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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१३ थी १७ | Hindi | 716 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नागकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्देसे तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव इड्ढी।
सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी नागकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! जैसे सोलहवें शतक के द्वीपकुमार उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार सब कथन, ऋद्धि तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१३ थी १७ | Hindi | 717 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सुवण्णकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी सुवर्णकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! पूर्ववत्। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१३ थी १७ | Hindi | 718 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विज्जुकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी विद्युत्कुमार देव समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! पूर्ववत्। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१३ थी १७ | Hindi | 719 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वायुकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी वायुकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। (गौतम !) पूर्ववत्। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१३ थी १७ | Hindi | 720 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गिकुमारा णं भंते! सव्वे समाहारा? एवं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी अग्निकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। (गौतम !) पूर्ववत्। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१ प्रथम | Hindi | 722 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवे णं भंते! जीवभावेणं किं पढमे? अपढमे?
गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं नेरइए जाव वेमाणिए।
सिद्धे णं भंते! सिद्धभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! पढमे, नो अपढमे।
जीवा णं भंते! जीवभावेणं किं पढमा? अपढमा?
गोयमा! नो पढमा, अपढमा। एवं जाव वेमाणिया।
सिद्धा णं–पुच्छा।
गोयमा! पढमा, नो अपढमा।
आहारए णं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे? अपढमे?
गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं जाव वेमाणिए। पोहत्तिए एवं चेव।
अनाहारए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा।
गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे।
नेरइए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा।
एवं नेरइए जाव वेमाणिए नो पढमे, अपढमे। Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत् पूछा – भगवन् ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना। भगवन् ! सिद्ध – जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है। भगवन् ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१ प्रथम | Hindi | 724 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवभावेण किं चरिमे? अचरिमे? गोयमा! नो चरिमे, अचरिमे।
नेरइए णं भंते! नेरइयभावेणं–पुच्छा।
गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे। एवं जाव वेमाणिए। सिद्धे जहा जीवे।
जीवा णं–पुच्छा।
गोयमा! नो चरिमा, अचरिमा।नेरइया चरिमा वि, अचरिमा वि।एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा जहा जीवा
आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। अनाहारओ जीवो सिद्धो य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो चरिमो, अचरिमो। सेसट्ठाणेसु एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारओ।
भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे, नो अचरिमे। सेसट्ठाणेसु जहा आहारओ। अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे, Translated Sutra: भगवन् ! जीव, जीवभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! चरम नहीं, अचरम है। भगवन् ! नैरयिक जीव, नैरयिकभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! वह कदाचित् चरम है, और कदाचित् अचरम है। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए। सिद्ध का कथन जीव के समान जानना चाहिए। अनेक जीवों के विषय में चरम – अचरम – सम्बन्धी प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-३ माकंदी पुत्र | Hindi | 728 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मागंदियपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए–जहा मंडियपुत्ते जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–
से नूनं भंते! काउलेस्से पुढविकाइए काउलेस्सेहिंतो, पुढविकाइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झति, बुज्झित्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति?
हंता मागंदियपुत्ता! काउलेस्से पुढविकाइए जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति।
से नूनं भंते! काउलेस्से आउकाइए काउलेस्सेहिंतो आउकाइएहिंतो अनंतरं Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगर था। वहाँ गुणशील नामक चैत्य था। यावत् परीषद् वन्दना करके वापिस लौट गई। उस काल एवं उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी यावत् प्रकृतिभद्र माकन्दिपुत्र नामक अनगार ने, मण्डितपुत्र अनगार के समान यावत् पर्युपासना करते हुए पूछा – भगवन् ! क्या कापोतलेश्यी पृथ्वीकायिक जीव, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 733 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं वयासी–अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छा-दंसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणे, पुढविक्काइए जाव वणस्सइकाइए, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्धे, परमाणु-पोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे, सव्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा– एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति?
