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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 38 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वही सत्य और निःशंक हैं, जो जिन – भगवंतों ने निरूपित किया है? हाँ, गौतम ! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनेन्द्रों द्वारा निरूपित है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 44 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? हंता वेदेंति। कहन्नं भंते! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेसि णं जीवाणं नो एवं तक्का इ वा, सण्णा इ वा, पण्णा इ वा, मने इ वा, वई ति वा– अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेमो, वेदेंति पुण ते। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं। सेसं तं चेव जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वेदन करते हैं। सामान्य (औघिक) जीवों के सम्बन्ध में जैसे आलापक कहे थे, वैसे ही नैरयिकों के सम्बन्ध में यावत्‌ स्तनितकुमारों तक समझ लेने चाहिए। भगवन्‌ ! क्या पृथ्वीकायिक जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! वे वेदन करते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 45 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं। एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ? गौतम ! उन – उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 51 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीतं अनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिणिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मनुस्से तीतं अनंतं सासयं समयं–केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं नो सिज्झिंसु? नो बुज्झिंसु? नो मुच्चिंसु? नो परिनिव्वाइंसु? नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा–सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा– सव्वे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या बीते हुए अनन्त शाश्वत काल में छद्मस्थ मनुष्य केवल संयम से, केवल संवर से, केवल ब्रह्म – चर्यवास से और केवल (अष्ट) प्रवचनमाता (के पालन) से सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत्‌ समस्त दुःखों का अन्त करने वाला हुआ है ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जो भी कोई मनुष्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१० चलन Hindi 102 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति – एवं खलु चलमाणे अचलिए। उदीरिज्जमाणे अनुदीरिए। वेदिज्जमाणे अवेदिए। पहिज्जमाणे अपहीने। छिज्जमाणे अच्छिन्ने भिज्जमाणे अभिन्ने। दज्झमाणे अदड्ढे। भिज्जमाणे अमए। निज्जरिज्जमाणे अनिज्जिण्णे। दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति? दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं नत्थि सिनेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति। तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, कम्हा तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति? तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिनेहकाए, तम्हा तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि – जो चल रहा है, वह अचलित है – चला नहीं कहलाता और यावत्‌ – जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता। दो परमाणुपुद्‌गल एक साथ नहीं चिपकते। दो परमाणुपुद्‌गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते ? इसका कारण यह है कि दो परमाणु – पुद्‌गलों में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-३ क्रिया Hindi 181 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ? हंता मंडिअपुत्ता! जीवे णं सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ। जावं च णं भंते! से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंत किरिया भवइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति? मंडिअपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव सदा समित (मर्यादित) रूप में काँपता है, विविध रूप में काँपता है, चलता है, स्पन्दन क्रिया करता है, घट्टित होता (घूमता) है, क्षुब्ध होता है, उदीरित होता या करता है; और उन – उन भावों में परिणत होता है ? हाँ, मण्डितपुत्र ! जीव सदा समित – (परिमित) रूप से काँपता है, यावत्‌ उन – उन भावों में परिणत होता है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Hindi 367 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे? हंता गोयमा! नेरइयाणं पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे। एवं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, किया जाता है और किया जाएगा, क्या वह सब दुःख रूप हैं और (उनके द्वारा) जिसकी निर्जरा की गई है, क्या वह सुखरूप है ? हाँ, गौतम ! नैरयिक द्वारा जो पापकर्म किया गया है, यावत्‌ वह सब दुःखरूप है और (उनके द्वारा) जिन (पापकर्मों) की निर्जरा की गई है, वह सब सुखरूप है। इस प्रकार वैमानिकों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 372 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विन्नाणमेयं अरहया–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया

Translated Sutra: अर्हन्त भगवान ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान ने यह सूना है – तथा अर्हन्त भगवान को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है। (अतः) भगवन्‌ ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा ? गौतम ! वज्जी विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काश
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 373 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुवमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया–रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था; नव मल्लई, नव लेच्छई पराजइत्था। तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! भूयानंदं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अर्हन्त भगवान ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेषरूप से जाना है कि यह रथमूसल – संग्राम है। भगवन्‌ ! यह रथमूसलसंग्राम जब हो रहा था तब कौन जीता, कौन हारा ? हे गौतम ! वज्री – इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी राजा हार गए। तदनन्तर रथमूसल – संग्राम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 466 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स दोच्चं पि, तच्चं

