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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 5 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अनगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अनगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसह-नाराय-संघयणे कनग-पलग-निघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जजंबूनामे अनगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले संजायसड्ढे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चम्पा नगरी में परिषद्‌ नीकली। कूणिक राजा भी नीकला। धर्म का उपदेश दिया। उपदेश सूनकर परिषद्‌ जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के ज्येष्ठ शिष्य आर्य जम्बू नामक अनगार थे, जो काश्यप गोत्रीय और सात हाथ ऊंचे शरीर वाले, यावत्‌ आर्य सुधर्मा से न बहुत दूर, न बहुत
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 9 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए त्ति य। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नामं नयरे होत्था –वण्णओ। गुणसिलए चेतिए–वण्णओ। तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ सिद्धिस्थान को प्राप्त महावीर ने ज्ञात – श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन कहे हैं, तो भगवन्‌ ! प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, दक्षिणार्ध भरत में राजगृह नामक नगर था। राजगृह के ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस राजगृह
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 12 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी अन्नदा कदाइ तंसि तारिसगंसि–छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठ-संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकनगरयणथूभियविडंकजालद्ध चंदनिज्जूहंतरकणयालिचंदसालियावि-भत्तिकलिए सरसच्छधाऊबलवण्णरइए बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे अब्भिंतरओ पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नानाविह-पंचवण्ण-मणिरयण-कोट्ठिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ-उल्लोय-चित्तिय-तले वंदन-वरकनगकलससुणिम्मिय-पडिपूजिय-सरसपउम-सोहंतदारभाए पयरग-लंबंत-मणिमुत्त-दाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुम-मउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर-लवंग- मलय-चंदन- कालागरु-पवर- कुंदुरुक्क-तुरुक्क- धूव-डज्झंत- सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामे

Translated Sutra: वह धारिणी देवी किसी समय अपने उत्तम भवन में शय्या पर सो रही थी। वह भवन कैसा था ? उसके बाह्य आलन्दक या द्वार पर तथा मनोज्ञ, चिकने, सुंदर आकार वाले और ऊंचे खंभों पर अतीव उत्तम पुतलियाँ बनी हुई थीं। उज्ज्वल मणियों, कनक और कर्केतन आदि रत्नों के शिखर, कपोच – पारी, गवाक्ष, अर्ध – चंद्राकार सोपान, निर्यूहक करकाली तथा चन्द्रमालिका
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 15 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुं-जोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरि-सवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया कल्लं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रेणिक राजा ने प्रभात काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! आज बाहर की उपस्थानशाला को शीघ्र ही विशेष रूप से परम रमणीय, गंधोदक से सिंचित, साफ – सूथरी, लीपी हुई, पाँच वर्णों के सरस सुगंधित एवं बिखरे हुए फूलों के समूह रूप उपचार से युक्त, कालागुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 18 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भवित्था– धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भेय-चंपग-सण-कोरंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खा-रस-सरस- रत्त-किंसुय-

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल – मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ – जो माताएं अपने अकाल – मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं। उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 20 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडिचारियाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं जाव अट्टज्झाणोवगयं ज्झि-यायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि? तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ जाव तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्ग-सरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि? तए

Translated Sutra: तब श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं से यह सूनकर, मन में धारण करके, उसी प्रकार व्याकुल होता हुआ, त्वरा के साथ एवं अत्यन्त शीघ्रता से जहाँ धारिणी देवी थी, वहाँ आता है। आकर धारिणी देवी को जीर्ण – जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत्‌ आर्त्तध्यान से युक्त – देखता है। इस प्रकार कहता है – ‘देवानुप्रिय ! तुम जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 21 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्मानिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणेने, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासने निसण्णे। तए णं तस्स अभयस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु सक्का मानुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमनोरहसंपत्तिं करित्तए, नन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिड्ढीए महज्जुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महानुभावे महासोक्खे। तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स

