Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (3444)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 199 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! मंदरे पव्वए पंडगवने नामं वने पन्नत्ते? गोयमा! सोमनसवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ छत्तीसं जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पइत्ता, एत्थ णं मंदरे पव्वए सिहरतले पंडगवने नामं वने पन्नत्ते– चत्तारि चउणउए जोयणसए चक्कवालविक्खंभेणं, वट्टे वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ– तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसयं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं जाव किण्हे देवा आसयंति। पंडगवनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं मंदरचूलिया नामं चूलिया पन्नत्ता–चत्तालीसं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले बारस

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पण्डकवन कहाँ है ? गौतम ! सोमनसवन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६००० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर है। चक्रवाल विष्कम्भ से वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है। वह मन्दर पर्वत की चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३१६२ योजन है। वह एक
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 200 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंडकवने णं भंते! वने कइ अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पंडुसिला पंडुकंबलसिला रत्तसिला रत्तकंबलसिला। कहि णं भंते! पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए पुरत्थिमेणं, पंडगवणपुरत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता–उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयण-सयाइं विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा। वेइयावनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, वण्णओ। तीसे णं पंडुसिलाए चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवानपडिरूवगा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएं हैं ? गौतम ! चार, – पाण्डुशिला, पाण्डुकम्बलशिला, रक्तशिला तथा रक्तकम्बलशिला। पण्डकवन में पाण्डुशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बी तथा पूर्व – पश्चिम चौड़ी है। उसका आधार अर्ध चन्द्र के आकार – जैसा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 201 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स कइ कंडा पन्नत्ता? गोयमा! तओ कंडा पन्नत्ता, तं जहा–हेट्ठिल्ले कंडे, मज्झिमिल्ले कंडे, उवरिल्ले कंडे। मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवी विले वइरे सक्करा। मज्झिमिल्ले णं भंते! कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अंके फलिहे जायरूवे रयए। उवरिल्ले कंडे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! एगागारे पन्नत्ते सव्वजंबूनयामए। मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स हेट्ठिल्ले कंडे केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! एगं जोयणसहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ते। मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा। गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मन्दर पर्वत के कितने काण्ड – हैं ? गौतम ! तीन, – अधस्तन, मध्यम तथा उपरितनकाण्ड। मन्दर पर्वत का अधस्तनविभाग कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, – पृथ्वी, उपल, वज्र तथा शर्करमय। उसका मध्यमविभाग चार प्रकार का है – अंकरत्नमय, स्फटिकमय, स्वर्णमय तथा रजतमय। उसका उपरितन विभाग एकाकार – है। वह सर्वथा जम्बूनद
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 202 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मंदरस्स णं भंते! पव्वयस्स कति नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! सोलस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मन्दर पर्वत के कितने नाम बतलाये हैं ? गौतम ! सोलह – मन्दर, मेरु, मनोरम, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, गिरिराज, रत्नोच्चय, शिलोच्चय, लोकमध्य, लोकनाभि। अच्छ, सूर्यावर्त, सूर्यावरण, उत्तम, दिगादि तथा अवतंस। सूत्र – २०२–२०४
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 205 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–मंदरे पव्वए? मंदरे पव्वए? गोयमा! मंदरे पव्वए मंदरे नामं देवे परिवसइ महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठिईए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–मंदरे पव्वए-मंदरे पव्वए। अदुत्तरं तं चेव।