Translated Sutra: तदनन्तर एक दिन जमालि अनगार श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार बोले – भगवन् ! आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं पांच सौ अनगारों के साथ इस जनपद से बाहर विहार करना चाहता हूँ। यह सुनकर श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार की इस बात को आदर नहीं दिया, न स्वीकार किया। वे मौन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-५ देव Hindi 488 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे। गुणसिलए चेइए जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्ठमे सए सत्तमुद्देसए जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जायसंसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं वयासी– चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? अज्जो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काली, रायी, रयणी, विज्जू, मेहा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ठ देवीसहस्सं परिवारो पन्नत्तो। पभू णं भंते! ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं अट्ठट्ठ देवीसहस्साइं

Translated Sutra: उस काल और समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक उद्यान था। यावत्‌ परीषद्‌ लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के बहुत – से अन्तेवासी स्थविर भगवान जातिसम्पन्न इत्यादि विशेषणों से युक्त थे, आठवें शतक के सप्तम उद्देशक के अनुसार अनेक विशिष्ट गुणसम्पन्न, यावत्‌ विचरण करते थे। एक बार उन स्थविरों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-९ शिवराजर्षि Hindi 506 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं सहसंबवने नामं उज्जाणे होत्था–सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे रम्मे नंदनवनसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मनोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकंते जाव रज्जं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था। उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था। रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था। उसकी छाया सुखद और शीतल थी। वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत्‌ प्रतिरूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 540 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–ओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे? गोयमा! जण्णं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालिय -सरीरत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाइं कडाइं पट्ठवियाइं निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाइं अभिसमण्णागयाइं परियादियाइं परिणामियाइं निज्जिण्णाइं निसिरियाइं निसिट्ठाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–ओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे। एवं वेउव्वियपोग्गलपरियट्टेवि, नवरं–वेउव्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउव्वियसरीरप्पायोग्गाइं दव्वाइं वेउव्वियसरीरत्ताए गहियाइं, सेसं तं चेव सव्वं, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यह औदारिक – पुद्‌गलपरिवर्त्त, औदारिक – पुद्‌गलपरिवर्त्त किसलिए कहा जाता है ? गौतम ! औदारिकशरीर में रहते हुए जीव ने औदारिकशरीर योग्य द्रव्यों को औदारिकशरीर के रूप में ग्रहण किए हैं, बद्ध किए हैं, स्पृष्ट किए हैं; उन्हें (पूर्वपरिणामापेक्षया परिणामान्तर) किया है; उन्हें प्रस्थापित किया है; स्थापित किए
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Hindi 554 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–भवियदव्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा? गोयमा! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवेसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा? गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतचक्कवट्टी उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाणा नवनिहिपइणो समिद्ध-कीसा बत्तीसरायवरसहस्साणु-यातमग्गा सागरवरमेहलाहिवइणो मणुस्सिंदा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा। से

