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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Hindi | 111 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मडाई णं भंते! नियंठे निरुद्धभवे, निरुद्धभवपवंचे, पहीणसंसारे, पहीणसंसारवेयणिज्जे, वोच्छिन्न-संसारे, वोच्छिन्नसंसारवेयणिज्जे, निट्ठियट्ठे, निट्ठियट्ठकरणिज्जे नो पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ?
हंता गोयमा! मडाई णं नियंठे निरुद्धभवे, निरुद्धभवपवंचे, पहीणसंसारे, पहीणसंसार-वेयणिज्जे, वोच्छिन्न-संसारे, वोच्छिन्न-संसारवेयणिज्जे, निट्ठियट्ठे, निट्ठियट्ठ-करणिज्जे नो पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ।
से णं भंते! किं ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! सिद्धे त्ति वत्तव्वं सिया। बुद्धे त्ति वत्तव्वं सिया। मुत्ते त्ति वत्तव्वं सिया। पारगए त्ति वत्तव्वं सिया। परंपरगए त्ति वत्तव्वं Translated Sutra: भगवन् ! जिसने संसार का निरोध किया है, जिसने संसार के प्रपंच का निरोध किया है, यावत् जिसने अपना कार्य सिद्ध कर लिया है, ऐसा प्रासुकभोजी अनगार क्या फिर मनुष्यभव आदि भवों को प्राप्त नहीं होता ? हाँ, गौतम ! पूर्वोक्त स्वरूप वाला निर्ग्रन्थ अनगार फिर मनुष्यभव आदि भवों को प्राप्त नहीं होता। हे भगवन् ! पूर्वोक्त स्वरूपवाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Hindi | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: उस काल उस समय में कृतंगला नामकी नगरी थी। उस कृतंगला नगरी के बाहर ईशानकोण में छत्रपला – शक नामका चैत्य था। वहाँ किसी समय उत्पन्न हुए केवलज्ञान – केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। यावत् – भगवान का समवसरण हुआ। परीषद् धर्मोपदेश सूनने के लिए नीकली। उस कृतंगला नगरी के निकट श्रावस्ती नगरी थी। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 228 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अइमुत्ते नामं कुमार-समणे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए।
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे अन्नया कयाइ महावुट्ठिकायंसि निवयमाणंसि कक्ख-पडिग्गहरयहरणमायाए बहिया संपट्ठिए विहाराए।
तए णं से अइमुत्ते कुमार-समणे वाहयं वहमाणं पासइ, पासित्ता मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता नाविया मे, नाविया मे नाविओ विव णावमयं पडिग्गहगं उदगंसि पव्वाहमाणे-नव्वाहमाणे अभिरमइ। तं च थेरा अद्दक्खु। जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वदासी–
एवं खलु देवानुप्पियाणं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी अतिमुक्तक नामक कुमार श्रमण थे। वे प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। पश्चात् वह अतिमुक्तक कुमार श्रमण किसी दिन मूसलधार वर्षा पड़ रही थी, तब कांख में अपने रजोहरण तथा पात्र लेकर बाहर स्थण्डिल भूमिका में (बड़ी शंका निवारण) के लिए रवाना हुए। तत्पश्चात् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-४ शब्द | Hindi | 232 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ?
हंता जाणइ-पासइ।
जहा णं भंते! केवली अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा।
से किं तं सोच्चा?
सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलि-उवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा तप्पक्खिय-उवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा। से तं सोच्चा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या केवली मनुष्य संसार का अन्त करने वाले को अथवा चरमशरीरी को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह उसे जानता – देखता है। भगवन् ! जिस प्रकार केवली मनुष्य अन्तकर को, अथवा अन्तिमशरीरी को जानता – देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ – मनुष्य जानता – देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, छद्मस्थ मनुष्य किसी से सूनकर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Hindi | 242 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवं भूयं वेदनं वेदेंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदेणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! जे णं पाणा Translated Sutra: भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन् ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Hindi | 282 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए?
गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए।
जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए।
से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए Translated Sutra: भगवन् ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त है, सादिअनन्त है, अनादि – सान्त है, अथवा अनादि – अनन्त है ? गौतम ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि – अनन्त होता है, न अनादि – सान्त होता है और न अनादि – अनन्त होता है। हे भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलोपचय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-४ जीव | Hindi | 351 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि– कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता?
गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा–सम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के हैं? गौतम ! छह प्रकार के – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एवं त्रस – कायिक। इस प्रकार यह समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया पर्यन्त कहना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-५ आजीविक | Hindi | 403 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आजीवियसमयस्स णं अयमट्ठे–अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता; से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपित्ता, विलुंपित्ता, उद्दवइत्ता आहारमाहारेंति।
तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तं जहा–१. ताले २. तालपलंबे ३. उव्विहे ४. संविहे ५. अवविहे ६. उदए ७. नामुदए ८. णम्मुदए ९. अणुवालए १. संखवालए ११. अयंपुले १२. कायरए – इच्चेते दुवालस आजीविओवासगा अरहंतदेवतागा, अम्मापिउसुस्सूसगा, पंचफल-पडिक्कंता, तं जहा–उंबरेहिं, वडेहिं, बोरेहिं, सतरेहिं, पिलक्खूहिं पलंडु-ल्हसुणकंदमूलविवज्जगा, अनिल्लंछिएहिं अनक्कभिन्नेहिं गोणेहि तसपाणविवज्जिएहिं छेत्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति।
एए वि ताव एवं Translated Sutra: आजीविक के सिद्धान्त का यह अर्थ है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी होते हैं। इसलिए वे हनन करके, काटकर, भेदन करके, कतर कर, उतार कर और विनष्ट करके खाते हैं। ऐसी स्थिति (संसार के समस्त जीव असंयत और हिंसादिदोषपरायण हैं) में आजीविक मत में ये बारह आजीविकोपासक हैं – ताल, तालप्रलम्ब, उद्विध, संविध, अवविध, उदय, नामोदय, नर्मोदय, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 464 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं Translated Sutra: श्रमण भगवान् महावीर के पास से धमृ सुन कर और उसे हृदयंगम करके हर्षित और सन्तुष्ट क्षत्रियकुमार जमालि यावत् उठा और खड़े होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की यावत् वन्दन – नमन किया और कहा – ‘‘भगवन् ! मैं र्निग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं। भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर प्रतीत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 465 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति।
तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति।
तए Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 469 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: कतिविहा णं भंते! देवकिव्विसिया पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा देवकिव्विसिया पन्नत्ता, तं जहा–तिपलिओवमट्ठिइया, तिसागरोवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्ठिइया।
कहिं णं भंते! तिपलिओवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिइया देव-किव्विसिया परिवसंति।
कहिं णं भंते! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसानाणं कप्पाणं, हिट्ठिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति।
कहिं णं भंते! तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स Translated Sutra: भगवन् ! किल्विषिक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के – तीन पल्योपम की स्थिति वाले, तीन सागरोपम की स्थिति वाले और तेरह सागरोपम की स्थिति वाले ! भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधर्म – ईशान कल्पों के नीचे तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Hindi | 470 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: जमाली णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवभवग्गहणाइं संसारं अनुपरियट्टित्ता तओ पच्छा, सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होते पर यावत् कहाँ उत्पान्न होगा ? गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पांच भव ग्रहण करके और इतना संसार – परिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Hindi | 533 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
कोहवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ?
संखा! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ।
मानवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? Translated Sutra: इसके बाद उस शंख श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – ‘भगवन्! क्रोध के वश – आर्त्त बना हुआ जीव कौन – से कर्म बाँधता है ? क्या करता है ? किसका चय करता है और किसका उपचय करता है ? शंख ! क्रोधवश – आर्त्त बना हुआ जीव आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों की शिथिल बन्धन से बंधी हुई प्रकृतियों को | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-२ जयंति | Hindi | 536 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति?
जयंती! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरतिरति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति।
कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति?
जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं मुसावायवेरमणेणं अदिन्नादानवेरमणेणं मेहुणवेरमणेणं परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ- पेज्ज-दोस- Translated Sutra: वह जयन्ती श्रमणोपासिका श्रमण भगवान महावीर से धर्मोपदेश श्रवण कर एवं अवधारण करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। फिर भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! जीव किस कारण से शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं ? जयन्ती ! जीव प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह पापस्थानों के सेवन से शीघ्र गुरुत्व | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-६ राहु;उद्देशक-७ लोक | Hindi | 550 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते–पुरत्थिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडा-कोडीओ, एवं पच्चत्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उड्ढं पि, अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं।
एयंसि णं भंते! एमहालगंसि लोगंसि अत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि?
गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे अया-सयस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में यावत् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से प्रश्न किया – भगवन् ! लोक कितना बड़ा है ? गौतम ! लोक महातिमहान है। पूर्वदिशा में असंख्येय कोटा – कोटि योजन है। इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम, उत्तर एवं ऊर्ध्व तथा अधोदिशा में भी असंख्येय कोटा – कोटि योजन – आयाम – विष्कम्भ वाला है। भगवन् ! इतने बड़े लोक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-८ नाग | Hindi | 552 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता बिसरीरेसु नागेसु उववज्जेज्जा?
हंता उववज्जेज्जा।
से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय-पाडिहेरे यावि भवेज्जा?
हंता भवेज्जा।
से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा?
हंता सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा।
देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता बिसरीरेसु मणीसु उववज्जेज्जा?
हंता उववज्जेज्जा। एवं चेव जहा नागाणं।
देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महेसक्खे अनंतरं चयं चइत्ता Translated Sutra: उस काल और उस समय में गौतम स्वामी ने यावत् पूछा – भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुख वाला देव च्यव कर क्या द्विशरीरी नागों में उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! वह वहाँ नाग के भव में अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कारित, सम्मानित, दिव्य, प्रधान, सत्य, सत्यावपातरूप अथवा सन्निहित प्रतिहारक भी होता है? हाँ, गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Hindi | 587 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर किसी अन्य दिन राजगृह नगर के गुणशील चैत्य से यावत् विहार कर देते हैं। उस काल, उस समय में चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र नामका चैत्य था। किसी दिन श्रमण भगवान महावीर पूर्वानुपूर्वी से विचरण करते हुए यावत् विहार करते हुए जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य था, वहाँ पधारे यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 639 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए।
तए णं अहं गोयमा! पढमं Translated Sutra: उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता – पिता के दिवंगत हो जाने पर भावना नामक अध्ययन के अनुसार यावत् एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। हे गौतम ! मैं प्रथम वर्ष में अर्द्धमास – अर्द्धमास क्षमण करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 659 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-६ स्वप्न | Hindi | 679 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा–
१. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे।
२. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
५. एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे।
७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया। (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल का स्वप्न। (३) चित्र – विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न। (४) स्वप्न में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 863 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता?
गोयमा! चोद्दसविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–१. सुहुमा अप्पज्जत्तगा २. सुहुमा पज्जत्तगा ३. बादरा अप्पज्जत्तगा ४. बादरा पज्जत्तगा ५. बेइंदिया अप्पज्जत्तगा ६. बेइंदिया पज्जत्तगा ७. तेइंदिया अप्पज्जत्तगा ८. तेइंदिया पज्जत्तगा ९. चउरिंदिया अप्पज्जत्तगा १०. चउरिंदिया पज्जत्तगा ११. असण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १२. असण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा १३. सण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १४. सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।
एतेसि णं भंते! चोद्दसविहाणं संसारसमावन्नगाणं जीवाणं जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा Translated Sutra: भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! चौदह हैं। यथा – सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म पर्याप्तक, बादर अपर्याप्तक, बादर पर्याप्तक, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक – पर्याप्तक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 886 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सेया? निरेया?
गोयमा! जीवा सेया वि, निरेया वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सेया वि, निरेया वि?
गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरसिद्धा य, परंपरसिद्धा य। तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते अनंतरसिद्धा ते णं सेया।
ते णं भंते! किं देसेया? सव्वेया?
