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Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 61 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जाकप्पं पाणच्चाए वि रोरदुब्भिक्खे । न य परिभुंजइ सहसा, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: और फिर जिस गच्छ में भयानक अकाल हो वैसे वक्त में प्राण का त्याग हो, तो भी साध्वी का लाया हुआ आहार सोचे बिना न खाए, उसे हे गौतम ! वास्तविक गच्छ कहा है। और जिस गच्छ में साध्वीओं के साथ जवान तो क्या, जिसके दाँत गिर गए हैं वैसे बुढ़े मुनि भी आलाप, संलाप न करे और स्त्रीयों के अंग का चिन्तवन न करे, वो हकीकत में गच्छ है। सूत्र
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 74 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मुनिणं नाणाभिग्गह-दुक्करपच्छित्तमनुचरंताणं । जायइ चित्तचमक्कं देविंदाणं पि, तं गच्छं ॥

Translated Sutra: ऋतु आदि आठ प्रकार की गोचरभूमि के लिए विचरनार, विविध प्रकार के अभिग्रह और दुष्कर प्रायश्चित्त आचरनेवाले मुनि जिस गच्छ में हो, वो देवेन्द्र को भी आश्चर्यकारी है। गौतम! ऐसे गच्छ को ही गच्छ मानना चाहिए
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 75 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवि-दग-अगणि-वाऊ-वणप्फई तह तसाण विविहाणं । मरणंते वि न पीडा कीरइ मणसा, तयं गच्छं ॥

Translated Sutra: पृथ्वी, अप्‌, अग्नि, वायु और वनस्पति और अलग तरह के बेइन्द्रिय आदि त्रस जीव को जहाँ मरण के अन्त में भी मन से पीड़ित नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 76 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खज्जूरिपत्तमुंजेण जो पमज्जे उवस्सयं । नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा! ॥

Translated Sutra: खजुरी और मुँज के झाडु से जो साधु उपाश्रय को प्रमार्जते हैं, उस साधु को जीव पर बीलकुल दया नहीं है, ऐसा हे गौतम ! तू अच्छी तरह से समझ ले।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 78 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्छिज्जइ जत्थ सया बीयपएणावि फासुयं उदयं । आगमविहिणा निउणं, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: और फिर जिस गच्छ में अपवाद मार्ग से भी हंमेशा प्राशुक – निर्जीव पानी सम्यक्‌ तरह से आगम विधि से इच्छित होता है हे गौतम ! उसे गच्छ जानो।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 84 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बालाए वुड्ढाए नत्तुय दुहियाए अहव भइणीए । न य कीरइ तणुफरिसं, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: बालिका, बुढ़िया, पुत्री, पौत्री या भगिनी आदि के शरीर का स्पर्श थोड़ा भी जिस गच्छ में न किया जाए, हे गौतम ! वही गच्छ है।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 85 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थित्थीकरफरिसं लिंगी अरिहा वि सयमवि करेज्जा । तं निच्छयओ गोयम! जाणेज्जा मूलगुणभट्ठं ॥

Translated Sutra: साधु का वेश धारण करनेवाला, आचार्य आदि पदवी से युक्त ऐसा भी मुनि जो खुद स्त्री के हाथ का स्पर्श करे, तो हे गौतम ! जरुर वो गच्छ मूलगुण से भ्रष्ट चारित्रहीन है ऐसा जानना।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 93 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगो एगित्थिए सद्धिं जत्थ चिट्ठिज्ज गोयमा! । संजईए विसेसेणं निम्मेरं तं तु भासिमो ॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में अकेला साधु, अकेली स्त्री या साध्वी साथ रहे, उसे हे गौतम ! हम अधिक करके मर्यादा रहित गच्छ कहते हैं।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 97 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ मुनीण कसाए जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । निच्छंति समुट्ठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥

Translated Sutra: सुख में रहे पंगु मानव की तरह जो मुनि के कषाय दूसरों के कषाय द्वारा भी उद्दीपन न हो, उसे हे गौतम ! गच्छ मानना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 99 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कारणमकारणेणं अह कह वि मुनीण उट्ठहि कसाए । उदिए वि जत्थ रुंभहि खामिज्जहि जत्थ, तं गच्छं ॥

