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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 101 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया चेल्लणाए देवीए सद्धिं धम्मियं जानप्पवरं दुरूढे।
सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइ गमेणं नेयव्वं जाव पज्जुवासइ एवं चेल्लणावि जाव महत्तरगपरिक्खित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव जाव पज्जुवासति।
तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रन्नो भिंभिसारस्स चेल्लणाए देवीए तीसे य महतिमहालियाए परिसाए–इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जतिपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए जाव धम्मो कहितो। परिसा पडिगया। सेणितो राया पडिगतो। Translated Sutra: तब श्रेणिक राजा चेल्लणादेवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में आरूढ़ हुआ यावत् भगवान महावीर के पास आए यावत् भगवन् को वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे। उस वक्त भगवान महावीर ने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवों की पर्षदा में तथा श्रेणिक राजा बिंबिसार और रानी चेल्लणा यावत् पर्षदा को धर्मदेशना सुनाई। पर्षदा | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 102 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं एगतियाणं निग्गंथाणं निग्गंथीण य सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ताणं इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था– अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकार-विभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति।
न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि, सक्खं खलु अयं देवे।
जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेर-वासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं मानुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरामो– सेत्तं Translated Sutra: उस वक्त राजा श्रेणिक एवं चेल्लणा देवी को देखकर कितनेक निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थी के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि अरे ! यह श्रेणिक राजा महती ऋद्धिवाला यावत् परमसुखी है, वह स्नान, बलिकर्म, तिलक, मांगलिक, प्रायश्चित्त करके सर्वालंकार से विभूषित होकर चेल्लणा देवी के साथ मनुष्य सम्बन्धी | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 103 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति।
न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे।
जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु – साध्वीओं को कहा – श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या – यावत् इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत् क्या यह बात सही है ? हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है – यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, श्रेष्ठ है, सिद्धि – मुक्ति, निर्याण और निर्वाण का यही | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 104 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: हे आयुष्मती श्रमणीयाँ ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है – जैसे कि यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है। यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थी धर्मशिक्षा के लिए उपस्थित होकर, परिषह सहती हुई, यदि उसे कामवासना का उदय हो तो उसके शमन का प्रयत्न करे। यदि उस समय वह साध्वी किसी स्त्री को देखे, जो अपने पति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 105 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। जो कोई निर्ग्रन्थ केवलि प्ररूपित धर्म की आराधना के लिए तत्पर हुआ हो, परिषहों को सहता हो, यदि उसे कामवासना का उदय हो जाए तो उसके शमन का प्रयत्न करे इत्यादि पूर्ववत्। यदि वह किसी स्त्री को देखता | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 106 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। यदि कोई निर्ग्रन्थी केवली प्रज्ञप्त धर्म के लिए तत्पर होती है, परिषह सहन करती है, उसे कदाचित् कामवासना का प्रबल उदय हो जाए तो वह तप संयम की उग्र साधना से उसका शमन करे। यदि उस समय (पूर्व | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 107 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म बताया है। यहीं निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् (प्रथम ‘‘निदान’’ समान जान लेना।) कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी धर्म शिक्षा के लिए तत्पर होकर विचरण करते हो, क्षुधादि परिषह सहते हो, फिर भी उसे कामवासना का प्रबल उदय हो जाए, तब उसके शमन के लिए तप – संयम की उग्र साधना से प्रयत्न | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 108 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है। (शेष सर्व