गोयमा! नो देसेया, सव्वेया। तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवन्नगा य, असेलेसि-पडिवन्नगा य। तत्थ णं जे ते सेलोसिपडिवन्नगा ते णं निरेया, Translated Sutra: भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा – संसार – समापन्नक और असंसार – समापन्नक। उनमें से जो असंसार – समापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं। यथा – अनन्तर – सिद्ध और | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 968 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ज्झाणे? ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– अट्टे ज्झाणे, रोद्दे ज्झाणे, धम्मे ज्झाणे, सुक्के ज्झाणे।
अट्टे ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अमणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, मणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स अविप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, आयंकसंपयोग-संपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, परिज्झुसियकामभोगसंपयोग-संपउत्ते तस्स अविप्पयोग-सतिसमन्नागए यावि भवइ।
अट्टस्स णं ज्झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–कंदणया, सोयणया, तिप्पणया, परिदेवणया।
रोद्देज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–हिंसानुबंधी, मोसानुबंधी, तेयानुबंधी, Translated Sutra: (भगवन् !) ध्यान कितने प्रकार का ? (गौतम !) चार प्रकार का – आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान। आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है। यथा – अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, आतंक प्राप्त होने पर उसके वियोग की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 969 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विउसग्गे? विउसग्गे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वविउसग्गे य, भावविउसग्गे य।
से किं तं दव्वविउसग्गे? दव्वविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–गणविउसग्गे, सरीरविउसग्गे, उवहिविउसग्गे भत्तपाणविउसग्गे। सेत्तं दव्वविउसग्गे।
से किं तं भावविउसग्गे? भावविउसग्गे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–कसायविउसग्गे, संसारविउसग्गे, कम्मविउसग्गे।
से किं तं कसायविउसग्गे? कसायविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहविउसग्गे, माणविउसग्गे, मायाविउसग्गे, लोभविउसग्गे। सेत्तं कसायविउसग्गे।
से किं तं संसारविउसग्गे? संसारविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारविउसग्गे Translated Sutra: (भन्ते !) व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का – द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग। (भगवन् !) द्रव्यव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का – गणव्युत्सर्ग, शरीरव्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपानव्युत्सर्ग। (भगवन् !) भावव्युत्सर्ग कितने प्रकार का कहा है ? तीन प्रकार का – कषायव्युत्सर्ग, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Gujarati | 94 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति?
गोयमा! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज -दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरति-रति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं एवं खलु गोयमा! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छति।
कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति?
गोयमा! पाणाइवाय-वेरमणेणं मुसावाय-वेरमणेणं अदिन्नादान-वेरमणेणं मेहुण-वेरमणेणं
परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरति रति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्ल वेरमणेणं–एवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति।
कहन्नं भंते! जीवा संसारं आउलीकरेंति?
गोयमा! Translated Sutra: ભગવન્ ! જીવો ગુરુ – (ભારે)પણુ કઈ રીતે શીઘ્ર પામે છે ? ગૌતમ ! પ્રાણાતિપાત યાવત્ પરિગ્રહ, ક્રોધ યાવત્ મિથ્યાદર્શન શલ્યથી. એ રીતે ગૌતમ ! જીવો ગુરુત્વને – (ભારેપણાને) શીઘ્ર પામે છે. ભગવન્ ! જીવો લઘુ – (હળવા)પણુ કેવીરીતે શીઘ્ર પામે છે ? ગૌતમ ! પ્રાણાતિપાતથી વિરમવાથી યાવત્ મિથ્યાદર્શનશલ્યથી અટકવાથી, એ રીતે ગૌતમ ! લઘુપણુ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Gujarati | 100 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ?
गोयमा! आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्स कालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वा-नुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ जाव चाउरंतं Translated Sutra: આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ શું બાંધે ? શું કરે છે ? શું ચય કરે છે ? શું ઉપચય કરે છે ? ગૌતમ ! આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ આયુકર્મ સિવાયની શિથિલબંધન બદ્ધ સાતે કર્મપ્રકૃતિને દૃઢ બંધન બદ્ધ કરે છે યાવત્ સંસારમાં ભમે છે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ આત્મધર્મને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे…
…जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે આદિકર, તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ, પુરુષસિંહ, પુરુષવરપુંડરીક, પુરુષવરગંધહસ્તિ, લોકમાં ઉત્તમ, લોકનાં નાથ, લોકપ્રદીપ, લોકપ્રદ્યોતકર, અભયદાતા, ચક્ષુદાતા, માર્ગદાતા, શરણદાતા, ધર્મ ઉપદેશક, ધર્મસારથી, ધર્મવરચાતુરંત ચક્રવર્તી, અપ્રતિહત શ્રેષ્ઠ જ્ઞાનદર્શનના ધારક, છદ્મતા(ઘાતિકર્મના આવરણ) | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Gujarati | 22 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं आयारंभा? परारंभा? तदुभयारंभा? अनारंभा?
गोयमा! अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा।अत्थे-गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा? अत्थे गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा?
गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य।
तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा, ते णं सिद्धा। सिद्धा णं नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयरंभा, अनारंभा।
तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा, ते दुविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જીવો શું આત્મારંભી છે, પરારંભી છે કે તદુભયારંભી છે કે અનારંભી છે ? ગૌતમ ! કેટલાક જીવો આત્મારંભી છે, પરારંભી છે કે તદુભયારંભી છે, પણ અનારંભી નથી. કેટલાક જીવો આત્મારંભી છે, પરારંભી છે કે તદુભયારંભી નથી, પણ અનારંભી છે. હે ભગવન્ ! એમ કેમ કહો છો કે કેટલાક જીવો આત્મારંભી છે ઇત્યાદિ – ગૌતમ ! જીવો બે ભેદે કહ્યા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Gujarati | 24 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] असंवुडे णं भंते! अनगारे सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाइ, सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असंवुडे णं अनगारे नो सिज्झइ, नो बुज्झइ, नो मुच्चइ, नो परिनिव्वाइ, नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ?
