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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 332 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वासाणं भंते! पढमं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि नक्खत्ता नेंति, तं जहा–उत्तरासाढा अभिई सवणो धणिट्ठा। उत्तरासाढा चउद्दस अहोरत्ते नेइ। अभिई सत्त अहोरत्ते नेई। सवणो अट्ठ अहोरत्ते णेई। धनिट्ठा एगं अहोरत्तं नेइ। तंसि च णं मासंसि चउरंगुलपोरिसीए छायाए सूरिए अनुपरियट्टइ। तस्स णं मासस्स चरिमे दिवसे दो पया चत्तारि य अंगुला पोरिसी भवइ।
वासाणं भंते! दोच्चं मासं कइ नक्खत्ता नेंति? गोयमा! चत्तारि, तं जहा–धनिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तराभद्दवया। धनिट्ठा णं चउद्दस अहोरत्ते नेइ। सयभिसया सत्त। पुव्वाभद्दवया अट्ठ। उत्तराभद्दवया एगं। तंसि च णं मासंसि अट्ठंगुलपोरिसीए Translated Sutra: भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! चार – उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा। उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र, अभिजित नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। उस मास में सूर्य चार अंगुल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 336 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हिट्ठिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? समंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि? हंता गोयमा! तं चेव उच्चारेयव्वं। Translated Sutra: भगवन् ! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र एवं सूर्य के अणु – हीन हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के समश्रेणीवर्ती तथा उपरितन प्रदेशवर्ती ताराविमानों | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 337 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तवणियम-बंभचेराइं ऊसियाइं भवंति, तहा-तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पन्नायए, तं जहा–अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तव नियम बंभचेराइं नो ऊसि-याइं भवंति तहा-तहा णं तेसिं देवाणं एवं नो पन्नायए, तं जहा–अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। Translated Sutra: भगवन् ! ऐसा किस कारण से है ? गौतम ! पूर्व भव में उन ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों का तप आचरण, नियमानुपालन तथा ब्रह्मचर्य – सेवन जैसा – जैसा उच्च या अनुच्च होता है, तदनुरूप उनमें द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से हीनता – या तुल्यता होती है। पूर्व भव में उन देवों का तप आचरण नियमानुपालन, ब्रह्मचर्य – सेवन | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 338 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारो, केवइया नक्खत्ता परिवारो, केवइया तारागणकोडाकोडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठासीइमहग्गहा परिवारो, अट्ठवीसं नक्खत्ता परिवारो, छावट्ठिसहस्साइं नव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडीणं पन्नत्ता। Translated Sutra: भगवन् ! एक एक चन्द्र का महाग्रह – परिवार, नक्षत्र – परिवार तथा तारागण – परिवार कितना कोड़ाकोड़ी है? गौतम ! प्रत्येक चन्द्र का परिवार ८८ महाग्रह है, २८ नक्षत्र है तथा ६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 339 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइसं चारं चरइ? गोयमा! एक्कारसहिं एक्कवीसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसं चारं चरइ।
लोगंताओ णं भंते! केवइयाए अबाहाए जोइसे पन्नत्ते? गोयमा! एक्कारस एक्कारसेहिं जोयणसएहिं अबाहाए जोइसे पन्नत्ते।
धरणितलाओ णं भंते! [केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए चंदविमाने चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति? गोयमा!] सत्तहिं णउएहिं जोयणसएहिं जोइसे चारं चरइ। एवं सूरविमाने अट्ठहिं सएहिं, चंदविमाने अट्ठहिं असीएहिं, उवरिल्ले तारारूवे णवहिं जोयणसएहिं चारं चरइ।
जोइसस्स Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव मेरु पर्वत से कितने अन्तर पर गति करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी पर। ज्योतिश्चक्र – लोकान्त से अलोक से पूर्व ११११ योजन के अन्तर पर स्थित है। अधस्तन ज्योतिश्चक्र धरणितल से ७९० योजन की ऊंचाई पर गति करता है। इसी प्रकार सूर्यविमान धरणीतल से ८०० योजन की ऊंचाई पर, चन्द्र विमान ८८० योजन की | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 340 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरइ? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरइ? गोयमा! अभिई नक्खत्ते सव्वब्भंतरं चारं चरइ, मूलो सव्वबाहिरं चारं चरइ, भरणी सव्वहिट्ठिल्लगं चारं चरइ, साई सव्वुवरिल्लं चारं चरइ।
चंदविमाने णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! अद्धकविट्ठसंठाणसंठिए सव्वफालियामए अब्भुग्गयमूसियपहसिए एवं सव्वाइं नेयव्वाइं।
चंदविमाने णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं? केवइयं बाहल्लेणं? गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में अठ्ठाईस नक्षत्रों में कौन सा नक्षत्र सर्व मण्डलों के भीतर, कौन सा नक्षत्र समस्त मण्डलों के बाहर, कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के नीचे और कौन सा नक्षत्र सब मण्डलों के ऊपर होता हुआ गति करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सर्वाभ्यन्तर – मण्डल में से, मूल नक्षत्र सब मण्डलों के बाहर, भरणी नक्षत्र सब | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 341 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छप्पन्नं खलु भाए, विच्छिण्णं चंदमंडलं होइ ।
अट्ठावीसं भाए, बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ Translated Sutra: गौतम ! चन्द्रविमान ५६/६१ योजन चौड़ा, उतना ही लम्बा तथा २८/६१ योजन ऊंचा है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 344 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमानं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति–चंदविमानस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदहिधण गोखीर फेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ वट्ट पीवरसु-सिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पल-पत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय सुणमिय सुजाय अप्फोडिय नंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्ज जोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार, चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत, सुभग, जनप्रिय, सुप्रभ, शंख के मध्यभाग, जमे हुए दहीं, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिर, लष्ट, प्रकोष्ठक, वृत्त, पीवर, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, तीक्ष्ण, दंष्ट्राओं