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वह मन्दर पर्वत क्यों कहलाता है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर मन्दर नामक परम ऋद्धिशाली, पल्योपम के आयुष्यवाला देव निवास करता है, अथवा यह नाम शाश्वत है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 206 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमिल्ललवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे नीलवंते नामं वासहरपव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे, निसहवत्तव्वया निलवंतस्स भाणियव्वा, नवरं–जीवा दाहिणेणं, धनुपट्ठं उत्तरेणं, एत्थ णं केसरिद्दहो, सीया महानई पवूढा समाणी उत्तरकुरं एज्जेमाणी-एज्जेमाणी जम-गपव्वए निलवंत उत्तरकुरु चंदेरावण मालवंतद्दहे य दुहा विभयमाणी-विभयमाणी चउरासीए सलिलासहस्सेहिं आपूरेमाणी-आपूरेमाणी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप का नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत कहाँ है ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। निषध पर्वत के समान है। इतना अन्तर है – दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है। उसमें केसरी द्रह है। दक्षिण में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 208 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वे एए कूडा पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नीलवंते वासहरपव्वए? नीलवंते वासहरपव्वए? गोयमा! नीले नीलोभासे, नीलवंते य इत्थ देवे महिड्ढीए जाव परिवसइ। सव्ववेरुलियामए नीलवंते जाव निच्चे।

Translated Sutra: ये सब कूट पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ मेरु के उत्तर में है। भगवन्‌ ! नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ? गौतम ! वहाँ नीलवर्णयुक्त, नील आभावाला परम ऋद्धिशाली नीलवान्‌ देव निवास करता है, नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत सर्वथा वैडूर्यरत्नमय – है। अथवा उसका यह नाम नित्य है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 209 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे रम्मए नामं वासे पन्नत्ते? गोयमा! निलवंतस्स उत्तरेणं, रुप्पिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एवं जह चेव हरिवासं तह चेव रम्मयं वासं भाणियव्वं, नवरं–दक्खिणेणं जीवा उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसेसं तं चेव। कहि णं भंते! रम्मए वासे गंधावई नामं वट्टवेयड्ढपव्वए पन्नत्ते? गोयमा! नरकंताए पच्च-त्थिमेणं, नारीकंताए पुरत्थिमेणं, रम्मगवासस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं गंधावई नामं वट्टवेयड्ढे पन्नत्ते, जं चेव वियडावइस्स तं चेव गंधावइस्सवि वत्तव्वं। अट्ठो, बहवे उप्पलाइं जाव गंधावइवण्णाइं गंधावइवण्णाभाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप का रम्यक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान्‌ वर्षधर पर्वत के उत्तर में, रुक्मी पर्वत के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में है। उसकी जीवा दक्षिण में है, धनुपृष्ठभाग उत्तर में है। बाकी वर्णन हरिवर्ष सदृश है। रम्यक्‌ क्षेत्र में गन्धापाती वृत्तवैताढ्य
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत

Hindi 211 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वेवि एए पंचसइया, रायहानीओ उत्तरेणं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–रुप्पी वासहरपव्वए? रुप्पी वासहरपव्वए? गोयमा! रुप्पी णं वासहरपव्वए रुप्पी रुप्पपट्टे रुप्पिओभासे सव्वरुप्पामए। रुप्पी य इत्थ देवे पलिओवमट्ठिईए परिवसइ। से तेणट्ठेणं। कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते? गोयमा! रुप्पिस्स उत्तरेणं, सिहरिस्स दक्खिणेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे हेरण्णवए वासे पन्नत्ते। एवं जह चेव हेमवयं तह चेव हेरण्णवयंपि भाणियव्वं, नवरं–जीवा दाहिणेणं उत्तरेणं धनुपट्ठं अवसिट्ठं तं

Translated Sutra: ये सभी कूट पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं। उत्तर में इनकी राजधानियाँ है। भगवन्‌ ! वह रुक्मी वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! रुक्मी वर्षधर पर्वत रजत – निष्पन्न रजत की ज्यों आभामय एवं सर्वथा रजतमय है। वहाँ पल्योपमस्थितिक रुक्मी नामक देव निवास करता है, इसलिए वह रुक्मी वर्षधर पर्वत कहा जाता है। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 245 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता! पुट्ठा। ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते णं जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु लवणे समुद्दे। एवं लवणसमुद्दस्सवि पएसा जंबुद्दीवे दीवे पुट्ठा भाणियव्वा। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगइया पच्चायति, अत्थेगइया नो पच्चायंति। एवं लवणसमुद्दस्सवि जंबुद्दीवे दीवे नेयव्वं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जम्बूद्वीप के चरम प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। जम्बूद्वीप के जो प्रदेश लवणसमुद्र का स्पर्श करते हैं, क्या वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं या लवणसमुद्र के ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप के ही प्रदेश कहलाते हैं। इसी प्रकार लवणसमुद्र के प्रदेशों की बात है। भगवन्‌ ! क्या
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 247 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भरहप्पमाणमेत्तेहिं खंडेहिं केवइयं खंडगणिएणं पन्नत्ते? गोयमा! णउयं खंडसयं खंडगणिएणं पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं जोयणगणिएणं पन्नत्ते? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के प्रमाण जितने – भरतक्षेत्र के बराबर खण्ड किये जाए तो वे कितने होते हैं ? गौतम ! खण्डगणित के अनुसार वे १९० होते हैं। भगवन्‌ ! योजनगणित के अनुसार जम्बूद्वीप का कितना प्रमाण है ? गौतम ! जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल – प्रमाण ७,९०,५६,९४,१५० योजन है। सूत्र – २४७, २४८
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ

Hindi 249 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पन्नत्ता? गोयमा! सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया वासहरा पन्नत्ता? केवइया मंदरा पव्वया? केवइया चित्तकूडा? केवइया विचित्तकूडा? केवइया जमगपव्वया? केवइया कंचनगपव्वया? केवइया वक्खारा? केवइया दीहवेयड्ढा? केवइया वट्ठवेयड्ढा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वया, एगे मंदर पव्वए, एगे चित्तकूडे, एगे विचित्तकूडे, दो जमगपव्वया, दो कंचनगपव्वय-सया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्ढा, चत्तारि वट्टवेयड्ढा–एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे दुन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में कितने वर्ष – क्षेत्र हैं ? गौतम ! सात, – भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष तथा महाविदेह। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत छह वर्षधर पर्वत, एक मन्दर पर्वत, एक चित्रकूट पर्वत, एक विचित्रकूट पर्वत, दो यमक पर्वत, दो सौ काञ्चन पर्वत, बीस वक्षस्कार पर्वत, चौतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत तथा चार वृत्त
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 250 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति? कइ सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति? केवइया नक्खत्ता जोगं जोएंसु जोएंति जोएस्संति? केवइया महग्गहा चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति? केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोभं सोभिंसु सोभंति सोभिस्संति? गोयमा! दो चंदा पभासिंसु पभासंति पभासिस्संति, दो सूरिया तवइंसु तवेंति तविस्संति छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु जोएंति जोएस्संति, छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रमा उद्योत करते थे ? उद्योत करते हैं एवं करते रहेंगे ? कितने सूर्य तपते थे ? तपते हैं और तपते रहेंगे ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! जम्बूद्वीप में चन्द्र उद्योत करते थे। करते हैं तथा करेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपते रहेंगे। ५६ नक्षत्र योग करते थे, करते हैं एवं करते रहेंगे।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 252 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! एगे चउरासीए मंडलसए पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता, एत्थ णं पन्नट्ठी सूरमंडला पन्नत्ता। लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं एगूनवीसे सूरमंडलसए पन्नत्ते– एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवतीतिमक्खायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १८४, जम्बूद्वीप में १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ६५ सूर्य – मण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर आगत क्षेत्र में ११९ सूर्यमण्डल हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप तथा लवणसमुद्र में १८४ सूर्य – मण्डल होते हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 253 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतराओ णं भंते! सूरमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से सर्वबाह्य सूर्य – मण्डल कितने अन्तर पर हैं ? गौतम ! ५१० योजन के अन्तर पर है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 254 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरमंडलस्स णं भंते! सूरमंडलस्स य केवइयं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! दो-दो जोयणाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक सूर्य – मण्डल से दूसरे सूर्य – मण्डल का अबाधित – कितना अन्तर है ? गौतम ! दो योजन का है
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 255 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरमंडले णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! अडयालीसं एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, चउवीसं एगसट्ठियाए जोयणस्स बाहल्लेणं पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य – मण्डल का आयाम, विस्तार, परिक्षेप तथा बाहल्य – कितना है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ४८/६१ योजन, परिधि उससे कुछ अधिक तीन गुणी तथा मोटाई २४/६१ योजन है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 256 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य बावीसे जोयणसए अडयालीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतरानंतरे सूरमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे सूरमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य पणवीसे जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल जम्बूद्वीप स्थित मन्दर पर्वत से कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से दूसरा सूर्य – मण्डल ४४८२२ – ४८/६१ योजन की दूरी पर है। सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल से तीसरा सूर्य – मण्डल ४४८२५ – ३५/६१ योजन की दूरी पर है। यों प्रति दिन रात एक – एक