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा – भव्यद्रव्यदेव, नरदेव, धर्मदेव, देवाधिदेव, भावदेव। भगवन्‌ ! भव्यद्रव्यदेव, ‘भव्यद्रव्यदेव’ किस कारण से कहलाते हैं ? गौतम ! जो पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक अथवा मनुष्य, देवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे भविष्य में भावीदेव होने के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 607 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! पोग्गले तीतमनंतं सासयं समयं लुक्खी? समयं अलुक्खी? समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा? पुव्विं च णं करणेणं अनेगवण्णं अनेगरूवं परिणाम परिणमइ? अहे से परिणामे निज्जिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया? हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीतमनंतं सासयं समयं तं चेव जाव एगरूवे सिया। एस णं भंते! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव। एस णं भंते! पोग्गले अनागय सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव। एस णं भंते! खंधे तीतमनंतं सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव खंधे वि जहा पोग्गले।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या यह पुद्‌गल अनन्त, अपरिमित और शाश्वत अतीतकाल में एक समय तक रूक्ष स्पर्श वाला रहा, एक समय तक अरूक्ष स्पर्श वाला और एक समय तक रूक्ष और स्निग्ध दोनों प्रकार के स्पर्श वाला रहा ? (तथा) पहले करण के द्वारा अनेक वर्ण और अनेक रूप वाले परिणाम से परिणत हुआ और उसके बाद उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण होने पर वह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-४ पुदगल Hindi 608 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! जीवे तीतमनंतं सासयं समयं दुक्खी? समयं अदुक्खी? समयं दुक्खी वा अदुक्खी वा? पुव्विं च णं करणेणं अनेगभावं अनेगभूयं परिणामं परिणमइ? अहे से वेयणिज्जे निजिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगभावे एगभूए सिया? हंता गोयमा! एस णं जीवे तीतमनंतं सासयं समयं जाव एगभूए सिया। एवं पडुप्पन्नं सासयं समयं, एवं अनागयमनंतं सासयं समयं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या यह जीव अनन्त और शाश्वत अतीत काल में, एक समय में दुःखी, एक समय में अदुःखी – तथा एक समय में दुःखी और अदुःखी था ? तथा पहले करण द्वारा अनेक भाव वाले अनेकभूत परिणाम से परिणत हुआ था ? और इसके बाद वेदनीयकर्म की निर्जरा होने पर जीव एकभाव वाला और एकरूप वाला था ? हाँ, गौतम ! यह जीव यावत्‌ एकरूप वाला था। इसी प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 651 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वानुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए धम्मायरियाणुरागेणं एयमट्ठं असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसाले मंखलिपुत्ते एवं वयासी– जे वि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माणेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पूर्व देश में जन्मे हुए सर्वानुभूति नामक अनगार थे, जो प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत थे। वह अपने धर्माचार्य के प्रति अनुरागवश गोशालक के प्रलाप के प्रति अश्रद्धा करते हुए उठे और मंखलिपुत्र गोशालक के पास आकर कहने लगे – हे गोशालक ! जो मनुष्य तथारूप श्रमण या माहन से एक भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 795 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पन्नत्ता? गोयमा! तेवीसं जिणंतरा पन्नत्ता। एएसि णं भंते! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वीच्छेदे पन्नत्ते? गोयमा! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिम-पच्छिमएसु अट्ठसु-अट्ठसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अव्वोच्छेये पन्नत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिण्णे दिट्ठिवाए।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन चौबीस तीर्थंकरों के कितने जिनान्तर कहे हैं ? गौतम ! इनके तेईस अन्तर कहे गए हैं। भगवन्‌ ! इन तेईस जिनान्तरों में जिनके अन्तर में कब कालिकश्रुत का विच्छेद कहा गया है ? गौतम ! पहले और पीछे के आठ – आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का अव्यवच्छेद कहा गया है और मध्य के आठ जिनान्तरों में कालिकश्रुत का व्यवच्छेद
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 798 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे वासे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एक्कवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेस्साणं चरिमतित्थगरस्स केवतिलं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जावतिए णं उसभस्स अरहओ कोसलियस्स जिणपरियाए एवइयाइं संखेज्जाइं आगमे-स्साणं चरिमतित्थगरस्स तित्थे अनुसज्जिस्सति।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! भावी तीर्थंकरोंमें से अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ कितने काल तक अविच्छिन्न रहेगा ? गौतम ! कौशलिक ऋषभदेव, अरहन्त का जितना जिनपर्याय है, उतने वर्ष भावी तीर्थंकरोंमें अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ रहेगा।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Hindi 941 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसंते खीणम्मि व, जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि । छउमत्थो व जिणो वा, अहखाओ संजओ स खलु ॥

Translated Sutra: मोहनीयकर्म उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ या जिन होता है, वह यथाख्यात – संयत कहलाता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२८ जीव आदि जाव

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 992 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा। सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया था और किस गति में आचरण किया था ? गौतम! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे अथवा तिर्यंचयोनिकों और नैरयिकों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२८ जीव आदि जाव

उद्देशक-१ थी ११ Hindi 993 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाईणं जस्स जं अत्थि लेसादीयं अनागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं पि। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं। एसो वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों ने किस गति में पापकर्मों का समार्जन किया था, कहाँ आचरण किया था। गौतम ! वे सभी तिर्यंचयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्वोक्त आठों भंगों कहना। अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों की अपेक्षा लेश्या आदि से लेकर यावत्‌ अनाकारोपयोगपर्यन्त भंगों में से जिसमें जो भंग पाया जाता हो, वह सब विकल्प से वैमानिक
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Gujarati 9 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोउहल्ले उट्ठाए उट्ठेति, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी– से नूनं भंते! चलमाणे चलिए? उदीरिज्जमाणे उदोरिए? वेदिज्जमाणे वेदिए? पहिज्जमाणे पहीने? छिज्जमाणे छिन्ने? भिज्जमाणे भिन्ने?

