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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 123 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पुढवि-निहि-रयणे ।
वासहर-दह-नईओ विजया वक्खार-कप्पिंदा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२१ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं – एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक। एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं। यथा – कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। अथवा द्विनाम के | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 163 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए।
से तं साइपारिणामिए।
से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए Translated Sutra: उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 251 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए।
से तं कम्मनामे।
से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे।
से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे।
से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे।
से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे Translated Sutra: कर्मनाम क्या है ? दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारि, कौलालिक, ये सब कर्म – निमित्तज नाम हैं। तौन्निक तान्तुवायिक, पाट्टकारिक, औद्वृत्तिक, वारुंटिक मौञ्जकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक वाह्यकारिक, पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कौटिटमकारिक। यह शिल्पनाम हैं। सभी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 270 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति।
से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, Translated Sutra: मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है। संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 120 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी? ओवनिहिया खेत्तानुपुव्वी तिविहा–
पुव्वानुपुव्वी–अहोलोए तिरियलोए उड्ढलोए। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उड्ढलोए तिरियलोए अहोलोए। से तं पच्छानुपुव्वी।
से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी।
अहोलोयखेत्तानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा। से तं पुव्वानुपुव्वी।
से Translated Sutra: (૧). ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીના ત્રણ પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે – ૧. પૂર્વાનુપૂર્વી, ૨. પશ્ચાનુપૂર્વી અને ૩. અનાનુપૂર્વી. પૂર્વાનુપૂર્વી ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ૧. અધોલોક, ૨. તિર્યગ્લોક, ૩. ઉર્ધ્વ લોક. આ ક્રમથી ક્ષેત્ર – લોકનો નિર્દેશ કરવો | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 123 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आभरण-वत्थ-गंधे, उप्पल-तिलए य पुढवि-निहि-रयणे ।
वासहर-दह-नईओ विजया वक्खार-कप्पिंदा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૧ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य।
से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए।
से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य।
से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे
से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे।
अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए Translated Sutra: [૧] ‘દ્વિનામ’નું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વિનામના બે પ્રકાર છે. તે આ પ્રમાણે છે – ૧. એકાક્ષરિક અને ૨. અનેકાક્ષરિક. એકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? એકાક્ષરિક દ્વિનામના અનેક પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – હ્રી દેવી., શ્રી લક્ષ્મી દેવી., ધી બુદ્ધિ., સ્ત્રી વગેરે એકાક્ષરિક દ્વિનામ છે. અનેકાક્ષરિક દ્વિનામનું સ્વરૂપ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 163 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए।
से तं साइपारिणामिए।
से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए Translated Sutra: [૧] ચંદ્ર – સૂર્ય ગ્રહણ, ચંદ્ર – સૂર્ય પરિવેશ, પ્રતિચંદ્ર – પ્રતિસૂર્ય, મેઘધનુષ્ય, મેઘધનુષ્યના ટૂકડા, કપિહસિત, અમોઘ, ક્ષેત્ર, વર્ષધર પર્વત, ગામ, નગર, ઘર, પર્વત, પાતાળકળશ, ભવન, નરક, રત્નપ્રભા, શર્કરાપ્રભા, વાલુકાપ્રભા, પંકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, તમઃપ્રભા, તમસ્તમપ્રભા, સૌધર્મ, ઇશાનથી લઈ આનત, પ્રાણત, આરણ – અચ્યુત દેવલોકો, ગ્રૈવેયક, | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 251 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए।
