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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं वलया।
से किं तं हरिया? हरिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: वे हरित (वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं। अद्यावरोह, व्युदान, हरितक, तान्दुलेयक, तृण, वस्तुल, पारक, मार्जार, पाती, बिल्वी, पाल्यक। दकपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक शक, माण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्लशाक और जीवान्तक। तथा – तुलसी, कृष्ण, उदार, फाणेयक, आर्यक, भुजनक, चोरक, दमनक, मरुचक, शतपुष्पी तथा इन्दीवर। * अन्य | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 81 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया। Translated Sutra: इस प्रकार उन प्रत्येकशरीर बादरवनस्पतिकायिक जीवों की प्रज्ञापना पूर्ण हुई। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 82 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया? साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: वे (पूर्वोक्त) साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। अवक, पनक, शैवाल, लोहिनी, स्निहूपुष्प, मिहूस्तिहू, हस्तिभागा, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिउण्डी, मुसुण्ढी। तथा – रुरु, कण्डुरिका, जीरु, क्षीरविराली; किट्टिका, हरिद्रा, शृंगबेर, आलू, मूला। कम्बू, कृष्णकटबू, मधुक, वलकी, मधुशृंगी, नीरूह, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 128 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेणु नल इक्खुवाडिय, भमास इखू य इक्खडेरंडे ।
करकर सुंठ विहंगु तणाण तह पव्वगाणं च ॥ Translated Sutra: वेणु, नल, इक्षुवाटिक, समासेक्षु, इक्कड, रंड, करकर, सूंठी, विहुंगु, तृणों तथा पर्ण वाली वनस्पतियों के जो – अक्षि, पर्व तथा बलिमोटक हों, वे सब एकजीवात्मक हैं। इनके पत्र प्रत्येकजीवी हैं, और इनके पुष्प अनेकजीवी हैं सूत्र – १२८, १२९ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२० अन्तक्रिया |
Hindi | 498 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं अनंतरागता अंतकिरियं करेंति? परंपरागया अंतकिरियं करेंति? गोयमा! अनंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागता वि अंतकिरियं करेंति। एवं रयणप्पभापुढविनेरइया वि जाव पंकप्पभापुढविनेरइया।
धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! पुच्छा। गोयमा! नो अनंतरागया अंतकिरियं करेंति, परंपरागया अंतकिरियं करेंति। एवं जाव अहेसत्तमापुढविनेरइया।
असुरकुमारा जाव थणियकुमारा पुढवि आउ वणस्सइकाइया य अनंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति। तेउ वाउ बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदिया नो अनंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति। सेसा अनंतरागया Translated Sutra: भगवन् ! नारक क्या अनन्तरागत अन्तक्रिया करते हैं, अथवा परम्परागत ? गौतम ! दोनों। इसी प्रकार रत्नप्रभा से पंकप्रभा नरकभूमि के नारकों तक की अन्तक्रिया में समझना। धूमप्रभापृथ्वी के नारक ? हे गौतम ! (वे) परम्परागत अन्तक्रिया करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों में जानना। असुरकुमार से स्तनितकुमार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२० अन्तक्रिया |
Hindi | 499 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरागया णं भंते! नेरइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस। रयणप्पभापुढविनेरइया वि एवं चेव जाव वालुयप्पभापुढविनेरइया।
अनंतरागया णं भंते! पंकप्पभापुढविनेरइया एगसमएणं केवतिया अंतकिरियं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं चत्तारि।
अनंतरागया णं भंते! असुरकुमारा एगसमएणं केवइया अंतकिरियं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं दस।
अनंतरागयाओ णं भंते! असुरकुमारीओ एगसमएणं केवतियाओ अंतकिरियं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को [क्का?] वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं पंच। Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरागत कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट दस। रत्नप्रभापृथ्वी यावत् वालुकाप्रभापृथ्वी के नारक भी इसी प्रकार अन्तक्रिया करते हैं। भगवन् ! अनन्तरागत पंकप्रभापृथ्वी के कितने नारक एक समय में अन्तक्रिया करते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२० अन्तक्रिया |
Hindi | 502 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! पुढविक्काइएहिंतो अनंतरं उवट्टित्ता पुढविक्काइएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
जे णं भंते! उववज्जेज्जा से णं केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं आउक्काइयादीसु निरंतरं भाणियव्वं जाव चउरिंदिएसु। पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मनूसेसु जहा नेरइए। वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु पडिसेहो।
एवं जहा पुढविक्काइओ भणिओ तहेव आउक्काइओ वि वणप्फइकाइओ वि भाणियव्वो।
