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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

Hindi 8 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयम सगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महा-वीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पास उत्कुटुकासन से नीचे सिर झुकाए हुए, ध्यान रूपी कोठे में प्रविष्ट श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। वह गौतम – गोत्रीय थे, सात हाथ ऊंचे, समचतुरस्र संस्थान एवं वज्रऋषभ – नाराच संहनन वाले थे।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 9 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी– से नूनं भंते! चलमाणे चलिए? उदीरिज्जमाणे उदोरिए? वेदिज्जमाणे वेदिए? पहिज्जमाणे पहीने? छिज्जमाणे छिन्ने? भिज्जमाणे भिन्ने?

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जातसंशय, जातकुतूहल, संजातश्रद्ध, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले गौतम अपने स्थान से उठकर खड़े होते हैं। उत्थानपूर्वक खड़े होकर श्रमण गौतम जहाँ श्रमण भगवान महावीर हैं, उस ओर आते हैं। निकट आकर श्रमण भगवान महावीर को उनके दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 10 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एए णं भंते! नव पदा किं एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा? उदाहु नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा? गोयमा! चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेदिज्जमाणे वेदिए, पहिज्जमाणे पहीने– एए णं चत्तारि पदा एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा उप्पन्नपक्खस्स। छिज्जमाणे छिन्ने, भिज्जमाणे भिन्ने, दज्झमाणे दड्ढे, भिज्जमाणे मए, निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे– एए णं पंच पदा नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा विगयपक्खस्स।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या ये नौ पद, नानाघोष और नाना व्यञ्जनों वाले एकार्थक हैं ? अथवा नाना घोष वाले और नाना व्यञ्जनों वाले भिन्नार्थक पद हैं ? हे गौतम ! १. जो चल रहा है, वह चला; २. जो उदीरा जा रहा है, वह उदीर्ण हुआ; ३. जो वेदा जा रहा है, वह वेदा गया; ४. और जो गिर (नष्ट) हो रहा है, वह गिरा (नष्ट हुआ), ये चारों पद उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 11 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: नेरइयाणं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। नेरइया णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा? पाणमंति वा? ऊससंति वा? नीससंति वा? जहा उस्सासपदे। नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी। जहा पन्नवणाए पढमए आहारुद्देसए तहा भाणियव्वं–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है। भगवन्‌ ! नारक कितने काल (समय) में श्वास लेते हैं और कितने समय में श्वास छोड़ते हैं – कितने काल में उच्छ्‌वास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं ? (प्रज्ञापना – सूत्रोक्त) उच्छ्‌वास पद (सातवें पद) के अनुसार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 12 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठिइ उस्सासाहारे, किं वाऽऽहारेंति सव्वओ वावि? कतिभागं सव्वाणि व? कीस व भुज्जो परिणमंति? ॥

Translated Sutra: नारक जीवों की स्थिति, उच्छ्‌वास तथा आहार – सम्बन्धी कथन करना चाहिए। क्या वे आहार करते हैं ? वे समस्त आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं ? वे कितने भाग का आहार करते हैं या वे सर्व – आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे आहारक द्रव्यों को किस रूप में बार – बार परिणमाते हैं ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 16 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला भिज्जंति? गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला भिज्जंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव। नेरइया णं भंते! कइविहा पोग्गला चिज्जंति? गोयमा! आहारदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहा पोग्गला चिज्जंति, तं० अणू चेव, बादरा चेव। एवं उवचिज्जंति। नेरइया णं भंते! कइविहे पोग्गले उदीरेंति? गोयमा! कम्मदव्ववग्गणमहिकिच्च दुविहे पोग्गले उदीरेंति, तं जहा–अणू चेव, बादरा चेव। सेसावि एवं चेव भाणियव्वा–वेदेंति, निज्जरेंति। एवं–ओयट्टेंसु, ओयट्टेंति, ओयट्टिस्संति। संकामिंसु, संकामेंति, संकामिस्संति। निहत्तिंसु निहत्तेतिं, निहत्तिस्संति। निकाएंसु, निकायंति,

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! नारकजीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्‌गल भेदे जाते हैं ? गौतम ! कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा दो प्रकार के पुद्‌गल भेदे जाते हैं। अणु (सूक्ष्म) और बादर। भगवन्‌ ! नारक जीवों द्वारा कितने प्रकार के पुद्‌गल चय किये जाते हैं ? गौतम ! आहार द्रव्यवर्गणा की अपेक्षा वे दो प्रकार के पुद्‌गलों का चय करते हैं, वे
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 17 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भेदिया चिया उवचिया, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा । ओयट्टण संकामण, निहत्तण निकायणे तिविहकालो ॥