Translated Sutra: तब (श्रेणिक राजा द्वारा) सत्कारित एवं सन्मानित होकर बिदा किया हुआ अभयकुमार श्रेणिक राजा के पास से नीकलता है। नीकल कर जहाँ अपना भवन है, वहाँ आता है। आकर वह सिंहासन पर बैठ गया। तत्पश्चात्‌ अभयकुमार को इस प्रकार यह आध्यात्मिक विचार, चिन्तन, प्रार्थित या मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – दिव्य अर्थात्‌ दैवी संबंधी उपाय
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 22 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसद्धवण्णाइं सखिंखिणियाइं पवर वत्थाइं परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी–अहं णं देवानुप्पिया! पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी महिड्ढीए जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवानुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए। संदिसाहि णं देवानुप्पिया! किं करेमि? किं दल-यामि? किं पयच्छामि? किं वा ते हियइच्छियं? तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठतुट्ठे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल परि-ग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम चुल्ल-माउयाए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ दस के आधे अर्थात्‌ पाँच वर्ण वाले तथा घूँघरू वाले उत्तम वस्त्रों को धारण किये हुए वह देव आकाश में स्थित होकर बोला – ‘हे देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारा पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी महान्‌ ऋद्धि का धारक देव हूँ।’ क्योंकि तुम पौषधशाला में अष्टमभक्त तप ग्रहण करके मुझे मन में रखकर स्थित हो अर्थात्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 24 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी तंसि अकालदोहलंसि विणीयंसि सम्मानियदोहला तस्स गब्भस्स अणुकंपणट्ठाए जयं चिट्ठइ जयं आसयइ जयं सुवइ, आहारं पि य णं आहारेमाणी–नाइतित्तं नाइकडुयं नाइकसायं नाइअंबिलं नाइमहुरं, जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थयं देसे य काले य आहारं आहारेमाणी, नाइचित्तं नाइसोयं नाइमोहं नाइभयं नाइपरित्तासं ववगयचिंता-सोय-मोह-भय-परित्तासा उदुभज्जमाण-सुहेहिं भोयण-च्छायण-गंध-मल्लालंकारेहिं तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ धारिणी देवी ने अपने उस अकाल दोहद के पूर्ण होने पर दोहद को सम्मानित किया। वह उस गर्भ की अनुकम्पा के लिए, गर्भ को बाधा न पहुँचे इस प्रकार यतना – सावधानी से खड़ी होती, यतना से बैठती और यतना से शयन करती। आहार करती तो ऐसा आहार करती जो अधिक तीखा न हो, अधिक कटुक न हो, अधिक कसैला न हो, अधिक खट्टा न हो और अधिक मीठा
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 25 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ धारिणी देवी ने नौ मास परिपूर्ण होने पर और साढ़े सात रात्रि – दिवस बीत जाने पर, अर्धरात्रि के समय, अत्यन्त कोमल हाथ – पैर वाले यावत्‌ परिपूर्ण इन्द्रियों से युक्त शरीर वाले, लक्षणों और व्यंजनों से सम्पन्न, मान – उन्मान – प्रमाण से युक्त एवं सर्वांगसुन्दर शिशु का प्रसव किया। तत्पश्चात्‌ दासियों ने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 27 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस-विहिप्पगार-देसीभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेंति–अब्भुग्गयमूसिय पहसिए विव मणि-कनग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धुय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाण-सिहरे जालंतर-रयण पंजरुम्मिलिए व्व मणिकनगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पुंडरीए तिलय-रयणद्धचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए

Translated Sutra: तब मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया। उसके नौ अंग – जागृत से हो गए। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया। वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध रथयुद्ध और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया। अपनी बाहुओं से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया। भोग भोगने का सामर्थ्य उसमें
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 29 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहर-माणे जेणामेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से चलते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव जाते हुए, सुखे – सुखे विहार करते हुए, जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील नामक चैत्य था, यावत्‌ ठहरे।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 32 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासिए हियय-णंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं संहित्तए। तं भुंजाहि ताव जाया! विपुले मानुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो। तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिणयवए वड्ढिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्ससि। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी–तहेव णं तं अम्मो! जहेव णं

Translated Sutra: हे पुत्र ! तू हमारा इकलौता बेटा है। तू हमें इष्ट है, कान्त है, प्रिय है, मनोज्ञ है, मणाम है तथा धैर्य और विश्राम का स्थान है। कार्य करने में सम्मत है, बहुत कार्य करने में बहुत माना हुआ है और कार्य करने के पश्चात्‌ भी अनुमत है। आभूषणों की पेटी के समान है। मनुष्यजाति में उत्तम होने के कारण रत्न है। रत्न रूप है। जीवने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 35 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–आलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्त पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य। से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि ज्झियायमाणंसि जे तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए तं गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ–एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य लोए हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव मम वि एगे आयाभंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे। एस मे नित्थारिए

Translated Sutra: मेघकुमार ने स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया। जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आया। भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की। फिर वन्दन – नमस्कार किया और कहा – भगवन्‌ ! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त है, यह संसार प्रदीप्त है। हे भगवन्‌ ! यह संसार आदीप्त – प्रदीप्त है। जैसे कोई गाथापति अपने घर में आग लग जाने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 36 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जद्दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि समणाणं निग्गंथाणं अहाराइणियाए सेज्जा संथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स दारमूले सेज्जा-संथारए जाए यावि होत्था। तए णं समणा निग्गंथा पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चा-रस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहिं संघट्टेंति अप्पेगइया पाएहिं संघट्टेंति अप्पे गइया सीसे संघट्टेंति अप्पेटइया पीट्ठे संघट्टेंति अप्पेगइया कायंसि संघट्टेंति अप्पेगइया ओलंडेंति अप्पेगइया पोलंडेंति

