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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 300 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चंपय वउले य तहा, वेडसिरुक्खे धायईरुक्खे । साले य वड्ढमाणस्स, चेइयरुक्खा जिनवराणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 302 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्ने व गाउयाइं, चेइयरुक्खो जिनस्स उसभस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 303 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहिं उववेया । सुरअसुरगरुलमहिया, चेइयरुक्खा जिनवराणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 307 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया । तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सा जिनवराणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 311 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जक्खिणी पुप्फचूला य, चंदनऽज्जा य आहिया उदितोदितकुलवंसा । विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया तित्थप्पवत्तयाणं, पढमा सिस्सी जिनवराणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Samavayang સમવયાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

समवाय प्रकीर्णक

Gujarati 349 Gatha Ang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंजलं जिनवसहं, वंदे य अनंतयं अमियनाणिं । उवसंतं च धुयरयं, वंदे खलु गुत्तिसेनं च ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૪
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 104 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहियनियचित्तो । सव्वं खमावइत्ता अहयं पि खमामि सव्वेसिं ॥

Translated Sutra: और फिर मैं जिनकथित धर्म में अर्पित चित्तवाला होकर सर्व जगत के जीव समूह के साथ बंधुभाव से निःशल्य तरह से खमता हूँ। और मैं भी सबको खमाता हूँ।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 49 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिप्पुरिसनाडयम्मि वि न सा रई जह महत्थवित्थारे । जिनवयणम्मि विसाले हेउसहस्सोवगूढम्मि ॥

Translated Sutra: वैक्रियलब्धि के योग से अपने पुरुषरूप को विकुर्वके, देवताएं जो बत्तीस प्रकार के हजार प्रकार से, संगीत की लयपूर्वक नाटक करते हैं, उसमें वो लोग वो आनन्द नहीं पा सकते कि जो आनन्द अपने हस्तप्रमाण संथारा पर आरूढ़ हुए क्षपक महर्षि पाते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 108 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ ताव ते मुनिवरा आरोवियवित्थरा अपरिकम्मा । गिरिपब्भारविलग्गा बहुसावयसंकडं भीमं ॥

Translated Sutra: हे पुण्य पुरुष ! आराधना में ही जिन्होंने अपना सबकुछ अर्पण किया है, ऐसे पूर्वकालीन मुनिवर; जब वैसी तरह के अभ्यास बिना भी कईं जंगली जानवर से चारों ओर घिरे हुए भयंकर पर्वत की चोटी पर कायोत्सर्ग ध्यान में रहते थे।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 109 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धीधणियबद्धकच्छा अनुत्तरविहारिणो समक्खाया । सावयदाढगया वि हु साहंती उत्तमं अट्ठं ॥

Translated Sutra: और फिर अति धीरवृत्ति को धरनेवाले इस कारण से श्री जिनकथित आराधना की राह में अनुत्तर रूप से विहरनेवाले वो महर्षि पुरुष, जंगली जानवर की दाढ़ में आने के बावजूद भी समाधिभाव को अखंड़ रखते हैं और उत्तम अर्थ की साधना करते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 111 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरमन्नं ति । धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरं पि छड्डंति ॥

Translated Sutra: क्योंकि जीव शरीर से अन्य है, वैसे शरीर भी जीव से भिन्न है। इसलिए शरीर के ममत्व को छोड़ देनेवाले सुविहित पुरुष श्री जिनकथित धर्म की आराधना की खातिर अवसर पर शरीर का भी त्याग कर देते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 1 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काऊण नमोक्कारं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संथारम्मि निबद्धं गुणपरिवाडिं निसामेह ॥

Translated Sutra: श्री जिनेश्वरदेव – सामान्य केवलज्ञानीओं के बारेमें वृषभ समान, देवाधिदेव श्रमण भगवान्‌ महावीर परमात्मा को नमस्कार करके; अन्तिम काल की आराधना रूप संथारा के स्वीकार से प्राप्त होनेवाली परम्परा को मैं कहता हूँ
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 2 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस किराऽऽराहणया, एस किर मनोरहो सुविहियाणं । एस किर पच्छिमंते पडागहरणं सुविहियाणं ॥