Translated Sutra: भेदे गए, चय को प्राप्त हुए, उपचय को प्राप्त हुए, उदीर्ण हुए, वेद गए और निर्जीण हुए (इसी प्रकार) अपवर्त्तन, संक्रमण, निधत्तन और निकाचन (इन पिछले चार) पदोंमें भी तीनों प्रकार काल कहना चाहिए। हे भगवन्! नारक जीव जिन पुद्‌गलों को तैजस और कार्मणरूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं ? प्रत्युत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 18 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति, ते किं तीतकालसमए गेण्हंति? पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति? अनागयकालसमए गेण्हंति? गोयमा! नो तीयकालसमए गेण्हंति, पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति, तो अनागयकालसमए गेण्हंति। नेरइया णं भंते! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति, ते किं तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति? पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति? गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति? गोयमा! तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडुप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति। एवं–वेदेंति, निज्जरेंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नारक जीवप्रदेशों से चलित कर्म को बाँधते हैं, या अचलित कर्म को बाँधते हैं ? गौतम ! (वे) चलित कर्म को नहीं बाँधते, (किन्तु) अचलित कर्म को बाँधते हैं। इसी प्रकार अचलित कर्म की उदीरणा करते हैं, अचलित कर्म का ही वेदन करते हैं, अपवर्त्तन करते हैं, संक्रमण करते हैं, निधत्ति करते हैं और निकाचन करते हैं। इन सब
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 21 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा– ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ | असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए

Translated Sutra: इसी तरह स्थिति और आहार के विषय में भी समझ लेना। जिस तरह स्थिति पद में कहा गया है उसी तरह स्थिति विषय में कहना चाहिए। सर्व जीव संबंधी आहार भी पन्नवणा सूत्र के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी तरह कहना चाहिए। भगवन्‌ ! असुरकुमारों की स्थिति कितने काल की है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 22 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं आयारंभा? परारंभा? तदुभयारंभा? अनारंभा? गोयमा! अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा।अत्थे-गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभा वि, नो अनारंभा? अत्थे गइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयारंभा, अनारंभा? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा, ते णं सिद्धा। सिद्धा णं नो आयारंभा, नो परारंभा, नो तदुभयरंभा, अनारंभा। तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा, ते दुविहा पन्नत्ता,

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! क्या जीव आत्मारम्भी हैं, परारम्भी हैं, तदुभयारम्भी हैं, अथवा अनारम्भी हैं ? हे गौतम ! कितने ही जीव आत्मारम्भी भी हैं, परारम्भी भी हैं और उभयारम्भी भी हैं, किन्तु अनारम्भी नहीं है। कितने ही जीव आत्मारम्भी नहीं हैं, परारम्भी भी नहीं हैं, और न ही उभयारम्भी हैं, किन्तु अनारम्भी हैं। भगवन्‌ ! किस कारण से आप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 24 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] असंवुडे णं भंते! अनगारे सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाइ, सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असंवुडे णं अनगारे नो सिज्झइ, नो बुज्झइ, नो मुच्चइ, नो परिनिव्वाइ, नो सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ? गोयमा! असंवुडे अनगारे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनिय-बंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्सकालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वानुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंवृत अनगार क्या सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, निर्वाण प्राप्त करता है तथा समस्त दुःखों का अन्त करता है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! वह किस कारण से सिद्ध नहीं होता, यावत्‌ सब दुःखों का अन्त नहीं करता ? गौतम ! असंवृत्त अनगार आयुकर्म को छोड़कर शेष शिथिलबन्धन से बद्ध सात कर्मप्रकृतियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 25 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्चा देवे सिया? गोयमा! अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अस्संजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मेव इओ चुए पेच्चा अत्थेगइए देवे सिया, अत्थेगइए नो देवे सिया? गोयमा! जे इमे जीवा गामागर-नगर-निगम-रायहाणि-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा- सम-सन्निवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, अकामबंभचेरवासेनं, अकामसीता-तव-दंसमसग अण्हागय-सेय-जल्ल-मल-पंक-परिदाहेणं अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु वाणमंतरेसु देवलोगेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंयत, अविरत, तथा जिसने पापकर्म का हनन एवं त्याग नहीं किया है, वह जीव इस लोक में च्यव (मर) कर क्या परलोक में देव होता है ? गौतम ! कोई जीव देव होता है और कोई जीव देव नहीं होता। भगवन्‌ ! यहाँ से च्यवकर परलोक में कोई जीव देव होता है, और कोई जीव देव नहीं होता; इसका क्या कारण है? गौतम ! जो ये जीव ग्राम, आकर, नगर, निगम, राजधानी,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 26 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे समोसरणं। परिसा निग्गया जाव एवं वयासी– जीवे णं भंते! सयंकडं दुक्खं वेदेइ? गोयमा! अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइयं वेदेइ? अत्थेगइयं नो वेदेइ? गोयमा! उदिण्णं वेदेइ, नो अनुदिण्णं वेदेइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ। एवं–जाव वेमाणिए। जीवा णं भंते! सयंकडं दुक्खं वेदेंति? गोयमा! अत्थेगइयं वेदेंति, अत्थेगइयं नो वेदेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइयं वेदेंति? अत्थेगइयं नो वेदेंति? गोयमा! उदिण्णं वेदेंति, नो अनुदिण्णं वेदेंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– अत्थेगइयं