Translated Sutra: ત્યારપછી ગૌતમસ્વામી જાત શ્રદ્ધ(અર્થતત્વ જાણવાની ઈચ્છા), જાત સંશય(જાણવાની જિજ્ઞાસા), જાત કુતૂહલ, ઉત્પન્ન શ્રદ્ધ, ઉત્પન્ન સંશય, ઉત્પન્ન કુતૂહલ, સંજાત શ્રદ્ધ, સંજાત સંશય, સંજાત કુતૂહલ, સમુત્પન્ન શ્રદ્ધ, સમુત્પન્ન સંશય, સમુત્પન્ન કુતૂહલ (જેમને શ્રદ્ધા – સંશય – કુતૂહલ જન્મ્યા છે – ઉત્પન્ન થયા છે – પ્રબળ બન્યા છે
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Gujarati 10 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एए णं भंते! नव पदा किं एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा? उदाहु नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा? गोयमा! चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेदिज्जमाणे वेदिए, पहिज्जमाणे पहीने– एए णं चत्तारि पदा एगट्ठा नानाघोसा नानावंजणा उप्पन्नपक्खस्स। छिज्जमाणे छिन्ने, भिज्जमाणे भिन्ने, दज्झमाणे दड्ढे, भिज्जमाणे मए, निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे– एए णं पंच पदा नाणट्ठा नानाघोसा नानावंजणा विगयपक्खस्स।

Translated Sutra: આ નવ પદો, હે ભગવન્‌ ! શું એકાર્થક, વિવિધ ઘોષ અને વિવિધ વ્યંજનવાળા છે ? કે વિવિધ અર્થ, વિવિધ ઘોષ અને વિવિધ વ્યંજનવાળા છે ? હે ગૌતમ ! ચાલતું ચાલ્યુ, ઉદીરાતુ ઉદીરાયુ, વેદાતુ વેદાયુ, પડતુ પડ્યુ આ ચારે પદો ઉત્પન્ન પક્ષની અપેક્ષાએ એકાર્થક, વિવિધ ઘોષ, વિવિધ વ્યંજનવાળા છે. આ ચારે પદો છદ્મસ્થ આવરક કર્મોનો નાશ કરી કેવળજ્ઞાન
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Gujarati 14 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पुव्वाहारिया पोग्गला चिया? पुच्छा– जहा परिणया तहा चियावि। एवं–उवचिया, उदीरिया, वेइया, निज्जिण्णा

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! નૈરયિકોને પૂર્વે આહારિત પુદ્‌ગલો ચય પામ્યા છે ? વગેરે પ્રશ્નો કરવા હે ગૌતમ ! જે રીતે પરિણામ પામ્યામાં કહ્યું, તે રીતે ચયને પામ્યામાં ચારે વિકલ્પો કહેવા. એ રીતે ઉપચય, ઉદીરણા, વેદના અને નિર્જરાના ચાર ચાર વિકલ્પો જાણવા.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Gujarati 15 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिणय चिया उवचिया उदीरिया वेइया य निज्जिण्णा । एक्केक्कम्मि पदम्मि, चउव्विहा पोग्गला होंति ॥

Translated Sutra: ગાથા – પરિણત, ચિત, ઉપચિત, ઉદીરિત, વેદિત અને નિર્જિર્ણ એ એક એક પદમાં ચાર પ્રકારના પુદ્‌ગલો અર્થાત પ્રશ્ન – ઉત્તરો જાણવા.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Gujarati 17 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भेदिया चिया उवचिया, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा । ओयट्टण संकामण, निहत्तण निकायणे तिविहकालो ॥

