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Pushpika पूष्पिका Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ शुक्र

Hindi 5 Sutra Upang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कवडिंसए विमाने सुक्कंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहेव चंदो तहेव आगओ, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा। कूडागारसाला दिट्ठंतो। एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह आशय प्ररूपित किया है तो तृतीय अध्ययन का क्या भाव बताया है ? आयुष्मन्‌ जम्बू ! राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद्‌ नीकली। उस काल और उस समय में शुक्र महाग्रह शुक्रावतंसक विमान में शुक्र सिंहासन पर
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

प्रदेशीराजान प्रकरण

Hindi 82 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाइं वित्थिण्ण विपुल भवन सयनासन जाण वाहनाइं बहुधन बहुजातरूव रययाइं आओग पओग संपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभू-याइं बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ। तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ। तए णं तस्स

Translated Sutra: गौतम – भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन्‌ ! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुल बड़े कुटुम्ब परिवार वाले, बहुत से भवनों,
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 480 View Detail
Mool Sutra: सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे। कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिओ।।४२।।

Translated Sutra: भिक्षु का शयन, आसन और खड़े होने में व्यर्थ का कायिक व्यापार न करना, काष्ठवत् रहना, छठा कायोत्सर्ग तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Prakrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 537 View Detail
Mool Sutra: पहिया जे छ प्पुरिसा, परिभट्ठारण्णमज्झदेसम्हि। फलभरियरुक्खमेगं, पेक्खित्ता ते विचिंतंति।।७।।

Translated Sutra: छह पथिक थे। जंगल के बीच जाने पर वे भटक गये। भूख सताने लगी। कुछ देर बाद उन्हें फलों से लदा एक वृक्ष दिखाई दिया। उनकी फल खाने की इच्छा हुई। वे मन ही मन विचार करने लगे। एक ने सोचा कि पेड़ को जड-मूल से काटकर इसके फल खाये जायँ। दूसरे ने सोचा कि केवल स्कन्ध ही काटा जाय। तीसरे ने विचार किया कि शाखा ही तोड़ना ठीक रहेगा। चौथा
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 480 View Detail
Mool Sutra: शयनासनस्थाने वा, यस्तु भिक्षुर्न व्याप्रियते। कायस्य व्युत्सर्गः, षष्ठः स परिकीर्तितः।।४२।।

Translated Sutra: भिक्षु का शयन, आसन और खड़े होने में व्यर्थ का कायिक व्यापार न करना, काष्ठवत् रहना, छठा कायोत्सर्ग तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 537 View Detail
Mool Sutra: पथिका ये षट् पुरुषाः, परिभ्रष्टा अरण्यमध्यदेशे। फलभरितवृक्षमेकं, प्रेक्ष्य ते विचिन्तयन्ति।।७।।

Translated Sutra: छह पथिक थे। जंगल के बीच जाने पर वे भटक गये। भूख सताने लगी। कुछ देर बाद उन्हें फलों से लदा एक वृक्ष दिखाई दिया। उनकी फल खाने की इच्छा हुई। वे मन ही मन विचार करने लगे। एक ने सोचा कि पेड़ को जड-मूल से काटकर इसके फल खाये जायँ। दूसरे ने सोचा कि केवल स्कन्ध ही काटा जाय। तीसरे ने विचार किया कि शाखा ही तोड़ना ठीक रहेगा। चौथा
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 343 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को य सत्तमाए, पंच य छट्ठीए पंचमा एक्को । एक्को य चउत्थीए, कण्हो पुन तच्चपुढवीए ॥

Translated Sutra: उक्त नौ वासुदेवों में से एक मरकर सातवी पृथ्वी में, पाँच वासुदेव छठी पृथ्वी में, एक पाँचवी में, एक चौथी में और एक कृष्ण तीसरी पृथ्वी में गए।
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-८

Hindi 8 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ भयट्ठाणा पन्नत्ता, तं० जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए। अट्ठ पवयणमायाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– इरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्त-निक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते। जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। अट्ठसामइए केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं

Translated Sutra: आठ मदस्थान कहे गए हैं। जैसे – जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद। आठ प्रवचन – माताएं कही गई हैं। जैसे – ईयासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान – भाण्ड – मात्र निक्षेपणासमिति, उच्चार – प्रस्रवण – खेल सिंधारण – परिष्ठापनासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति। वाणव्यन्तर देवों के
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-१०

