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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 157 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं असुरकुमाराणं भवना पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव बली, एत्थ वइरोयणिंदे वइरोयणराया परिवसति जाव विहरति।
बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिया चंडा जाया। अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाया।
बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता? मज्झिमियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवसिया पन्नत्ता? गोयमा! बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए वीसं देवसहस्सा पन्नत्ता, मज्झिमियाए Translated Sutra: हे भगवन् ! उत्तर दिशा के असुरकुमारों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! स्थान पद के समान कहना यावत् वहाँ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि निवास करता है यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की कितनी पर्षदा हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाता। आभ्यन्तर परिषदा समिता कहलाती | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 158 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! नागकुमाराणं देवाणं भवना पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव दाहिणिल्लावि पुच्छियव्वा जाव घरणे इत्थ नागकुमारिंदे नागकुमारराया परिवसति जाव विहरति।
धरणस्स णं भंते! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ, ताओ चेव जहा चमरस्स।
धरणस्स णं भंते! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसहस्सा पन्नत्ता जाव बाहिरियाए परिसाए कति देवीसया पन्नत्ता? गोयमा! धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए सट्ठिं देवसहस्साइं, मज्झिमियाए परिसाए सत्तरिं देव-सहस्साइं, बाहिरियाए असीतिदेवसहस्साइं, अब्भिंतरियाए Translated Sutra: हे भगवन् ! नागकुमार देवों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! स्थानपद समान जानना यावत् वहाँ नागकुमारेन्द्र और नागकुमारराज धरण रहता है यावत् दिव्यभोगों को भोगता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नाग – कुमारराज धरण की कितनी परिषदाएं हैं ? गौतम ! तीन परिषदाएं कही गई हैं। उनके नाम पूर्ववत्। गौतम ! नागकुमारेन्द्र | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 159 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं भोमेज्जा नगरा पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव विहरंति।
कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं भोमेज्जा नगरा पन्नत्ता? जहा ठाणपदे जाव विहरंति, कालमहाकाला य तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाव विहरंति।
कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं पिसायकुमाराणं जाव विहरंति, काले य एत्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महिड्ढिए जाव विहरति।
कालस्स णं भंते! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–ईसा तुडिया दढरहा। अब्भिंतरिया ईसा, मज्झिमिया तुडिया, बाहिरिया दढरहा।
कालस्स णं भंते! पिसायकुमारिंदस्स Translated Sutra: हे भगवन् ! वानव्यन्तर देवों के भवन कहाँ हैं ? स्थानपद के समान कहना यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विचरते हैं। हे भगवन् ! पिशाचदेवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? स्थानपद समान जानना यावत् दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। वहाँ काल और महाकाल नाम के दो पिशाचकुमारराज रहते हैं यावत् विचरते हैं। हे भगवन् ! दक्षिण | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवयोनिक | Hindi | 160 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जोतिसियाणं देवाणं विमाना पन्नत्ता? कहि णं भंते! जोतिसिया देवा परिवसंति? गोयमा! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तनउए जोयणसते उड्ढं उप्पतित्ता दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले, एत्थ णं जोतिसियाणं देवाणं तिरिय-मसंखेज्जा जोतिसियविमानावाससतसहस्सा भवंतीतिमक्खायं। ते णं विमाना अद्धकविट्ठकसंठाण-संठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिमसूरिया य, एत्थ णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो परिवसंति महिड्ढिया जाव विहरंति।
चंदस्स णं भंते! जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तिन्नि परिसाओ पन्नत्ताओ तं जहा–तुंबा तुडिया पव्वा। Translated Sutra: हे भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमान कहाँ हैं ? ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! द्वीपसमुद्रों से ऊपर और इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जान पर एक सौ दस योजन प्रमाण ऊंचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। वे विमान आधे कपीठ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 161 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! दीवसमुद्दा? केवइया णं भंते! दीवसमुद्दा? केमहालया णं भंते! दीवसमुद्दा? किंसंठिया णं भंते! दीवसमुद्दा? किमाकारभावपडोयारा णं भंते! दीवसमुद्दा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवाइया दीवा लवणादीया समुद्दा संठाणओ एकविधिविधाना वित्थरतो अनेग-विधिविधाना दुगुणादुगुणे पडुप्पाएमाणापडुप्पाएमाणा पवित्थरमाणापवित्थरमाणा ओभासमाण-वीचीया बहुउप्पलपउमकुमुदनलिनसुभगसोगंधियपोंडरीयमहापोंडरीय सतपत्तसहस्सपत्तपप्फुल्ल-केसरोवचिता पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ता सयंभुरमण-पज्जवसाणा अस्सिं तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा Translated Sutra: हे भगवन् ! द्वीप समुद्र कहाँ अवस्थित हैं ? द्वीपसमुद्र कितने हैं ? वे द्वीपसमुद्र कितने बड़े हैं ? उनका आकार कैसा है ? उनका आकारभाव प्रत्यवतार कैसा है ? गौतम ! जम्बूद्वीप से आरम्भ होनेवाले द्वीप हैं और लवणसमुद्र से आरम्भ होने वाले समुद्र हैं। वे द्वीप और समुद्र (वृत्ताकार होने से) एकरूप हैं। विस्तार की अपेक्षा | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 163 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर ठीक मध्यभाग में एक विशाल पद्मवरवेदिका है। वह