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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-११ मार्ग

Hindi 515 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जेसिं तं उवकप्पेंति ‘अन्नं पाणं’ तहाविहं । तेसिं लाभंतरायं ति तम्हा नत्थि त्ति नो वए ॥

Translated Sutra: जिनको देने के लिए पूर्वोक्त अन्नपान बताया जाता है उसमें लाभान्तराय है अतः पुण्य नहीं है – यह न कहे।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१४ ग्रंथ

Hindi 591 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] णेता जहा अंधकारंसि राओ मग्गं न जानाति अपस्समाणे । से सुरियस्सा अब्भुग्गमेणं मग्गं वियानाति पगासितंसि ॥

Translated Sutra: जैसे मार्गदर्शक नेता भी रात्रि के अंधकार में न देख पाने के कारण मार्ग नहीं जानता है पर वही सूर्योदय होने पर प्रकाशित मार्ग को जान लेता है।वैसे ही अपुष्टधर्मी सेध अबुद्ध होने के कारण धर्म नहीं जानता है वही साधु जिनवचन से कोविद बन जाता है जैसे सूर्योदय होने पर नेता चक्षु द्वारा देख लेता है। सूत्र – ५९१, ५९२
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१४ ग्रंथ

Hindi 592 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु सेहे वि अपुट्ठधम्मे धम्मं न जानाति अबुज्झमाणे । से कोविए जिनवयणेन पच्छा सूरोदए पासइ चक्खुणेव ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५९१
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 641 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा –आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राय भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, ‘नागा नागपुत्ता’, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता, पसत्थारो पसत्थपुत्ता, सेणावई सेणावइपुत्ता। तेसिं

Translated Sutra: इस मनुष्य लोक में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में उत्पन्न कईं प्रकार के मनुष्य होते हैं, जैसे कि – उन मनुष्यों में कईं आर्य होते हैं अथवा कईं अनार्य होते हैं, कईं उच्चगोत्रीय होते हैं, कईं नीचगोत्रीय। उनमें से कोई भीमकाय होता है, कईं ठिगने कद के होते हैं। कोई सुन्दर वर्ण वाले होते हैं, तो कोई बूरे वर्ण
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 642 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: पूर्वोक्त प्रथम पुरुष से भिन्न दूसरा पुरुष पञ्चमहाभूतिक कहलाता है। इस मनुष्यलोक की पूर्व आदि दिशाओं में मनुष्य रहते हैं। वे क्रमशः नाना रूपों में मनुष्यलोक में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि – कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य। यावत्‌ कोई कुरूप आदि होते हैं। उन मनुष्यों में से कोई एक महान पुरुष राजा होता है। यावत्‌
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 645 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: से बेमि–पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाणि भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तेसिं च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति, तं जहा–‘अप्पयरा वा भुज्जयरा’ वा। तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया। सतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। असतो वा वि एगे नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया। जे ते सतो

Translated Sutra: मैं ऐसा कहता हूँ कि पूर्व आदि चारों दिशाओं में नाना प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं, जैसे कि कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य होते हैं, यावत्‌ कोई कुरूप। उनके पास खेत और मकान आदि होते हैं, उनके अपने जन तथा जनपद परिगृहीत होते हैं, जैसे कि किसी का परिग्रह थोड़ा और किसी का अधिक। इनमें से कोई पुरुष पूर्वोक्त कुलों में
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 647 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहा–पुढवीकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए। से जहानामए मम असायं दंडेन वा अट्ठीन वा मुट्ठीन वा लेलुणा वा कवालेन वा आउडिज्जमाणस्स वा हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा ‘किलामिज्जमाणस्स वा उद्दविज्जमाणस्स वा’ जाव लोमुक्खणणमा-यमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि– इच्चेवं जाण। सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेन वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेन वा आउडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा ताडिज्जमाणा वा परिताविज्जमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उद्दविज्जमाणा

