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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 68 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! नेरइयनपुंसगाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाणं मनुस्सनपुंसगाणं य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा मनुस्सनपुंसगा २. नेरइय-नपुंसगा असंखेज्जगुणा ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा। एतेसि णं भंते! नेरइयनपुंसगाणं–रयणप्पहापुढविनेरइयनपुंसगाणं जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइयनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा अहेसत्तमपुढविनेरइयनपुंसगा, ६. छट्ठपुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा जाव दोच्च-पुढविनेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा, ७. इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयनपुंसगा असंखेज्जगुणा। एतेसि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्‌योनिक नपुंसक और मनुष्ययोनिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े मनुष्य नपुंसक, उनसे नैरयिक नपुंसक असंख्यातगुण, उनसे तिर्यक्‌योनिक नपुंसक अनन्तगुण हैं। भगवन्‌ ! इन रत्नप्रभा यावत्‌ अधःसप्तमपृथ्वी नैरयिक नपुंसकों में कौन किससे अल्प,
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त्रिविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 70 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतासि णं भंते! इत्थीणं पुरिसाणं नपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा पुरिसा २. इत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. नपुंसगा अनंतगुणा। एतासि णं भंते! तिरिक्खजोणिइत्थीणं तिरिक्खजोणियपुरिसाणं तिरिक्खजोणियनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा तिरिक्खजोणियपुरिसा २. तिरिक्खजोणिइत्थीओ संखेज्जगुणाओ ३. तिरिक्खजोणियनपुंसगा अनंतगुणा। एतासि णं भंते! मनुस्सित्थीणं मनुस्सपुरिसाणं मनुस्सनपुंसगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! १. सव्वत्थोवा

Translated Sutra: (१) भगवन्‌ ! इन स्त्रियों में, पुरुषों में और नपुंसकों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम ! सबसे थोड़े पुरुष, स्त्रियाँ संख्यातगुणी और नपुंसक अनन्तगुण हैं। (२) इन तिर्यक्‌योनिक में, सबसे थोड़े तिर्यक्‌योनिक पुरुष, तिर्यक्‌योनिक स्त्रियाँ उनसे असंख्यातगुणी, उनसे तिर्यक्‌योनिक नपुंसक अनन्तगुण
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-१ Hindi 76 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पढमा णं भंते! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पन्नत्ता? गोयमा! धम्मा नामेणं, रयणप्पभा गोत्तेणं। दोच्चा णं भंते! पुढवी किंनामा किंगोत्ता पन्नत्ता? गोयमा! वंसा नामेणं, सक्करप्पभा गोत्तेणं। एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, नामानि इमानि सेला तच्चा अंजना चउत्थी रिट्ठा पंचमी मघा छट्ठी माघवती सत्तमा जाव तमतमा गोत्तेणं पन्नत्ता।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! प्रथम पृथ्वी का क्या नाम और क्या गोत्र है ? गौतम ! प्रथम पृथ्वी का नाम ‘धम्मा’ है और उसका गोत्र रत्नप्रभा है। गौतम ! दूसरी पृथ्वी का नाम वंशा है और गोत्र शर्कराप्रभा है। तीसरी पृथ्वी का नाम शैला, चौथी का अंजना, पाँचवी का रिष्ठा है, छठी का मघा और सातवीं पृथ्वी का नाम माघवती है। इस प्रकार तीसरी पृथ्वी का
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-१ Hindi 79 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी केवतिया बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! इमा णं रयणप्पभापुढवी असिउत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पन्नत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं इमा गाहा अनुगंतव्वा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यह रत्नप्रभापृथ्वी कितनी मोटी कही गई है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है। ‘प्रथम पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन की है। दूसरी एक लाख बत्तीस हजार योजन की, तीसरी एक लाख अट्ठाईस हजार योजन की, चौथी एक लाख बीस हजार योजन की, पाँचवी एक लाख अठारह हजार योजन की, छठी एक लाख सोलह हजार
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-१ Hindi 82 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। एवं एतेणं अभिलावेणं सव्वासिं पुच्छा, इमा गाहा अनुगंतव्वा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकवास हैं ? गौतम ! तीस लाख। प्रथम पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दस लाख, पाँचवी में तीन लाख, छठी में पाँच कम एक लाख और सातवी पृथ्वी में पाँच अनुत्तर महानरकावास हैं। अधःसप्तमपृथ्वी में महानरकावास पाँच हैं, यथा – काल, महाकाल, रौरव,
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 96 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आवलियपविट्ठा य आवलियबाहिरा य। तत्थ णं जेते आवलियपविट्ठा ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–वट्टा तंसा चउरंसा। तत्थ णं जेते आवलियबाहिरा ते नानासंठाणसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–अयकोट्ठसंठिता पिट्ठपयणगसंठिता कंडूसंठिता लोहीसंठिता कडाहसंठिता थालीसंठिता पिहडगसंठिता किण्हसंठिता उवडसंठिता मुरवसंठिता मुयंगसंठिता नंदिमुयंगसंठिता आलिंगकसंठिता सुघोससंठिता दद्दरयसंठिता पनव-संठिता पडहसंठिता भेरिसंठिता झल्लरीसंठिता कुत्तुंबकसंठिता नालिसंठिता। एवं जाव तमाए। अहेसत्तमाए णं भंते!