तेउक्काइए णं भंते! तेउक्काइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता नेरइएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं असुरकुमारेसु वि जाव थणियकुमारेसु Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से उद्वर्त्तन कर सीधा नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इस प्रकार स्तनितकुमारों तक समझ लेना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिकों में से निकल कर सीधा पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई होता है, कोई नहीं। जो उत्पन्न होता है, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२० अन्तक्रिया |
Hindi | 505 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइए णं भंते! रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा? गोयमा! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा? गोयमा! जस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स तित्थगरनामगोयाइं कम्माइं बद्धाइं पुट्ठाइं कडाइं पट्ठवियाइं निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाइं अभिसमन्नागयाइं उदिण्णाइं नो उवसंताइं भवंति से णं रयणप्पभापुढविनेरइए रयण-प्पभापुढविनेरइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता तित्थगरत्तं लभेज्जा, जस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स तित्थगरनामगोयाइं नो बद्धाइं जाव नो उदिण्णाइं Translated Sutra: भगवन् ! (क्या) रत्नप्रभापृथ्वी का नारक रत्नप्रभापृथ्वी से निकल कर सीधा तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई प्राप्त करता है, कोई नहीं क्योंकि – गौतम ! जिस रत्नप्रभापृथ्वी के नारक ने तीर्थंकर नाम – गोत्र कर्म बद्ध किया है, स्पृष्ट, निधत्त, प्रस्थापित, निविष्ट और अभिनिविष्ट किया है, अभिसमन्वागत है, उदीर्ण है, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 141 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोगागासपएसे, परित्तजीवं ठवेहि एक्केक्कं ।
एवं मविज्जमाणा, हवंति लोया असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: एक – एक लोकाकाश प्रदेश में, प्रत्येक वनस्पतिकाय के एक – एक जीव को स्थापित किया जाए और उन्हें मापा जाए तो ऐसे असंख्यात – लोकाकाश हो जाते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 142 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पत्तेया पज्जत्ता, पयरस्स असंखभागमेत्ता उ ।
लोगासंखापज्जत्तगाणं साहारणमनंता ॥ Translated Sutra: प्रत्येक वनस्पतिकाय के पर्याप्तक जीव घनीकृत प्रतर के असंख्यातभाग मात्र होते हैं। अपर्याप्तक प्रत्येक वनस्पतिकाय के जीवों का प्रमाण असंख्यात लोक के और साधारण जीवों का परिणाम अनन्तलोक के समान है। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 144 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा तेसिं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तगनिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति– जत्थ एगो तत्थ सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अनंता। एएसि णं इमाओ गाहाओ अनुगंतव्वाओ, तं जहा– Translated Sutra: अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियाँ हों, (उन्हें साधारण या प्रत्येक वनस्पतिकाय में लक्षणानुसार यथा – योग्य समझ लेना)। वे सभी वनस्पतिकाय जीव संक्षेप में दो प्रकार के हैं। पर्याप्तक और अपर्याप्तक। उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं। उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से हजारों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 148 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया। से त्तं बादरवणस्सइकाइया। से त्तं वणस्सइकाइया। से त्तं एगिंदिया। Translated Sutra: यह हुआ साधारणशरीर वनस्पतिकायिक का स्वरूप। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 149 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बेंदिया? [से किं तं बेइंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा?] बेंदिया [बेइंदियसंसार-समावन्नजीवपन्नवणा] अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाकिमिया कुच्छिकिमिया गंडूयलगा गोलोमा नेउरा सोमंगलगा वंसीमुहा सूईमुहा गोजलोया जलोया जलोउया संखा संखणगा धुल्ला खुल्ला वराडा सोत्तिया मोत्तिया कलुया वासा एगओवत्ता दुहओवत्ता नंदियावत्ता संवुक्का माईबाहा सिप्पिसंपुडा चंदणा समुद्दलिक्खा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एएसि णं एवमादियाणं बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्त जाइकुलकोडिजोणीपमुहसतसहस्सा Translated Sutra: वे द्वीन्द्रिय जीव किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। पुलाकृमिक, कुक्षिकृमिक, गण्डूयलग, गोलोम, नूपर, सौमंगलक, वंशीमुख, सूचीमुख, गौजलोका, जलोका, जलोयुक, शंख, शंखनक, घुल्ला, खुल्ला, गुडज, स्कन्ध, वराटा, सौक्तिक, मौक्तिक, कलुकावास, एकतोवृत्त, द्विधातोवृत्त, नन्दिकावर्त्त, शम्बूक, मातृवाह, शुक्ति – सम्पुट, चन्दनक, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 150 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा? तेंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा –ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया उद्दंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उक्कडा उप्पाडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणबिंटिया पुप्फबिंटिया फलबिंटिया बीयबिंटिया तेदुरण-मज्जिया तउसमिंजिया कप्पासट्ठिसमिंजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा झिंगिरिडा पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुयबिंटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुलुंचगा कोत्थलवाहगा जूया हालाहला पिसुया सतवाइया गोम्ही हत्थिसोंडा, जे यावन्ने तहप्पगारा। सव्वेते सम्मुच्छिया नपुंसगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं Translated Sutra: वह (पूर्वोक्त) त्रीन्द्रिय – संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना कैसी है ? अनेक प्रकार की है। औपयिक, रोहिणीक, कंथु, पिपीलिका, उद्दंशक, उद्देहिका, उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, उत्पट, तृणहार, काष्ठाहार, मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेदुरणमज्जिक, त्रपुषमिंजिक, कार्पा – | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१ प्रज्ञापना |
Hindi | 161 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य।
से किं तं चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–एगखुरा दुखुरा गंडीपदा सणप्फदा।
से किं तं एगखुरा? एगखुरा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–अस्सा अस्सतरा घोडगा गद्दभा गोरक्खरा कंदलगा सिरिकंदलगा आवत्ता। जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं एगखुरा।
से किं तं दुखुरा? दुखुरा अनेगविहा पन्नत्ता, तं० उट्टा गोणा गवया रोज्झा पसया महिसा मिया संवरा वराहा अय-एलग-रुरु-सरभ-चमर-कुरंग-गोकण्णमादी। Translated Sutra: वे चतुष्पद – स्थलचर – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक किस प्रकार के हैं ? चार प्रकार के। एकखुरा, द्विखुरा, गण्डी – पद और सनखपद। वे एकखुरा किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के। अश्व, अश्वतर, घोटक, गधा, गोरक्षर, कन्दलक, श्रीकन्दलक और आवर्त इसी प्रकार के अन्य प्राणी को भी एकखुर – स्थलचर० समझना। वे द्विखुर किस प्रकार के हैं | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 162 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया य।
से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्ख-जोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अही अयगरा आसालिया महोरगा।
से किं तं अही? अही दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वीकरा य मउलिणो य।
से किं तं दव्वीकरा? दव्वीकरा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–आसीविसा दिट्ठीविसा उग्गविसा भोगविसा तयाविसा लालाविसा उस्सासविसा निस्सासविसा कण्हसप्पा सेदसप्पा काओदरा दब्भपुप्फा Translated Sutra: वे परिसर्प – स्थलचर० दो प्रकार के हैं। उरःपरिसर्प० एवं भुजपरिसर्प – स्थलचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक। उरःपरिसर्प – स्थलचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक किस प्रकार के हैं ? चार प्रकार के। अहि, अजगर, आसालिक और महोरग। वे अहि किस प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के। दर्वीकर और मुकुली। वे दर्वीकर सर्प किस प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 168 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साएय कोसला गयपुरं च, कुरु सोरियं कुसट्टा य ।
कंपिल्लं पंचाला, अहिछत्ता जंगला चेव ॥ Translated Sutra: कौशल में साकेत, कुरु में गजपुर, कुशार्त्त में सौरीपुर, पंचाल में काम्पिल्य, जांगल में अहिच्छत्रा। सौराष्ट्र में द्वारावती, विदेह में मिथिला, वत्स में कौशाम्बी, शाण्डिल्य में नन्दिपुर, मलय में भद्दिलपुर। मत्स्य में वैराट, वरण में अच्छ, दशार्ण में मृत्तिकावती, चेदि में शुक्तिमती, सिन्धु – सौवीर में वीतभय। शूरसेन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 175 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं जातिआरिया।
से किं तं कुलारिया? कुलारिया छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा नाता कोरव्वा। से त्तं कुलारिया।
से किं तं कम्मारिया? कम्मारिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–दोस्सिया सोत्तिया कप्पासिया मुत्तवयालिया भंडवेयालिया कोलालिया नरदावणिया। जे यावन्ने तहप्पगारा।
से त्तं कम्मायरिया।
से किं तं सिप्पारिया? सिप्पारिया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–तुन्नागा तंतुवाया पट्टयारा देयडा वरुट्टा छव्विया कट्ठपाउयारा मुंजपाउयारा छत्तारा वज्झारा पोत्थारा लेप्पारा चित्तारा दंतारा भंडारा जिब्भगारा सेल्लरा कोडिगारा। जे यावन्ने तहप्पगारा।
से Translated Sutra: यह हुआ जात्यार्यों का निरूपण। कुलार्य छह प्रकार के हैं। उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्वाकु, ज्ञात और कौरव्य। कर्मार्य अनेक प्रकारके हैं। दोषिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैतालिक, भाण्डवैतालिक, कौलालिक और नरवाहनिक। इसी प्रकार के अन्य जितने भी हों, उन्हें कर्मार्य समझना। शिल्पार्य अनेक प्रकार के हैं। तुन्नाक, दर्जी, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 187 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च ।
सद्दहइ जिनाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: जो व्यक्ति जिनोक्त अस्तिकायधर्म, श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म पर श्रद्धा करता है, उसे धर्मरुचि समझना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 191 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमानिया।
