Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Gujarati | 1398 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं चत्थि भयं लोगे तं सव्वं निद्दले इमाए विज्जाए।
सण्हद्धे मंगलयरे रिद्धियरे पावहरे सयलवरक्खयसोक्खदाई।
काउमिमे पच्छित्ते जइ न तु णं तब्भवे सिज्झे॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૯૭ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1484 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ।
से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे Translated Sutra: હે ભગવન્ ! કયા કારણથી આમ કહ્યું ? તે કાળે, તે સમયે અહીં સુસઢ નામે એક અણગાર હતો. તેણે એક એક પક્ષની અંદર ઘણા અસંયમ સ્થાનકોની આલોચના આપી અને અતિ મહાન ઘોર દુષ્કર પ્રાયશ્ચિત્તોનું સેવન કર્યું. તો પણ તે વિચારોને વિશુદ્ધિ પદ પ્રાપ્ત ન થયું. આ કારણે એમ કહેવાયું. ભગવન્ ! તે સુસઢની વક્તવ્યતા કેવા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! આ ભારતવર્ષમાં | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1497 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जाव णं पुव्व जाइ सरण पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु णागर जणो य।
एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय सोग्गइ पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं– धि द्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं, जतो वयं मूढे अहो णु कट्ठमण्णाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिट्ठ घोरुग्ग परलोग पच्चवाएहिं अतत्ताभिणिविट्ठ दिट्ठीहिं पक्खवाय मोह संधुक्किय माणसेहिं राग दोसो वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वण्णू सोच्चि, एस सूरिए Translated Sutra: પૂર્વભવનું જાતિસ્મરણ થવાથી બ્રાહ્મણીએ જ્યાં આ સર્વ સંભળાવ્યું ત્યાં હે ગૌતમ ! સમગ્ર બંધુવર્ગ અને બીજા અનેક નગરજનો પ્રતિબોધ પામ્યા. હે ગૌતમ ! તે અવસરે સદ્ગતિનો માર્ગ સારી રીતે જાણેલો છે, તેવા ગોવિંદ બ્રાહ્મણે કહ્યું – ધિક્કાર થાઓ મને, આટલો કાળ સુધી આપણે ઠગાયા, મૂઢ બન્યા, ખરેખર ! અજ્ઞાન એ મહાકષ્ટ છે. નિર્ભાગી | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1527 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो चउवीसाए तित्थंकराणं, ॐ नमो तित्थस्स, ॐ नमो सुयदेवयाए भगवईए, ॐ नमो सुयकेव-लीणं ॐ नमो सव्वसाहूणं ॐ नमो [सव्वसिद्धाणं] ॐ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवई महइ महाविज्जा व् इ इ र् ए म ह् अ अ व् इ इ र् ए, ज य द् इ इ र् ए स् ए न व् इ इ र् ए वद्ध म् अ अ ण् अ व् इ इ र् ए ज य् अ इ त् ए अ प् अ र् अ अ ज् इ ए स् व् अ अ ह् अ अ
[वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जयइ ते अपराजिए स्वाहा]
उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विज्जा सव्वगओ ण् इ त्थ् अ अ र ग प् अ अ र ग् अ ओ होइ उवट्ठ् अ अ व ण् अ अ गणस्स वा अ ण् उ ण् ण् आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा [नित्थारगो पारगो होइ]
जे णं कप्पसमत्तीए Translated Sutra: આ સૂત્રમાં ‘વર્ધમાન વિદ્યા’ આપેલી છે. તેથી તેની ગુર્જર છાયા આપી નથી. જિજ્ઞાસુઓએ અમારું ‘આગમસુત્તાણિ ભાગ – ૩૯, મહાનિસીહં નું પૃષ્ઠ ૧૪૨ – ૧૪૩ જોવું. | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 60 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसू देवुत्तरकुरवसंपसूएसु ।
उववाए ण य तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसु ॥ Translated Sutra: देवकुरु, उत्तरकुरु में उत्पन्न होनेवाले कल्पवृक्ष से मिले सुख से और मानव, विद्याधर और देव के लिए उत्पन्न हुए सुख द्वारा यह जीव तृप्त न हो सका। | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 60 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसू देवुत्तरकुरवसंपसूएसु ।
उववाए ण य तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૮ | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 3 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अभिजाइ-सत्त-विक्कम-सुय-सील-विमुत्ति-खंतिगुणकलियं ।
आयार-विनय-मद्दव-विज्जा-चरणागरमुदारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 114 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गिहिविज्जापडिएण व सपक्ख-परधम्मिओवसग्गेणं ।
तिरियज्जोणिगएण व दिव्व-मनूसोवसग्गेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 251 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुयसंपसूएसुं ।
परिभोगेण न तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसुं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 369 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अन्नं इमं सरीरं, अन्नो हं, इय मणम्मि ठाविज्जा ।
जं सुचिरेण वि मोच्चं, देहे को तत्थ पडिबंधो? ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 530 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वभवियवेरेणं देवो साहरइ को वि पायाले ।
मा सो चरिमसरीरो न वेयणं किंचि पाविज्जा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 582 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विविहेहि मंगलेहि य विज्जा-मंतोसहीपओगेहिं ।