गोयमा! असंवुडे अनगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनिय-बंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं Translated Sutra: ભગવન્ ! શું અસંવૃત્ત(અર્થાત હિંસા આદિ આશ્રવદ્વારોને પૂર્ણ રીતે રોકેલ નથી તે) અણગાર સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુક્ત, નિર્વાણપ્રાપ્ત અને સર્વ દુઃખનો અંતકર થાય છે ? ગૌતમ ! આ અર્થ યોગ્ય નથી. ભગવન્ ! કયા કારણથી આમ કહ્યું ? ગૌતમ ! અસંવૃત્ત અનગાર આયુને છોડીને શિથિલબંધનવાળી સાત કર્મ – પ્રકૃતિઓને ઘન બંધનવાળી કરે છે. હ્રસ્વકાલની | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Gujarati | 30 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! तीतद्धाए आदिट्ठस्स कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले, तिरिक्ख-जोणियसंसारसंचिट्ठणकाले, मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देवसंसारसंचिट्ठणकाले।
नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले।
तिरिक्खजोणियसंसार संचिट्ठिणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–असुन्नकाले य, मिस्सकाले य।
मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, Translated Sutra: ભગવન્ ! અતીતકાળની અપેક્ષાએ જીવનો સંસાર સંસ્થાન કાળ કેટલા ભેદે કહ્યો છે ? ગૌતમ ! સંસાર સંસ્થાન કાળ ચાર પ્રકારે કહ્યો. નૈરયિક, તિર્યંચ, મનુષ્ય, દેવ – સંસાર સંસ્થાનકાળ. ભગવન્ ! નૈરયિક સંસાર સંસ્થાનકાળ કેટલા પ્રકારે કહ્યો ? ગૌતમ ! ત્રણ પ્રકારે – શૂન્યકાળ, અશૂન્યકાળ અને મિશ્ર – કાળ. તિર્યંચયોનિક સંસારનો પ્રશ્ન – | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-८ बाल | Gujarati | 93 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सवीरिया? अवीरिया?
गोयमा! सवीरिया वि, अवीरिया वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सवीरिया वि? अवीरिया वि?
गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य।
तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अवीरिया। तत्थ णं जे ते संसार-समावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवन्नगा य, असेलेसिपडिवन्नगा य।
तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया।
तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरिया वि, अवीरिया वि।
से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवा Translated Sutra: ભગવન્ ! જીવો વીર્યવાળા છે કે વીર્ય વિનાના ? ગૌતમ ! વીર્યવાળા પણ છે અને વીર્ય વિનાના પણ છે – ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! જીવો બે પ્રકારે – સંસાર સમાપન્નક અને અસંસાર સમાપન્નક. તેમાં જે અસંસાર સમાપન્નક છે, તે સિદ્ધ છે. સિદ્ધો અવીર્ય છે. સંસારસમાપન્ન છે તે બે પ્રકારે – શૈલેશી પ્રતિપન્ન અને અશૈલેશી પ્રતિપન્ન. જે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 109 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मडाई णं भंते! नियंठे नो निरुद्धभवे, नो निरुद्धभवपवंचे, नो पहीणसंसारे, नो पहीणसंसारवेयणिज्जे, नो वोच्छिन्नसंसारे, नो वोच्छिन्नसंसारवेयणिज्जे, नो निट्ठियट्ठे, नो निट्ठियट्ठकरणिज्जे पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ?