गोयमा! पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थे गइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पाणाइवाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, यावत् मिथ्या – दर्शनशल्यविवेक तथा पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 734 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसाया पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कसायपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव निज्जरिस्संति लोभेणं।
कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव कलिओगे?
गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं कडजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अव-हीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं तेयोगे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं दावरजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं कलिओगे। से तेणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! कषाय कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! चार प्रकार का, इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र का कषाय पद, लोभ के वेदन द्वारा अष्टविध कर्मप्रकृतियों की निर्जरा करेंगे, तक कहना चाहिए। भगवन् ! युग्म (राशियाँ) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार हैं, यथा – कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। भगवन् ! आप किस कारण से कहते हैं? | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 736 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना, तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एगे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए नो दरिसणिज्जे नो अभिरूवे नो पडिरूवे, से कह-मेयं भंते! एवं?
गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्वियसरीरा य, अवेउव्वियसरीरा य। तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं पासादीए जाव पडिरूवे। तत्थ णं जे से अवेउव्वियसरीरे असुरकुमारे देवे से णं नो पासादीए जाव नो पडिरूवे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तत्थ णं जे से वेउव्वियसरीरे तं चेव जाव नो पडिरूवे?
गोयमा! से जहानामए–इह Translated Sutra: भगवन् ! दो असुरकुमार देव, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमारदेवरूप में उत्पन्न हुए। उनमें से एक असुरकुमारदेव प्रासादीय, दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, जबकि दूसरा असुरकुमारदेव न तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला होता है, न दर्शनीय, सुन्दर और मनोरम होता है, भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! असुरकुमारदेव दो प्रकार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 737 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! नेरइया एगंसि नेरइयावासंसि नेरइयत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेयणतराए चेव, एगे नेरइए अप्पकम्मतराए चेव, अप्पकिरियतराए चेव, अप्पासवतराए चेव, अप्पवेयणताए चेव, से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगा य, अमायिसम्मदिट्ठि-उववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव। तत्थ णं जे से अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव।
दो भंते! असुरकुमारा? एवं चेव। एवं एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं Translated Sutra: भगवन् ! दो नैरयिक एक ही नरकावास में नैरयिकरूप से उत्पन्न हुए। उनमें से एक नैरयिक महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला और एक नैरयिक अल्पकर्म वाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है, तो भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा – मायीमिथ्यादृष्टि – उपपन्नक और अमायीसम्यग्दृष्टि – उपपन्नक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 738 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कयरं आउयं पडिसंवेदेति?
गोयमा! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाउए से पुरओ कडे चिट्ठति। एवं मनुस्सेसु वि, नवरं–मनुस्साउए से पुरओ कडे चिट्ठति।
असुरकुमारे णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! कयरं आउयं पडिसंवेदेति?
गोयमा! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति, पुढविकाइयाउए से पुरओ कडे चिट्ठति। एवं जो जहिं भविओ उववज्जित्तए तस्स तं पुरओ कडं चिट्ठति, जत्थ ठिओ तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए, नवरं–पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जति, पुढविकाइयाउयं Translated Sutra: भगवन् ! जो नैरयिक मरकर अन्तर – रहित पंचेन्द्रियतिर्यञ्चोनिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं, भगवन् ! वह किस आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ? गौतम ! वह नारक नैरयिक – आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, और पंचे – न्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के आयुष्य के उदयाभिमुख – करके रहता है। इसी प्रकार मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-५ असुरकुमार | Hindi | 739 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमारदेवत्ताए उववन्ना। तत्थ णं एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, जं जहा इच्छइ तं जहा विउव्वइ। एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ, वंकं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ, जं जहा इच्छति तं तहा विउव्वइ, से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगा य, अमायि-सम्मदिट्ठीउववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वइ जाव Translated Sutra: भगवन् ! दो असुरकुमार, एक ही असुरकुमारावास में असुरकुमार रूप से उत्पन्न हुए, उनमें से एक असुर – कुमार देव यदि वह चाहे कि मैं ऋजु से विकुर्वणा करूँगा; तो वह ऋजु – विकुर्वणा कर सकता है और यदि वह चाहे कि मैं वक्र रूप में विकुर्वणा करूँगा, तो वह वक्र – विकुर्वणा कर सकता है। जब कि एक असुरकुमारदेव चाहता है कि मैं ऋजु – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-६ गुडवर्णादि | Hindi | 740 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] फाणियगुले णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा– नेच्छइयनए य, वावाहारियनए य। वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे पन्नत्ते।
भमरे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा– नेच्छइयनए य, वावाहारियनए य। वावाहारिय-नयस्स कालए भमरे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते।
सुयपिच्छे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते?