Translated Sutra: ભેદાયા, ચય પામ્યા, ઉપચય પામ્યા, ઉદીરાયા, વેદાયા, નિર્જરાયા, અપવર્તન – સંક્રમણ – નિધત્તન – નિકાચન ત્રણે કાળમાં કહેવું.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Gujarati 36 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कड-चिय-उवचिय, उदीरिया वेदिया य निज्जिण्णा । आदितिए चउभेदा, तियभेदा पच्छिमा तिन्नि ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૫
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Gujarati 38 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं णीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે જ નિઃશંક, સત્ય છે જે જિનવરે કહ્યું છે ? હા, ગૌતમ ! તે જ નિઃશંક, સત્ય છે, જે જિનવરે કહ્યું છે
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Gujarati 44 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? जहा ओहिया जीवा तहा नेरइया जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? हंता वेदेंति। कहन्नं भंते! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेसि णं जीवाणं नो एवं तक्का इ वा, सण्णा इ वा, पण्णा इ वा, मने इ वा, वई ति वा– अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेमो, वेदेंति पुण ते। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेइयं। सेसं तं चेव जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું નૈરયિકો કાંક્ષા મોહનીય કર્મ વેદે છે ? હા, ગૌતમ! વેડે છે. જેમ સામાન્ય જીવો કહ્યા, તેમ નૈરયિક યાવત્‌ સ્તનિતકુમારો કહેવા. ભગવન્‌ ! પૃથ્વીકાયિકો કાંક્ષા મોહનીય કર્મ વેદે છે ? હા, વેદે છે. ભગવન્‌ ! પૃથ્વીકાયિકો કાંક્ષા મોહનીય કર્મ કઈ રીતે વેદે છે ? ગૌતમ ! તે જીવોને એવો તર્ક – સંજ્ઞા – પ્રજ્ઞા – મન – વચન હોતા
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Gujarati 45 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं। एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો કાંક્ષા મોહનીય કર્મને વેદે છે ? હા, વેદે છે. શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો કાંક્ષા મોહનીય કર્મને કઈ રીતે વેદે છે? ગૌતમ ! તે તે જ્ઞાનાંતર, દર્શનાંતર, ચારિત્રાંતર, લિંગાંતર, પ્રવચનાંતર, પ્રાવચનિકાંતર, કલ્પાંતર, માર્ગાંતર, મતાંતર, ભંગાંતર, નયાંતર, નિયમાંતર, પ્રમાણાંતર વડે શંકિત, કાંક્ષિત, વિચિકિત્સિત,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Gujarati 51 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीतं अनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिणिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मनुस्से तीतं अनंतं सासयं समयं–केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं नो सिज्झिंसु? नो बुज्झिंसु? नो मुच्चिंसु? नो परिनिव्वाइंसु? नो सव्वदुक्खाणं अंतं करिंसु? गोयमा! जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा–सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा– सव्वे

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું અતીત અનંત શાશ્વત કાળમાં છદ્મસ્થ મનુષ્ય કેવળ સંયમથી, સંવરથી, બ્રહ્મચર્યવાસથી કે પ્રવચનમાતાથી સિદ્ધ થયો, બુદ્ધ થયો મુક્ત થયો, પરિનિવૃત્ત થયો અને સર્વ દુઃખોનો નાશ કરનાર થયો ? ગૌતમ ! આ કથન યોગ્ય નથી. ભગવન્‌ ! એમ કેમ કહો છો કે યાવત્‌ અંતકર થયો નથી ? ગૌતમ ! જે કોઈ અંત કરે કે અંતિમ શરીરીએ સર્વ દુઃખોનો નાશ કર્યો,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१० चलन Gujarati 102 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति – एवं खलु चलमाणे अचलिए। उदीरिज्जमाणे अनुदीरिए। वेदिज्जमाणे अवेदिए। पहिज्जमाणे अपहीने। छिज्जमाणे अच्छिन्ने भिज्जमाणे अभिन्ने। दज्झमाणे अदड्ढे। भिज्जमाणे अमए। निज्जरिज्जमाणे अनिज्जिण्णे। दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति? दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं नत्थि सिनेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति। तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, कम्हा तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति? तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिनेहकाए, तम्हा तिन्नि

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! અન્યતીર્થિકો આ પ્રમાણે કહે છે યાવત્‌ પ્રરૂપે છે કે, ૧. ચાલતું એ ચાલ્યુ યાવત્‌ નિર્જરાતુ એ નિર્જરાયુ ન કહેવાય. ૨. તે અન્યતીર્થિકો કહે છે – બે પરમાણુ પુદ્‌ગલો એકમેકને ચોંટતા નથી કેમ ચોંટતા નથી ? તેનું કારણ એ છે કે – બે પરમાણુ પુદ્‌ગલોમાં ચીકાશ નથી, માટે એકમેકને ચોંટતા નથી તેથી બે પરમાણુનો સ્કંધ થતો નથી. ૩.
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-३ क्रिया Gujarati 181 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ? हंता मंडिअपुत्ता! जीवे णं सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ। जावं च णं भंते! से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंत किरिया भवइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति? मंडिअपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું જીવ હંમેશા સમિત અર્થાત કંઇક કંપે છે, વિશેષ પ્રકારે કંપે છે, ચાલે છે (એક સ્થાનેથી બીજે સ્થાને જાય છે) – સ્પંદન કરે છે(થોડું ચાલે છે)? ઘટ્ટિત થાય છે(સર્વ દિશાઓમાં જાય)? ક્ષોભને પામે છે? ઉદીરિત થાય છે? અને તે તે ભાવે પરિણમે છે તે ? હા, મંડિતપુત્ર ! એમ જ છે. ભગવન્‌ ! જ્યાં સુધી તે જીવ હંમેશા કંઈક કંપે યાવત્‌ પરિણમે
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-९ देव Gujarati 554 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा देवा पन्नत्ता, तं जहा–भवियदव्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवातिदेवा, भावदेवा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा? गोयमा! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवेसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–भवियदव्वदेवा-भवियदव्वदेवा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा? गोयमा! जे इमे रायाणो चाउरंतचक्कवट्टी उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाणा नवनिहिपइणो समिद्ध-कीसा बत्तीसरायवरसहस्साणु-यातमग्गा सागरवरमेहलाहिवइणो मणुस्सिंदा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नरदेवा-नरदेवा। से