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों का आकार कैसा है ? गौतम ! ये नरकावास दो तरह के हैं – आवलिकाप्रविष्ट और आवलिकाबाह्य। इनमें जो आवलिकाप्रविष्ट हैं वे तीन प्रकार के हैं – गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण। जो आवलिका से बाहर हैं वे नाना प्रकार के आकारों के हैं, जैसे कोई लोहे की कोठी के आकार के हैं, कोई मदिरा बनाने
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 97 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि जोयणसहस्साइं, बाहल्लेणं पन्नत्ता, तं जहा– हेट्ठा घना सहस्सं, मज्झे झुसिरा सहस्सं, उप्पिं संकुइया सहस्सं। एवं जाव अहेसत्तमाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खवेणं पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं, जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं पन्नत्ता। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं,

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों की मोटाई कितनी है ? गौतम ! ३००० योजन की। वे नीचे १००० योजन तक घन हैं, मध्य में एक हजार योजन तक झुषिर हैं और ऊपर एक हजार योजन तक संकुचित हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई – चौड़ाई तथा परिक्षेप कितना है ? गौतम ! वे नरकावास
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 101 Gatha Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असन्नी खलु पढमं, दोच्चं च सरीसिया ततिय पक्खी । सीहा जंति चउत्थिं, उरगा पुण पंचमिं जंति ॥

Translated Sutra: असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप दूसरी नरक तक, पक्षी तीसरी नरक तक, सिंह चौथी नरक तक, उरग पाँचवी नरक तक, स्त्रियाँ छठी नरक तक और मत्स्य एवं मनुष्य सातवी नरक तक जाते हैं।
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 102 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठिं च इत्थियाओ, मच्छा मनुया य सत्तमिं जंति । एसो खलु उववातो, नेरइयाणं तु नातव्वो ॥ जाव अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया नो असन्नीहिंतो उववज्जंति जाव नो इत्थियाहिंतो उववज्जंति, मच्छमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया एक्कसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखिज्जा वा उववज्जंति। एवं जाव अधेसत्तमाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा केवति-कालेणं अवहिता सिता? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समएसमए अवहीरमाणाअवहीरमाणा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति,

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में नारकजीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य से एक, दो, तीन, उत्कृष्ट से संख्यात या असंख्यात। इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना। हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का प्रतिसमय एक – एक का अपहार करने पर कितने काल में यह रत्नप्रभापृथ्वी खाली हो सकती है ? गौतम ! नैरयिक
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 105 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति? गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का। नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत्‌ कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्‌गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