प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 348 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरियगहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे सव्वसिग्घगई? कयरे सव्वसिग्घ-गईतराए चेव? गोयमा! चंदेहिंतो सूरा सव्वसिग्घगई, सूरेहिंतो गहा सिग्घगई, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगई, नक्खत्तेहिंतो तारारूवा सिग्घगई, सव्व प्पगई, चंदा, सव्वसिग्घगई तारारूवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों में कौन सर्वशीघ्रगति हैं ? कौन सर्वशीघ्रतर गतियुक्त हैं ? गौतम ! चन्द्रों की अपेक्षा सूर्य, सूर्यों की अपेक्षा ग्रह, ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्र तथा नक्षत्रों की अपेक्षा तारे शीघ्र गतियुक्त हैं। इनमें चन्द्र सबसे अल्प या मन्दगतियुक्त हैं तथा तारे सबसे | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 349 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे सव्वमहिड्ढिया? कयरे सव्वप्पिड्ढिया? गोयमा! तारारूवेहिंतो नक्खत्ता महिड्ढिया, नक्खत्तेहिंतो गहा महिड्ढिया, गहेहिंतो सूरिया महिड्ढिया, सूरेहिंतो चंदा महिड्ढिया, सव्वप्पिड्ढिया तारारूवा, सव्वमहिड्ढिया चंदा। Translated Sutra: इन चन्द्रों, सूर्यों, ग्रहों, नक्षत्रों तथा तारों मैं कौन सर्वमहर्द्धिक है ? कौन सबसे अल्प ऋद्धिशाली हैं ? गौतम! तारों से नक्षत्र, नक्षत्रों से ग्रह, ग्रहों से सूर्य तथा सूर्यों से चन्द्र अधिक ऋद्धिशाली हैं। तारे सबसे कम ऋद्धिशाली तथा चन्द्र सबसे अधिक ऋद्धिशाली हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 350 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे ताराए य ताराए य केवइए, अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइए य निव्वाघाइए य। निव्वाघाइए जहन्नेणं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेणं दो गाउयाइं। वाघाइए जहन्नेणं दोन्नि छावट्ठे जोयणसए, उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साइं दोन्नि य बायाले जोयणसए तारारूवस्स य तारारूवस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में एक तारे से दूसरे तारे का कितना अन्तर है ? गौतम ! अन्तर दो प्रकार का है – व्याघातिक और निर्व्याघातिक। एक तारे से दूसरे तारे का निर्व्याघातिक अन्तर जघन्य ५०० धनुष तथा उत्कृष्ट २ गव्यूत है। एक तारे से दूसरे तारे का व्याघातिक अन्तर जघन्य २६६ योजन तथा उत्कृष्ट १२२४२ योजन है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 351 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिनाभा अच्चिमाली पभंकरा। तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नं देवीसहस्सं परिवारो विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी सहस्सा। सेत्तं तुडिए।
पभू णं भंते! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाने चंदाए रायहानीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धिं महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घण मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के इन्द्र, ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र के कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? गौतम ! चार – चन्द्रप्रभा, ज्योत्सनाभा, अर्चिमाली तथा प्रभंकरा। उनमें से एक – एक अग्रमहिषी का चार – चार हजार देवी – परिवार है। एक – एक अग्रमहिषी अन्य सहस्र देवियों की विकुर्वणा करने में समर्थ होती है। यों विकुर्वणा | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 355 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते! देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं।
चंदविमाने णं देवीणं जहन्नेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिमब्भहियं
सूरविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं।
सूरविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससएहिं अब्भहियं।
गहविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं।
गहविमाने देवीणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं।
नक्खत्तविमाने देवाणं जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति कितने काल की होती है ? गौतम ! चन्द्र – विमान में देवों की स्थिति जघन्य – १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम, देवियों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम तथा उत्कृष्ट – पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम होती है। सूर्य – विमान में देवों की स्थिति जघन्य १/४ पल्योपम | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 359 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! चंदिम सूरिया दुवे तुल्ला सव्वत्थोवा, नक्खत्ता संखेज्जगुणा, गहा संखेज्जगुणा, तारारूवा संखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा ताराओं में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य तथा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! चन्द्र और सूर्य तुल्य हैं। वे सबसे कम हैं। उनसे नक्षत्र संख्येय गुण हैं। नक्षत्रों से ग्रह संख्येय गुने हैं। ग्रहों से तारे संख्येय गुने हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 360 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहन्नपए वा उक्कोसपए वा केवइया तित्थयरा सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहण्णपए चत्तारि, उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइया चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नपए चत्तारि, उक्कोसपए तीसं चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
बलदेवा तत्तिया चेव जत्तिया चक्कवट्टी, वासुदेवावि तत्तिया चेव।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया णिहिरयणा सव्वग्गेणं पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि छलुत्तरा निहिरयणसया सव्वग्गेणं पन्नत्ता।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया निहिरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में जघन्य तथा उत्कृष्ट कितने तीर्थंकर हैं ? गौतम ! जघन्य चार तथा उत्कृष्ट चौंतीस तीर्थंकर होते हैं। जम्बूद्वीप में चक्रवर्ती कम से कम चार तथा अधिक से अधिक तीस होते हैं। जितने चक्रवर्ती होते हैं, उतने ही बलदेव होते हैं, वासुदेव भी उतने ही होते हैं। जम्बूद्वीप में निधि – रत्न ३०६ होते हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 362 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नपए अट्ठावीसं उक्कोसेणं दोन्नि दसुत्तरा एगिंदियरयणसया परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं उव्वेहेणं, केवइयं उड्ढं उच्च-त्तेणं, केवइयं सव्वग्गेणं पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस य सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्निय कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस य अंगुलाइं अद्धंगुलं च किंचिविसे-साहियं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, नवनउइं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न होते हैं ? २१० हैं। उसमें – कम से कम २८ तथा अधिक से अधिक २१० एकेन्द्रिय – रत्न यथाशीघ्र परिभोग में आते हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई, परिधि, भूमिगत गहराई, ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! जम्बूद्वीप की लम्बाई – चौड़ाई १,००,००० योजन तथा परिधि ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 363 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे किं पुढविपरिणामे? आउपरिणामे? जीवपरिणामे? पोग्गलपरिणामे? गोयमा! पुढविपरिणामेवि आउपरिणामेवि जीवपरिणामेवि पोग्गलपरिणामेवि।