Translated Sutra: श्री जिनकथित यह आराधना, चारित्र धर्म की आराधना रूप है। सुविहित पुरुष इस तरह की अन्तिम आराधना की ईच्छा करते हैं, क्योंकि उनके जीवन पर्यन्त की सर्व आराधनाओं की पताका के स्वीकार रूप यह आराधना है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 5 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसवरपुंडरीओ अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं । महिलाण भगवईओ जिनजननीओ जयम्मि जहा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 6 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वंसाणं जिनवंसो, सव्वकुलाणं च सावयकुलाइं । सिद्धिगइ व्व गईणं, मुत्तिसुहं सव्वसोक्खाणं ॥

Translated Sutra: और वंश में जैसे श्री जिनेश्वर देव का वंश, सर्व कुल में जैसे श्रावककुल, गति के लिए जैसे सिद्धिगति, सर्व तरह के सुख में जैसे मुक्ति का सुख, तथा –
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 7 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्माणं च अहिंसा, जनवयवयणाण साहुवयणाइं । जिनवयणं च सुईणं, सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥

Translated Sutra: सर्व धर्म में जैसे श्री जिनकथित अहिंसाधर्म, लोकवचन में जैसे साधु पुरुष के वचन, इतर सर्व तरह की शुद्धि के लिए जैसे सम्यक्त्व रूप आत्मगुण की शुद्धि, वैसे श्री जिनकथित अन्तिमकाल की आराधना में यह आराधना जरूरी है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 9 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं तु तए एयं पंडियमरणं तु जिनवरक्खायं । हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमे लद्धा ॥

Translated Sutra: विनेय ! श्री जिनकथित पंड़ित मरण तूने पाया। इसलिए निःशंक कर्म मल्ल को हणकर उस सिद्धि की प्राप्ति रूप जयपताका पाई।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 10 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] झाणाण परमसुक्कं, नाणाणं केवलं जहा नाणं । परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणियं जिनवरेहिं

Translated Sutra: सर्व तरह के ध्यान में जैसे परमशुक्लध्यान, मत्यादि ज्ञान में केवलज्ञान और सर्व तरह के चारित्र में जैसे कषाय आदि के उपशम से प्राप्त यथाख्यात चारित्र क्रमशः मोक्ष का कारण बनता है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 11 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वत्तुमलाभाणं सामन्नं चेव लाभ मन्नंति । परमुत्तम तित्थयरो, परमगई परमसिद्धि त्ति ॥

Translated Sutra: श्री जिनकथित श्रमणत्व, सर्व तरह के श्रेष्ठ लाभ में सर्वश्रेष्ठ लाभ गिना जाता है; कि जिसके योग से श्री तीर्थंकरत्व, केवलज्ञान और मोक्ष, सुख प्राप्त होता है। और फिर परलोक के हित में रक्त और क्लिष्ट मिथ्यात्वी आत्मा को भी मोक्ष प्राप्ति की जड़ जो सम्यक्त्व गिना जाता है, वो सम्यक्त्व, देशविरति का और सम्यग्ज्ञान
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 13 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लेसाण सुक्कलेसा, नियमाणं बंभचेरवासो य । गुत्ती-समिइगुणाणं मूलं तह संजमो चेव ॥

Translated Sutra: तथा सर्व तरह की लेश्या में जैसे शुक्ललेश्या सर्व व्रत, यम आदि में जैसे ब्रह्मचर्य का व्रत और सर्व तरह के नियम के लिए जैसे श्री जिनकथित पाँच समिति और तीन गुप्ति समान गुण विशेष गिने जाते हैं, वैसे श्रामण्य सभी गुण में प्रधान है। जब कि संथारा की आराधना इससे भी अधिक मानी जाती है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 16 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवअग्गि-नियमसूरा जिनवरनाणा विसुद्धपच्छयणा । जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा ॥

