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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-१ चरम Hindi 599 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं अनंतरोववन्नगा? परंपरोववन्नगा? अनंतर-परंपरअणुववन्नगा? गोयमा! नेरइया अनंतरोववन्नगा वि, परंपरोववन्नगा वि, अनंतर-परंपरअणुववन्नगा वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया अनंतरोववन्नगा वि, परंपरोववन्नगा वि, अनंतर-परंपर-अणुववन्नगा वि? गोयमा! जे णं नेरइया पढमसमयोववन्नगा ते णं नेरइया अनंतरोववन्नगा, जे णं नेरइया अपढम-समयोववन्नगा ते णं नेरइया परंपरोववन्नगा, जे णं नेरइया विग्गहगइसमावन्नगा ते णं नेरइया अनंतर-परंपर-अणुववन्नगा। से तेणट्ठेणं जाव अनंतर-परंपर-अणुववन्नगा वि। एवं निरंतरं जाव वेमाणिया। अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक अनन्तरोपपन्नक हैं, परम्परोपपन्नक हैं, अथवा अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं ? गौतम! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी हैं और अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं। भगवन्‌ ! किस हेतु से ऐसा कहा है कि नैरयिक यावत्‌ अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं ? गौतम ! जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी प्रथम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-३ शरीर Hindi 603 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महाकाए महासरीरे अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा? गोयमा! दुविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–मायीमिच्छादिट्ठीउववन्नगा य, अमायीसम्मदिट्ठी-उववन्नगा य। तत्थ णं जे से मायी-मिच्छदिट्ठीउववन्नए देवे से णं अनगारं भावियप्पाणं पासइ, पासित्ता नो वंदइ, नो नमंसइ, नो सक्कारेइ, नो सम्माणेइ, नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासइ। से णं अनगारस्स भावियप्पणो मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। तत्थ णं जे से अमायी-सम्मद्दिट्ठीउववन्नए देवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महाकाय और महाशरीर देव भावितात्मा अनगार के बीच में होकर – नीकल जाता है ? गौतम ! कोई नीकल जाता है, और कोई नहीं जाता है। भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! देव दो प्रकार के हैं, मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक एवं अमायी – सम्यग्दृष्टि – उपपन्नक। इन दोनों में से जो मायी – मिथ्यादृष्टि – उपपन्नक देव होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-५ अग्नि Hindi 612 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिए वीइवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीइवएज्जा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–विग्गहगतिसमावन्नगा य, अविग्गहगतिसमावन्नगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगति-समावन्नए नेरइए से णं अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा। से णं त्थ ज्झियाएज्जा? नो इणट्ठे समट्ठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ। तत्थ णं जे से अविग्गहगतिसमावन्नए नेरइए से णं अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं नो वीइवएज्जा। से तेणट्ठेणं जाव नो वीइवएज्जा। असुरकुमारे णं भंते! अगनिकायस्स मज्झंमज्झेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जीव अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकता है ? गौतम ! कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। भगवन्‌ ! यह किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के हैं यथा – विग्रह गति – समापन्नक और अविग्रहगति – समापन्नक। उनमें से जो विग्रहगति – समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-५ अग्नि Hindi 613 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया दस ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–अनिट्ठा सद्दा, अनिट्ठा रूवा, अनिट्ठा गंधा, अनिट्ठा रसा, अनिट्ठा फासा, अनिट्ठा गती, अनिट्ठा ठिती, अनिट्ठे लावण्णे, अनिट्ठे जसे कित्ती, अनिट्ठे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे। असुरकुमारा दस ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–इट्ठा सद्दा, इट्ठा रूवा जाव इट्ठे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया छट्ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–इट्ठानिट्ठा फासा, इट्ठानिट्ठा गती, एवं जाव पुरिसक्कार-परक्कमे। एवं जाव वणस्सइकाइया। बेइंदिया सत्तट्ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा

Translated Sutra: नैरयिक जीव दस स्थानों का अनुभव करते रहते हैं। यथा – अनिष्ट शब्द, अनिष्ट रूप, अनिष्ट गन्ध, अनिष्ट रस, अनिष्ट स्पर्श, अनिष्ट गति, अनिष्ट स्थिति, अनिष्ट लावण्य, अनिष्ट यशःकीर्ति और अनिष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम। असुरकुमार दस स्थानों का अनुभव करते रहते हैं, यथा – इष्ट शब्द, इष्ट रूप यावत्‌ इष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 645 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं से आनंदे थेरे

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत्‌ – गौतमस्वामी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 648 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी। जे णं

Translated Sutra: जब आनन्द स्थविर, गौतम आदि श्रमणनिर्ग्रन्थों को भगवान का आदेश कह रहे थे, तभी मंखलिपुत्र गोशालक आजीवकसंघ से परिवृत्त होकर हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकलकर अत्यन्त रोष धारण किए शीघ्र एवं त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आया। फिर श्रमण भगवान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 652 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–अज्जो! से जहानामए तणरासी इ वा कट्ठरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगनिज्झामिए अगनिज्झूसिए अगनिपरिणामिए हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरित्ता हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, तं छंदेणं अज्जो! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, अट्ठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा राशि, तुष – राशि, भूसे की राशि, गोमय की राशि और अवकर राशि को अग्नि से थोड़ा – सा जल जाने पर, आग में झोंक देने पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 656 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं भंते! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ

Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – ‘भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी पूर्वदेश में उत्पन्न सर्वानुभूति नामक अनगार, जो कि प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था, और जिसे मंखलिपुत्र गोशालक ने अपने तप – तेज से भस्म कर दिया था, वह मरकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम! वह ऊपर चन्द्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 657 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते से णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं भंते! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊंचे चन्द्र और सूर्य का यावत्‌ उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन्‌ ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 659 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं

Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत्‌ काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 686 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा पभू अलोगंसि हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा आउंटावे-त्तए वा पसारेत्तए वा? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा नो पभू अलोगंसि हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरुं वा आउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा? गोयमा! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला। पोग्गलामेव एप्प जीवाण य अजीवाण य गतिपरियाए आहिज्जइ। अलोए णं नेवत्थि जीवा, नेवत्थि पोग्गला। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–देवे महिड्ढिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा नो पभू आलोगंसि हत्थं वा पायं वा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महर्द्धिक यावत्‌ महासुखसम्पन्न देव लोकान्त में रहकर अलोक में अपने हाथ यावत्‌ ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन्‌ ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! जीवों के अनुगत आहारोपचित पुद्‌गल, शरीरोपचित पुद्‌गल और कलेवरोपचित पुद्‌गल होते हैं तथा पुद्‌गलों के आश्रित ही जीवों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 695 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– उदायी णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायि-हत्थिरायत्ताए उववन्ने? गोयमा! असुरकुमारेहिंतो देवेहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने। उदायी णं भंते! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठितियंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति। भूयानंदे णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! उदायी नामक प्रधान हस्तिराज, किस गति से मरकर बिना अन्तर के यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मरकर सीधा यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है। भगवन्‌ ! उदायी हस्तिराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 750 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे जाव उड्ढं जाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, एगंतदंडा, एगंतबाला

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्ट था। उस गुणशीलक उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक निवास करते थे। उन दिनों में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ वापिस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री इन्द्रभूति नामक अनगार यावत्‌,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 751 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से दुपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। एवं जाव असंखेज्ज-पएसियं। छउमत्थे णं भंते! मनुस्से अनंतपएसियं खंधं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? गोयमा! अत्थेगतिए जाणति-पासति, अत्थेगतिए जाणति न पासति, अत्थेगतिए न जाणति पासति, अत्थेगतिए न जाणति न पासति। आहोहिए णं भंते! मनुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणति-पासति? उदाहु न जाणति न पासति? जहा छउमत्थे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु – पुद्‌गल को जानता – देखता है अथवा नहीं जानता – नहीं देखता है ? गौतम ! कोई जानता है, किन्तु देखता नहीं, और कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। भगवन्‌ ! क्या छद्मस्थ मनुष्य द्वीप्रदेशी स्कन्ध को जानता – देखता है, अथवा नहीं जानता, नहीं देखता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-१ बेईन्द्रिय Hindi 780 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहरणसरीर बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति? नो इणट्ठे समट्ठे। बेंदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा। एवं जहा एगूण-वीसतिमे सए तेउक्काइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरं–सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं, नो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि, आहारो

