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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 260 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, आउकायं समारंभंति, तेउकायं समारंभंति, वाउकायं समारंभंति, वणस्सइकायं समारंभंति तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा? पुच्छा। गोयमा! असुरकुमारा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम! नैरयिक सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का यावत्‌ त्रसकाय का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-७ पुदगल कंपन Hindi 261 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं जाणइ, हेउं पासइ, हेउं बुज्झइ, हेउं अभिसमागच्छइ, हेउं छउमत्थमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा जाणइ जाव हेउणा छउमत्थमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउं ण जाणइ जाव हेउं अन्नाणमरणं मरइ। पंच हेऊ पन्नत्ता, तं जहा–हेउणा न जाणइ जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं जाणइ जाव अहेउं केवलिमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउं न जाणइ जाव अहेउं छउमत्थमरणं मरइ। पंच अहेऊ पन्नत्ता, तं जहा–अहेउणा न जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ। सेवं भंते! सेवं भंते!

Translated Sutra: पाँच हेतु कहे गए हैं, (१) हेतु को जानता है, (२) हेतु को देखता, (३) हेतु का बोध प्राप्त करता – (४) हेतु का अभिसमागम – अभिमुख होकर सम्यक्‌ रूप से प्राप्त – करता है, और (५) हेतुयुक्त छद्मस्थमरणपूर्वक मरता है। पाँच हेतु (प्रकारान्तर से) कहे गए हैं। वे इस प्रकार – (१) हेतु द्वारा सम्यक्‌ जानता है, (२) हेतु से देखता है; (३) हेतु द्वारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Hindi 262 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नारयपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति। तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नियंठिपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विहरति। तए णं से नियंठिपुत्ते अनगारे जेणामेव नारयपुत्ते अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नारयपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला ते अज्जो! किं सअड्ढा समज्झा सपएसा? उदाहु अनड्ढा अमज्झा अपएसा? अज्जो! त्ति नारयपुत्ते अनगारे नियंठिपुत्तं अनगारं एवं वयासी–सव्वपोग्गला मे अज्जो! सअड्ढा समज्झा सपएसा, नो अनड्ढा अमज्झा अपएसा। तए णं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर पधारे। परीषद्‌ दर्शन के लिए गई, यावत्‌ धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृतिभद्र थे यावत्‌ आत्मा को भावित करते विचरते थे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Hindi 263 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया। नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि। जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि। जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा! सव्वद्धं। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं हायंति वि। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा!

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं भगवन्‌ ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 264 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी–किमिदं भंते! नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं पुढवी नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आऊ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं तेऊ वाऊ वणस्सई नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं टंका कूडा सेवा सिहरी पब्भारा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं जल-थल-बिल-गुह-लेणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं उज्झर-निज्झर-चिल्लल -पल्लल-वप्पिणा नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं अगड-तडाग दह-नईओ वावी-पुक्खरिणी-दीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं आरामुज्जाण-काणणा वणा वणसंडा वणराईओ नगरं रायगिहं ति पवुच्चइ? किं देवउल-सभ-पव-थूभ-खाइय-परिखाओ