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 257 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे सव्वब्भंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्चं चत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसय-सहस्साइं पन्नरस य जोयणसहस्साइं एगूनणउइं च जोयणाइं किंचिविसेसाहियाइं परिक्खेवेणं। अब्भंतरानंतरे णं भंते! सूरमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्च पणयाले जोयणसए पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसयसहस्साइं पन्नरस य जोयणसहस्साइं एगं च सत्तुत्तरं जोयणसयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते। अब्भंतरतच्चे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में सर्वाभ्यन्तर सूर्य – मण्डल का लम्बाई – चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ९९६४० योजन तथा परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है। द्वितीय आभ्यन्तर सूर्य – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६४५ – ३५/६१ योजन तथा परिधि ३१५१०७ योजन है। तृतीय आभ्यन्तर सूर्य – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६५१ – ६/६१
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 258 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तदा णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच-पंच जोयणसहस्साइं दोन्नि य एगावण्णे जोयणसए एगूनतीसं च सट्ठिभाए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तदा णं इह-गयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य जोयणस्स सट्ठिभाएहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर – मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो वह एक – एक मुहूर्त्त में कितने क्षेत्र को गमन करता है ? गौतम ! वह एक – एक मुहूर्त्त में ५२५१ – २९/६० योजन पार करता है। उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्र – स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६० योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। वहाँ से निकलता हुआ सूर्य नव
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 259 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतरा मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। जया णं भंते! सूरिए अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे, केमहालया राई भवइ? गोयमा! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि य एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब – उस समय दिन कितना बड़ा होता है, रात कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! उत्तमावस्थाप्राप्त, उत्कृष्ट – १८ मुहूर्त्त का दिन होता है, जघन्य १२ मुहुर्त्त की रात होती है। वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नये संवत्सर में प्रथम अहोरात्र में दूसरे आभ्यन्तर
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 262 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तया णं भंते! किंसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता? गोयमा! उड्ढीमुहकलंबुया-पुप्फसंठाणसंठिया अंधयारसंठिई पन्नत्ता– अंतो संकुया बाहिं वित्थडा, अंतो वट्टा बाहिं पिहुला, अंतो अंकमुहसंठिया बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिया, उभओ पासे णं तीसे दो बाहाओ अवट्ठियाओ हवंति– पणयालीसं-पणयालीसं जोयणसहस्साइं आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अनवट्ठियाओ हवंति, तं जहा–सव्वब्भंतरिया चेव बाहा, सव्वबाहिरिया चेव बाहा। तीसे णं सव्वब्भंतरीया बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोयणसहस्साइं तिन्नि य चउवीसे जोयणसए छच्च दसभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं। से णं भंते! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएति वएज्जा? गोयमा! जे णं मंदरस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तब अन्धकार – स्थिति कैसी होती है ? गौतम ! अन्धकार – स्थिति तब ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प का संस्थान लिये होती है। वह भीतर संकीर्ण, बाहर विस्तीर्ण इत्यादि होती है। उसकी सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में ६३२४ – ६/१० योजन – प्रमाण है। जो पर्वत की परिधि है, उसे दो से गुणित किया जाए, गुणनफल को दस
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 263 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! तं चेव जाव दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता तं चेव जाव उच्चत्तेणं। जइ णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि या मज्झंतियमुहुत्तंसि या अत्थमणमुहुत्तंसि या सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं, कम्हा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य (दो) उद्‌गमन – मुहूर्त्त में – स्थानापेक्षया दूर होते हुए भी द्रष्टा की प्रतीति की अपेक्षा से समीप दिखाई देते हैं ? मध्याह्न – काल में समीप होते हुए भी क्या वे दूर दिखाई देते हैं ? अस्तमन – वेलामें दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं ? हा गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 264 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीतं खेत्तं गच्छंति? पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति? अनागयं खेत्तं गच्छंति? गोयमा! नो तीतं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति, नो अनागयं खेत्तं गच्छंति। तं भंते! किं पुट्ठं गच्छंति? अपुट्ठं गच्छंति? गोयमा! पुट्ठं गच्छंति, नो अपुट्ठं गच्छंति। तं भंते! किं ओगाढं गच्छंति? अणोगाढं गच्छंति? गोयमा! ओगाढं गच्छंति, नो अनोगाढं गच्छंति। तं भंते! किं अनंतरोगाढं गच्छंति? परंपरोगाढं गच्छंति? गोयमा! अनंतरोगाढं गच्छंति, नो परंपरोगाढं गच्छंति। तं भंते! किं अणुं गच्छंति? बायरं गच्छंति? गोयमा! अणुंपि गच्छंति, बायरंपि गच्छंति। तं भंते! किं उड्ढं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य अतीत – क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न या अनागत क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे केवल वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। भगवन्‌ ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्शपूर्वक ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 265 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ? पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ? अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ? गोयमा! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, नो अनागए खेत्ते किरिया कज्जइ। सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसिं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में, या प्रत्युत्पन्न – क्षेत्र में अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन आदि क्रिया प्रत्युत्पन्न क्षेत्र में ही की जाती है। सूर्य अपने तेज द्वारा क्षेत्र – स्पर्शन पूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं। वह अवभासन आदि क्रिया
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 266 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उड्ढं तवयंति अहे तिरियं च? गोयमा! एगं जोयणसयं उड्ढं तवयंति, अट्ठारस जोयणसयाइं अहे तवयंति, सीयालीसं जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेवट्ठे जोयणसए एगवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवयंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र को ऊर्ध्वभाग में, अधोभाग में तथा तिर्यक्‌ भाग में तपाते हैं ? गौतम! ऊर्ध्वभाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र को तथा तिर्यक्‌ भाग में ४७२६३ – २१/६० योजन क्षेत्र को अपने तेज से तपाते हैं –
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 267 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, चारट्ठिइया गइरइया गइसमावन्नगा? गोयमा! अंतो णं मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय गहगण-नक्खत्त तारारूवा ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठिइया, गइरइया गइसमा-वण्णगा उड्ढीमुह-कलंबुया-पुप्फसंठाण-संठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे – ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं – या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकारमें
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 268 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेंति? गोयमा! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति जाव तत्थण्णे इंदे उववण्णे भवइ। इंदट्ठाणे णं भंते! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए। बहिया णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवा, तं चेव नेयव्वं, नाणत्तं– विमानोववन्नगा, नो चारोववन्नगा, चारट्ठिइया, नो गइरइया नो गइसमावन्नगा पक्किट्टगसंठाणसंठिएहिं जोयणसयसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! चार या पाँच सामानिक देव मिल कर इन्द्रस्थान का संचालन करते हैं। इन्द्र का स्थान कम एक समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है। मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती ज्योतिष्क
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 269 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस चंदमंडला पन्नत्ता। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया चंदमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहित्ता पंच चंदमंडला पन्नत्ता। लवणे णं भंते! पुच्छा। गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं दस चंदमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पन्नरस चंदमंडला भवंतीतिमक्खायं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चन्द्र – मण्डल कितने हैं ? गौतम ! १५ हैं। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र अवगाहन कर पाँच चन्द्र – मण्डल है। लवणसमुद्रमें ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र – मण्डल हैं। यों कुल १५ चन्द्र – मण्डल होते हैं
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 270 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतराओ णं भंते! चंदमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए चंदमंडले पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल से सर्वबाह्य चन्द्र – मण्डल अबाधित रूप में कितनी दूरी पर है। गौतम ! ५१० योजन की दूरी पर है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 271 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदमंडलस्स णं भंते! चंदमंडलस्स य एस णं केवइयं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते? गोयमा! पणतीसं-पणतीसं जोयणाइं तीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए चंदमंडलस्स-चंदमंडलस्स अबाहाए अंतरे पन्नत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक चन्द्र – मण्डल का दूसरे चन्द्र – मण्डल से कितना अन्तर है ? गौतम ! ३५ – ३०/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के सात भागों में चार भाग योजनांश परिमित अन्तर