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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 12 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स ।
सेसाणं च जिनाणं सगणहराणं च सव्वेसिं ॥ Translated Sutra: जिनो में वृषभ समान वर्द्धमानस्वामी को और गणधर सहित बाकी सभी तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 13 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि त्ति अलियवयणं च ।
सव्वमदिन्नादाणं मेहुण्ण परिग्गहं चेव ॥ Translated Sutra: इस प्रकार से मैं सभी प्राणीओं के आरम्भ, अलिक (असत्य) वचन, सर्व अदत्तादान (चोरी), मैथुन और परिग्रह का पच्चखाण करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 17 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वदुक्खप्पहीणाणं सिद्धाणं अरहओ नमो ।
सद्दहे जिनपन्नत्तं पच्चक्खामि य पावगं ॥ Translated Sutra: सभी दुःख क्षय हुए हैं जिनके ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वरों ने कहे हुए तत्त्व मैं सद्दहता हूँ, पापकर्म को पच्चक्खाण करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Hindi | 18 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नमोऽत्थु धुयपावाणं सिद्धाणं च महेसिणं ।
संथारं पडिवज्जामि जहा केवलिदेसियं ॥ Translated Sutra: जिन के पाप क्षय हुए हैं, ऐसे सिद्ध को और महा ऋषि को नमस्कार हो, जिस तरह से केवलीओंने बताया है वैसा संथारा मैं अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
असमाधिमरणं |
Hindi | 44 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जिनवयणे अनुरत्ता गुरुवयणं जे करंति भावेणं ।
असबल असंकिलिट्ठा ते हुंति परित्तसंसारी ॥ Translated Sutra: जिन वचन में रागवाले, जो गुरु का वचन भाव से स्वीकार करते हैं, दूषण रहित हैं और संक्लेशरहित होते हैं, वे अल्प संसारवाले होते हैं। जो जिनवचन को नहीं जानते वो बेचारे (आत्मा) – बाल मरण और कईं बार बिना ईच्छा से मरण पाते हैं। सूत्र – ४४, ४५ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 46 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य ।
अणयारभंडसेवी जम्मण-मरणानुबंधीणि ॥ Translated Sutra: शस्त्रग्रहण (शस्त्र से आत्महत्या करना), विषभक्षण, जल के मरना, पानी में डूब मरना, अनाचार और अधिक उपकरण का सेवन करनेवाले जन्म, मरण की परम्परा बढ़ानेवाले होते हैं। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 47 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उड्ढमहे तिरियम्मि वि मयाणि जीवेण बालमरणाणि ।
दंसण-नाणसहगओ पंडियमरणं अनुमरिस्सं ॥ Translated Sutra: उर्ध्व, अधो, तिर्च्छा (लोक) में जीव ने बालमरण किए। लेकिन अब दर्शन ज्ञान सहित मैं पंड़ित मरण से मरूँगा। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 48 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उव्वेयणयं जाई मरणं नरएसु वेयणाओ य ।
एयाणि संभरंतो पंडियमरणं मरसु इण्हिं ॥ Translated Sutra: उद्वेग करनेवाले जन्म, मरण और नरक में भुगती हुई वेदनाको याद करते हुए अब तुम पंड़ित मरण से मरो | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 51 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तण-कट्ठेहि व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं ।
न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं ॥ Translated Sutra: तृण और लकड़े से जैसे अग्नि तृप्त नहीं होता और हजारों नदीयों से जैसे लवण समुद्र तृप्त नहीं होता, वैसे काम भोग द्वारा यह जीव तृप्ति नहीं पाता। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 52 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आहारनिमित्तेणं मच्छा गच्छंति सत्तमिं पुढविं ।
सच्चित्तो आहारो न खमो मनसा वि पत्थेउं ॥ Translated Sutra: आहार के लिए (तंदुलीया) मत्स्य सातवी नरकभूमि में जाते हैं। इसलिए सचित्त आहार करने की मन से भी ईच्छा या प्रार्थना करना उचित नहीं है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 53 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कयपरिकम्मो अनियाणो ईहिऊण मइ-बुद्धी ।
