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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 250 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] समयखेत्ते मनुस्सखेत्ते णं भंते! केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य एऊणपण्णा जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते? मनुस्सखेत्ते? गोयमा! मनुस्सखेत्ते णं तिविधा मनुस्सा परिवसंति तं जहा–कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–मनुस्सखेत्ते, मनुस्सखेत्ते।
अदुत्तरं च णं गोयमा! मनुस्सखेत्तस्स सासए नामधेज्जे जाव निच्चे।
मनुस्सखेत्ते णं भंते! कति चंदा Translated Sutra: हे भगवन् ! समयक्षेत्र का आयाम – विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! आयाम – विष्कम्भ से ४५ लाख योजन है और उसकी परिधि आभ्यन्तर पुष्करवरद्वीप समान है। हे भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र, मनुष्यक्षेत्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में तीन प्रकार के मनुष्य रहते हैं – कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तर्द्वीपक। इसलिए। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 287 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मानुसुत्तरे णं भंते! पव्वते केवतियं उड्ढं उच्चत्तेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं मूले विक्खंभेणं? केवतियं मज्झे विक्खंभेणं? केवतियं उवरिं विक्खंभेणं? केवतियं अंतो गिरिपरिरएणं? केवतियं बाहिं गिरिपरिरएणं? केवतियं मज्झे गिरि परिरएणं? केवतियं उवरिं गिरिपरिरएणं?
गोयमा! मानुसुत्तरे णं पव्वते सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेणं, मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे Translated Sutra: हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है। ४३० योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है। यह मूल में १०२२ योजन चौड़ा है, मध्य में ७२३ योजन चौड़ा और ऊपर ४२४ योजन चौड़ा है। पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं, वे ज्योतिष्क देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं या सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं या (ज्योतिष्क) विमानों में उत्पन्न हुए हैं ? वे गतिशील हैं या गतिरहित हैं ? गतिशील और गति को प्राप्त हुए हैं ? गौतम ! वे देव ज्योतिष्क विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 289 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुक्खरवरण्णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
पुक्खरोदे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
पुक्खरोदस्स णं समुद्दस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा Translated Sutra: गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करोद नाम का समुद्र पुष्करवरद्वीप को सब ओर से घेरे हुए स्थित है। भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र का चक्रवालविष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! संख्यात लाख योजन का चक्रवालविष्कम्भ है और वही उसकी परिधि है। भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार, यावत् पुष्करोदसमुद्र | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 290 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुक्खरोदण्णं समुद्दं वरुनवरे नामं दीवे वट्टे जधेव पुक्खरोदसमुद्दस्स तधा सव्वं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वरुनवरे दीवे? वरुनवरे दीवे? गोयमा! वरुनवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ अच्छाओ जाव सद्दुण्णइय-महुरसरनाइयाओ वारुणिवरोदगपडिहत्थाओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। तिसोमाणतोरणा।
तासु णं खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पातपव्वया जाव पक्खंदोलगा सव्व-फालियामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसु णं उप्पायपव्वएसु Translated Sutra: गोल और वलयाकार पुष्करोद नाम का समुद्र वरुणवरद्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ स्थित है। यावत् वह समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है। वरुणवरद्वीप का विष्कम्भ संख्यात लाख योजन का है और वही उसकी परिधि है। उसके सब ओर एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड हैं। द्वार, द्वारों का अन्तर, प्रदेश – स्पर्शना, जीवोत्पत्ति आदि सब पूर्ववत् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 291 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वरुनवरण्णं दीवं वरुणोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागार संठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठंति। पुक्खरोदवत्तव्वता जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वरुणोदे समुद्दे? वरुणोदे समुद्दे? गोयमा! वरुणोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहानामए–चंदप्पभाइ वा मणिसिलागाइ वा वरसीधूति वा वरवारुणीइ वा पत्तासवेइ वा पुप्फासवेइ वा फलासवेइ वा चोयासवेइ वा मधूति वा मेरएति वा जातिप्पसन्नाइ वा खज्जूरसारेइ वा मुद्दियासारेइ वा कापिसायणेइ वा सुपक्कखोयरसेइ वा अट्ठपिट्ठनिट्ठिताइ वा जंबूफलकालियाइ वा वरपसण्णाइ वा उक्कोसमदपत्ता आसला मासला पेसला ईसिं ओट्ठावलंबिणी Translated Sutra: वरुणोद नामक समुद्र, जो गोल और वलयाकार रूप से संस्थित है, वरुणवरद्वीप को चारों ओर से घेरकर स्थित है। वह वरुणोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है। इत्यादि पूर्ववत्। विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर, प्रदेशों की स्पर्शना, जीवोत्पत्ति और अर्थ सम्बन्धी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 292 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वरुणोदण्णं समुद्दं खीरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। तधेव जाव–