पद्मवरवेदिका आधा योजन ऊंची और पाँच सौ धनुष विस्तारवाली है। वह सर्वरत्नमय है। उसकी परिधि जगती के मध्यभाग की परिधि के बराबर है। यह पद्मवरवेदिका सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, यावत् अभिरूप, प्रतिरूप है। उसके नेम वज्ररत्न के बने हुए हैं, उसके मूलपाद रिष्टरत्न | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर एक बड़ा विशाल वनखण्ड है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोल विस्तार वाला है और उसकी परिधि जगती की परिधि के समान ही है। वह वनखण्ड काला है और काला ही दिखाई देता है। यावत् उस वनखण्ड के वृक्षों के मूल बहुत दूर तक जमीन के भीतर गहरे गये हुए हैं, वे प्रशस्त किशलय वाले, प्रशस्त पत्रवाले | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 166 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये वेजयंते जयंते अपराजिते। Translated Sutra: हे भगवन् ! जंबूद्वीप के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार द्वार हैं, यथा – विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 167 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे पुरच्छिमपेरंते लवणसमुद्द-पुरच्छिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं सीताए महानदीए उप्पिं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स विजये नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उढ्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, ...
...सेए वरकनगथूभियागे ईहामिय उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्ते खंभुग्गतवइरवेदियापरिगताभिरामे विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ते इव अच्चीसहस्समालिणीए रूवगसहस्सकलिए Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप का विजयद्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर तथा जंबूद्वीप के पूर्वान्त में तथा लवणसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम भाग में सीता महानदी के ऊपर जंबूद्वीप का विजयद्वार है। यह द्वार आठ योजन का ऊंचा, चार योजन का चौड़ा और इतना ही इसका | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 172 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–विजए णं दारे विजए णं दारे?
गोयमा! विजए णं दारे विजए नाम देवे महिड्ढीए महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महानुभावे पलिओवमट्ठितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं चउण्हं अग्ग-महिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अनियाणं सत्तण्हं अनियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए अन्नेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणाईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! विजयद्वार को विजयद्वार क्यों कहा जाता है ? गौतम ! विजयद्वार में विजय नाम का महर्द्धिक महाद्युतिवाला यावत् महाप्रभाववाला और एक पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है। वह ४००० सामानिक देवों, चार सपरिवार अग्रमहिषियों, तीन पर्षदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों और सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का, विजयद्वार | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 181 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पुरत्थिमेणं पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासनेसु निसीयंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अब्भिंतरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ पत्तेयंपत्तेयं पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु निसीयंति। एवं दक्खिणेणं मज्झिमियाए परिसाए दस देव-साहस्सीओ जाव निसीदंति। दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पत्तेयंपत्तेयं जाव निसीदंति।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स Translated Sutra: तब उस विजयदेव के चार हजार सामानिक देव पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तरपूर्व में पहले से रखे हुए चार हजार भद्रासनों पर बैठते हैं। चार अग्रमहिषियाँ पूर्वदिशा में पहले से रखे हुए भद्रासनों पर बैठती हैं। उस विजय – देव के दक्षिणपूर्व दिशा में आभ्यन्तर पर्षदा के आठ हजार देव हुए भद्रासनों पर बैठते हैं। उस विजयदेव की | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 182 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं अबाधाए जंबुद्दीवे दीवे दाहिणपेरंते लवणसमुद्ददाहिणद्धस्स उत्तरेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवस्स दीवस्स वेजयंते नामं दारे पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सच्चेव सव्वा वत्तव्वता जाव दारे।
कहि णं भंते! रायहाणी दाहिणे णं जाव वेजयंते देवे वेजयंते देवे।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवस्स दीवस्स जयंते नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं पणयालीसं जोयणसहस्साइं जंबुद्दीवे दीवे पच्चत्थिमपेरंते लवणसमुद्द-पच्चत्थिमद्धस्स Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का वैजयन्त का द्वार कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण में पैंतालीस हजार योजन जाने पर उस द्वीप की दक्षिण दिशा के अन्त में तथा दक्षिण दिशा के लवणसमुद्र से उत्तर में हैं। यह आठ योजन ऊंचा और चार योजन चौड़ा है – यावत् यह वैजयन्त द्वार नित्य है। भगवन् ! वैजयन्त देव की वैजयन्ती | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 183 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! अउणासीतिं जोयणसहस्साइं वावण्णं च जोयणाइं देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य दारस्स य अबाधाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना है ? गौतम ! ७९०५२ योजन और देशोन आधा योजन। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 184 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! लवणे णं ते समुद्दे, नो खलु ते जंबुद्दीवे दीवे।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