Translated Sutra: शायद किसी कारण से या बिना कारण मुनिओं के कषाय का उदय हो और उदय को रोके और तदनन्तर खमाए, उसे हे गौतम ! गच्छ मान।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 100 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सील-तव-दान-भावनचउविहधम्मंतरायभयभीए । जत्थ बहू गीयत्थे, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: दान, शील, तप और भावना, इन चार प्रकार के धर्म के अन्तराय से भय पानेवाले गीतार्थ साधु जिस गच्छ में ज्यादा हो उसे हे गौतम ! गच्छ कहा है।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 101 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गोयम! पंचण्ह कह वि सूणाण एक्कमवि होज्जा । तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वएज्ज अन्नत्थ ॥

Translated Sutra: और फिर हे गौतम ! जिस गच्छ में चक्की, खंड़णी, चूल्हा, पानेहारा और झाडु इस पाँच वधस्थान में से कोई एक भी हो, तो वो गच्छ का मन, वचन, काया से त्याग करके अन्य अच्छे गच्छ में जाना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 103 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य मुनिणो कय-विक्कयाइं कुव्वंति संजमुब्भट्ठा । तं गच्छं गुणसायर! विसं व दूरं परिहरिज्जा ॥

Translated Sutra: और फिर जिस गच्छ के भीतर मुनि क्रय – विक्रय आदि करे – करवाए, अनुमोदन करे, वो मुनि को संयमभ्रष्ट मानना चाहिए। हे गुणसागर गौतम ! वैसे लोगों को विष की तरह दूर से ही त्याग देना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 104 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आरंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा । मोत्तुं मुनिणो गोयम! वसेज्ज मज्झे सुविहियाणं ॥

Translated Sutra: आरम्भ में आसक्त, सिद्धांत में कहे अनुष्ठान करने में पराङ्गमुख और विषय में लंपट ऐसे मुनिओं का संग छोड़कर हे गौतम ! सुविहित मुनि के समुदाय में वास करना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 105 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा सम्मं निहालेउं गच्छं सम्मग्गपट्ठियं । वसेज्जा पक्ख मासं वा जावज्जीवं तु गोयमा! ॥

Translated Sutra: सन्मार्ग प्रतिष्ठित गच्छ को सम्यक्‌ तरह से देखकर वैसे सन्मार्गगामी गच्छ में पक्ष – मास या जीवनपर्यन्त बसना चाहिए, क्योंकि हे गौतम ! वैसा गच्छ संसार का उच्छेद करनेवाला होता है।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 107 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य एगा खुड्डी एगा तरुणी उ रक्खए वसहिं । गोयम! तत्थ विहारे का सुद्धी बंभचेरस्स? ॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में अकेली क्षुल्लक साध्वी, नवदीक्षित साध्वी, अथवा अकेली युवान साध्वी उपाश्रय की रक्षा करती हो, उस विहार में – उपाश्रय में हे गौतम ! ब्रह्मचर्य की शुद्धि कैसी हो ? अर्थात्‌ न हो।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 111 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गिहत्थभासाहिं भासए अज्जिया सुरुट्ठा वि । तं गच्छं गुणसायर! समणगुणविवज्जियं जाण ॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में रुष्ट भी हुई ऐसी साध्वी गृहस्थ के जैसी सावद्य भाषा बोलती है, उस गच्छ को हे गुणसागर गौतम ! श्रमणगुण रहित मानना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 116 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वुड्ढाणं तरुणाणं रत्तिं अज्जा कहेइ जा धम्मं । सा गणिणी गुणसायर! पडनीया होइ गच्छस्स ॥

Translated Sutra: बुढ़े या जवान पुरुष के सामने रात को जो साध्वी धर्म कहे उस साध्वी को भी गुणसागर गौतम ! गच्छ की शत्रु समान मानना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 123 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य थेरी तरुणी थेरी तरुणी य अंतरे सुयइ । गोयम! तं गच्छवरं वरनाण-चरित्तआहारं ॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में स्थविरा के बाद तरुणी और तरुणी के बाद स्थविरा ऐसे एक – एक के अन्तर में सोए, उस गच्छ को हे गौतम ! उत्तम ज्ञान और चारित्र का आधार समान मानना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 126 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छक्कायमुक्कजोगा, धम्मकहा विगह पेसण गिहीणं । गिहिनिस्सेज्जं वाहिंति संथवं तह करंतीओ ॥