Hindi 14 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे समणधम्मे पन्नत्ते, तं जहा–खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे। दस चित्तसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा– धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जिज्जा, सव्वं धम्मं जाणित्तए। सुमिणदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, अहातच्चं सुमिणं पासित्तए। सन्निनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, पुव्वभवे सुमरित्तए। देवदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवानुभावं पासित्तए। ओहिनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, ओहिना लोगं जाणित्तए। ओहिदंसणे वा से

Translated Sutra: श्रमण धर्म दस प्रकार का कहा गया है। जैसे – क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्यवास। चित्त – समाधि के दश स्थान कहे गए हैं। जैसे – जो पूर्व काल में कभी उत्पन्न नहीं हुई, ऐसी सर्वज्ञ – भाषित श्रुत और चारित्ररूप धर्म को जानने की चिन्ता का उत्पन्न होना यह चित्त की समाधि या शान्ति के
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-१५

Hindi 35 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमी णं अरहा पन्नरस धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। धुवराहू णं बहुलपक्खस्स पाडिवयं पन्नरसइ भागं पन्नरसइ भागेणं चंदस्स लेसं आवरेत्ताणं चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं बीआए बीयं भागं तइआए तइयं भागं चउत्थीए चउत्थं भागं पंचमीए पंचमं भागं छट्ठीए छट्ठं भागं सत्तमीए सत्तमं भागं अट्ठमीए अट्ठमं भागं नवमीए नवमं भागं दसमीए दसमं भागं एक्कारसीए एक्कारसमं भागं बारसीए बारसमं भागं तेरसीए तेरसमं भागं चउद्दसीए चउद्दसमं भागं पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं। तं चेव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसेसु पन्नरसमं भागं। छ नक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजुत्ता

Translated Sutra: नमि अर्हन्‌ पन्द्रह धनुष ऊंचे थे। ध्रुवराहु कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन से चन्द्र लेश्या के पन्द्रहवे – पन्द्रहवे दीप्तिरूप भाग को अपने श्याम वर्ण से आवरण करता रहता है। जैसे – प्रतिपदा के दिन प्रथम भाग को, द्वीतिया के दिन द्वीतिय भाग को, तृतीया के दिन तीसरे भाग को, चतुर्थी के दिन चौथे भाग को, पंचमी के दिन पाँचवे
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-२०

Hindi 50 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीसं असमाहिठाणा पन्नत्ता, तं जहा–१. दवदवचारि यावि भवइ २. अपमज्जियचारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ ४. अतिरित्तसेज्जासणिए ५. रातिणियपरिभासी ६. थेरोवघातिए ७. भूओवघातिए ८. संजलणे ९. कोहणे १. पिट्ठिमंसिए ११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ १२. नवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विओसवियाणं पुणोदीरेत्ता भवइ १४. ससरक्खपाणिपाए १५. अकालसज्झायकारए यावि भवइ १६. कलहकरे १७. सद्दकरे १८. ज्झंज्झकरे १९. सूरप्पमाणभोई २. एसणाऽसमिते आवि भवइ। मुनिसुव्वए णं अरहा वीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। सव्वेवि णं घनोदही वीसं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: बीस असमाधिस्थान हैं। १. दव – दव करते हुए जल्दी – जल्दी चलना, २. अप्रमार्जितचारी होना, ३. दुष्प्रमा – र्जितचारी होना, ४. अतिरिक्त शय्या – आसन रखना, ५. रात्निक साधुओं का पराभव करना, ६. स्थविर साधुओं को दोष लगाकर उनका उपघात या अपमान करना, ७. भूतों (एकेन्द्रिय जीवों) का व्यर्थ उपघात करना, ८. सदा रोष – युक्त प्रवृत्ति करना,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-२१

Hindi 51 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा– १. हत्थकम्मं करेमाणे सबले। २. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले। ३. राइभोयणं भुंजमाणे सबले। ४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले। ५. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले। ६. उद्देसियं, कीयं, आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले। ७. अभिक्खणं पडियाइक्खेत्ता णं भुंजमाणे सबले। ८. अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गणं संकममाणे सबले। ९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले। १०. अंतो मासस्स तओ माईठाणे सेवमाणे सबले। ११. रायपिंडं भुंजमाणे सबले। १२. आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले। १३. आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले। १४. आउट्टिआए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले। १५. आउट्टिआए अनंतरहिआए पुढवीए

