન્મત્ત કરનાર પોતાના કટિસૂત્રનું પ્રદર્શન કરે
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 249 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्‌, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्‌, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्‌, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्‌, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्‌। से तं दंदे। से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही। से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए। से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि

Translated Sutra: [૧] દ્વન્દ્વ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વન્દ્વ સમાસના ઉદાહરણો – દાંત અને ઔષ્ટ – હોઠ તે દંતોષ્ઠ, સ્તનો અને ઉદર તે સ્તનોદર, વસ્ત્ર અને પાત્ર તે વસ્ત્રપાત્ર, અશ્વ અને મહિષ તે અશ્વમહિષ, સાપ અને નોળિયો તે સાપનોળિયો. આ દ્વન્દ્વ સમાસ છે. [૨] બહુવ્રીહિ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? બહુવ્રીહિ સમાસમાં આ પર્વત ઉપર વિકસિત કુટજ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 256 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं ओमाणप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं ओमाणप्पमाणेणं खाय-चिय-रचिय-कर-कचिय-कड-पड-भित्ति-परिक्खेवसंसियाणं दव्वाणं ओमाणप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं ओमाणे। से किं तं गणिमे? गणिमे–जण्णं गणिज्जइ, तं जहा–एगो दस सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी। एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पओयणं? एएणं गणिमप्पमाणेणं भित्तग-भिति-भत्त-वेयण-आय-व्वयसंसियाणं दव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। से तं गणिमे। से किं तं पडिमाणे? पडिमाणे–जण्णं पडिमिणिज्जइ, तं जहा–गुंजा कागणी निप्फावो कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो। पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ कम्ममासओ, तिन्नि निप्फावा

Translated Sutra: [૧] આ અવમાન પ્રમાણનું પ્રયોજન શું છે ? આ અવમાન પ્રમાણથી ખાઈ, પ્રાસાદ પીઠ, કકચિત – કાષ્ઠખંડ, ચટાઈ, વસ્ત્ર, દિવાલ, દિવાલની પરિધિ વગેરે સંબંધિત દ્રવ્યોની લંબાઈ, પહોળાઈ અને ઊંડાઈનું જ્ઞાન થાય છે. આ અવમાન પ્રમાણનું સ્વરૂપ છે. [૨] ગણિમ પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે ગણાય અથવા જેના દ્વારા ગણના કરાય તે ગણિમ પ્રમાણ કહેવાય
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 265 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परमाणू? परमाणू दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुहुमे य वावहारिए य। तत्थ सुहुमो ठप्पो। से किं तं वावहारिए? वावहारिए–अनंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं से एगे वावहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जइ। १. से णं भंते! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा? हंता ओगाहेज्जा। से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। २. से णं भंते! अगणिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा। से णं तत्थ डहेज्जा? नो इणमट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। ३. से णं भंते! पोक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा।

Translated Sutra: પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? પરમાણુ બે પ્રકારના કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. સૂક્ષ્મ પરમાણુ ૨. વ્યવહાર પરમાણુ. બે પ્રકારના પરમાણુમાંથી સૂક્ષ્મ પરમાણુનો અહીં અધિકાર ન હોવાથી તે સ્થાપનીય છે અર્થાત્‌ તેનું વર્ણન ન કરતા વ્યવહાર પરમાણુનું વર્ણન શાસ્ત્રકાર કરે છે. વ્યાવહારિક પરમાણુનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અનંતાનંત
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 267 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? । अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૬૭. [૧] તે અનંતાનંત વ્યાવહારિક પરમાણુઓનો સમુદાય એકત્રિત થવાથી એક ઉત્શ્લક્ષ્ણ શ્લક્ષ્ણિકા, ઉર્ધ્વરેણુ, ત્રસરેણુ, રથરેણુ, વાલાગ્ર, લીખ, જૂ, જવમધ્ય અને આંગુલની નિષ્પત્તિ થાય છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. આઠ ઉત્શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષ્ણિકા = એક શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષણિકા, ૨. આઠ શ્લક્ષ્ણ – શ્લક્ષણિકા = એક ઉર્ધ્વરેણુ, ૩. આઠ
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 275 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समए? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि–से जहानामए तुन्नागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातंके थिरग्गहत्थे दढपाणि-पाय-पास-पिट्ठं-तरोरुपरिणते तलजमलजुयल-परिघनिभबाहू चम्मेट्ठग-दुहण-मुट्ठिय-समाहत-निचित-गत्तकाए उरस्सबलसमन्नागए लंघण, पवण-जइण-वायामसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महतिं पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्थ चोयए पन्नवयं एवं वयासी–जेणं कालेणं तेणं तुन्नागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेत्तं ओसारिए से समए भवइ? नो इणमट्ठे समट्ठे। कम्हा? जम्हा संखेज्जाणं