कथन प्रथम ‘निदान’ के समान जानना।) देवलोक में जहाँ अन्य देव – देवी के साथ कामभोग सेवन नहीं करते, किन्तु अपनी देवी के साथ या विकुर्वित देव या देवी के साथ कामभोग सेवन करते हैं। यदि मेरे सुचरित तप आदि का फल हो तो (इत्यादि प्रथम निदानवत्) ऐसा व्यक्ति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान् श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत् देवलोक में उत्पन्न होकर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत् त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 111 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् (पहले निदान के समान सब कथन करना) मानुषिक, दिव्य कामभोग, भव परंपरा बढ़ानेवाले हैं। यदि मेरे सुचरित तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष हो तो मैं भी भविष्य में अन्त, प्रान्त, तुच्छ, दरिद्र, कृपण या भिक्षुकुल में पुरुष बनुं, जिस से प्रव्रजित होने के लिए | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 112 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा।
तते Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् तप संयम की साधना करते हुए, वह निर्ग्रन्थ सर्व काम, राग, संग, स्नेह से विरक्त हो जाए, सर्व चारित्र परिवृद्ध हो, तब अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन यावत् परिनिर्वाण मार्ग में आत्मा को भावित करके अनंत, अनुत्तर आवरण रहित, सम्पूर्ण | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 113 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं ते बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएंति पडिक्कमंति निंदंति गरिहंति विउट्टंति विसोहेंति अकरणयाए अब्भुट्ठेंति अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जंति। Translated Sutra: उस वक्त कईं निर्ग्रन्थ – निर्ग्रन्थी ने श्रमण भगवान महावीर के पास पूर्वोक्त निदान का वर्णन सुनकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन नमस्कार किया। पूर्वकृत् निदान शल्य की आलोचना प्रतिक्रमण करके यावत् उचित प्रायश्चित्त स्वरूप तप अपनाया। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 114 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगते एवं आइक्खइ एवं भासति एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिट्ठाणे नामं अज्जो! अज्झयणे, सअट्ठं सहेउयं सकारणं सुत्तं च अत्थं च तदुभयं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेति। Translated Sutra: उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में एकत्रित देव – मानव आदि पर्षदा के बीच कईं श्रमण – श्रमणी श्रावक – श्राविका को इस प्रकार आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण किया।हे आर्य ! ‘‘आयति स्थान’’ नाम के अध्ययन का अर्थ – हेतु – व्याकरण युक्त और सूत्रार्थ और स्पष्टीकरण युक्त सूत्रार्थ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 74 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुजनस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं ।
एतारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૭ – જે અનેક લોકોના નેતાને તથા સમુદ્રમાં દ્વીપ સમાન અનાથ જનોના રક્ષકોનો ઘાત કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 75 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૮ – જે પાપોથી વિરત દીક્ષાર્થીને અને તપસ્વી સાધુને ધર્મથી ભ્રષ્ટ કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૯ – જે અજ્ઞાની અનંત જ્ઞાનદર્શન સંપન્ન જિનેન્દ્ર દેવનો અવર્ણવાદ – નિંદા કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 77 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेयाउयस्स मग्गस्स, दुट्ठे अवयरई बहुं ।
तं तिप्पयंतो भावेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૦ – જે દુષ્ટાત્મા અનેક ભવ્યજીવોને ન્યાયમાર્ગથી ભ્રષ્ટ કરે છે અને ન્યાય માર્ગને દ્વેષથી નિંદે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 78 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झाएहिं, सुयं विनयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसती बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૧ – જે આચાર્ય કે ઉપાધ્યાયોથી શ્રુત અને આચાર ગ્રહણ કરે છે, તેની જ અવહેલના કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 79 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पति ।
अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૨ – જે આચાર્ય કે ઉપાધ્યાયની સમ્યક્ પ્રકારથી સેવા કરતા નથી, તેમનો આદર – સત્કાર કરતા નથી અને અભિમાન કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 80 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबहुस्सुते वि जे केइ, सुतेणं पविकत्थइ ।