एवं चेव, नवरं वावहारियनयस्स नीलए सुयपिच्छे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते।
एवं Translated Sutra: भगवन् ! फाणित गुड़ कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम! इस विषय में दो नयों हैं, यथा – नैश्चयिक नय और व्यावहारिक नय। व्यावहारिक नय की अपेक्षा से फाणित – गुड़ मधुर रस वाला कहा गया है और नैश्चयिक नय की दृष्टि से गुड़ पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला कहा गया है। भगवन् ! भ्रमर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-६ गुडवर्णादि | Hindi | 741 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पन्नत्ते।
दुपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते।
तिपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय तिरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते।
चउपएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय तिवण्णे, Translated Sutra: भगवन् ! परमाणुपुद्गल कितने वर्ण वाला यावत् कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! वह एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा है। भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्ण आदि वाला है ? इत्यादि प्रश्न गौतम ! वह कदाचित् एक वर्ण, कदाचित् दो वर्ण, कदाचित् एक गन्ध या दो गन्ध, कदाचित् एक रस, दो रस, कदाचित् दो स्पर्श, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 743 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही, सरीरोवही, बाहिरभंडमत्तोवगरणोवही।
नेरइया णं भंते! – पुच्छा।
गोयमा! दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही य, सरीरोवही य। सेसाणं तिविहे उवही एगिंदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं। एगिंदियाणं दुविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही य, सरीरोवही य।
कतिविहे णं भंते! उवही पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–सच्चित्ते, अचित्ते, मीसाए। एवं नेरइयाण वि। एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं।
कतिविहे णं भंते! परिग्गहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नत्ते, तं जहा– कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंड-मत्तोवगरण-परिग्गहे।
नेरइयाणं Translated Sutra: भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! तीन प्रकार की। यथा – कर्मोपधि, शरीरोपधि और बाह्यभाण्डमात्रोपकरणउपधि। भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ? गौतम ! दो प्रकार की, कर्मोपधि और शरीरोपधि। एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक तक शेष सभी जीवों के तीन प्रकार की उपधि होती है। एकेन्द्रिय जीवों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 744 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई।
तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं।
तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत् वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत् – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-८ अनगार क्रिया | Hindi | 751 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति?
गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति।
छउमत्थे णं भंते! मनुस्से दुपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति?
गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। एवं जाव असंखेज्ज-पएसियं।
छउमत्थे णं भंते! मनुस्से अनंतपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति?
गोयमा! अत्थेगतिए जाणति-पासति, अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति।
आहोहिए णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? जहा छउमत्थे Translated Sutra: भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु – पुद्गल को जानता – देखता है अथवा नहीं जानता – नहीं देखता है ? गौतम ! कोई जानता है, किन्तु देखता नहीं, और कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य द्वीप्रदेशी स्कन्ध को जानता – देखता है, अथवा नहीं जानता, नहीं देखता है ? गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 754 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा परमाणुपोग्गलेणं फुडे?