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–खीरवरे दीवे? खीरवरे दीवे? गोयमा! खीरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ अच्छाओ जाव सद्दुण्णइय-महुरसरनाइयाओ खीरोदगपडिहत्थाओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ पव्वतगा, पव्वतएसु आसना, घरहा, घरएसु आसना, मंडवा, मंडवएसु पुढविसिलापट्टगा सव्व-रयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। पंडरगपुप्फदंता यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं।
खीरवरण्णं दीवं खीरोदे Translated Sutra: वर्तुल और वलयाकार क्षीरवर द्वीप वरुणवरसमुद्र को सब ओर से घेर कर है। उसका विष्कम्भ और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि यावत् क्षीरवर नामक द्वीप में बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ यावत् सरसरपंक्तियाँ और बिलपंक्तियाँ हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं। पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महर्द्धिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 293 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खीरोदण्णं समुद्दं घयवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव–
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयवरे दीवे? घयवरे दीवे? गोयमा! घयवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव विहरंति, नवरं–घयोदगपडिहत्थाओ पव्वतादो सव्वकनगमया, कनगकनगप्पभा यत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं।
जोतिसं संखेज्जं।
घयवरण्णं दीवं घयोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति जाव–
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–घयोदे समुद्दे? घयोदे समुद्दे? गोयमा! घयोदस्स Translated Sutra: वर्तुल और वलयाकार संस्थान – संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवाल संस्थान वाला है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहाँ तक का वर्णन पूर्ववत्। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान – स्थान | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 294 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा।
अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता Translated Sutra: क्षोदोदकसमुद्र को नंदीश्वर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है। यह गोल और वलयाकार है। यह नन्दीश्वरद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ से युक्त है। परिधि से लेकर जीवोपपाद तक पूर्ववत्। भगवन् ! नंदीश्वरद्वीप के नाम का क्या कारण है ? गौतम ! नंदीश्वरद्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ यावत् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ईन्द्रिय विषयाधिकार | Hindi | 306 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–सोतिंदियविसए जाव फासिंदियविसए।
सोतिंदियविसए णं भंते! पोग्गलपरिणामे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य।
चक्खिंदियपुच्छा। गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुरूवपरिणामे य दुरूवपरिणामे य।
घाणिंदियपुच्छा। गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणामे य दुब्भिगंधपरिणामे य।
रसपरिणामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुरसपरिणामे य दुरसपरिणामे य।
फासपरिणामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे Translated Sutra: भगवन् ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय। श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम दो प्रकार का है – शुभ शब्द – परिणाम और अशुभ शब्दपरिणाम। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय आदि के विषयभूत पुद्गलपरिणाम भी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवाधिकार | Hindi | 307 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए? हंता पभू।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए? गोयमा! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगती भवित्ता तओ पच्छा मंदगती भवति, देवे णं पुव्वंपि पच्छावि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए।
देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए Translated Sutra: भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगतिवाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है, जब कि उस देव की गति | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 308 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हेट्ठिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? हंता अत्थि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–अत्थि णं चंदिमसूरियाणं जाव उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? गोयमा! जहा जहा णं तेसिं देवाणं तवनियम बंभचेराइं उस्सियाइं भवंति तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं पण्णायति अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–अत्थि णं चंदिमसूरियाणं जाव उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र और सूर्यों के क्षेत्र की अपेक्षा नीचे रहे हुए जो तारा रूप देव हैं, वे क्या हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? चन्द्र – सूर्यों के क्षेत्र की समश्रेणी में रहे हुए तारा रूप देव, चन्द्र – सूर्यों से द्युति आदि में हीन भी हैं और बराबर भी हैं ? तथा जो तारा रूप देव चन्द्र और सूर्यों के ऊपर अवस्थित हैं, वे द्युति | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 312 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसं चारं चरति?