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૫૪. ભગવન્‌ ! દેવો કેટલા પ્રકારે છે ? ગૌતમ ! પાંચ પ્રકારે છે – ભવ્યદ્રવ્યદેવ, નરદેવ, ધર્મદેવ, દેવાધિદેવ અને ભાવદેવ. ભગવન્‌ ! ભવ્યદ્રવ્ય દેવોને ‘ભવ્યદ્રવ્યદેવ’ કેમ કહે છે ? ગૌતમ ! જે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ કે મનુષ્ય દેવોમાં ઉત્પન્ન થવા યોગ્ય છે, તે ભાવિ દેવપણાથી. હે ગૌતમ ! તે ભવ્યદ્રવ્યદેવ કહેવાય છે. ભગવન્‌ !
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-४ पुदगल Gujarati 540 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–ओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे? गोयमा! जण्णं जीवेणं ओरालियसरीरे वट्टमाणेणं ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालिय -सरीरत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाइं कडाइं पट्ठवियाइं निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाइं अभिसमण्णागयाइं परियादियाइं परिणामियाइं निज्जिण्णाइं निसिरियाइं निसिट्ठाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–ओरालियपोग्गलपरियट्टे-ओरालियपोग्गलपरियट्टे। एवं वेउव्वियपोग्गलपरियट्टेवि, नवरं–वेउव्वियसरीरे वट्टमाणेणं वेउव्वियसरीरप्पायोग्गाइं दव्वाइं वेउव्वियसरीरत्ताए गहियाइं, सेसं तं चेव सव्वं, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टे,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! ઔદારિક પુદ્‌ગલ પરિવર્ત, ઔદારિક પુદ્‌ગલ પરિવર્ત, એમ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ ! ઔદારિક શરીરમાં વર્તતા જીવે ઔદારિક શરીર યોગ્ય દ્રવ્યોને ઔદારિક શરીર રૂપે ગ્રહણ કર્યા, બદ્ધ – સ્પૃષ્ટ કર્યા છે, પોષિત – પ્રસ્થાપિત – અભિનિવિષ્ટ – અભસમન્વાગત – પર્યાપ્ત – પરિણામિત – નિર્જિર્ણ – નિઃસૃત – નિઃસૃષ્ટ કર્યા છે, તેથી હે
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शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Gujarati 795 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! चउवीसाए तित्थगराणं कति जिणंतरा पन्नत्ता? गोयमा! तेवीसं जिणंतरा पन्नत्ता। एएसि णं भंते! तेवीसाए जिणंतरेसु कस्स कहिं कालियसुयस्स वीच्छेदे पन्नत्ते? गोयमा! एएसु णं तेवीसाए जिणंतरेसु पुरिम-पच्छिमएसु अट्ठसु-अट्ठसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स अव्वोच्छेये पन्नत्ते, मज्झिमएसु सत्तसु जिनंतरेसु एत्थ णं कालियसुयस्स वोच्छेदे पन्नत्ते, सव्वत्थ वि णं वोच्छिण्णे दिट्ठिवाए।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૯૩
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शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Gujarati 798 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे वासे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एक्कवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेस्साणं चरिमतित्थगरस्स केवतिलं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति? गोयमा! जावतिए णं उसभस्स अरहओ कोसलियस्स जिणपरियाए एवइयाइं संखेज्जाइं आगमे-स्साणं चरिमतित्थगरस्स तित्थे अनुसज्जिस्सति।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૯૩
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शतक-७