Translated Sutra: गृहस्थ को तरह – तरह की प्रेरणा दे, गृहस्थ के आसन पर बैठे और गृहस्थ से परीचय करे उसे हे गौतम ! साध्वी न कहना चाहिए।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 129 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थुत्तर-पडिउत्तरवडिया अज्जाओ साहुणा सद्धिं । पलवंति सुरुट्ठा वी, गोयम! किं तेण गच्छेण? ॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में बुढ़ी साध्वी कोपायमान होकर साधु के साथ उत्तर – प्रत्युत्तर द्वारा जोरों से प्रलाप करती है, वैसे गच्छ से हे गौतम ! क्या प्रयोजन है ?
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 130 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गच्छे गोयम! उप्पन्ने कारणम्मि अज्जाओ । गणिणीपिट्ठिठियाओ भासंती मउयसद्देणं ॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जिस गच्छ के भीतर साध्वी जरुरत पड़ने पर ही महत्तरा साध्वी के पीछे खड़े रहकर मृदु, कोमल शब्द से बोलती है वही सच्चा गच्छ है।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Hindi 133 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्मूलं संसारं जणेइ अज्जा वि गोयमा! नूणं । तम्हा धम्मुवएसं मोत्तुं अन्नं न भासिज्जा ॥

Translated Sutra: धर्मोपदेश रहित वचन संसारमूलक होने से वैसी साध्वी संसार बढ़ाती है, इसीलिए हे गौतम ! धर्मोपदेश छोड़कर दूसरा वचन साध्वी को नहीं बोलना चाहिए।
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

मङ्गलं आदि

Gujarati 2 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थेगे गोयमा! पाणी जे उम्मग्गपइट्ठिए । गच्छम्मि संवसित्ताणं भमई भवपरंपरं ॥

Translated Sutra: ગૌતમ ! અહીં એવા પણ જીવો છે, જે ઉન્માર્ગ પ્રતિષ્ઠિત ગચ્છમાં રહીને ભવ – પરંપરામાં ભમે છે.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गच्छे वसमानस्य गुणा

Gujarati 3 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जामद्धं जाम दिन पक्खं मासं संवच्छरं पि वा । सम्मग्गपट्ठिए गच्छे संवसमाणस्स गोयमा! ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩. હે ગૌતમ ! અર્ધપ્રહર, એક પ્રહર, દિવસ, પક્ષ, માસ કે વર્ષ પર્યન્ત પણ. ... સૂત્ર– ૪. સન્માર્ગગામી ગચ્છમાં વસનાર આળસુ, નિરુત્સાહી અને વિમનસ્ક મુનિ પણ. ... સૂત્ર– ૫. બીજા મહાપ્રભાવવાળા સાધુઓને સર્વ ક્રિયામાં અલ્પસત્ત્વી જીવોથી ન થઈ શકે એવા તપાદિરૂપ ઉદ્યમ કરતા જોઈને, લજ્જા અને શંકા ત્યજી ધર્માનુષ્ઠાનમાં ઉત્સાહ
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आचार्यस्वरूपं

Gujarati 29 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उम्मग्गठिए सम्मग्गनासए जो य सेवए सूरी । नियमेणं सो गोयम! अप्पं पाडेइ संसारे ॥

Translated Sutra: ઉન્માર્ગસ્થિત, સન્માર્ગનાશક આચાર્યને જે સેવે છે, હે ગૌતમ ! જરૂર તે પોતાના આત્માને સંસારમાં પાડે છે.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आचार्यस्वरूपं

Gujarati 31 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उम्मग्गमग्गसंपट्ठियाण सूरीण गोयमा! नूनं । संसारो य अनंतो होइ य सम्मग्गनासीणं ॥

Translated Sutra: ઉન્માર્ગગામી માર્ગે ચાલનારા અને સન્માર્ગનાશક સાધુને હે ગૌતમ! અનંત સંસાર નિશ્ચે થાય છે.
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आचार्यस्वरूपं

Gujarati 37 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीयानागयकाले केई होहिंति गोयमा! सूरी । जेसिं नामग्गहणे वि होज्ज नियमेण पच्छित्तं ।

Translated Sutra: ગૌતમ ! ભૂત – ભાવિ અને વર્તમાનમાં કોઈ એવા આચાર્યો છે કે જેમનું નામ ગ્રહણ માત્રથી પ્રાયશ્ચિત્ત લાગે.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 43 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे अनहियपरमत्थे गोयमा! संजए भवे । तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥

Translated Sutra: સંયત હોવા છતાં હે ગૌતમ ! પરમાર્થને ન જાણનાર અને દુર્ગતિપંથદાયક એવા અગીતાર્થને દૂરથી જ તજવા.
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 52 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गुरुणो छंदनुवित्ती, सुविनीए जियपरीसहे धीरे । न वि थद्धे, ण वि लुद्धे, न वि गारविए विगहसीले ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ગુરુની ઇચ્છાને અનુસરનાર, સુવિનીત, પરીષહ જીતનાર, ધીર, અભિમાન રહિત, લોલુપતા રહિત, ગારવરહિત તથા વિકથાથી રહિત સૂત્ર– ૫૩. ક્ષાંત, દાંત, ગુપ્ત, મુક્ત, વૈરાગ્યમાર્ગ લીન, દશવિધ સામાચારીમાં, આવશ્યકમાં, સંયમમાં ઉદ્યુત સૂત્ર– ૫૪. ખર – કઠોર – કર્કશ, અનિષ્ટ અને દુષ્ટવાણીથી તેમજ તિરસ્કાર અને કાઢી મૂકવા વડે પણ જેઓ
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 60 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य जेट्ठ-कणिट्ठो जाणिज्जइ जेट्ठविनय-बहुमाना । दिवसेण वि जो जेट्ठो न हीलिज्जइ, स गोयमा! गच्छो ॥

Translated Sutra: જ્યાં મોટા – નાનાનો તફાવત જાણી શકાય, જ્યેષ્ઠ વચનનું બહુમાન હોય, એક દિવસથી પણ જે મોટો હોય, તેની હેલણા ન થાય, હે ગૌતમ ! તેને ગચ્છ જાણ. જે ગણમાં જ્યેષ્ઠ – વ્રત પર્યાયથી મોટા, કનિષ્ટ – દિક્ષા પર્યાયથી નાના, ચ – શબ્દથી મધ્યમપર્યાયી, તેઓ પ્રગટ પણે જણાય છે. કઈ રીતે ? જ્યેષ્ઠવચન બહુમાનથી. જેમ કે હે આર્ય ! હે ભદન્ત ! આદિ શબ્દોથી.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 61 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जाकप्पं पाणच्चाए वि रोरदुब्भिक्खे । न य परिभुंजइ सहसा, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૧. ભયંકર દુષ્કાળ હોય, તેવા સમયે પ્રાણનો ત્યાગ થાય તો પણ સાધ્વીનો લાવેલ આહાર સહસા ન ખાય, હે ગૌતમ ! તેને ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૬૨. તથા જે ગચ્છમાં સાધ્વી સાથે દાંત પડી ગયેલ એવો સ્થવિર પણ આલાપ – સંલાપ ન કરે, સ્ત્રીના અંગોપાંગ ન ચિંતવે તે ગચ્છ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૬૧, ૬૨
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 76 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खज्जूरिपत्तमुंजेण जो पमज्जे उवस्सयं । नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा! ॥

Translated Sutra: ખજૂરીપત્ર અને મુંજથી (સાવરણીથી) જે ઉપાશ્રયને સાફ કરે છે, તેને જીવોની કોઈ દયા નથી તેમ હે ગૌતમ ! તે તું સારી રીતે જાણ.
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 83 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थित्थीकरफरिसं अंतरियं कारणे वि उप्पन्ने । दिट्ठीविस-दित्तग्गी-विसं व वज्जिज्जए गच्छे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૩. જે ગચ્છમાં કારણે વસ્ત્રાદિના અંતરે પણ સ્ત્રીના હાથ આદિનો સ્પર્શ, દૃષ્ટિવિષ સર્પ અને બળતા અગ્નિ માફક તજી દેવાનો હોય તે ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૮૪. બાલિકા, વૃદ્ધા, પુત્રી, પૌત્રી, બહેન આદિના શરીરનો થોડો પણ સ્પર્શ જે ગચ્છમાં ન કરાય, હે ગૌતમ ! તે જ ગચ્છ છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૮૩, ૮૪
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 91 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जालद्धं पडिगहमाई वि विविहमुवगरणं । परिभुज्जइ साहूहिं, तं गोयम! केरिसं गच्छं? ॥

Translated Sutra: જે ગચ્છમાં સાધ્વીએ મેળવેલ વિવિધ ઉપકરણ અને પાત્રા આદિ સાધુઓ કારણ વિના પણ ભોગવે, હે ગૌતમ ! તે કેવો ગચ્છ ?
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 95 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घनगज्जिय-हयकुहियं-विज्जूदुग्गेज्झगूढहिययाओ । अज्जा अवारियाओ, इत्थीरज्जं, न तं गच्छं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૫. મેઘની ગર્જના, ઘોડાના પેટમાં રહેલ વાયુ અને વિદ્યુતની જેમ દુર્ગ્રાહ્ય ગૂઢ હૃદયી આર્યાઓ જે ગચ્છમાં અટકાવ રહિત અકાર્ય કરતી હોય, તથા સૂત્ર– ૯૬. જે ગચ્છમાં સમુદ્દેશકાળમાં સાધુની માંડલીમાં આર્યાઓ પગ મૂકે છે, તે હે ગૌતમ ! સ્ત્રી રાજ્ય છે, ગચ્છ નથી. સૂત્ર સંદર્ભ– ૯૫, ૯૬
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गुरुस्वरूपं