गोयमा! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति।
लोगंताओ भंते! केवतियं अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते?
गोयमा! एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति?
गोयमा! सत्त नउते जोयणसते अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति, अट्ठं जोयणसताइं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं। इसी तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर चरमान्त से भी समझना। भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र हैं ? गौतम ! ११११ योजन पर ज्योतिष्कचक्र है। इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 313 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे कयरे नक्खत्ते सव्वब्भिंतरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति?
गोयमा! अभिइनक्खत्ते सव्वब्भिंतरिल्लं चारं चरति, मूले नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति, साती नक्खत्ते सव्वोवरिल्लं चारं चरति, भरणी नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कौन – सा नक्षत्र सब नक्षत्रों के भीतर, बाहर मण्डलगति से तथा ऊपर, नीचे विचरण करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सबसे भीतर रहकर, मूल नक्षत्र सब नक्षत्रों से बाहर रहकर, स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 314 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते! किंसंठिते पन्नत्ते? गोयमा! अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिते सव्वफालियामए अब्भुग्गतमूसितपहसिते वण्णओ।
एवं सूरविमानेवि नक्खत्तविमानेवि गहविमानेवि ताराविमानेवि।
चंदविमाने णं भंते! केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं? केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते?
गोयमा! छप्पन्ने एगसट्ठिभागे जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं एगसट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पन्नत्ते।
सूरविमानस्सवि सच्चेव पुच्छा।
गोयमा! अडयालीसं एगसट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रमा का विमान किस आकार का है ? गौतम ! चन्द्रविमान अर्धकबीठ के आकार का है। वह सर्वात्मना स्फटिकमय है, इसकी कान्ति सब दिशा – विदिशा में फैलती है, जिससे यह श्वेत, प्रभासित है इत्यादि। इसी प्रकार सूर्य, ग्रह और ताराविमान भी अर्धकबीठ आकार के हैं। भगवन् ! चन्द्रविमान का आयाम – विष्कम्भ कितना है ? परिधि | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 316 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पगती वा? सिग्घगती वा? गोयमा! चंदेहिंतो सूरा सिग्घगती, सूरेहिंतो गहा सिग्घगती, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहिंतो तारा सिग्घगती, सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारारूवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं में कौन किससे शीघ्रगति वाले हैं और कौन मंदगति वाले हैं ? गौतम ! चन्द्र से सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्रों से तारा शीघ्रगति वाले हैं। सबसे मन्दगति चन्द्रों की है और सबसे तीव्रगति ताराओं की है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 317 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! चंदिम जाव तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पिड्ढिया वा? महिड्ढिया वा? गोयमा! तारारूवेहिंतो नक्खत्ता महिड्ढीया, णक्खत्तेहिंतो गहा महिड्ढीया, गहेहिंतो सूरा महिड्ढीया, सूरेहिंतो चंदा महिड्ढीया, सव्वप्पिड्ढिया तारारूवा, सव्वमहिड्ढीया चंदा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्र यावत् तारारूप में कौन किससे अल्पऋद्धि वाले हैं और कौन महाऋद्धि वाले हैं ? गौतम ! तारारूप से नक्षत्र, नक्षत्र से ग्रह, ग्रहों से सूर्य और सूर्यों से चन्द्रमा महर्द्धिक हैं। सबसे अल्पऋद्धि वाले तारारूप हैं और सबसे महर्द्धिक चन्द्र है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 318 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे तारारूवस्स य तारारूवस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे अंतरे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइमे य निव्वाघाइमे य। तत्थ णं जेसे निव्वाघातिमे से जहन्नेणं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। तत्थ णं जेसे वाघातिमे से जहन्नेणं दोन्नि य छावट्ठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयण-सहस्साइं दोन्नि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारा का दूसरे तारे से कितना अंतर कहा गया है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है, यथा – व्याघातिम और निर्व्याघातिम। व्याघातिम अन्तर जघन्य २६६ योजन का और उत्कृष्ट १२२४२ योजन का है। जो निर्व्याघातिम अन्तर है वह जघन्य पाँच सौ धनुष और उत्कृष्ट दो कोस का जानना चाहिए। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 319 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिनाभा अच्चिमाली पभंकरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारिचत्तारि देविसहस्सा परिवारो पन्नत्तो। पभू णं ततो एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि-चत्तारि देविसहस्साइं परिवारं विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देविसहस्सा पन्नत्ता। से तं तुडियं। Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! चार – चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली और प्रभंकरा। इनमें से प्रत्येक अग्रमहिषी अन्य ४००० देवियों की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार कुल मिलाकर १६००० देवियों का परिवार है। यह चन्द्रदेव के अन्तःपुर का कथन हुआ। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 320 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए?