सज्झायवायं वायंइ, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૩ – જે બહુશ્રુત ના હોવા છતાં પોતે પોતાને બહુશ્રુત માને, સ્વાધ્યાયી અને શાસ્ત્રોના રહસ્યનો જ્ઞાતા કહે છે – માને છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 81 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अतवस्सिते य जे केइ, तवेणं पविकत्थति ।
सव्वलोगपरे तेणे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૪ – જે તપસ્વી ના હોવા છતાં પણ પોતે પોતાની તપસ્વી કહે છે, તે સૌથી મોટો ચોર છે તેથી તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 82 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहारणट्ठा जे केइ, गिलाणम्मि उवट्ठिते ।
पभू ण कुव्वती किच्चं, मज्झं पेस ण कुव्वती ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૫ – જે સમર્થ હોવા છતાં પણ રોગીની સેવાનું મહાન કાર્ય કરતો નથી. પણ ‘‘આણે મારી સેવા નથી કરી તેથી હું પણ તેની સેવા શા માટે કરું?’’ એમ કહે છે... તે મહામૂર્ખ, માયાવી તથા મિથ્યાત્વી કલુષિત ચિત્ત થઈને પોતાના આત્માનું અહિત કરતો – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૮૨, ૮૩ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 83 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सढे नियडिपण्णाणे, कलुसाउलचेतसे ।
अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 84 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे कहाधिकरणाइं, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सव्वतित्थाण भेयाए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૬ – ચતુર્વિધ સંઘમાં મતભેદ ઉત્પન્ન કરવાને માટે જે કલહના અનેક પ્રસંગ ઉપસ્થિત કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 85 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य आधम्मिए जोए, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सहाहेउं सहीहेउं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૭ – જે પ્રશંસા અથવા મિત્રવર્ગને માટે અધાર્મિક યોગ કરીને વશીકરણાદિનો વારંવાર પ્રયોગ કરે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 86 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य मानुस्सए भोगे, अदुवा पारलोइए ।
तेऽतिप्पयंतो आसयति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૮ – જે માનુષિક અને દૈવી ભોગોની અતૃપ્તિથી તેની વારંવાર અભિલાષા કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 87 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इड्ढी जुती जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૯ – જે દેવોની ઋદ્ધિ, દ્યુતિ, યશ, વર્ણ અને બલ – વીર્યનો અવર્ણવાદ બોલે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 88 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे ।
अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૩૦ – જે અજ્ઞાની જિનેશ્વર દેવની માફક પોતાની પૂજાનો ઇચ્છુક થઈને દેવ, અસુર અને યક્ષોને ના જોતો એવો પણ એવું કહે છે કે, ‘‘હું આ દેવ, યક્ષ, અસુર આદિને જોઈ શકું છું – જોઉં છું’’ – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 89 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते मोहगुणा वुत्ता, कम्मंता वित्तवद्धणा ।
जे तु भिक्खू विवज्जेत्ता, चरेज्जऽत्तगवेसए ॥ Translated Sutra: ઉક્ત દોષો કેવા છે? ૧ – મોહથી ઉત્પન્ન થવાવાળા. ૨ – અશુભ કર્મોનું ફળ દેવાવાળા. ૩ – ચિત્તની મલિનતાને વધારનારા. તેથી સાધુ આ દોષોનું આચરણ ના કરે. પરંતુ આત્માની ગવેષણા કરનારા થઈને વિચરે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 90 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं जाणिया इतो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं ।
तं वंता ताणि सेविज्जा, तेहिं आयारवं सिया ॥ Translated Sutra: સાધુ – પૂર્વે કરેલ પોતાના કૃત્યો અને અકૃત્યોને જાણીને, તેનો પૂર્ણ રૂપે પરિત્યાગ કરે અને તેવા સંયમ સ્થાનોનું સેવન કરે, જેનાથી તે ભિક્ષુ આચારવાન બને. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 91 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयार गुत्ते सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अनुत्तरे ।
ततो वमे सए दोसे, विसमासीविसो जहा ॥ Translated Sutra: જે સાધુ પંચાચારના પાલનથી સુરક્ષિત છે શુદ્ધાત્મા અને અનુત્તર ધર્મમાં સ્થિત છે. તે પોતાના દોષોને તજી દે, જેવી રીતે આશિવિષ સર્પ ઝેરનું વમન કરી દે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 92 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुवंतदोसे सुद्धप्पा, धम्मट्ठी विदितापरे ।
इहेव लभते कित्तिं, पेच्चा य सुगतिं वरं ॥ Translated Sutra: એ પ્રમાણે દોષોનો ત્યાગ કરીને, તે શુદ્ધાત્મા, ધર્માર્થી એવો સાધુ મોક્ષના સ્વરૂપને જાણીને આ લોકમાં કીર્તિ પામીને અને પરલોકમાં સુગતિને પ્રાપ્ત કરે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 93 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा ।
सव्वमोहविनिम्मुक्का, जातीमरणमतिच्छिया ॥