Translated Sutra: जिस दिन मेघकुमार ने मुंडित होकर गृहवास त्याग कर चारित्र अंगिकार किया, उसी दिन के सन्ध्याकाल में रात्निक क्रम में अर्थात्‌ दीक्षापर्याय के अनुक्रम से, श्रमण निर्ग्रन्थों के शय्या – संस्तारकों का विभाजन करते समय मेघकुमार का शय्या – संस्तारक द्वार के समीप हुआ। तत्पश्चात्‌ श्रमण निर्ग्रन्थ अर्थात्‌ अन्य
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 37 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मेहा! इ समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नूनं तुमं मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहिं पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहिं कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पाय-रय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तए णं तुज्ज मेहा! इमेयारूवे अज्झत्थिए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ ‘हे मेघ’ इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मेघकुमार से कहा – ‘हे मेघ! तुम रात्रि के पहले और पीछले काल के अवसर पर, श्रमण निर्ग्रन्थों के वाचना पृच्छना आदि के लिए आवागमन करने के कारण, लम्बी रात्रि पर्यन्त थोड़ी देर के लिए भी आँख नहीं मींच सके। मेघ ! तब तुम्हारे मन में इस प्रकार का विचार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 38 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तुमं मेहा! आनुपुव्वेणं गब्भवासाओ निक्खंते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमनुप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तं जइ ताव तुमे मेहा! तिरिक्ख-जोणियभावमुवगएणं अपडिलद्ध-सम्मत्तरयण-लंभेणं से पाए पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए अंतरा चेव संघारिए, नो चेव णं निक्खित्ते। किमंग पुण तुमं मेहा! इयाणिं विपुलकुलसमुब्भवे णं निरुवहयसरीर-दंतलद्धपंचिंदिए णं एवं उट्ठाण-बल-वीरिय-पुरिसगार-परक्कमसंजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसयंसि वायणाए पुच्छणाए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ हे मेघ ! तुम अनुक्रम से गर्भवास से बाहर आए – तुम्हारा जन्म हुआ। बाल्यावस्था से मुक्त हुए और युवावस्था को प्राप्त हुए। तब मेरे निकट मुण्डित होकर गृहवास से अनगार हुए। तो हे मेघ ! जब तुम तिर्यंच योनिरूप पर्याय को प्राप्त थे और जब तुम्हें सम्यक्त्व – रत्न का लाभ भी नहीं हुआ था, उस समय भी तुमने प्राणियों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 39 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे अनगारे अन्नया कयाइ समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से मेहे अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोभेइ तीरेइ किट्टेइ, सम्मं काएणं फासेत्ता पालेत्ता सोभेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन मेघ अनगार ने किसी अन्य समय श्रमण भगवान महावीर की वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना – नमस्कार करके कहा – ‘भगवन्‌ ! मैं आपकी अनुमति पाकर एक मास की मर्यादा वाली भिक्षुप्रतिमा को अंगीकार करके विचरने की ईच्छा करता हूँ। भगवान्‌ ने कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसा सुख उपजे वैसा करो। प्रतिबन्ध न करो,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 40 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे अनगारे तेणं ओरालेणं विपुलेणं सस्सिरीएणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं उदग्गेणं उदारेणं उत्तमेणं महानुभावेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे किडि-किडियाभूए अट्ठिचम्मावणद्धे किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था–जीवंजीवेणं गच्छइ, जीवंजीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामि त्ति गिलाइ। से जहानामए इंगालसगडिया इ वा कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा तिलंडासगडिया इ वा एरंडसगडिया इ वा उण्हे दिन्ना सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव मेहे अनगारे ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, उवचिए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ मेघ अनगार उस उराल, विपुल, सश्रीक – प्रयत्नसाध्य, बहुमानपूर्वक गृहीत, कल्याणकारी – शिव – धन्य, मांगल्य – उदग्र, उदार, उत्तम महान प्रभाव वाले तपःकर्म से शुष्क – नीरस शरीर वाले, भूखे, रूक्ष, मांसरहित और रुधिररहित हो गए। उठते – उठते उनके हाड़ कड़कड़ाने लगे। उनकी हड्डियाँ केवल चमड़े से मढ़ी रह गई। शरीर कृश
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 41 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी मेहे नामं अनगारे से णं भंते! मेहे अनगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमा! इ समणे भगवं महावीरे गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी मेहे नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता, बारस भिक्खुपडिमाओ गुण-रयण-संवच्छरं तवोकम्मं काएणं फासेत्ता जाव किट्टेत्ता, मए अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइ थेरे खामेत्ता, तहारूवेहिं कडादीहिं थेरेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहित्ता,