Translated Sutra: [૧] સમય કોને કહેવાય ? સમયનું સ્વરૂપ શું છે ? કોઈ એક તરુણ, બળવાન, ત્રીજા – ચોથા આરામાં જન્મેલ, નીરોગી, સ્થિર હસ્તાગ્રવાન, સુદૃઢ – વિશાળ હાથ, પગ, પીઠ – પાંસળી અને જંઘાવાળા, દીર્ઘતા, સરલતા અને પીનત્વની દૃષ્ટિથી સમાન – સમશ્રેણીમાં સ્થિત તાલવૃક્ષ યુગલ અથવા કપાટ અર્ગલા તુલ્ય બે ભુજાના ધારક ચર્મેષ્ટક, મુદ્‌ગર, મુષ્ટિકા,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 311 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૧. [૧] સંખ્યા પ્રમાણનું સ્વરૂપ કેવું છે ? સંખ્યા પ્રમાણના આઠ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. નામ સંખ્યા, ૨. સ્થાપના સંખ્યા, ૩. દ્રવ્ય સંખ્યા, ૪. ઔપમ્ય સંખ્યા, ૫. પરિમાણ સંખ્યા, ૬. જ્ઞાન સંખ્યા, ૭. ગણના સંખ્યા, ૮. ભાવ સંખ્યા. [૨] નામ સંખ્યાનું સ્વરૂપ કેવું છે ? જે જીવ, અજીવ, જીવો કે અજીવો અથવા જીવાજીવ, જીવાજીવોનું ‘સંખ્યા’,
Anuyogdwar અનુયોગદ્વારાસૂત્ર Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Gujarati 325 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं निक्खेवे? निक्खेवे तिविहे पन्नत्ते, तं–ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तालावगनिप्फन्ने। से किं तं ओहनिप्फन्ने? ओहनिप्फन्ने चउव्विहे पन्नत्ते, तं–अज्झयणे अज्झीणे आए ज्झवणा। से किं तं अज्झयणे? अज्झयणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नामज्झयणे ठवणज्झयणे दव्वज्झयणे भावज्झयणे। नाम-ट्ठवणाओ गयाओ। से किं तं दव्वज्झयणे? दव्वज्झयणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वज्झयणे? आगमओ दव्वज्झयणे–जस्स णं अज्झयणे त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीनक्खरं अनच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૫. [૧] નિક્ષેપનું સ્વરૂપ કેવું છે ? નિક્ષેપના ત્રણ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપ, ૨. નામનિષ્પન્ન નિક્ષેપ, ૩. સૂત્રલાપકનિષ્પન્ન નિક્ષેપ. [૨] ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઓઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપના ચાર પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે ૧. અધ્યયન, ૨. અક્ષીણ, ૩. આય, ૪. ક્ષપણા. [૩] અધ્યયનનું સ્વરૂપ
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Hindi 11 Sutra Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि भंते! उत्तमट्ठं पडिक्कमामि अईयं पडिक्कमामि १ अनागयं पडिक्कमामि २ पच्चुप्पन्नं पडिक्कमामि ३ कयं पडिक्कमामि १ कारियं पडिक्कमामि २ अनुमोइयं पडिक्कमामि ३, मिच्छत्तं पडिक्कमामि १ असंजमं पडिक्कमामि २ कसायं पडिक्कमामि ३ पावपओगं पडिक्कमामि ४, मिच्छादंसण परिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा; अन्नाणंझाणे १ अनायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ मानंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोभंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तण्हंझाणे