गोयमा! परमाणुपोग्गले वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए परमाणुपोग्गलेणं फुडे।
दुप्पएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा दुप्पएसिएणं खंधेणं फुडे? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जपएसिए।
अनंतपएसिए णं भंते! खंधे वाउयाएणं फुडे–पुच्छा।
गोयमा! अनंतपएसिए खंधे वाउयाएणं फुडे, वाउयाए अनंतपएसिएणं खंधेणं सिय फुडे, सिय नो फुडे।
वत्थी भंते! वाउयाएणं फुडे? वाउयाए वा वत्थिणा फुडे?
गोयमा! वत्थी वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए वत्थिणा फुडे। Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल, वायुकाय से स्पृष्ट है, अथवा वायुकाय परमाणु – पुद्गल से स्पृष्ट है ? गौतम ! परमाणु – पुद्गल वायुकाय से स्पृष्ट है, किन्तु वायुकाय परमाणु – पुद्गल से स्पृष्ट नहीं है। भगवन् ! द्विप्रदेशिक – स्कन्ध वायुकाय से स्पृष्ट है या वायुकाय द्विप्रदेशिक – स्कन्ध से स्पृष्ट है ? गौतम ! पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 755 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से – काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से – सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से – तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 756 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य, कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति।
तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था। उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था। जो आढ्य यावत् अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत् अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था। वह पाँच – सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख – पूर्वक जीवनयापन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-१० व्यंतर | Hindi | 778 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी वाणव्यन्तर देव समान आहार वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। (गौतम !) सोलहवें शतक के द्वीपकुमारोद्देशक के अनुसार अल्पर्द्धिक – पर्यन्त जानना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 791 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा सत्तरसमसए वाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि, नवरं–अंतरेसु समोहणा नेयव्वा, सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमानाणं ईसीपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घनवाय-तनुवाए घनवाय-तनुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं जाव उववज्जेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं; इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! सत्तरहवे शतक के दसवे उद्देशक समान यहाँ भी कहना। विशेष यह है कि रत्नप्रभा आदि पृथ्वीयों के अन्तरालों में मरणसमुद्घातपूर्वक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-१० सोपक्रमजीव | Hindi | 805 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! किं कतिसंचिया? अकतिसंचिया? अवत्तव्वगसंचिया?
गोयमा! नेरइया कतिसंचिया वि, अकतिसंचिया वि, अवत्तव्वगसंचिया वि।
से केणट्ठेणं जाव अवत्तव्वगसंचिया वि?
गोयमा! जे णं नेरइया संखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया कतिसंचिया, जे णं नेरइया असंखेज्जएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अकतिसंचिया, जे णं नेरइया एक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया अवत्तव्वगसंचिया। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव अवत्तव्वगसंचिया वि। एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविक्काइयाणं–पुच्छा।
गोयमा! पुढविकाइया नो कतिसंचिया, अकतिसंचिया, नो अवत्तव्वगसंचिया।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव नो Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कतिसंचित हैं, अकतिसंचित हैं अथवा अवक्तव्यसंचित ? गौतम ! तीनों हैं। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया है ? गौतम ! जो नैरयिक संख्यात प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरयिक एक – एक (करके) प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमारों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 838 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति।
जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 839 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति।
जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा।
गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति।
पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२ परिमाण | Hindi | 843 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव–
पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा | Hindi | 844 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति।
जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत् उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन् !) यदि वे (नागकुमार) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 846 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव–
जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि?
गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति।
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 847 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। Translated Sutra: भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 848 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति।
असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय।
जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? Translated Sutra: (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 851 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं जहेव तेउक्काइय उद्देसओ तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! वायुकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। तेजस्कायिक – उद्देशक के समान हैं। स्थिति और संवेध तेजस्कायिक से भिन्न समझना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 852 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो, नवरं–जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जंति ताहे पढम-बितिय-चउत्थ-पंचमेसु गमएसु परिमाणं अनुसमयं अविरहियं अनंता उववज्जंति।
भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अनंताइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अनंतं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। यह उद्देशक पृथ्वीकायिक – उद्देशक के समान है। विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पाँचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। भव की अपेक्षा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि | Hindi | 854 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेइंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं तेइंदियाणं जहेव बेइंदियाणं उद्देसो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। तेउक्काइएसु समं ततियगमे उक्कोसेणं अट्ठुत्तराइं बेराइंदियसयाइं, बेइंदिएहिं समं ततियगमे उक्कोसेणं अडयालीसं संवच्छराइं छन्नउयराइंदियसतमब्भहियाइं, तेइंदिएहिं समं ततिय-गमे उक्कोसेणं बाणउयाइं तिन्नि राइंदियसयाइं। एवं सव्वत्थ जाणेज्जा जाव सण्णिमनुस्स त्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। द्वीन्द्रिय – उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए। तेजस्कायिकों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट २०८ रात्रि – दिवस का और द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि | Hindi | 855 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउरिंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहेव चउरिंदियाणं वि, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। त्रीन्द्रिय – उद्देशक चतुरिन्द्रिय जीवों के विषयमें समझना चाहिए। विशेष – स्थिति और संवेध अनुसार (भिन्न) जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय | Hindi | 856 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२१ मनुष्य | Hindi | 857 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 881 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता– कडजुम्मे जाव कलियोगे? एवं जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए तहेव जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ।
नेरइयाणं भंते! कति जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे? अट्ठो तहेव। एवं जाव वाउकाइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा।
से Translated Sutra: भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा – कृतयुग्म यावत् कल्योज। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है। भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं। यथा – कृतयुग्म यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 882 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे। एवं नेरइए वि। एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा।
नेरइया णं भंते! दव्वट्ठयाए–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलि-योगा। एवं जाव सिद्धा।
जीवे णं भंते! पदेसट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! जीवपदेसे पडुच्च कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, Translated Sutra: भगवन् ! (एक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वह कल्योज रूप है। इसी प्रकार (एक) नैरयिक यावत् सिद्ध – पर्यन्त जानना। भगवन् ! (अनेक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म है। विधानादेश से कल्योज रूप है। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक द्रव्यार्थरूप से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 883 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं कडजुम्मपदेसोगाढे–पुच्छा।
गोयमा! सिय कडजुम्मपदेसोगाढे जाव सिय कलियोगपदेसोगाढे। एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! किं कडजुम्मपदेसोगाढा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा; विहा-णादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि जाव कलियोगपदेसोगाढा वि।
नेरइयाणं–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मपदेसोगाढा जाव सिय कलियोगपदेसोगाढा; विहाणादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि जाव कलियोगपदेसोगाढा वि। एवं एगिंदिय-सिद्धवज्जा सव्वे वि। सिद्धा एगिंदिया य जहा जीवा।
जीवे णं भंते! किं कडजुम्मसमयट्ठितीए–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जीव कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म – यावत् कदाचित् कृतयुग्म – यावत् कदाचित् कल्योज – प्रदेशावगाढ़ होता है। इसी प्रकार (एक) सिद्धपर्यन्त जानना। भगवन् ! (बहुत) जीव कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ हैं ? गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ हैं। विधानादेश से वे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 884 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कालावण्णपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! जीवपदेसे पडुच्च ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि नो कडजुम्मा जाव नो कलियोगा। सरीरपदेसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि। एवं जाव वेमाणिया। एवं नीलावण्णपज्जवेहिं दंडओ भाणियव्वो एगत्तपुहत्तेणं। एवं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं।
जीवे णं भंते! आभिनिबोहियनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! आभिनिबोहियनाणपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा Translated Sutra: भगवन् ! (अनेक) जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! जीव – प्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से भी और विधानादेश से भी न तो कृतयुग्म हैं यावत् न कल्योज हैं। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 887 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गला णं भंते! किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। एवं जाव अनंतपदेसिया खंधा।
एगपदेसोगाढा णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढा
एगसमयट्ठितीया णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जसमयट्ठितीया।
एगगुणकालगा णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव अनंतगुणकालगा। एवं अवसेसा वि वण्णगंधरसफासा नेयव्वा जाव अनंतगुणलुक्ख त्ति।
एएसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं दुपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो बहुया?