न वि सक्का ताएउं मरणा ण वि रुण्ण-सोएहिं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 3 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अभिजाइ-सत्त-विक्कम-सुय-सील-विमुत्ति-खंतिगुणकलियं ।
आयार-विनय-मद्दव-विज्जा-चरणागरमुदारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 114 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गिहिविज्जापडिएण व सपक्ख-परधम्मिओवसग्गेणं ।
तिरियज्जोणिगएण व दिव्व-मनूसोवसग्गेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 251 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुयसंपसूएसुं ।
परिभोगेण न तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसुं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 369 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अन्नं इमं सरीरं, अन्नो हं, इय मणम्मि ठाविज्जा ।
जं सुचिरेण वि मोच्चं, देहे को तत्थ पडिबंधो? ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 530 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वभवियवेरेणं देवो साहरइ को वि पायाले ।
मा सो चरिमसरीरो न वेयणं किंचि पाविज्जा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 582 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विविहेहि मंगलेहि य विज्जा-मंतोसहीपओगेहिं ।
न वि सक्का ताएउं मरणा ण वि रुण्ण-सोएहिं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 120 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिनिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि–पडि-बोहगदिट्ठंतेण, मल्लगदिट्ठंतेण य।
से किं तं पडिबोहगदिट्ठंतेणं?
पडिबोहगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वुत्तं पडिबोहेज्जा–अमुगा! अमुग! त्ति। तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी–किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? एवं वदंतं चोयगं पन्नवए एवं वयासी–
नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला Translated Sutra: – चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूँगा। कोई व्यक्ति किसी गुप्त पुरुष को – ‘‘हे अमुक ! हे अमुक !’’ इस प्रकार कह कर जगाए। ‘‘भगवन् ! क्या ऐसा | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 136 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अनाइयं अपज्जवसियं च?
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं– वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं।
तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
खेत्तओ णं–पंचभरहाइं पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सप-ज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
कालओ णं–ओसप्पिणिं उस्सप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणिं नोउस्स-प्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
भावओ णं–जे जया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: – सादि सपर्यवसित और अनादि अपर्यवसितश्रुत का क्या स्वरूप है ? यह द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं, और द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से आदि अन्त रहित है। यह श्रुतज्ञान संक्षेप में चार प्रकार से वर्णित किया गया है, जैसे – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से, एक पुरुष | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 148 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाइं?
पण्हावागरणेसु णं अट्ठुत्तरं परिणसयं, अट्ठुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखे-ज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसनकाला पणयालीसं समुद्देसनकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है ? प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न हैं, १०८ अप्रश्न हैं, १०८ प्रश्नाप्रश्न हैं। अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा आदर्शप्रश्न। इनके अतिरिक्त अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन हैं। नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ हुए मुनियों के दिव्य संवाद भी हैं। परिमित वाचनाऍं हैं। संख्यात | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद – सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है। संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध – श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य – श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट – श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ – श्रेणिका – परिकर्म, | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Hindi | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: ज्ञान के पाँच भेद हैं – आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल। उसमें चार ज्ञानों की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है। श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है। यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के हैं या अंगबाह्य के ? दोनों के उद्देश आदि होते हैं। जो | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 120 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिनिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि–पडि-बोहगदिट्ठंतेण, मल्लगदिट्ठंतेण य।
से किं तं पडिबोहगदिट्ठंतेणं?
पडिबोहगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वुत्तं पडिबोहेज्जा–अमुगा! अमुग! त्ति। तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी–किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? एवं वदंतं चोयगं पन्नवए एवं वयासी–
नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला Translated Sutra: (૧) ચાર પ્રકારના વ્યંજનાવગ્રહ, છ પ્રકારનો અર્થાવગ્રહ, છ પ્રકારની ઇહા, છ પ્રકારનો અવાય અને છ પ્રકારની ધારણા. આ પ્રમાણે અઠ્યાવીસ આભિનિબોધિક મતિજ્ઞાનના વ્યંજનાવગ્રહની પ્રતિબોધક અને મલ્લક બે ઉદાહરણ વડે પ્રરૂપણા કરીશ. પ્રતિબોધક ઉદાહરણથી વ્યંજનાવગ્રહનું નિરૂપણ કેવા પ્રકારનુ છે ? પ્રતિબોધક દૃષ્ટાંત આ પ્રમાણે | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 136 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अनाइयं अपज्जवसियं च?
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं– वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं।
तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
खेत्तओ णं–पंचभरहाइं पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सप-ज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
कालओ णं–ओसप्पिणिं उस्सप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणिं नोउस्स-प्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
भावओ णं–जे जया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: સાદિ સપર્યવસિત અને અનાદિ અપર્યવસિત શ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આ દ્વાદશાંગ રૂપ ગણિપિટક, વિચ્છેદ થવાની અપેક્ષાએ સાદિ – સાંત છે અને વિચ્છેદ નહીં થવાની અપેક્ષાએ સાદિ અંત રહિત છે. આ શ્રુતજ્ઞાનનું સંક્ષેપથી ચાર પ્રકારે વર્ણન કરેલ છે, જેમ કે – દ્રવ્યથી, ક્ષેત્રથી, કાળથી અને ભાવથી. તેમાં ૧. દ્રવ્યથી સમ્યક્શ્રુત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: [૧] ગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દૃષ્ટિવાદ બારમું અંગ સૂત્ર એ ગમિકશ્રુત છે. અગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગમિકથી ભિન્ન આચારાંગ આદિ કાલિકશ્રુતને અગમિકશ્રુત કહેવાય છે. આ પ્રમાણે ગમિક અને અગમિક શ્રુતનું વર્ણન છે. [૨] અથવા શ્રુત સંક્ષેપમાં બે પ્રકારનું કહ્યું છે – ૧. અંગ પ્રવિષ્ટ ૨. અંગ બાહ્ય. અંગબાહ્ય શ્રુત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 148 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाइं?
पण्हावागरणेसु णं अट्ठुत्तरं परिणसयं, अट्ठुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखे-ज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसनकाला पणयालीसं समुद्देसनकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया Translated Sutra: પ્રશ્નવ્યાકરણ સૂત્રમાં કોનું વર્ણન છે ? પ્રશ્નવ્યાકરણ સૂત્રમાં એકસો આઠ પ્રશ્ન એવા છે કે જે વિદ્યા, મંત્રવિધિથી જાપ વડે સિદ્ધ કરેલ છે અને પ્રશ્ન પૂછવા પર તે શુભાશુભ બતાવે. એકસો આઠ અ – પ્રશ્ન છે અર્થાત્ પૂછ્યા વિના જ શુભાશુભ બતાવે. એકસો આઠ પ્રશ્ન છે જે પૂછવાથી અથવા વગર પૂછ્યે સ્વયં શુભાશુભનું કથન કરે. જેમ કે | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: [૧] દૃષ્ટિવાદમાં કોનું કથન છે ? દૃષ્ટિવાદમાં સમસ્ત ભાવોની પ્રરૂપણા કરી છે. તે સંક્ષેપમાં પાંચ પ્રકારે છે, જેમ કે – ૧. પરિકર્મ, ૨. સૂત્ર, ૩. પૂર્વગત, ૪. અનુયોગ, ૫. ચૂલિકા. [૨] પરિકર્મના કેટલા પ્રકાર છે ? પરિકર્મ સાત પ્રકારના છે. જેમ કે – ૧. સિદ્ધશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૨. મનુષ્ય શ્રેણિકા પરિકર્મ, ૩. પૃષ્ટશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૪. અવગાઢ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Gujarati | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: જ્ઞાન પાંચ પ્રકારે છે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુત જ્ઞાન, અવધિ જ્ઞાન, મન:પર્યવ જ્ઞાન અને કેવલ જ્ઞાન. તેમાં ચાર જ્ઞાનોની સ્થાપના કરી. તેનો ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞા નથી. શ્રુતજ્ઞાનના ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞાનો અનુયોગ પ્રવર્તે છે. જો શ્રુતજ્ઞાનનો ઉદ્દેશ આદિ છે, તો તે અંગ પ્રવિષ્ટનો છે કે અંગ બાહ્યનો ? બંનેના | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत् दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: ત્યારે તે કોણિક રાજાએ તે દૂત પાસે આ અર્થને