से तं कम्मनामे।
से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे।
से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे।
से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे।
से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे Translated Sutra: [૧] કર્મનામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? કર્મનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ છે – દૌષ્યિક – વસ્ત્રના વેપારી, સૌત્રિક – સૂતરના વેપારી, કાર્પાસિક – કપાસના વેપારી, સૂત્રવૈયાલિક – સૂતર વેચનાર, ભાંડવૈયાલિક – વાસણ વેચનાર, કૌલાલિક – માટીના વાસણ વેચનાર. આ સર્વ તદ્ધિત કર્મનામ છે. [૨] શિલ્પ નામનું સ્વરૂપ કેવું છે ? શિલ્પનામ તદ્ધિતના ઉદાહરણ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 270 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति।
से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્ ! મનુષ્યના શરીરની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ! જઘન્ય અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ ત્રણ ગાઉ છે. હે ભગવન્ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યોની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના અંગુલના અસંખ્યાતમા ભાગની છે. હે ભગવન્ ! ગર્ભજ મનુષ્યોની અવગાહના કેટલી છે ? હે ગૌતમ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૭ | |||||||||
Aturpratyakhyan | आतुर प्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Hindi | 9 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेमानिएसु कप्पोवगेसु नियमेण तस्स उववाओ ।
नियमा सिज्झइ उक्कोसएण सो सत्तमम्मि भवे ॥ Translated Sutra: कल्पोपपन्न वैमानिक (बार) देवलोक के लिए निश्चय करके उसकी उत्पत्ति होती है और वो उत्कृष्ट से निश्चय करके सातवे भव तक सिद्ध होता है। | |||||||||
Aturpratyakhyan | આતુર પ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
प्रथमा प्ररुपणा |
Gujarati | 9 | Gatha | Painna-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेमानिएसु कप्पोवगेसु नियमेण तस्स उववाओ ।
नियमा सिज्झइ उक्कोसएण सो सत्तमम्मि भवे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क-पाडियक्काइं जत्ताभि-मुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठवेहि, चंपं नयरिं सब्भिंतर बाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु आसित्त सित्त सुइ सम्मट्ठ रत्थंतरावणं वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग ऊसिय ज्झय पडागाइपडाग मंडियं लाउल्लोइय महियं गोसीस सरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचंगुलितलं उवचियवं-दणकलसं Translated Sutra: तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने बलव्यापृत को बुलाकर उससे कहा – देवानुप्रिय ! आभिषेक्य, प्रधान पद पर अधिष्ठित हस्ति – रत्न को सुसज्ज कराओ। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना को तैयार करो। सुभद्रा आदि देवियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जोते हुए यानों को बाहरी सभाभवन | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 30 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं Translated Sutra: राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया – महाराज की जैसी आज्ञा। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति – व्यापृत को बुलाया। उससे कहा – देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ।
तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद् को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की धर्मदेशना सूनने को उपस्थित परिषद् में, अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि, यति, देवगण तथा सैकड़ों – सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघबली, अतिबली, महाबली, अपरिमित बल, तेज, महत्ता तथा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 48 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था।
ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ।
एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो।
तेसि णं परिव्वायाणं Translated Sutra: वे परिव्राजक ऋक्, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं नयरं संपट्ठिया विहाराए।
तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वे णं परिभुंजमाणे झीणे।
तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारम-पस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमनुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए Translated Sutra: उस काल, उस समय, एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। वे परिव्राजक चलते – चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल, उनकी निगरानी करने | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: भगवन् ! भावितात्मा अनगार केवलि – समुद्घात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं। भगवन् ! क्या उन निर्जरा – प्रधान पुद्गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! छद्मस्थ, विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 17 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્યો એવા ઘણા અણગાર ભગવંતો ઇર્યાસમિત, ભાષાસમિત, એષણાસમિત, આદાન – ભાંડ – માત્ર – નિક્ષેપણા સમિત, ઉચ્ચાર – પ્રસ્રવણ – ખેલ – સિંધાણ – જલ્લ – પારિષ્ઠાપનિકા સમિત હતા. તેઓ મનગુપ્ત, વચન ગુપ્ત, કાયગુપ્ત હતા. તેઓ ગુપ્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી હતા, તેઓ અમમ – મમત્ત્વ રહિત | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: [૧] ત્યારે ચંપાનગરીના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, ચતુર્મુખ, મહાપથ, પથમાં મોટા જનશબ્દ, જનવ્યૂહ, જનબોલ, જનકલકલ, જન – ઉર્મિ, જનઉત્કલિકા, જન – સન્નિપાતમાં ઘણા લોકો પરસ્પર આમ કહેતા – બોલતા – પ્રજ્ઞાપના કરતા – પ્રરૂપણા કરતા હતા કે હે દેવાનુપ્રિયો ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીર આદિકર તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ યાવત્ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 29 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क-पाडियक्काइं जत्ताभि-मुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठवेहि, चंपं नयरिं सब्भिंतर बाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु आसित्त सित्त सुइ सम्मट्ठ रत्थंतरावणं वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग ऊसिय ज्झय पडागाइपडाग मंडियं लाउल्लोइय महियं गोसीस सरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचंगुलितलं उवचियवं-दणकलसं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 30 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે બળવ્યાપૃત, કોણિક રાજાએ આમ કહેતા, હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ પ્રસન્ન હૃદયી થઈ, બે હાથ જોડીને, મસ્તકે આવર્ત્ત કરી, મસ્તકે અંજલી કરી આમ કહ્યું – હે સ્વામી ! એ પ્રમાણે વિનયથી આજ્ઞાવચનને સ્વીકારે છે. સ્વીકારીને હસ્તિ – વ્યાપૃતને આમંત્રે છે, આમંત્રીને કહ્યું – ઓ દેવાનુપ્રિય ! જલદીથી ભંભસારપુત્ર કોણિક રાજાના | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે ભંભસારપુત્ર કુણિક રાજા, બલવ્યાપૃતના આ અર્થને સાંભળી, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ હૃદયી થઈને જ્યાં અટ્ટનશાળા છે, ત્યાં આવે છે. આવીને અટ્ટનશાળામાં પ્રવેશે છે, પ્રવેશીને અનેક વ્યાયામ યોગ્ય વલ્ગન, વ્યામર્દન, મલ્લયુદ્ધ કરવા વડે શ્રાંત, પરિશ્રાંત થઈને શતપાક – સહસ્રપાક, દર્પણીય, મદનીય, બૃંહણીય, સુગંધી | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 34 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ।
तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा Translated Sutra: [૧] ત્યારપછી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ભંભસારપુત્ર કૂણિક રાજાને, સુભદ્રા આદિ રાણીઓને, તે મહામોટી પર્ષદાને – ઋષિપર્ષદા, મુનિપર્ષદા, યતિપર્ષદા, દેવપર્ષદા, અનેકશત, અનેક શતવૃંદ, અનેક શતવૃંદ પરિવાર ઉપસ્થિત હતો તેમાં. ... ઓઘબલી, અતિબલી, મહાબલી, અપરિમિત બલ – વીર્ય – તેજ – મહત્તા – કાંતિયુક્ત, શારદ – નવ – સ્તનિત – મધુર – ગંભીર | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર, જે ગૌતમ ગોત્રના, સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભનારાચ સંઘયણી, કસોટી ઉપર ખચિત સ્વર્ણરેખાની આભા સહિત કમળ સમાન ગૌરવર્ણી હતા. તેઓ ઉગ્રતપસ્વી, દીપ્તતપસ્વી, તપ્તતપસ્વી, મહાતપસ્વી અને ઘોરતપસ્વી હતા. તેઓ (પ્રધાન તપ કરતા હોવાથી)ઉદાર, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 48 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था।
ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ।
एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो।