नैरयिक उद्देशक-२ Hindi 108 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पुढविफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमाए। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं आउफासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! अनिट्ठं जाव अमणामं। एवं जाव अहेसत्तमाए एवं जाव वणप्फतिफासं अधेसत्तमाए पुढवीए इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतियाबाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु? हंता गोयमा! इमा णं रयणप्पभापुढवी दोच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं सव्वक्खुड्डिया सव्वंतेसु। दोच्चा णं भंते! पुढवी तच्चं पुढविं पणिहाय सव्वमहंतिया बाहल्लेणं पुच्छा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! वे अनिष्ट यावत्‌ अमणाम भूमिस्पर्श का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना। हे भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के जलस्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत्‌ अमणाम जलस्पर्श का अनुभव करते
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 330 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना। अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत्‌ अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 336 Gatha Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठीं हेट्ठिममज्झिमगेवेज्जा, सत्तमिं च उवरिल्ला । संभिण्णलोगनालिं पासंति अनुत्तरा देवा ॥

Translated Sutra: अधस्तनग्रैवेयक, मध्यमग्रैवेयक देव छठी नरक पृथ्वी के चरमान्त तक, उपरितनग्रैवेयक देव सातवीं नरक – पृथ्वी तक और अनुत्तरविमानवासी देव सम्पूर्ण चौदह रज्जू प्रमाण लोकनाली को जानते – देखते हैं।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 48 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुणो वि वीयरागाणं, पडिमाओ चेइयालए। पत्तेयं संथुणे वंदे, एगग्गो भत्ति-निब्भरो॥

Translated Sutra: फिर से चैत्यालय में जाकर वीतराग परमात्मा की प्रतिमा की एकाग्र भक्तिपूर्वक हृदय से हरएक की वंदना – स्तवना करे। चैत्य को सम्यग्‌ विधि सहित वंदना कर के छठ्ठ भक्त तप कर के चैत्यालय में यह श्रुतदेवता नामक विद्या का लाख प्रमाण जप करे। सर्वभाव से उपशान्त होनेवाला, एकाग्रचित्तवाला, दृढ़ निश्चयवाला, उपयोगवाला, ड़ामाडोल
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 149 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पायच्छित्तं पि कायव्वं तह जह एयाहिं समणीहिं कयं। न उणं तह आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई॥

Translated Sutra: जिस तरह इस श्रमणीओं ने प्रायश्चित्त किया उस तरह से प्रायश्चित्त करना, लेकिन किसी को भी माया या दंभ से आलोयणा नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से पापकर्म की वृद्धि होती है, अनादि अनन्त काल से माया – दंभ – कपट दोष से आलोचना करके शल्यवाली बनी हुई साध्वी, हुकूम उठाना पड़े जैसा सेवकपन पाकर परम्परा से छठ्ठी नारकी में
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 154 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयम केसिमित्थीणं चित्त-विसोही सुनिम्मला। भवंतरे वि नो होही जेण नीसल्ला भवे॥

Translated Sutra: इसलिए हे गौतम ! कुछ स्त्रीयों को अति निर्मल, चित्त – विशुद्धि भवान्तर में भी नहीं होती कि जिससे वो निःशल्य भाव पा सके, कुछ श्रमणी छठ्ठ – अठ्ठम, चार उपवास, पाँच उपवास इस तरह बारबार उपवास से शरीर सूखा देते हैं तो भी सराग भाव की आलोचना करती नहीं – छोड़ती नहीं। सूत्र – १५४, १५५
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 211 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हिंसा पुढवादि-छब्भेया अहवा नव-दस-चोद्दसहाउ। अहवा अनेगहा नेया काय-भेदंतरेहि णं॥

Translated Sutra: पृथ्वी – अप्‌ – तेऊ, वायु वनस्पति ये पाँच स्थावर, छठ्ठे त्रस जीव या नव – दश अथवा चौदह भेद से जीव। या काया के विविध भेद से बताते कईं तरह के जीव के हिंसा (के पाप की आलोचना करे।)
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 901 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा हा, हा अहं मूढो आयसल्लेण सल्लिओ। समणाणं नेरिसं जुत्तं, समयमवी मनसि धारिउं॥