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ !’ इस प्रकार कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय के अन्तेवासी मेघ अनगार थे। भगवन्‌ ! यह मेघ अनगार काल – मास में काल करके किस गति में गए ? और किस जगह उत्पन्न हुए ? ‘हे गौतम !’ इस प्रकार कहकर श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 42 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पढमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बितियस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते, एत्थ णं महं एगं जिण्णुज्जाणे यावि होत्था–विनट्ठदेवउल-परिसडियतोरणघरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-वच्छच्छाइए अनेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था। तस्स णं जिण्णुज्जाणस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे भग्गकूवे यावि होत्था। तस्स णं भग्गकूवस्स

Translated Sutra: श्री जम्बू स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते हैं – ‘भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने द्वीतिय ज्ञाता – ध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में – जब राजगृह नामक नगर था। (वर्णन) उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। वह महान्‌ हिमवन्त पर्वत के समान था, इत्यादि उस राजगृह नगर से बाहर ईशान कोण में –
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 45 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं रायगिहे नयरे विजए नामं तक्करे होत्था–पावचंडाल-रूवे भीमतररुद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तनयणे खरफ-रुस-महल्ल-विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउट्ठे उद्धूय-पइण्ण-लंबंभमुद्धए भमर-राहुवण्णं निरनुक्कोसे निरनुतावे दारुणे पइभए निसंसइए निरनुकंपे अहीव एगंतदिट्ठीए खुरेव एगंतधाराए गिद्धेव आमिसतल्लिच्छे अग्गिमिव सव्वभक्खी जलमिव सव्वग्गाही उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड-कवड-साइ-संपओग-बहुले चिरनगरविनट्ठ-दुट्ठसीलायार-चरित्ते जूयप्पसंगी मज्जप्पसंगी भोज्जप्पसंगी मंसप्पसंगी दारुणे हिययदारए साहसिए संधिच्छेयए उवहिए विस्संभघाई आलीवग-तित्थभेय-लहुहत्थसंपउत्ते परस्स

Translated Sutra: उस राजगृह में विजय नामक एक चोर था। वह पापकर्म करने वाला, चाण्डाल के समान रूपवाला, अत्यन्त भयानक और क्रूर कर्म करने वाला था। क्रुद्ध हुए पुरुष के समान देदीप्यमान और लाल उसके नेत्र थे। उसकी दाढ़ी या दाढ़े अत्यन्त कठोर, मोटी, विकृत और बीभत्स थीं। उसके होठ आपस में मिलते नहीं थे, उसके मस्तक के केश हवा से उड़ते रहते थे,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 46 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहं धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूणि वासाणि सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाणि मानुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं मानुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं, जासिं मन्ने नियगकुच्छिसंभूयाइं थणदुद्ध-लुद्धयाइं

Translated Sutra: धन्य सार्थवाह की भार्या भद्रा एक बार कदाचित्‌ मध्यरात्रि के समय कुटुम्ब सम्बन्धी चिन्ता कर रही थी कि उसे इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ। बहुत वर्षों से मैं धन्य सार्थवाह के साथ, शब्द, स्पर्श, रस, गन्ध और रूप यह पाँचों प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगती हुई विचर रही हूँ, परन्तु मैंने एक भी पुत्र या पुत्री
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 47 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ केणइ कालंतरेणं आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं तीसे भद्दाए सत्थवाहीए तस्स गब्भस्स दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे इमेयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, जाओ णं विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुबहुयं पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियण-महिलियाहिं सद्धिं संपरिवुडाओ रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणिं ओगाहेंति, ओगाहित्ता ण्हा-याओ कयवलिकम्माओ सव्वालंकारविभूसियाओ

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ भद्रा सार्थवाही चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पूर्णिमा के दिन विपुल अशन, पान, खादिम और भोजन तैयार करती। बहुत से नाग यावत्‌ वैश्रमण देवों की मनौती करती और उन्हें नमस्कार किया करती थी। वह भद्रा सार्थवाही कुछ समय व्यतीत हो जाने पर एकदा गर्भवती हो गई। भद्रा सार्थवाही को दो मास बीत गए। तीसरा मास
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 50 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्गमणुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेज्जं जीवग्गाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणुकोप्पर-पहार-संभग्ग-महिय-गत्तं करेंति, करेत्ता अवउडा बंधनं करेंति, करेत्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेण्हंति, गेण्हित्ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधंति, बंधित्ता मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन नगररक्षकों ने धन्य सार्थवाह के ऐसा कहने पर कवच तैयार किया, उसे कसों से बाँधा और शरीर पर धारण किया। धनुष रूपी पट्टिका पर प्रत्यंचा चढ़ाई। आयुध और प्रहरण ग्रहण किये। फिर धन्य सार्थवाह के साथ राजगृह नगर के बहुत – से नीकलने के मार्गों यावत्‌ दरवों, पीछे खिड़कियों, छेड़ियों, किले की छोटी खिड़कियों, मोरियों,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 52 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसि मिसेमाणी धनस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ। तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्ख-रिणीं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए

Translated Sutra: तब भद्रा सार्थवाही दास चेटक पंथक के मुख से यह अर्थ सूनकर तत्काल लाल हो गई, रुष्ट हुई यावत्‌ मिसमिसाती हुई धन्य सार्थवाह पर प्रद्वेष करने लगी। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह को किसी समय मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिवार के लोगों ने अपने साभूत अर्थ से – राजदण्ड से मुक्त कराया। मुक्त होकर वह कारागार से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 53 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा जाव पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगि-ण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया धम्मो कहिओ। तए णं तस्स धनस्स सत्थवाहस्स बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा इहमागया इहसंपत्ता। तं गच्छामि? णं थेरे भगवंते वंदामि नमंसामि एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते

Translated Sutra: उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर भगवंत जाति से उत्पन्न, कुल से सम्पन्न, यावत्‌ अनुक्रम से चलते हुए, जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, यथायोग्य उपाश्रय की याचना करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे – रहे। उनका आगमन जानकर परिषद नीकली। धर्मघोष स्थविर ने धर्मदेशना दी। तत्पश्चात्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 55 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स अज्झयणस्स नायाधम्मकहाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे– सव्वोउय-पुप्फ-फल-समिद्धे सुरम्मे नंदनवणे इव सुह-सुरभि-सीयलच्छायाए समनुबद्धे। तस्स णं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेसम्मि मालुयाकच्छए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं एगा वनमयूरी दो पुट्ठे परियागए पिट्टुंडी-पंडुरे निव्वणे निरुवहए भिण्णमुट्ठिप्पमाणे मयूरी-अंडए पसवइ, पसवित्ता सएणं पक्खवाएणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञाताधर्मकथा के द्वीतिय अध्ययन का यह अर्थ फरमाया है तो तीसरे अध्ययन का क्या फरमाया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। (वर्णन) उस चम्पा नगरी से बाहर ईशान कोण में सुभूमिभाग नामक एक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के फूलों – फलों से सम्पन्न रहता था और रमणीय था। नन्दन
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 57 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन-जाण-वाहणा बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छिड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय- हसिय-भणिय- चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव- निउण-जुत्तोवयार-कुसला ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं

Translated Sutra: उस चम्पा नगरी में देवदत्ता नामक गणिका निवास करती थी। वह समृद्ध थी, वह बहुत भोजन – पान वाली थी। चौंसठ कलाओं में पंडिता थीं। गणिका के चौंसठ गुणों से युक्त थीं। उनतीस प्रकार की विशेष क्रिडाएं करने वाली थी। कामक्रीड़ा के इक्कीस गुणों में कुशल थी। बत्तीस प्रकार के पुरुष के उपचार करने में कुशल थी। उसके सोते हुए
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 58 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकालसमयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धिं थूणामंडवाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता हत्थसंगेल्लीए सुभूमिभागे उज्जाणे बहूसु आलिघरएसु य कयलिघरएसु य लत्ताघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघरएसु य कुसुमघरएसु य उज्जाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वे सार्थवाहपुत्र दिन के पीछले प्रहर में देवदत्ता गणिका के साथ स्थूणामंडप से बाहर नीकलकर हाथ में हाथ जालकर, सुभूमिभाग में बने हुए आलिनामक वृक्षों के गृहों में, कदली – गृहों में, लतागृहों में, आसन गृहों में, प्रेक्षणगृहों में, मंडन करने के गृहों में, मोहन गृहों में, साल वृक्षों के गृहों में, जाली वाले
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 61 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जिनदत्तपुत्ते जेणेव से मयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि निस्संकिए [निक्कंखिए निव्वितिगिंछे?] सुव्वत्तए णं मम एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं नो उव्वत्तेइ नो परियत्तेइ नो आसारेइ नो संसारेइ नो चालेइ नो फंदेइ नो घट्टेइ नो खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि नो टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अनुव्वत्तिज्जमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेणं समएणं उब्भिन्ने मयूरी-पोयए एत्थ जाए। तए णं से जिनदत्तपुत्ते तं मयूरी-पोययं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे मयूर-पोसए सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं

Translated Sutra: जिनदत्त का पुत्र जहाँ मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी के अंडे के विषय में निःशंक रहा। ‘मेरे इस अंडे में से क्रड़ा करने के लिए बढ़िया गोलाकार मयूरी – बालक होगा’ इस प्रकार निश्चय करके, उस मयूरी के अंडे को उसने बार – बार उलटा – पलटा नहीं यावत्‌ बजाया नहीं आदि। इस कारण उलट – पलट न करने से और न बजाने से उस काल
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ काचबो

Hindi 62 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए गंगाए महानईए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्था–अनुपुव्वसुजाय-वप्प-गंभीरसीयलजले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छण्णे संछण्ण-पत्त-पुप्फ -पलासे बहुउप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगं-धिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त केसरपुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सयाणि

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात अंग के चौथे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ?’ हे जम्बू! उस काल और उस समय में वाराणसी नामक नगरी थी। उस वाराणसी नगरी के बाहर गंगा नामक महानदी के ईशान कोण में मृतगंगातीर द्रह नामक एक द्रह था। उसके अनुक्रम से सुन्दर सुशोभित तट थे। जल गहरा और शीतल था। स्वच्छ एवं निर्मल जल
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 63 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती नामं नयरी होत्था–पाईणपडीणायया उदीण-दाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धनवइ-मइ-निम्मिया चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण-कविसीसग-सोहिया अलकापुरि-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया। तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतल-मनुलिहंतसिहरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-परिगए हंस-मिग-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बी और उत्तर – दक्षिण में चौड़ी थी। नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी थी। वह कुबेर की मति से निर्मित हुई थी। सुवर्ण के श्रेष्ठ प्राकार से और पंचरंगी नान मणियों के बने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 64 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स

Translated Sutra: द्वारका नगरी में थावच्चा नामक एक गाथापत्नी निवास करती थी। वह समृद्धि वाली थी यावत्‌ बहुत लोग मिलकर भी उसका पराभव नहीं कर सकते थे। उस थावच्चा गाथापत्नी का थावच्चपुत्र नामक सार्थवाह का बालक पुत्र था। उसके हाथ – पैर अत्यन्त सुकुमार थे। वह परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला, प्रमाणोपेत अंगोपांगों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 65 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं

Translated Sutra: मेघकुमार की तरह थावच्चापुत्र भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकला। उसी प्रकार धर्म को श्रवण करके और हृदय में धारण करके जहाँ थावच्चा गाथापत्नी थी, वहाँ आया। आकर माता के पैरों को ग्रहण किया। मेघकुमार समान थावच्चापुत्र का वैराग्य निवेदना समझनी। माता जब विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत – सी आघवणा,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 66 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नामं नगरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। सेलए राया। पउमावई देवी। मंडुए कुमारे जुवराया। तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था–उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मियाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चिंतयंति। थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया निग्गए। तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अनगारस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थावच्चा-पुत्तं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि

Translated Sutra: उस काल और उस समय में शैलकपुर नगर था। उसके बाहर सुभूमिभाग उद्यान था। शैलक राजा था। पद्मावती रानी थी। मंडुक कुमार था। वह युवराज था। उस शैलक राजा के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री थे। वे औत्पत्तिकी वैनयिकी पारिणामिकी और कार्मिकी इस प्रकार चारों तरह की बुद्धियों से सम्पन्न थे और राज्य की धुरा के चिन्तक भी थे – शासन
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 67 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सोगंधिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। नीलासोए उज्जाणे–वण्णओ। तत्थ णं सोगंधियाए नयरीए सुदंसणे नामं नयरसेट्ठी परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समएणं सुए नामं परिव्वायए होत्था–रिउव्वेय-जजुव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय-सट्ठितंतकुसले संखसमए लद्धट्ठे पंचजम-पंचनियमजुत्तं सोयमूलयं दसप्पयारं परिव्वायगधम्मं दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवे-माणे पण्णवेमाणे धाउरत्त-वत्थ-पवर-परिहिए तिदंड-कुंडिय-छत्त-छन्नालय-अंकुस-पवित्तय-केसरि-हत्थगए परिव्वायगसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे जेणेव सोगंधिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में सौगंधिका नामक नगरी थी। (वर्णन) उस नगरी के बाहर नीलाशोक नामक उद्यान था। (वर्णन) उस सौगंधिका नगरी में सुदर्शन नामक नगरश्रेष्ठी निवास करता था। वह समृद्धिशाली था, यावत्‌ वह किसी से पराभूत नहीं हो सकता था। उस काल और उस समय में शुक नामक एक परिव्राजक था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 68 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सुए अन्नया कयाइ जेणेव सेलगपुरे नगरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। सेलओ निग्गच्छइ। तए णं से सेलए सुयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे सुयं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं देवानुप्पिया! पंथगपामोक्खाइं पंच मंतिसयाइं आपुच्छामि, मंडुयं च कुमारं रज्जे ठावेमि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया। तए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ शुक परिव्राजक ने सुदर्शन से इस प्रकार कहा – ‘हे सुदर्शन ! चलें, हम तुम्हारे धर्माचार्य थावच्चा – पुत्र के समीप प्रकट हों – चलें और इन अर्थों को, हेतुओं को, प्रश्नों को, कारणों को तथा व्याकरणों को पूछें।’ अगर वह मेरे इन अर्थों, हेतुओं, प्रश्नों, कारणों और व्याकरणों का उत्तर देंगे तो मैं उन्हें वन्दना
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 69 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया –उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेल-गपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ प्रकृति से सुकुमार और सुखभोग के योग्य शैलक राजर्षि के शरीर में सदा अन्त, प्रान्त, तुच्छ, रूक्ष, अरस, विरस, ठंडा – गरम, कालातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त भोजन – पान मिलने के कारण वेदना उत्पन्न हो गई। वह वेदना उत्कट यावत्‌ विपुल, कठोर, प्रगाढ़, प्रचंड एवं दुस्सह थी। उनका शरीर खुजली और दाह उत्पन्न करने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 70 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं पंथगवज्जाणं पंचण्हं अनगारसयाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सन्निविट्ठाणं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणाणं अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु सेलए रायरिसी चइत्ता रज्जं जाव पव्वइए विउले असन-पान-खाइम-साइमे मज्जपाणए य मुच्छिए नो संचाएइ फासुएसणिज्जं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं पच्चप्पिणित्ता मंडुयं च रायं आपुच्छित्ता बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। नो खलु कप्पइ देवानुप्पिया! समणाणं निग्गंथाणं ओसन्नाणं पासत्थाणं कुसीलाणं पमत्ताणं संसत्ताणं उउ-बद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ पंथक के सिवाय वे पाँच सौ अनगार किसी समय इकट्ठे हुए – मिले, एक साथ बैठे। तब मध्य रात्रि के समय धर्मजागरणा करते हुए उन्हें ऐसा विचार, चिन्तन, मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ कि – शैलक राजर्षि राज्य आदि का त्याग करके दीक्षित हुए, किन्तु अब विपुल, अशन, पान, खादिम और स्वादिम में तथा मद्यपान में मूर्च्छित हो
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 71 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए सेलगस्स सेज्जा-संथारय-उच्चार-पासवण-खेल्ल-सिंघाणमत्त-ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणएणं अगिलाए विनएणं वेयावडियं करेइ। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ कत्तिय-चाउम्मासियंसि विउलं असन-पान-खाइम-साइमं आहारमाहारिए सुबहुं च मज्जपाणयं पीए पच्चावरण्हकालसमयंसि सुहप्पसुत्ते। तए णं से पंथए कत्तिय-चाउम्मासियंसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कंते, चाउम्मासियं पडिक्कमिउ-कामे सेलगं रायरिसिं खामणट्ठयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ। तए णं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे उट्ठेइ, उट्ठेत्ता एवं वयासी–से केस णं भो!

Translated Sutra: तब वह पंथक अनगार शैलक राजर्षि की शय्या, संस्तारक, उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, संघाण के पात्र, औषध, भेषज, आहार, पानी आदि से बिना ग्लानि, विनयपूर्वक वैयावृत्य करने लगे। उस समय पंथक मुनि ने कार्तिक की चौमासी के दिन कायोत्सर्ग करके दैवसिक प्रतिक्रमण करके, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने की ईच्छा से शैलक राजर्षि को खमाने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 72 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवामेव समणाउसो! जे निग्गंथे वा निग्गंथी वा ओसन्ने ओसन्नविहारी, पासत्थे पासत्थविहारी कुसीले कुसील-विहारी पमत्ते पमत्तविहारी संसत्ते संसत्तविहारी उउबद्ध-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए पमत्ते विहरइ, से णं इहलोए चेव बहूणं सम-णाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाण य हीलणिज्जे निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे, परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणि दंडणाणि य अनादियं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंत-संसार कंतारं भुज्जो-भुज्जो अनुपरियट्टिस्सइ। तए णं ते पंथगवज्जा पंच अनगारसया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी –एवं खलु देवानुप्पिया!