Translated Sutra: उस काल और उस समय में यावत्‌ गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! यह ‘राजगृह’ नगर क्या है – ? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाता है ? अथवा क्या जल राजगृह – नगर कहलाता है ? यावत्‌ वनस्पति क्या राजगृहनगर कहलाता है ? जिस प्रकार ‘एजन’ नामक उद्देशक में पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों की (परिग्रह –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 265 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! दिया उज्जोए? राइं अंधयारे? हंता गोयमा! दिया उज्जोए, राइं अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! दिया सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे, राइं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइयाणं असुभा पोग्गला असुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। असुरकुमाराणं भंते! किं उज्जोए? अंधयारे? गोयमा! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधयारे। से केणट्ठेणं? गोयमा! असुरकुमाराणं सुभा पोग्गला सुभे पोग्गलपरिणामे। से तेणट्ठेणं। जाव थणियकुमाराणं। पुढविक्काइया जाव तेइंदिया जहा नेरइया। चउरिंदियाणं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! क्या दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? हाँ, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है। भगवन्‌ ! किस कारण से दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार होता है ? गौतम ! दिन में शुभ पुद्‌गल होते हैं अर्थात्‌ शुभ पुद्‌गल – परिणाम होते हैं, किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्‌गल अर्थात्‌ अशुभपुद्‌गल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 266 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! नेरइयाणं तत्थगयाणं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेण भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं तत्थगयाणं नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा, आवलिया इ वा जाव ओसप्पिणी इ वा, उस्सप्पिणी इ वा? गोयमा! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं तेसिं एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। से तेणट्ठेणं जाव नो एवं पण्णायए, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा। एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। अत्थि णं भंते! मनुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायते, तं जहा–समया इ वा जाव उस्सप्पिणी इ वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वहाँ (नरकक्षेत्र में) रहे हुए नैरयिकों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, जैसे कि – समय, आवलिका, यावत्‌ उत्सर्पिणी काल (या) अवसर्पिणी काल ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से नरकस्थ नैरयिकों को काल का प्रज्ञान नहीं होता ? गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 267 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी– से नूनं भंते! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया उपज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? परित्ता राइंदिया उप्पज्जिंसु वा, उप्पज्जंति वा, उप्पज्जिस्संति वा? विगच्छिंसु वा, विगच्छंति वा, विगच्छिस्संति वा? हंता अज्जो! असंखेज्जे लोए अनंता राइंदिया तं चेव। से केणट्ठेणं जाव विगच्छिस्संति वा? से नूनं भे अज्जो! पासेनं अरहया पुरिसादानिएणं सासए लोए बुइए–अनादीए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में पार्श्वापत्य स्थविर भगवंत, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आए। वहाँ आकर वे श्रमण भगवान महावीर से अदूरसामन्त खड़े रहकर इस प्रकार पूछने लगे – भगवन्‌ ! असंख्य लोक में क्या अनन्त रात्रि – दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे; तथा नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे ? अथवा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-९ राजगृह Hindi 270 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है। इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 273 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए? हंता गोयमा! जे महावेदने से महानिज्जरे, जे महानिज्जरे से महावेदने, महावेदनस्स य अप्पवेदनस्स य से सेए जे पसत्थ-निज्जराए। छट्ठ-सत्तमासु णं भंते! पुढवीसु नेरइया महावेदना? हंता महावेदना। ते णं भंते! समणेहिंतो निग्गंथेहिंतो महानिज्जरतरा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणं खाइ अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जे महावेदने से महानिज्जरे? जे महानिज्जरे से महावेदने? महावेदणस्स य अप्पवेदणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए? गोयमा! से जहानामए दुवे वत्था सिया–एगे वत्थे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है ? तथा क्या महावेदना वाला और अल्पवेदना वाला, इन दोनों में वही जीव श्रेयान्‌ (श्रेष्ठ) है, जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है ? हाँ, गौतम ! जो महावेदना वाला है इत्यादि जैसा ऊपर कहा है, इसी प्रकार समझना चाहिए भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 274 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! कतिविहे करणे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। एवं पंचिंदियाणं सव्वेसिं चउव्विहे करणे पन्नत्ते। एगिंदियाणं दुविहे–कायकरणे य, कम्मकरणे य। विगलिंदियाणं तिविहे–वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। नेरइयाणं भंते! किं करणओ असायं वेदनं वेदेंति? अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति? गोयमा! नेरइया णं करणओ असायं वेदनं वेदेंति, नो अकरणओ असायं वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं? गोयमा! नेरइया णं चउव्विहे करणे पन्नत्ते, तं जहा–मनकरणे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! करण कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! करण चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। भगवन्‌ ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार के करण कहे गए हैं ? गौतम ! चार प्रकार के। मन – करण, वचन – करण, काय – करण और कर्म – करण। इसी प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के ये चार प्रकार के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 275 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं महावेदना महानिज्जरा? महावेदना अप्पनिज्जरा? अप्पवेदना महानिज्जरा? अप्पवेदना अप्पनिज्जरा? गोयमा! अत्थेगतिया जीवा महावेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा महावेदना अप्प-निज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना महानिज्जरा, अत्थेगतिया जीवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा। से केणट्ठेणं? गोयमा! पडिमापडिवन्नए अनगारे महावेदने महानिज्जरे। छट्ठ-सत्तमासु पुढवीसु नेरइया महावेदना अप्पनिज्जरा। सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे अप्पवेदने महानिज्जरे। अनुत्तरोववाइया देवा अप्पवेदना अप्पनिज्जरा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव (क्या) महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, अथवा अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं ? गौतम ! कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं, कितने ही जीव महावेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं, कईं जीव अल्पवेदना और महानिर्जरा वाले हैं, तथा कईं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१ वेदना Hindi 276 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] महावेदने य वत्थे, कद्दम-खंजणकए य अहिगरणी । तणहत्थे य कवल्ले, करण-महावेदना जीवा ॥