Translated Sutra: या वाकई मैं मूर्ख हूँ। मेरे अपने माया शल्य से मुझे चोट पहुँची है। श्रमण को अपने मन में इस तरह की धारणा करनी युक्त न मानी जाए। पीछे से भी उसका प्रायश्चित्त आलोवकर आत्मा को हलका बनाऊंगा और महाव्रत धारण करूँगा। या आलोचकर वापस मायावी कहलाऊंगा। तो दश साल तक मासखमण और पारणे आयंबिल, बीस साल तक दो महिने के लगातार उपवास
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 470 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एत्थं तु जं विही-पुव्वं पढमज्झयणे, परूवियं। तीए चेव विहिए तं वाएज्जा सेसाणिमं विहिं॥

Translated Sutra: यहाँ प्रथम अध्ययन में पूर्व विधि बताई है। दूसरे अध्ययन में इस तरह का विधि कहना और बाकी के अध्ययन की अविधि समझना, दूसरे अध्ययन में पाँच आयंबिल उसमें नौ उद्देशा होते हैं। तीसरे में आठ आयंबिल और सात उद्देशो, जिस प्रकार तीसरे में कहा उस प्रकार चौथे अध्ययन में भी समझना, पाँचवे अध्ययन में छ आयंबिल, छठ्ठे में दो, सातवे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 493 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करे ? हे गौतम ! आगे हम बताएंगे उस विधि से पंचमंगल का विनय उपधान करना चाहिए। अति प्रशस्त और शोभन तिथि, करण, मुहूर्त्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल हो तब आठ तरह के मद स्थान से मुक्त हो, शंका रहित श्रद्धासंवेग जिसके अति वृद्धि पानेवाले हो, अति तीव्र महान उल्लास पानेवाले, शुभ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 594 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (३) से भयवं इरियावहियमहिज्जित्ता णं तओ किमहिज्जे (४) गोयमा सक्कत्थयाइयं चेइय-वंदन-विहाणं। नवरं सक्कत्थयं एगट्ठम -बत्तीसाए आयंबिलेहिं, अरहंतत्थयं एगेणं चउत्थेणं तिहिं आयंबिलेहिं, चउवीसत्थयं एगेणं छट्ठेणं एगेण य चउत्थेणं पणुवीसाए आयंबिलेहिं णाणत्थयं एगेणं चउत्थेणं पंचहिं आयंबिलेहिं। (५) एवं सर-वंजन-मत्ता-बिंदु-पयच्छेय-पयक्खर-विसुद्धं अविच्चामेलियं अहीएत्ता णं गोयमा तओ कसिणं सुत्तत्थ विन्नेयं। (६) जत्थ य संदेहं भवेज्जा, तं पुणो पुणो वीमंसिय नीसंकमवधारेऊणं नीसंदेहं करेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवंत ! इरियावहिय सूत्र पढ़कर फिर क्या करना चाहिए ? हे गौतम ! शक्रस्तव आदि चैत्यवंदन पढ़ना चाहिए। लेकिन शक्रस्तव एक अठ्ठम और उसके बाद उसके उपर बत्तीस आयंबिल करना चाहिए। अरहंत सत्व यानि अरिहंत चेईआणं एक उपवास और उस पर पाँच आयंबिल करके। चौबीस स्तव – लोगस्स, एक छठ्ठ, एक उपवास पर पचीस आयंबिल करके। श्रुतस्तव – पुक्खरवरदीवड्ढे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 626 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा चारित्तकुसीले अनेगहा-मूलगुण उत्तर-गुणेसुं। तत्थ मूलगुणा पंच-महव्वयाणी राई-भोयण-छट्ठाणि, तेसुं जे पमत्ते भवेज्जा। तत्थ पाणाइवायं पुढवि-दगागणिमारुय-वणप्फती-बिति-चउ-पंचेंदियाईणं संघटण-परिया- वण-किलामणोद्दवणे। मुसावायं सुहुमं बायरं च। तत्थ सुहुमं पयला-उल्ला मरुए एवमादि, बादरो कण्णालीगादि। अदिन्नादाणं सुहुमं बादरं च। तत्थ सुहुमं तण-डगल-च्छार-मल्लगादिणं गहणे, बादरं हिरन्न-सुवण्णादिणं। मेहुणं दिव्वोरालियं मनोवइ-काय-करण-कारावणानुमइभेदेण अट्ठरसहा; तहा करकम्मादी, सचित्ताचित्त-भेदेणं नवगुत्ति-विराहणेण वा विभूसावत्तिएण वा। परिग्गहं सुहुमं बादरं च। तत्थ