Translated Sutra: सर्वज्ञ भगवान तीर्थंकर देव ने षट्‌जीवनिकायों को कर्मबन्ध के हेतु बताए हैं। जैसे कि – पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक। जैसे कोई व्यक्ति मुझे डंडे से, हड्डी से, मुक्के से, ढेले या पथ्थर से, अथवा घड़े के फूटे हुए ठीकरे आदि से मारता है, अथवा चाबुक आदि से पीटता है, अथवा अंगुली दिखाकर धमकाता है, या डाँटता है, अथवा ताड़न करता
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 667 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति– महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया ‘अधम्माणुया अधम्मिट्ठा’ अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदाचारा अधम्मेन चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, ‘हण’ ‘छिंद’ ‘भिंद’ विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पानाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ प्रथम स्थान जो अधर्मपक्ष है, उसका विश्लेषणपूर्वक विचार किया जाता है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं, जो गृहस्थ होते हैं, जिनकी बड़ी – बड़ी इच्छाएं होती हैं, जो महारम्भी एवं महापरिग्रही होते हैं। वे अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने या अधर्म की अनुज्ञा देने वाले, अधर्मिष्ठ,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-३ आहार परिज्ञा

Hindi 688 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–नानाविहाणं मणुस्साणं, तं जहा–कम्मभूमगाणं अकम्मभूमगाणं अंतरदीवगाणं आरियाणं मिलक्खूणं। तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणिए, एत्थ णं मेहुणवत्तियाए नामं संजोगे समुप्पज्जइ। ते दुहओ वि सिणेहिं संचिणंति। तत्थ णं जीवा इत्थित्ताए पुरिसत्ताए नपुंसगत्ताए विउट्टंति। ‘ते जीवा माउओयं’ पिउसुक्कं तदुभय-संसट्ठं कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारमाहारेंति। तओ पच्छा जं से माया नाना-विहाओ रसवईओ आहारमाहारेति, तओ एगदेसेणं ओयमाहारेंति। अनुपुव्वेणं वुड्ढा पलिपागमणुपवण्णा, तओ कायाओ अभिणि-वट्टमाणा इत्थिं वेगया जणयंति, पुरिसं

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ श्रीतीर्थंकरदेव ने मनुष्यों का स्वरूप बतलाया है। जैसे कि – कईं मनुष्य कर्मभूमि में उत्पन्न होते हैं, कईं अकर्मभूमि में और कईं अन्तर्द्वीपों में उत्पन्न होते हैं। कोई आर्य है, कोई म्लेच्छ। उन जीवों की उत्पत्ति अपने अपने बीज और अपने – अपने अवकाश के अनुसार होती है। इस उत्पत्ति के कारणरूप पूर्वकर्मनिर्मित
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ प्रत्याख्यान

Hindi 703 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिट्ठंते य असण्णिदिट्ठंते य। से किं तं सण्णिदिट्ठंते? सण्णिदिट्ठंते– जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।एतेसि णं छज्जीवणिकाए पडुच्च, पइण्णं कुज्जा? से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से ‘य तेणं’ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ। से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं

Translated Sutra: आचार्य ने कहा – इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने दो दृष्टान्त कहे हैं, एक संज्ञिदृष्टान्त और दूसरा असंज्ञिदृष्टान्त। (प्रश्न – ) यह संज्ञी का दृष्टान्त क्या है ? (उत्तर – ) संज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – जो ये प्रत्यक्ष दृष्टि – गोचर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ आचार श्रुत

Hindi 737 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेएहिं ठाणेहिं जिणे दिट्ठेहिं संजए । धारयंते उ अप्पाणं आमोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥

Translated Sutra: इस प्रकार इस अध्ययन में जिन भगवान द्वारा उपदिष्ट या उपलब्ध स्थानों के द्वारा अपने आपको संयम में स्थापित करता हुआ साधु मोक्ष प्राप्त होने तक (पंचाचार पालन में) प्रगति करे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-६ आर्द्रकीय

Hindi 752 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आगंतगारे आरामगारे समणे उ भीते न उवेइ वासं । दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊनातिरित्ता य लवालवा य ॥