Translated Sutra: जिनकथित तप रूप अग्नि से कर्मकाष्ठ का नाश करनेवाले, विरति नियमपालन में शूरा और सम्यग्ज्ञान से विशुद्ध आत्म परिणतिवाले और उत्तम धर्म रूप पाथेय जिसने पाया है ऐसी महानुभाव आत्माएं संथारा रूप गजेन्द्र पर आरूढ़ होकर सुख से पार को पाते हैं।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 18 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता एय तुमे लद्धं जिनवयणामयविभूसियं देहं । धम्मरयणस्सिया ते पडिया भवणम्मि वसुहारा ॥

Translated Sutra: तुमने श्री जिनवचन समान अमृत से विभूषित शरीर पाया है। तेरे भवन में धर्मरूप रत्न को आश्रय करके रहनेवाली वसुधारा पड़ी है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 19 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पत्ता उत्तमसुपुरिस! कल्लाणपरंपरा परमदिव्वा । पावयण साहुधारं कयं च ते अज्ज सुप्पुरिसा! ॥

Translated Sutra: क्योंकि जगत में पाने लायक सबकुछ तूने पाया है। और संथारा की आराधना को अपनाने के योग से, तूने जिनप्रवचन के लिए अच्छी धीरता रखी है। इसलिए उत्तम पुरुष से सेव्य और परमदिव्य ऐसे कल्याणलाभ की परम्परा प्राप्त की है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 21 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुविहियगुणवित्थारं संथारं जे लहंति सप्पुरिसा । तेसि जियलोयसारं रयणाहरणं कयं होइ ॥

Translated Sutra: सुविहित पुरुष, जिसके योग से गुण की परम्परा प्राप्त कर सकते हैं, उस श्री जिनकथित संथारा को जो पुण्यवान आत्माएं पाती हैं, उन आत्माओं ने जगत में सारभूत ज्ञानादि रत्न के आभूषण से अपनी शोभा बढ़ाई है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 22 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं तित्थ तुमे लद्धं, जं पवरं सव्वजीवलोगम्मि । ण्हाया जत्थ मुनिवरा निव्वाणमनुत्तरं पत्ता ॥

Translated Sutra: समस्त लोक में उत्तम और संसारसागर के पार को पानेवाला ऐसा श्री जिनप्रणीत तीर्थ, तूने पाया है क्योंकि श्री जिनप्रणीत तीर्थ के साफ और शीतल गुण रूप जलप्रवाह में स्नान करके, अनन्ता मुनिवरने निर्वाण सुख प्राप्त किया है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 23 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आसव संवर निज्जर तिन्नि वि अत्था समाहिया जत्थ । तं तित्थं ति भणंता सीलव्वयबद्धसोवाणा ॥

Translated Sutra: आश्रव, संवर और निर्जरा आदि तत्त्व, जो तीर्थ में सुव्यवस्थित रक्षित हैं; और शील, व्रत आदि चारित्र धर्मरूप सुन्दर पगथी से जिसका मार्ग अच्छी तरह से व्यवस्थित है वो श्री जिनप्रणीत तीर्थ कहलाता है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 25 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिहुयणरज्जसमाहिं पत्तो सि तुमं हि समयकप्पम्मि । रज्जाभिसेयमउलं विउलफलं लोइ विहरंति ॥

Translated Sutra: जिनकथित संथारा की आराधना प्राप्त करने से तूने तीन भुवन के राज्य में मूल कारण समाधि सुख पाया है। सर्व सिद्धान्तमें असामान्य और विशाल फल का कारण ऐसे संथारारूप राज्याभिषेक, उसे भी तूने पाया है।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Hindi 27 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवा वि देवलोए भुंजंता बहुविहाइं भोगाइं । संथारं चिंतंता आसन-सयनाइं मुंचंति ॥