लवणे णं भंते! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप रूप हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप को स्पृष्ट हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं या जम्बूद्वीप | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 186 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पन्नत्ता? गोयमा! नीलवंतस्स वासधर-पव्वयस्स दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते चत्तारि य सत्तभागे जोयणस्स अबाधाए सीताए महानदीए पुरत्थिम पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पन्नत्ता–एगमेगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसताणि उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं मज्झे अद्धट्ठमाइं जोयणसताइं आयामविक्खंभेणं उवरिं पंचजोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसतं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता, मज्झे दो Translated Sutra: हे भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में यमक नामक दो पर्वत कहाँ पर हैं ? गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में ८३४ योजन और एक योजन के ४/७ भाग आगे जाने पर शीता महानदी के पूर्व – पश्चिम के दोनों किनारों पर उत्तरकुरु क्षेत्र में हैं। ये एक – एक हजार योजन ऊंचे हैं, २५० योजन जमीन में हैं, मूल में एक – एक हजार योजन लम्बे | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 187 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए नीलवंतद्दंहे नामं दहे पन्नत्ते? गोयमा! जमगपव्वयाणं दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते चत्तारि सत्तभागा जोयणस्स अबाहाए सीताए महानईए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए नीलवंतद्दहे नामं दहे पन्नत्ते–उत्तरदक्खिणायते पाईणपडीणविच्छिण्णे एगं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसत्ताइं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले जाव अनेगसउणगणमिथुणपविचरियसद्दुण्णइयमहुरसरणाइयए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, उभओ पासिं दोहि य पउमवरवेइयाहिं वनसंडेहिं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
नीलवंतद्दहस्स Translated Sutra: भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में नीलवंत द्रह कहाँ है ? गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिण में ८३४ – ४/७ योजन आगे जाने पर सीता महानदी के ठीक मध्य में है। एक हजार योजन इसकी लम्बाई है और पाँच सौ योजन की चौड़ाई है। यह दस योजन गहरा है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है, रजतमय इसके किनारे हैं, यह चतुष्कोण और समतीर हैं यावत् प्रतिरूप | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 188 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! नीलवंतस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो नीलवंता नाम रायहाणी पन्नत्ता? गोयमा! नीलवंतद्दहस्सुत्तरेणं अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं जहा विजयस्स। Translated Sutra: हे भगवंत ! नीलवंतद्रहकुमार की नीलवंत राजधानी कहाँ है ? हे गौतम ! नीलवंत पर्वत की उत्तर में तीर्च्छा असंख्यात द्वीपसमुद्र पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन आगे हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
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जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 189 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नीलवंतद्दहस्स णं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दसदस जोयणाइं अबाधाए, एत्थ णं दसदस कंचनगपव्वत्ता पन्नत्ता। ते णं कंचनगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसं पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तरिं जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले तिन्नि सोलसुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, उवरिं एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणामया अच्छा जाव पडिरूवा Translated Sutra: नीलवंत द्रह के पूर्व – पश्चिम में दस योजन आगे जाने पर दस दस काञ्चनपर्वत हैं। ये कांचन पर्वत एक सौ – एक सौ योजन ऊंचे, पच्चीस – पच्चीस योजन भूमि में, मूल में एक – एक सौ योजन चौड़े, मध्य में ७५ योजन चौड़े और ऊपर पचास – पचास योजन चौड़े हैं। इनकी परिधि मूल में ३१६ योजन से कुछ अधिक, मध्य में २२७ योजन से कुछ अधिक और ऊपर १५८ योजन | |||||||||
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जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 190 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जंबूसुदंसणाए जंबूपेढे नामं पेढे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं नीलवंतस्स वासधरपव्वतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खार-पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमादनस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं सीताए महानदीए पुरत्थिमिल्ले कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे नाम पेढे पन्नत्ते–पंचजोयणसताइं आयामविक्खंभेणं, पन्नरस एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, बहुमज्झदेसभाए बारस जोयणाइं बाहल्लेणं, तदानंतरं च णं माताएमाताए पदेसपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे सव्वेसु चरमंतेसु दो कोसे बाहल्लेणं, Translated Sutra: हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र में सुदर्शना अपर नाम जम्बू का जम्बूपीठ नाम का पीठ कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तरपूर्व में, नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, शीता महानदी के पूर्वीय किनारे पर हैं जो ५०० योजन लम्बा | |||||||||
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जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 194 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंबू सुदंसणा? गोयमा! जंबूए णं सुदंसणाए जंबूदीवाहिवती अणाढिते नामं देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं जंबूदीवस्स जंबूए सुदंसणाए अणाढियाते य रायधाणीए जाव विहरति सेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–जंबू सुदंसणा।
कहि णं भंते! अनाढियस्स देवस्स अणाढिया नामं रायहाणी पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे। एवं जहा विजयस्स देवस्स जाव समत्ता वत्तव्वया रायधाणीए, एमहिड्ढीए।
