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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 254 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ य नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति ।
छ च्च सए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: वहाँ हरे, पीले, लाल, श्वेत और काले ऐसे ६०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। सेंकड़ों मणिजड़ित, कईं तरह के आसन – शय्या, सुशोभित विस्तृतवस्त्र, रत्नमय हार और अलंकार होते हैं। सूत्र – २५४, २५५ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 294 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडियं अनंतगुणं ।
न वि पावइ मुत्तिसुहं नंताहिं वग्गवग्गूहिं ॥ Translated Sutra: देवगण समूह के समस्त काल के समस्त सुख को अनन्त गुने किए जाए और पुनः अनन्त वर्ग से वर्गित किया जाए तो भी मुक्ति के सुख की तुलना नहीं हो सकती। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 296 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविज्जा ।
नंतगुणवग्गुभइओ सव्वागासे न माएज्जा ॥ Translated Sutra: सिद्ध के समस्त सुख – राशि को समस्त काल से गुना करके उसका अनन्त वर्गमूल नीकालने से प्राप्त अंक समस्त आकाश में समा नहीं सकता। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 299 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई ।
तण्हा-छुहाविमुक्को अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो ॥ Translated Sutra: कोई पुरुष सबसे उत्कृष्ट भोजन करके भूख – प्यास से मुक्त हो जाए जैसे कि अमृत से तृप्त हुआ हो। उस तरह से समस्त काल में तृप्त, अतुल, शाश्वत और अव्याबाध निर्वाण सुख पाकर सिद्ध सुखी रहते हैं। सूत्र – २९९, ३०० | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 300 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा ।
सासयमव्वाबाहं चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९९ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 302 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधनविमुक्का ।
सासयमव्वाबाहं अनुहुंति सुहं सयाकालं ॥ Translated Sutra: जिन्होंने सभी दुःख दूर कर दिए हैं। जाति, जन्म, जरा, मरण के बन्धन से मुक्त, शाश्वत और अव्याबाध सुख का हंमेशा अहसास करते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 303 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुरगणइड्ढि समग्गा सव्वद्धापिंडिया अनंतगुणा ।
न वि पावे जिनइड्ढिं नंतेहिं वि वग्गवग्गूहिं ॥ Translated Sutra: समग्र देव की और उसके समग्र काल की जो ऋद्धि है उसका अनन्त गुना करे तो भी जिनेश्वर परमात्मा की ऋद्धि के अनन्तानन्त भाग के समान भी न हो। | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 86 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा जोइसिया वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Gujarati | 232 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारो ऊसासो एसो मे वन्निओ समासेणं ।
सुहुमंतरा य नाहिसि सुंदरि! अचिरेण कालेण ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૨૫ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा |
Gujarati | 10 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] के केनाऽऽहारंति व कालेणुक्कोस मज्झिम जहन्नं? ।
उस्सासो निस्सासो ओहीविसओ व को केसिं? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
भवनपति अधिकार |
Gujarati | 38 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा भवनवई वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Gujarati | 69 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले १ य महाकाले २।१ सुरूव ३ पडिरूव ४।२ पुन्नभद्दे ५ य ।
अमरवइ माणिभद्दे ६।३ भीमे ७ य तहा महाभीमे ८।४ ॥ Translated Sutra: કાળ, મહાકાળ, સુરૂપ, પ્રતિરૂપ, પૂર્ણભદ્ર, માણિભદ્ર, ભીમ, મહાભીમ, તથા કિંનર, કિંપુરુષ, સત્પુરુષ, મહાપુરુષ, અનિકાય, મહાકાય, ગીતરતિ અને ગીતયશ. આ સોળ વાણ વ્યંતરેન્દ્રો છે. વાણવ્યંતરોના ભેદમાં સંનિહિત, સમાન, ધાતા, વિધાતા, ઋષિ, ઋષિપાલ, ઇશ્વર, મહેશ્વર, સુવત્સ, વિશાલ, હાસ, હાસરતિ, શ્વેત, મહાશ્વેત, પતંગ, પતંગપતિ. આ અંતર્ભૂત બીજા | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Gujarati | 76 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहिं देवा वंतरिया वरतरुणीगीय-वाइयरवेणं ।
निच्चसुहिया पमुइया गयं पि कालं न याणंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૩ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Gujarati | 77 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काले सुरूव पुण्णे भीमे तह किन्नरे य सप्पुरिसे ।