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए आउकाइयत्ताए तेउकाइयत्ताए वाउकाइयत्ताए वणस्सइकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी – परिणाम है, अप् – परिणाम है, जीव – परिणाम है, पुद्गलपरिणाम है ? गौतम! पृथ्वी, जल, जीव तथा पुद्गलपिण्डमय भी है। भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण, सर्वजीव, सर्वभूत, सर्वसत्त्व – ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 364 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे तत्थ-तत्थ देसे तहिं-तहिं बहवे जंबूरुक्खा जंबूवणा जंबूवनसंडा निच्चं कुसुमिया जाव पडिमंजरिवडेंसगधरा सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। जंबूए सुदंसणाए अनाढिए नामं देवे महिड्ढिए जाव पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– जंबुद्दीवे दीवे जंबुद्दीवे दीवे। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप ‘जम्बूद्वीप’ क्यों कहलाता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से आपूर्ण वन हैं, वन – खण्ड हैं – वे अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मञ्जरियों के रूप में मानो शिरोभूषण – धारण किये रहते हैं। वे अपनी श्री द्वारा अत्यन्त शोभित होते हुए स्थित हैं। | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Gujarati | 245 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति।
एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं। Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પ્રદેશો લવણસમુદ્રને પૃષ્ઠ છે ? હા, ગૌતમ ! સ્પૃષ્ટ છે. ભગવન્ ! શું તે જંબૂદ્વીપના પ્રદેશ કહેવાય કે લવણસમુદ્રના કહેવાય ? ગૌતમ ! તે પ્રદેશો જંબૂદ્વીપ દ્વીપના જ કહેવાય છે, લવણસમુદ્રના કહેવાતા નથી. એ પ્રમાણે લવણસમુદ્રના પ્રદેશો પણ જંબૂદ્વીપ દ્વીપને સ્પૃષ્ટ છે, એ પ્રમાણે કહેવું. ભગવન્ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Gujarati | 246 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खंडा जोयण वासा, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ ।
विजय द्दह सलिलाओ य, पिंडए होइ संगहणी ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૬. ખંડ, યોજન, વર્ષક્ષેત્ર, પર્વત, કૂટ, તીર્થ, શ્રેણી, વિજય, દ્રહ તથા નદીઓની આ સંગ્રહણી ગાથા છે. સૂત્ર– ૨૪૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્ર પ્રમાણ માત્ર ખંડ કરાતા ખંડગણિતથી કેટલા ખંડ થાય છે ? ગૌતમ ! ખંડ ગણિતથી ૧૯૦ ખંડ કહેલ છે. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપ યોજન ગણિતથી કેટલા યોજન પ્રમાણ કહેલ છે ? ગૌતમ ! સૂત્ર– | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 2 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिघसपह्मगोरे उग्ग-तवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबह्मचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउलतेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्न-कोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર, ગૌતમ ગોત્રથી હતા. તે સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાનવાળા યાવત્ ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણા કરે છે, વંદે છે – નમે છે, વાંદી – નમીને આમ કહ્યું – સૂત્ર– ૩. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ ક્યાં છે ? કેટલો મોટો છે ? તેનું સંસ્થાન શું છે ? તેના આકાર | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 6 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविह-पंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो पुक्खरिणीओ पव्वयगा घरगा मंडवगा पुढविसिलावट्टया य नेयव्वा।
तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति, पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणाणं कल्लाणं फलवित्तिविसेसं पच्चनुभवमाणा विहरंति।
तीसे णं जगईए उप्पिं पउमवरवेइयाए अंतो एत्थ णं महं एगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूनाइं Translated Sutra: તે વનખંડની અંદર બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગ કહેલ છે. તે કોઈ આલિંગપુષ્કર અર્થાત ચર્મ મઢેલા ઢોલના ઉપરના ભાગ જેવો સમતલ ભાગ છે. યાવત્ વિવિધ પંચવર્ણી મણિ વડે, તૃણ વડે ઉપશોભિત હોય, તે મણીઓ વર્ણ થી કૃષ્ણ યાવત શ્વેત છે. એ પ્રમાણે તે મનોજ્ઞ વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ, શબ્દથી યુક્ત છે. ત્યાં પુષ્કરિણી, પર્વતગૃહ, કાગળીગૃહ, મંડપ, પૃથ્વીશિલાપટ્ટક | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 7 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजए वेजयंते जयंते अपराजिते। एवं चत्तारि वि दारा सराय हाणिया भाणियव्वा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપના કેટલા દ્વારો કહેલા છે ? ગૌતમ ! ચાર દ્વારો કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત. એ પ્રમાણે ચારે પણ દ્વારો સરાહનીય કહેવા. સૂત્ર– ૮. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપનું વિજય નામે દ્વાર ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની પૂર્વે ૪૫,૦૦૦ યોજન જઈને જંબૂદ્વીપ દ્વીપના | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 9 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य केवइए अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! अउणासीइं जोयणसहस्साइं बावन्नं च जोयणाइं देसूणं च अद्धजोयणं दारस्स य दारस्स य अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના એક દ્વારથી બીજા દ્વારનું અબાધા અંતર કેટલું કહ્યું છે ? ગૌતમ !૭૯,૦૫૨ યોજન અને કંઈક ન્યૂન અર્ધ યોજન એક દ્વારથી બીજા દ્વારનું અબાધા અંતર કહેલ છે. સૂત્ર– ૧૦. જંબૂદ્વીપનું દ્વારાંતર કંઈક ન્યૂન ૭૯,૦૫૨ યોજનનું છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૯, ૧૦ | |||||||||
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वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 11 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते?