गोयमा! चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए मानवगंसि चेतियखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिनसकहाओ सन्निखित्ताओ चिट्ठंति, जाओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो अन्नेसिं च बहूणं जोतिसियाणं देवाण Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ हैं क्या ? गौतम ! नहीं है। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में माणवक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 321 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– सूरप्पभा आयवाभा अच्चिमाली पभंकरा। एवं अवसेसं जहा चंदस्स, नवरिं– सूरवडेंसए विमाणे सूरंसि सीहासनंसि। तहेव सव्वेसिं गहाईणं चत्तारि अग्गमहिसीओ, तं जहा– विजया वेजयंती जयंती अपराजिया, तेसिं पि तहेव। Translated Sutra: | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 323 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! चंदिमसूरियगहनक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! चंदिमसूरिया एते णं दोन्निवि तुल्ला सव्वत्थोवा, नक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, ताराओ संखेज्जगुणाओ। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य दोनों तुल्य हैं और सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण नक्षत्र हैं। उनसे संख्यातगुण ग्रह हैं, उनसे संख्यातगुण तारागण हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-१ | Hindi | 325 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाता, अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाता।
सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव बाहिरियाए पुच्छा। गोयमा! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ मज्झिमियाए परिसाए चोद्दस देव-साहस्सीओ पन्नत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, तहा अब्भिंतरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाया। आभ्यंतर पर्षदा को समिता, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद में १२००० देव, मध्यम परिषद में १४००० देव और बाह्य परिषद में १६००० देव हैं। आभ्यन्तर परिषद में ७०० देवियाँ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 326 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु कप्पेसु विमानपुढवी किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! घनोदहिपइट्ठिया पन्नत्ता।
सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु विमानपुढवी किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! घनवायपइट्ठिया पन्नत्ता।
बंभलोए णं भंते! कप्पे विमानपुढवी णं पुच्छा। घनवायपइट्ठिया पन्नत्ता।
लंतए तदुभयपइट्ठिया पन्नत्ता।
महासुक्कसहस्सारेसुवि तदुभयपइट्ठिया।
आनय जाव अच्चुएसु णं भंते! कप्पेसु पुच्छा। ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता।
गेवेज्जविमानपुढवीणं भंते! पुच्छा। गोयमा! ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता।
अनुत्तरोववाइयपुच्छा। ओवासंतरपइट्ठिया पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प की विमानपृथ्वी किसके आधार पर रही हुई है ? गौतम ! घनोदधि के आधार पर। सनत्कुमार और माहेन्द्र की विमानपृथ्वी घनवात पर प्रतिष्ठित है। ब्रह्मलोक विमान – पृथ्वी घनवात पर प्रतिष्ठित है। लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार विमान पृथ्वी घनोदधि – घनवात पर प्रतिष्ठित है। आनत यावत् अच्युत विमानपृथ्वी, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 327 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानकप्पेसु विमानपुढवी केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! सत्तावीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं पन्नत्ता।
एवं पुच्छा–सणंकुमारमाहिंदेसु छव्वीसं जोयणसयाइं। बंभलंतएसु पंचवीसं। महासुक्क-सहस्सारेसु चउवीसं। आनयपाणयारणाच्चुएसु तेवीसं सयाइं। गेवेज्जविमाणपुढवी बावसं। अनुत्तर-विमानपुढवी एक्कवीसं जोयणसयाइं बाहल्लेणं। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म और ईशान कल्प में विमानपृथ्वी कितनी मोटी है ? गौतम ! २७०० योजन मोटी है। सनत्कुमार और माहेन्द्र में विमानपृथ्वी २६०० योजन। ब्रह्मलोक और लांतक में २५०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में २४०० योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत कल्प में २३०० योजन, ग्रैवेयकों में २२०० योजन और अनुत्तर विमानों में विमानपृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 328 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं।
सणंकुमारमाहिंदेसु छ जोयणसयाइं। बंभलंतएसु सत्त। महासुक्कसहस्सारेसु अट्ठ। आनयपानयारणाच्चुएसु नव।