Translated Sutra: देवलोक के लिए कईं तरह के देवताई सुख को भुगतनेवाले देव भी, श्री जिनकथित संथारा कि आराधना का पूर्ण आदरभाव से ध्यान करके आसन, शयन आदि अन्य सर्व व्यापार का त्याग करते हैं। तथा –
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Hindi 54 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निच्चं पि तस्स भावुज्जुयस्स जत्थ व जहिं व संथारो । जो होइ अहक्खाओ विहारमब्भुट्ठिओ लूहो ॥

Translated Sutra: द्रव्य से संलेखना को अपनाने को तत्पर, भाव से कषाय के त्याग द्वारा रूक्ष – लूखा ऐसा आत्मा हंमेशा जैन शासन में अप्रमत्त होने के कारण से किसी भी क्षेत्र में किसी भी वक्त श्री जिनकथित आराधना में परिणत बनते हैं
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्य दृष्टान्ता

Hindi 62 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणनिच्छियमई निययसरीरे वि अप्पडीबद्धो । सो वि तहविज्झमाणो पडिवन्नो उत्तिमं अट्ठं ॥

Translated Sutra: उसके बाद यवन राजा ने संवेग पाकर श्रमणत्व को अपनाया। शरीर के लिए स्पृहारहित बनकर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े रहे। उस अवसर पर किसीने उन्हें बाण से बींध लिया। फिर भी संथारा को अपनाकर उस महर्षि ने समाधिकरण पाया।
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

संस्तारकस्य दृष्टान्ता

Hindi 71 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोल्लयरम्मि पुरवरे अह सो अब्भुट्ठिओ, ठिओ धम्मे । कासीय गिद्धपट्ठं पच्चक्खाणं विगयसोगो ॥

Translated Sutra: श्री जिनकथित धर्म में स्थित ऐसे उसने फोल्लपुर नगर में अनशन को अपनाया और गृद्धपृष्ठ पच्चक्खाण को शोकरहितरूप से किया। उस वक्त जंगल में हजार जानवरों ने उनके शरीर को चूंथ डाला। इस तरह जिसका शरीर खाया जा रहा हे, ऐसे वो महर्षिने शरीर को वोसिराके – त्याग करके पंड़ित मरण पाया। सूत्र – ७१, ७२
Sanstarak संस्तारक Ardha-Magadhi

भावना

Hindi 121 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं मए अभिथुया संथारगइंदखंधमारूढा । सुसमणनरिंदचंदा सुहसंकमणं ममं दिंतु ॥

Translated Sutra: इस तरह से मैंने जिनकी स्तुति की है, ऐसे श्री जिनकथित अन्तिम कालीन संथारा रूप हाथी के स्कन्ध पर सुखपूर्वक आरूढ़ हुए, नरेन्द्र के लिए चन्द्र समान श्रमण पुरुष, सदाकाल शाश्वत, स्वाधीन और अखंड़ सुख की परम्परा दो।
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 1 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] काऊण नमोक्कारं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संथारम्मि निबद्धं गुणपरिवाडिं निसामेह ॥

Translated Sutra: જિનેશ્વર વૃષભ વર્ધમાનને નમસ્કાર કરીને સંસ્તારકના સ્વીકારથી પ્રાપ્ત થતી ગુણોની પરિપાટીને હું કહીશ.
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 5 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसवरपुंडरीओ अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं । महिलाण भगवईओ जिनजननीओ जयम्मि जहा ॥