गोयमा! चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे नामं वासे पन्नत्ते– खाणुबहुले कंटकबहुले विसमबहुले दुग्गबहुले पव्वयबहुले पवायबहुले उज्झरबहुले निज्झरबहुले खुड्डाबहुले दरिबहुले नदीबहुले दहबहुले रुक्खबहुले गुच्छबहुले गुम्मबहुले लयाबहुले वल्लीबहुले अडवीबहुले सावयबहुये तेनबहुले तक्करबहुले डिंबबहुले डमरबहुले दुब्भिक्खबहुले दुक्कालबहुले पासंडबहुले किवणबहुले वणीमगबहुले Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરત નામે ક્ષેત્ર ક્યાં કહ્યું છે ? ગૌતમ ! લઘુ હિમવંત વર્ષધર પર્વતની દક્ષિણેથી દક્ષિણ લવણસમુદ્રની ઉત્તરેથી પૂર્વ લવણસમુદ્રની પશ્ચિમથી પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વે. અહીં જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરત નામે ક્ષેત્ર કહેલ છે. આ ભરતક્ષેત્રમાં સ્થાણુ, કંટક, વિષમ, દુર્ગ, પર્વત, પ્રવાદ, ઉજ્ઝર, નિર્ઝર, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 12 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धे भरहे नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, दाहिणलवणसमुद्दस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणद्धभरहे नामं वासे पन्नत्ते– पाईणपडीणायए उदीण-दाहिणविच्छिन्ने अद्धचंदसंठाणसंठिए तिहा लवणसमुद्दं पुट्ठे, गंगासिंधूहिं महानईहिं तिभागपविभत्ते दोन्नि अट्ठतीसे जोयणसए तिन्नि य एगूनवीसइभागे जोयणस्स विक्खंभेणं।
तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडीणायया दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठा– पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठा, Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં દક્ષિણાર્દ્ધ ભરત નામે ક્ષેત્ર ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ ! વૈતાઢ્ય પર્વતની દક્ષિણથી દક્ષિણી લવણસમુદ્રની ઉત્તરથી પૂર્વી લવણસમુદ્રની પશ્ચિમથી, પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વથી આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં દક્ષિણાર્દ્ધ ભરત નામે વર્ષક્ષેત્ર કહેલ છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબુ, ઉત્તર – દક્ષિણ વિસ્તીર્ણ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 13 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं Translated Sutra: જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય નામે પર્વત ક્યાં કહેલો છે ? ગૌતમ ! ઉત્તરાર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રની દક્ષિણે દક્ષિણ અર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રની ઉત્તરે, પૂર્વી લવણસમુદ્રની પશ્ચિમે, પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વે, આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય નામનો પર્વત કહેલો છે. તે વૈતાઢ્ય પર્વત પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબો, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 14 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कुडे पन्नत्ते?
गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं दाहिणड्ढभरहकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, छ सक्कोसाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे देसूनाइं पंच जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरि साइरेगाइं तिन्नि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले देसूनाइं वीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे देसूनाइं पन्नरस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाइं नव जोयणाइं परिक्खेवेणं, मूले विच्छिन्नेमज्झे संखित्ते Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રના વૈતાઢ્ય પર્વતે સિદ્ધાયતનકૂટ નામે કૂટ ક્યાં કહેલો છે ? ગૌતમ ! પૂર્વી લવણસમુદ્રની પશ્ચિમથી દાક્ષિણાર્દ્ધ ભરતકૂટના પૂર્વમાં આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય પર્વત ઉપર સિદ્ધાયતન કૂટ નામે કૂટ કહેલ છે. તે છ યોજન – એક કોશ ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે. તે મૂલમાં છ યોજન – | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 15 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेयड्ढपव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते?
गोयमा! खंडप्पवायकूडस्स पुरत्थिमेणं सिद्धायतनकूडस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं वेयड्ढ-पव्वए दाहिणड्ढभरहकूडे नामं कूडे पन्नत्ते, सिद्धायतनकूडप्पमाणसरिसे जाव–
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिए जाव पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पासायवडेंसगस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–पंच धनुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाहिं धनुसयाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई।
तीसे Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫. ભગવન્ ! વૈતાઢ્ય પર્વતમાં દાક્ષિણાર્દ્ધ ભરતકૂટ નામક કૂટ ક્યાં કહ્યો છે ? ગૌતમ ! ખંડપ્રપાત કૂટની પૂર્વમાં, સિદ્ધાયતન કૂટની પશ્ચિમે, અહીં વૈતાઢ્ય પર્વતનો દાક્ષિણાર્દ્ધ ભરતકૂટ નામનો કૂટ કહેલ છે. સિદ્ધાયતન કૂટ પ્રમાણ સદૃશ યાવત્ તે બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગના બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં એક મોટો પ્રાસાદાવતંસક | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 19 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए? गोयमा! वेयड्ढे णं पव्वए भरहं वासं दुहा विभयमाणे-विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा–दाहिणड्ढभरहं च उत्तरड्ढभरहं च। वेयड्ढगिरिकुमारे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठिईए परिव-सइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–वेयड्ढे पव्वए वेयड्ढे पव्वए।
अदुत्तरं च णं गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं न कयाइ न आसि न कयाइ न अत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯. ભગવન્ ! વૈતાઢ્ય પર્વતને વૈતાઢ્ય પર્વત કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! વૈતાઢ્ય પર્વત ભરતક્ષેત્રને બે ભાગમાં વિભક્ત કરતો રહેલ છે. તે આ પ્રમાણે – દાક્ષિણાર્દ્ધ ભરત, ઉત્તરાર્દ્ધ ભરત. અહીં મહર્દ્ધિક યાવત્ પલ્યોપમ સ્થિતિક વૈતાઢ્યકુમાર દેવ વસે છે. તેથી હે ગૌતમ! એમ કહેવાય છે – વૈતાઢ્ય પર્વત એ વૈતાઢ્ય પર્વત કહેવાય છે. અથવા | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 21 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसभकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते?