गेवेज्जविमानाणं भंते! केवइयं उड्ढं उच्चत्तेणं? गोयमा! दस जोयणसयाइं।
अनुत्तरविमानाणं एक्कारस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं। Translated Sutra: भगवन्! सौधर्म – ईशानकल्पमें विमान कितने ऊंचे हैं? गौतम!५०० योजन ऊंचे हैं। सनत्कुमार और माहेन्द्र में ६०० योजन, ब्रह्मलोक और लान्तक में ७०० योजन, महाशुक्र और सहस्रार में ८००योजन, आणत प्राणत आरण और अच्युत में ९०० योजन, ग्रैवेयकविमानमें १००० योजन और अनुत्तरविमान ११०० योजन ऊंचे हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 329 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेणं भंते! कप्पेसु विमाना किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आवलियापविट्ठा य आवलियाबाहिरा य। तत्थ णं जेते आवलियापविट्ठा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टा तंसा चउरंसा। तत्थ णं जेते आवलियाबाहिरा ते णं नानासंठाणसंठिया पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टे य तंसा य। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों का आकार कैसा है ? गौतम ! वे विमान दो प्रकार के हैं – आवलिका – प्रविष्ट और आवलिका बाह्य। आवलिका – प्रविष्ट विमान तीन प्रकार के हैं – गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण। आवलिका – बाह्य हैं वे नाना प्रकार के हैं। इसी तरह का कथन ग्रैवेयकविमानों पर्यन्त कहना। अनुत्तरो – पपातिक विमान दो | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 330 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 331 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी –नेवट्ठि नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं सरीरसंघातत्ताए परिणमंति। एवं जाव अनुत्तरोववातिया।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरा पन्नत्ता, तं जहा –भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते समचउरंस-संठाणसंठिता पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते नानासंठाणसंठिता पन्नत्ता जाव अच्चुओ।
गेवेज्जादेवाणं भंते! सरीरा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौन सा है ? गौतम ! एक भी नहीं; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं। जो पुद्गल इष्ट, कान्त यावत् मनोज्ञ – मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं। यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 332 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता।
सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि।
लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा।
अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 333 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अधे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, उड्ढं जाव सगाइं विमानाइं, तिरियं जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा एवं– Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव अवधिज्ञान के द्वारा कितने क्षेत्र को जानते हैं – देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को और उत्कृष्ट से नीची दिशा में रत्नप्रभापृथ्वी तक, ऊर्ध्वदिशा में अपने – अपने विमानों के ऊपरी भाग ध्वजा – पताका तक और तिरछीदिशा में असंख्यात द्वीप – समुद्रों | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 337 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं कति समुग्घाता पन्नत्ता? गोयमा! पंच समुग्घाता पन्नत्ता, तं जहा– वेदनासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते वेउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। एवं जाव अच्चुया।
गेवेज्जनुत्तराणं पुच्छा। गोयमा! पंच–वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते विउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। नो चेव णं वेउव्वियसमुग्घातेण वा तेयासमुग्घातेण वा समोहणिंसु वा समोहण्णंति वा समोहणिस्संति वा।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसयं खुहपिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! तेसि णं देवाणं नत्थि खुहपिवासा। एवं जाव अनुत्तरोववातिया।
सोहम्मीसानेसु Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! पाँच – वेदनासमुद्घात, कषाय – समुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात, वैक्रियसमुद्घात और तेजससमुद्घात। इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक कहना। ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्घात कहे गये हैं – भगवन् ! सौधर्म – ईशान देवलोक के देव कैसी भूख – प्यास | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 338 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरनवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पन्नत्ताओ?
