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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 120 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी तिविहा–
पुव्वानुपुव्वी–अहोलोए तिरियलोए उड्ढलोए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उड्ढलोए तिरियलोए अहोलोए। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
अहोलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? ईसके तीन भेद हैं। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? अधोलोक, तिर्यक्लोक और ऊर्ध्वलोक, इस क्रम से निर्देश करना पूर्वानुपूर्वी हैं। पश्चानुपूर्वी क्या है ? पूर्वानुपूर्वी के क्रम के विपरीत – ऊर्ध्वलोक, तिर्यक्लोक, अधोलोक का क्रम | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 121 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवे लवणे, धायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे ।
खीर-घय-खोय-नंदी अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥ Translated Sutra: जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, घृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र। जम्बूद्वीप | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 122 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवाओ खलु निरन्तरा सेसया असंखइमा ।
भुयगवर-कुसवरा वि य, कोंचवराऽभरणमाईया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 123 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पुढवि-निहि-रयणे ।
वासहर-दह-नईओ विजया वक्खार-कप्पिंदा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 124 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कुरु-मंदर-आवासा, कूडा नक्खत्त-चंद-सूरा य ।
देवे नागे जक्खे, भूए य सयंभुरमणे य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 125 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सयंभुरमणे जाव जंबुद्दीवे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखेज्जगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
उड्ढलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–१. सोहम्मे २. ईसाणे ३. सणंकुमारे ४. माहिंदे ५. बंभलोए ६. लंतए ७. महासुक्के ८. सहस्सारे ९. आणए १०. पाणए ११. आरणे १२. अच्चुए १३. गेवेज्जविमाणा १४. अनुत्तरविमाणा १५. ईसिप्पब्भारा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? स्वयंभूरमणसमुद्र, भूतद्वीप आदि से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त व्युत्क्रम से द्वीप – समुद्रों के उपन्यास करना मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं। मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर उनका परस्पर | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 126 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कालानुपुव्वी? कालानुपुव्वी दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–ओवनिहिया य अनोवनिहिया य। Translated Sutra: कालानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार हैं, औपनिधिकी और अनौपनिधिकी। इनमें से औपनिधिकी कालानुपूर्वी स्थाप्य है। तथा – अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की है – नैगम – व्यवहारनयसंमत और संग्रहनयसम्मत। सूत्र – १२६, १२७ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 127 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जा सा ओवनिहिया सा ठप्पा।
तत्थ णं जा सा अनोवनिहिया सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–नेगम-ववहाराणं संगहस्स य। Translated Sutra: देखो सूत्र १२६ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 128 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी? नेगम-ववहाराणं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–
१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके पाँच प्रकार हैं। – अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्की – र्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 129 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया? नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया–तिसमय-ट्ठिईए आनुपुव्वी जाव दससमयट्ठिईए आनुपुव्वी संखेज्जसमयट्ठिईए आनुपुव्वी असंखेज्जसमय-ट्ठिईए आनुपुव्वी। एगसमयट्ठिईए अनानुपुव्वी। दुसमयट्ठिईए अनानुपुव्वी।
तिसमयट्ठिईयाओ आनुपुव्वीओ जाव दससमयट्ठिईयाओ आनुपुव्वीओ संखेज्जसमय-ट्ठिईयाओ आनुपुव्वीओ असंखेज्जसमयट्ठिईयाओ आनुपुव्वीओ। एगसमयट्ठिईयाओ अनानुपुव्वीओ दुसमयट्ठिईयाओ अवत्तव्वगाइं। से तं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया।
एयाए णं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए किं पओयणं? एयाए णं नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? वह इस प्रकार है – तीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है यावत् दस समय, संख्यात समय, असंख्यात समय की स्थितिवाला द्रव्य आनुपूर्वी है। एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है। दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 130 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया? नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया–१. अत्थि आनुपुव्वी २. अत्थि अनानुपुव्वी ३. अत्थि अवत्तव्वए। एवं दव्वानुपुव्विगमेणं कालानुपुव्वीए वि ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव। से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया।
एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए किं पओयणं? एयाए णं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदंसणया कज्जइ। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है, इस प्रकार द्रव्यानु – पूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी २६ भंग जानना। इस नैगम – व्यवहारनयसंमत यावत् (भंगसमुत्कीर्तनता का) क्या प्रयोजन है ? ईनसे भंगोपदर्शनता की जाती है। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 131 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया? नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया–१. तिसमयट्ठिईए आनुपुव्वी २. एगसमयट्ठिईए अनानुपुव्वी ३. दुसमयट्ठिईए अवत्तव्वए ४. तिसमयट्ठिईयाओ आनु-पुव्वीओ ५. एगसमयट्ठिईयाओ अनानुपुव्वीओ ६. दुसमयट्ठिईयाओ अवत्तव्वगाइं। अहवा १. तिसमयट्ठिईए य एगसमयट्ठिईए य आनुपुव्वी य अनानुपुव्वी य।
