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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 172 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त सरा अजीवनिस्सिया पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: अजीवनिश्रित – मृदंग से षड्जस्वर, गोमुखी से ऋषभस्वर, शंख से गांधारस्वर, झालर से मध्यमस्वर, चार चरणों पर स्थित गोधिका से पंचमस्वर, आडंबर से धैवतस्वर तथा महाभेरी से निषादस्वर निकलता है। सूत्र – १७२–१७४ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 173 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्जं रवइ मुयंगो, गोमुही रिसभं सरं ।
संखो रवइ गंधारं, मज्झिमं पुण ज्झल्लरी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 174 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउचलणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं ।
आडंबरो धेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 175 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: इन सात स्वरों के सात स्वरलक्षण हैं। षड्जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति – आजीविका प्राप्त करता है। उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है। उसे गोधन, पुत्र – पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है। वह स्त्रियों का प्रिय होता है। ऋषभस्वरवाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापतित्व, धन – धान्य, वस्त्र, गंध – सुगंधित | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 176 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्जेण लहइ वित्तिं, कयं च न विणस्सइ ।
गावो पुत्ता य मित्ता य, नारीणं होई वल्लहो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 177 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रिसभेण उ एसज्जं, सेनावच्चं धनानि य ।
वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयनानि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 178 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गंधारे गीतजुत्तिन्ना, विज्जवित्ती कलाहिया ।
हवंति कइणो पन्ना, जे अन्ने सत्थपारगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 179 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मज्झिमसरमंता उ, हवंति सुहजीविणो ।
खायई पियई देई, मज्झिमसरमस्सिओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 180 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचमसरमंता उ, हवंति पुहवीपती ।
सूरा संगहकत्तारो अनेगगणनायगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 181 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धेवयसरमंता उ, हवंति दुहजीविणो ।
साउणिया वाउरिया, सोयरिया य मुट्ठिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 182 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेसायसरमंता उ, हवंति हिंसगा नरा ।
जंघाचरा लेहवाहा, हिंडगा भारवाहगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 183 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसिं णं सत्तण्हं सराणं तओ गामा पन्नत्ता, तं जहा–सज्जगामे मज्झिमगामे गंधारगामे।
सज्जगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: इन सात स्वरों के तीन ग्राम हैं। षड्जग्राम, मध्यमग्राम, गांधारग्राम। षड्जग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। मंगी, कौरवीया, हरित, रजनी, सारकान्ता, सारसी और शुद्धषड्ज। मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। उतरमंदा, रजनी, उत्तरा, उत्तरायता, अश्वक्रान्ता, सौवीरा, अभिरुद्गता। गांधारग्राम की सात मूर्च्छनाऍं हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 184 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मंगी कोरव्वीया हरी य, रयणी य सारकंता य ।
छट्ठी य सारसी नाम, सुद्धसज्जा य सत्तमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 185 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 186 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उत्तरमंदा रयणी, उत्तरा उत्तरायता ।
आसकंता य सोवीरा, अभिरुहवति सत्तमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 187 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 188 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदी य खुड्डिया पूरिमा य चउत्थी य सुद्धगंधारा ।
उत्तरगंधारा वि य, पंचमिया हवइ मुच्छा उ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 189 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुट्ठुत्तरमायामा, सा छट्ठी नियमसो उ नायव्वा ।
अह उत्तरायता, कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १८३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 190 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा कओ हवंति? गीयस्स का हवइ जोणी? ।
कइसमया ऊसासा? कइ वा गीयस्स आगारा? ॥ Translated Sutra: – सप्तस्वर कहाँ से – उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्वासकाल का समयप्रमाण कितना है ? गीत के कितने आकार होते हैं ? सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन गीत की योनि है। पादसम – उतना उसका उच्छ्वास – काल होता है। गीत के तीन आकार होते हैं – आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अंत मे मंद। इस प्रकार | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 191 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा नाभीओ, हवंति गीयं च रुन्नजोणीयं ।
पायसमा ऊसासा, तिन्नि य गीयस्स आगारा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 192 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आइमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मज्झयारंमि ।
अवसाणे य ज्झवेंता, तिन्नि वि गीयस्स आगारा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९० | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 193 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छद्दोसे अट्ठगुणे, तिन्नि य वित्ताइं दोन्नि भणितीओ ।