गोयमा! दुविधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउव्वियाओ य। तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ णं आभरनवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पन्नत्ताओ।
तत्थ णं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव विभूषा की दृष्टि से कैसे हैं ? गौतम ! वे देव दो प्रकार के हैं – वैक्रिय – शरीर वाले और अवैक्रियशरीर वाले। उनमें जो वैक्रियशरीर वाले हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित करनेवाले, यावत् प्रतिरूप हैं। जो अवैक्रियशरीर वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 339 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! इट्ठे सद्दे इट्ठे रूवे इट्ठे गंधे इट्ठे रसे इट्ठे फासे पच्चणुभवमाणा विहरंति। एवं जाव गेवेज्जा।
अनुत्तरोववातियाणं अनुत्तरा सद्दा जाव अनुत्तरा फासा। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प में देव कैसे कामभोगों का अनुभव करते हुए विचरते हैं ? गौतम ! इष्ट शब्द, यावत् इष्ट स्पर्शजन्य सुखों का। ग्रैवेयकदेवों तक यही कहना। अनुत्तरविमान के देव अनुत्तर शब्द यावत् अनुत्तर – स्पर्श जन्य सुख अनुभवते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 341 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसाए विमानावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि विमानावासंसि सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसनसयनखंभभंडमत्तो-वकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। एवमीसानेवि।
सणंकुमारे पुच्छा। हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए जाव गेवेज्जा।
पंचसु णं भंते! महतिमहालएसु अनुत्तरविमाणेसु सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्पों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पृथ्वीकाय के रूप में, देव के रूप में, देवी के रूप में, आसन – शयन यावत् भण्डपोकरण के रूप में पूर्व में उत्पन्न हो चूके हैं क्या ? हाँ, गौतम! हो चूके हैं। शेष कल्पों में ऐसा ही कहना, किन्तु देवी के रूप में उत्पन्न होना नहीं कहना। ग्रैवेयक विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 342 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं।
तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं मनुस्सा। देवा जहा नेरइया।
नेरइए णं भंते! नेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? जहा कायट्ठिती देवाणवि एवं चेव।
तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं।
मनुस्से णं भंते! मनुस्सेति कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं।
नेरइयस्स णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। मनुष्यों की भी यहीं है। देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जानना। देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है। तिर्यंक की कायस्थिति जघन्य | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 343 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा। सेत्तं चउव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन नैरयिकों यावत् देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य हैं, उनसे नैरयिक असंख्यगुण हैं, उनसे देव असंख्यगुण हैं और उनसे तिर्यंच अनन्तगुण हैं। | |||||||||
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पंचविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया।
से किं तं एगिंदिया? एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं जाव पंचिंदिया दुविहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
बेइंदिया जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिंदियस्स छम्मासा, पंचिंदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं।
एगिंदियअपज्जत्तगस्स णं केवतियं Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पाँच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा – एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय। भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! दो, पर्याप्त और अपर्याप्त। पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो – दो भेद कहना। भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल | |||||||||
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पंचविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 345 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, एगिंदिया अनंतगुणा।
एवं अपज्जत्तगाणं– सव्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसा-हिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्तगा अनंतगुणा।
सव्वत्थोवा चतुरिंदिया पज्जत्तगा, पंचेंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, Translated Sutra: भगवन् ! इन एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रियों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सब से थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उन से चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उन से द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं और उन से एकेन्द्रिय अनन्तगुण हैं। इसी प्रकार अपर्याप्तक एकेन्द्रियादि में सब | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 346 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया।
से किं तं पुढविकाइया? पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविकाइया बादरपुढविकाइया य।
सुहुमपुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं बादरपुढवि-काइयावि। एवं जाव वणस्सतिकाइया।
से किं तं तसकाइया? तसकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। Translated Sutra: जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार हैं – पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक। भगवन् ! पृथ्वीकायिकों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादरपृथ्वी | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 347 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
आउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, तेउकाइयस्स तिन्नि राइंदियाइं, वाउकाइयस्स तिन्नि वास-सहस्साइं, वणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, तसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं।
अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। पज्जत्तगाणं सव्वेसिं उक्को-सिया ठिती अंतोमुहुत्तूणा। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। इसी प्रकार सबकी स्थिति कहना। त्रसकायिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। सब अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण है। सब पर्याप्तकों | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइयत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउक्काइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागे।