उद्देशक-८ छद्मस्थ Gujarati 367 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे? हंता गोयमा! नेरइयाणं पावे कम्मे जे य कडे, जे य कज्जइ, जे य कज्जिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे निज्जिण्णे से सुहे। एवं जाव वेमाणियाणं।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬૭. ભગવન્‌ ! નૈરયિકોએ જે પાપકર્મ કર્યા – કરે છે – કરશે, શું તે બધું દુઃખરૂપ છે અને જેની નિર્જરા કરાઈ છે, તે સુખરૂપ છે ? હા, ગૌતમ ! એમ જ છે. એ પ્રમાણે વૈમાનિક સુધી જાણવું. સૂત્ર– ૩૬૮. ભગવન્‌ ! સંજ્ઞા કેટલી કહી છે ? ગૌતમ ! સંજ્ઞાઓ દશ છે, તે આ – આહાર, ભય, મૈથુન, પરિગ્રહ, ક્રોધ, માન, માયા, લોભ, લોક, ઓઘ. એ પ્રમાણે આ દશે સંજ્ઞાઓ
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Gujarati 372 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विन्नाणमेयं अरहया–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया

Translated Sutra: અર્હંતે જાણ્યુ છે, અર્હંતે પ્રત્યક્ષ કર્યું છે, અર્હંતે જાણ્યુ છે, અર્હંતે વિશેષ જાણ્યુ છે કે – મહાશિલાકંટક નામે સંગ્રામ છે... ભગવન્‌ ! મહાશિલાકંટક સંગ્રામ ચાલતો હતો, તેમાં કોણ જય પામ્યુ? ગૌતમ ! વજ્જી(શક્રેન્દ્ર) અનેવિદેહપુત્ર કોણિક. જય પામ્યા અને નવમલ્લકી, નવ લેચ્છકી જાતિના જે કાશી કોશલ ૧૮ – ગણ રાજાઓ હતા તેનો
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शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Gujarati 373 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुवमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया–रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था; नव मल्लई, नव लेच्छई पराजइत्था। तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! भूयानंदं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव

Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૭૩. અરહંતોએ આ જાણ્યું છે, પ્રત્યક્ષ કર્યું છે, વિશેષથી જ્ઞાન કર્યું છે કે આ રથમુસલ સંગ્રામ છે. તો હે ભગવન્‌ ! રથમુસલ સંગ્રામ જ્યારે થતો હતો ત્યારે કોણ જીત્યુ, કોણ હાર્યુ ? હે ગૌતમ ! ઇન્દ્ર, કોણિક અને અસુરેન્દ્ર અસુરકુમાર ચમર જીત્યા અને નવ મલ્લકી અને નવ લેચ્છકી રાજા હાર્યા. ત્યારે રથમુસલ સંગ્રામ ઉપસ્થિત
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शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Gujarati 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: ત્યારે તે જમાલિ ક્ષત્રિયકુમારના પિતાએ કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવ્યા, બોલાવીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે – હે દેવાનુપ્રિયો ! જલદીથી ક્ષત્રિયકુંડગ્રામ નગરને અંદર અને બહારથી સિંચીત, સંમાર્જિત અને ઉપલિપ્ત કરો. આદિ ઉવવાઈ સૂત્ર મુજબ યાવત્‌ કાર્ય કરીને તે પુરુષોએ આજ્ઞા પાછી સોંપી. ત્યારે તે જમાલી ક્ષત્રિયકુમારના પિતાએ
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शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Gujarati 466 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स दोच्चं पि, तच्चं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૬૬. ત્યારપછી કોઈ દિવસે જમાલિ અણગાર જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર હતા, ત્યાં આવે છે, ત્યાં આવીને શ્રમણ ભગવન્‌ મહાવીરને વંદન – નમસ્કાર કરે છે, કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે ભગવન્‌ ! આપની અનુજ્ઞા પામીને હું ૫૦૦ અણગારો સાથે બહારના જનપદ વિહારમાં વિચરવા ઇચ્છુ છું. ત્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે, જમાલિ અણગારની આ વાતનો
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शतक-१०

उद्देशक-५ देव Gujarati 488 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नयरे। गुणसिलए चेइए जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्ठमे सए सत्तमुद्देसए जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जायसंसया जहा गोयमसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं वयासी– चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? अज्जो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–काली, रायी, रयणी, विज्जू, मेहा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ठ देवीसहस्सं परिवारो पन्नत्तो। पभू णं भंते! ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं अट्ठट्ठ देवीसहस्साइं