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या कदाचित्‌ दो, तीन, चार या पाँच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, इसके पश्चात्‌ आहार करते हैं ? अथवा आहार को परिणमाते हैं, फिर विशिष्ट शरीर को बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय जीव पृथक्‌ – पृथक्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 796 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति। जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जित्था? गोयमा! अत्थेगतियाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगतियाणं असंखेज्जं कालं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में आप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वश्रुतगत एक हजार वर्ष तक रहेगा। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 800 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवयणं भंते! पवयणं? पावयणी पवयणं? गोयमा! अरहा ताव नियमं पावयणी, पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तं जहा–आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विआहपन्नत्ती णायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अनुत्तरोववाइय-दसाओ पण्हावागरणाइं विवागसुयं दिट्ठिवाओ। जे इमे भंते! उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा– एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता गोयमा! जे इमे उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, नाया, कोरव्वा– एए णं अस्सि धम्मे ओगाहंति, ओगाहित्ता अट्ठविहं कम्मरयमलं पवाहेंति, पवाहेत्ता तओ पच्छा सिज्झंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को प्रवचन कहते हैं ? गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य प्रवचनी हैं, किन्तु द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन हैं, यथा – आचारांग यावत्‌ दृष्टिवाद। भगवन्‌ ! जो ये उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कौरव्यकुल हैं, वे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? हाँ, गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 801 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे? गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे। विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – विद्याचारण और जंघाचारण। भगवन्‌ विद्याचारण मुनि को ‘विद्याचारण’ क्यों कहते हैं ? अन्तर – रहित छट्ठ – छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-९ चारण Hindi 802 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे? गोयमा! तस्स णं अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स जंघाचारणलद्धी नाम लद्धी समुप्पज्जति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंघाचारणे-जंघाचारणे। जंघाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहि अच्छरानिवाएहिं तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, जंघाचारणस्स णं गोयमा! तहा सीहा गती, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते। जंघाचारणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जंघाचारण को जंघाचारण क्यों कहते हैं ? गौतम ! अन्तररहित अट्ठम – अट्ठम के तपश्चरण – पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए मुनि को ‘जंघाचारण’ नामक लब्धि उत्पन्न होती है, इस कारण उसे ‘जंघाचारण’ कहते हैं भगवन्‌ ! जंघाचारण की शीघ्र गति कैसी होती है और उसकी शीघ्रगति का विषय कितना होता है ? गौतम ! समग्र वर्णन विद्याचारणवत्‌।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२१

वर्ग-१

उद्देशक-१ शाल्यादि Hindi 807 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– अह भंते! साली-वीही-गोधूम-जव-जवजवाणं–एएसि णं भंते! जीवा मूलत्ताए वक्कमंति ते णं भंते! जीवा कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? जहा वक्कंतीए तहेव उववाओ, नवरं–देववज्जं। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसे। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं। ते णं भंते! जीवा

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! अब शालि, व्रीहि, गोधूम – (यावत्‌) जौ, जवजव, इन सब धान्यों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर अथवा तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्ति – पद के अनुसार उपपात समझना चाहिए। विशेष यह
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शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 838 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति। जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 839 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा। गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 840 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्‌ ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 841 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वह नैरयिक मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह संज्ञी – मनुष्यों में से या असंज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह संज्ञी – मनुष्यों में से उत्पन्न होता है, असंज्ञी मनुष्यों में से उत्पन्न नहीं होता है। भगवन्‌ ! यदि वह संज्ञी – मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होता है तो क्या संख्येय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१ नैरयिक Hindi 842 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव रयणप्पभपुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं वासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ-हियाइं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन्‌ ! वे जीव वहाँ एक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-२ परिमाण Hindi 843 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव– पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-३ थी ११ नागादि कुमारा Hindi 844 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नागकुमाराणं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया तहा एतेसिं पि जाव असण्णित्ति। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते!

Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? वे नैरयिकों से यावत्‌ उत्पन्न होते हैं, देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यंचयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। (भगवन्‌ !) यदि वे (नागकुमार)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 846 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति। जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव– जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि? गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति। पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत्‌ देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 847 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति। बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 848 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति। असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय। जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय?

Translated Sutra: (भगवन्‌ !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२४

उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि Hindi 852 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो, नवरं–जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जंति ताहे पढम-बितिय-चउत्थ-पंचमेसु गमएसु परिमाणं अनुसमयं अविरहियं अनंता उववज्जंति। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अनंताइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं अनंतं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। यह उद्देशक पृथ्वीकायिक – उद्देशक के समान है। विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पाँचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। भव की अपेक्षा
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शतक-२४

उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि Hindi 853 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जाव– पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए बेंदिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं–एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, सेसेसु पंचसु तहेव अट्ठ भवा। एवं जाव चउरिंदिएणं समं चउसु संखेज्जा भवा, पंचसु अट्ठ भवा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियमनुस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा। देवेसु न उववज्जंति। ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं; इत्यादि, यावत्‌ – हे भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत्‌ कालावेश से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यात भव। पृथ्वीकायिक के साथ
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शतक-२४

उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय Hindi 856 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति। जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति। रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा
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शतक-२४

उद्देशक-२१ मनुष्य Hindi 857 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति। रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत्‌ देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत्‌ देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत्‌ – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों
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शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 858 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख? एवं जहेव नागकुमारउद्देसए असण्णी तहेव निरवसेसं। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्ज-वासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए वाणमंतरेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमट्ठितीएसु। सेसं तं चेव जहा नागकुमारउद्देसए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यंच – योनिकों से ? (गौतम !) नागकुमार – उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए। भगवन्‌ ! अंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम
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शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 859 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? भेदो जाव सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख। जइ सण्णि किं संखेज्ज? असंखेज्ज? गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्स-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं–ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव, नवरं –कालादेसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत्‌ – वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं। भगवन्‌ ! यदि वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न
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शतक-२४

उद्देशक-२२ थी २४ देव Hindi 860 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत्‌ देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन्‌ ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की
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शतक-२५

उद्देशक-३ संस्थान Hindi 876 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सेढीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उज्जुआयता, एगओवंका, दुहओवंका, एगओखहा, दुहओखहा, चक्कवाला, अद्ध चक्कवाला। परमाणुपोग्गलाणं भंते! किं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति? गोयमा! अणुसेढिं गती पवत्तति, नो विसेढिं गती पवत्तति। दुपएसियाणं भंते! खंधाणं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति? एवं चेव। एवं जाव अनंतपदेसियाणं खंधाणं। नेरइयाणं भंते! किं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रेणियाँ कितनी कही है ? गौतम ! सात यथा – ऋज्वायता, एकतोवक्रा, उभयतोवक्रा, एकतःखा, उतयतःखा, चक्रवाल और अर्द्धचक्रवाल। भगवन्‌ ! परमाणु – पुद्‌गलों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? गौतम ! परमाणु – पुद्‌गलों की गति अनुश्रेणि होती है, विश्रेणि गति नहीं होती। भन्ते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनुश्रेणि
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शतक-२५