Translated Sutra: राजगृह नगरमें (भगवान का) समवसरण हुआ। परीषद्‌ नीकली। यावत्‌ (श्री गौतमस्वामी) इस प्रकार बोले – भगवन्‌ ! क्या जीव स्वयंकृत दुःख (कर्म) को भोगता है ? गौतम ! किसी को भोगता है, किसी को नहीं भोगता। भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! उदीर्ण दुःख को भोगता है, अनुदीर्ण दुःख – कर्म को नहीं भोगता; इसीलिए कहा गया है कि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 27 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! सव्वे समाहारा? सव्वे समसरीरा? सव्वे समुस्सासनीसासा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो सव्वे समाहारा? नो सव्वे समसरीरा? नो सव्वे समुस्ससानीसासा? गोयमा! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–महासरीरा य, अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते महासरीरा ते बहुत्तराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति; अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्ससंति, अभिक्खणं नीससंति। तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सभी नारक समान आहार वाले, समान शरीर वाले, तथा समान उच्छ्‌वास – निःश्वास वाले होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं; जैसे कि – महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं, वे बहुत पुद्‌गलों का आहार करते हैं, बहुत पुद्‌गलों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 30 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवस्स णं भंते! तीतद्धाए आदिट्ठस्स कइविहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे संसारसंचिट्ठणकाले पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले, तिरिक्ख-जोणियसंसारसंचिट्ठणकाले, मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले, देवसंसारसंचिट्ठणकाले। नेरइयसंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले, असुन्नकाले, मिस्सकाले। तिरिक्खजोणियसंसार संचिट्ठिणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–असुन्नकाले य, मिस्सकाले य। मनुस्ससंसारसंचिट्ठणकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुन्नकाले,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अतीतकाल में आदिष्ट – नारक आदि विशेषण – विशिष्ट जीव का संसार – संस्थानकाल कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संसार – संस्थान – काल चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिकसंसार – संस्थानकाल, तिर्यंचसंसार – संस्थानकाल, मनुष्यसंसार – संस्थानकाल और देवसंसार – संस्थानकाल। भगवन्‌ ! नैरयिकसंसार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 32 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! असंजयभवियदव्वदेवाणं, अविराहियसंजमाणं, विराहियसंजमाणं, अविराहियसंजमा-संजमाणं, विराहियसंजमासंजमाणं, असण्णीणं, तावसाणं, कंदप्पियाणं, चरगपरिव्वायगाणं, किब्बि सियाणं, तेरिच्छियाणं, आजीवियाणं आभिओगियाणं, सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं– एतेसि णं देव-लोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाए पन्नत्ते? गोयमा! असंजयभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवनवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जएसु। अविराहिय संजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे विमाने। विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवन वासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे। अविराहियसंजमासंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मेकप्पे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंयतभव्यद्रव्यदेव, अखण्डित संयम वाला, खण्डित संयम वाला, अखण्डित संयमासंयम वाला, खण्डित संयमासंयम वाला, असंज्ञी, तापस, कान्दर्पिक, चरकपरिव्राजक, किल्बिषिक, तिर्यंच, आजीविक, आभियोगिक, दर्शन भ्रष्ट वेषधारी, ये देवलोक में उत्पन्न हों तो, किसका कहाँ उपपात होता है ? असंयतभव्यद्रव्य – देवों का उत्पाद जघन्यतः
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 33 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! असण्णिआउए पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे असण्णिआउए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयअसण्णिआउए, तिरिक्खजोणिय-असण्णि- आउए, मनुस्सअसण्णिआउए, देवअसण्णिआउए। असण्णी णं भंते! जीवे किं नेरइयाउयं पकरेइ? तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ? मनुस्साउयं पकरेइ? देवाउयं पकरेइ? हंता गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेइ, मनुस्साउयं पि पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ। नेरइयाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। मनुस्साउयं पकरेमाणे जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंज्ञी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिक – असंज्ञी आयुष्य, तिर्यंच – असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य – असंज्ञी आयुष्य और देव – असंज्ञी आयुष्य। भगवन्‌ ! असंज्ञी जीव क्या नरक का आयुष्य उपार्जन करता है, तिर्यंचयोनिक का आयुष्य उपार्जन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 34 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे? हंता कडे। से भंते! किं १. देसेणं देसे कडे? २. देसेणं सव्वे कडे? ३. सव्वेणं देसे कडे? ४. सव्वेणं सव्वे कडे? गोयमा! १. नो देसेणं देसे कडे २. नो देसेणं सव्वे कडे ३. नो सव्वेणं देसे कडे ४. सव्वेणं सव्वे कडे। नेरइयाणं भंते! कंखामोहणिज्जे कम्मे कडे? हंता कडे। से भंते! किं १. देसेणं देसे कडे? २. देसेणं सव्वे कडे? ३. सव्वेणं देसे कडे? ४. सव्वेणं सव्वे कडे? गोयमा! १. नो देसेणं देसे कडे २. नो देसेणं सव्वे कडे ३. नो सव्वेणं देसे कडे ४. सव्वेणं सव्वे कडे। एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ भाणियव्वो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म कृतक्रियानिष्पादित (किया हुआ) है ? हाँ, गौतम ! वह कृत है। भगवन्‌ ! क्या वह देश से देशकृत है, देश से सर्वकृत है, सर्व से देशकृत है अथवा सर्व से सर्वकृत है ? गौतम ! वह देश से देशकृत नहीं है, देश से सर्वकृत नहीं है, सर्व से देशकृत नहीं है, सर्व से सर्वकृत है। भगवन्‌ ! क्या नैरयिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 35 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं करिंसु? हंता करिंसु। तं भंते! किं १. देसेणं देसं करिंसु? २. देसेणं सव्वं करिंसु? ३. सव्वेणं देसं करिंसु? ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु? गोयमा! १. नो देसेणं देसं करिंसु, २. नो देसेणं सव्वं करिंसु, ३. नो सव्वेणं देसं करिंसु। ४. सव्वेणं सव्वं करिंसु। एएणं अभिलावेणं दंडओ भाणियव्वो, जाव वेमाणियाणं। एवं करेंति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं करिस्संति। एत्थ वि दंडओ जाव वेमाणियाणं। एवं चिए, चिणिंसु, चिणंति, चिणिस्संति। उवचिए, उवचिणिंसु, उवचिणंति, उवचिणिस्संति। उदीरेंसु, दीरेंति उदीरिस्संति। वेदेंसु, वेदेंति, वेदिस्संति। निज्जरेंसु, निज्जरेंति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय कर्म का उपार्जन किया है ? हाँ, गौतम ! किया है। भगवन्‌ ! क्या वह देश से देशकृत है ? पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक तक करना। इस प्रकार ‘कहते हैं’ यह आलापक भी यावत्‌ वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करते हैं’ यह आलापक भी यावत्‌ वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार ‘करेंगे’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 36 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कड-चिय-उवचिय, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा । आदितिए चउभेदा, तियभेदा पच्छिमा तिन्नि ॥