Gujarati 97 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ मुनीण कसाए जगडिज्जंता वि परकसाएहिं । निच्छंति समुट्ठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૭. સુખે બેઠેલા પંગુ માણસની જેમ જે મુનિના કષાયો બીજાના કષાયો વડે પણ ઉદ્દીપન ન થાય તેને ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૯૮. ધર્મના અંતરાયથી ભય પામેલા અને સંસારમાં રહેવાથી ભય પામેલા મુનિઓ, મુનિના ક્રોધાદિ કષાય ન ઉદીરે તે ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૯૯. કારણો કે કારણ વિના મુનિને કષાયનો ઉદય થાય, તે ઉદયને રોકે અને પછી ખમાવે, હે ગૌતમ
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 100 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सील-तव-दान-भावनचउविहधम्मंतरायभयभीए । जत्थ बहू गीयत्थे, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: દાન, શીલ, તપ અને ભાવ એ ચતુર્વિધ ધર્માંતરાયથી ભય પામેલા ગીતાર્થ સાધુ જે ગચ્છમાં ઘણા હોય, હે ગૌતમ ! તેને ગચ્છ કહેવો.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 101 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गोयम! पंचण्ह कह वि सूणाण एक्कमवि होज्जा । तं गच्छं तिविहेणं वोसिरिय वएज्ज अन्नत्थ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૧. જે ગચ્છમાં હે ગૌતમ ! ઘંટી આદિ પાંચ વધસ્થાનમાંથી કોઈ એક હોય, તે ગચ્છને ત્રિવિધે વોસીરાવી, અન્ય કોઈ સારા ગચ્છમાં જવું. સૂત્ર– ૧૦૨. ખાંડવા આદિ આરંભમાં પ્રવર્તેલ અને ઉજ્જવળ વેશ ધારણ કરનાર ગચ્છની સેવા ન કરવી. ચારિત્ર ગુણોથી ઉજ્જવળ હોય તેની સેવા કરવી. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૦૧, ૧૦૨
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Gujarati 103 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य मुनिणो कय-विक्कयाइं कुव्वंति संजमुब्भट्ठा । तं गच्छं गुणसायर! विसं व दूरं परिहरिज्जा ॥

Translated Sutra: જે ગચ્છમાં મુનિ ક્રય – વિક્રય આદિ કરે – કરાવે છે તે સંયમ ભ્રષ્ટ જાણવા. હે ગુણસાગર ગૌતમ !! તેવા ગચ્છને વિષની જેમ દૂરથી તજવો.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 111 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गिहत्थभासाहिं भासए अज्जिया सुरुट्ठा वि । तं गच्छं गुणसायर! समणगुणविवज्जियं जाण ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧૧. જે ગચ્છમાં સાધ્વી ગૃહસ્થ જેવી સાવદ્ય ભાષા બોલે, તે ગચ્છને હે ગુણસાગર ગૌતમ ! તું શ્રમણ ગુણ રહિત જાણ. સૂત્ર– ૧૧૨. જે સાધ્વી સ્વ ઉચિત શ્વેત વસ્ત્રોનો ત્યાગ કરીને વિવિધ રંગી વિચિત્ર વસ્ત્ર અને પાત્રનું સેવન કરે છે, તેને સાધ્વી ન કહેવી. સૂત્ર– ૧૧૩. વળી જે સાધ્વી ગૃહસ્થના શીવણ – તુણન – ભરણ આદિ કરે છે, પોતાને
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 116 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वुड्ढाणं तरुणाणं रत्तिं अज्जा कहेइ जा धम्मं । सा गणिणी गुणसायर! पडनीया होइ गच्छस्स ॥

Translated Sutra: વૃદ્ધ કે યુવાન પુરુષો પાસે(સન્મુખ) રાત્રે જે સાધ્વી ધર્મ કહે છે, તે સાધ્વીને પણ હે ગુણસાગર ગૌતમ ! ગચ્છની શત્રુ જાણવી.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 117 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य समणीणमसंखडाइं गच्छम्मि नेव जायंति । तं गच्छं गच्छवरं, गिहत्थभासाओ नो जत्थ ॥