पच्छा मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छामि ॥ Translated Sutra: जिसने पहेले (अनशन का) अभ्यास किया है, और नियाणा रहित हुआ हूँ ऐसा मैं मति और बुद्धि से सोच कर फिर कषाय को रोकनेवाला मैं शीघ्र ही मरण अंगीकार करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 54 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्कंडे चिरभाविय ते पुरिसा मरणदेसकालम्मि ।
पुव्वकयकम्मपरिभावणाए पच्छा परिवडंति ॥ Translated Sutra: दीर्घकाल के अभ्यास बिना अकाल में (अनशन करनेवाले) वो पुरुष मरण के अवसर पर पहले किए हुए कर्म के योग से पीछे भ्रष्ट होते हैं। (दुर्गति में जाते हैं)। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 55 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा चंदगविज्झं सकारणं उज्जुएण पुरिसेणं ।
जीवो अविरहियगुणो कायव्वो मोक्खमग्गम्मि ॥ Translated Sutra: उसके लिए राधावेध (को साधनेवाले पुरुष) की तरह लक्ष्यपूर्वक उद्यमवाले पुरुष मोक्षमार्ग की जिस तरह साधना करते हैं उसी तरह अपने आत्मा को ज्ञानादि गुण के सहित करना चाहिए। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 57 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हंतूण राग-दोसं छित्तूण य अट्ठकम्मसंघायं ।
जम्मण-मरणऽरहट्टं छेत्तूण भवा विमुच्चिहिसि ॥ Translated Sutra: राग – द्वेष का वध कर के, आठ कर्म के समूह को नष्ट करके, जन्म और मरण समान अरहट्ट को भेदकर तूं संसार से अलग हो जाएगा। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 58 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं सव्वुवएसं जिणदिट्ठं सद्दहामि तिविहेणं ।
तस-थावरखेमकरं पारं निव्वाणमग्गस्स ॥ Translated Sutra: इस प्रकार से त्रस और स्थावर का कल्याण करनेवाला, मोक्ष मार्ग का पार दिलानेवाला, जिनेश्वर ने बताए हुए सर्व उपदेश का मन, वचन, काया से मैं श्रद्धा करता हूँ। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 59 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न हु तम्मि देसकाले सक्को बारसविहो सुयक्खंधो ।
सव्वो अणुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥ Translated Sutra: उस (मरण के) अवसर पर अति समर्थ चित्तवाले से भी बारह अंग समान सर्व श्रुतस्कंध का चिंतवन करना मुमकीन नहीं है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 60 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरायमग्गम्मि ।
गच्छइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥ Translated Sutra: (इसलिए) वीतराग के मार्ग में जो एक भी पद से मानव बार – बार वैराग पाए उस पद सहित (उसी पद का चिंतवन करते हुए) तुम्हें मृत्यु को प्राप्त करना उचित है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 62 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आराहणोवउत्तो कालं काऊण सुविहिओ सम्मं ।
उक्कोसं तिन्नि भवे गंतूणं लहइ निव्वाणं ॥ Translated Sutra: आराधना के उपयोगवाला, सुविहित (अच्छे आचारवाला) आत्मा अच्छी तरह से (समाधि भाव से) काल कर के उत्कृष्ट से तीन भव में मोक्ष पाता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 63 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समणो त्ति अहं पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मि त्ति ।
सव्वं च वोसिरामी, एयं भणियं समासेणं ॥ Translated Sutra: प्रथम तो मैं साधु हूँ, दूसरा सभी चीजमें संयमवाला हूँ (इसलिए)सब को वोसिराता हूँ, यह संक्षेप में कहा है | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 64 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लद्धं अलद्धपुव्वं जिनवयणसुभासियं अमियभूयं ।
गहिओ सुग्गइमग्गो नाहं मरणस्स बीहेमि ॥ Translated Sutra: जिनेश्वर भगवान के आगम में कहा गया अमृत समान और पहले नहीं पानेवाला (आत्मतत्त्व) मैंने पाया है। और शुभ गति का मार्ग ग्रहण किया है इसलिए मैं मरण से नहीं डरता। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 65 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि हु मरियव्वे वरं खु धीरत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: धीर पुरुष को भी मरना पड़ता है, कायर पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय से मरना है, तो धीरपन से मरना ही यकीनन सुन्दर है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 66 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीलेण वि मरियव्वं, निस्सीलेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि हु मरियव्वे वरं खु सीलत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: शीलवान को भी मरना पड़ता है, शील रहित पुरुष को भी यकीनन मरना पड़ता है, दोनों को भी निश्चय कर के मरना है, तो शील सहित मरना ही निश्चय से प्रशंसनीय है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 67 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाणस्स दंसणस्स य सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्स ।