है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 272 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चंदमंडले णं भंते! केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं, केवइयं बाहल्लेणं पन्नत्ते? गोयमा! छप्पन्नं एगसट्ठिभाए जोयणस्स आयामविक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, अट्ठावीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स बाहल्लेणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई, परिधि तथा ऊंचाई कितनी है ? गौतम ! लम्बाई – चौड़ाई ५६/६१ योजन, परिधि उससे कुछ अधिक तीन गुनी तथा ऊंचाई २८/६१ योजन है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 273 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए सव्वब्भंतरए चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भंतरे चंदमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं अट्ठ य छप्पन्ने जोयणसए पणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता चत्तारि चुण्णियाभाए अबाहाए अब्भंतरानंतरे चंदमंडले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भंतरतच्चे चंदमंडले पन्नत्ते? गोयमा! चोयालीसं जोयणसहस्साइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल कितनी दूरी पर है ? गौतम ! ४४८२० योजन की दूरी पर है। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से दूसरा आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल ४४८५६ – २५/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से ४ भाग योजनांश की दूरी पर है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 274 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वब्भंतरे णं भंते! चंदमंडले केवइयं आयामविक्खंभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं छच्चचत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसहस्साइं पन्नरस जोयणसयसहस्साइं अउणानउइं च जोयणाइं किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ते। अब्भंतरानंतरे सा चेव पुच्छा। गोयमा! नवनउइं जोयणसहस्साइं सत्त य बारसुत्तरे जोयणसए एगावन्नं च एगसट्ठिभागे जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियाभागं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि य जोयणसयसहस्साइं पन्नरस सहस्साइं तिन्नि य एगूनवीसे जोयणसए किंचि-विसेसाहिए परिक्खेवेणं। अब्भंतरतच्चे णं जाव पन्नत्ते? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई तथा परिधि कितनी है ? गौतम ! सर्वाभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९६४० योजन तथा उसकी परिधि कुछ अधिक ३१५०८९ योजन है। द्वितीय आभ्यन्तर चन्द्र – मण्डल की लम्बाई – चौड़ाई ९९७१२ – ५१/६१ योजन तथा ६१ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ७ भागों में से १ भाग
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 275 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! चंदे सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं तेवत्तरिं च जोयणाइं सत्तत्तरिं च चोयाले भागसए गच्छइ मंडलं तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता। तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवट्ठेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। जया णं भंते! चंदे अब्भंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं सत्तत्तरिं च जोयणाइं छत्तीसं च चोवत्तरे भागसए गच्छइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जब चन्द्र सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त्त कितना क्षेत्र पार करता है ? गौतम ! ५०७३ – ७७४४/१३७२५ योजन। तब वह यहाँ स्थित मनुष्यों को ४७२६३ – २१/६१ योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। जब चन्द्र दूसरे आभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तब प्रतिमुहूर्त्त ५०७७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 276 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीयं जोयणसयं ओगाहेत्ता, एत्थ णं दो नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। लवणे णं भंते! समुद्दे केवइयं ओगाहेत्ता केवइयं नक्खत्तमंडला पन्नत्ता? गोयमा! लवणे णं समुद्दे तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता, एत्थ णं छ नक्खत्तमंडला पन्नत्ता। एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणसमुद्दे अट्ठ नक्खत्तमंडला भवंतीतिमक्खायं। सव्वब्भंतराओ णं भंते! नक्खत्तमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए नक्खत्तमंडले पन्नत्ते? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नक्षत्रमण्डल कितने बतलाये हैं ? गौतम ! आठ। जम्बूद्वीपमें १८० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दो नक्षत्रमण्डल हैं। लवणसमुद्र में ३३० योजन क्षेत्र का अवगाहन कर छ नक्षत्रमण्डल हैं। सर्वाभ्यन्तर नक्षत्र – मण्डल से सर्वबाह्य नक्षत्रमण्डल ५१० योजन की अव्यवहित दूरी पर है। एक नक्षत्रमण्डल से दूसरे नक्षत्रमण्डल
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 277 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंति, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीणमागच्छंति, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण -पाईणमागच्छंति? हंता गोयमा! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे जाव णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती सूरप-ण्णत्ती वत्थुसमासेणं समत्ता भवइ। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे चंदिमा उदीण-पाईणमुग्गच्छइ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमसयस्स दसमे उद्देसे जाव अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो! इच्चेसा जंबुद्दीवपन्नत्ती चंदपन्नत्ती