एवं तहा चेव दव्वानुपुव्विगमेणं छव्वीसं भंगा भाणियव्वा जाव। से तं नेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया। Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? वह इस प्रकार है – त्रिसमयस्थितिक एक – एक परमाणु आदि द्रव्य आनुपूर्वी है, एक समय की स्थितिवाला एक – एक परमाणु आदि द्रव्य अनानुपूर्वी है और दो समय की स्थितिवाला परमाणु आदि द्रव्य अवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य ‘आनुपूर्वियाँ’ इस पद के वाच्य हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 132 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे–नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं कहिं समोयरंति– किं आनुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति–पुच्छा। नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं आनुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अनानुपुव्विदव्वेहिं समोयरंति, नो अवत्तव्वगदव्वेहिं समोयरंति। एवं दोन्नि वि सट्ठाणे समोयरंति।
से तं समोयारे। Translated Sutra: समवतार क्या है ? नैगम – व्यवहारनयसंमत अनेक आनुपूर्वी द्रव्यों का कहाँ समवतार होता है ? यावत् – तीनों ही स्व – स्व स्थान में समवतरित होते हैं। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 133 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुगमे? अनुगमे नवविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: अनुगम क्या है ? अनुगम नौ प्रकार का है। सत्पदप्ररूपणा यावत् अल्पबहुत्व। सूत्र – १३३, १३४ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 134 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. संतपयपरूवणया, २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य ।
५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. भाव० ९. अप्पाबहुं चेव ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १३३ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 135 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्य है या नहीं है ? नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? तीनों द्रव्य असंख्यात ही हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में रहते हैं ? इत्यादि प्रश्न है। एक द्रव्य | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 136 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी? पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे। Translated Sutra: संग्रहनय सम्मत अनौपधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? वह पाँच प्रकार की है। अर्थपदप्ररूपणता, भंग समुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्तानुपुव्वीए संगहस्स तहा कालानुपुव्वीए वि भाणियव्वाणि, नवरं–ठितीअभिलावो जाव। से तं अनुगमे। से तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी। से तं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी। Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? इन पाँचों द्वारों संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी समान जानना। विशेष यह कि ‘प्रदेशावगाढ’ के बदले ‘स्थिति’ कहना। | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 138 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा Translated Sutra: औपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 139 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उक्कित्तणानुपुव्वी? उक्कित्तणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उसभे अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–वद्धमाणे जाव उसभे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से Translated Sutra: उत्कीर्तनानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? इस प्रकार है – ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्र्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शांति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 140 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गणनानुपुव्वी? गणनानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–एगो दसं सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी दसकोडीओ कोडिसयं दसकोडिसयाइं। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–दसकोडिसयाइं जाव एगो। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसकोडिसय-गच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से तं गणणानुपुव्वी। Translated Sutra: गणनानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? एक, दस, सौ, सहस्र, दस सहस्र, लाख, दस लाख, करोड़, दस कोटि, कोटिशत, दस कोटिशत, इस प्रकार से गिनती करना पूर्वानुपूर्वी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? दस अरब से लेकर व्युत्क्रम से एक पर्यन्त की गिनती करना पश्चानुपूर्वी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 141 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संठाणानुपुव्वी? संठाणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समचउरंसे नग्गोहपरिमंडले साई खुज्जे वामणे हुंडे। से तं पुव्वानुपुव्वी
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–हुंडे जाव समचउरंसे। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी– एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से तं संठाणानुपुव्वी। Translated Sutra: संस्थानापूर्वी क्या है ? उनके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं? समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान, हुंडसंस्थान के क्रम से संस्थानों के विन्यास करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। पश्चानुपूर्वी क्या | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 142 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सामायारियानुपुव्वी? सामायारियानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानु-पुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी– Translated Sutra: समाचारी – आनुपूर्वी क्या है ? वह तीन प्रकार की है – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है। वह इस प्रकार है – | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 143 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य निसीहिया ।
आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा ॥ Translated Sutra: इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आवश्यकी, नैषेधिकी, आप्रच्छना, प्रतिप्रच्छना, छंदना, निमंत्रणा और उपसंपद्। यह इस प्रकार की सामाचारी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? उपसंपद् से लेकर इच्छाकार पर्यन्त स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है। अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर दस पर्यन्त एक – एक की वृद्धि द्वारा श्रेणी रूप में | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 144 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ ।
–से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उवसंपया जाव इच्छा। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
से तं सामायारियानुपुव्वी। Translated Sutra: देखो सूत्र १४३ | |||||||||
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Hindi | 145 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावानुपुव्वी? भावानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिए सन्निवाइए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सन्निवाइए जाव उदइए। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं भावानुपुव्वी। से तं आनुपुव्वी। Translated Sutra: भावानुपूर्वी क्या है ? तीन प्रकार की है। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव, पारिणामिकभाव, सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास पूर्वानुपूर्वी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त | |||||||||
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Hindi | 146 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामे? नामे दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगनामे दुनामे तिनामे चउनामे पंचनामे छनामे सत्तनामे अट्ठनामे नवनामे दसनामे। Translated Sutra: नाम क्या है ? नाम के दस प्रकार हैं। एक नाम, दो नाम, तीन नाम, चार नाम, पाँच नाम, छह नाम, सात नाम, आठ नाम, नौ नाम, दस नाम। | |||||||||
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Hindi | 147 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगनामे? एगनामे– Translated Sutra: एकनाम क्या है ? द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी ‘नाम’ ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष में कही गई है। यह एकनाम है। सूत्र – १४७–१४९ | |||||||||
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Hindi | 148 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नामानि जानि कानि वि, दव्वाण गुणाण पज्जवाणं च ।
तेसिं आगम-निहसे, नामंति परूविया सन्ना ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७ | |||||||||
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Hindi | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं – एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक। एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं। यथा – कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। अथवा द्विनाम के | |||||||||
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Hindi | 151 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिनामे? तिनामे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वनामे गुणनामे पज्जवनामे।
से किं तं दव्वनामे? दव्वनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थि-काए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं दव्वनामे।
से किं तं गुणनामे? गुणनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे संठाणनामे।
से किं तं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णनामे नीलवण्णनामे लोहिय-वण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णनामे।
से किं तं गंधनामे? गंधनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधनामे य दुब्भिगंधनामे य। से तं गंधनामे।
से Translated Sutra: त्रिनाम क्या है ? त्रिनाम के तीन भेद हैं। वे इस प्रकार – द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम। द्रव्यनाम क्या है ? द्रव्यनाम छह प्रकार का है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय। गुणनाम क्या है ? पाँच प्रकार से हैं। वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, संस्थाननाम। वर्णनाम | |||||||||
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Hindi | 152 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं पुण नामं तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव ।
एएसिं तिण्हंपि य, अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥ Translated Sutra: उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं। स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम। इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अंत्याक्षरो द्वारा होता है। पुरुषनामों के अंत में ‘आ, ई, ऊ, ओ’ इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में ‘ओ’ को छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं। जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको | |||||||||
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Hindi | 153 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पुरिसस्स अंता, आ ई ऊ ओ हवंति चत्तारि ।
ते चेव इत्थियाए, हवंति ओकारपरिहीणा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 154 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अं तिय इं तिय उं तिय, अंता उ नपुंसगस्स बोद्धव्वा ।
एएसिं तिण्हंपि य, वोच्छामि निदंसणे एत्तो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 155 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आकारंतो राया, ईकारंतो गिरी य सिहरी य ।
ऊकारंतो विण्हू, दुमो ओअंतो उ पुरिसाणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 156 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आकारंता माला, ईकारंता सिरी य लच्छी य ।