Translated Sutra: हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! इसी प्रकार जो साधु या साध्वी आलसी होकर, संस्तारक आदि के विषय में प्रमादी होकर रहता है, वह इसी लोक में बहुत – से श्रमणों, बहुत – सी श्रमणियों, बहुत – से श्रावकों और बहुत – सी श्राविकाओं की हीलना का पात्र होता है। यावत्‌ वह चिरकाल पर्यन्त संसार – भ्रमण करता है। तत्पश्चात्‌ पंथक को छोड़कर पाँच
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ तुंब

Hindi 74 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से इंदभूई नामं अनगारे जायसड्ढे जाव एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिद्दं निरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत्‌ जहाँ
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-७ रोहिणी

Hindi 75 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं छट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। तत्थ णं रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। भद्दा भारिया–अहीनपंचिंदियसरीरा जाव सुरूवा। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा–धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्था, तं जहा–उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया। तए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो भगवन्‌ ! सातवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में सुभूमिभाग उद्यान था। उस राजगृह नगर में धन्य नामक
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: ’भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 80 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव एगराइयं। तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तं जहा– चउत्थं करेंति, सव्वकामगुणियं पारेंति। छट्ठं करेंति, चउत्थं करेंति। अट्ठमं करेंति, छट्ठं करेंति। दसमं करेंति, अट्ठमं करेंति। दुवालसमं करेंति, दसमं करेंति। चोद्दसमं करेंति, दुवालसमं करेंति। सोलसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति। अट्ठारसमं करेंति, सोलसमं करेंति। वीसइमं करेंति, सोलसमं करेंति। अट्ठारसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति। सोलसमं करेंति, दुवालसमं करेंति। चोद्दसमं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वे महाबल आदि सातों अनगार एक मास की पहली भिक्षु – प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। यावत्‌ बारहवी एकरात्रि की भिक्षु – प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे। तत्पश्चात्‌ वे महाबल प्रभृति सातों अनगार क्षुल्लक सिंहनिष्क्रीडित नामक तपश्चरण अंगीकार करके विचरने लगे। वह तप इस प्रकार किया जाता है – सर्वप्रथम
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 81 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं च यं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा– पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीनसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई। तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाणगएसुं

Translated Sutra: उस जयन्त विमान में कितनेक देवों की बत्तीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। उनमें से महाबल को छोड़कर दूसरे छह देवों की कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति और महाबल देव की पूर बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। तत्पश्चात्‌ महाबल देव के सिवाय छहों देव जयन्त देवलोक से, देव सम्बन्धी आयु का क्षय होने से, स्थिति का क्षय होने से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 82 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहयरियाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणुस्सवं, नवरं–मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा। तया णं कुंभए राया बहूहिं भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयरजम्मणा-भिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्मं जाव नाम-करणं–जम्हा णं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसय-णिज्जंसि डोहले विणीए, तं होउ णं अम्हं दारिया नामेणं मल्ली। तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवड्ढई०।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में अधोलोक में बसने वाली महत्तरिका दिशा – कुमारिकाएं आई इत्यादि जन्म का वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति अनुसार समझ लेना। विशेषता यह है कि मिथिला नगरी में, कुम्भ राजा के भवन में, प्रभावती देवों को आलापक कहना। यावत्‌ देवों ने जन्माभिषेक करके नन्दीश्वर द्वीप में जाकर महोत्सव किया। तत्पश्चात्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 84 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असियसिरया सुनयणा बिंबोट्ठी धवलदंतपंतीया । वरकमल कोमलंगी फुल्लुप्पल गंध नीसासा ॥

Translated Sutra: उनके मस्तक के केश काले थे, नयन सुन्दर थे, होठ बिम्बफल के समान थे, दाँतों की कतार श्वेत थी और शरीर श्रेष्ठ कमल के गर्भ के समान गौरवर्णवाला था। उसका श्वासोच्छ्‌वास विकस्वर कमल के समान गंधवाला था
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 86 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसला नामं जनवए। तत्थ णं सागेए नामं नयरे। तस्स णं उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं महेगे नागघरए होत्था–दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णिहिय-पाडिहेरे। तत्थ णं सागेए नयरे पडिबुद्धी नामं इक्खागराया परिवसइ। पउमावई देवी। सुबुद्धी अमच्चे साम-दंड-भेय-उवप्प-याण-नीति-सुपउत्त-नय-विहण्णू विहरई। तए णं पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ नागजण्णए यावि होत्था। तए णं सा पउमावई देवी नागजण्णमुवट्ठियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में कौशल नामक देश था। उसमें साकेत नामक नगर था। उस नगर में ईशान दिशा में एक नागगृह था। वह प्रधान था, सत्य था, उसकी सेवा सफल होती थी और वह देवाधिष्ठित था। उस साकेत नगर में प्रतिबुद्धि नामक इक्ष्वाकुवंश का राजा निवास करता था। पद्मावती उसकी पटरानी थी, सुबुद्धि अमात्य था, जो साम, दंड, भेद और उपप्रदान
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