तेसि णं परिव्वायाणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૫ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं नयरं संपट्ठिया विहाराए।
तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वे णं परिभुंजमाणे झीणे।
तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारम-पस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमनुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે(અવસર્પિણી કાળના ચોથા આરાના અંત ભાગમાં, ભગવંત મહાવીર વિચારતા હતા ત્યારે) અંબડ પરિવ્રાજકના ૭૦૦ શિષ્યો, ગ્રીષ્મકાળ સમયમાં જ્યેષ્ઠામૂળ મહિનામાં ગંગા મહાનદીના ઉભયકૂળથી કંપિલપુર નગરથી પુરિમતાલ નગરે વિહાર કરવા નીકળ્યા. ત્યારે તે પરિવ્રાજકોને તે અગ્રામિક, છિન્નાવપાત, દીર્ઘમાર્ગી અટવીના કેટલાક | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: ભગવન્! ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે, એમ ભાખે છે, એમ પ્રરૂપે છે કે નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક, કંપિલપુર નગરમાં સો ઘરોમાં આહાર કરે છે, સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. ભગવન્ ! તે કેવી રીતે ? ગૌતમ! જે ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે યાવત્ એમ પ્રરૂપે છે – નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક કંપિલપુરમાં યાવત્ સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. આ અર્થ સત્ય છે. ગૌતમ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: જે આ પ્રમાણે ગામ, આકર યાવત્ સન્નિવેશોમાં પ્રવ્રજિત થઈ શ્રમણ થાય છે તે આ – આચાર્યપ્રત્યનીક, ઉપાધ્યાયપ્રત્યનીક, કુલપ્રત્યનીક, ગણપ્રત્યનીક, આચાર્ય – ઉપાધ્યાયનો અપયશકારક, અવર્ણકારક, અકીર્તિકારક, ઘણી જ અસદ્ભાવના ઉદ્ભાવનાથી, મિથ્યાત્વાભિનિવેશ થકી પોતાને, બીજાને અને તદુભયને વ્યુદ્ગ્રાહિત કરતા, વ્યુત્પાદિત | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ભગવન્! ભાવિતાત્મા અણગાર કેવલી સમુદ્ઘાતથી સમવહત થઈને કેવલકલ્પ લોકને સ્પર્શીને રહે છે? હા, રહે છે. ભગવન્ ! તેઓ શું કેવલકલ્પ લોકમાં તે નિર્જરા પુદ્ગલથી સ્પર્શે ? હા, સ્પર્શે. ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય તે નિર્જરા પુદ્ગલના કંઈક વર્ણથી વર્ણ, ગંધથી ગંધ, રસથી રસ, સ્પર્શથી સ્પર્શને જાણે – જુએ ? ગૌતમ ! આ અર્થ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે તેવા સયોગી સિદ્ધ થાય યાવત્ અંત કરે ? એ અર્થ સંગત નથી. તે પૂર્વે પર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય સંજ્ઞીના જઘન્ય મનોયોગના નીચલા સ્તરે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન પહેલા મનોયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી પર્યાપ્ત બેઇન્દ્રિયના જઘન્યયોગના નીચે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન બીજા વચનયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 425 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे य।
जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिंदियसरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय-एगिंदियसरीरप्पयो-गबंधे?
एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वि-यसरीरप्पयोगबंधे य।
वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है। एकेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध। भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 426 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे जाव पंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे
एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरो-ववाइयकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववा-इयकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य।
तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! वीरिय-सजोग-सद्दव्वयाए पमादपच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं Translated Sutra: भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – एकेन्द्रिय – तैजस – शरीरप्रयोगबंध, यावत् पंचेन्द्रिय – तैजसशरीरप्रयोगबंध। भगवन् ! एकेन्द्रिय – तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का है? गौतम इस प्रका जैसे – अवगाहनासंस्थापनपद में भेद कहे हैं, वैसे यहाँ भी पर्याप्त – सर्वार्थस्दिधअनुत्तरौपप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-७ भवन | Hindi | 769 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केवतिया णं भंते! असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! चोयट्ठिं असुरकुमारभवणावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
ते णं भंते! किमया पन्नत्ता?