Translated Sutra: कृत, चित, उपचित, उदीर्ण, वेदित और निर्जीर्ण; इतने अभिलाप यहाँ कहने हैं। इनमें से कृत, चित और उपचित में एक – एक के चार – चार भेद हैं; अर्थात्‌ – सामान्य क्रिया, भूतकाल की क्रिया, वर्तमान काल की क्रिया और भविष्यकाल की क्रिया। पीछले तीन पदों में सिर्फ तीन काल की क्रिया कहनी है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 37 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? हंता वेदेंति। कहन्नं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया, कंखिया, वितिगिंछिया, भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना–एव खलु जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति।

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ?’ हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। भगवन्‌ ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म को किस प्रकार वेदते हैं ? गौतम ! उन – उन (अमुक – अमुक) कारणों से शंकायुक्त, कांक्षायुक्त, विचिकित्सायुक्त, भेदसमापन्न एवं कलुषसमापन्न होकर; इस प्रकार जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 38 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वही सत्य और निःशंक हैं, जो जिन – भगवंतों ने निरूपित किया है? हाँ, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेन्द्रों द्वारा निरूपित है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 39 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! एवं मणं धारेमाणे, एवं पकरेमाणे, एवं चिट्ठेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति? हंता गोयमा! एवं मणं धारेमाणे एवं पकरेमाणे, एवं चिट्ठेमाणे, एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित है) इस प्रकार मन में धारण (निश्चय) करता हुआ, उसी तरह आचरण करता हुआ, यों रहता हुआ, इसी तरह संवर करता हुआ जीव क्या आज्ञा का आराधक होता है ? हाँ, गौतम ! इसी प्रकार मन में निश्चय करता हुआ यावत्‌ आज्ञा का आराधक होता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 40 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ? नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ? हंता गोयमा! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ। नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ। जं णं भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ, तं किं पयोगसा? वीससा? गोयमा! पयोगसा वि तं [अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ।] वीससा वि तं [अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, नत्थित्ते परिणमइ।] जहा ते भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ, तहा ते अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ? हंता गोयमा! जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते परिणमइ, तहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है, तथा नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है ? हाँ, गौतम ! अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है। भगवन्‌ ! वह जो अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व में परिणत होता है, सो क्या वह प्रयोग (जीव के व्यापार)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 41 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा ते भंते! अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं, तहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं? जहा ते नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं, तहा ते अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं? हंता गोयमा! जहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं, तहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं। जहा मे नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं, तहा मे अत्थित्तं अत्थित्ते गमणिज्जं। जहा ते भंते! एत्थं गमणिज्जं, तहा ते इहं गमणिज्जं? जहा ते इहं गमणिज्जं, तहा ते एत्थं गमणिज्जं? हंता गोयमा! जहा मे एत्थं गमणिज्जं, तहा मे इहं गमणिज्जं। जहा मे इहं गमणिज्जं तहा मे एत्थं गमणिज्जं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जैसे आपके मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार इह (परात्मा में भी) गमनीय है, जैसे आपके मत में इह (परात्मा में) गमनीय है, उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) भी गमनीय है ? हाँ, गौतम ! जैसे मेरे मत में यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है, यावत्‌ उसी प्रकार यहाँ (स्वात्मा में) गमनीय है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 42 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति? हंता बंधंति। कहन्नं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति? गोयमा! पमादपच्चया, जोगनिमित्तं च। से णं भंते! पमादे किंपवहे? गोयमा! जोगप्पवहे। से णं भंते! जीए किंपवहे? गोयमा! वीरियप्पवहे। से णं भंते! वीरिए किंपवहे? गोयमा! सरीरप्पवहे। से णं भंते! सरीरे किंपवहे? गोयमा! जीवप्पवहे। एवं सति अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन्‌ ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बाँधते हैं ? गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं)। ‘भगवन्‌ ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ?’ गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है। ‘भगवन्‌ ! योग किससे उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 43 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति? अप्पणा चेव गरहति? अप्पणा चेव संवरेति? हंता गोयमा! अप्पणा चेव उदीरेति। अप्पणा चेव गरहति। अप्पणा चेव संवरेति। जं णं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति, अप्पणा चेव गरहति, अप्पणा चेव संवरेति, तं किं–१. उदिण्णं उदीरेति? २. अनुदिण्णं उदीरेति? ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति? ४. उदयानंतर-पच्छाकडं कम्मं उदीरेति? गोयमा! १. नो उदिण्णं उदीरेति। २. नो अनुदिण्णं उदीरेति। ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति। ४. नो उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेति। जं णं भंते! अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति, तं किं उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव अपने आपसे ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्हा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? हाँ, गौतम ! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्हा और संवर करता है। भगवन्‌ ! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्हा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण की उदीरणा करता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 44 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? हंता वेदेंति। कहन्नं भंते! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेसि णं जीवाणं नो एवं तक्का इ वा, सण्णा इ वा, पण्णा इ वा, मने इ वा, वई ति वा– अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेमो, वेदेंति पुण ते। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं। सेसं तं चेव जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। सामान्य (औघिक) जीवों के सम्बन्ध में जैसे आलापक कहे थे, वैसे ही नैरयिकों के सम्बन्ध में यावत्‌ स्तनितकुमारों तक समझ लेने चाहिए। भगवन्‌ ! क्या पृथ्वीकायिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वे वेदन करते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 45 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं। एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ? गौतम ! उन – उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 47 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कति पगडी? कह बंधति? कतिहिं व ठाणेहिं बंधती पगडी? । कति वेदेति व पगडी? अनुभागो कतिविहो कस्स? ॥

Translated Sutra: कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? जीव किस प्रकार कर्म बाँधता है ? कितने स्थानों से कर्मप्रकृतियों को बाँधता है? कितनी प्रकृतियों का वेदन करता है ? किस प्रकृति का कितने प्रकार का अनुभाग (रस) है ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 48 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं उवट्ठाएज्जा? हंता उवट्ठाएज्जा। से भंते! किं वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? गोयमा! वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो अवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। जइ वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा, किं–बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? बालपंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा? गोयमा! बालवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो पंडियवीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। नो बालपंडिय-वीरियत्ताए उवट्ठाएज्जा। जीवे णं भंते! मोहणिज्जेणं कडेणं कम्मेणं उदिण्णेणं अवक्कमेज्जा? हंता अवक्कमेज्जा। से भंते! किं वीरियत्ताए अवक्कमेज्जा? अवीरियत्ताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कृतमोहनीय कर्म जब उदीर्ण हो, तब जीव उपस्थान – परलोक की क्रिया के लिए उद्यम करता है? हाँ, गौतम ! करता है। भगवन्‌ ! क्या जीव वीर्यता – सवीर्य होकर उपस्थान करता है या अवीर्यता से ? गौतम ! जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, अवीर्यता से नहीं करता। भगवन्‌ ! यदि जीव वीर्यता से उपस्थान करता है, तो क्या बालवीर्य से करता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 49 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो? हंता गोयमा! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो? एवं खलु मए गोयमा! दुविहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा– पदेसकम्मे य, अनुभागकम्मे य। तत्थ णं जं णं पदेसकम्मं तं नियमा वेदेइ। तत्थ णं जं णं अनुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ। नायमेयं अरहया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नारक तिर्यंचयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना क्या मोक्ष नहीं होता? हाँ, गौतम ! नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मैंने कर्म के दो भेद बताए हैं। प्रदेशकर्म और अनुभाग – कर्म। इनमें
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 51 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीतं अनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिणिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मनुस्से तीतं अनंतं सासयं समयं–केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं नो सिज्झिंसु? नो बुज्झिंसु? नो मुच्चिंसु? नो परिनिव्वाइंसु? नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा–सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा– सव्वे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्म – चर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता (के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत्‌ समस्त दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जो भी कोई मनुष्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 52 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं० रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! (अधोलोक में) कितनी पृथ्वीयाँ (नरकभूमियाँ) कही गई हैं ? गौतम ! सात पृथ्वीयाँ हैं। रत्नप्रभा से लेकर यावत्‌ तमस्तमःप्रभा तक। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नारकावास कहे गए हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी में तीस लाख नारकावास हैं। नारकावासों की संख्या बताने वाली गाथा –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 53 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीसा य पन्नवीसा, पन्नरस दसेव या सयसहस्सा । तिन्नेगं पंचूणं, पंचेव अनुत्तरा निरया ॥