जो नाही सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झंमि ॥ Translated Sutra: संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत् जाननेवाला सुशिक्षित – व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 194 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भीयं दुयमुप्पिच्छं, उत्तालं च कमसो मुणेयव्वं ।
काकस्सरमणुणासं, छद्दोसा होंति गीयस्स ॥ Translated Sutra: गीत के छह दोष हैं – भीतदोष, द्रुतदोष, उत्पिच्छदोष, उत्तालदोष, काकस्वरदोष और अनुनासदोष। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 195 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुण्णं रत्तं च अलंकियं च वत्तं च तहेव मविघुट्ठं ।
महुरं समं सुललियं, अट्ठ गुणा होंति गीयस्स ॥ Translated Sutra: गीत के आठ गुण हैं – पूर्णगुण, रक्तगुण, अलंकृतगुण, व्यक्तगुण, अविघुष्टगुण, मधुरगुण, समगुण, सुललितगुण। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 196 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उर-कंठ-सिर-विसुद्धं, च गिज्जते मउय-रिभिय-पदबद्धं ।
समतालपदुक्खेवं, सत्तस्सरसीभरं गीयं ॥ Translated Sutra: गीत के आठ गुण और भी हैं, उरोविशुद्ध, कंठविशुद्ध, शिरोविशुद्ध, मृदुक, रिभित, पदबद्ध, समतालप्रत्युत्क्षेप और सप्तस्वरसीभर – | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 197 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गहसमं च ।
निस्ससिउस्ससियसमं, संचारसमं सरा सत्त ॥ Translated Sutra: (प्रकारान्तर से) सप्तस्वरसीभर की व्याख्या इस प्रकार है – अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, ग्रहसम, निश्वसितो – च्छ्वसितसम और संचारसम – इस प्रकार गीत स्वर, तंत्री आदि के साथ सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 198 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्दोसं सारवतं च हेउजुत्तमलंकियं ।
उवनीयं सोवयारं च, मियं महुरमेव य ॥ Translated Sutra: गेय पदों के आठ गुण हैं – निर्दोष, सारवंत, हेतुयुक्त, अलंकृत, उपनीत, सोपचार, मित और मधुर। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 199 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समं अद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं ।
तिन्नि वित्तप्पयाराइं, चउत्थं नोवलब्भई ॥ Translated Sutra: गीत के वृत्त – छन्द तीन प्रकार के हैं – सम, अर्धसम और सर्वविषम। इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 200 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सक्कया पायया चेव, भणितीओ होंति दोन्नि वि ।
सरमंडलंमि गिज्जंते, पसत्था इसिभासिया ॥ Translated Sutra: भणतियाँ दो प्रकार की हैं – संस्कृत और प्राकृत। ये दोनों प्रशस्त एवं ऋषिभाषित हैं और स्वरमंडल में पाई जाती है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 201 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केसी गायइ महुरं? केसी गायइ खरं च रुक्खं च? ।
केसी गायइ चउरं? केसी य विलंबियं दुतं केसी? विस्सरं पुण केरिसी? ॥ Translated Sutra: कौन स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है ? पुरुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? द्रुत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकृत स्वर में कौन गाती है ? श्यामा स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर और रूक्ष स्वर में, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से, कानी स्त्री विलंबित | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 202 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामा गायइ महुरं, काली गायइ खरं च रुक्खं च ।
गोरी गायइ चउरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा ॥ विस्सरं पुण पिंगला ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 203 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एगवीसई ।
ताणा एगूणपन्नासं, समत्तं सरमंडलं ॥ Translated Sutra: इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिये उनके उनपचास भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ। सूत्र – २०३, २०४ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 205 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अट्ठनामे? अट्ठनामे–अट्ठविहा वयणविभत्ती पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: अष्टनाम क्या है ? आठ प्रकार की वचनविभक्तियों अष्टनाम हैं। वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैं – निर्देश अर्थ में प्रथमा, उपदेशक्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया, क्रिया के प्रति साधकतम कारण में तृतीया, संप्रदान में चतुर्थी, अपादान में पंचमी, स्व – स्वामित्वप्रतिपादन में षष्ठी, सन्निधान में सप्तमी और संबोधित | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 206 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निद्देसे पढमा होइ, बितिया उवएसणे ।
तइया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०५ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 207 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचमी य अवायाणे, छट्ठी सस्सामिवायणे ।
सत्तमी सन्निहाणत्थे, अट्ठमाऽऽमंतणी भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०५ | |||||||||
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Hindi | 208 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पढमा विभत्ती, निद्देसे–सो इमो अहं व त्ति ।
बिइया पुण उवएसे–भण कुणसु इमं व तं व त्ति ॥ Translated Sutra: निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे – वह, यह अथवा मैं। उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है। – जैसे इसको कहो, उसको करो आदि। करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे – उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके ओर मेरे द्वारा किया गया। संप्रदान, नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। अपादान में पंचमी होती | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 209 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तइया करणम्मि कया–भणियं व कयं व तेण व मए वा ।