Translated Sutra: (गोशालक ने आर्द्रकमुनि से कहा – ) तुम्हारे श्रमण (महावीर) अत्यन्त भीरु हैं, इसीलिए पथिकागारों में तथा आरामगृहों में निवास नहीं करते, उक्त स्थानों में बहुत – से मनुष्य ठहरते हैं, जिनमें कोई कम या कोई अधिक वाचाल होता है, कोई मौनी होते हैं। कईं मेघावी, कईं शिक्षा प्राप्त, कईं बुद्धिमान औत्पात्तिकी आदि बुद्धियों
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 800 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–कयरे खलु आउसंतो! गोयमा! तुब्भे वयह तसपाणा तसा ‘आउ अन्नहा’? सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–आउसंतो! उदगा! जे तुब्भे वयह तसभूया पाणा तसा ते ‘वयं वदामो’ ‘तसा पाणा तसा’। जे वयं वयामो तसा पाणा तसा ते तुब्भे वदह तसभूया पाणा तसा। एए संति दुवे ठाणा तुल्ला एगट्ठा। किमाउसो! इमे भे सुप्पणीयतराए भवइ– तसभूया पाणा तसा? इमे भे दुप्पणीयतराए भवइ–तसा पाणा तसा? तओ एगमाउसो! पलिकोसह, एक्कं अभिणंदह। अयं पि ‘भे उवएसे’नो नेयाउए भवइ। भगवं च णं उदाहु–संतेगइया मणुस्सा भवंति, तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–णो खलु वयं संचाएमो मुंडा भवित्ता

Translated Sutra: उदक पेढ़ालपुत्र ने सद्‌भावयुक्त वचनपूर्वक भगवान गौतम से इस प्रकार कहा – ‘आयुष्मन्‌ गौतम ! वे प्राणी कौन – से हैं, जिन्हें आप त्रस कहते हैं ? आप त्रस प्राणी को ही त्रस कहते हैं, या किसी दूसरे को ?’ भगवान गौतम ने भी सद्‌वचनपूर्वक उदक पेढ़ालपुत्र से कहा – ‘‘आयुष्मन्‌ उदक ! जिन प्राणीयों को आप त्रसभूत कहते हैं, उन्हीं
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 802 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–आउसंतो! गोयमा! नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणो-वासगस्स ‘एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते’। कस्स णं तं हेउं? संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्च-माणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उवव-ण्णाणं ठाणमेयं धत्तं। सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–नो खलु आउसो! अस्माकं वत्तव्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं

Translated Sutra: (पुनः) उदक पेढ़ालपुत्र ने वादपूर्वक भगवान गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा – आयुष्मन्‌ गौतम ! (मेरी समझ में) जीव की कोई भी पर्याय ऐसी नहीं है जिसे दण्ड न देकर श्रावक अपने एक भी प्राणी के प्राणातिपात से विरतिरूप प्रत्याख्यान को सफल कर सके ! उसका कारण क्या है ? (सूनिए) समस्त प्राणी परिवर्तनशील हैं, (इस कारण) कभी स्थावर प्राणी
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 804 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा? हंता उवसंकमेज्जा। ‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे? हंता आइक्खियव्वे। किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए

Translated Sutra: भगवान श्री गौतमस्वामी ने (पुनः) कहा – मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन्‌ निर्ग्रन्थो ! इस लोक में परिव्राजक अथवा परिव्राजिकाएं किन्हीं दूसरे तीर्थस्थानों से चलकर धर्मश्रवण के लिए क्या निर्ग्रन्थ साधुओं के पास आ सकती हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, आ सकती हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या उन व्यक्तियों को धर्मोपदेश
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 805 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] १. तत्थ आरेणं जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, ते तओ आउं विप्पजहंति, विप्प जहित्ता तत्थ आरेणं चेव जे तसा पाणा, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे निक्खित्ते, तेसु पच्चायंति तेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसावि वुच्चंति, ते महाकाया, ते चिरट्ठिइया। ते बहुतरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ। से महया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयस्स जं णं तुब्भे वा अण्णो वा एवं वयह– ‘नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते।’

Translated Sutra: (१) ऐसी स्थिति में (श्रमणोपासक के व्रतग्रहण के समय) स्वीकृत मर्यादा के (अन्दर) रहने वाले जो त्रस प्राणी हैं, जिनका उसने अपने व्रतग्रहण के समय से लेकर मृत्युपर्यन्त दण्ड देने का प्रत्याख्यान किया है, वे प्राणी अपनी आयु को छोड़कर श्रमणोपासक द्वारा गृहीत मर्यादा के अन्तर क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, तब भी श्रमणोपासक
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१४ ग्रंथ