तसकाइए णं भंते! तसकाइयत्ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं।
अपज्जत्तगाणं छण्हवि जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं। Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकाय, पृथ्वीकाय के रूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्येय काल यावत् असंख्येय लोकप्रमाण आकाशखण्डों का निर्लेपनाकाल। इसी प्रकार यावत् वायुकाय की संचिट्ठणा जानना। वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है यावत् आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 350 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तगाणं सव्वेसिं एवं पुढविकाइयस्स णं भंते केवतियं कालं अंतरं होति गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो एवं आउ तेउ वाउकाइयाणं वणस्सइकालो तसकाइयाणवि वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो वणस्सईणं पुढविकालो, पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो। पुढविक्काइयपज्जत्तए णं भंते! पुढविक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइं। एवं आऊवि।
तेउक्काइयपज्जत्तए णं भंते! तेउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकाय का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार यावत् वायुकाय का अन्तर वनस्पतिकाल है। त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है। वनस्पति – काल का अन्तर पृथ्वीकायिक कालप्रमाण (असंख्येयकाल) है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पति – काल है। | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 351 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयं- सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउ-काइया विसेसाहिया, वाउक्काइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा। एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि।
एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतिकाइयावि। सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा।
एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तगअपज्जत्तगाण Translated Sutra: सबसे थोड़े त्रसकायिक, उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुण, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण। अपर्याप्त पृथ्वी – कायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार से है। पर्याप्त पृथ्वीकायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार की है। भगवन्! पृथ्वीकाय के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 352 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। एवं जाव सुहुमणिओयस्स, एवं अपज्जत्तगाणवि, पज्जत्तगाणवि जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म जीवों की स्थिति कितनी है? गौतम! जघन्य व उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त। इसी प्रकार सूक्ष्म निगोदपर्यन्त कहना। इस प्रकार सूक्ष्मों के पर्याप्त – अपर्याप्तकों की जघन्य – उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण ही है। | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 353 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमे णं भंते! सुहुमेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्ज-कालं जाव असंखेज्जा लोया। सव्वेसिं पुढविकालो जाव सुहुमणिओयस्स पुढविकालो। अपज्जत्त-गाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। एवं पज्जत्तगाणवि सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्मरूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त तक और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। यह असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी रूप हैं तथा असंख्येय लोककाश के प्रदेशों के अपहारकाल के तुल्य है। इसी तरह सूक्ष्म पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पति काय की संचिट्ठणा | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 354 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो।
सुहुमपुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जतिभागे। एवं जाव वाऊ। सुहुमवणस्सति-सुहुमनिओगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं जहा ओहियस्स अंतरं। एवं अपज्जत्ता-पज्जत्तगाणवि अंतरं। Translated Sutra: भगवन् ! सूक्ष्म, सूक्ष्म से नीकलने के बाद फिर कितने समय में सूक्ष्मरूप से पैदा होता है ? यह अन्तराल कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल रूप है तथा क्षेत्र से अंगुलासंख्येय भाग क्षेत्र में जितने आकाशप्रदेश हैं उन्हें प्रति समय एक – एक का | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 355 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउवाऊ विसेसाहिया, सुहुमनिओया असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगाणं, पज्जत्तगाणवि एवं चेव।
एतेसि णं भंते! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, सुहुमा पज्जत्ता संखेज्जगुणा। एवं जाव सुहुमणिगोया।
एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहुमनिओयाण य पज्जत्तापज्जत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया Translated Sutra: अल्पबहुत्वद्वार इस प्रकार है – सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक, सूक्ष्म – निगोद असंख्येयगुण, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुण और सूक्ष्म विशेषाधिक हैं। सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अल्पबहुत्व भी इसी क्रम | |||||||||
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षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 356 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता एवं बायरतसकाइयस्सवि बायरपुढवीकाइयस्स बावीस वाससहस्साइं बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं बायरतेउस्स तिन्नि राइंदिया बायरवाउस्स तिन्नि वाससहस्साइं बायरवण दस वाससहस्साइं एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि निओयस्स जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायरनिओयस्सवि अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं, बादरपुढविकाइयस्स बावीसं वाससहस्साइं, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, बादरतेउकाइयस्स तिन्नि Translated Sutra: भगवन् ! बादर की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। बादर त्रसकाय की भी यही स्थिति है। बादर पृथ्वीकाय की २२००० वर्ष की, बादर अप्कायिकों की ७००० वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की ३००० वर्ष की और बादर वनस्पति की १०००० वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है। |