हंता गोयमा! मडाई णं नियंठे नो निरुद्धभवे, नो निरुद्धभवपवंचे, नो पहीणसंसारे, नो पहीण-संसारवेयणिज्जे, नो वोच्छिन्नसंसारे, नो वोच्छिन्नसंसारवेयणिज्जे, नो निट्ठियट्ठे, नो निट्ठियट्ठ-करणिज्जे पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ। Translated Sutra: ભગવન્ ! જેણે સંસાર અને સંસારના પ્રપંચોનો નિરોધ કર્યો નથી, જેનો સંસાર અને સંસાર – વેદનીય કર્મ ક્ષીણ થયેલ નથી, જેનો સંસાર અને સંસાર – વેદનીય કર્મનો વિચ્છેદ થયો નથી, જે નિષ્ઠિતાર્થ – (સિદ્ધ પ્રયોજન) નથી, જેનું કાર્ય પૂર્ણ થયું નથી, તેવા પ્રાસુકભોજી – (નિર્દોષ આહાર કરનાર). નિર્ગ્રન્થ, ફરીને મનુષ્યાદિ ભવોમાં શીઘ્ર | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 111 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मडाई णं भंते! नियंठे निरुद्धभवे, निरुद्धभवपवंचे, पहीणसंसारे, पहीणसंसारवेयणिज्जे, वोच्छिन्न-संसारे, वोच्छिन्नसंसारवेयणिज्जे, निट्ठियट्ठे, निट्ठियट्ठकरणिज्जे नो पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ?
हंता गोयमा! मडाई णं नियंठे निरुद्धभवे, निरुद्धभवपवंचे, पहीणसंसारे, पहीणसंसार-वेयणिज्जे, वोच्छिन्न-संसारे, वोच्छिन्न-संसारवेयणिज्जे, निट्ठियट्ठे, निट्ठियट्ठ-करणिज्जे नो पुनरवि इत्थत्थं हव्वमागच्छइ।
से णं भंते! किं ति वत्तव्वं सिया?
गोयमा! सिद्धे त्ति वत्तव्वं सिया। बुद्धे त्ति वत्तव्वं सिया। मुत्ते त्ति वत्तव्वं सिया। पारगए त्ति वत्तव्वं सिया। परंपरगए त्ति वत्तव्वं Translated Sutra: ભગવન્ ! જેણે સંસારને રોક્યો છે, સંસારના પ્રપંચોને રોક્યા છે યાવત્ જેના કાર્યો પૂર્ણ થયા છે, તે ફરીને મનુષ્ય આદિ ચાર ગતિક સંસારને પામતો નથી ? હા, ગૌતમ ! તે પૂર્વોક્ત સ્વરુપવાળો સંસાર પામતો નથી. ભગવન્ ! તેવા નિર્ગ્રંથને કયા શબ્દોથી બોલાવાય ? ગૌતમ ! તે સિદ્ધ – બુદ્ધ – મુક્ત – પારગત – પરંપરગત કહેવાય તથા સિદ્ધ, બુદ્ધ, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Gujarati | 241 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीयमनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिनिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयव्वा जाव अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૧. ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય, વીતી ગયેલા શાશ્વતા અનંતકાળમાં માત્ર સંયમ વડે, સંવર વડે, બ્રહ્મચર્ય વડે અને માત્ર અષ્ટ પ્રવચનમાતા દ્વારા સિદ્ધ થયા છે ? – ગૌતમ ! તેમ શક્ય નથી. જેમ પહેલા શતકના ચોથા ઉદ્દેશાના આલાવા છે, તેમ યાવત્ ‘અલમસ્તુ’ કહ્યું ત્યાં સુધી જાણવું. સૂત્ર– ૨૪૨. ભગવન્ ! અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Gujarati | 242 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवं भूयं वेदनं वेदेंति।
से कहमेयं भंते! एवं?
गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदेणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति?
गोयमा! जे णं पाणा Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૧ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-३ महाश्रव | Gujarati | 282 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए?
गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए।
जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए।
से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए Translated Sutra: ભગવન્ ! વસ્ત્રને જે પુદ્ગલનો ઉપચય થયો તે શું ૧. સાદિ સાંત છે, ૨. સાદિ અનંત છે, ૩. અનાદિ સાંત છે કે, ૪. અનાદિ અનંત છે? ગૌતમ ! વસ્ત્રમાં જે પુદ્ગલોનો ઉપચય થાય તે સાદિ સાંત છે. અન્ય ત્રણ ભંગ નથી. ભગવન્ ! જેમ વસ્ત્રનો પુદ્ગલોપચય સાદિ સાંત છે, પણ અન્ય ત્રણ ભંગે નથી, તેમ જીવોનો કર્મોપચય સાદિ સાંત છે, કે યાવત્ અનાદિ અનંત છે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-७ |
उद्देशक-४ जीव | Gujarati | 351 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नयरे जाव एवं वयासि– कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता?