अइकाए गीयरई अट्ठेते होंति दाहिणओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૩ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 115 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता ।
कालोदहिम्मि एए चरंति संबद्धलेसाया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૯ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 117 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिम्मि बारस य सहस्साइं ।
नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૯ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 142 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढइ चंदो? परिहानी वा वि केण चंदस्स? ।
कालो वा जोण्हा वा केणऽनुभावेण चंदस्स? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 144 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं बावट्ठिं दिवसे दिवसे तु सुक्कपक्खस्स ।
जं परिवड्ढइ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 146 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढइ चंदो, परिहानी एव होइ चंदस्स ।
कालो वा जोण्हा वा तेणऽनुभावेण चंदस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 150 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए जंबुद्दीवे दुगुणा, लवणे चउग्गुणा होंति ।
कालोयणा तिगुणिया ससि-सूरा धायईसंडे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૯ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Gujarati | 300 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा ।
सासयमव्वाबाहं चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૪ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Gujarati | 302 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निच्छिन्नसव्वदुक्खा जाइ-जरा-मरण-बंधनविमुक्का ।
सासयमव्वाबाहं अनुहुंति सुहं सयाकालं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૪ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 14 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] देसं खेत्तं तु जाणित्ता वत्थं पत्तं उवस्सयं ।
संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई ॥ Translated Sutra: देश, क्षेत्र, द्रव्य, काल और भाव जानकर वस्त्र, पात्र, उपाश्रय और साधु – साध्वी के समूह का संग्रह करे और सूत्रार्थ का चिन्तवन करे, उनको अच्छे आचार्य मानना चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 36 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूए अत्थि भविस्संति केइ तेलोक्कनमंसणीयकमजुयले ।
जेसिं परहियकरणेक्कबद्धलक्खाण वोलिही कालो ॥ Translated Sutra: त्रिलोकवर्ती जीव ने जिसके चरणयुगल को नमस्कार किया है ऐसे कुछ जीव ही भूतकाल में थे, अभी हैं और भावि में होंगे कि जिनका काल मात्र भी दूसरों का हित करने के ही एक लक्षपूर्वक बीतता है। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 37 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तीयानागयकाले केई होहिंति गोयमा! सूरी ।
जेसिं नामग्गहणे वि होज्ज नियमेण पच्छित्तं । Translated Sutra: गौतम ! भूत, भावि और वर्तमान काल में भी कुछ ऐसे आचार्य हैं, कि जिनका केवल नाम ही ग्रहण किया जाए, तो भी यकीनन प्रायश्चित्त लगता है। जैसे लोक में नौकर और वाहन शिक्षा बिना स्वेच्छाचारी होता है, वैसे शिष्य भी स्वेच्छाचारी होता है। इसलिए गुरु ने प्रतिपृच्छा और प्रेरणादि द्वारा शिष्य वर्ग को हंमेशा शिक्षा देनी चाहिए। सूत्र | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 53 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खंते दंते गुत्ते मुत्ते वेरग्गमग्गमल्लीणे ।
दसविहसामायारी-आवस्सग-संजमुज्जुत्ते ॥ Translated Sutra: क्षमावान् इन्द्रिय का दमन करनेवाले, गुप्तिवंत, निर्लोभी, वैराग्य मार्ग में लीन, दस – विध समाचारी, आवश्यक और संयम में उद्यमवान और खर, कठोर, कर्कश, अनिष्ट और दुष्ट वाणी से और फिर अपमान और नीकाल देना आदि द्वारा भी जो द्वेष न करे – सूत्र – ५३, ५४ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 61 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जाकप्पं पाणच्चाए वि रोरदुब्भिक्खे ।