Translated Sutra: महावेदना, कर्दम और खंजन के रंग से रंगे हुए वस्त्र, अधिकरणी, घास का पूला, लोहे का तवा या कड़ाह, करण और महावेदना वाले जीव; इतने विषयों का निरूपण इस प्रथम उद्देशक में किया गया है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-२ आहार Hindi 277 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहं नगरं जाव एवं वयासी–आहारुद्देसओ जो पन्नवणाए सो सव्वो निरवसेसो नेयव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ भगवान महावीर ने फरमाया – यहाँ प्रज्ञापना सूत्र में जो आहार – उद्देशक कहा है, वह सम्पूर्ण जान लेना। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 278 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १ बहुकम्म २ वत्थपोग्गल-पयोगसा-वीससा य ३ सादीए । ४ कम्मट्ठिति ५ त्थि ६ संजय ७ सम्मदिट्ठी य ८ सन्नी य ॥

Translated Sutra: १. बहुकर्म, २. वस्त्रमें प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से (विस्रसा) पुद्‌गल, ३. सादि, ४. कर्मस्थिति, ५. स्त्री, ६. संयत, ७. सम्यग्दृष्टि, ८. संज्ञी, ९. भव्य, १०. दर्शन, ११. पर्याप्त, १२. भाषक, १३. परित्त, १४. ज्ञान, १५. योग, १६. उपयोग, १७. आहारक, १८. सूक्ष्म, १९. चरम – बन्ध २०. अल्पबहुत्व का वर्णन इस उद्देशकमें किया गया है। सूत्र – २७८,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 280 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! महाकम्मस्स, महाकिरियस्स, महासवस्स, महावेदणस्स सव्वओ पोग्गला बज्झंति, सव्वओ पोग्गला चिज्जंति, सव्वओ पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं पोग्गला बज्झंति, सया समियं पोग्गला चिज्जंति, सया समियं पोग्गला उवचिज्जंति; सया समियं च णं तस्स आया दुरूवत्ताए दुवण्णत्ताए दुगंधत्ताए दुरसत्ताए दुफासत्ताए, अनिट्ठत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुन्नत्ताए अमणामत्ताए अनिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए–नो उड्ढत्ताए, दुक्खत्ताए–नो सुहत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति? हंता गोयमा! महाकम्मस्स तं चेव। से केणट्ठेणं? गोयमा! से जहानामए वत्थस्स अहयस्स वा, धोयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या निश्चय ही महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले और महावेदना वाले जीव के सर्वतः पुद्‌गलों का बन्ध होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का चय होता है ? सर्वतः पुद्‌गलों का उपचय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का चय होता है ? सदा सतत पुद्‌गलों का उपचय होता है ? क्या सदा निरन्तर उसका आत्मा दुरूपता में, दुर्वर्णता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 281 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं पयोगसा? वीससा? गोयमा! पयोगसा वि, वीससा वि। जहा णं भंते! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा? वीससा? गोयमा! पयोगसा, नो वीससा। से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवाणं तिविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा– मनप्पयोगे, वइप्पयोगे, कायप्पयोगे। इच्चेएणं तिविहेणं पयोगेणं जीवाणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। एवं सव्वेसिं पंचिंदियाणं तिविहे पयोगे भाणियव्वे। पुढवीकाइयाणं एगविहेणं पयोगेणं, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। विगलिंदियाणं दुविहे पयोगे पन्नत्ते, तं जहा–वइपयोगे, कायपयोगे य। इच्चेएणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचए पयोगसा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वस्त्र में जो पुद्‌गलों का उपचय होता है, वह क्या प्रयोग (पुरुष – प्रयत्न) से होता है, अथवा स्वाभाविक रूप से ? गौतम ! वह प्रयोग से भी होता है, स्वाभाविक रूप से भी होता है। भगवन्‌ ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्‌गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्‌गलों का उपचय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 282 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वत्थस्स णं भंते! पोग्गलोवचए किं सादीए सपज्जवसिए? सादीए अपज्जवसिए? अनादीए सपज्जवसिए? अनादीए अपज्जवसिए? गोयमा! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए। जहा णं भंते! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अनादीए सपज्जवसिए, नो अनादीए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतियाणं जीवाणं कम्मोवचए सादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए सपज्जवसिए, अत्थेगतियाणं अनादीए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए। से केणट्ठेणं? गोयमा! इरियावहियबंधयस्स कम्मोवचए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वस्त्र में पुद्‌गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त है, सादिअनन्त है, अनादि – सान्त है, अथवा अनादि – अनन्त है ? गौतम ! वस्त्र में पुद्‌गलों का जो उपचय होता है, वह सादि – सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि – अनन्त होता है, न अनादि – सान्त होता है और न अनादि – अनन्त होता है। हे भगवन्‌ ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्‌गलोपचय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 283 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. नाणावरणिज्जं, २. दरिसणावरणिज्जं, ३. वेदणिज्जं, ४. मोहणिज्जं, ५. आउगं, ६. नामं, ७. गोयं, ८. अंतराइयं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं बंधट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। दरिसावरणिज्जं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्म-ट्ठिती–कम्मनिसेओ। वेदणिज्जं जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई है ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय यावत्‌ अन्तराय। भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म की बन्धस्थिति कितने काल की कही गई है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। अबाधाकाल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 284 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ सिय बंधइ सिय नो बंधइ। एवं आउगवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ। आउगं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? नपुंसओ बंधइ? नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ बंधइ? गोयमा! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। पुरिसो सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसओ न बंधइ। नाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं संजए बंधइ? अस्संजए बंधइ? संजयासंजए बंधइ? नोसंजए नोअसंजए नोसंजयासंजए बंधइ? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बाँधती है ? पुरुष बाँधता है, अथवा नपुंसक बाँधता है ? अथवा नो – स्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है और नपुंसक भी बाँधता है, परन्तु नोस्त्री – नोपुरुष – नोनपुंसक होता है, वह कदाचित्‌ बाँधता है, कदाचित्‌ नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-३ महाश्रव Hindi 285 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! जीवाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं, नपुंसगवेदगाणं, अवेदगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा, इत्थिवेदगा संखेज्जगुणा, अवेदगा अनंतगुणा, नपुंसगवेदगा अनंतगुणा। एएसिं सव्वेसिं पदाणं अप्पबहुगाइं उच्चारेयव्वाइं जाव सव्वत्थोवा जीवा अचरिमा, चरिमा अनंतगुणा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक; इन जीवों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदक हैं, उनसे संख्येयगुणा स्त्रीवेदक जीव हैं, उनसे अनन्तगुणा अवेदक हैं और उनसे भी अनन्तगुणा नपुंसकवेदक हैं। इन सर्व पदों का यावत्‌ सबसे थोड़े अचरम जीव हैं और