गोयमा! सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा। तत्थ णं बहवे जीवा य पोग्गला य वक्कमंति, विउक्कमंति, चयंति, उववज्जंति। सासया णं ते भवणा दव्वट्ठयाए, वण्णपज्जवेहिं जाव फासपज्जवेहिं असासया। एवं जाव थणियकुमारावासा।
केवतिया णं भंते! वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा वाणमंतरभोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
ते णं भंते! किमया पन्नत्ता? सेसं तं चेव।
केवतिया णं भंते! जोइसियविमानावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा Translated Sutra: भगवन् ! असुरकुमारों के कितने लाख भवनावास कहे गए हैं ? गौतम ! चोंसठ लाख भवनावास हैं। भगवन् ! वे भवनावास किससे बने हुए हैं ? गौतम ! वे भवनावास रत्नमय हैं, स्वच्छ, श्लक्ष्ण यावत् प्रतिरूप हैं। उनमें बहुत – से जीव और पुद्गल उत्पन्न होते हैं, विनष्ट होते हैं, च्यवते हैं और पुनः उत्पन्न होते हैं। वे भवन द्रव्यार्थिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१९ |
उद्देशक-८ निवृत्ति | Hindi | 770 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा जीवनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं० एगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव पंचिंदियजीव-निव्वत्ती
एगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुढविक्काइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती जाव वणस्सइकाइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती।
पुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियजीवनिव्वत्ती य, बादरपुढवि-काइय-एगिंदियजीवनिव्वत्ती य। एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा वड्डगबंधो तेयगसरीरस्स जाव–सव्वट्ठ सिद्धअनुत्तरोववातियकप्पातीतवेमानियदेवपंचिंदियजीवनिव्वत्ती Translated Sutra: भगवन् ! जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। भगवन् ! एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की – पृथ्वी – कायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक – एकेन्द्रिय – जीवनिर्वृत्ति। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 871 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच संठाणा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडले जाव आयते।
परिमंडला णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए परिमंडला संठाणा किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
वट्टा णं भंते! संठाणा किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव आयता।
सक्करप्पभाए णं भंते! पुढवीए परिमंडला संठाणा? एवं चेव। एवं जाव आयता। एवं जाव अहेसत्तमाए।
सोहम्मे णं भंते! कप्पे परिमंडला संठाणा? एवं जाव अच्चुए।
गेवेज्जविमाने Translated Sutra: भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – परिमण्डल (से लेकर) आयत तक। भगवन् ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! वे अनन्त हैं। भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, इत्यादि (गौतम !) अनन्त हैं। इसी प्रकार आयतसंस्थान तक जानना चाहिए। भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-७ देव | Hindi | 139 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता?
गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा– भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया।
कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं, जाव सिद्धगंडिया समत्ता।
कप्पाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्त मेव संठाणं।
जीवाभिगमे जो वेमाणिउद्देसो सो भाणियव्वो सव्वो। Translated Sutra: भगवन् ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भगवन् ! भवनवासी देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! भवनवासी देवों के स्थान इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे हैं; इत्यादि देवों की सारी वक्तव्यता प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे स्थान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 789 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा? पुव्विं आहारेत्ता पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा एवं जहा सत्तरसमसए छट्ठुद्देसे जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुव्विं वा जाव उववज्जेज्जा, नवरं–तेहिं संपाउणणा, इमेहिं आहारो भण्णति, सेसं तं चेव।
पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए ईसाने कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं चेव। Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभापृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करते हैं, अथवा पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होते हैं; इत्यादि वर्णन सत्तरहवे शतक के छठे उद्देशक के अनुसार, विशेष यह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 790 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए? सेसं जहा पुढविक्काइयस्स जाव से तेणट्ठेणं। एवं पढम-दोच्चाणं अंतरा समोहए जाव ईसीपब्भाराए उववाएयव्वो। एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जाव ईसीपब्भाराए उववाएयव्वो आउक्का-इयत्ताए।
आउयाए णं भंते! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमार-माहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनोदहिघनोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? सेसं तं चेव। एवं एएहिं चेव अंतरा समोहओ जाव अहेसत्तमाए पुढवीए Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होता है ? गौतम ! शेष समग्र पृथ्वीकायिक के समान। इसी प्रकार पहली और दूसरी पृथ्वी के बीच में |