न य परिभुंजइ सहसा, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥ Translated Sutra: और फिर जिस गच्छ में भयानक अकाल हो वैसे वक्त में प्राण का त्याग हो, तो भी साध्वी का लाया हुआ आहार सोचे बिना न खाए, उसे हे गौतम ! वास्तविक गच्छ कहा है। और जिस गच्छ में साध्वीओं के साथ जवान तो क्या, जिसके दाँत गिर गए हैं वैसे बुढ़े मुनि भी आलाप, संलाप न करे और स्त्रीयों के अंग का चिन्तवन न करे, वो हकीकत में गच्छ है। सूत्र | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 63 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेह अप्पमत्ता अज्जासंसग्गि अग्गि-विससरिसी ।
अज्जानुचरो साहू लहइ अकित्तिं खु अचिरेण ॥ Translated Sutra: हे अप्रमादी मुनि ! तुम अग्नि और विष समान साध्वी का संसर्ग छोड़ दो, क्योंकि साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु थोड़े ही काल में जरुर अपयश पाता है। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 77 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य बाहिरपाणियबिंदूमित्तं पि गिम्हमाईसु ।
तण्हासोसियपाणा मरणे वि मुनी न गिण्हंति ॥ Translated Sutra: ग्रीष्म आदि काल में तृषा से प्राण सूख जाए और मौत मिले तो भी बाहर का सचित्त पानी बूँद मात्र भी जो गच्छ में मुनि न ले, वो गच्छ मानना चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 87 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मूलगुणेहि विमुक्कं बहुगुणकलियं पि लद्धिसंपण्णं ।
उत्तमकुले वि जायं निद्धाडिज्जइ, तयं गच्छं ॥ Translated Sutra: अनेक विज्ञान आदि गुणयुक्त, लब्धिसम्पन्न और उत्तम कुल में पैदा होनेवाला मुनि यदि प्राणातिपात विरमण आदि मूल गुण रहित हो उसे गच्छ में से बाहर नीकाला जाए उसे गच्छ मानना चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 96 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ समुद्देसकाले साहूणं मंडलीए अज्जाओ ।
गोयम! ठवेंति पाए, इत्थीरज्जं, न तं गच्छं ॥ Translated Sutra: जिस गच्छ के भीतर भोजन के वक्त साधु की मंड़ली में साध्वी आती है, वो गच्छ नहीं लेकिन स्त्री राज्य है | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
उपसंहार |
Hindi | 136 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढंतु साहुणो एयं असज्झायं विवज्जिउं ।
उत्तमं सुयनिस्संदं गच्छायारं सुउत्तमं ॥ Translated Sutra: प्रधान श्रुत के रहस्यभूत ऐसा यह अति उत्तम गच्छाचार प्रकरण अस्वाध्यायकाल छोड़कर साधु – साध्वी को पढ़ना चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 36 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूए अत्थि भविस्संति केइ तेलोक्कनमंसणीयकमजुयले ।
जेसिं परहियकरणेक्कबद्धलक्खाण वोलिही कालो ॥ Translated Sutra: ત્રિલોકવર્તી જીવોએ જેના ચરણકમળને નમસ્કાર કર્યા છે, એવા કેટલાક હતા, છે અને હશે. જેમનો કાળ માત્ર બીજાનું હિત કરવાના એક લક્ષ્યપૂર્વક વીતે છે. | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 37 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तीयानागयकाले केई होहिंति गोयमा! सूरी ।
जेसिं नामग्गहणे वि होज्ज नियमेण पच्छित्तं । Translated Sutra: ગૌતમ ! ભૂત – ભાવિ અને વર્તમાનમાં કોઈ એવા આચાર્યો છે કે જેમનું નામ ગ્રહણ માત્રથી પ્રાયશ્ચિત્ત લાગે. | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 96 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ समुद्देसकाले साहूणं मंडलीए अज्जाओ ।
गोयम! ठवेंति पाए, इत्थीरज्जं, न तं गच्छं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૫ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
चतुर्थद्वारं करणं |
Hindi | 44 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काऊण तिहिं बिउणं, जोण्हेगो सोहए, न पुन काले ।
सत्तहिं हरेज्ज भागं जं सेसं तं भवे करणं ॥ Translated Sutra: तिथि को दुगुना करके अंधेरी रात न गिनते हुए सात से हिस्से करने से जो बचे वो करण। (सामान्य व्यवहार में एक तिथि के दो करण बताए हैं।) | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
चतुर्थद्वारं करणं |
Gujarati | 44 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] काऊण तिहिं बिउणं, जोण्हेगो सोहए, न पुन काले ।
सत्तहिं हरेज्ज भागं जं सेसं तं भवे करणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૨ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 89 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जनवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था।
तीसे णं सुबाहूए दारियाए अन्नया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्था।