हंदि नमो साहाए, हवइ चउत्थी पयाणम्मि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०८ | |||||||||
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Hindi | 210 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अवनय गेण्ह य एत्तो, इतो वा पंचमी अवायाणे ।
छट्ठी तस्स इमस्स व, गयस्स वा सामिसंबंधे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०८ | |||||||||
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Hindi | 211 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हवइ पुण सत्तमी तं, इमम्मि आधारकालभावे य ।
आमंतणी भवे अट्ठमी उ जह हे जुवाण! त्ति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०८ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 213 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नवनामे? नवनामे–नव कव्वरसा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: नवनाम क्या है ? काव्य के नौ रस नवनाम कहलाते हैं। जिनके नाम हैं – वीररस, शृंगाररस, अद्भुतरस, रौद्ररस, व्रीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, कारुण्यरस और प्रशांतरस। सूत्र – २१३, २१४ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 214 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वीरो सिंगारो अब्भुओ य रोद्दो य होइ बोधव्वो ।
वेलणओ बीभच्छो, हासो कलुणो पसंतो य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१३ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 215 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे सत्तुजणविणासे य ।
अननुसय-धिति-परक्कमलिंगो वीरो रसो होइ ॥ Translated Sutra: इन नव रसों में १. परित्याग करने में गर्व या पश्चात्ताप न होने, २. तपश्चरण में धैर्य और ३. शत्रुओं का विनाश करने में पराक्रम होने रूप लक्षण वाला वीररस है। राज्य – वैभव का परित्याग करके जो दीक्षित हुआ और दीक्षित होकर काम – क्रोध आदि रूप महाशत्रुपक्ष का जिसने विघात किया, वही निश्चय से महावीर है। सूत्र – २१५, २१६ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 216 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सो नाम महावीरो, जो रज्जं पयहिऊण पव्वइओ ।
काम-क्कोह-महासत्तु-पक्खनिग्घायणं कुणइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१५ | |||||||||
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Hindi | 217 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो ।
मंडण-विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमणलिंगो ॥ Translated Sutra: शृंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य – लीला और रमण ये सब शृंगाररस के लक्षण हैं। कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा क्षुद्र घंटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है। सूत्र – २१७, २१८ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 218 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महुरं विलास-ललियं, हिययुम्मादनकरं जुवाणाणं ।
सामा सद्दुद्दामं, दाएती मेहलादामं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१७ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 219 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विम्हयकरो अपुव्वो, ऽनुभूयपुव्वो य जो रसो होइ ।
हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम ॥ Translated Sutra: पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी – आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्भुतरस है। हर्ष और विषाद की उत्पत्ति अद्भुतरस का लक्षण है। इस जीवलोकमें इससे अधिक अद्भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं। सूत्र | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 220 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुयतरमिह एत्तो, अन्नं किं अत्थि जीवलोगम्मि ।
जं जिनवयणेनत्था, तिकालजुत्ता वि नज्जंति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१९ | |||||||||
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अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 221 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भयजणणरूव-सद्दंधकार-चिंता-कहासमुप्पन्नो ।
संमोह-संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो रोद्दो ॥ Translated Sutra: भयोत्पादक रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन, कथा, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है और संमोह, संभ्रम, विषाद एवं मरण उसके लक्षण हैं। भृकुटियों से तेरा मुख विकराल बन गया है, तेरे दाँत होठों को चबा रहे हैं, तेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा है, तेरे मुख से भयानक शब्द निकल रहे हैं, जिससे तू राक्षस जैसा हो गया है और पशुओं की | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 223 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विनओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुप्पन्नो ।
वेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलिंगो ॥ Translated Sutra: विनय करने योग्य माता – पिता आदि गुरुजनों का विनयन करने से, गुप्त रहस्यों को प्रकट करने से तथा गुरुपत्नी आदि के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने से व्रीडनकरस उत्पन्न होता है। लज्जा और शंका उत्पन्न होना, इस रस के लक्षण हैं। इस लौकिक व्यवहार से अधिक लज्जास्पद अन्य बात क्या हो सकती है – मैं तो इससे बहुत लजाती हूँ कि | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 224 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं लोइयकरणीओ, लज्जनीयतरं लज्जिया मो त्ति ।
वारेज्जम्मि गुरुजनो, परिवंदइ जं वहूपोत्तिं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २२३ |