से किं तं भवनवासी? भवनवासी दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–असुरकुमारा नागकुमारा सुवण्ण-कुमारा विज्जुकुमारा अग्गिकुमारा दीवकुमारा उदहिकुमारा दिसाकुमारा वाउकुमारा थणियकुमारा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं भवनवासी।
से किं तं वाणमंतरा? वाणमंतरा अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–किन्नरा किंपुरिसा महोरगा गंधव्वा जक्खा रक्खसा भूया पिसाया। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। से त्तं वाणमंतरा।
से किं तं जोइसिया? जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता, Translated Sutra: देव कितने प्रकार के हैं ? चार प्रकार के हैं। भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवन – वासी देव दस प्रकार के हैं – असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधि – कुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार। ये देव संक्षेप में दो प्रकार के हैं। पर्याप्तक और अपर्याप्तक। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 193 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! सट्ठाणेणं सत्तसु घनवाएसु सत्तसु घनवायवलएसु सत्तसु तनुवाएसु सत्तसु तनुवायवलएसु। अहोलोए–पायालेसु भवनेसु भवनपत्थडेसु भवनछिंद्देसु भवनणिक्खुडेसु निरएसु निरयावलियासु निरयपत्थडेसु निरयछिद्देसु निरयणिक्खुडेसु। उड्ढलोए–कप्पेसु विमानेसु वियाणावलियासु विमानपत्थडेसु विमानछिद्देसु विमानणिक्खुडेसु। तिरियलोए–पाईण-पडीण-दाहिण-उदीण सव्वेसु चेव लोगागासछिद्देसु लोय-निक्खुड्डेसु य। एत्थ णं बादरवाउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखे-ज्जेसु भागेसु, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जेसु Translated Sutra: भगवन् ! बादर वायुकायिक – पर्याप्तकों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से सात घनवात, सात घनवातवलय, सात तनुवात और सात तनुवातवलयों में। अधोलोक में – पातालों, भवनों, भवनों के प्रस्तटों, भवनों के छिद्रों, भवनों के निष्कुट प्रदेशों, नरकों में, नरकावलियों, नरकों के प्रस्तटों, छिद्रों और नरकों के निष्कुट | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 218 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! पिसाया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणाययस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु एत्थ णं पिसायाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जानगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं भोमेज्जानगरा बाहिं वट्टा जहा ओहिओ भवनवण्णओ तहा भाणितव्वो जाव पडिरूवा। एत्थ णं पिसायाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे पिसाया देवा परिवसंति–महिड्ढिया जहा ओहिया जाव Translated Sutra: भन्ते ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक पिशाच देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के बीच के आठ सौ योजन में, पिशाच देवों के तीरछे असंख्यात भूगृह के समान लाखों नगरावास हैं। नगरावास वर्णन पूर्ववत्। इन में पर्याप्तक और अपर्याप्तक पिशाच देवों के स्थान हैं। (वे स्थान) | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 219 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ काले य महाकाले, २ सुरूव पडिरूव ३ पुण्णभद्दे य ।
अमरवइ माणिभद्दे, ४ भीमे य तहा महाभीमे ॥ Translated Sutra: वाणव्यन्तर देवों के प्रत्येक के दो – दो इन्द्र क्रमशः इस प्रकार हैं – काल और महाकाल, सुरूप और प्रतिरूप, पूर्णभद्र और माणिभद्र इन्द्र, भीम और महाभीम। तथा – किन्नर और किम्पुरुष, सत्पुरुष और महापुरुष, अतिकाय और महाकाय तथा गीतरति और गीतयश। सूत्र – २१९, २२० | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 225 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जोइसियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! जोइसिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तानउते जोयणसते उड्ढं उप्पइत्ता दसुत्तरे जोयणसतबाहल्ले तिरियमसंखेज्जे जोतिसविसये, एत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोइसियविमानावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं विमाना अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिता सव्वफालियामया अब्भुग्गयमूसियपहसिया इव विविहमणि कनग रतणभत्तिचित्ता वाउद्धुतविजयवेजयंतीपडागछत्ताइछत्तकलिया तुंगा गगन-तलमणुलिहमाणसिहरा जालंतररत्तणपंजरुम्मिलिय व्व मणि-कनगभूमियागा वियसियसयवत्त-पुंडरीय Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक ज्योतिष्क देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यन्त सम एवं रमणीय भूभाग से ७९० योजन की ऊंचाई पर ११० योजन विस्तृत एवं तीरछे असंख्यात योजन में ज्योतिष्क क्षेत्र हैं, जहाँ ज्योतिष्क देवों के तीरछे असंख्यात लाख ज्योतिष्क विमानावास हैं। वे विमान आधा कवीठ के | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 226 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेमानियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वेमानिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद- बंभलोय-लंतय- महासुक्क-सहस्सार- आणय-पाणय- आरण-अच्चुत- गेवेज्ज-अनुत्तरेसु, एत्थ णं वेमानियाणं देवाणं चउरासीइ विमानावाससतसहस्सा सत्तानउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाना भवंतीति मक्खातं।