Translated Sutra: हे भगवंत ! मैं अनशन करने की ईच्छा रखता हूँ। पाप व्यवहार को प्रतिक्रमता हूँ। भूतकाल के (पाप को) भावि में होनेवाले (पाप) को, वर्तमान के पाप को, किए हुए पाप को, करवाए हुए पाप को और अनुमोदन किए गए पाप का प्रतिक्रमण करता हूँ, मिथ्यात्व का, अविरति परिणाम, कषाय और पाप व्यापार का प्रतिक्रमण करता हूँ। मिथ्यादर्शन के परिणाम
Aturpratyakhyan આતુર પ્રત્યાખ્યાન Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Gujarati 11 Sutra Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि भंते! उत्तमट्ठं पडिक्कमामि अईयं पडिक्कमामि १ अनागयं पडिक्कमामि २ पच्चुप्पन्नं पडिक्कमामि ३ कयं पडिक्कमामि १ कारियं पडिक्कमामि २ अनुमोइयं पडिक्कमामि ३, मिच्छत्तं पडिक्कमामि १ असंजमं पडिक्कमामि २ कसायं पडिक्कमामि ३ पावपओगं पडिक्कमामि ४, मिच्छादंसण परिणामेसु वा इहलोगेसु वा परलोगेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा पंचसु इंदियत्थेसु वा; अन्नाणंझाणे १ अनायारंझाणे २ कुदंसणंझाणे ३ कोहंझाणे ४ मानंझाणे ५ मायंझाणे ६ लोभंझाणे ७ रागंझाणे ८ दोसंझाणे ९ मोहंझाणे १० इच्छंझाणे ११ मिच्छंझाणे १२ मुच्छंझाणे १३ संकंझाणे १४ कंखंझाणे १५ गेहिंझाणे १६ आसंझाणे १७ तण्हंझाणे

Translated Sutra: હે ભગવન ! હું ઉત્તમાર્થને સાધવા અર્થાત અનશન કરવાને ઇચ્છુ છું. હું ભૂતકાળના, ભાવિમાં થનારા અને વર્તમાનના પાપ વ્યાપારને પ્રતિક્રમુ છું. કરેલા, કરાવેલા અને અનુમોદિત પાપને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાત્વ, અસંયમ કષાય અને પાપપ્રયોગને પ્રતિક્રમુ છું. મિથ્યાદર્શનના પરિણામને વિશે, આલોક કે પરલોકને વિશે, સચિત્ત કે અચિત્તને
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 4 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए

Translated Sutra: उस वन – खण्ड के ठीक बीच के भाग में एक विशाल एवं सुन्दर अशोक वृक्ष था। उसकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध थी। वह वृक्ष उत्तम मूल यावत्‌ रमणीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप था। वह उत्तम अशोक वृक्ष तिलक, लकुच, क्षत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोघ्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कटुज, कदम्ब, सव्य, पनस, दाड़िम,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 6 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए

Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान्‌ पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 11 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवर परिहीए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया!

Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदन को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने अपने मन में आनन्द तथा प्रीति का अनुभव किया। सौम्य मनोभाव व हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसने स्नान किया, नित्य – नैमित्तिक कृत्य किये, कौतुक, तिलक, प्रायश्चित्त, मंगल – विधान किया, शुद्ध, प्रवेश्य – उत्तम वस्त्र भली भाँति पहने, थोड़े
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 12 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ... ...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि

Translated Sutra: भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सूनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेक जनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका, केयूर, मुकूट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे – राजा के गले में लम्बी माला लटक
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 17 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 19 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बाहिरए? बाहिरए छव्विहे, तं जहा–अनसने ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसंलीनया। से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य आवकहिए य। से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिएभत्ते। से तं इत्तरिए। से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइमे य

Translated Sutra: बाह्य तप क्या है ? बाह्य तप छह प्रकार के हैं – अनशन, अवमोदरिका, भिक्षाचर्या, रस – परित्याग, काय – क्लेश और प्रतिसंलीनता। अनशन क्या है ? अनशन दो प्रकार का है – १. इत्वरिक एवं २. यावत्कथिक। इत्वरिक क्या है ? इत्वरिक अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जैसे – चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त, दशम भक्त – चार दिन के उपवास, द्वादश
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 21 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अनगारा भगवंतो– अप्पेगइया आयारधरा अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपन्नत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसा-धरा अप्पेगइया अनुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, ... ...अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टंति अप्पेगइया अनुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ निव्वेयणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया–संजमेणं तवसा अप्पाणं

Translated Sutra: उस काल, उस समय – जब भगवान महावीर चम्पा में पधारे, उनके साथ उनके अनेक अन्तेवासी अनगार थे। उनके कईं एक आचार यावत्‌ विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहीं भिन्न – भिन्न स्थानों पर एक – एक समूह के रूप में, समूह के एक – एक भाग के रूप में तथा फूटकर रूप में विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कईं आगमों की वाचना देते थे। कईं प्रतिपृच्छा
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 28 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालं-कियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपं णयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी– जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं पीहंति, जस्स णं देवानुप्पिया!

Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदक को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने स्नान किया, यावत्‌ संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। अपने घर से नीकला। नीकलकर वह चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वर्त्ती राजसभा – भवन था वहाँ आया। राजा सिंहासन पर बैठा। साढ़े बारह लाख रजत
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 30 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं

Translated Sutra: राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया – महाराज की जैसी आज्ञा। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति – व्यापृत को बुलाया। उससे कहा – देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 31 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं

Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त
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Hindi 32 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभि-णंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी–जयजय णंदा! जयजय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं

Translated Sutra: जब राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से गुजर रहा था, बहुत से अभ्यर्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, वर्धमान, पूष्यमानव, खंडिक – गण, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, मनोभिराम, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाली वाणी से एवं जय विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों
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समवसरण वर्णन

Hindi 34 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ। तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद्‌ को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की धर्मदेशना सूनने को उपस्थित परिषद्‌ में, अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि, यति, देवगण तथा सैकड़ों – सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघबली, अतिबली, महाबली, अपरिमित बल, तेज, महत्ता तथा
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 41 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा महतिमहालिया मनूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्त-मानंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता अत्थेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, अत्थेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवन्ना। अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सुअक्खाए ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुपन्नत्ते ते भंते! निग्गंथे पावयणे, सुभासिए ते भंते! निग्गंथे

Translated Sutra: तब वह विशाल मनुष्य – परिषद्‌ श्रमण भगवान महावीर से धर्म सूनकर, हृदय में धारण कर, हृष्ट – तुष्ट हुई, चित्त में आनन्द एवं प्रीति का अनुभव किया, अत्यन्त सौम्य मानसिक भावों से युक्त तथा हर्षातिरेक से विकसित – हृदय होकर उठी। उठकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा, वंदन – नमस्कार किया, उनमें से कईं
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 44 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 48 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था। ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ। एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो। तेसि णं परिव्वायाणं

Translated Sutra: वे परिव्राजक ऋक्‌, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 50 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन्‌ ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 51 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए

Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्‌भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 4 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए

Translated Sutra: [૧] તે વનખંડના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટું ઉત્તમ એવું અશોકવૃક્ષ હતું. તેનું મૂળ ડાભ અને તૃણોથી રહિત હતું. તે વૃક્ષ ઉત્તમ મૂળ, કંદ યાવત્‌ પર્યાપ્ત સ્થાનવાળું, સુરમ્ય – પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતું. [૨] તે ઉત્તમ અશોકવૃક્ષ, બીજા પણ ઘણા તિલક, લકુચ, ક્ષત્રોપ, શિરીષ, સપ્તવર્ણ, દધિપર્ણ, લોઘ્ર, ધવ, ચંદન,
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 6 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए

Translated Sutra: તે ચંપાનગરીમાં કૂણિક નામે રાજા વસતો હતો. તે મહાહિમવંત પર્વતની સમાન મહંત, મલય – મેરુ અને મહેન્દ્ર પર્વત સદૃશ પ્રધાન હતો. અત્યંત વિશુદ્ધ દીર્ઘ રાજકુલ વંશમાં જન્મેલો હતો. નિરંતર રાજલક્ષણ વિરાજિત અંગોપાંગ – યુક્ત હતો. ઘણા લોકો દ્વારા બહુમાન્ય અને પૂજિત હતો. સર્વગુણ સમૃદ્ધ હતો. તે શુદ્ધ ક્ષત્રિયવંશમાં જન્મેલ
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર, જે શ્રુત અને ચારિત્ર ધર્મના – આદિકર, તીર્થની સ્થાપના કરનાર – તીર્થકર, સ્વયં બોધ પામેલા – સ્વયંસંબુદ્ધ, જ્ઞાનાદિ અનંત ગુણોથી – પુરુષોત્તમ, કર્મ શત્રુ નાશ કર્તા હોવાથી – પુરુષસિંહ, શ્વેત કમળ સમ નિર્મલ અને નિર્લેપ – પુરુષવરપુંડરિક, ઉત્તમ હાથીની જેમ બીજા ઉપર વિજય મેળવનાર
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Gujarati 11 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवर परिहीए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया!

Translated Sutra: ત્યારે ભગવાનના સમાચાર જણાવવા નિમાયેલ પ્રવૃત્તિ નિવેદકને આ વૃત્તાંત જાણવા મળતા હર્ષિત, સંતુષ્ટ, આનંદિત ચિત્ત, પ્રીતિયુક્ત મનવાળો થયો. પરમ સૌમનસ્યથી અને હર્ષને વશ થઈ તેનું હૃદય વિકસિત થયું. તેણે સ્નાન – બલિકર્મ – કૌતુક મંગલ પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા. શુદ્ધ, પ્રાવેશ્ય, મંગલ, ઉત્તમ વસ્ત્રો પહેર્યા. અલ્પ પણ મહાર્ધ આભરણથી
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