गोयमा! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं सिंधुकुंडस्स पुरत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्व-यस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्ढभरहे वासे उसहकूडे नामं पव्वए पन्नत्ते–अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोयणाइं परिक्खेवेणं, उवरिं साइरेगाइं दुवालस जोयणाइं परिक्खेवेणं, [पाठांतरं–मूले बारस Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ઉત્તરાર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રમાં ઋષભકૂટ નામક પર્વત કહેલ છે ? ગૌતમ ! ગંગાકૂટની પશ્ચિમે, સિંધુકૂટની પુર્વે લઘુહિમવંત વર્ષધર પર્વતની દક્ષિણી નિતંબમાં, અહીં જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ઉત્તરાર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રમાં ઋષભકૂટ નામે પર્વત કહેલ છે. તથા – આ ઋષભકૂટ આઠ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી, બે યોજન ઉદ્વેધથી, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 22 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–ओसप्पिणिकाले य उस्सप्पिणिकाले य।
ओसप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुसमसुसमाकाले सुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले दुस्समाकाले दुस्समदुस्समा-काले।
उस्सप्पिणिकाले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दुस्समदुस्समाको दुस्समाकाले दुस्समसुसमाकाले सुसमदुस्समाकाले सुसमाकाले सुसमसुसमाकाले।
एगमेगस्स णं भंते! मुहुत्तस्स केवइया उस्सासद्धा विआहिया? गोयमा! असंखेज्जाणं सम-याणं समुदय-समिइ-समागमेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં કેટલા કાળ કહેલ છે? ગૌતમ ! બે ભેદે કાળ કહેલ છે, તે આ – અવસર્પિણીકાળ અને ઉત્સર્પિણીકાળ. ભગવન્ ! અવસર્પિણીકાળ કેટલા ભેદે કહેલ છે ? ગૌતમ ! છ ભેદે કહેલ છે, તે આ – સુષમસુષમાકાળ, સુષમા કાળ, સુષમદુઃષમાકાળ, દુષમ સુષમાકાળ, દુઃષમાકાળ, દુઃષમ દુઃષમાકાળ. ભગવન્ ! ઉત્સર્પિણીકાળ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 32 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे होत्था? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहानामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव नानाविधपंचवण्णेहिं तणेहि य मणीहि य उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं जाव सुक्किलेहिं। एवं वण्णो गंधो फासो सद्दो य तणाण य भाणिअव्वो जाव तत्थ णं बहवे मनुस्सा मनुस्सीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति हसंति रमंति ललंति।
तीसे णं समाए भरहे वासे बहवे उद्दाला कोद्दाला मोद्दाला कयमाला नट्टमाला दंतमाला नागमाला सिंगमाला संखमाला सेयमाला नामं दुमगणा पन्नत्ता, कुस-विकुस-विसुद्धरुक्खमूला Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં આ અવસર્પિણીમાં સુષમ સુષમા નામે પહેલા આરામાં ઉત્તમ કાષ્ઠા પ્રાપ્ત ભરતક્ષેત્રના કેવા સ્વરૂપે આચાર – ભાવ – પ્રત્યવતાર છે ? ગૌતમ ! બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગ છે. જેમ કોઈ આલિંગપુષ્કર (ચામડાથી મઢેલો ઢોલ) સમતલ અને રમણીય હોય યાવત્ વિવિધ પંચવર્ણી મણિ વડે અને તૃણ – મણિથી ઉપશોભિત | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 34 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मनुयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! तेणं मनुया सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा जाव लक्खण-वंजण-गुणोववेया सुजाय-सुविभत्त-संगयंगा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मणुईणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! ताओ णं मणुईओ सुजायसव्वंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ताओ अइकंत-विसप्पमाणमउय-सुकुमाल-कुम्मसंठिय-विसिट्ठचलणाओ उज्जु-मउय पीवर-सुसाहयंगुलीओ अब्भुन्नय-रइय-तलिण-तंब सुइ निद्धनक्खा रोमरहिय-वट्ट-लट्टसंठिय-अजहण्ण-पसत्थलक्खण-अक्कोप्प-जंघजुयला सुनिम्मिय-सुगूढसुजाणू मंसलसुबद्धसंधीओ कयलीखंभाइरेकसंठिय-निव्वण-सुकुमाल-मउय-मंसलअविरल-समसंहियसुजायवट्टपीवरनिरंतरोरू Translated Sutra: ભગવન્ ! તે આરામાં – સમયગાળામાં ભરતક્ષેત્રમાં મનુષ્યના કેવા સ્વરૂપના આકાર ભાવ પ્રત્યવતાર અર્થાત મનુષ્ય (પુરુષનું) વર્ણન કહેલ છે ? ગૌતમ ! તે માનુષીઓ સુજાત સર્વાંગસુંદરી, પ્રધાનમહિલા ગુણો વડે યુક્ત હોય છે. તેના બંને ચરણો અતિ સુંદર હોય છે. વિશિષ્ટ પ્રમાણોપેત હોય છે.તે અતિ સુકોમળ હોય, કાચબા જેવા આકારે તે ચરણો હોય, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 35 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते मनुआणं केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ?