Translated Sutra: મણિમાં જેમ વૈડૂર્ય રત્ન, સુગંધમાં જેમ ગોશીર્ષ ચંદન, રત્નોમાં જેમ વજ્ર છે, તેમ સુવિહિતોને સંથારાની આરાધના શ્રેષ્ઠતર છે.
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 6 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वंसाणं जिनवंसो, सव्वकुलाणं च सावयकुलाइं । सिद्धिगइ व्व गईणं, मुत्तिसुहं सव्वसोक्खाणं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬. વંશોમાં જેમ જિનેશ્વરનો વંશ શ્રેષ્ઠ છે, સર્વકુલોમાં જેમ શ્રાવકનું કુળ શ્રેષ્ઠ છે, ગતિમાં જેમ સિદ્ધિ ગતિ શ્રેષ્ઠ છે, તેમ સર્વ સુખોમાં મુક્તિ સુખ શ્રેષ્ઠ છે. સૂત્ર– ૭. ધર્મોમાં જેમ અહિંસા શ્રેષ્ઠ છે, લોકવચનમાં જેમ સાધુવચન શ્રેષ્ઠ છે, શ્રુતિમાં જેમ જિનવચન શ્રેષ્ઠ છે, શુદ્ધિમાં જેમ સમ્યક્‌ત્વ શ્રેષ્ઠ
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 7 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धम्माणं च अहिंसा, जनवयवयणाण साहुवयणाइं । जिनवयणं च सुईणं, सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 9 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं तु तए एयं पंडियमरणं तु जिनवरक्खायं । हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमे लद्धा ॥

Translated Sutra: હે વિનેય ! જિનવર કથિત પંડિતમરણને તેં મેળવ્યુ. તેથી નિઃશંક કર્મમલ્લને હણી, તેં સિદ્ધિની પ્રાપ્તિરૂપ જય પતાકા મેળવી છે.
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 10 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] झाणाण परमसुक्कं, नाणाणं केवलं जहा नाणं । परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणियं जिनवरेहिं

Translated Sutra: જેમ ધ્યાનોમાં પરમશુક્લ ધ્યાન છે, જ્ઞાનોમાં જેમ કેવળજ્ઞાન છે, સર્વ પ્રકારના ચારિત્રોમાં જેમ યથાખ્યાત ચારિત્ર ક્રમશ: મોક્ષનુ કારણ છે,તેમ આ પંડિતમરણ પણ મોક્ષનુ કારણ છે.
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 16 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवअग्गि-नियमसूरा जिनवरनाणा विसुद्धपच्छयणा । जे निव्वहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬. તપરૂપ અગ્નિથી (કર્મકાષ્ઠ બાળતા), નિયમ પાલનમાં શૂર, સમ્યગ્‌જ્ઞાનથી વિશુદ્ધ પરિણતિવાળા, સંથારારૂપ હાથી ઉપર આરૂઢ થઈ સુખપૂર્વક પાર પામે છે. સૂત્ર– ૧૭. આ સંથારો પરમ આલંબન, ગુણોનું નિવાસ સ્થાન, કલ્પ – આચારરૂપ છે તથા સર્વોત્તમ તીર્થંકર પદ, મોક્ષગતિ, સિદ્ધ દશાનું મૂળ કારણ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૬, ૧૭
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

मङ्गलं, संस्तारकगुणा

Gujarati 18 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता एय तुमे लद्धं जिनवयणामयविभूसियं देहं । धम्मरयणस्सिया ते पडिया भवणम्मि वसुहारा ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮. તમે જિનવચનરૂપ અમૃતથી વિભૂષિત શરીર પ્રાપ્ત કર્યું છે. તારા ભવનને વિશે ધર્મરત્નને આશ્રીને રહેનારી વસુધારા પડેલી છે. કેમ કે જગતમાં મેળવવા યોગ્ય સઘળું મેળવ્યું છે. સૂત્ર– ૧૯. સંથારા આરાધનાથી તેં જિનપ્રવચનમાં સારી ધીરતા રાખી છે, તેથી ઉત્તમપુરુષોથી સેવ્ય અને પરમ દિવ્ય કલ્યાણની પરંપરા પ્રાપ્ત કરી છે,
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