अदुत्तरं च णं गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरकुराए कुराए तत्थतत्थ Translated Sutra: हे भगवन् ! जंबू – सुदर्शना को जंबू – सुदर्शना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जम्बू – सुदर्शना में जंबूद्वीप का अधिपति अनादृत नाम का महर्द्धिक देव रहता है। यावत् उसकी एक पल्योपम की स्थिति है। वह चार हजार सामानिक देवों यावत् जंबूद्वीप की जंबूसुदर्शना का और अनादृता राजधानी का यावत् आधिपत्य करता हुआ विचरता है। | |||||||||
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जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 195 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कति चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा? कति सूरिया तविंसु वा तविस्संति वा? कति नक्खत्ता जोयं जोइंसु वा जोयंति वा जोइस्संति वा? कति महग्गहा चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा? कति तारागणकोडाकोडीओ सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे दो चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा, दो सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा, छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, छावत्तरं गहसतं चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा– Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्र चमकते थे, चमकते हैं और चमकेंगे ? कितने सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे ? कितने नक्षत्र योग करते थे, करते हैं, करेंगे ? कितने महाग्रह आकाश में चलते थे, चलते हैं और चलेंगे? कितने कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ? गौतम ! दो चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 198 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवं दीवं लवणे नामं समुद्दे वट्टे बलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठंति।
लवणे णं भंते! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवाल-संठिते नो विसमचक्कवाल संठिते।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसयसहस्साइं एगासीइसहस्साइं सयमेगोणचत्तालीसे किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं। से णं एक्काए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते चिट्ठइ, दोण्हवि वण्णओ। सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं Translated Sutra: गोल और वलय की तरह गोलकार में संस्थित लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को चारों ओर से घेरे हुए अवस्थित हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र समचक्रवाल संस्थित हैं या विषमचक्रवाल ? गौतम ! लवणसमुद्र समचक्र – वाल – संस्थान से संस्थित हैं। गौतम ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ दो लाख योजन का है और उसकी परिधि १५८११३९ योजन से | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 200 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे? धायइसंडे दीवे? गोयमा! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स पदेसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं धायइसंडे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थे गतिया नो पच्चायंति।
धायइसंडे णं भंते! जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
से Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश धातकीखण्डद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! धातकीखण्ड के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं, आदि। लवणसमुद्र से मरकर जीव धातकीखण्ड में पैदा होते हैं क्या ? आदि पूर्ववत्। धातकीखण्ड से मरकर लवणसमुद्र में पैदा होने के विषय में भी पूर्ववत् कहना। हे भगवन् ! लवणसमुद्र, लवण – समुद्र | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 201 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे कति चंडा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा? एवं पंचण्हवि पुच्छा। गोयमा! लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चत्तारि सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा, बारसुत्तरं नक्खत्तसयं जोगं जोइंसु वा जोयंति वा जोएस्संति वा, तिन्नि बावणा महग्गहसया चारं चरिंसु वा चरंति वा चरिस्संति वा, दुण्णि सयसहस्सा सत्तट्ठिं च सहस्सा नव य सया तारागणकोडकोडीणं सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा। Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! चार चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। चार सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे, ११२ नक्षत्र चन्द्र से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे। ३५२ महाग्रह चार चरते थे, चार चरते हैं और चार चरेंगे। | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 202 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कम्हा णं भंते! लवणे समुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगंअतिरेगं वड्ढति वा हायति वा? गोयमा! जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चउद्दिसिं बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ लवणसमुद्दं पंचाणउतिं-पंचाणउतिं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि महइमहालया महालिंजरसंठाणसंठिया महापायाला पन्नत्ता, तं जहा– वलयामुहे केयुए जूयए ईसरे। ते णं महापाताला एगमेगं जोयण-सयसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, मज्झे एगपदेसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसतसहस्सं विक्खंभेणं, उवरिं मुहमूले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं।