Gujarati 592 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु सेहे वि अपुट्ठधम्मे धम्मं न जानाति अबुज्झमाणे । से कोविए जिनवयणेन पच्छा सूरोदए पासइ चक्खुणेव ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૧
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-४ यथावस्थित अर्थ प्ररुपण Gujarati 233 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवमेगे उ पासत्था पन्नवेंति अनारिया । इत्थीवसं गया बाला जिनसासनपरंमुहा

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩૨
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-९ धर्म

Gujarati 437 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कयरे धम्मे अक्खाए माहणेन मईमता? । अंजुं धम्मं जहातच्चं ‘जिनाणं तं सुणेह मे’ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩૭. શિષ્ય પ્રશ્ન કરે છે – મતિમાન ભગવંતે કેવા ધર્મનું કથન કરેલ છે ? તેનો ઉત્તર આપતા કહે છે – જિનવરોએ મને સરળ ધર્મ કહ્યો છે. તે ધર્મને તમે મારી પાસેથી સાંભળો – સૂત્ર– ૪૩૮. બ્રાહ્મણ, ક્ષત્રિય, વૈશ્ય, ચંડાલ, બુક્કસ, ઐષિક અર્થાત હસ્તિતાપસ કે કંદ અને મૂળ ખાનારા, વૈષિક અર્થાત માયા પ્રધાન કે શુદ્ર કે જે કોઈ આરંભમાં
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

मङ्गलं द्वाराणि

Hindi 1 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निज्जरियजरा-मरणं वंदित्ता जिनवरं महावीरं । वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥

Translated Sutra: जरा – मरण से मुक्त हुए ऐसे जिनेश्वर महावीर को प्रणाम कर के यह ‘तन्दुल वेयालिय’ पयन्ना को मैं कहूँगा।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Hindi 11 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कमीसिया जइया । तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिनिंदेहिं

Translated Sutra: उसे योनि के भीतर में आम की पेशी जैसी मांसपिंड़ होती है वो ऋतुकाल में फूटकर लहू के कण छोड़ती है। उलटे किए हुए कमल के आकार की वो योनि जब शुक्र मिश्रित होती है, तब वो जीव उत्पन्न करने लायक होती है। ऐसा जिनेन्द्र ने कहा है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

धर्मोपदेश एवं फलं

Hindi 58 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो वाससयं जीवइ सुही भोगे य भुंजई । तस्सावि सेविउं सेओ धम्मो य जिनदेसिओ

Translated Sutra: जो सुख से १०० साल जीता है और भोग को भुगतता है। उनके लिए भी जिनभाषित धर्म का सेवन श्रेयस्कर है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

धर्मोपदेश एवं फलं

Hindi 59 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं पुण सपच्चवाए जो नरो निच्चदुक्खिओ? । सुट्ठुयरं तेण कायव्वो धम्मो य जिनदेसिओ

Translated Sutra: जो हंमेशा दुःखी और कष्टदायक हालात में ही जीवन जीता है उन के लिए क्या उत्तम ? उस के लिए जिनेन्द्र द्वारा उपदेशित श्रेष्ठतर धर्म का पालन करना ही कर्तव्य है।
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

देहसंहननं आहारादि

Hindi 73 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं एवं अद्धत्तेवीसं तंदुलवाहे भुंजंतो अद्धछट्ठे मुग्गकुंभे भुंजइ, अद्धछट्ठे मुग्गकुंभे भुंजंतो चउवीसं णेहाढगसयाइं भुंजइ, चउवीसं णेहाढगसयाइं भुंजंतो छत्तीसं लवणपलसहस्साइं भुंजइ, छत्तीसं लवणपलसहस्साइं भुंजंतो छप्पडसाडगसयाइं नियंसेइ, दोमासिएणं परिअट्टएणं मासिएण वा परियट्टएणं बारस पडसाडगसयाइं नियंसेइ। एवामेव आउसो! वाससयाउयस्स सव्वं गणियं तुलियं मवियं नेह लवण भोयणऽच्छायणं पि एयं गणियपमाणं दुविहं भणियं महरिसीहिं जस्सऽत्थि तस्स गणिज्जइ, जस्स नत्थि तस्स किं गणिज्जइ?