जो काही उवओगं संसारा सो विमुच्चिहिति ॥ Translated Sutra: जो कोई भी चारित्रसहित ज्ञान में, दर्शन में और सम्यक्त्व में, सावधान होकर प्रयत्न करेगा तो विशेष कर के संसार से मुक्त हो जाएगा। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 68 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चिर उसिय बंभयारी पप्फोडेऊण सेसयं कम्मं ।
अणुपुव्वीइ विसुद्धो गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो ॥ Translated Sutra: लम्बे समय तक ब्रह्मचर्य का सेवन करनेवाला, शेष कर्म का नाश कर के और सर्व क्लेश का नाश कर के क्रमिक शुद्ध होकर सिद्धि में जाता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 69 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निक्कसायस्स दंतस्स सूरस्स ववसाइणो ।
संसारपरिभीयस्स पच्चक्खाणं सुहं भवे ॥ Translated Sutra: कषाय रहित, दान्त (पाँच इन्द्रिय और मन का दमन करनेवाला), शूरवीर, उद्यमवंत और संसार से भयभ्रांत हुए आत्मा का पच्चक्खाण अच्छा होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Hindi | 71 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरो जर-मरणविऊ धीरो विन्नाण-नाणसंपन्नो ।
लोगस्सुज्जोयगरो दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं ॥ Translated Sutra: धीर, जरा और मरण को जाननेवाला, ज्ञानदर्शन से युक्त लोक में उद्योत को करनेवाले ऐसे वीरप्रभु सर्व दुःख का क्षय बतानेवाले हो। | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 12 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स ।
सेसाणं च जिनाणं सगणहराणं च सव्वेसिं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨. જિનવર – વૃષભ વર્દ્ધમાન સ્વામીને તથા ગણધર સહિત બાકીના બધા તીર્થંકરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૧૩. હવે હું સર્વ પ્રાણીઓનો આરંભ, અસત્ય વચન(જુઠું બોલવું), સર્વ અદત્તાદાન(ચોરી), મૈથુન અને પરિગ્રહના પચ્ચક્ખાણ કરું છું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૨, ૧૩ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 2 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंच य अणुव्वयाइं सत्त उ सिक्खा उ देस-जइधम्मो ।
सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. દેશ યતિ (વિરતિ) ધર્મમાં પાંચ અણુવ્રત અને સાત શિક્ષાવ્રતો હોય છે. દેશવિરત જીવો સર્વ વ્રતોથી કે એક, બે, ત્રણ વ્રત આદિ દેશથી યુક્ત હોય છે. સૂત્ર– ૩. પ્રાણીવધ, મૃષાવાદ, અદત્ત, પરસ્ત્રીગમન, અપરિમિત ઇચ્છા, એ બધાનું નિયમન અર્થાત તે તે દોષોથી વિરમણ(અટકવું) તે પાંચ અણુવ્રતો છે. સૂત્ર– ૪. જે દિગ્વિરમણ, અનર્થદંડ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 10 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय बालपंडियं होइ मरणमरिहंतसासने दिट्ठं ।
इत्तो पंडियमरणं तमहं वोच्छं समासेणं ॥ Translated Sutra: (પંડિત મરણ) અરિહંત શાસનમાં આ બાલપંડિતમરણ કહેલ છે. હવે હું પંડિત મરણને સંક્ષેપમાં કહીશ. | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 24 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ममत्तं परिवज्जामि निम्ममत्तं उवट्ठिओ ।
आलंबणं च मे आया, अवसेसं च वोसिरे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रतिक्रमणादि आलोचना |
Gujarati | 27 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगो मे सासओ अप्पा नाण-दंसणसंजुओ ।
सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫ | |||||||||
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आलोचनादायक ग्राहक |