तए णं ते रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्ठियं जाणइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुणाल नामक जनपद था। उस जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी थी। उसमें कुणाल देश का अधिपति रुक्मि नामक राजा था। रुक्मि राजा की पुत्री और धारिणी – देवी की कूंख से जन्मी सुबाहु नामक कन्या थी। उसके हाथ – पैर आदि सब अवयव सुन्दर थे। वय, रूप, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 90 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नामं जनवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी नामं नयरी होत्था। तत्थ णं संखे नामं कासीराया होत्था।
तए णं तीसे मल्लीए विदेहवररायकन्नाए अन्नया कयाइं तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था।
तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! इमस्स दिव्वस्स कुंडजुयलस्स संधिं संघाडेह, [संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह?] ।
तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगारभिसियासु Translated Sutra: उस काल और उस समय में काशी नामक जनपद था। उस जनपद में वाराणसी नामक नगरी थी। उसमें काशीराज शंख नामक राजा था। एक बार किसी समय विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली के उस दिव्य कुण्डल – युगल का जोड़ खुल गया। तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकार की श्रेणी को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! इस दिव्य कुण्डलयुगल के जोड़ को साँध दो।’ तत्पश्चात् | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 91 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नामं जनवए होत्था। तत्थ णं हत्थिणाउरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं अदीनसत्तू नामं राया होत्था जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रन्नो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अनुमग्गजायए मल्लदिन्ने नामं कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव जुवराया यावि होत्था।
तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कयाइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति।
तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुरु नामक जनपद था। उसमें हस्तिनापुर नगर था। अदीनशत्रु नामक वहाँ राजा था। यावत् वह विचरता था। उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था। वह युवराज था। किसी समय एक बार मल्लदिन्न कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 92 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जनवए। कंपिल्लपुरे नयरे। जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था।
तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया–रिउव्वेय-यज्जुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहास-पंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था।
तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दानधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ।
तए णं सा चोक्खा अन्नया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च Translated Sutra: उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधिपति था। उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं। मिथिला नगरी में चोक्खा नामक परिव्राजिका रहती थी। मिथिला नगरी में बहुत – से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 93 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तए णं छप्पि दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणंसि पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता मिहिलं रायहाणिं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु साणं-साणं राईणं वयणाइं निवेदेंति।
तए णं से कुंभए तेसिं दूयाणं अंतियं एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु एवं वयासी–न देमि णं अहं तुब्भं Translated Sutra: इस प्रकार उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं के दूत, जहाँ मिथिला नगरी थी वहाँ जाने के लिए रवाना हो गए। छहों दूत जहाँ मिथिला थी, वहाँ आए। मिथिला के प्रधान उद्यान में सब ने अलग – अलग पड़ाव डाले। फिर मिथिला राजधानी में प्रवेश करके कुम्भ राजा के पास आए। प्रत्येक – प्रत्येक ने दोनों हाथ जोड़े और अपने – अपने राजाओं के | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी अध्ययन-१ काली |
Hindi | 220 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत् चौदह पूर्वों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी अध्ययन-२ थी ५ |
Hindi | 221 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढम-ज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा।
गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं Translated Sutra: ‘भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था तथा गुणशील नामक चैत्य था। स्वामी पधारे। वन्दन करने के लिए परीषद् | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी अध्ययन-२ थी ५ |