–त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: જે દૃઢ પરાક્રમી શૂરવીર સાધુ, આ બધા સ્થાનોને જાણીને તે મોહબંધા કારણોનો ત્યાગ કરી દે છે, તે જન્મ – મરણનું અતિક્રમણ કરે છે અર્થાત્ તે સંસારથી મુક્ત થઈ જાય છે. એ પ્રમાણે હું તમને કહું છું. સૂત્રાંતે કંઈક વિશેષ કથન – આ ત્રીશ મહામોહનીય સ્થાનો કહ્યા, તેમાં ૧. એક થી છ સ્થાનોમાં ક્રૂરતાયુક્ત હિંસક વૃત્તિને ૨. સાતમાં | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 94 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ, गुणसिलए चेइए।
रायगिहे नगरे सेणिए नामं राया होत्था–रायवण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सद्धिं विहरति। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્રની આ છેલ્લી દશા છે. જેમાં સૂત્ર – ૯૪ થી ૧૧૪ એટલે કે ૨૧ – સૂત્રોનો સમાવેશ થયો છે. આ સૂત્રોનો ક્રમશઃ અનુવાદ આ પ્રમાણે છે. અનુવાદ: તે કાળે અને તે સમયે આ અવસર્પિણી કાળના ચોથા આરાના અંતિમ ભાગમાં. રાજગૃહ નામની નગરી હતી. નગર વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રની ચંપા નગરી માફક જાણવું.. તે નગરની બહાર ગુણશીલ | |||||||||
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दसा-१ असमाधि स्थान |
Gujarati | 1 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं,
एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं,
सुयं मे आउसं तेणं भगवता एवमक्खातं। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: સંયમના સામાન્ય દોષ કે અતિચારને અહીં ‘અસમાધિસ્થાન’ કહેલ છે. જેમ શરીરની સમાધિ – શાંત પૂર્ણ અવસ્થામાં સામાન્ય રોગ કે પીડા બાધક બનતા હોય છે. કાંટો લાગ્યો હોય કે દાંત – કાન – ગળામાં કોઈ દુઃખાવો હોય કે શરદી જેવો સામાન્ય વ્યાધિ હોય તો શરીરની સમાધિ – સ્વસ્થતા રહેતી નથી. તેમ સંયમના નાના કે અલ્પ દોષોથી | |||||||||
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दसा-१ असमाधि स्थान |
Gujarati | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: આ જિન પ્રવચનમાં. નિશ્ચયથી સ્થવિર ભગવંતોએ વીસ અસમાધિસ્થાન કહેલા છે. એ સ્થાનો કયા છે? ૧. અતિ શીઘ્ર ચાલવાવાળા હોવું. ૨. અપ્રમાર્જિતાચારી હોવું – રજોહરણ આદિથી પ્રમાર્જના કર્યા સિવાયના સ્થાને ચાલવું ઇત્યાદિ. ૩. દુષ્પ્રમાર્જિતાચારી હોવું – ઉપયોગ રહિતપણે કે આમતેમ જોતા જોતા પ્રમાર્જના કરવી. ૪. વધારાના શય્યા – આસન | |||||||||
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दसा-२ सबला |
Gujarati | 3 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवता एवमक्खातं– इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता।
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले। २. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. रातीभोयणं भुंजमाणे सबले। ४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. कीयं पामिच्चं अच्छिज्जं अनिसिट्ठं आहुट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खित्ताणं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणातो गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स ततो माइट्ठाणे Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: સબલનો સામાન્ય અર્થ વિશેષ બળવાન કે ભારે થાય. સંયમના સામાન્ય દોષો, પહેલી દશામાં કહ્યા, તેની તુલનાએ મોટા કે વિશેષ દોષોનું વર્ણન આ દશામાં છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્ ! તે નિર્વાણ પ્રાપ્ત ભગવંતના સ્વમુખેથી મેં આ પ્રમાણે સાંભળેલ છે કે – આ અર્હત પ્રવચનમાં સ્થવિર ભગવંતોએ ખરેખર ૨૧ – સબલ દોષો પ્રરૂપેલા | |||||||||
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दसा-३ आशातना |
Gujarati | 4 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ।
कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. सेहे रातिनियस्स पुरतो गंता भवति, आसादना सेहस्स।
२. सेहे रातिनियस्स सपक्खं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
३. सेहे रातिनियस्स आसन्नं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
४. सेहे रातिनियस्स पुरओ चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
५. सेहे रातिनियस्स सपक्खं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
६. सेहे रातिनियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
७. सेहे रातिनियस्स Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આશાતના એટલે વિપરીત વર્તન, અપમાન કે તિરસ્કાર જે જ્ઞાન, દર્શનનું ખંડન કરે, તેની લઘુતા કે તિરસ્કાર કરે તેને આશાતના કહેવાય. આવી આશાતનાના અનેક ભેદ છે. તેમાંથી અહીં ફક્ત ૩૩ આશાતના જ કહેવાયેલી છે. જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર આદિ ગુણોમાં અધિકતાવાળા કે દીક્ષા – પદવી આદિમાં મોટા હોય તેમના પ્રત્યે થયેલ અધિક | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 5 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं– इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता।
कयरा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं? अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता?