तेसि णं महापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणसतबाहल्ला Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र का पानी चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों में अतिशय बढ़ता है और फिर कम हो जाता है, इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप की चारों दिशाओं में बाहरी वेदिकान्त से लवणसमुद्र में ९५००० योजन आगे जाने पर महाकुम्भ के आकार विशाल चार महापातालकलश है, वलयामुख, केयूप, यूप और ईश्वर ये पातालकलश | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 203 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे तीसाए कतिखुत्तो अतिरेगंअतिरेगं वड्ढति वा हायति वा? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अतिरेगंअतिरेगं वड्ढति वा हायति वा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेगंअइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा? गोयमा! उद्धमंतेसु पायालेसु वड्ढइ आपूरेंतेसु पायालेसु हायइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–लवणे णं समुद्दे तीसाए मुहुत्ताणं दुक्खुत्तो अइरेगंअइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा। Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र (का जल) तीस मुहूर्त्तों में कितनी बार विशेषरूप से बढ़ता है या घटता है ? हे गौतम ! दो बार विशेष रूप से उछलता और घटता है। हे गौतम ! नीचले और मध्य के त्रिभागों में जब वायु के संक्षोभ से पातालकलशों में से पानी ऊंचा उछलता है तब समुद्र में पानी बढ़ता है और वायु के स्थिर होता है, तब पानी घटता है। इसलिए | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 204 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ से कितनी चौड़ी है और वह कितनी बढ़ती और घटती है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ की अपेक्षा दस हजार योजन चौड़ी है और कुछ कम आधे योजन तक वह बढ़ती है और घटती है। हे भगवन् ! लवणसमुद्र की आभ्यन्तर और बाह्य वेला को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं ? कितने हजार | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 205 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे सिवए संखे मणोसिलए।
एतेसि णं भंते! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे दओभासे संखे दगसीमे।
कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारिं तीसे जोयणसते Translated Sutra: हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक। हे भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, उदकभास, शंख और दकसीम। हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बू – द्वीप के मेरुपर्वत के पूर्वमें लवणसमुद्र | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 207 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! अणुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि अनुवेलंधरनागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए कद्दमए केलासे अरुणप्पभे।
एतेसि णं भंते! चउण्हं अणुवेलंधरणागराईणं कति आवासपव्वया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वया पन्नत्ता, तं जहा–कक्कोडए विज्जुप्पभे केलासे अरुणप्पभे।
कहि णं भंते! कक्कोडगस्स अनुवेलंधरणागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कक्कोडगयस्स नागरायस्स कक्कोडए नाम आवासपव्वते पन्नत्ते–सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसताइं तं चेव Translated Sutra: हे भगवन् ! अनुवेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ। हे भगवन् ! इन चार अनुवेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत हैं ? गौतम ! चार – कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरुणप्रभ। हे भगवन् ! कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक नाम का आवासपर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर | |||||||||
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लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 208 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सुट्ठियस्स लवणाहिवइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुद्दे बारसजोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं सुट्ठियस्स लवणाहि-वइस्स गोयमदीवे नाम दीवे पन्नत्ते–बारसजोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयण-सहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, जंबूदीवंतेणं अद्धेकूननउति जोयणाइं चत्तालीसं च पंचानउतिभागे जोयणस्स ऊसिए जलंताओ लवणसमुद्दं तेणं दो कोसे ऊसिते जलंताओ। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते वण्णओ दोण्हवि।
गोयमदीवस्स णं दीवस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे हैं, यावत् वहाँ सुस्थित नाम का महार्द्धिक देव है। | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 209 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सेसं तं चेव जहा गोत्तमदीवस्स परिक्खेवो। जंबुद्दीवंतेणं अद्धेकोणनउइं जोयणाइं चत्तालीसं पंचानउतिं भागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमुद्दंतेणं दो कोसे ऊसिता जलंताओ। पउमवरवेइया, पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। भूमिभागा तस्स बहुमज्झदेसभागे पासादवडेंसगा विजयमूलपासादसरिसया जाव सीहासना सपरिवारा।
से Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहाँ पर हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं। ये द्वीप जम्बूद्वीप की दिशा में ८८१ योजन और ४०/९५ योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवणसमुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे हुए हैं। ये १२००० योजन लम्बे | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 210 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं अब्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता, जहा जंबुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, नवरि– रायहाणीओ अन्नंमि लवणे, सेसं तं चेव।
एवं अब्भिंतरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुद्दं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ।
कहि णं भंते! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा नाम दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! लवणस्स समुद्दस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुद्दं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रहकर जम्बूद्वीप की दिशा में शिखा से पहले विचरने वाले चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों समान इनको जानना। विशेषता यह है कि इनकी राजधानीयाँ अन्य लवणसमुद्र में हैं। | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 211 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता?