ऊकारंता जंबू, वहू य अंता उ इत्थीणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 157 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंकारंतं धन्नं, इंकारंतं नपुंसगं अच्छिं ।
उंकारंतं पीलुं, महुं च अंता नपुंसाणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १५२ | |||||||||
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Hindi | 159 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउनामे? चउनामे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमेणं लोवेणं पयईए विगारेणं।
से किं तं आगमेणं? आगमेणं–पद्मानि पयांसि कुंडानि। से तं आगमेणं।
से किं तं लोवेणं? लोवेणं–ते अत्र = तेत्र, पटो अत्र = पटोत्र, घटो अत्र = घटोत्र, रथो अत्र = रथोत्र। से तं लोवेणं।
से किं तं पयईए? पयईए–अग्नी एतौ, पटू इमौ, शाले एते, माले इमे। से तं पयईए।
से किं तं विगारेणं? विगारेणं–दण्डस्य अग्रं = दण्डाग्रम्, सो आगता = सागता, दधि इदं = दधीदम्, नदी ईहते = नदीहते, मधु उदकं = मधूदकम्, वधू ऊहते = वधूहते। से तं विगारेणं।
से तं चउनामे। Translated Sutra: चतुर्नाम क्या है ? चार प्रकार हैं। आगमनिष्पन्ननाम, लोपनिष्पन्ननाम, प्रकृतिनिष्पन्ननाम, विकारनिष्पन्ननाम। आगम – निष्पन्ननाम क्या है ? पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि ये सब आगमनिष्पन्ननाम हैं। लोपनिष्पन्ननाम क्या है ? ते + अत्र – तेऽत्र, पटो + अत्र – पटोऽत्र, घटो + अत्र – घटोऽत्र, रथो + अत्र रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम | |||||||||
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Hindi | 160 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पंचनामे? पंचनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामिकं २. नैपातिकं ३. आख्यातिकं ४. औपसर्गिकं ५. मिश्रम्। अश्व इति नामिकम्। खल्विति नैपातिकम्। धावतीत्याख्यातिकम्। परीत्यौपसर्गिकम्। संयत इति मिश्रम्।
से तं पंचनामे। Translated Sutra: पंचनाम क्या है ? पाँच प्रकार का है। नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, औपसर्गिक और मिश्र। जैसे ‘अश्व’ यह नामिकनाम का, ‘खलु’ नैपातिकनाम का, ‘धावति’ आख्यातिकनाम का, ‘परि’ औपसर्गिक और ‘संयत’ यह मिश्रनाम का उदाहरण है। | |||||||||
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Hindi | 161 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए।
से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य।
से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए।
से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य।
से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न | |||||||||
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Hindi | 162 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जुन्नसुरा जुन्नगुलो, जुन्नघयं जुन्नतंदुला चेव ।
अब्भा य अब्भरुक्खा, संज्झा गंधव्वनगरा य ॥ Translated Sutra: जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गंधर्वनगर। | |||||||||
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Hindi | 163 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए।
से तं साइपारिणामिए।
से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए Translated Sutra: उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, | |||||||||
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Hindi | 164 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सत्तनामे? सत्तनामे–सत्त सरा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: सप्तनाम क्या है ? सात प्रकार के स्वर रूप है। – षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, ये सात स्वर जानना। सूत्र – १६४, १६५ | |||||||||
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Hindi | 165 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्जे रिसभे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे ।
धेवए चेव नेसाए, सरा सत्त वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६४ | |||||||||
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Hindi | 166 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं। जिह्वा के अग्रभाग से षड्जस्वर का, वक्षस्थल से ऋषभस्वर, कंठ से गांधार – स्वर, जिह्वा के मध्यभाग से मध्यमस्वर, नासिका से पंचमस्वर का, दंतोष्ठ – संयोग से धैवतस्वर का और मूर्धा से निषाद स्वर का उच्चारण करना चाहिए। सूत्र – १६६–१६८ | |||||||||
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Hindi | 167 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्जं च अग्गजीहाए, उरेण रिसभं सरं ।
कंठुग्गएण गंधारं, मज्झजीहाए मज्झिमं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६ | |||||||||
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Hindi | 168 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नासाए पंचमं बूया, दंतोट्ठेण य धेवतं ।
भमुहक्खेवेण नेसायं सरट्ठाणा वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६६ | |||||||||
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Hindi | 169 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तसरा जीवनिस्सिया पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जीवनिश्रित – सप्तस्वरों का स्वरूप इस प्रकार है – मयूर षड्जस्वर में, कुक्कुट ऋषभस्वर, हंस गांधारस्वर में, गवेलक मध्यमस्वर में, कोयल पुष्पोत्पत्तिकाल में पंचमस्वर में, सारस और क्रौंच पक्षी धैवतस्वर में तथा – हाथी निषाद स्वर में बोलता है। सूत्र – १६९–१७१ | |||||||||
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Hindi | 170 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्जं रवइ मयूरो, कुक्कुडो रिसभं सरं ।
हंसो रवइ गंधारं, मज्झिमं तु गवेलगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९ | |||||||||
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Hindi | 171 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं ।
छट्ठं च सारसा कुंचा, नेसायं सत्तमं गओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६९ |