गोयमा! अट्ठमभत्तस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ पुढवी पुप्फफलाहारा णं ते मनुआ पन्नत्ता समणाउसो।
तीसे णं भंते! पुढवीए केरिसए आसाए पन्नत्ते? गोयमा! से जहानामए गुलेइ वा खंडेइ वा सक्कराइ वा मच्छंडियाइ वा पप्पडमोयएइ वा भिसेइ वा पुप्फुत्तराइ वा पउमुत्तराइ वा विजयाइ वा महाविजयाइ वा आकासियाइ वा आदंसियाइ वा आगासफलोवमाइ वा उग्गाइ वा अणोवमाइ वा, भवे एयारूवे? नो इणट्ठे समट्ठे। सा णं पुढवी इत्तो इट्ठतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुन्नतरिया चेव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! पुप्फफलाणं केरिसए आसाए पन्नत्ते? Translated Sutra: ભગવન્ ! તે મનુષ્યોને કેટલા કાળે આહારની ઇચ્છા ઉત્પન્ન થાય છે ? ગૌતમ ! તેમને અઠ્ઠમભક્ત એટલે કે ત્રણ દિવસ પછી આહારની ઇચ્છા ઉત્પન્ન થાય છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! તે મનુષ્યોને પૃથ્વી, પુષ્પ, ફળનો આહાર કહેલો છે. ભગવન્ ! તે પૃથ્વીનો આસ્વાદ કેવા પ્રકારે કહેલો છે ? ગૌતમ! જેમ કોઈ ગોળ કે ખાંડ કે શર્કરા કે મત્સંડી કે પર્પટ, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 36 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं भंते! मनुया तमाहारमाहारेत्ता कहिं वसहिं उवेंति? गोयमा! रुक्खगेहालया णं ते मनुया पन्नत्ता समणाउसो! ।
तेसि णं भंते! रुक्खाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! कूडागारसंठिया पेच्छा च्छत्त-ज्झय थूभ तोरण गोपुर वेइया चोप्पालग अट्टालग पासाय हम्मिय गवक्ख वालग्गपोइया वलभीघरसंठिया, अन्ने इत्थ बहवे वरभवनविसिट्ठसंठाण-संठिया दुमगणा सुहसीयलच्छाया पन्नत्ता समणाउसो! । Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬. ભગવન્ ! તે મનુષ્યો તે આહારને કરતા કઈ વસતિમાં વસે છે ? ગૌતમ ! તે મનુષ્યો વૃક્ષરૂપ ઘરમાં રહેનારા છે, તેમ હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! કહેલ છે. ભગવન્ ! તે વૃક્ષોનો કેવા પ્રકારે આકાર ભાવ પ્રત્યવતાર કહેલો છે ? ગૌતમ ! કૂડાગાર સંસ્થિત, પ્રેક્ષાગૃહ, છત્ર, ધ્વજ, સ્તૂપ, તોરણ, ગોપુર, વેદિકા, ચોપ્ફાલ, અટ્ટાલિકા, પ્રાસાદ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 38 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए भारहे वासे मनुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं।
तीसे णं समाए भरहे वासे मनुयाणं सरीरा केवइयं उच्चत्तेणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं देसूनाइं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं।
ते णं भंते! मनुया किं संघयणी पन्नत्ता? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणी पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! मनुयाणं सरीरा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं मनुयाणं बेछप्पणा पिट्ठिकरंडगसया पन्नत्ता समणाउसो! ।
ते णं भंते! मनुया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! छम्मासावसेसाउया Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સમયે ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોની કેવી કાલ સ્થિતિ કહેલી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી દેશોન ત્રણ પલ્યોપમ, ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમ છે. ભગવન્ ! તે સમયે ભરતક્ષેત્રના મનુષ્યોના શરીરની કેટલી ઊંચાઈ કહેલી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી દેશોન ત્રણ ગાઉ અને ઉત્કૃષ્ટ પણ ત્રણ ગાઉ. ભગવન્ ! તે મનુષ્યો કેવા સંઘયણવાળા કહ્યા છે ? ગૌતમ ! વજ્રઋષભનારાચ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 39 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए चउहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं सुसमा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे Translated Sutra: તે સમયે – (જ્યારે પ્રથમ આરો) ચાર કોડાકોડી સાગરોપમનો કાળ વીતી ગયા પછી અનંતા વર્ણપર્યાય, અનંતા ગંધપર્યાય, અનંતા રસપર્યાય, અનંતા સ્પર્શપર્યાય, અનંતા સંઘયણ પર્યાય, અનંતા સંસ્થાન પર્યાય, અનંતા ઉચ્ચત્વ પર્યાય, અનંતા આયુ પર્યાય, અનંતા ગુરુલઘુ અને અગુરુલઘુ પર્યાય, અનંતા ઉત્થાન – કર્મ – બલ – વીર્ય – પુરુષકાર પરાક્રમ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 40 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे एत्थ णं सुसमदुस्समा नामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
सा णं समा तिहा विभज्जइ–पढमे तिभाए, मज्झिमे तिभाए, पच्छिमे तिभाए।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे Translated Sutra: બીજા આરાનો ત્રણ કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ વીત્યા પછી અનંતા વર્ણ પર્યાયો યાવત્ અનંતગુણ પરિહાનિથી ઘટતા – ઘટતા હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! આ સુષમ દુઃષમા કાળ શરૂ થયો. તે ત્રીજો. આરો ત્રણ ભેદે છે – પહેલાં ત્રિભાગ, વચલા ત્રીજા ભાગ અને છેલ્લા ત્રિભાગ. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપના આ અવસર્પિણીના સુષમાદુઃષમા આરાના પહેલા અને વચલા ત્રિભાગમાં | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 47 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमप-ज्जवेहिं अनंतगुणपरिहाणीए० परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिवज्जिंसु समणाउसो! ।