गोयमा! धायइसंडस्स दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयं णं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता, सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, बारस जोयणसहस्साइं तहेव विक्खंभ परिक्खेवो, भूमिभागो पासायवडिंसया मणिपेढिया सीहासना सपरिवारा अट्ठो तहेव, रायहाणीओ सकाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अन्नंमि धायइसंडे दीवे, सेसं तं चेव
एवं सूरदीवावि, नवरं–धायइसंडस्स दीवस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंताओ कालोयं णं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ Translated Sutra: हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? गौतम ! धातकीखण्डद्वीप की पूर्वी वेदि – कान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर धातकीखण्ड के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं। (धातकी – खण्ड में १२ चन्द्र हैं।) वे सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। ये बारह हजार योजन के लम्बे – चौड़े हैं। | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 212 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! कालोयगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! कालोयसमुद्दस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयण्णं समुद्दं पच्चत्थिमेण बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कालोयगचंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता सव्वतो समंता दो कोसा ऊसिता जलंताओ, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अन्नंमि कालोयसमुद्दे बारस जोयणसहस्साइं तं चेव सव्वं जाव चंदा देवा, चंदा देवा।
एवं सूराणवि, नवरं–कालोयस्स पच्चत्थिमिल्लातो वेदियंतातो कालोयसमुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अन्नंमि कालोयसमुद्दे तहेव Translated Sutra: हे भगवन् ! कालोदधिसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ हैं ? हे गौतम ! कालोदधिसमुद्र के पूर्वीय वेदिकांत से कालोदधिसमुद्र के पश्चिम में १२००० योजन आगे जाने पर हैं। ये सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। शेष सब पूर्ववत्। इसी प्रकार कालोदधिसमुद्र के सूर्यद्वीपों के संबंध में भी जानना। विशेषता यह है कि कालोदधिसमुद्र | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 217 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! देवद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! देवदीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ बेइयंताओ देवोदं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंददीवा नामं दीवा पन्नत्ता, सच्चेव वत्तव्वया जाव अट्ठो। रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवदीवं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं चंदाणं चंदाओ नामं रायहाणीओ पन्नत्ताओ।
कहि णं भंते! देवद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवा नामं दीवा पन्नत्ता? गोयमा! देवदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुद्दं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं देवदीवगाणं सूराणं सूरदीवा नामं Translated Sutra: हे भगवन् ! देवद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहाँ है ? गौतम ! देवद्वीप की पूर्वदिशा के वेदिकान्त से देवोद – समुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं, इत्यादि पूर्ववत्। अपने ही चन्द्रद्वीपों की पश्चिमदिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर वहाँ देवद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानीयाँ | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 218 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे वेलंधराति वा णागराया अग्घाति वा खन्नाति वा सिंहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा? हंता अत्थि।
जहा णं भंते! लवणसमुद्दे अत्थि वेलंधराति वा नागराया अग्घाति वा खन्नाति वा सिंहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा तहा णं बाहिरएसुवि समुद्देसु अत्थि वेलंधराइ वा नागराया अग्घाति वा खन्नाति वा सीहाति वा विजातीति वा हासवुड्ढीति वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र में वेलंधर नागराज हैं क्या ? अग्घा, खन्ना, सीहा, विजाति मच्छकच्छप हैं क्या ? जल की वृद्धि और ह्रास है क्या ? गौतम ! हाँ, है। हे भगवन् ! जैसे लवणसमुद्र में वेलंधर नागराज आदि हैं वैसे अढ़ाई द्वीप से बाहर के समुद्रों में भी ये सब हैं क्या ? हे गौतम ! नहीं हैं। | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 219 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किं ऊसितोदगे? पत्थडोदगे? खुभियजले? अखुभियजले? गोयमा! लवणे णं समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे; खुभियजले, नो अक्खुभियजले।
जहा णं भंते! लवणे समुद्दे ऊसितोदगे, नो पत्थडोदगे; खुभियजले, नो अक्खुभियजले तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं ऊसितोदगा? पत्थडोदगा? खुभियजला? अक्खुभियजला? गोयमा! बाहिरगा समुद्दा नो ऊसितोदगा, पत्थडोदगा; नो खुभियजला अक्खुभियजला; पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठंति।
अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति? संमुच्छंति? वासं वासंति? हंता अत्थि।