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 286 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! नियमा सपदेसे। नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे? गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे। एवं जाव सिद्धे। जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! नियमा सपदेसा। नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा? गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि। एवं जाव वणप्फइकाइया। सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा। आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित्‌ सप्रदेश है और कदाचित्‌ अप्रदेश है। इस प्रकार यावत्‌ एक सिद्ध – जीव – पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! कालादेश की
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 288 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणी? अपच्चक्खाणी? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी? गोयमा! जीवा पच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी वि। सव्वजीवाणं एवं पुच्छा। गोयमा! नेरइया अपच्चक्खाणी जाव चउरिंदिया [सेसा दो पडिसेहेयव्वा] । पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो पच्चक्खाणी, अप-च्चक्खाणी वि, पच्चक्खाणा-पच्चक्खाणी वि। मणूसा तिन्नि वि। सेसा जहा नेरइया। जीवा णं भंते! किं पच्चक्खाणं जाणंति? अपच्चक्खाणं जाणंति? पच्चक्खाणापच्चक्खाणं जाणंति? गोयमा! जे पंचिंदिया ते तिन्नि वि जाणंति, अवसेसा पच्चक्खाणं न जाणंति, अपच्चक्खाणं न जाणंति, पच्चक्खाणापच्चक्खाणं न जाणंति। जीवा णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव प्रत्याख्यानी है, अप्रत्याख्यानी है या प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी है ? गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी है, अप्रत्याख्यानी भी है और प्रत्याख्याना – प्रत्याख्यानी भी हैं। इसी तरह सभी जीवों के सम्बन्ध में प्रश्न है। गौतम ! नैरयिक जीव यावत्‌ चतुरिन्द्रिय जीव अप्रत्याख्यानी है, इन जीवों में शेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-४ सप्रदेशक Hindi 290 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: देखो सूत्र २८९
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 291 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति। से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइसे तेणट्ठेणं। तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए? गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस-एक्कवीसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ‘तमस्काय’ किसे कहा जाता है ? क्या ‘तमस्काय’ पृथ्वी को कहते हैं या पानी को ? गौतम ! पृथ्वी तमस्काय नहीं कहलाती, किन्तु पानी ‘तमस्काय’ कहलाता है। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! कोई पृथ्वीकाय ऐसा शुभ है, जो देश को प्रकाशित करता है और कोई पृथ्वीकाय ऐसा है, जो देश को प्रकाशित नहीं करता इस कारण से पृथ्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 292 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कण्हरातीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कण्हरात्तीओ पन्नत्ताओ। कहि णं भंते! एयाओ अट्ठ कण्हरातीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं, हव्विं बंभलोए कप्पे रिट्ठे विमानपत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हरातीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पुरत्थिमे णं दो, पच्चत्थिमे णं दो, दाहिणे णं दो, उत्तरे णं दो। पुरत्थिमब्भंतरा कण्हराती दाहिण-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, दाहिणब्भंतरा कण्हराती पच्चत्थिम-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, पच्चत्थिमब्भंतरा कण्हराती उत्तर-बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, उत्तरब्भंतरा कण्हराती पुरत्थिमबाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा। दो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! आठ। भगवन्‌ ! ये आठ कृष्णराजियाँ कहाँ है ? गौतम! ऊपर सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों से ऊपर और ब्रह्मलोक देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के (तृतीय) प्रस्तट से नीचे, अखाड़ा के आकार की समचतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं। यथा – पूर्व में दो, पश्चिम में दो, दक्षिण में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 294 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हरातीओ णं भंते! केवतियं आयामेणं? केवतियं विक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ताओ? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परि-क्खेवेणं पन्नत्ताओ। कण्हरातीओ णं भंते! केमहालियाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे जाव देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभावे इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबूदीवं दीवं तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिसत्तक्खुत्तो अनुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छिज्जा, से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव दिव्वाए देवगईए वीईवयमाणे-वीईवयमाणे जाव एकाहं वा, दुयाहं वा, तियाहं वा, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृष्णराजियों का आयाम, विष्कम्भ और परिक्षेप कितना है ? गौतम ! कृष्णराजियों का आयाम असंख्येय हजार योजन है, विष्कम्भ संख्येय हजार योजन है और परिक्षेप असंख्येय हजार योजन कहा गया है। भगवन्‌ ! कृष्णराजियाँ कितनी बड़ी कही गई हैं ? गौतम ! तीन चुटकी बजाए, उतने समय में इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की इक्कीस बार परिक्रमा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 295 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतिगविमाना पन्नत्ता, तं जहा–१. अच्ची २.अच्चीमाली ३. वइरोयणे ४. पभंकरे ५. चंदाभे ६. सूराभे ७. सुक्काभे ८. सुपइट्ठाभे, मज्झे रिट्ठाभे। कहि णं भंते! अच्चि-विमाने पन्नत्ते? गोयमा! उत्तर-पुरत्थिमे णं। कहि णं भंते! अच्चिमाली विमाने पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमे णं। एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव– कहि णं भंते! रिट्ठे विमाने पन्नत्ते? गोयमा! बहुमज्झदेसभाए। एएसु णं अट्ठसु लोगंतियविमानेसु अट्ठविहा लोगंतिया देवा परिवसंति, तं जहा–