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭. ત્રીજા આરાનો બે કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ વીત્યા પછી અનંત વર્ણ પર્યાયોથી યાવત્ અનંત ઉત્થાન કર્મ યાવત્ હ્રાસ થતા થતા આ દુષમસુષમા નામક આરાનો હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! આરંભ થયો. ભગવન્ ! તે સમયમાં ભરતક્ષેત્રના કેવા પ્રકારના આકારભાવ પ્રત્યાવતાર કહેલા છે ? ગૌતમ ! બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગ કહેલ છે, જેમ કોઈ આલિંગપુષ્કર | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले वीइक्कंते आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सावणबहुलपडिवए बालवकरणंसि अभीइनक्खत्ते चोद्ददसपढमसमये अनंतेहिं वण्णपज्जवेहिं अनंतेहिं गंधपज्जवेहिं अनंतेहिं रसपज्जवेहिं अनंतेहिं फासपज्जवेहिं अनंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अनंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अनंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहिं अनंतेहिं आउपज्जवेहिं अनंतेहिं गरुयलहुय-पज्जवेहिं अनंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहिं अनंतेहिं उट्ठाण कम्म बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कम-पज्जवेहिं अनंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढेमाणे-परिवड्ढेमाणे, एत्थ णं दूसमदूसमाणामं समा काले पडि-वज्जिस्सइ समणाउसो!।
तीसे णं भंते! Translated Sutra: તે છઠ્ઠા આરાના ૨૧,૦૦૦ વર્ષનો કાળ વીત્યા પછી આગામી ઉત્સર્પિણીમાં શ્રાવણ માસના કૃષ્ણ પક્ષની એકમે, બાલવકરણમાં અભિજિત નક્ષત્રમાં ચૌદશમાં કાળના પહેલા સમયમાં અનંત વર્ણપર્યાયો યાવત્ અનંતગુણની પરિવૃદ્ધિથી વૃદ્ધિ પામતા – પામતા આ દુષમદુષમા નામનો આરો – સમયકાળ હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! પ્રાપ્ત થશે. ભગવન્ ! તે આરામાં | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 52 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते मनुया भरहं वासं परूढरुक्ख गुच्छ गुम्म लय वल्लि तण पव्वय हरिय ओसहीयं उवचियतय पत्त पवालंकुर पुप्फ फलसमुइयं सुहोवभोगं जायं चावि पासिहिंति, पासित्ता बिलेहिंतो निद्धाइस्संति, निद्धाइत्ता हट्ठतुट्ठा अन्नमन्नं सद्दाविस्संति, सद्दावित्ता एवं वदिस्संति–जाते णं देवानुप्पिया! भरहे वासे परूढरुक्ख गुच्छ गुम्म लय वल्लि तण पव्वय हरिय ओसहीए उवचियतय पत्त पवालंकुर पुप्फ फलसमुइए सुहोवभोगे, तं जे णं देवानुप्पिया! अम्हं केइ अज्जप्पभिइ असुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ, से णं अनेगाहिं छायाहिं वज्जणिज्जेत्तिकट्टु संठितिं ठवेस्संति, ठवेत्ता भरहे वासे सुहंसुहेणं अभिरममाणा-अभिरममाणा Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ત્યારે મનુષ્યો ભરતક્ષેત્રને વૃદ્ધિ પામેલ વૃક્ષ, ગુચ્છ, ગુલ્મ, વલ્લિ, લતા, તૃણ, પર્વક, હરિત, ઔષધિથી ઉપચિત ત્વચા, પત્ર, પ્રવાલ, પલ્લવ, અંકુર, પુષ્પ, ફળ સમુદિત અને સુખોપભોગ્ય થયેલું જોશે. જોઈને બિલોમાંથી શીઘ્રતાથી નીકળશે. નીકળીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ થઈ એકબીજાને બોલાવશે. એકબીજાને બોલાવીને તે મનુષ્યો પરસ્પર. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 54 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चई–भरहे वासे? भरहे वासे? गोयमा! भरहे णं वासे वेयड्ढस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दुसत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, लवणसमुद्दस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोयणसयं एगारस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स अबाहाए, गंगाए महानईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महानईए पुरत्थिमेणं, दाहिणड्ढभरहमज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं विनीया नामं रायहानी पन्नत्ता–पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणविच्छिण्णा, दुवालस-जोयणायामा नवजोयणविच्छिण्णा धनवइमतिनिम्माया चामीकरपागारा नानामणिपंचवण्णकवि- सीसगपरिमंडियाभिरामा अलकापुरीसंकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं Translated Sutra: ભગવન્ ! ભરતક્ષેત્રનું ભરતક્ષેત્ર નામ કયા કારણથી છે ? ગૌતમ ! ભરતક્ષેત્ર, વૈતાઢ્ય પર્વતની દક્ષિણથી ૧૧૪ – ૧૧/૧૯ યોજન અબાધાથી, લવણસમુદ્રની ઉત્તરથી ૧૧૪ – ૧૧/૧૯ યોજન અબાધાથી, ગંગા મહાનદીથી પશ્ચિમે અને સિંધુ મહાનદીથી પૂર્વે દક્ષિણાર્દ્ધ ભરતના મધ્યમ ત્રિભાગના બહુમધ્ય દેશભાગમાં વિનીતા રાજધાની કહી છે. તે પૂર્વ – | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 79 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं तिमिसगुहाए बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ नामं दुवे महानईओ पन्नत्ताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरत्थिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पवूढाओ समाणीओ पच्चत्थि-मेणं सिंधुं महानइं समप्पेंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–उम्मुग्ग-णिमुग्गजलाओ महानईओ? गोयमा! जण्णं उम्मुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं उम्मुग्गजला महानई तिक्खुत्तो आहुणिय-आहुणिय एगंते थलंसि एडेइ। जण्णं निमुग्गजलाए महानईए तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करा वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मनुस्से वा पक्खिप्पइ, तण्णं निमुग्गजला Translated Sutra: તે તમિસ્રા ગુફાના બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં ઉન્મગ્નજલા અને નિમગ્નજલા નામે બે મહાનદીઓ કહી છે. જે તમિસ્રા ગુફાના પૂર્વના ભીંત પ્રદેશથી નીકળી, પશ્ચિમ ભીંત પ્રદેશે થઈને સિંધુ મહાનદીને મળે છે. ભગવન્ ! આ નદીઓને ઉન્મગ્નજલા અને નિમગ્નજલા એમ કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! જે ઉન્મગ્નજલા મહાનદીમાં તૃણ, પત્ર, કાષ્ઠ, શર્કર, અશ્વ, રથ, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 126 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहे य एत्थ देवे महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महासोक्खे महानुभागे। पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–भरहे वासे भरहे वासे।