गोयमा! दुपदेसिएहिंतो खंधेहिंतो परमाणुपोग्गला Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना। भगवन् ! आकाश के एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 889 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे? तेयोए? दावरजुम्मे? कलियोगे?
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे। एवं जाव अनंतपदेसिए खंधे।
परमाणुपोग्गला णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। एवं जाव अनंतपदेसिया खंधा।
परमाणुपोग्गले णं भंते! पदेसट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे।
दुपदेसिय–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, दावरजुम्मे, नो कलियोगे।
तिपदेसिए–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, Translated Sutra: भगवन् ! (बहुत) परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थ से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कल्योज हैं; किन्तु विधानादेश से कृतयुग्म, त्र्योज या द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज हैं। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त जानना। भगवन् ! परमाणुपुद्गल प्रदेशार्थ से कृतयुग्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 891 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सेए? निरेए?
गोयमा! सिय सेए, सिय निरेए। एवं जाव अनंतपदेसिए।
परमाणुपोग्गला णं भंते! किं सेया? निरेया?
गोयमा! सेया वि, निरेया वि। एवं जाव अनंतपदेसिया।
परमाणुपोग्गले णं भंते! सेए कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं।
परमाणुपोग्गले णं भंते! निरेए कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतपदेसिए।
परमाणुपोग्गला णं भंते! सेया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! सव्वद्धं।
परमाणुपोग्गला णं भंते! निरेया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! सव्वद्ध। एवं जाव अनंतपदेसिया।
परमाणुपोग्गलस्स Translated Sutra: भगवन् ! (एक) परमाणु – पुद्गल सैज (सकम्प) है या निरेज (निष्कम्प) ? गौतम ! वह कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्धपर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! (बहुत) परमाणु – पुद्गल सकम्प होते हैं या निष्कम्प ? गौतम ! दोनों। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना। भगवन् ! परमाणु | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 894 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवलिया णं भंते! किं संखेज्जा समया? असंखेज्जा समया? अनंता समया?
गोयमा! नो संखेज्जा समया, असंखेज्जा समया, नो अनंता समया।
आणापाणू णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव।
थोवे णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं लवे वि, मुहुत्ते वि, एवं अहोरत्ते, एवं पक्खे, मासे, उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुव्वंगे, पुव्वे, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिपूरंगे, अत्थनिपूरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिए, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी। एवं उस्सप्पिणी Translated Sutra: भगवन् ! क्या आवलिका संख्यात समय की, असंख्यात समय की या अनन्त समय की होती है ? गौतम ! वह केवल असंख्यात समय की होती है। भगवन् ! आनप्राण संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। भगवन् ! स्तोक संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 903 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा। एवं जाव सिणाए।
पुलाए णं भंते! किं जिनकप्पे होज्जा? थेरकप्पे होज्जा? कप्पातीते होज्जा?
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, थेरकप्पे होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा।
बउसे णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, कप्पातीते वा होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, नो थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक स्थितकल्प में होता है, अथवा अस्थितकल्प में होता है ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक जानना। भगवन् ! पुलाक जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है अथवा कल्पातीत में होता है ? गौतम ! वह स्थविरकल्प में होता है। भगवन् ! बकुश जिनकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 916 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सजोगी होज्जा? अजोगी होज्जा?
गोयमा! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा।
जइ सजोगी होज्जा किं मनजोगी होज्जा? वइजोगी होज्जा? कायजोगी होज्जा?
गोयमा! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा। एवं जाव नियंठे।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा। जइ सजोगी होज्जा किं मनजोगी होज्जा–सेसं जहा पुलागस्स। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सयोगी होता है या अयोगी होता है ? गौतम ! वह सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता है। भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है या काययोगी होता है ? गौतम! तीनो योग वाला होता है। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिए। भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह सयोगी भी होता है और अयोगी भी। |