संस्तारकस्वरूपं, लाभं

Gujarati 49 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिप्पुरिसनाडयम्मि वि न सा रई जह महत्थवित्थारे । जिनवयणम्मि विसाले हेउसहस्सोवगूढम्मि ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૯. વૈક્રિય લબ્ધિથી પોતાના પુરુષ રૂપોને વિકુર્વી દેવતાઓ જે નાટકો કરે છે, તેમાં તેઓ તે આનંદ મેળવી શકતા નથી, જે જિનવચનમાં રક્ત સંથારા આરૂઢ મહર્ષિ મેળવે છે. સૂત્ર– ૫૦. રાગ – દ્વેષમય પરિણામે કટુ જે વૈષયિક સુખોને ચક્રવર્તી અનુભવે છે, તે સંગદશાથી મુક્ત, વીતરાગ સાધુ ન અનુભવે (તેઓ કેવળ આત્મરમણતાના સુખ અનુભવે
Sanstarak સંસ્તારક Ardha-Magadhi

संस्तारकस्य दृष्टान्ता

Gujarati 62 Gatha Painna-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणनिच्छियमई निययसरीरे वि अप्पडीबद्धो । सो वि तहविज्झमाणो पडिवन्नो उत्तिमं अट्ठं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૧
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 87 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पन्नत्ता– बहुसमतुल्ला अविसेस-मणाणत्ता अन्नमन्नंनातिवट्टंति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–चुल्लहिमवंते चेव, सिहरिच्चेव। एवं–महाहिमवंते चेव, रूप्पिच्चेव। एवं–निसढे चेव, नीलवंते चेव। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हेमवत-हेरण्णवतेसु वासेसु दो वट्टवेयड्ढपव्वता पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नंणातिवट्टंति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा– सद्दावाती चेव, वियडावाती चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया

Translated Sutra: जम्बूद्वीप मे मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत कहे गए हैं, परस्पर सर्वथा समान, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बाई – चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करते हैं, यथा – लघु हिमवान्‌ और शिखरी। इसी प्रकार महाहिमवान्‌ और रुक्मि। निषध और नीलवान्‌ पर्वतों के सम्बन्ध
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 190 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: तिहिं ठाणेहिं अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु इच्छेज्ज मानुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, नो चेव णं संचाएति हव्वमागच्छित्तए, तं जहा– १.अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, से णं मानुस्सए कामभोगे नो आढाति, नो परियाणाति, नो ‘अट्ठं बंधति’, नो नियाणं पगरेति, नो ठिइपकप्पं पगरेति। २. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं मानुस्सए पेम्मे वोच्छिन्ने दिव्वे संकंते भवति। ३. अहुणोववन्ने देवे देवलोगेसु दिव्वेसु कामभोगेसु मुच्छिते गिद्धे गढिते अज्झोववन्ने, तस्स णं एवं भवति– ‘इण्हिं गच्छं

Translated Sutra: तीन कारणों से देवलोक में नवीन उत्पन्न देव मनुष्य – लोक में शीघ्र आने की ईच्छा करने पर भी शीघ्र आने में समर्थ नहीं होता है, यथा – देवलोक में नवीन उत्पन्न देव दिव्य कामभोगों में मूर्च्छित होने से, गृहयुद्ध होने से, स्नेहपाश में बंधा हुआ होने से, तन्मय होने से वह मनुष्य – सम्बन्धी कामभोगों को आदर नहीं देता है, अच्छा
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 220 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: तिविधा कप्पठिती पन्नत्ता, तं जहा– सामाइयकप्पठिती, छेदोवट्ठावणियकप्पठिती, नीव्विसमाण-कप्पठिती। अहवा–तिविहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– नीव्विट्ठकप्पट्ठिती, जिणकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती।

Translated Sutra: तीन प्रकार की कल्प स्थिति है, यथा – सामायिक कल्पस्थिति, छेदोपस्थापनीय कल्पस्थिति, निर्विशमान, कल्पस्थिति। अथवा तीन प्रकार की कल्पस्थिति कही गई हैं, यथा – निर्विष्ट कल्पस्थिति, जिनकल्प स्थिति, स्थविर कल्पस्थिति।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 234 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ जिणा पन्नत्ता, तं जहा–ओहिनाणजिने, मनपज्जवनाणजिने, केवलनाणजिने। तओ केवली पन्नत्ता, तं जहा–ओहिनाणकेवली, मनपज्जवनाणकेवली, केवलनाणकेवली। तओ अरहा पन्नत्ता, तं जहा–ओहिनाणअरहा, मनपज्जवनाणाअरहा, केवलनाणअरहा।