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य – ईशान कोण में उदित होकर क्या आग्नेय कोण में अस्त होते हैं, आग्नेय कोण में उदित होकर नैर्ऋत्य कोण में अस्त होते हैं, नैर्ऋत्य कोण में उदित होकर वायव्य कोण में अस्त होते हैं, वायव्य कोण में उदित होकर ईशान कोण में अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 278 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! संवच्छरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच संवच्छरा पन्नत्ता, तं जहा–नक्खत्तसंवच्छरे जुगसंवच्छरे पमाणसंवच्छरे लक्खणसंवच्छरे सनिच्छरसंवच्छरे। नक्खत्तसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुवालसविहे पन्नत्ते, तं जहा–सावणे भद्दवए आसोए कत्तिए मग्गसिरे पोसे माहे फग्गुणे चेत्ते वइसाहे जेट्ठामूले आसाढे, जं वा विहप्फइ महग्गहे दुवालसेहिं संवच्छरेहिं सव्वनक्खत्तमंडलं समानेइ। सेत्तं नक्खत्तसंवच्छरे। जुगसंवच्छरे णं भंते! कइविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–चंदे चंदे अभिवड्ढिए चंदे अभिवड्ढिए चेव। पढमस्स णं भंते! चंदसंवच्छरस्स कइ पव्वा पन्नत्ता?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! संवत्सर कितने हैं ? गौतम ! संवत्सर पाँच हैं – नक्षत्र – संवत्सर, युग – संवत्सर, प्रमाण – संवत्सर, लक्षण – संवत्सर तथा शनैश्चर – संवत्सर। नक्षत्र – संवत्सर कितने प्रकार का है ? बारह प्रकार का, श्रावण, भाद्रपद, आसोज यावत्‌ आषाढ। अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो सर्व नक्षत्रमण्डल का परिसमापन
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 286 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! संवच्छरस्स कइ मासा पन्नत्ता? गोयमा! दुवालस मासा पन्नत्ता। तेसि णं दुविहा नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–लोइया लोउत्तरिया य। तत्थ लोइया णामा इमे, तं जहा–सावणे भद्दवए जाव आसाढे। लोउत्तरिया नामा इमे, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्येक संवत्सर के कितने महीने हैं ? गौतम ! बारह महीने, उनके लौकिक एवं लोकोत्तर दो प्रकार के नाम। लौकिक नाम – श्रावण, भाद्रपद यावत्‌ आषाढ। लोकोत्तर नाम इस प्रकार हैं – १. अभिनन्दित, २. प्रतिष्ठित, ३. विजय, ४. प्रीतिवर्द्धन, ५. श्रेयान्‌, ६. शिव, ७. शिशिर, ८. हिमवान्‌, ९. वसन्तमास, १०. कुसुमसम्भव, ११. निदाघ तथा
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 289 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगमेगस्स णं भंते! मासस्स कइ पक्खा पन्नत्ता? गोयमा! दो पक्खा पन्नत्ता, तं जहा–बहुलपक्खे य सुक्कपक्खे य। एगमेगस्स णं भंते! पक्खस्स कइ दिवसा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस दिवसा पन्नत्ता, तं जहा–पडिवादिवसे बिइयादिवसे जाव पन्नरसीदिवसे। एएसि णं भंते! पन्नरसण्हं दिवसाणं कइ नामधेज्जा पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रत्येक महीने के कितने पक्ष हैं ? गौतम ! दो, कृष्ण तथा शुक्ल। प्रत्येक पक्ष के पन्द्रह दिन हैं, – १. प्रतिपदा – दिवस, २. द्वितीया – दिवस, ३. तृतीया – दिवस यावत्‌ १५. पंचदशी – दिवस – अमावस्या या पूर्णमासी का दिन। इन पन्द्रह दिनों के पन्द्रह नाम हैं, जैसे – १. पूर्वाङ्ग, २. सिद्धमनोरम, ३. मनोहर, ४. यशोभद्र, ५. यशोधर,
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 302 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! नक्खत्ता पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठावीसं नक्खत्ता पन्नत्ता, तं जहा–अभिई सवणो धनिट्ठा सयभिसया पुव्वभद्दवया उत्तरभद्दवया रेवई अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी मियसिरं अद्दा पुनव्वसू पूसो अस्सेसा मघा पुव्वफग्गुणी उत्तरफग्गुणी हत्थो चित्ता साइ विसाहा अनुराहा जेट्ठा मूलं पुव्वासाढा उत्तरासाढा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नक्षत्र कितने हैं ? गौतम ! अठ्ठाईस – अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्‌, पूर्वभाद्रपदा, उत्तर भाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा तथा उत्तराषाढा।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 303 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेनवि उत्तरेनवि पमद्दंपि जोगं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं चंदस्स दाहिणेनवि पमद्दंपि जोयं जोएंति? कयरे नक्खत्ता, जे णं सया चंदस्स पमद्दं जोयं जोएंति? गोयमा! एएसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं, तत्थ णं, जेते नक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणेणं जोयं जोएंति, ते णं छ, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्र के दक्षिण में – योग करते हैं – कितने नक्षत्र चन्द्रमा के उत्तर में, कितने दक्षिण में भी, उत्तर में भी, कितने चन्द्रमा के दक्षिण में भी नक्षण – विमानों को चीरकर भी और कितने नक्षत्र सदा नक्षत्र – विमानों को चीरकर चन्द्रमा से योग करते हैं ? गौतम