ते णं विमाना सव्वरतणामया Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक वैमानिक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारकरूप ज्योतिष्कों के अनेक सौ, अनेक हजार, अनेक लाख, बहुत करोड़ और बहुत कोटाकोटी योजन ऊपर दूर जाकर, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 228 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! ईसानगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! ईसानगदेवा परिवसंति? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं जाव उप्पइत्ता, एत्थ णं ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते–पाईण पडीणायते उदीण-दाहिणविच्छिण्णे एवं जहा सोहम्मे जाव पडिरूवे। तत्थ णं ईसाणदेवगाणं अट्ठावीसं विमानावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं।
ते णं विमाना सव्वरयणामया जाव पडिरूवा। तेसि णं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–अंकवडेंसए फलिहवडेंसए Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त ईशानक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप में सुमेरुपर्वत के उत्तर में, इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम और रमणीय भूभाग से ऊपर, यावत् दूर जाकर ईशान नामक कल्प कहा गया है, शेष वर्णन सौधर्म के समान समझना। उस में ईशान देवों के २८ लाख विमानावास हैं। वे विमान सर्वरत्न – मय यावत् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 233 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु, सत्तुत्तरं च मज्झिमए ।
सयमेगं उवरिमए, पंचेव अनुत्तरविमाना ॥ Translated Sutra: अधस्तन ग्रैवेयकों में १११, मध्यम ग्रैवेयकों में १०७, उपरितन के ग्रैवेयकों में १०० और अनुत्तरौपपातिक देवों के पाँच ही विमान हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 234 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! अनुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! अनुत्तरो-ववाइया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसयाइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसान-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतग-सुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-अच्चुयकप्पा तिन्नि य अट्ठारसुत्तरे गेवेज्ज-विमानावाससते बीतीवतित्ता तेण परं दूरं गता नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसिं पंच अनुत्तरा महतिमहालया विमाना Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक अनुत्तरौपपातिक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर यावत् तीनों ग्रैवेयकप्रस्तटों के विमानावासों को पार करके उससे आगे सुदूर स्थित, पाँच दिशाओंमें रज रहित, निर्मल, अन्धकाररहित एवं विशुद्ध बहुत बड़े पाँच अनुत्तर विमान हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 235 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं Translated Sutra: भगवन् ! सिद्धों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम! सर्वार्थसिद्ध विमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है, जिसकी लम्बाई – चौड़ाई ४५ लाख योजन है। उसकी परिधि योजन १४२०३२४९ से कुछ अधिक है। ईषत्प्राग्भारा – पृथ्वी के बहुत मध्यभाग में ८ योजन का क्षेत्र है, जो आठ योजन मोटा है। उसके अनन्तर | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 257 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. दिसि २. गति ३. इंदिय ४. काए, ५. जोगे ६. वेदे ७. कसाय ८. लेसा य ।
९. सम्मत्त १०. नाण ११. दंसण, १२. संजय १३. उवओग १४. आहारे ॥ Translated Sutra: दिक्, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिक, चरम, जीव, क्षेत्र, बन्ध, पुद्गल और महादण्डक तृतीयपदमें ये २७ द्वार हैं सूत्र – २५७, २५८ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 260 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया दाहिणेणं, उत्तरेणं विसेसाहिया, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया।
दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा आउक्काइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया।
दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा तेउक्काइया दाहिणुत्तरेणं, पुरत्थिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया।
दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पुरत्थिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया।
दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं Translated Sutra: दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिणदिशा में हैं, उत्तर में विशेषाधिक हैं, पूर्वदिशा में विशेषाधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं। दिशाओं की अपेक्षा | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 263 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सति-काइयाणं अकाइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया अनंतगुणा, वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सकाइया विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! सकाइयाणं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सतिकाइयाणं तसकाइयाण य अपज्जत्तगाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया अपज्जत्तगा, तेउकाइया अपज्जत्तगा Translated Sutra: भगवन् ! इन सकायिक, पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक और अकायिक जीवों में से कौन यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प त्रसकायिक हैं, तेजस्कायिक असंख्यातगुणे हैं, पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, अप्कायिक विशेषाधिक हैं, वायुकायिक विशेषाधिक हैं, अकायिक अनन्तगुणे हैं, वनस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं, और (उनसे भी) सकायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 264 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमणिओयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम-आउकाइया विसेसाहिया, सुहुमवाउकाइया विसेसाहिया, सुहुमनिगोदा असंखेज्जगुणा, सुहुम-वणस्सइकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! सुहुमअपज्जत्तगाणं सुहुमपुढविकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमआउकाइया-पज्जत्तयाणं सुहुमतेउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवाउकाइयापज्जत्तयाणं सुहुमवणस्सइकाइयापज्ज-त्तयाणं सुहुमनिगोदापज्जत्तयाणं Translated Sutra: भगवन् ! इन सूक्ष्म, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक एवं सूक्ष्मनिगोदों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे अल्प सूक्ष्म तेजस्कायिक हैं, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, सूक्ष्म | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 265 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउकाइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादर-वाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतस-काइयाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरा तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया असंखेज्ज-गुणा, बादरा निगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवणस्सइकाइया अनंतगुणा, बादरा विसेसाहिया।
एतेसि णं भंते! बादरअपज्जत्तगाणं बादरपुढविकाइयअपज्जत्तगाणं बादरआउकाइय-अपज्जत्तगाणं Translated Sutra: भगवन् ! इन बादर जीवों, बादर पृथ्वीकायिकों, बादर अप्कायिकों, बादर तेजस्कायिकों, बादर वायु – कायिकों, बादर वनस्पतिकायिकों, प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिकों, बादर निगोदों और बादर त्रसकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े बादर त्रसकायिक हैं, बादर तेजस् – कायिक असंख्येयगुणे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 266 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं सुहुमआउकाइयाणं सुहुमतेउकाइयाणं सुहुम-वाउकाइयाणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं सुहुमनिगोदाणं बादराणं बादरपुढविकाइयाणं बादरआउ-काइयाणं बादरतेउकाइयाणं बादरवाउकाइयाणं बादरवणस्सइकाइयाणं पत्तेयसरीरबादरवणस्सइ-काइयाणं बादरनिगोदाणं बादरतसकाइयाणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतसकाइया, बादरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा, बादरनिगोदा असंखेज्जगुणा, बादरपुढविकाइया असंखेज्जगुणा, बादरआउकाइया असंखेज्जगुणा, बादरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउकाइया Translated Sutra: भगवन् ! इन सूक्ष्मजीवों, सूक्ष्म – पृथ्वीकायिकों यावत् सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों, सूक्ष्मनिगोदों तथा बादर – जीवों, बादर – पृथ्वीकायिकों यावत् बादर – वनस्पतिकायिकों, प्रत्येकशरीर – बादर – वनस्पतिकायिकों, बादर – निगोदों और बादर – त्रसकायिकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 283 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थिकाय-अद्धासमयाणं दव्वट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए य एए तिन्नि वि तुल्ला दव्वट्ठयाए सव्वत्थोवा, जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे, अद्धासमए दव्वट्ठयाए अनंतगुणे।
एतेसि णं भंते! धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय-आगासत्थिकाय-जीवत्थिकाय-पोग्गलत्थि-काय-अद्धासमयाणं पदेसट्ठयाए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए य एते णं दो Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय यावत् अद्धा – समय इन द्रव्यों में से, द्रव्य की अपेक्षा से कौन यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीनों ही तुल्य हैं तथा द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प हैं; जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से अनन्तगुण हैं; पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा से | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 292 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया उड्ढलोय-तिरियलोए अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तया उड्ढलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्ज-गुणा, अहेलोए विसेसाहिया।
खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया पज्जत्तया उड्ढलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरिय-लोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्ढलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया।