Translated Sutra: प्रथम पृथ्वी (नरकभूमि) में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवी में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवीं में केवल पाँच नारकावास हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 62 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–जहन्निया ठिती, समयाहिया जहन्निया ठिती, दुसमयाहिया जहन्निया ठिती जाव असंखेज्जसमयाहिया जहन्निया ठिती। तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहन्नियाए ठितीए वट्टमाणा नेरइया किं–कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा १. कोहोवउत्ता। २. अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ते य। ३. अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति – स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्य स्थान हैं। वे इस प्रकार हैं – जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक – इस प्रकार यावत्‌ जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है, तथा उसके योग्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 63 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठितीए वट्ठमाणा नेरइया किं– कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य। कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ता य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ता य। एवं असीतिभंगा नेयव्वा। एवं जाव संखेज्जसमयाहियाए ठितीए, असंखेज्जसमयाहियाए ठितीए तप्पाउग्गुक्को-सियाए ठितीए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक – एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं। जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत्‌ असंख्यात प्रदेशाधिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 64 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? तिन्नि वि। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव सम्मदंसणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। एवं मिच्छदंसणे वि। सम्मामिच्छदंसणे असीतिभंगा। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं नाणी, अन्नाणी? गोयमा! नाणी वि, अन्नाणी वि। तिन्नि नाणाइं नियमा। तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव आभिनिबोहियनाणे वट्टमाणा नेरइया किं कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। एवं तिन्नि नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं भाणियव्वाइं। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए जाव नेरइया किं मणजोगी? वइजोगी? कायजोगी? तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्‌मिथ्या – दृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत्‌ लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 66 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउसट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एवमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया ठिति-ट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता। जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं–पडिलोमा भंगा भाणियव्वा। सव्वे वि ताव होज्ज लोभोवउत्ता। अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ते य। अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ता य। एएणं गमेणं नेयव्वं जाव थणियकुमारा, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चौसठ लाख असुरकुमारावासों में से एक – एक असुरकुमारावास में रहने वाले असुरकुमारों के कितने कितने स्थिति – स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके स्थिति – स्थान असंख्यात कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्य स्थिति, इत्यादि सब वर्णन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। विशेषता यह है कि इनमें जहाँ
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शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 67 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: असंखेज्जेसु णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि पुढविक्का-इयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–जहन्निया ठिई जाव तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिई असंखेज्जेसु णं भंते! पुढविक्काइयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि पुढविक्काइयावासंसि जह-न्नियाए ठितीए वट्टमाणा पुढविक्काइया किं कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता? गोयमा! कोहोवउत्ता वि, मानोवउत्ता वि, मायोवउत्ता वि, लोभोवउत्ता वि। एवं पुढविक्काइयाणं सव्वेसु वि ठाणेसु अभंगयं, नवरं–तेउलेस्साए असीतिभंगा। एवं आउक्काइया वि। तेउक्काइय-वाउक्काइयाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवासों में से एक – एक आवास में बसने वाले पृथ्वी – कायिकों के कितने स्थिति – स्थान कहे गए हैं ? गौतम ! उनके असंख्येय स्थिति – स्थान हैं। वे इस प्रकार हैं – उनकी जघन्य स्थिति, एक समय अधिक जघन्यस्थिति, दो समय अधिक जघन्यस्थिति, यावत्‌ उनके योग्य उत्कृष्ट स्थिति। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक
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शतक-१

उद्देशक-५ पृथ्वी Hindi 68 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीइभंगा तेहिं ठाणेहिं असीइं चेव, नवरं–अब्भहिया सम्मत्ते। आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे य एएहिं असीइभंगा। जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं सत्तावीसं भंगा तेसु ठाणेसु सव्वेसु अभंगयं। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरं–जेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं अभंगयं कायव्वं। मनुस्सा वि। जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीतिभंगा तेहिं ठाणेहिं मनुस्साण वि असीतिभंगा भाणियव्वा। जेसु सत्तावीसा तेसु अभंगयं, नवरं–मनुस्साणं अब्भहियं जहन्नियाए ठिईए, आहारए य असीतिभंगा। वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा भवनवासी, नवरं– नाणत्तं जाणियव्वं