इमा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं? अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता, तं जहा– आयारसंपदा सुतसंपदा सरीरसंपदा वयणसंपदा वायणासंपदा मतिसंपदा पओगसंपदा संगहपरिण्णा नामं अट्ठमा। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: પહેલી, બીજી, ત્રીજી દશામાં કહેવાયેલા દોષો શૈક્ષને ત્યાગ કરવા યોગ્ય છે. એ બધાનો ત્યાગ કરવાથી તે શૈક્ષ ગણિ સંપદાને યોગ્ય થાય છે. તેથી હવે આ ‘દશા’માં આઠ પ્રકારની ગણિ – સંપદાનું વર્ણન કરે છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્ ! તે નિર્વાણ પ્રાપ્ત ભગવંતના સ્વમુખેથી મેં આ પ્રમાણે સાંભળેલ છે કે – આ અર્હત પ્રવચનમાં | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 6 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आयारसंपदा? आयारसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– संजमधुवजोगजुत्ते यावि भवति, असंपग्गहियप्पा, अनियतवित्ती, वुड्ढसीले यावि भवति। से तं आयारसंपदा। Translated Sutra: તે આચાર સંપદા કઈ છે ? આચાર એટલે ભગવંતે પ્રરૂપેલ આચરણા કે મર્યાદા, બીજી રીતે કહીએ તો જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર, તપ, વીર્ય એ પાંચની આચરણા અને સંપદા એટલે સંપત્તિ.. આ આચાર સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. સંયમ ક્રિયામાં સદા જોડાયેલા રહેવું. ૨. અહંકાર રહિત થવું. ૩. અનિયત વિહારી થવું અર્થાત્ એક સ્થાને સ્થાયી થઈને | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 7 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुतसंपदा? सुतसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुसुते यावि भवति, परिचितसुते यावि भवति, विचित्तसुते यावि भवति, घोसविसुद्धिकारए यावि भवति। से तं सुतसंपदा। Translated Sutra: તે શ્રુતસંપત્તિ કઈ છે? શ્રુત એટલે આગમ અથવા શાસ્ત્રજ્ઞાન. આ શ્રુત સંપત્તિ ચાર પ્રકારે કહી છે – ૧. બહુશ્રુતતા – અનેક શાસ્ત્રોના જ્ઞાતા થવું. ૨. પરિચિતપણું – સૂત્રાર્થથી સારી રીતે પરિચિત થવું. ૩. વિચિત્રશ્રુતતા – સ્વસમય અને પરસમયના તથા ઉત્સર્ગ અને અપવાદના જ્ઞાતા થવું. ૪. ઘોષ વિશુદ્ધિ કારકતા – શુદ્ધ ઉચ્ચારણવાળા | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 8 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सरीरसंपदा? सरीरसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–आरोहपरिणाहसंपन्ने यावि भवति, अनोतप्पसरीरे, थिरसंघयणे, बहुपडिपुण्णिंदिए यावि भवति। से तं सरीरसंपदा। Translated Sutra: તે શરીર સંપત્તિ શું છે? શરીર સંપત્તિ ચાર પ્રકારે કહી છે, તે આ – ૧. શરીરની લંબાઈ – પહોળાઈનું યોગ્ય પ્રમાણ હોવું. ૨. કુરૂપ કે લજ્જા ઉપજાવે તેવા શરીરવાળા ન હોવું. ૩. શરીરનું સંહનન સુદૃઢ હોવું. ૪. પાંચે ઇન્દ્રિયોનું પરિપૂર્ણ હોવું. | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 9 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वयणसंपदा? वयणसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–आदिज्जवयणे यावि भवति, महुर-वयणे यावि भवति, अनिस्सियवयणे यावि भवति, असंदिद्धभासी यावि भवति। से तं वयणसंपदा। Translated Sutra: તે વચન સંપત્તિ કઈ છે ? વચન એટલે વાણી. વચન સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. આદેયતા – જેનું વચન સર્વજન આદરણીય હોય, ૨. મધુર વચનવાળા હોવું. ૩. અનિશ્રિતતા – રાગદ્વેષ રહિત એટલે કે નિષ્પક્ષપાતી વચનવાળા હોવું. ૪. અસંદિગ્ધતા – સંદેહ રહિત વચનવાળા હોવું. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 10 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वायणासंपदा? वायणासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विजयं उद्दिसति, विजयं वाएति, परिनिव्वावियं वाएति, अत्थनिज्जवए यावि भवति। से तं वायणासंपदा। Translated Sutra: તે વાચના સંપત્તિ કઈ છે ? વાચના સંપદાના ચાર પ્રકાર છે – ૧. શિષ્યની યોગ્યતાનો નિશ્ચય કરવાવાળી હોવી. ૨. વિચારપૂર્વક અધ્યાપન કરાવનારી હોવી. ૩. યોગ્યતા અનુસાર ઉપયુક્ત શિક્ષણ દેનારી હોવી. ૪. અર્થ – સંગતિપૂર્વક નય – પ્રમાણ થકી અધ્યાપન કરાવવાવાળી હોવી. | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 11 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मतिसंपदा?
मतिसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–ओग्गहमतिसंपदा, ईहामतिसंपदा, अवायमतिसंपदा, धारणामतिसंपदा।
से किं तं ओग्गहमती? ओग्गहमती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– खिप्पं ओगिण्हति, बहुं ओगिण्हति, बहुविहं ओगिण्हति, धुवं ओगिण्हति, अनिस्सियं ओगिण्हति, असंदिद्धं ओगिण्हति।
से तं ओग्गहमती। एवं ईहामती वि, एवं अवायमती वि।
से किं तं धारणामती? धारणामती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुं धरेति, बहुविधं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अनिस्सियं धरेति, असंदिद्धं धरेति।
से तं धारणामती। से तं मतिसंपदा। Translated Sutra: તે મતિસંપત્તિ કઈ છે ? મતિ એટલે જલદીથી પદાર્થને ગ્રહણ કરવો તે. મતિ સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે – ૧. અવગ્રહ – સામાન્ય રૂપે અર્થને જાણવો તે, ૨. ઇહા – વિશેષ રૂપે અર્થને જાણવો તે, ૩. અપાય – ઇહિત વસ્તુનો વિશેષ રૂપે નિશ્ચય કરવો, ૪. ધારણા – જાણેલી વસ્તુનું કાલાંતરે પણ સ્મરણ રાખવું, તે રૂપ સંપત્તિ. તે અવગ્રહણ સંપત્તિ કઈ છે? અવગ્રહમતિ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 12 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पओगसंपदा? पओगसंपदा चउव्विधा पन्नत्ता, तं जहा– आतं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थुं विदाय वादं पउंजित्ता भवति। से तं पओगसंपदा। Translated Sutra: તે પ્રયોગ સંપત્તિ કઈ છે ? પ્રયોગ સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. પોતાની શક્તિ જાણીને વાદ – વિવાદ કરવો, ૨. સભાના ભાવો જાણીને વાદ કરવો, ૩. ક્ષેત્રની જાણકારી મેળવીને વાદ કરવો, ૪. વસ્તુ વિષયને જાણીને પુરુષવિશેષ સાથે વાદ – વિવાદ કરવો. તે પ્રયોગ સંપત્તિ. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 13 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहपरिण्णासंपदा? संगहपरिण्णासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुजनपाओग्गताए वासावासासु खेत्तं पडिलेहित्ता भवति, बहुजनपाओग्गताए पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारयं ओगेण्हित्ता भवति। कालेणं कालं समाणइत्ता भवति, अहागुरुं संपूएत्ता भवति।