Translated Sutra: જે ગચ્છમાં સાધ્વી પરસ્પર કલહ ન કરે, ગૃહસ્થ જેવી સાવદ્ય ભાષા ન બોલે, તે ગચ્છને હે ગૌતમ ! તારે શ્રેષ્ઠ ગચ્છ જાણવો.
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 124 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धोइंति कंठियाओ पोइंति य तह य दिंति पोत्ताणि । गिहकज्जचिंतगीओ, न हु अज्जा गोयमा! ताओ ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨૪. જે સાધ્વી કંઠપ્રદેશને પાણીથી ધૂવે, ગૃહસ્થોના મોતી આદિ પરોવે, બાળકો માટે વસ્ત્ર આપે, ઔષધ – જડીબુટ્ટી આપે, ગૃહસ્થોની કાર્ય ચિંતા કરે. સૂત્ર– ૧૨૫. જે સાધ્વી હાથી – ઘોડા – ગધેડા આદિના સ્થાને જાય કે તેઓ તેમના સ્થાને આવે, વેશ્યા સ્ત્રીનો સંગ કરે, જેનો ઉપાશ્રય વેશ્યા ગૃહ સમીપે હોય તેને સાધ્વી ન કહેવી સૂત્ર–
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 129 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थुत्तर-पडिउत्तरवडिया अज्जाओ साहुणा सद्धिं । पलवंति सुरुट्ठा वी, गोयम! किं तेण गच्छेण? ॥

Translated Sutra: જે ગચ્છમાં વૃદ્ધા સાધ્વી કોપાયમાન થઈને સાધુની સાથે ઉત્તર – પ્રત્યુત્તર વડે મોટેથી પ્રલાપ કરે છે, તેવા ગચ્છથી હે ગૌતમ ! શું પ્રયોજન છે ?
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 130 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गच्छे गोयम! उप्पन्ने कारणम्मि अज्जाओ । गणिणीपिट्ठिठियाओ भासंती मउयसद्देणं ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩૦. હે ગૌતમ ! જે ગચ્છમાં સાધ્વીઓ કારણ ઉત્પન્ન થતા મહત્તરા સાધ્વીની પાછળ ઊભા રહીને મૃદુ શબ્દો બોલે છે. તે જ વાસ્તવિક ગચ્છ છે. સૂત્ર– ૧૩૧. વળી માતા, પુત્રી, સ્નુષા કે ભગિની આદિ વચન ગુપ્તિનો ભંગ જે ગચ્છમાં સાધ્વી ન કરે તે જ ગચ્છ સાચો ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૩૦, ૧૩૧
Gacchachar ગચ્છાચાર Ardha-Magadhi

आर्यास्वरूपं

Gujarati 132 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंसणइयार कुणई, चरित्तनासं, जणेइ मिच्छत्तं । दोण्ह वि वग्गाणऽज्जा विहारभेयं करेमाणी ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૩૨. જે સાધ્વી દર્શનાચાર લગાડે, ચારિત્રના નાશ અને મિથ્યાત્વ ઉત્પન્ન કરે, બંને વર્ગના વિહારની મર્યાદાનું ઉલ્લંઘન કરે તે સાધ્વી નથી. સૂત્ર– ૧૩૩. ધર્મોપદેશ સિવાયનું વચન સંસારમૂલક હોવાથી તેવી સાધ્વી સંસાર વધારે છે. માટે હે ગૌતમ ! ધર્મોપદેશ મૂકીને બીજું વચન સાધ્વીઓએ ન બોલવું. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૩૨, ૧૩૩
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-१ काली

Hindi 220 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत्‌ चौदह पूर्वों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-२ थी ५

Hindi 221 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढम-ज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा। गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! यदि यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो यावत्‌ सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था तथा गुणशील नामक चैत्य था। स्वामी पधारे। वन्दन करने के लिए परीषद्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-२ बलीन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-१ थी ५

Hindi 225 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा। जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं दोच्चस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पन्नत्ता, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सुंभा देवी बलिचंचाए रायहाणीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यावत्‌ मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा है तो दूसरे वर्ग का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने दूसरे वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं। शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा और मदना। भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ सिद्धिप्राप्त भगवान महावीर ने धर्मकथा के द्वीतिय
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