Translated Sutra: इक्कीस शबल हैं (जो दोष रूप क्रिया – विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) १. हस्त – मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधाकर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक का भोजन – पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-२२

Hindi 52 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बावीसं परीसहा पन्नत्ता, तं जहा– दिगिंछापरीसहे पिवासापरीसहे सीतपरीसहे उसिणपरीसहे दंस-मसगपरीसहे अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थिपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जा-परीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलाभपरीसहे रोगपरीसहे तणफासपरीसहे जल्लपरीसहे सक्कारपुरक्कारपरीसहे नाणपरीसहे दंसणपरीसहे पण्णापरीसहे। दिट्ठिवायस्स णं बावीसं सुत्ताइं छिन्नछेयणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए। बावीसं सुत्ताइं अछिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए। बावीसं सुत्ताइं तिकणइयाइं तेरासिअसुत्तपरिवाडीए। बावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए। बावीसइविहे पोग्गलपरिणामे

Translated Sutra: बाईस परीषह कहे गए हैं। जैसे – दिगिंछा (बुभुक्षा) परीषह, पिपासापरीषह, शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीषह, अरतिपरीषह, स्त्रीपरीषह, चर्यापरीषह, निषद्यापरीषह, शय्यापरीषह, आक्रोश – परीषह, वधपरीषह, याचनापरीषह, अलाभपरीषह, रोगपरीषह, तृणस्पर्शपरीषह, जल्लपरीषह, सत्कार – पुरस्कार – परीषह, प्रज्ञापरीषह, अज्ञानपरीषह
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-३४

Hindi 110 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं

Translated Sutra: बुद्धों के अर्थात्‌ तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्‌वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना।
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-३९

Hindi 115 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमिस्स णं अरहओ एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था। समयखेत्ते णं एगूणचत्तालीसं कुलपव्वया पन्नत्ता, तं जहा– तीसं वासहरा, पंचमंदरा, चत्तारि उसुकारा। दोच्चचउत्थपंचमछट्ठसत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। नाणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स आउस्स–एयासि णं चउण्हं कम्मपगडीणं एगूणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ।

Translated Sutra: नमि अर्हत्‌ के उनतालीस सौ नियत क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञान मुनि थे। समय क्षेत्र (अढ़ाई द्वीप) में उनतालीस कुलपर्वत कहे गए हैं। जैसे – तीस वर्षधर पर्वत, पाँच मन्दर (मेरु) और चार इषुकार पर्वत। दूसरी, चौथी, पाँचवी, छठी और सातवी इन पाँच पृथ्वीयों में उनतालीस लाख नारकावास कहे गए हैं। ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 213 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गहणाओ छट्ठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं वासकोडिं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठे विमाने देवत्ताए उववन्ने।

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर तीर्थंकर भव ग्रहण करने से पूर्व छठे पोट्टिल के भव में एक कोटि वर्ष श्रमण – पर्याय पालकर सहस्रार कल्प में सर्वार्थविमान में देवरूप से उत्पन्न हुए थे।
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय-७९

Hindi 158 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वलयामुहस्स णं पायालस्स हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। एवं केउस्सवि जूयस्सवि ईसरस्सवि। छट्ठीए पुढवीए बहुमज्झदेसभायाओ छट्ठस्स घनोदहिस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं एगूणासीतिं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बारस्स य बारस य, एस णं एगूणासीइं जोयणसहस्साइं साइरेगाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।

Translated Sutra: वड़वामुख नामक महापातालकलश के अधस्तन चरमान्त भाग से इस रत्नप्रभा पृथ्वी का नीचला चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है। इसी प्रकार केतुक, यूपक और ईश्वर नामक महापातालों का अन्तर भी जानना चाहिए। छठी पृथ्वी के बहुमध्यदेशभाग से छठे धनोदधिवात का अधस्तल चरमान्त भाग उन्यासी हजार योजन के अन्तर – व्यवधान
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 222 Sutra Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइआइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्तपच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं देवलोगगमणाइं सुकुलपच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति दंसि-ज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति। नायाधम्मकहासु णं पव्वइयाणं विणयकरण-जिनसामि-सासनवरे संजम-पइण्ण-पालण-धिइ-मइ-ववसाय-दुल्लभाणं, तव-नियम-तवोवहाण-रण-दुद्धरभर-भग्गा-निसहा-निसट्ठाणं, घोर परीसह-पराजिया-ऽसह-पारद्ध-रुद्ध-सिद्धालयमग्ग-निग्गयाणं,