गोयमा! छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया जाव तसकाइया। एवं जहा जीवाभिगमे जाव एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा–सम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૫૧. રાજગૃહનગરે યાવત્ એમ કહ્યું – સંસારી જીવના કેટલા ભેદ છે ? ગૌતમ ! છ ભેદ છે. તે આ પ્રમાણે – પૃથ્વીકાયિક, અપ્કાયિક, તેઉકાયિક, વાયુકાયિક, વનસ્પતિકાયિક. જે પ્રમાણે જીવાભિગમ સૂત્રમાં તિર્યંચ સંબંધી ઉદ્દેશામાં કહ્યું છે તેમ સમ્યક્ત્વ ક્રિયા અને મિથ્યાત્વ ક્રિયા સુધી તે કહેવું. હે ભગવન્ ! તે એમ જ છે, તે એમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Gujarati | 424 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पयोगबंधे?
पयोगबंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए।
तत्थ णं जे से अनादीए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं, तत्थ वि णं तिण्हं-तिण्हं अनादीए अपज्जवसिए, सेसाणं सादीए। तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पयोगबंधे।
से किं तं आलावणबंधे?
आलावणबंधे–जण्णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेत्तलता-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दब्भमादीएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! પ્રયોગબંધ શું છે? પ્રયોગબંધ ત્રણ ભેદે કહ્યો છે, તે આ – અનાદિ અપર્યવસિત, સાદિ અપર્યવસિત, સાદિ સપર્યવસિત. તેમાં જે અનાદિ અપર્યવસિત છે, તે જીવના આઠ મધ્યપ્રદેશોનો હોય છે. તે આઠ પ્રદેશોમાં પણ ત્રણ ત્રણ અનાદિ અપર્યવસિત બંધ છે, બાકીના સાદિ બંધ છે. તેમાં જે સાદિ અપર્યવસિત છે તે સિદ્ધોને હોય છે. તેમાં જે સાદિ સપર્યવસિત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 464 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं Translated Sutra: ત્યારે તે જમાલિ ક્ષત્રિયકુમાર શ્રમણ ભગવંત મહાવીર વડે એ પ્રમાણે કહેવાતા હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થઈને ભગવંતને ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણા કરી. યાવત્ વંદન નમસ્કાર કરીને, તે જ ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથમાં આરૂઢ થઈને શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની પાસે બહુશાલક ચૈત્યથી નીકળે છે, નીકળીને કોરંટ પુષ્પની માળાયુક્ત છત્રને ધારણ કરીને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 465 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति।
तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति।
तए Translated Sutra: ત્યારે તે જમાલિ ક્ષત્રિયકુમારના પિતાએ કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવ્યા, બોલાવીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે – હે દેવાનુપ્રિયો ! જલદીથી ક્ષત્રિયકુંડગ્રામ નગરને અંદર અને બહારથી સિંચીત, સંમાર્જિત અને ઉપલિપ્ત કરો. આદિ ઉવવાઈ સૂત્ર મુજબ યાવત્ કાર્ય કરીને તે પુરુષોએ આજ્ઞા પાછી સોંપી. ત્યારે તે જમાલી ક્ષત્રિયકુમારના પિતાએ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 468 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवं गोयमे जमालिं अनगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि कुसिस्से जमाली नामं अनगारे से णं भंते! जमाली अनगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी– एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नामं अनगारे, से णं तदा ममं एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स एवं पण्णवेमाणस्स एवं परूवेमाणस्स एतमट्ठं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एतमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे, दोच्चं पि ममं Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૬૮. ત્યારે તે ગૌતમસ્વામીએ જમાલિ અણગારને કાલગત જાણીને જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર હતા, ત્યાં આવ્યા, આવીને શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વંદન – નમસ્કાર કર્યા, કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – એ પ્રમાણે આપ દેવાનુપ્રિયનો અંતેવાસી જમાલિ નામક અણગાર નિશ્ચે કુશિષ્ય હતો. હે ભગવન્ ! તે જમાલિ અણગાર કાળમાસે કાળ કરીને ક્યાં ગયો | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 469 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: कतिविहा णं भंते! देवकिव्विसिया पन्नत्ता?
गोयमा! तिविहा देवकिव्विसिया पन्नत्ता, तं जहा–तिपलिओवमट्ठिइया, तिसागरोवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्ठिइया।
कहिं णं भंते! तिपलिओवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिइया देव-किव्विसिया परिवसंति।
कहिं णं भंते! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसानाणं कप्पाणं, हिट्ठिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति।
कहिं णं भंते! तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૬૮ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 470 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: जमाली णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवभवग्गहणाइं संसारं अनुपरियट्टित्ता तओ पच्छा, सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૬૮ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-१ शंख | Gujarati | 533 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
कोहवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ?