उद्देशक-३ संस्थान Hindi 880 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! नेरइयाणं जाव देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेनं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वयाए, अट्ठगतिसमासप्पाबहुगं च। एएसि णं भंते! सइंदियाणं, एगिंदियाणं जाव अनिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? एयं पि जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं पयं भाणियव्वं, सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणियव्वं। एएसि णं भंते! जीवाणं पोग्गलाणं अद्धासमयाणं सव्वदव्वाणं सव्वपदेसाणं सव्वपज्जवाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? जहा बहुवत्तव्वयाए। एएसि णं भंते! जीवाणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक यावत्‌ देव और सिद्ध इन पाँचों गतियों के जीवों में कौन जीव किन से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता – पद के अनुसार तथा आठ गतियों के समुदाय का भी अल्पबहुत्व जानना। भगवन्‌ ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत्‌ अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत,
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शतक-२५

उद्देशक-४ युग्म Hindi 886 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सेया? निरेया? गोयमा! जीवा सेया वि, निरेया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सेया वि, निरेया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरसिद्धा य, परंपरसिद्धा य। तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते अनंतरसिद्धा ते णं सेया। ते णं भंते! किं देसेया? सव्वेया? गोयमा! नो देसेया, सव्वेया। तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवन्नगा य, असेलेसि-पडिवन्नगा य। तत्थ णं जे ते सेलोसिपडिवन्नगा ते णं निरेया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा – संसार – समापन्नक और असंसार – समापन्नक। उनमें से जो असंसार – समापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं। यथा – अनन्तर – सिद्ध और
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शतक-२५

उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ Hindi 898 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. पन्नवण २. वेद ३. रागे, ४. कप्प ५. चरित्त ६. पडिसेवणा ७. नाणे । ८. तित्थे ९. लिंग १. सरीरे, ११. खेत्ते १२. काल १३. गइ १४. संजम १५. निकासे ॥

Translated Sutra: निर्ग्रन्थ सम्बन्धी छत्रीश द्वार हैं, जैसे कि – वेद, राग, कल्प, चारित्र, प्रतिसेवना, ज्ञान, तीर्थ, लिंग, शरीर, क्षेत्र, काल, गति, संयम, निकाशर्ष। तथा –
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शतक-२५

उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ Hindi 913 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कालगए समाणे किं गतिं गच्छति? गोयमा! देवगतिं गच्छति। देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमा-णिएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! नो भवनवासीसु, नो वाणमंतरेसु, नो जोइसिएसु, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा। वेमाणिएसु उववज्जमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा। बउसे णं एवं चेव, नवरं–उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे। पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे। कसायकुसीले जहा पुलाए, नवरं–उक्कोसेणं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा। नियंठे णं एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववज्ज-माणे अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन्‌ ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपत्तियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में
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शतक-२५

उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ Hindi 924 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! पुलायत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति? गोयमा! पुलायत्तं जहति। कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा उवसंपज्जति। बउसे णं भंते! बउसत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति? गोयमा! बउसत्तं जहति। पडिसेवणाकुसीलं वा कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति। पडिसेवणाकुसीले णं–पुच्छा। गोयमा! पडिसेवणाकुसीलत्तं जहति। बउसं वा कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति। कसायकुसीले णं–पुच्छा। गोयमा! कसायकुसीलत्तं जहति। पुलायं वा बउसं वा पडिसेवणाकुसीलं वा नियंठं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति। नियंठे–पुच्छा। गोयमा! नियंठत्तं जहति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुलाक, पुलाकपन को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? गौतम ! वह पुलाकपन का त्याग करता है और कषायकुशीलपन या असंयम को प्राप्त करता है। भगवन्‌ ! बकुश ? गौतम ! वह बकुशत्व का त्याग करता है और प्रतिसेवनाकुशीलत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है। भगवन्‌ ! प्रतिसेवनाकुशील ? गौतम
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शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 945 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति? गोयमा! देवगतिं गच्छति। देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमाणिएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! नो भवनवासीसु उववज्जेज्जा– जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए–पुच्छा। गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा; अत्थेगतिए सिज्झति जाव सव्व दुक्खाणं अंत करेति। सामाइयसंजए णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जति–पुच्छा। गोयमा! अविराहणं पडुच्च एवं जहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन्‌ ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत्‌ वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना। परिहार – विशुद्धिकसंयत की गति
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शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 950 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति? गोयमा! सामाइयसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा, सुहुमसंपरागसंजयं वा, असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंप-ज्जति। छेओवट्ठावणिए–पुच्छा। गोयमा! छेओवट्ठावणियसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, परिहारविसुद्धियसंजयं वा, सुहुम-संपरागसंजयं वा असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जति। परिहारविसुद्धिए–पुच्छा। गोयमा! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा असंजमं वा उवसंपज्जति। सुहुमसंपराए–पुच्छा। गोयमा! सुहुमसंपरायसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, छेओवट्ठावणिय-संजयं वा, अहक्खायसंजयं वा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सामायिकसंयत, सामायिकसंयतत्व त्यागते हुए किसको छोड़ता है और किसे ग्रहण करता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयतत्व को छोड़ता है और छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है। भगवन्‌ ! छेदोपस्थापनीयसंयत ? गौतम ! वह छेदोपस्थापनीयसंयतत्व का त्याग करता है और सामायिकसंयम, परिहारविशुद्धिकसंयम,
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शतक-२५

उद्देशक-८ ओघ Hindi 970 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति? गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, एवामेव एए वि जीवा पवओ विव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोद्दसमसए पढमुद्देसए जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति। तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गई, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते। ते णं भंते! जीवा कहं परभवियाउयं

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्‌काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात्‌ कर्मों द्वारा पूर्वभव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान

उद्देशक-१ Hindi 976 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ? गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ। सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए एवं चउभंगो। कण्हलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ। एवं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीवने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? (अथवा क्या जीवने पापकर्म) बाँधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? (या जीवने पापकर्म) बाँधा था, नहीं बाँधता है और बाँधेगा ? अथवा बाँधा था, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान

उद्देशक-२ थी ११ Hindi 983 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिए एवं जहेव अनंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहिओ उद्देसो भणिओ तहेव अनंतरो-गाढएहिं वि अहीणमतिरित्तो भाणियव्वो नेरइयादीए जाव वेमाणिए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अनन्तरावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि क्रम से अनन्तरोपपन्नक के नौ दण्डकों सहित के उद्देशक समान अनन्तरावगाढ़ नैरयिक आदि वैमानिक तक अन्यूनाधिकरूप से कहना चाहिए। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान

उद्देशक-२ थी ११ Hindi 990 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगइए एवं जहेव पढमोद्देसए, पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। अचरिमे णं भंते! मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ। सलेस्से णं भंते! अचरिमे मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी? एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं–जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवल-नाणी य अजोगी य–एए तिन्नि वि न पुच्छिज्जंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक पर्यन्त कहना। भगवन्‌ ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? किसी मनुष्य ने बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा, किसी ने बाँधा था, बाँधता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२७ जीव आदि जाव

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 991 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! पावं कम्मं किं करिंसु करेति करिस्सति? करिंसु करेति न करेस्सति? करिंसु न करेति करिस्सति? करिंसु न करेति न करेस्सति? गोयमा! अत्थेगतिए करिंसु न करेति करिस्सति, अत्थेगतिए करिंसु करेति न करेस्सति, अत्थेगतिए करिंसु न करेति करेस्सति अत्थेगतिए करिंसु न करेति न करेस्सति। सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं? एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसए वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तहेव नवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा ? अथवा किया था, करता है और नहीं करेगा? या किया था, नहीं करता और करेगा ? अथवा किया था, नहीं करता और नहीं करेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा। किसी जीव ने किया था, करता है और नहीं करेगा। किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और करेगा। किसी जीव ने किया
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