Translated Sutra: ज्ञाताधर्मकथा क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञात अर्थात्‌ उदाहरणरूप मेघकुमार आदि पुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक – पारलौकिक ऋद्धि – विशेष, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत – परिग्रह, तप – उपधान, दीक्षापर्याय, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान,
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 229 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दस चोद्दस अट्ठट्टारसेव बारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा, पन्नरस अनुप्पवायंमि ॥

Translated Sutra: प्रथम पूर्व में दश, दूसरे में चौदह, तीसरे में आठ, चौथे में अठारह, पाँचवे में बारह, छठे में दो, सातवे में सोलह, आठवे में तीस, नवे में बीस, दशवे विद्यानुप्रवाद में पन्द्रह। तथा –
Samavayang समवयांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Hindi 236 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीसा य पन्नवीसा, पन्नरस दसेव सयसहस्साइं । तिन्नेगं पंचूणं, पंचेव अनुत्तरा नरगा ॥

Translated Sutra: रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं। शर्करा पृथ्वी में पच्चीस लाख नारकावास हैं। वालुका पृथ्वी में पन्द्रह लाख नारकावास हैं। पंकप्रभा पृथ्वी में दश लाख नारकावास हैं। धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास हैं। तमःप्रभा पृथ्वी में पाँच कम एक लाख नारकावास हैं। महातमः पृथ्वी में (केवल) पाँच अनुत्तर
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Hindi 436 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहा परियारणा पन्नत्ता, तं जहा– कायपरियारणा, फासपरियारणा, रूवपरियारणा, सद्दपरि-यारणा, मनपरियारणा।

Translated Sutra: पाँच प्रकार की परिचारणा (विषय सेवन) कही गई हैं। यथा – काय परिचारणा – केवल काया से मैथुन सेवन करना। यह परिचारणा दूसरे देवलोक तक होती है। स्पर्श परिचारणा – केवल स्पर्श होने से विषयेच्छा की पूर्ति होना। यह तीसरे चौथे देवलोक तक होती है। रूप परिचारणा – केवल रूप देखने से विषयेच्छा की पूर्ति होना। यह परिचारणा पाँचवे,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 593 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविहे विभंगनाणे पन्नत्ते, तं जहा–एगदिसिं लोगाभिगमे, पंचदिसिं लोगाभिगमे, किरियावरणे जीवे, मुदग्गे जीवे, अमुदग्गे जीवे, रूवी जीवे, सव्वमिणं जीवा। तत्थ खलु इमे पढमे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–एगदिसिं लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–पंचदिसिं लोगाभिगमे। जे ते एवमाहंसु– पढमे विभंगनाणे। अहावरे दोच्चे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स

Translated Sutra: विभंग ज्ञान सात प्रकार का है, एक दिशा में लोकाभिगम। पाँच दिशा में लोकाभिगम। क्रियावरण जीव। मुदग्रजीव। अमुदग्रजीव। रूपीजीव। सभी कुछ जीव हैं। प्रथम विभंग ज्ञान – किसी श्रमण ब्राह्मण को एक दिशा का लोकाभिगम ज्ञान उत्पन्न होता है। अतः वह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण या उत्तर दिशा में से किसी एक दिशा में अथवा ऊपर देवलोक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 705 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधा लोगट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– आगासपतिट्ठिते वाते, वातपतिट्ठिते उदही, उदधिपतिट्ठिता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्ठिता जीवा कम्मपतिट्ठिता, अजीवा-जीवसंगहीता, जीवा कम्मसंगहीता।