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 307 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइतारे पन्नत्ते? गोयमा! तितारे पन्नत्ते। एवं नेयव्वा जस्स जइयाओ ताराओ, इमं च तं तारग्गं–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र के कितने तारे हैं ? गौतम ! तीन तारे हैं। जिन नक्षत्रों के जितने जितने तारे हैं, वे प्रथम से अन्तिम तक इस प्रकार हैं – अभिजित नक्षत्र के तीन तारे, श्रवण के तीन, धनिष्ठा के पाँच, शतभिषक्‌ के सौ, पूर्वभाद्रपदा के दो, उत्तर – भाद्रपदा के दो, रेवती के बत्तीस, अश्विनी के
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 310 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिई नक्खत्ते किंगोत्ते पन्नत्ते? गोयमा! मोग्गलायणसगोत्ते।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का क्या गोत्र है ? गौतम ! मौद्‌गलायन गोत्र है।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 311 Gatha Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोग्गलायण संखायणे य, तह अग्गभाव कण्णिल्ले । तत्तो य जाउकण्णे, धनंजए चेव बोद्धव्वे ॥

Translated Sutra: प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं – अभिजित नक्षत्र का मौद्‌गलायन, श्रवण का सांख्यायन, धनिष्ठा का अग्रभाग, शतभिषक्‌ का कण्णिलायन, पूर्वभाद्रपदा का जातुकर्ण्ण, उत्तरभाद्रपदा का धनञ्जय। तथा – रेवती का पुष्यायन, अश्विनी का अश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृत्तिका का अग्निवेश्य, रोहिणी
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 315 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! गोसीसावलिसंठिए पन्नत्ते,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का कैसा संस्थान है ? गौतम ! गोशीर्षावलि – प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं – अभिजित का गोशीर्षावलि, श्रवण का कासार, धनिष्ठा का पक्षी के कलेवर सदृश, शतभिषक्‌ का पुष्प – राशि, पूर्वभाद्रपदा का अर्धवापी, उत्तरभाद्रपदा का भी अर्धवापी, रेवती
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 319 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइमुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ? गोयमा! नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभाए मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोगं जोएइ। एवं इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वं–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र कितने मुहूर्त्त पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ९ – २७/६७ मुहूर्त्त रहता है। इन नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग इस प्रकार है। अभिजित नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ एक अहोरात्र में उनके २६/३७ भाग परिमित योग होता है। इससे अभिजित चन्द्रयोग काल ९ – २७/६७
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 324 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिईनक्खत्ते कइ अहोरत्ते सूरेण सद्धिं जोगं जोएइ? गोयमा! चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेणं सद्धिं जोगं जोएइ। एवं इमाहिं गाहाहिं नेयव्वं–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन अठ्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ कितने अहोरात्र पर्यन्त योगयुक्त रहता है ? गौतम ! ४ अहोरात्र एवं ६ मुहूर्त्त पर्यन्त। इन गाथाओं द्वारा नक्षत्र – सूर्ययोग जानना। अभिजित नक्षत्र का सूर्य के साथ ४ अहोरात्र तथा ६ मुहूर्त्त पर्यन्त योग रहता है। शतभिषक्‌, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 329 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! कुला, कइ उवकुला, कइ कुलोवकुला पन्नत्ता? गोयमा! बारस कुला, बारस उवकुला, चत्तारि कुलोवकुला पन्नत्ता। बारस कुला, तं जहा–धनिट्ठा कुलं उत्तरभद्दवया कुलं अस्सिणी कुलं कत्तिया कुलं मिगसिर कुलं पुस्सो कुलं मघा कुलं उत्तरफग्गुणी कुलं चित्ता कुलं विसाहा कुलं मूलो कुलं उत्तरासाढा कुलं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल कितने हैं ? गौतम ! कुल बारह, उपकुल बारह तथा कुलोपकुल चार हैं। बारह कुल – धनिष्ठा, उत्तरभाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, मूल तथा उत्तराषाढाकुल।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क

Hindi 331 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बारस उवकुला, तं जहा–सवणो उवकुलं पुव्वभद्दवया उवकुलं रेवई उवकुलं भरणी उवकुलं रोहिणी उवकुलं पुन्नव्वसू उवकुलं अस्सेसा उवकुलं पुव्वफग्गुणी उवकुलं हत्थो उवकुलं साई उवकुलं जेट्ठा उवकुलं पुव्वासाढा उवकुलं। चत्तारि कुलोवकुला तं जहा–अभिई कुलोवकुला सयभिसया कुलोवकुला अद्दा कुलोवकुला अनुराहा कुलोवकुला। कइ णं भंते! पुण्णिमाओ, कइ अमावसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! बारस पुण्णिमाओ, बारस अमावसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–साविट्ठी पोट्ठवई आसोई कत्तिगी मग्गसिरी पोसी माही फग्गुणी चेत्ती वइसाही जेट्ठामूली आसाढी। साविट्ठिण्णं भंते! पुण्णिमासिं कइ नक्खत्ता जोगं जोएंति? गोयमा! तिन्नि

Translated Sutra: बारह उपकुल – श्रवण, पूर्वभाद्रपदा, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा तथा पूर्वाषाढा उपकुल। चार कुलोपकुल – अभिजित, शतभिषक्‌, आर्द्रा तथा अनुराधा कुलोपकुल। भगवन्‌ ! पूर्णिमाएं तथा अमावस्याएं कितनी हैं ? गौतम ! बारह पूर्णिमाएं तथा बारह अमावस्याएं हैं, जैसे – श्राविष्ठी,
Showing 1601 to 1650 of 3444 Results