Translated Sutra: जिन तीन प्रकार के कहे गए हैं, अवधिज्ञानी जिन, मनःपर्यवज्ञानी जिन और केवलज्ञानी जिन। तीन केवली कहे गए हैं, यथा – अवधिज्ञानी केवली, मनःपर्यवज्ञानी केवली और केवलज्ञानी केवली। तीन अर्हन्त कहे गए हैं, यथा – अवधिज्ञानी अर्हन्त, मनःपर्यवज्ञानी अर्हन्त और केवलज्ञानी अर्हन्त।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 244 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तिन्नि सया चउद्दसपुव्वीणं अजिणाणं जिनसंकासाणं सव्वक्खर-सन्निवातीणं जिणाणं इव अवितहं वागरमाणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था।

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने जिन नहीं किन्तु जिन के समान, सर्वाक्षरसन्निपाती ‘सब भाषाओं के वेत्ता’ और जिन के समान यथातथ्य कहने वाले चौदह पूर्वधर मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा ‘संख्या’ तीन सौ थी।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 282 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पढमसमयजिणस्स णं चत्तारि कम्मंसा खीणा भवंति, तं जहा– नाणावरणिज्जं, दंसणावरणिज्जं, मोहणिज्जं, अंतराइयं। [सूत्र] उप्पन्ननाणदंसणधरे णं अरहा जिने केवली चत्तारि कम्मंसे वेदेति, तं जहा–वेदणिज्जं, आउयं, नामं, गोतं। [सूत्र] पढमसमयसिद्धस्स णं चत्तारि कम्मंसा जुगवं खिज्जंति, तं जहा– वेयणिज्जं, आउयं, नामं, गोतं।

Translated Sutra: प्रथम समय जिन के चार कर्म – प्रकृतियाँ क्षीण होती हैं, यथा – ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय। केवल ज्ञान – दर्शन जिन्हें उत्पन्न हुआ है, ऐसे अर्हन्‌, जिन केवल चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं, यथा – वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र। प्रथम समय सिद्ध के चार कर्मप्रकृतियाँ एक साथ क्षीण होती हैं, यथा –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 307 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहा गरहा पन्नत्ता, तं जहा–उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामित्तेगा गरहा, जंकिंचिमिच्छा-मित्तेगा गरहा, एवंपि पन्नत्तेगा गरहा।

Translated Sutra: गर्हा चार प्रकार की है, यथा – स्वकृत दोष की शुद्धि के लिए उचित प्रायश्चित्त लेने हेतु मैं स्वयं गुरु महाराज के समीप जाऊं यह एक गर्हा है। गर्हणीय दोषों का मैं निराकरण करूँ यह दूसरी गर्हा है। मैंने जो अनुचित किया है उसका मैं स्वयं मिथ्या दुष्कृत करूँ – यह तीसरी गर्हा है। स्वकृत दोषों की गर्हा करने से आत्म – शुद्धि
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 327 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– पुरत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, दाहिणिल्ले अंजनगपव्वते, पच्चत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, उत्तरिल्ले अंजनगपव्वते। ते णं अंजनगपव्वता चउरासीति जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस-जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, तदणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणा-परिहायमाणा उवरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पन्नत्ता मूले इक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, उवरिं तिन्नि-तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं

Translated Sutra: वलयाकार विष्कम्भ वाले नन्दीश्वर द्वीप के मध्य चारों दिशाओं में चार अंजनक पर्वत हैं। यथा – पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में और उत्तर में। वे अंजनक पर्वत ८४,००० योजन ऊंचे हैं और एक हजार योजन भूमि में गहरे हैं। उन पर्वतों के मूल का विष्कम्भ दस हजार योजन का है। फिर क्रमशः कम होते होते ऊपर का विष्कम्भ एक हजार योजन
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