Translated Sutra: इन आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान हैं। यथा – अर्चि, अर्चमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, शुक्राभ और सुप्रतिष्ठाभ। इन सबके मध्य में रिष्टाभ विमान है। भगवन्‌ ! अर्चि विमान कहाँ है ? गौतम ! अर्चि विमान उत्तर और पूर्व के बीच में हैं। भगवन्‌ ! अर्चिमाली विमान कहाँ हैं ? गौतम ! अर्चिमाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 297 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सारस्सया देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिम्मि विमाने परिवसंति। कहि णं भंते! आइच्चा देवा परिवसंति? गोयमा! अच्चिमालिम्मि विमाने। एवं नेयव्वं जहाणुपुव्वीए जाव– कहि णं भंते! रिट्ठा देवा परिवसंति? गोयमा! रिट्ठम्मि विमाने। सारस्सयमाइच्चाणं भंते! देवाणं कति देवा, कति देवसया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त देवा, सत्त देवसया परिवारो पन्नत्तो। वण्ही–वरुणाणं देवाणं चउद्दस देवा, चउद्दस देवसहस्सा परिवारो पन्नत्तो। गद्दतोय–तुसियाणं देवाणं सत्त देवा, सत्त देव-सहस्सा परिवारो पन्नत्तो। अवसेसाणं नव देवा, नव देवसया परिवारो पन्नत्तो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सारस्वत देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सारस्वत देव अर्चि विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! आदित्य देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! आदित्य देव अर्चिमाली विमान में रहते हैं। इस प्रकार अनुक्रम से रिष्ट विमान तक जान लेना चाहिए। भगवन्‌ ! रिष्टदेव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! रिष्टदेव रिष्ट विमान में रहते हैं। भगवन्‌ ! सारस्वत और आदित्य,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 298 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढम-जुगलम्मि सत्तओ, सयाणि बीयम्मि चउद्दससहस्सा । तइए सत्तसहस्सा, नव चेव सयाणि सेसेसु