जहा णं भंते! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र का जल उछलनेवाला है या स्थिर? उसका जल क्षुभित होनेवाला है या अक्षुभित ? गौतम! लवणसमुद्र का जल उछलनेवाला और क्षुभित होनेवाला है, भगवन् ! क्या बाहर के समुद्र भी क्या उछलते जल वाले हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! बाहर के समुद्र स्थिर और अक्षुभित जलवाले हैं। वे पूर्ण हैं, पूरे – पूरे भरे हुए हैं। हे | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 220 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं उव्वेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते? गोयमा! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओ पासिं पंचानउतिपदेसे गंता पदेसं उव्वेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते, पंचानउतिबालग्गाइं गंता बालग्गं उव्वेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते, पंचानउतिलिक्खाओ गंता लिक्खं उव्वेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते, जूयाजव जवमज्झे अंगुल विहत्थि रयणी कुच्छी धणु गाउय जोयण जोयणसत जोयणसहस्साइं गंता जोयणसहस्सं उव्वेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं उस्सेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते? गोयमा! लवणस्स णं समुद्दस्स उभओपासिं पंचाणउतिपदेसे गंता सोलसपएसे उस्सेहपरिवुड्ढीए पन्नत्ते। पंचानउतिवालग्गाइं Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र की गहराई की वृद्धि किस क्रम से है ? गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों तरफ पंचानवे – पंचानवे प्रदेश जाने पर एक प्रदेश की उद्वेध – वृद्धि होती है, ९५ – ९५ बालाग्र जाने पर एक बालाग्र उद्वेध – वृद्धि होती है, ९५ – ९५ लिक्खा जाने पर एक लिक्खा की उद्वेध – वृद्धि होती है, इसी तरह अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 222 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! गोतित्थसंठिते नावासंठिते सिप्पिसंपुडसंठिते अस्सखंधसंठिते वलभिसंठिते वट्टे वलयागारसंठिते पन्नत्ते।
लवणे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं उस्से हेणं? केवतियं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! लवणे णं समुद्दे दो जोयणसय-सहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्सं उव्वेधेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्से-हेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र का संस्थान कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभीगृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला है। हे भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल – विष्कम्भ कितना है, उसकी परिधि कितनी है ? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊंचाई कितनी है ? उसका | |||||||||
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चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 223 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्साइं एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते, कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति? नो उप्पीलेति? नो चेव णं एक्कोदगं करेति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मनुया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विनीता, Translated Sutra: भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल – विष्कम्भ से दो लाख योजन का है, इत्यादि पूर्ववत्, तो वह जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, प्रबलता के साथ उत्पीड़ित और जलमग्न क्यों नहीं कर देता ? गौतम ! जम्बूद्वीप में भरत – ऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 224 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणसमुद्दं धायइसंडे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
धायइसंडे णं भंते! दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
धायइसंडे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, इगयालीसं जोयणसतसहस्साइं दसजोयण-सहस्साइं नव य एगट्ठे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? Translated Sutra: धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है, लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! वह समचक्रवाल संस्थान – संस्थित है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का चक्रवाल – विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवाल – विष्कम्भ वाला | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 225 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] चउवीसं ससिरविणो, नक्खत्तसता य तिन्नि छत्तीसा ।
एगं च गहसहस्सं, छप्पन्नं धायईसंडे ॥ Translated Sutra: गौतम ! धातकीखण्डद्वीप में बारह चन्द्र उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। बारह सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। १३६ नक्षत्र योग करते थे, करते हैं, करेंगे। १०५६ महाग्रह चलते थे, चलते हैं और चलेंगे। ८०३७०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। सूत्र – २२५–२२७ | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 228 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडं णं दीवं कालोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ।
कालोदे णं भंते! समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
कालोदे णं भंते! समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठ जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एकाणउतिं जोयणसयसहस्साइं सत्तरिं च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए, एगेणं वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते दोण्हवि वण्णओ।