से तं संगहपरिण्णासंपदा। Translated Sutra: તે સંગ્રહ પરિજ્ઞા સંપત્તિ કઈ છે ? સંગ્રહ પરિતા સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. વર્ષાવાસ માટે અનેક મુનિજનોને રહેવા યોગ્ય ઉચિત સ્થાન જોવું. ૨. અનેક મુનિજનોને માટે પાછા દેવાનું કહીને પીઠફલક, શય્યા, સંથારો ગ્રહણ કરવા. ૩. કાળને આશ્રીને ઉચિતકાર્ય કરવું – કરાવવું, ૪. ગુરુજનોનો યથાયોગ્ય પૂજા – સત્કાર કરવો. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 14 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिओ अंतेवासिं इमाए चउव्विधाए विणयपडिवत्तीए विनएत्ता निरिणत्तं गच्छति, तं जहा–आयारविनएणं, सुयविनएणं, विक्खेवणाविनएणं, दोसनिग्घायणाविनएणं।
से किं तं आयारविनए? आयारविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–संजमसामायारी यावि भवति, तवसामायारी यावि भवति, गणसामायारी यावि भवति, एगल्लविहारसामायारी यावि भवति।
से तं आयारविनए।
से किं तं सुतविनए? सुतविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुतं वाएति, अत्थं वाएति, हियं वाएति, निस्सेसं वाएति।
से तं सुतविनए।
से किं तं विक्खेवणाविनए? विक्खेवणाविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अदिट्ठं दिट्ठपुव्वगताए विनएत्ता भवति, दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए Translated Sutra: આઠ પ્રકારે સંપદાના વર્ણન પછી હવે ગણિનું કર્તવ્ય કહે છે – આચાર્ય પોતાના શિષ્યોને આ ચાર પ્રકારની વિનય – પ્રતિપત્તિ શીખવીને પોતાના ઋણથી મુક્ત થાય. ૧. આચાર વિનય, ૨. શ્રુત વિનય, ૩. વિક્ષેપણા – મિથ્યાત્વમાંથી સમ્યક્ત્વમાં સ્થાપના કરવા રૂપ વિનય, ૪. દોષ નિર્ઘાતના વિનય – દોષનો નાશ કરવા રૂપ વિનય. તે આચારવિનય શું છે ? તે | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 15 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सेवं गुणजातीयस्स अंतेवासिस्स इमा चउव्विहा विनयपडिवत्ती भवति, तं जहा–उवगरण-उप्पायणया, साहिल्लया, वण्णसंजलणता, भारपच्चोरुहणता।
से किं तं उवगरणउप्पायणया? उवगरणउप्पायणया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अणुप्पन्नाइं उवगरणाइं उप्पाएत्ता भवति, पोराणाइं उवगरणाइं सारक्खित्ता भवति संगोवित्ता भवति, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, अहाविधिं संविभइत्ता भवति।
से तं उवगरणउप्पायणया।
से किं तं साहिल्लया? साहिल्लया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अनुलोमवइसहिते यावि भवति, अनुलोमकायकिरियता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया।
से तं साहिल्लया।
से किं तं वण्णसंजलणता? Translated Sutra: આવા ગુણવાન આચાર્યના અંતેવાસી – શિષ્યની આ ચાર પ્રકારની વિનય પ્રતિપત્તિ છે. જેમ કે – ૧. સંયમના ઉપયોગી વસ્ત્ર, પાત્રાદિ પ્રાપ્ત કરવા. ૨. અશક્ત સાધુઓની સહાયતા કરવી. ૩. ગણ અને ગણીના ગુણો પ્રગટ કરવા. ૪. ગણના ભારનો નિર્વાહ કરવો. *** ઉપકરણ ઉત્પાદકતા શું છે ? તે ચાર પ્રકારે છે – ૧. નવા ઉપકરણો મેળવવા, ૨. પ્રાપ્ત ઉપકરણનું સંરક્ષણ |