Translated Sutra: प्रथम युगल में ७००, दूसरे युगल में १४,००० तीसरे युगल में ७,००० और शेष तीन देवों के ९०० देवों का परिवार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-५ तमस्काय Hindi 299 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोगंतिगविमाना णं भंते! किंपइट्ठिया पन्नत्ता? गोयमा! वाउपइट्ठिया पन्नत्ता। एवं नेयव्वं विमानाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्तमेव संठाणं, बंभलोय-वत्तव्वया नेयव्वा जाव– लोयंतियविमानेसु णं भंते! सव्वे पाणा भूया जीवा सत्ता पुढविकाइयत्ताए, आउकाइयत्ताए, तेउकाइयत्ताए, वाउकाइयत्ताए, वणप्फइकाइयत्ताए, देवत्ताए, देवित्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतक्खुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए। लोगंतिय देवाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। लोगंतियविमानेहिंतो णं भंते! केवतियं अबाहाए लोगंते पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोकान्तिक विमान किसके आधार पर प्रतिष्ठित है ? गौतम ! लोकान्तिक विमान वायुप्रतिष्ठित है। इस प्रकार – जिस तरह विमानों का प्रतिष्ठान, विमानों का बाहल्य, विमानों की ऊंचाई और विमानों के संस्थान आदि का वर्णन जीवाजीवाभिगमसूत्र के देव – उद्देशक में ब्रह्मलोक की वक्तव्यता में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 300 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा। रयणप्पभाईणं आवासा भाणियव्वा जाव अहेसत्तमाए। एवं जत्तिया आवासा ते भाणियव्वा जाव– कति णं भंते! अनुत्तरविमाना पन्नत्ता? गोयमा! पंच अनुत्तरविमाना पन्नत्ता, तं० विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए, सव्वट्ठसिद्धे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात हैं। यथा – रत्नप्रभा यावत्‌ तमस्तमःप्रभा। रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर अधःसप्तमी पृथ्वी तक, जिस पृथ्वी के जितने आवास हों, उतने कहने चाहिए। भगवन्‌ ! यावत्‌ अनुत्तर – विमान कितने हैं ? गौतम ! पाँच अनुत्तरविमान हैं। – विजय, यावत्‌ सर्वार्थसिद्ध विमान।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-६ भव्य Hindi 301 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! तत्थगए चेव आहारेज्ज वा? परिणामेज्ज वा? सरीरं वा बंधेज्जा? गोयमा! अत्थेगतिए तत्थगए चेव आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं वा बंधेज्जा; अत्थेगतिए तओ पडिनियत्तति, तत्तो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छइ, आगच्छित्ता दोच्चं पि मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास-सयसहस्सेसु अन्नयरंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जित्तए, तओ पच्छा आहारेज्ज वा, परिणामेज्ज वा, सरीरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जो जीव मारणान्तिक – समुद्‌घात से समवहत हुआ है और समवहत होकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से किसी एक नारकावास में नैरयिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन्‌ ! क्या वह वहाँ जाकर आहार करता है ? आहार को परिणमाता है ? और शरीर बाँधता है ? गौतम ! कोई जीव वहाँ जाकर ही आहार करता है, आहार को परिणमाता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 302 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सालीणं, वीहीणं, गोधूमाणं, जवाणं, जवजवाणं– एएसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्ला-उत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं केवतियं कालं जोणी संचिट्ठइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि संवच्छराइं। तेण परं जोणी पमिलायइ, तेण परं जोणी पविद्धंसइ, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते समणाउसो। अह भंते! कल-मसूर-तिल- मुग्ग-मास- निप्फाव-कुलत्थ- आलिसंदग-सतीण- पलिमंथगमाईणं–एएसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं पिहियाणं मुद्दियाणं लंछियाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ तथा यवयव इत्यादि धान्य कोठे में सुरक्षित रखे हो, बाँस के पल्ले से रखे हों, मंच पर रखे हों, माल में डालकर रखे हों, गोबर से उनके मुख उल्लिप्त हों, लिप्त हों, ढँके हुए हों, मुद्रित हों, लांछित किए हुए हों; तो उन (धान्यों) की योनि कितने काल तक रहती है ? हे गौतम ! उनकी योनि कम से कम अन्तर्मुहूर्त्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 303 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवतिया ऊसासद्धा वियाहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं समयाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा आवलिय त्ति पवुच्चइ, संखेज्जा आवलिया ऊसासो, संखेज्जा आवलिया निस्सासो–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक – एक मुहूर्त्त के कितने उच्छ्‌वास कहे गये हैं ? गौतम ! असंख्येय समयों के समुदाय की समिति के समागम से अर्थात्‌ असंख्यात समय मिलकर जितना काल होता है, उसे एक ‘आवलिका’ कहते हैं। संख्येय आवलिका का एक ‘उच्छ्‌वास’ होता है और संख्येय आवलिका का एक ‘निःश्वास’ होता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 304 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो । एगे ऊसास-नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: हृष्टपुष्ट, वृद्धावस्था और व्याधि से रहित प्राथी का एक उच्छ्‌वास और एक निःश्वास – (ये दोनों मिलकर) एक ‘प्राण’ कहलाता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 305 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥

Translated Sutra: सात प्राणों का एक ‘स्तोक’ होता है। सात स्तोकों का एक ‘लव’ होता है। ७७ लवों का एक मुहूर्त्त कहा गया है। अथवा ३७७३ उच्छ्‌वासों का एक मुहूर्त्त होता है, ऐसा समस्त अनन्तज्ञानियों ने देखा है। सूत्र – ३०५, ३०६
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 307 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहुत्ता अहोरत्तो, पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उडू, तिन्नि उडू अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंच संवच्छराइं जुगे, वीसं जुगाइं वाससयं, दस वाससयाइं वाससहस्सं, सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्सं, चउरासीइं वाससयसहस्साणि से एगे पुव्वंगे, चउरासीइं पुव्वंगा सयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिउरंगे, अत्थनिउरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिया, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया। एताव ताव गणिए, एताव ताव गणियस्स विसए, तेण परं ओवमिए। से

Translated Sutra: इस मुहूर्त्त के अनुसार तीस मुहूर्त्त का एक ‘अहोरात्र’ होता है। पन्द्रह ‘अहोरात्र’ का एक ‘पक्ष’ होता है। दो पक्षों का एक ‘मास’ होता है। दो ‘मासों’ की एक ‘ऋतु’ होती है। तीन ऋतुओं का एक ‘अयन’ होता है। दो अयन का एक ‘संवत्सर’ (वर्ष) होता है। पाँच संवत्सर का एक ‘युग’ होता है। बीस युग का एक सौ वर्ष होता है। दस वर्षशत
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 308 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्थेण सुतिक्खेण वि, छेत्तुं भेत्तुं व जं किर न सक्का । तं परमाणुं सिद्धा, वदंति आदिं पमाणाणं ॥

Translated Sutra: (हे गौतम !) जो सुतीक्ष्ण शस्त्रों द्वारा भी छेदा – भेदा न जा सके ऐसे परमाणु को सिद्ध भगवान समस्त प्रमाणों का आदिभूत प्रमाण कहते हैं।
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 309 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा। अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मनुस्साणं वालग्गे; एवं हरिवास-रम्मग-हेमवय-एरन्नवयाणं, पुव्वविदेहाणं मनुस्साणं अट्ठ वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले। एएणं अंगुलपमाणेणं

Translated Sutra: ऐसे अनन्त परमाणुपुद्‌गलों के समुदाय की समितियों के समागम से एक उच्छ्‌लक्ष्णलक्ष्णिका, श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य और अंगुल होता है। आठ उच्छ्‌लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका के मिलने से एक श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका के मिलने से
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 310 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं सागरोवमस्स उ, एक्कस्स भवे परिमाणं ॥

Translated Sutra: इस पल्योपम काल का जो परिमाण ऊपर बतलाया गया है, वैसे दस कोटाकोटि पल्योपमों का एक सागरोपम – कालपरिमाण होता है।
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 311 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएणं सागरोवमपमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम-सुसमा १. तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा २. दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम-दूसमा ३. एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसम-सुसमा ४. एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसमा ५. एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसम-दूसमा ६. । पुनरवि उस्सप्पिणीए एक्कवीसं वाससहस्साइं कालो दूसम-दूसमा १. एक्कवीसं वास-सहस्साइं कालो दूसमा २. एगा सागरोव-मकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिया कालो दूसम-सुसमा ३. दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम-दूसमा ४. तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा५. चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो

Translated Sutra: इस सागरोपम – परिमाण के अनुसार (अवसर्पिणीकाल में) चार कोटाकोटि सागरोपमकाल का एक सुषम – सुषमा आरा होता है; तीन कोटाकोटि सागरोपम – काल का एक सुषमा आरा होता है; दो कोटाकोटि सागरोपम – काल का एक सुषमदुःषमा आरा होता है; बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटाकोटि सागरोपम – काल का एक दुःषम सुषमा आरा होता है; इक्कीस हजार वर्ष का एक
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शतक-६