સાંભળી, સમજી, ક્રોધિત થઈ કાલાદિ દશ કુમારોને બોલાવીને કહ્યું – દેવાનુપ્રિય ! નિશ્ચે વેહલ્લકુમાર મને કહ્યા વિના સેચનક હાથી અને અઢારસરો હાર લઈ પૂર્વવત્ ચાલ્યો ગયો છે. મેં દૂતો મોકલ્યા ઇત્યાદિ પૂર્વવત્ બધું કથન કર્યું. હે દેવાનુપ્રિયો ! આપણે ચેટક રાજાની સાથે યુદ્ધ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१३ | Hindi | 858 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू विज्जापिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ८४८ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१३ | Gujarati | 858 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू विज्जापिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૪૮ | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 895 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] हियाहारा मियाहारा अप्पाहारा य जे नरा ।
न ते विज्जा तिगिच्छंति अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 931 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] दुविहो खलु अभिओगो दव्वे भावे य होइ नायव्वो ।
दव्वंमि होइ जोगो विज्जा मंता य भावंमि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 932 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जाए होअगारी अवियत्ता सा य पुच्छए चरिअं ।
अभिमंतणोदणस्स उ अनुकंपणमुज्झणं च खरे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 937 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एवं विज्जाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स ।
पाणच्चएवि नियमुज्झणा उ वोच्छं परिट्ठवणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 895 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] हियाहारा मियाहारा अप्पाहारा य जे नरा ।
न ते विज्जा तिगिच्छंति अप्पाणं ते तिगिच्छगा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 931 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] दुविहो खलु अभिओगो दव्वे भावे य होइ नायव्वो ।
दव्वंमि होइ जोगो विज्जा मंता य भावंमि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 932 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जाए होअगारी अवियत्ता सा य पुच्छए चरिअं ।
अभिमंतणोदणस्स उ अनुकंपणमुज्झणं च खरे ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 937 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एवं विज्जाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स ।
पाणच्चएवि नियमुज्झणा उ वोच्छं परिट्ठवणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 245 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एतेहि कारणेहिं पव्वाविज्जाहि गच्छवासी तु ।
पव्वावियाणं तेसिं इमेण विहिणा उ सारवणा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 422 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] बंधन रोहण तालण दासत्तं मारणं च पाविज्जा ।
निव्विसयं च णरिंदो करेज्ज संघंपि सो रुट्ठो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 507 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कम्मे सिप्पे विज्जा मंते जोगेण चेव ओबद्धे ।
समणाण व समणीण व न कप्पए तारिसे दिक्खा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 674 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अगणिंतो तं वयणं सघरं अह आगतो ततो सो तु ।
रोगाणं साहरणं भूओविज्जागमो दिक्खा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1019 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जामंतादीहिं बाले नीनेंति रातो नवि गच्छे । दारं।
रायं य पन्नविंती साहुगुणमजाणमाणं तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1039 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कदा-विज्जा चरियं लाघवेण तवस्सी, तत्तो तवो देसितो सिद्धिमग्गो ।
अहाविहिं संजम पालइत्ता दीहाउसो वुड्ढवासस्स कालो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1040 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा तु बारसंगं करणं तस्स गहणं मुनेयव्वं ।
सुत्तं बार समाओ तत्तियमेत्ता य अत्थे वि । दारं॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1566 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अभिओग वसीकरणं विज्जासंकामणं तु अन्नत्थ ।
थंभस्स कंपनं वा आवेसेतुं व भेसति ॥ Translated Sutra: Not Available |