Translated Sutra: लोक स्थिति आठ प्रकार की कही गई है, यथा – आकाश के आधार पर रहा हुआ वायु, वायु के आधार पर रहा हुआ घनोदधि – शेष छठे स्थान के समान – यावत्‌ संसारी जीव कर्म के आधार पर रहे हुए हैं। पुद्‌गलादि अजीव जीवों से संग्रहीत (बद्ध) हैं। जीव ज्ञानावरणीयादि कर्मों से संग्रहीत (बद्ध) हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 961 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं ‘महं घोररूवदित्तधरं’ तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयनामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुए। यथा – प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड़ जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए। द्वीतिय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-६ Hindi 28 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता दो जोयणाइं अद्धबायालीसं तेसीतिसतभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अड्ढाइज्जाइं जोयणाइं एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता तिभागूणाइं तिन्नि जोयणाइं एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! क्या सूर्य एक – एक रात्रिदिन में प्रविष्ट होकर गति करता है ? इस विषय में सात प्रतिपत्तियाँ हैं। जैसे की कोई एक परमतवादी बताता है की – दो योजन एवं बयालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजन के १८३ भाग क्षेत्र को एक – एक रात्रि में विकम्पीत करके सूर्य गति करता है। अन्य एक मत में यह प्रमाण अर्द्धतृतीय योजन कहा है।
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 10 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छप्पंच य सत्तेव य, अट्ठ य तिन्नि य हवंति पडिवत्ती । पढमस्स पाहुडस्स उ, हवंति एयाओ पडिवत्ती ॥ १०:१ [से तं पढमे पाहुडे पाहुड पाहुड पडिवत्ति संखा]

Translated Sutra: प्रथम प्राभृत में ये उनतीस परमतरूप प्रतिपत्तियाँ हैं। जैसे की – चौथे प्राभृतप्राभृत में छह, पाँचवे में पाँच, छठ्ठे में सात, सातवे में आठ और आठवें में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। दूसरे प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में उदयकाल और अस्तकाल आश्रित घातरूप अर्थात्‌ परमत की दो प्रतिपत्तियाँ हैं। तीसरे प्राभृतप्राभृत
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 14 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आवलिय मुहुत्तग्गे, एवंभागा य जोगसा । कुलाइं पुण्णमासी य, सन्निवाए य संठिई ॥

Translated Sutra: दसवें प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रों की आवलिका, दूसरे में मुहूर्त्ताग्र, तीसरे में पूर्व पश्चिमादि विभाग, चौथे में योग, पाँचवे में कुल, छठ्ठे में पूर्णमासी, सातवें में सन्निपात और आठवे में संस्थिति, नवमें प्राभृत – प्राभृत में ताराओं का परिमाण, दसवे में नक्षत्र नेता, ग्यारहवे में चन्द्रमार्ग,
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-९

Hindi 41 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठे ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वएज्जा २ एवं एएणं अभिलावेणं नेयव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं पडिवत्तीओ ताओ चेव नेयव्वाओ जाव अनुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहिताति वदेज्जा–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वयामो–ता सूरियस्स णं उच्चत्तं च लेसं च पडुच्च छाउद्देसे, उच्चत्तं च छायं च पडुच्च

Translated Sutra: कितने प्रमाणवाली पौरुषी छाया को सूर्य निवर्तित करता है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं – जो छठ्ठे प्राभृत के समान समझ लेना। जैसे की कोई कहता है कि अनुसमय में सूर्य पौरुषी छाया को उत्पन्न करता है, इत्यादि। भगवंत फरमाते हैं कि सूर्य से उत्पन्न लेश्या के सम्बन्ध में यथार्थतया जानकर मैं छायोद्देश कहता
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-११ Hindi 55 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कति ते चंदमंडला पन्नत्ता? ता पन्नरस चंदमंडला पन्नत्ता। ता एतेसि णं पन्नरसण्हं चंदमंडलाणं अत्थि चंदमंडला जे णं सया नक्खत्तेहिं अविरहिया। अत्थि चंदमंडला जे णं सया नक्खत्तेहिं विरहिया। अत्थि चंदमंडला जे णं रविससिनक्खत्ताणं सामन्ना भवंति। अत्थि चंदमंडला जे णं सया आदिच्चेहिं विरहिया। ता एतेसि णं पन्नरसण्हं चंदमंडलाणं कयरे चंदमंडला जे णं सया नक्खत्तेहिं अविरहिया जाव कयरे चंदमंडला जे णं सया आदिच्चेहिं विरहिया? ता एतेसि णं पन्नरसण्हं चंदमंडलाणं तत्थ जेते चंदमंडला जे णं सया नक्खत्तेहिं अविरहिया ते णं अट्ठ, तं जहा–पढमे चंदमंडले ततिए चंदमंडले छट्ठे चंदमंडले