उद्देशक-७ शाली Hindi 312 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए उत्तिमट्ठपत्ताए, भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए–आलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तर-कुरुवत्तव्वया नेयव्वा जाव तत्थ णं बहवे भारया मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति। तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ-तत्थ देसे-देसे तहिं-तहिं बहवे उद्दाला कोद्दाला जाव कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मनुस्सा अनुसज्जित्था, तं जहा–पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेतली, सहा, सणिंचारी। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तमार्थ – प्राप्त इस अवसर्पिणीकाल के सुषम – सुषमा नामक आरे में भरतक्षेत्र के आकार, भाव – प्रत्यवतार किस प्रकार के थे ? गौतम ! भूमिभाग बहुत सम होने से अत्यन्त रमणीय था। जैसे कोई मुरज नामक वाद्य का चर्मचण्डित मुखपट हो, वैसा बहुत ही सम भरतक्षेत्र का भूभाग था। इस प्रकार उस
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शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 313 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–रयणप्पभा जाव ईसीपब्भारा। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए गेहा इ वा? गेहावणा इ वा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए अहे गामा इ वा? जाव सन्निवेसा इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति–देवो वि पकरेति, असुरो वि पकरेति, नागो वि पकरेति। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बादरे थणियसद्दे? हंता अत्थि। तिन्नि वि पकरेंति। अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे बादरे अगनिकाए? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितनी पृथ्वीयाँ कही गई हैं ? गौतम ! आठ। – रत्नप्रभा यावत्‌ ईषत्प्राग्भारा। भगवन्‌ ! रत्न – प्रभापृथ्वी के नीचे गृह अथवा गृहापण हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे ग्राम यावत्‌ सन्निवेश हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे महान्‌ मेघ संस्वेद
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शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 314 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तमुकाए कप्पपणए, अगणी पुढवी य अगनि-पुढवीसु । आऊ तेऊ वणस्सई, कप्पुवरिमकण्हराईसु ॥

Translated Sutra: तमस्काय में और पाँच देवलोकों तक में अग्निकाय और पृथ्वीकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए। रत्नप्रभा आदि नरकपृथ्वीयों में अग्निकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए। इसी तरह पंचम कल्प – देवलोक से ऊपर सब स्थानों में तथा कृष्णराजियों में अप्काय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में प्रश्न करना चाहिए।
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शतक-६

उद्देशक-८ पृथ्वी Hindi 316 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं उस्सिओदए? पत्थडोदए? खुभियजले? अक्खुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए, खुभियजले, नो अखुभियजले। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे उस्सिओदए, नो पत्थडोदए; खुभियजले, नो अखुभियजले; तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं उस्सिओदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अखुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो उस्सिओदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला, अखुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि। जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहया संसेयंति, संमुच्छंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवणसमुद्र, उछलते हुए जल वाला है, सम जल वाला है, क्षुब्ध जल वाला है अथवा अक्षुब्ध जल वाला है ? गौतम ! लवणसमुद्र उच्छितोदक है, किन्तु प्रस्तृतोदक नहीं है; वह क्षुब्ध जल वाला है, किन्तु अक्षुब्ध जल वाला नहीं है। यहाँ से प्रारम्भ करके जीवाभिगम सूत्र अनुसार यावत्‌ इस कारण से, हे गौतम ! बाहर के (द्वीप – ) समुद्र
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शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 318 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। देवे णं भंते! बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति? गोयमा! नो इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति। एवं एएणं गमेणं जाव १. एगवण्णं एगरूवं २. एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। देवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! महर्द्धिक यावत्‌ महानभाग देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले और एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! क्या वह देव बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! समर्थ है। भगवन्‌ ! क्या वह देव इहगत पुद्‌गलों को ग्रहण करके
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शतक-६

उद्देशक-९ कर्म Hindi 319 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] १. अविसुद्धलेसे णं भंते! देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं, देविं, अन्नयरं जाणइ-पासइ? नो तिणट्ठे समट्ठे। एवं–२. अविसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ३. अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं ४. अविसुद्धलेसे देवे समोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ५. अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्धलेसं देवं ६. अविसुद्धलेसे देवे समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं ७. विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविसुद्ध-लेसं देवं ८. विसुद्धलेसे देवे असमोहएणं अप्पाणेणं विसुद्धलेसं देवं। ९. विसुद्धलेसे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अविशुद्ध लेश्या वाला देव असमवहत – आत्मा से अविशुद्ध लेश्या वाले देव को या देवी को या अन्यतर को जानता और देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी तरह अविशुद्ध लेश्या वाला देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्या वाले देव को, देवी या अन्यतर को जानता – देखता है ? अविशुद्ध लेश्या वाला देव उपयुक्त आत्मा
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शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 320 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग – प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता। भगवन्‌ ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 321 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवे? जीवे जीवे? गोयमा! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे। जीवे णं भंते! नेरइए? नेरइए जीवे? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। जीवे णं भंते! असुरकुमारे? असुरकुमारे जीवे? गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय नोअसुरकुमारे। एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं। जीवति भंते! जीवे? जीवे जीवति? गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति। जीवति भंते! नेरइए? नेरइए जीवति? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं। भवसिद्धिए णं भंते! नेरइए? नेरइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव चैतन्य है या चैतन्य जीव है ? गौतम ! जीव तो नियमतः चैतन्य स्वरूप है और चैतन्य भी निश्चितरूप से जीवरूप है। भगवन्‌ ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है ? गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित्‌ नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित्‌ नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है। भगवन्‌ ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार
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