अदुत्तरं च णं गोयमा! भरहस्स वासस्स सासए नामधेज्जे पन्नत्ते–जं ण कयाइ ण आसि ण कयाइ नत्थि ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवइ य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे भरहे वासे। Translated Sutra: અહીં ભરતક્ષેત્રમાં મહર્દ્ધિક, મહાદ્યુતિક યાવત્ પલ્યોપમ સ્થિતિક દેવ વસે છે, તેથી હે ગૌતમ! તે ભરતક્ષેત્ર કહેવાય છે. અથવા હે ગૌતમ! ભરતક્ષેત્રનું શાશ્વત નામ કહેલ છે. જે કદી ન હતું – નથી કે નહીં હોય એમ નથી પણ હતું – છે અને રહેશે. તે ધ્રુવ, નિયત, શાશ્વત, અક્ષય, અવ્યય, અવસ્થિત, નિત્ય ભરતક્ષેત્ર છે. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 127 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे चुल्लहिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! हेमवयस्स वासस्स दाहिणेणं, भरहस्स वासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे चुल्ल-हिमवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थि-मिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, एगं जोयणसयं उड्ढं उच्चत्तेणं, पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, एगं जोयणसहस्सं बावन्नं च जोयणाइं दुवालस य एगूनवीसइभाए जोयणस्स Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં લઘુહિમવંત નામક વર્ષધર પર્વત ક્યાં કહ્યો છે ? ગૌતમ ! હેમવંત વર્ષક્ષેત્રની દક્ષિણમાં, ભરત ક્ષેત્રની ઉત્તરમાં, પૂર્વ લવણસમુદ્રની પશ્ચિમે, પશ્ચિમ લવણ સમુદ્રની પૂર્વે આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં લઘુ હિમવંત નામે વર્ષધર પર્વત કહ્યો છે. આ પર્વત પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબો, ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળો છે. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 128 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एक्के महं पउमद्दहे नामं दहे पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेएक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले वइरामयपासाणे सुहोतारे सुउत्तारे णाणामणितित्थ बद्धे वइरतले सुवण्ण सुज्झ रययवालुयाए वेरुलियमणिफालियपडल पच्चोयडे वट्टे समतीरे अनुपुव्वसुजायवप्प गंभीरसीयलजले संछन्नपत्तभिसमुणाले बहुउप्पल कुमुय नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय महापोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्तपप्फुल्लकेसरोवचिए अच्छविमलपत्थसलिल-पुण्णे परिहत्थभमंतमच्छकच्छभ अनेगसउणगणमिहुणपविचरिय Translated Sutra: તેના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગના બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં એક મોટું પદ્મદ્રહ નામે દ્રહ કહેલ છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબુ, ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું છે. તે ૧૦૦૦ યોજન લાંબુ, ૫૦૦ યોજન પહોળુ, ૧૦ યોજન ઊંડુ, સ્વચ્છ, શ્લક્ષ્ણ, રજતમય તટવાળુ યાવત્ પ્રાસાદીય યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે એક પદ્મવર વેદિકા અને એક વનખંડથી ચોતરથી વીંટાયેલ છે. | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 129 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ।
गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा।
गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं Translated Sutra: તે પદ્મદ્રહના પૂર્વના તોરણથી ગંગા મહાનદી નીકળી પૂર્વ અભિમુખ ૫૦૦ યોજન પર્વતમાં વહીને ગંગાવર્તકૂટે આવર્ત્ત કરીને ૫૨૩ યોજન અને યોજનના ૩/૧૯ ભાગ દાક્ષિણાભિમુખી પર્વતમાં ગંગા મોટા ઘટમુખથી નીકળતી, મુક્તાવલી હાર સંસ્થિત, સાતિરેક સો યોજનના પ્રપાતથી પડે છે. ગંગા મહાનદી જ્યાંથી પ્રવર્તે છે, ત્યાં એક મોટી જીહ્વિકા | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 130 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चुल्लहिमवंते णं भंते! वासहरपव्वए कइ कूडा पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारस कूडा पन्नत्ता, तं जहा–सिद्धायतनकूडे चुल्लहिमवंतकूडे भरहकूडे इलादेवीकूडे गंगाकूडे सिरिकूडे रोहियंसकूडे सिंधुकूडे सूरादेवीकूडे हेमवयकूडे वेसमणकूडे।
कहि णं भंते! चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते? गोयमा! पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतकूडस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सिद्धायतनकूडे नामं कूडे पन्नत्ते–पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले पंचजोयणसयाइं विक्खंभेणं, मज्झे तिन्नि य पण्णत्तरे जोयणसए विक्खंभेणं, उप्पिं अड्ढाइज्जे जोयणसए विक्खंभेणं, मूले Translated Sutra: ભગવન્ ! લઘુ હિમવંત વર્ષધર પર્વતના કેટલા કૂટ કહેલા છે ? ગૌતમ! ૧૧ – કૂટો કહ્યા છે. તે આ – સિદ્ધાયતન, લઘુહિમવંત, ભરત, ઈલાદેવી, ગંગાદેવી, શ્રી, રોહીતાંશ, સિંધુદેવી, સુરદેવી, હેમવત અને વૈશ્રમણ – કૂટ. ભગવન્ ! લઘુહિમવંત વર્ષધર પર્વતમાં સિદ્ધાયતન નામક કૂટ ક્યાં કહ્યો છે ? ગૌતમ! પૂર્વી લવણસમુદ્રના પશ્ચિમે, લઘુહિમવંત કૂટની | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 131 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! महाहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेमवए नामं वासे पन्नत्ते–
पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए दुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे– पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, दोन्नि य जोयणसहस्साइं एगं च पंचुत्तरं जोयणसयं पंच य एगूनवीसइभाए जोयणस्स विक्खं-भेणं। तस्स बाहा पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં હેમવંત નામે ક્ષેત્ર ક્યાં કહેલ છે ? ગૌતમ ! મહાહિમવંત વર્ષધર પર્વતની દક્ષિણે, લઘુ – હિમવંત વર્ષધર પર્વતની ઉત્તરે, પૂર્વ લવણસમુદ્રની પશ્ચિમે, પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વે, આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં હેમવંત ક્ષેત્ર કહેલ છે. આ ક્ષેત્ર પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબુ, ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, પલ્યંક સંસ્થાન |