Translated Sutra: चन्द्रमंडल कितने हैं ? पन्द्रह। इन चन्द्रमंडलों में ऐसे आठ चन्द्रमंडल हैं जो सदा नक्षत्र से अविरहित होते हैं – पहला, तीसरा, छठ्ठा, सातवां, आठवां, दसवां, ग्यारहवां और पन्द्रहवां। ऐसे सात चन्द्रमंडल हैं जो सदा नक्षत्र से विरहित होते हैं – दूसरा, चौथा, पाँचवा, नववां, बारहवां, तेरहवां और चौदहवां। जो चन्द्रमंडल
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 642 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: पूर्वोक्त प्रथम पुरुष से भिन्न दूसरा पुरुष पञ्चमहाभूतिक कहलाता है। इस मनुष्यलोक की पूर्व आदि दिशाओं में मनुष्य रहते हैं। वे क्रमशः नाना रूपों में मनुष्यलोक में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि – कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य। यावत्‌ कोई कुरूप आदि होते हैं। उन मनुष्यों में से कोई एक महान पुरुष राजा होता है। यावत्‌
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 654 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे छट्ठे किरियाट्ठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिज्जइ– से जहानामए केइ पुरिसे आयहेउं वा नाइहेउं वा अगारहेउं वा परिवारहेउं सयमेव मुसं वयति, अन्नेन वि मुसं वयावेइ, मुसं वयंतं पि अन्नं समणुजाणति। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ। छट्ठे किरियट्ठाणे मोसवत्तिए त्ति आहिए।

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ छठे क्रियास्थान मृषाप्रत्ययिक हैं। जैसे कि कोई पुरुष अपने लिए, ज्ञातिवर्ग के लिए घर के लिए अथवा परिवार के लिए स्वयं असत्य बोलता है, दूसरे से असत्य बुलवाता है, तथा असत्य बोलते हुए का अनुमोदन करता है; ऐसा करने के कारण उस व्यक्ति को असत्य प्रवृत्ति – निमित्तक पापकर्म का बन्ध होता है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ प्रत्याख्यान

Hindi 703 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिट्ठंते य असण्णिदिट्ठंते य। से किं तं सण्णिदिट्ठंते? सण्णिदिट्ठंते– जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।एतेसि णं छज्जीवणिकाए पडुच्च, पइण्णं कुज्जा? से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से ‘य तेणं’ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं

Translated Sutra: आचार्य ने कहा – इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने दो दृष्टान्त कहे हैं, एक संज्ञिदृष्टान्त और दूसरा असंज्ञिदृष्टान्त। (प्रश्न – ) यह संज्ञी का दृष्टान्त क्या है ? (उत्तर – ) संज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – जो ये प्रत्यक्ष दृष्टि – गोचर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Hindi 19 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घना २। तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४। पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५। छट्ठे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ – अंगोवंगं च नव्वत्तेइ – ६। सत्तमे मासे सत्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाइं नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवसयसहस्साइं ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा, सह केस-मंसुणा अद्धुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७। अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८।

Translated Sutra: उस के बाद पहले मास में वो फूले हुए माँस जैसा, दूसरे महिनेमें माँसपिंड़ जैसा घनीभूत होता है। तीसरे महिनेमें वो माता को ईच्छा उत्पन्न करवाता है। चौथे महिनेमें माता के स्तन को पुष्ट करता है। पाँचवे महिनेमें हाथ, पाँव, सर यह पाँच अंग तैयार होते हैं। छठ्ठे महिनेमें पित्त और लहू का निर्माण होता है। और फिर बाकी अंग
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Hindi 50 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठी उ हायनी नाम जं नरो दसमस्सिओ । विरज्जइ काम-भोगेसु, इंदिएसु य हायई ६ ॥

Translated Sutra: छठ्ठी ‘‘हायनी’’ अवस्था में वो इन्द्रिय में शिथिलता आने से कामभोग प्रति विरक्त होता है।
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 2 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे