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું, ત્યાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. ત્યાં ભગવંત મહાવીર પધાર્યા, પ્રભુના સમવસરણ આદિનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્રાનુસાર જાણવું યાવત્‌ પર્ષદા ધર્મ શ્રવણ કરી, પાછી ગઈ. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના ઘણા અંતેવાસી સ્થવિર ભગવંતો જાતિસંપન્ન, કુલસંપન્નઆદિ હતા. તે આઠમા શતકના સાતમા ઉદ્દેશામાં
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-९ शिवराजर्षि Gujarati 506 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं सहसंबवने नामं उज्जाणे होत्था–सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे रम्मे नंदनवनसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मनोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकंते जाव रज्जं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૦૬. તે કાળે, તે સમયે હસ્તિનાપુર નામે નગર હતું – વર્ણન. તે હસ્તિનાપુર – નગરની બહાર ઈશાન ખૂણામાં સહસ્રામ્રવન નામે ઉદ્યાન હતું, તે સર્વઋતુના પુષ્પ – ફળથી સમૃદ્ધ હતું, તે રમ્ય, નંદનવન સમાન સુશોભિત, સુખદ – શીતલ છાયાવાળું, મનોરમ, સ્વાદુ ફળ યુક્ત, અકંટક, પ્રાસાદીય યાવત્‌ પ્રતિરૂપ હતું. તે હસ્તિનાપુર નગરમાં
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-४ पुदगल Gujarati 607 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! पोग्गले तीतमनंतं सासयं समयं लुक्खी? समयं अलुक्खी? समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा? पुव्विं च णं करणेणं अनेगवण्णं अनेगरूवं परिणाम परिणमइ? अहे से परिणामे निज्जिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगवण्णे एगरूवे सिया? हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीतमनंतं सासयं समयं तं चेव जाव एगरूवे सिया। एस णं भंते! पोग्गले पडुप्पन्नं सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव। एस णं भंते! पोग्गले अनागय सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव। एस णं भंते! खंधे तीतमनंतं सासयं समयं लुक्खी? एवं चेव खंधे वि जहा पोग्गले।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ પુદ્‌ગલ અતીતમાં અનંત, શાશ્વત, એક સમય સુધી રૂક્ષ, એક સમય અરૂક્ષ, એક સમય રૂક્ષ અને અરૂક્ષ બંને સ્પર્શવાળો રહેલ છે ? પહેલાં કરણ દ્વારા અનેક વર્ણ અનેક રૂપવાળા પરિણામથી પરિણત થયા અને પછી તે પરિણામ નિર્જિર્ણ થઈને પછી એક વર્ણ અને એક રૂપવાળા થયા છે ? હા, ગૌતમ ! તેમ થયું છે. ભગવન્‌ ! આ પુદ્‌ગલ શાશ્વત વર્તમાનકાળમાં
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-४ पुदगल Gujarati 608 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! जीवे तीतमनंतं सासयं समयं दुक्खी? समयं अदुक्खी? समयं दुक्खी वा अदुक्खी वा? पुव्विं च णं करणेणं अनेगभावं अनेगभूयं परिणामं परिणमइ? अहे से वेयणिज्जे निजिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगभावे एगभूए सिया? हंता गोयमा! एस णं जीवे तीतमनंतं सासयं समयं जाव एगभूए सिया। एवं पडुप्पन्नं सासयं समयं, एवं अनागयमनंतं सासयं समयं।

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ જીવ અનંત, શાશ્વત કાળમાં એક સમયમાં દુઃખી, એક સમયમાં સુખી, એક સમયમાં દુઃખી અને સુખી હતો ? પહેલા કરણ દ્વારા અનેક ભાવવાળા અનેકભૂત પરિણામથી પરિણત થયેલ ? ત્યારપછી વેદનીયની નિર્જરા થતા એક ભાવ, એકરૂપવાળો હતો ? હા, ગૌતમ ! તેમ હતો. આ પ્રમાણે શાશ્વત, વર્તમાનકાળમાં પણ જાણવુ. એ રીતે અનંત શાશ્વત અનાગત કાળમાં પણ
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शतक-१५ गोशालक

Gujarati 651 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वानुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए धम्मायरियाणुरागेणं एयमट्ठं असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसाले मंखलिपुत्ते एवं वयासी– जे वि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माणेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪૯
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शतक-२५

उद्देशक-७ संयत Gujarati 941 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसंते खीणम्मि व, जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि । छउमत्थो व जिणो वा, अहखाओ संजओ स खलु ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૩૬
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