खेत्ताणुवाएणं Translated Sutra: क्षेत्र के अनुसार सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव ऊर्ध्वलोक – तिर्यक्लोक में हैं, अधोलोक – तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, (उनसे) तिर्यक्लोक में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) त्रैलोक्य में असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। – ऐसा ही अपर्याप्तक और पर्याप्तक के | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 297 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ...
...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५. Translated Sutra: हे भगवन् ! अब मैं समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण करने वाले महादण्डक का वर्णन करूँगा – १. सबसे कम गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं, २. मानुषी संख्यातगुणी अधिक हैं, ३. बादर तेजस्कायिक – पर्याप्तक असंख्यात – गुणे हैं, ४. अनुत्तरौपपातिक देव असंख्यातगुणे हैं, ५. ऊपरी ग्रैवेयकदेव संख्यातगुणे हैं, ६. मध्यमग्रैवेयकदेव | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-४ स्थिति |
Hindi | 300 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं।
अपज्जत्तयपुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाइं।
सुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। अपर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त है। पर्याप्त पृथ्वीकायिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बाईस हजार वर्ष है। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 307 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पज्जवा पन्नत्ता, तं जहा–जीवपज्जवा य अजीवपज्जवा य।
जीवपज्जवा णं भंते! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता? गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता? गोयमा! असंखेज्जा नेरइया, असंखेज्जा असुरा, असंखेज्जा नागा, असंखेज्जा सुवण्णा, असंखेज्जा विज्जु -कुमारा, असंखेज्जा अग्गिकुमारा, असंखेज्जा दीवकुमारा, असंखेज्जा उदहिकुमारा, असंखेज्जा दिसाकुमारा, असंखेज्जा वाउकुमारा, असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढविकाइया, असंखेज्जा आउकाइया, असंखेज्जा तेउकाइया, असंखेज्जा Translated Sutra: भगवन् ! पर्याय कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं। जीवपर्याय और अजीवपर्याय। भगवन् ! जीव – पर्याय क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! (वे) अनन्त हैं। भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! असंख्यात नैरयिक हैं, असंख्यात असुर हैं, असंख्यात नागकुमार हैं, यावत् असंख्यात स्तनित – कुमार हैं, असंख्यात | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 310 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! पुढविकाइए पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्जभागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा असंखेज्ज-गुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्जभागअब्भहिए वा संखेज्ज-गुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा।
ठितीए सिय हीने सिय तुल्ले सिय अब्भहिए– जदि हीने असंखेज्जभागहीने वा संखेज्ज-भागहीने वा संखेज्जगुणहीने वा। अह Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा है ? गौतम! एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है यावत् असंख्यातगुण हीन | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 317 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जहन्नोगाहणगाणं भंते! पुढविकाइयाणं केवतिया पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जहन्नोगाहणगाणं पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नोगाहणए पुढविकाइए जहन्नोगाहणगस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले। पदेसट्ठयाए तुल्ले। ओगाहणट्ठयाए तुल्ले। ठितीए तिट्ठाणवडिते। वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अन्नाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
एवं उक्कोसोगाहणए वि। अजहन्नमणुक्कोसोगाहणए वि एवं चेव, नवरं–सट्ठाणे चउट्ठाण-वडिते।
जहन्नट्ठितीयाणं भंते! पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! अनंता पज्जवा पन्नत्ता।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक जीवों के कितने पर्याय हैं ? गौतम ! अनन्त। क्योंकि – जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिक द्रव्य, प्रदेशों तथा अवगाहना से तुल्य हैं, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हैं, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से, दो अज्ञानों से एवं अचक्षुदर्शन से षट्स्थानपतित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-५ विशेष |
Hindi | 322 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवपज्जवा य अरूविअजीवपज्जवा य।
अरूविअजीवपज्जवा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए। Translated Sutra: भगवन् ! अजीवपर्याय कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, रूपी अजीवपर्याय और अरूपी अजीव – पर्याय। भगवन् ! अरूपी – अजीव के पर्याय कितने प्रकार के हैं? गौतम! दस। (१) धर्मास्तिकाय, (२) धर्मास्तिकाय का देश, (३) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) अधर्मास्तिकाय, (५) अधर्मास्तिकाय का देश, (६) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (७) आकाशास्तिकाय, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 328 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि।
वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं।
पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं।
धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा – पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त तक। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्टतः सात रात्रि – दिन तक उपपात से विरहित रहते हैं। वालुकापृथ्वी के नारक जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक उपपात से विरहित रहते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 329 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
एवं सिद्धवज्जा उव्वट्टणा वि भाणितव्वा जाव अनुत्तरोववाइय त्ति, नवरं–जोइसिय-वेमानिएसु चयणं ति अभिलावो कायव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्त्तना विरहित कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त्त। उपपात – विरह समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में ‘च्यवन’ शब्द कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 332 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। एवं जाव अहेसत्तमाए।
असुरकुमारा णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा। एवं नागकुमारा जाव थणियकुमारा वि भाणियव्वा
पुढविकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! अनुसमयं अविरहियं असंखेज्जा उववज्जंति। एवं जाव वाउकाइया।
वणस्सतिकाइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! सट्ठाणुववायं पडुच्च अनुसमयं अविरहिया अनंता उववज्जंति, परट्ठाणुववायं पडुच्च Translated Sutra: भगवन् ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात। इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक समझ लेना। असुरकुमार से स्तनितकुमार तक यहीं कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव एक समयमें कितने उत्पन्न होते हैं? गौतम ! प्रतिसमय बिना विरह के असंख्यात उत्पन्न होते हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 333 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! एगसमएणं केवतिया उव्वट्टंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वट्टंति।
एवं जहा उववाओ भणितो तहा उव्वट्टणा वि सिद्धवज्जा भाणितव्वा जाव अनुत्तरोववाइया, नवरं–जोइसिय-वेमानियाणं चयणेणं अभिलावो कातव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक एक समय में कितने उद्वर्तित होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अथवा असंख्यात। उपपात के समान सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक उद्वर्त्तना में भी कहना। विशेष यह कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए ‘च्यवन’ शब्द कहना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 338 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं पुढविकाइएहिंतो जाव वणप्फइ-काइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पुढविकाइएहिंतो वि जाव वणप्फइकाइएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि पुढविकाइएहिंतो उववज्जंति किं Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचयोनिकों, मनुष्ययोनिकों तथा देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 340 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कतोहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नेरइएहिंतो वि तिरिक्खजोणिएहिंतो वि मनूसेहिंतो वि देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जदि नेरइएहिंतो उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमा-पुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरइएहिंतो वि जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदिएहिंतो वि जाव पंचेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
जदि एगिंदिएहिंतो उववज्जंति किं पुढविकाइएहिंतो Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकों यावत् देवों से भी उत्पन्न होते हैं। यदि नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं तो रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 346 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] असुरकुमारा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएसु उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, मनुस्सेसु उववज्जंति, नो देवेसु उववज्जंति।
जदि तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएसु जाव पंचेंदियतिरिक्ख-जोणिएसु उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति, नो बेइंदिएसु जाव नो चउरिंदिएसु उववज्जंति, पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति।
जदि एगिंदिएसु उववज्जंति किं पुढविकाइयएगिंदिएसु जाव वणस्सइकाइयएगिंदिएसु उववज्जंति? गोयमा! पुढविकाइयएगिंदिएसु वि आउकाइयएगिंदिएसु Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमार अनन्तर उद्वर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो वे एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रियों तिर्यंचयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पृथ्वीकायिक, |