Translated Sutra: उस काल उस समय आर्यसुधर्मा समवसृत हुए। आर्य सुधर्मा के ज्येष्ठ अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार ने – पूछा छठे अंग नायाधम्मकहाओ का जो अर्थ बतलाया, वह मैं सून चूका हूँ। भगवान ने सातवें अंग उपासकदशा का क्या अर्थ व्याख्यात किया ? जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के दस अध्ययन प्रज्ञप्त किये। – आनन्द,
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 16 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता

Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने तत्पश्चात्‌ दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। इस प्रकार श्रावक – प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल प्रयत्न तथा तपश्चरण से श्रमणोपासक आनन्द का शरीर सूख गया, शरीर की यावत्‌ उसके नाड़ियाँ दीखने लगीं। एक दिन आधी रात के बाद
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 411 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसिमो भायरा दो वि अन्नमन्नवसाणुगा । अन्नमन्नमनुरत्ता अन्नमन्नहिएसिणो ॥

Translated Sutra: ‘‘इसके पूर्व हम दोनों परस्पर वशवर्ती, अनुरक्त और हितैषी भाई – भाई थे। – ‘‘हम दोनों दशार्ण देश में दास, कालिंजर पर्वत पर हरिण, मृत – गंगा के किनारे हंस और काशी देश में चाण्डाल थे। देवलोक में महान्‌ ऋद्धि से सम्पन्न देव थे। यह हमारा छठवां भव है, जिसमें हम एक – दूसरे को छोड़कर पृथक्‌ – पृथक्‌ पैदा हुए हैं।’’ सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1197 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इत्तिरिया मरणकाले दुविहा अनसना भवे । इत्तिरिया सावकंखा निरवकंखा बिइज्जिया ॥

Translated Sutra: अनशन तप के दो प्रकार हैं – इत्वरिक और मरणकाल। इत्वरिक सावकांक्ष होता है। मरणकाल निरवकांक्ष होता है।संक्षेप से इत्वरिक – तप छह प्रकार का है – श्रेणि, तप, धन – तप, वर्ग – तप – वर्ग – वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप। इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार के फल को देने वाला ‘इत्वरिक’ अनशन तप जानना। सूत्र – ११९७–११९९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1224 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयनासनठाणे वा जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥

Translated Sutra: सोने, बैठने तथा खड़े होने में जो भिक्षु शरीर से व्यर्थ की चेष्टा नहीं करता है, यह शरीर का व्युत्सर्ग – ‘व्युत्सर्ग’ नामक छठा तप है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1526 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोयणस्स उ जो तस्स कोसो उवरिमो भवे । तस्स कोसस्स छब्भाए सिद्धाणोगाहणा भवे ॥

Translated Sutra: उस योजन के ऊपर का जो कोस है, उस कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना होती है। भवप्रपंच से मुक्त, महाभाग, परम गति ‘सिद्धि’ को प्राप्त सिद्ध वहाँ अग्रभाग में स्थित हैं। सूत्र – १५२६, १५२७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1624 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया । पढमाए जहन्नेणं दसवाससहस्सिया ॥

Translated Sutra: पहली पृथ्वी में नैरयिक जीवों की आयु – स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम की दूसरी पृथ्वी में उत्कृष्ट तीन सागरोपम की और जघन्य एक सागरोपम की तीसरी पृथ्वी में उत्कृष्ट सात सागरोपम और जघन्य तीन सागरोपम। चौथी पृथ्वी उत्कृष्ट दस सागरोपम और जघन्य सात सागरोपम। पाँचवीं पृथ्वी में उत्कृष्ट सतरह
Vipakasutra विपाकश्रुतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक

अध्ययन-६ नंदिसेन्न

Hindi 29 Sutra Ang-11 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी। भंडीरे उज्जाने। सुदरिसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिवद्धने कुमारे–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया। तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था–साम दंड भेय उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त नयविहण्णू। तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण

Translated Sutra: उत्क्षेप भगवन्‌ ! यदि यावत्‌ मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में मथुरा नगरी थी। वहाँ भण्डीर नाम का उद्यान था। सुदर्शनयक्ष का आयतन था। श्रीदाम राजा था, बन्धुश्री रानी थी। उनका सर्वाङ्ग – सम्पन्न युवराज
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