संखा! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ।
मानवसट्टे णं भंते! जीवे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ? Translated Sutra: ત્યારે તે શંખ શ્રાવકે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વાંદી, નમીને, આમ કહ્યું – ભગવન્ ! ક્રોધને વશ જીવ શું બાંધે ? શું કરે ? શેનો ચય કરે ? શેનો ઉપચય કરે ? હે શંખ ! ક્રોધને વશ જીવ આયુ સિવાયની સાત કર્મપ્રકૃતિ શિથિલબંધન બદ્ધ હોય, તેને દૃઢ બંધનવાળી કરે છે, ઇત્યાદિ પહેલા શતકમાં અસંવૃત્ત અણગારમાં કહ્યા મુજબ કહેવું યાવત્ ભ્રમણ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-२ जयंति | Gujarati | 534 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। चंदोतरणे चेइए–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते, सयाणीस्स रन्नो पुत्ते, चेडगस्स रन्नो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासि-याए भत्तिज्जए उदयने नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा, सयाणीस्स रन्नो भज्जा, चेडगस्स रन्नो धूया, उदयनस्स रन्नो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩૪. તે કાળે, તે સમયે કૌશાંબી નગરી હતી, ચંદ્રાવતરણ ચૈત્ય હતું, તે કૌશાંબી નગરીમાં સહસ્રાનીક રાજાનો પૌત્ર, શતાનીક રાજાનો પુત્ર, ચેટક રાજાનો દોહિત્ર, મૃગાવતી દેવીનો પુત્ર, જયંતિ શ્રાવિકાનો ભત્રીજો એવો ઉદાયન રાજા હતો. તે કૌશાંબી નગરીમાં સહસ્રાનીક રાજાની પુત્રવધૂ શતાનીક રાજાની પત્ની, ચેટક રાજાની પુત્રી, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-२ जयंति | Gujarati | 536 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
कहन्नं भंते! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति?
जयंती! पाणाइवाएणं मुसावाएणं अदिन्नादानेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं कोह-मान-माया-लोभ-पेज्ज-दोस-कलह-अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाय-अरतिरति-मायामोस-मिच्छादंसणसल्लेणं–एवं खलु जयंती! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति।
कहन्नं भंते! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति?
जयंती! पाणाइवायवेरमणेणं मुसावायवेरमणेणं अदिन्नादानवेरमणेणं मेहुणवेरमणेणं परिग्गह-वेरमणेणं कोह-मान-माया-लोभ- पेज्ज-दोस- Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૪ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-६ राहु;उद्देशक-७ लोक | Gujarati | 550 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते–पुरत्थिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ, दाहिणेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडा-कोडीओ, एवं पच्चत्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उड्ढं पि, अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं।
एयंसि णं भंते! एमहालगंसि लोगंसि अत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एयंसि णं एमहालगंसि लोगंसि नत्थि केइ परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे, जत्थ णं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि?
गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे अया-सयस्स Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે યાવત્ આમ કહ્યું – ભગવન્ ! લોક કેટલો મોટો છે ? ગૌતમ ! અતિ મહાન છે. પૂર્વમાં અસંખ્યાત કોડાકોડી યોજન, દક્ષિણમાં અસંખ્યાત, એ પ્રમાણે પશ્ચિમમાં અને ઉત્તરમાં પણ છે, એ પ્રમાણે ઉપર અને નીચે પણ અસંખ્યાત કોડાકોડી યોજન લંબાઈ અને પહોળાઈથી છે. ભગવન્ ! આટલા મોટા લોકમાં શું કોઈ પરમાણુ પુદ્ગલ જેટલો પણ આકાશ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Gujarati | 587 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नगरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधूसोवीरेसु जणवएसु वीतीभए नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮૭. ત્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અન્ય કોઈ દિને રાજગૃહીનગરીના ગુણશીલચૈત્યથી યાવત્ વિહાર કર્યો તે કાળે, તે સમયે ચંપા નગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું. ત્યારે ભગવંત મહાવીર અન્ય કોઈ દિવસે પૂર્વાનુપૂર્વી ચાલતા યાવત્ વિચરતા ચંપાનગરીમાં પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું ત્યાં આવ્યા. આવીને યાવત્ વિચરે છે. તે કાળે, તે |