Translated Sutra: जिन स्थानों में नैरयिक जीवों के अस्सी भंग कहे गए हैं, उन स्थानों में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के भी अस्सी भंग होते हैं। विशेषता यह है कि सम्यक्त्व, आभिनिबोधिक ज्ञान, और श्रुतज्ञान – इन तीन स्थानों में भी द्वीन्द्रिय आदि जीवों के अस्सी भंग होते हैं, इतनी बात नारक जीवों से अधिक है। तथा
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 69 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावइयाओ णं भंते! ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति? हंता गोयमा! जावइयाओ णं ओवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावतियाओ चेव ओवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छति। जावइय णं भंते! खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोएइ तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य णं सूरिए तावइयं चेव खेत्तं आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ? उज्जोएइ? तवेइ? पभासेइ? हंता गोयमा! जावतिय णं खेत्तं उदयंते सूरिए आयवेणं सव्वओ समंता ओभासेइ उज्जोइए तवेइ पभासेइ, अत्थमंते वि य

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जितने जितने अवकाशान्तर से अर्थात्‌ – जितनी दूरी से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से शीघ्र देखा जाता है, उतनी ही दूरी से क्या अस्त होता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है ? हाँ, गौतम ! जितनी दूर से उदय होता हुआ सूर्य आँखो से दीखता है, उतनी ही दूरी से अस्त होता सूर्य भी आँखों से दिखाई देता है। भगवन्‌ ! उदय होता हुआ सूर्य अपने
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 71 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाए णं किरिया कज्जइ? हंता अत्थि। सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिया तिदिसिं, सिया चउदिसिं, सिया पंचदिसिं। सा भंते! किं कडा कज्जइ? अकडा कज्जइ? गोयमा! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ। सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुभयकडा कज्जइ? गोयमा! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा कज्जइ। सा भंते किं आनुपुव्विं कडा कज्जइ? अनानुपुव्विं कडा कज्जइ? गोयमा! आनुपुव्विं कडा कज्जइ, नो अनानुपुव्विं कडा कज्जइ। जा य कडा कज्जइ, जा य कज्जिस्सइ, सव्वा सा आनुपुव्विं कडा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीवों द्वारा प्राणातिपातक्रिया की जाती है ? भगवन्‌ ! की जाने वाली वह प्राणातिपातक्रिया क्या स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? गौतम ! यावत्‌ व्याघात न हो तो छहों दिशाओं को और व्याघात हो तो कदाचित्‌ तीन दिशाओं को, कदाचित्‌ चार दिशाओं को और कदाचित्‌ पाँच दिशाओं को स्पर्श करती है। भगवन्‌ ! क्या वह (प्राणातिपात)
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 72 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी रोहे नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमानमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्डंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तते णं से रोहे अनगारे जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी– पुव्विं भंते! लोए, पच्छा अलोए? पुव्विं अलोए, पच्छा लोए? रोहा! लोए य अलोए य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा। पुव्विं भंते! जीवा, पच्छा अजीवा? पुव्विं अजीवा, पच्छा जीवा? रोहा! जीवा य अजीवा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते

Translated Sutra: उस काल और उस समयमें भगवान महावीर के अन्तेवासी रोह नामक अनगार थे। वे प्रकृति से भद्र, मृदु, विनीत, उपशान्त, अल्प, क्रोध, मान, माया, लोभवाले, अत्यन्त निरहंकारतासम्पन्न, गुरु समाश्रित, किसी को संताप न पहुँचाने वाले, विनयमूर्ति थे। वे रोह अनगार ऊर्ध्वजानु और नीचे की ओर सिर झुकाए हुए, ध्यान रूपी कोष्ठक में प्रविष्ट,
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 75 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा अतीतद्धा? पुव्विं अतीतद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते य अतीतद्धा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा! पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा अनागतद्धा? पुव्विं अनागतद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते य अनागतद्धा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा! पुव्विं भंते! लोयंते, पच्छा सव्वद्धा? पुव्विं सव्वद्धा, पच्छा लोयंते? रोहा! लोयंते य सव्वद्धा य पुव्विं पेते, पच्छा पेते–दो वेते सासया भावा, अनानुपुव्वी एसा रोहा जहा लोयंतेणं संजोइया सव्वे ठाणा एते, एवं अलोयंतेण वि संजोएतव्वा सव्वे। पुव्विं

Translated Sutra: क्या ये पहले हैं और लोकान्त पीछे है ? अथवा हे भगवन्‌ ! क्या लोकान्त पहले और सर्वाद्धा (सर्व काल) पीछे हैं ? जैसे लोकान्त के साथ (पूर्वोक्त) सभी स्थानों का संयोग किया, उसी प्रकार अलोकान्त के इन सभी स्थानों को जोड़ना चाहिए। भगवन्‌ ! पहले सप्तम अवकाशान्तर है और पीछे सप्तम तनुवात है ? हे रोह ! इसी प्रकार सप्तम अवका – शान्तर
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 76 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी– कतिविहा णं भंते! लोयट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा लोयट्ठिति पन्नत्ता, तं जहा–१. आगासपइट्ठिए वाए। २. वायपइट्ठिए उदही। ३. उदहिपइट्ठिया पुढवी। ४. पुढविपइट्ठिया तसथावरा पाणा। ५. अजीवा जीवपइट्ठिया। ६. जीवा कम्मपइट्ठिया। ७. अजीवा जीवसंगहिया। ८. जीवा कम्मसंगहीया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अट्ठविहा लोयट्ठिती जाव जीवा कम्मसंगहिया? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवेत्ता उप्पिं सितं बंधइ, बंधित्ता मज्झे गंठिं बंधइ, बंधित्ता उवरिल्लं गंठिं मुयइ, मुइत्ता उवरिल्लं देसं वामेइ, वामेत्ता उवरिल्लं