Gujarati | 35 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रागेण व दोसेण व जं भे अकयन्नुयापमाएणं ।
जो मे किंचि वि भणिओ तमहं तिविहेण खामेमि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 46 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य ।
अणयारभंडसेवी जम्मण-मरणानुबंधीणि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 51 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तण-कट्ठेहि व अग्गी लवणजलो वा नईसहस्सेहिं ।
न इमो जीवो सक्को तिप्पेउं काम-भोगेहिं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 55 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा चंदगविज्झं सकारणं उज्जुएण पुरिसेणं ।
जीवो अविरहियगुणो कायव्वो मोक्खमग्गम्मि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 63 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समणो त्ति अहं पढमं, बीयं सव्वत्थ संजओ मि त्ति ।
सव्वं च वोसिरामी, एयं भणियं समासेणं ॥ Translated Sutra: પહેલાં તો હું સાધુ છું, બીજું હું સર્વ પદાર્થોમાં સંયમવાળો છું, તેથી બધું વોસિરાવું છું, આટલુ સંક્ષેપથી કહ્યું છે. | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 65 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं ।
दोण्हं पि हु मरियव्वे वरं खु धीरत्तणे मरिउं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪ | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
पंडितमरण एवं आराधनादि |
Gujarati | 68 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चिर उसिय बंभयारी पप्फोडेऊण सेसयं कम्मं ।
अणुपुव्वीइ विसुद्धो गच्छइ सिद्धिं धुयकिलेसो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 70 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेज्जा ।
सोनंतवग्गभइओ, सव्वागासे ण माएज्जा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६८ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 71 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह नाम कोइ मिच्छो, नगरगुणे बहुविहे वियाणंतो ।
न चएइ परिकहेउं, उवमाए तहिं असंतीए ॥ Translated Sutra: जैसे कोई असभ्य वनवासी पुरुष नगर के अनेकविध गुणों को जानता हुआ भी वन में वैसी कोई उपमा नहीं पाता हुआ उस के गुणों का वर्णन नहीं कर सकता। उसी प्रकार सिद्धों का सुख अनुपम है। उसकी कोई उपमा नहीं है। फिर भी विशेष रूप से उपमा द्वारा उसे समझाया जा रहा है, सूनें। सूत्र – ७१, ७२ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 72 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इय सिद्धाणं सोक्खं, अनोवमं नत्थि तस्स ओवम्मं ।
किंचि विसेसेणेत्तो, ओवम्ममिणं सुणह वोच्छं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७१ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 73 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जह सव्वकामगुणियं, पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई ।
तण्हाछुहाविमुक्को, अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो ॥ Translated Sutra: जैसे कोई पुरुष अपने द्वारा चाहे गए सभी गुणों – विशेषताओं से युक्त भोजन कर, भूख – प्यास से मुक्त होकर अपरिमित तृप्ति का अनुभव करता है, उसी प्रकार – सर्वकालतृप्त, अनुपम शान्तियुक्त सिद्ध शाश्वत तथा अव्याबाध परम सुख में निमग्न रहते हैं। सूत्र – ७३, ७४ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 76 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निच्छिन्नसव्वदुक्खा, जाइजरामरणबंधणविमुक्का ।
अव्वाबाहं सुक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा ॥ Translated Sutra: सिद्ध सब दुःखों को पार कर चूके हैं जन्म, बुढ़ापा तथा मृत्यु के बन्धन से मुक्त हैं। निर्बाध, शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 1 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय समिद्धा पमुइय-जनजानवया आइण्ण जन मनूसा हल सयसहस्स संकिट्ठ विकिट्ठ-लट्ठ पन्नत्त सेउसीमा कुक्कुड संडेय गाम पउरा उच्छु जव सालिकलिया गो महिस गवेलगप्पभूया आयारवंत चेइय जुवइविविहसन्निविट्ठबहुला उक्कोडिय गायगंठिभेय भड तक्कर खंडरक्खरहिया खेमा निरुवद्दवा सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा अनेगकोडि कोडुंबियाइण्ण निव्वुयसुहा.....
..... नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग कहग पवग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय अनेगतालायराणुचरिया आरामुज्जाण अगड तलाग दीहिय वप्पिणि गुणोववेया उव्विद्ध विउल गंभीर खायफलिहा चक्क गय Translated Sutra: उस काल, उस समय, चम्पा नामक नगरी थी। वह वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध थी। वहाँ के नागरिक और जनपद के अन्य व्यक्ति वहाँ प्रमुदित रहते थे। लोगों की वहाँ घनी आबादी थी। सैकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सुन्दर मार्ग – सीमा सी लगती थी। वहाँ मुर्गों और युवा सांढों के बहुत से समूह थे। उसके आसपास की भूमि | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 2 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए पुव्वपुरिस पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयद्दिए लाउल्लोइय महिए गोसीससरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचुंलितले उवचिय-वंदनकलसे वंदनघड सुकय तोरण पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त विउल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम-कलावे पंचवण्ण सरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय Translated Sutra: उस चम्पा नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य था। वह चिरकाल से चला आ रहा था। पूर्व पुरुष उसकी प्राचीनता की चर्चा करते रहते थे। वह सुप्रसिद्ध था। वह चढ़ावा, भेंट आदि के रूप में प्राप्त सम्पत्ति से युक्त था। वह कीर्तित था, न्यायशील था। वह छत्र, ध्वजा, घण्टा तथा पताका युक्त था। छोटी और बड़ी झण्डियों से | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते।
से णं वनसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वो भासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
से णं पायवे मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अनुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए एक्कखंधी अनेगसाला अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ घन विउल बद्ध वट्ट खंधे अच्छिद्दपत्ते Translated Sutra: वह पूर्णभद्र चैत्य चारों ओर से एक विशाल वन – खण्ड से घिरा हुआ था। सघनता के कारण वह वन – खण्ड काला, काली आभा वाला, नीला, नीली आभा वाला तथा हरा, हरी आभा वाला था। लताओं, पौधों व वृक्षों की प्रचुरता के कारण वह स्पर्श में शीतल, शीतल आभामय, स्निग्ध, स्निग्ध आभामय, सुन्दर वर्ण आदि उत्कृष्ट गुणयुक्त तथा तीव्र आभामय था। यों | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 4 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए Translated Sutra: उस वन – खण्ड के ठीक बीच के भाग में एक विशाल एवं सुन्दर अशोक वृक्ष था। उसकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध थी। वह वृक्ष उत्तम मूल यावत् रमणीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप था। वह उत्तम अशोक वृक्ष तिलक, लकुच, क्षत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोघ्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कटुज, कदम्ब, सव्य, पनस, दाड़िम, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
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Hindi | 5 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठ अट्ठ मंगलगा पन्नत्ता, तं जहा–सोवत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्ध माणग भद्दासण कलस मच्छ दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा धट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा समीरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहिय-चामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयामल-गंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला Translated Sutra: उस अशोक वृक्ष के नीचे, उसके तने के कुछ पास एक बड़ा पृथिवी – शिलापट्टक था। उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊंचाई समुचित प्रमाण में थी। वह काला था। वह अंजन, बादल, कृपाण, नीले कमल, बलराम के वस्त्र, आकाश, केश, काजल की कोठरी, खंजन पक्षी, भैंस के सींग, रिष्टक रत्न, जामुन के फल, बीयक, सन के फूल के डंठल, नील कमल के पत्तों की राशि तथा अलसी | |||||||||
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Hindi | 6 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान् पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध, | |||||||||
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Hindi | 7 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं कोणियस्स रन्नो धारिणी णामं देवी होत्था– सुकुमाल पाणिपाया अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा लक्खण वंजण गुणोववेया मानुम्मानप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार कंत पिय दंसणा सुरूवा करयल परिमिय पसत्थतिवली वलिय मज्झा कुंडलुल्लिहिय गंडलेहा कोमुइ रयणियर विमल पडिपुण्ण सोमवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय गय हसिय भणिय विहिय चिट्ठिय विलास सललिय संलाव णिउण जुत्तोवयार कुसला सुंदरथण जधन वयण कर चरण नयण लावण्णविलासकलिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा कोणिएण रन्ना भिंभसारपुत्तेण सद्धिं अनुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे मानुस्सए Translated Sutra: राजा कूणिक की रानी का नाम धारिणी था। उसके हाथ – पैर सुकोमल थे। शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन – प्रतिपूर्ण, सम्पूर्ण थीं। उत्तम लक्षण, व्यंजन तथा गुणयुक्त थी। दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी। उसका स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था। परम रूपवती |