कालोयस्स णं भंते! समुद्दस्स Translated Sutra: गोल और वलयाकार आकृति का कालोदसमुद्र धातकीखण्डद्वीप को सब ओर से घेर कर रहा हुआ है। भगवन् ! कालोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! कालोदसमुद्र समचक्रवाल संस्थित है। गौतम ! कालोदसमुद्र का आठ लाख योजन चक्रवालविष्कम्भ है और ९११७६०५ योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 230 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। कालोदस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा पुक्खरवरदीवं पुट्ठा? तहेव। एवं पुक्खरवरदीवस्सवि।
कालोदे णं भंते! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता तहेव भाणियव्वं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–कालोए समुद्दे? कालोए समुद्दे? गोयमा! कालोयस्स णं समुद्दस्स उदके आसले मासले पेसले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसे पन्नत्ते। काल-महाकाला य दो देवा महिड्ढीया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! जाव निच्चे।
कालोए णं भंते! समुद्दे कति चंदा पभासिंसु वा पुच्छा। गोयमा! कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति Translated Sutra: भगवन् ! कालोदसमुद्र के प्रदेश पुष्करवरद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? इत्यादि पूर्ववत्, यावत् पुष्करवरद्वीप के जीव मरकर कालोदसमुद्र में कोई उत्पन्न होते हैं और कोई नहीं। भगवन् ! कालोदसमुद्र, कालोदसमुद्र क्यों कहलाता है ? गौतम ! कालोदसमुद्र का पानी आस्वाद्य है, मांसल, पेशल, काला और उड़द की राशि के वर्ण का है और | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 235 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्क-वालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! सोलस जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बानउति च सय-सहस्साइं अउनानउतिं च सहस्सा अट्ठ य चउनउया परिक्खेवेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 237 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेण य वनसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
पुक्खरवरस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजए वेजयंते जयंते अपराजिते।
कहि णं भंते! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते? गोयमा! पुक्खरवरदीव-पुरत्थिमपेरंते पुक्खरोदसमुद्दपुरत्थिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खरवरदीवस्स विजए नामं दारे पन्नत्ते, तं चेव सव्वं। एवं चत्तारिवि दारा।
पुक्खरवरस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य एस णं केवतियं अबाधाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! अडतालीसं जोयणसयसहस्साइं बावीसं च सहस्साइं चत्तारि य अकुणत्तरे Translated Sutra: वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से परिवेष्ठित है। पुष्करवरद्वीप के चार द्वार हैं – विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित। गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पूर्वी पर्यन्त में और पुष्करोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्कर – वरद्वीप का विजयद्वार है, आदि वर्णन जम्बूद्वीप के विजयद्वार के समान है। इसी प्रकार चारों द्वारों | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 239 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ---पदेसा दोण्हवि पुट्ठा, जीवा दोसुवि भाणियव्वा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–पुक्खरवरदीवेपुक्खरवरदीवे? गोयमा! पुक्खरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं पदेसे बहवे पउमरुक्खा पउमवणा पउमसंडा निच्चं कुसुमिया जाव वडेंसग-धरा पउममहापउमरुक्खेसु एत्थ णं पउमपुंडरीया नामं दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–पुक्खरवरदीवे जाव निच्चे।
पुक्खरवरे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा एवं पुच्छा। Translated Sutra: पुष्करवरद्वीप के प्रदेश पुष्करवरसमुद्र से स्पृष्ट हैं यावत् पुष्करवरद्वीप और पुष्करवरसमुद्र के जीव मरकर कोई कोई उनमें उत्पन्न होते हैं और कोई कोई नहीं होते। भगवन् ! पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरद्वीप क्यों कहलाता है? गौतम ! पुष्करवरद्वीप में स्थान – स्थान पर यहाँ – वहाँ बहुत से पद्मवृक्ष, पद्मवन और पद्मवनखण्ड | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 240 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] चोयालं चंदसयं चउयालं चेव सूरियाण सयं ।
पुक्खरवरदीवंमि चरंति ते पभासेंता ॥ Translated Sutra: गौतम ! १४४ चन्द्र और १४४ सूर्य पुष्करवरद्वीप में प्रभासित हुए विचरते हैं। ४०३२ नक्षत्र और १२६७२ महाग्रह हैं। ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण पुष्करवरद्वीप में (शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।) सूत्र – २४०–२४२ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 245 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–अब्भिंतरपुक्खरद्धे? अब्भिंतरपुक्खरद्धे? गोयमा! अब्भिंतरपुक्ख-रद्धेणं मानुसुत्तरेणं पव्वतेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–अब्भिंतरपुक्खरद्धे।
अदुत्तरं च णं जाव निच्चे।
अब्भिंतरपुक्खरद्धे णं भंते! केवतिया चंदा पभासिंसु वा पुच्छा सा चेव पुच्छा, जाव तारागणकोडकोडीओ गोयमा Translated Sutra: भगवन् ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध, आभ्यन्तर पुष्करार्ध क्यों कहलाता है ? गौतम ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध सब ओर से मानुषोत्तरपर्वत से घिरा हुआ है। इसलिए यावत् वह नित्य है। गौतम ! ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य प्रभासित होते हुए पुष्करवरद्वीपार्ध में विचरण करते हैं। ६३३६ महाग्रह गति करते हैं और २०१६ नक्षत्र चन्द्रादि से योग |