Translated Sutra: ‘हे भगवन्‌ !’ ऐसा कहकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ कहा – भगवन्‌ ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की। वह इस प्रकार है – आकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर
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शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 77 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नमोगाढा, अन्नमन्नसिनेह-पडिबद्धा, अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं जीवा य पोग्गला य अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नमोगाढा, अन्नमन्नसिनेहपडिबद्धा, अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? गोयमा! से जहानामए हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठइ अहे ण केइ पुरिसे तंसि हरदंसि एगं महं नावं सयासवं सयछिद्दं ओगाहेज्जा। से नूनं गोयमा! सा नावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी-आपूरमाणी पुण्णा पुन्नप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव और पुद्‌गल परस्पर सम्बद्ध हैं ?, परस्पर एक दूसरे से स्पृष्ट हैं ?, परस्पर गाढ़ सम्बद्ध हैं, परस्पर स्निग्धता से प्रतिबद्ध हैं, (अथवा) परस्पर घट्टित होकर रहे हुए हैं ? हाँ, गौतम ! ये परस्पर इसी प्रकार रहे हुए हैं। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जैसे – एक तालाब हो, वह जल से पूर्ण हो, पानी से लबालब
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 78 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! सदा समितं सुहुमे सिनेहकाए पवडइ? हंता अत्थि। से भंते! किं उड्ढे पवडइ? अहे पवडइ? तिरिए पवडइ? गोयमा! उड्ढे वि पवडइ, अहे वि पवडइ, तिरिए वि पवडइ। जहा से बायरे आउयाए अन्नमन्नसमाउत्ते चिरं पि दीहकालं चिट्ठइ तहा णं से वि? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सूक्ष्म स्नेहकाय, सदा परिमित पड़ता है ? हाँ, गौतम ! पड़ता है। भगवन्‌ ! वह सूक्ष्म स्नेह – काय ऊपर पड़ता है, नीचे पड़ता है या तीरछा पड़ता है ? गौतम ! वह ऊपर भी पड़ता है, नीचे भी पड़ता है और तीरछा भी पड़ता है। भगवन्‌ ! क्या वह सूक्ष्म स्नेहकाय स्थूल अप्काय की भाँति परस्पर समायुक्त होकर बहुत दीर्घकाल तक रहता है ? हे
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शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 79 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे, किं–१. देसेणं देसं उववज्जइ? २. देसेणं सव्वं उववज्जइ? ३. सव्वेणं देसं उववज्जइ? ४. सव्वेणं सव्वं उववज्जइ? गोयमा! १. नो देसेणं देसं उववज्जइ। २. नो देसेणं सव्वं उववज्जइ। ३. नो सव्वेणं देसं उववज्जइ। ४. सव्वेणं सव्वं उववज्जइ। जहा नेरइए, एवं जाव वेमाणिए।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नारकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जीव एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है या एक भाग से सर्व भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है, या सर्वभाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता अथवा सब भागों को आश्रय करके उत्पन्न होता है ? गौतम ! नारक जीव एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता; एक भाग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 80 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइए णं भंते! नेरइएसु उववज्जमाणे, किं–१. देसेणं देसं आहारेइ? २. देसेणं सव्वं आहारेइ? ३. सव्वेणं देसं आहारेइ? ४. सव्वेणं सव्वं आहारेइ? गोयमा! १. नो देसेणं देसं आहारेइ। २. नो देसेणं सव्वं आहारेइ। ३. सव्वेणं वा देसं आहारेइ। ४. सव्वेणं वा सव्वं आहारेइ। एवं जाव वेमाणिए। नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो उव्वट्टमाणे, किं–१. देसेणं देसं उव्वट्टइ? २. देसेणं सव्वं उव्वट्टइ? ३. सव्वेणं देसं उव्वट्टइ? ४. सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ? गोयमा! १. नो देसेणं देसं उव्वट्टइ। २. नो देसेणं सव्वं उव्वट्टइ। ३. नो सव्वेणं देसं उव्वट्टइ। ४. सव्वेणं सव्वं उव्वट्टइ। एवं जाव वेमाणिए। नेरइए णं भंते! नेरइएहिंतो

Translated Sutra: नारकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जीव क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, एक भाग से सर्वभाग को आश्रित करके आहार करता है, सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, अथवा सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके आहार करता है ? गौतम ! वह एक भाग से एक भाग को आश्रित करके आहार नहीं करता, एक भाग से सर्वभाग
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