Hindi | 222 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं रयणी देवी चमरचंचाए रायहाणीए आगया।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा।
गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी। अंबसालवने चेइए। जियसत्तू राया। रयणे गाहावई। रयणसिरी भारिया। रयणी दारिया। सेसं तहेव जाव अंतं Translated Sutra: तीसरे अध्ययन का उत्क्षेप इस प्रकार है – ‘भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के द्वीतिय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो, भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था इत्यादि राजी के समान रजनी के विषय में भी नाट्यविधि दिखलाने | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-२ बलीन्द्र अग्रमहिषी अध्ययन-१ थी ५ |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पन्नत्ता, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए Translated Sutra: भगवन् ! यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा है तो दूसरे वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने दूसरे वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं। शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा और मदना। भगवन् ! यदि श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के द्वीतिय | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-३ धरण आदि अग्रमहिषी ५४ अध्ययन-१ थी ५४ |
Hindi | 226 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं बिइयस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तइयस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं तइयस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–पढमे अज्झयणे जाव चउपण्णइमे अज्झयणे।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अला देवी धरणाए Translated Sutra: तीसरे वर्ग का उपोद्घात समझ लेना। हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् मुक्तिप्राप्त ने तीसरे वर्ग के चौपन अध्याय कहे हैं। प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवाँ अध्ययन। भगवन् ! यदि यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के तीसरे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं तो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धि – | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-४ भूतानंद आदि अग्रमहिषी ५४ अध्ययन-१ थी ५४ |
Hindi | 227 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा –पढमे अज्झयणे जाव चउप्पन्नइमे अज्झयणे।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं रूया देवी भूयाणंदा Translated Sutra: प्रारम्भ में चौथे वर्ग का उपोद्घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं। प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवा अध्ययन। यहाँ प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कह लेना। हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर में भगवान पधारे। नगर में परीषद् नीकली यावत् | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। Translated Sutra: सर्वज्ञ भगवंतों को नमस्कार। उस काल में उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। वर्णन उववाईसूत्र अनुसार जानना। उस चम्पा नगरी के बाहर, ईशानभाग में, पूर्णभद्र नामक चैत्य था। (वर्णनo)। चम्पा नगरी में कूणिका नामक राजा था। (वर्णनo)। सूत्र – १–३ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 4 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बल-रूव-विनय-नाण-दंसण-चरित्त-लाघव-संपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जिइंदिए जियनद्दे जियपरीसहे जीविसाय-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे एवं–करण-चरण-निग्गह-निच्छय-अज्जव-मद्दव-लाघव -खंति-गुत्ति-मुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वेय-नय-नियम-सच्च-सोय-नाण-दंसण-चरित्तप्पहाणे ओराले घोरे घोरव्वए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउ-नाणोवगए पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के शिष्य आर्य सुधर्मानामक स्थविर थे। वे जाति – सम्पन्न, बल से युक्त, विनयवान, ज्ञानवान, सम्यक्त्ववान, लाघववान, ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी, यशस्वी, क्रोध को जीतने वाले, मान को जीतने वाले, माया को जीतने वाले, लोभ को जीतने वाले, इन्द्रियों को जीतने वाले, निद्रा को जीतने वाले, परीषहों |