Translated Sutra: इस तरह साड़े बाईस वाह तांदुल खानेवाला वह साड़े पाँच कुम्भ मुँग खाता है। मतलब २४०० आढक घी और तेल या ३६ हजार पल नमक खाता है। वो दो महिने के बाद कपड़े बदलता है, ६०० धोती पहनता है। एक महिने पर बदलने से १२०० धोती पहनता है। इस तरह हे आयुष्मन्‌ ! १०० साल की आयुवाले मानव के तेल, घी, नमक, खाना और कपड़े की गिनती या तोल – नाप है, यह
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

अनित्य, अशुचित्वादि

Hindi 99 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घुट्ठम्मि सयं मोहे जिणेहिं वरधम्मतित्थमग्गस्स । अत्ताणं च न याणह इह जाया कम्मभूमीए ॥

Translated Sutra: इस कर्मभूमि में उत्पन्न होकर भी किसी मानव मोह से वश होकर जिनेन्द्र के द्वारा प्रतिपादित धर्मतीर्थ समान श्रेष्ठ मार्ग और आत्मस्वरूप को नहीं जानता।
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

मङ्गलं द्वाराणि

Gujarati 1 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निज्जरियजरा-मरणं वंदित्ता जिनवरं महावीरं । वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥

Translated Sutra: જરા – મરણથી મુક્ત જિનેશ્વર મહાવીરને વાંદીને હું આ તંદુલવૈચારિક નામે પયન્નાને કહીશ.
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Gujarati 11 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोसायारं जोणी संपत्ता सुक्कमीसिया जइया । तइया जीवुववाए जोग्गा भणिया जिनिंदेहिं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

धर्मोपदेश एवं फलं

Gujarati 58 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो वाससयं जीवइ सुही भोगे य भुंजई । तस्सावि सेविउं सेओ धम्मो य जिनदेसिओ

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

धर्मोपदेश एवं फलं

Gujarati 59 Gatha Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं पुण सपच्चवाए जो नरो निच्चदुक्खिओ? । सुट्ठुयरं तेण कायव्वो धम्मो य जिनदेसिओ

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 16 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता

Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने तत्पश्चात्‌ दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। इस प्रकार श्रावक – प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल प्रयत्न तथा तपश्चरण से श्रमणोपासक आनन्द का शरीर सूख गया, शरीर की यावत्‌ उसके नाड़ियाँ दीखने लगीं। एक दिन आधी रात के बाद
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 17 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा निग्गया जाव पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कनगपुलगनिघस- पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते

Translated Sutra: उस काल वर्तमान – अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय भगवान महावीर समवसृत हुए। परिषद्‌ जुड़ी, धर्म सूनकर वापिस लौट गई। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान – संस्थित थे – कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 18 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ? हंता अत्थि। जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं

Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्त ने भगवान्‌ गौतम को आते हुए देखा। देखकर वह (यावत्‌) अत्यन्त प्रसन्न हुआ, भगवान गौतम को वन्दन – नमस्कार कर बोला – भगवन्‌ ! मैं घोर तपश्चर्या से इतना क्षीण हो गया हूँ कि नाड़ियाँ दीखने लगी हैं। इसलिए देवानुप्रिय के – आपके पास आने तथा चरणों में वन्दना करने में असमर्थ हूँ। अत एव प्रभो ! आप ही स्वेच्छापूर्वक,
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 31 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से चुलनीपिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमणोपासक चुलनीपिता ने आनन्द की तरह क्रमशः पहली, यावत्‌ ग्यारहवीं उपासक – प्रतिमा की यथाविधि आराधना की। श्रमणोपासक चुलनीपिता सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणप्रभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु – स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। महाविदेह
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ कुंडकोलिक

Hindi 38 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स

Translated Sutra: एक दिन श्रमणोपासक कुंडकोलिक दोपहर के समय अशोक – वाटिका में गया। पृथ्वी – शिलापट्टक पहुँचा। अपने नाम से अंकित अंगूठी और दुपट्टा उतारा। उन्हें पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा। श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – अनुरूप उपासना – रत हुआ। श्रमणोपासक कुंडकोलिक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 42 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोग-वणिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी– एहिइ णं देवानुप्पिया! कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्न-नाणदंसणधरे तीयप्पडुपन्नाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे

Translated Sutra: एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र दोपहर के समय अशोकवाटिका में गया, मंखलिपुत्र गोशालक के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप वहाँ उपासना – रत हुआ। आजीविकोपासक सकडालपुत्र के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। छोटी – छोटी घंटियों से युक्त उत्तम वस्त्र पहने हुए आकाश में अवस्थित उस देव ने आजीविको – पासक सकडालपुत्र से
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Hindi 47 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक सकडालपुत्र को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म – भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवा वर्ष चल रहा था, तब एक बार आधी रात के समय वह श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्मप्रज्ञप्ति के अनुरूप पोषधशाला में उपासनारत था। अर्ध – रात्रि में श्रमणोपासक सकडालपुत्र समक्ष एक देव प्रकट
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नंदिनीपिता

Hindi 57 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं नंदिनीपियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं नंदीनीपिया गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे,

Translated Sutra: जम्बू ! उस काल – उस समय – श्रावस्ती नगरी थी, कोष्ठक चैत्य था। जितशत्रु राजा था। श्रावस्ती नगरी में नन्दिनीपिता नामक समृद्धिशाली गाथापति निवास करता था। उसकी चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं घर की
Upasakdashang ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Gujarati 18 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ? हंता अत्थि। जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬
Upasakdashang ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से चुलनीपिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦
Upasakdashang ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ सद्दालपुत्र

Gujarati 47 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए

Translated Sutra: ત્યારે સદ્દાલપુત્રને ઘણા શીલ, વ્રત, વેરમણ યાવત્‌ ઉપાસના દ્વારા આત્માને ભાવિત કરતા ચૌદ વર્ષો વીત્યા, પંદરમાં વર્ષમાં વર્તતા, મધ્યરાત્રિ કાળે યાવત્‌ પૌષધશાળામાં ભગવંત મહાવીર પાસે ધર્મપ્રજ્ઞપ્તિ સ્વીકારીને વિચરે છે. ત્યારે, તેની પાસે એક દેવ આવ્યો. તે દેવે એક મોટી નીલોત્પલ યાવત્‌ તલવાર લઈને સદ્દાલપુત્રને
Upasakdashang ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नंदिनीपिता

Gujarati 57 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं नंदिनीपियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं नंदीनीपिया गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे,

Translated Sutra: નવમા અધ્યયનનો ઉત્ક્ષેપ કહેવો. હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે શ્રાવસ્તી નગરી હતી, કોષ્ઠક ચૈત્ય હતું, જિતશત્રુ રાજા હતો. તે શ્રાવસ્તી નગરીમાં નંદિનીપિતા નામે ધનાઢ્ય ગાથાપતિ હતો. તેના ચાર હિરણ્ય કોડી નિધાનમાં, ચાર હિરણ્ય કોડી વ્યાજે, ચાર હિરણ્ય કોડી ધન – ધાન્યાદિમાં રોકાયેલ હતા. દશ હજાર ગાયોનું એક એવા ચાર ગોકુળ હતા.
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 449 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह तायगो तत्थ मुनीण तेसिं तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयंति जहा न होई असुयाण लोगो ॥

Translated Sutra: यह सुनकर पिता ने कुमार – मुनियों की तपस्या में बाधा उत्पन्न करनेवाली यह बात कही की – पुत्रो ! वेदों के ज्ञाता कहते हैं – जिनको पुत्र नहीं होता है, उनकी गति नहीं होती है। हे पुत्रो, पहले वेदों का अध्ययन करो, ब्राह्मणों को भोजन दो और विवाह कर स्त्रियों के साथ भोग भोगो। अनन्तर पुत्रों को घर का भार सौंप कर अरण्यवासी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Hindi 538 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस धम्मे धुवे नियए सासए जिनदेसिए । सिद्धा सिज्झंति चनेन सिज्झिस्संति तहापरे ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: वह ब्रह्मचर्य – धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनोपदिष्ट है। इस धर्म के द्वारा अनेक साधक सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं, और भविष्य में भी होंगे। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 851 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह तेनेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिने । भगवं वद्धमाणो त्ति सव्वलोगम्मि विस्सुए ॥

Translated Sutra: उसी समय धर्म – तीर्थ के प्रवर्त्तक, जिन, भगवान्‌ वर्द्धमान थे, जो समग्र लोक में प्रख्यात थे। उन लोक – प्रदीप भगवान्‌ वर्द्धमान के विद्या और चारित्र के पारगामी, महान्‌ यशस्वी भगवान्‌ गौतम शिष्य थे। बारह अंगों के वेत्ता, प्रबुद्ध गौतम भी शिष्य – संघ से परिवृत ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 49 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इह खलु बावीसं परीसहा समणणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा। कयरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेजा? इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा, तं जहा– १. दिगिंछापरीसहे २. पिवासापरीसहे ३. सीयपरीसहे ४. उसिणपरीसहे ५. दंसमसयपरीसहे

Translated Sutra: आयुष्मन्‌ ! भगवान्‌ ने कहा है – श्रमण जीवन में बाईस परीषह होते हैं, जो कश्यप गोत्रीय श्रमण भगवान्‌ महावीर के द्वारा प्रवेदित हैं, जिन्हें सुनकर, जानकर, परिचित कर, पराजित कर, भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन करता हुआ मुनि, परीषहों से स्पृष्ट – होने पर विचलित नहीं होता। वे बाईस परीषह कौन से हैं ? वे बाईस परीषह इस प्रकार
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 55 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चरंतं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया । नाइवेलं मुनी गच्छे सोच्चाणं जिनसासनं

Translated Sutra: विरक्त और अनासक्त होकर विचरण करते हुए मुनि को शीतकाल में शीत का कष्ट होता ही है, फिर भी आत्मजयी जिनशासन को समझकर स्वाध्यायादि के प्राप्त काल का उल्लंघन न करे। शीत लगने पर मुनि ऐसा न सोचे कि ‘‘मेरे पास शीत – निवारण के योग्य साधन नहीं है। शरीर को ठण्ड से बचाने के लिए छवित्राण – वस्त्र भी नहीं हैं, तो मैं क्यों न
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 93 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि नूनं परे लोए इड्ढी वावि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिंतए ॥

Translated Sutra: ‘‘निश्चय ही परलोक नहीं है, तपस्वी की ऋद्धि भी नहीं है, मैं तो धर्म के नाम पर ठगा गया हूँ’’ – ‘‘पूर्व काल में जिन हुए थे, वर्तमान में हैं और भविष्य में होंगे’’ – ऐसा जो कहते हैं, वे झूठ बोलते हैं – भिक्षु ऐसा चिन्तन न करे। सूत्र – ९३, ९४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 94 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभू जिना अत्थि जिना अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिंतए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 149 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चीराजिनं नगिनिणं जडी-संघाडि-मुंडिणं । एयाणि वि न तायंति दुस्सीलं परियागयं ॥

Translated Sutra: दुराचारी साधु को वस्त्र, अजिन, नग्नत्व, जटा, गुदड़ी, शिरोमुंडन आदि बाह्याचार, नरकगति में जाने से नहीं बचा सकते। भिक्षावृत्ति से निर्वाह करनेवाला भी यदि दुःशील है तो वह नरक से मुक्त नहीं हो सकता है। भिक्षु हो अथवा गृहस्थ, यदि वह सुव्रती है, तो स्वर्ग में जाता है। सूत्र – १४९, १५०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ औरभ्रीय

Hindi 198 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेमायाहिं सिक्खाहिं जे नरा गिहिसुव्वया । उवेंति मानुसं जोणिं कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥

Translated Sutra: जो मनुष्य विविध परिमाणवाली शिक्षाओं द्वारा घर में रहते हुए भी सुव्रती हैं, वे मानुषी योनि में उत्पन्न होते हैं। क्योंकि प्राणी कर्मसत्य होते हैं – जिनकी शिक्षा विविध परिमाण वाली व्यापक है, जो घर में रहते हुए भी शील से सम्पन्न एवं उत्तरोत्तर गुणों से युक्त हैं, वे अदीन पुरुष मूलधनरूप मनुष्यत्व से आगे बढ़कर
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