Translated Sutra: अब मूलगुण और उत्तरगुण में चारित्रकुशल अनेक प्रकार के जानना। उसमें पाँच महाव्रत और रात्रि भोजन छठ्ठा – ऐसे मूलगुण बताए हैं। वो छ के लिए जो प्रमाद करे, उसमें प्राणातिपात यानि पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप एकेन्द्रियजीव, दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले जीव का संघट्टा करना, परिताप उत्पन्न करना, किलामणा
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1189 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सा पर-ववएसेणं आलोइत्ता तवं चरे। पायच्छित्तं निमित्तेणं, पण्णासं संवच्छरे॥

Translated Sutra: अब वो लक्ष्मण साध्वी पराये के बहाने से आलोचना ग्रहण करके तपस्या करने लगी, प्रायश्चित्त निमित्त से पचास साल तक छठ्ठ – अठ्ठम चार उपवास करके दश साल पसार किए। अपने लिए न किए हो, न करवाए हो, किसी ने साधु का संकल्प कर के भोजन तैयार न किए हो, भोजन करनेवाले गृहस्थ के घर बचा हो वैसा आहार भिक्षा में मिले उससे उपवास पूरा करे,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1215 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो लक्खणदेवीए जीवो खंडोट्ठियत्तणा। इत्थि-रयणं भवेत्ताणं गोयमा छट्ठियं गओ॥

Translated Sutra: अब लक्ष्मणा देवी का जीव खंडोष्ठीपन में से स्त्रीरत्न होकर हे गौतम ! फिर उसका जीव छठ्ठी नारकी में जा पहुँचा। वहाँ नारकी का महाघोर काफी भयानक दुःख त्रिकोण नरकावास में दीर्घकाल तक भुगतकर यह आया हुआ उसका जीव तिर्यंच योनि में श्वान के रूप में पैदा हुआ। वहाँ काम का उन्माद हुआ। इसलिए मैथुन सेवन करने लगी। वहाँ बैल
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1251 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दंसणमेगम्मि बितियं जम्मे अणुव्वए। तइयं सामाइयं जम्मे, चउत्थे पोसहं करे॥

Translated Sutra: पहले जन्म में सम्यग्दर्शन, दूसरे जन्म में अणुव्रत, तीसरे जन्म में सामायिक चारित्र, चौथे जन्म में पौषध करे, पाँचवे में दुर्धर ब्रह्मचर्यव्रत, छठ्ठे में सचित्त का त्याग, उसके अनुसार सात, आँठ, नौ, दश जन्म में अपने लिए तैयार किए गए – दान देने के लिए – संकल्प किया हो वैसे आहारादिक का त्याग करना आदि। ग्यारहवे जन्म में
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥

Translated Sutra: ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1524 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं सा सुज्जसिरी कहिं समुववन्ना गोयमा छट्ठीए नरय पुढवीए। से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा तीए पडिपुण्णाणं साइरेगाणं णवण्हं मासाणं गयाणं इणमो विचिंतियं जहा णं पच्चूसे गब्भं पडावेमि, त्ति एवमज्झवसमाणी चेव बालयं पसूया। पसूयमेत्ता य तक्खणं निहणं गया। एतेणं अट्ठेणं गोयमा सा सुज्जसिरी छट्ठियं गयं त्ति। से भयवं जं तं बालगं पसविऊणं मया सा सुज्जसिरी तं जीवियं किं वा न व त्ति गोयमा जीवियं। से भयवं कहं गोयमा पसूयमेत्तं तं बालगं तारिसेहिं जरा जर जलुस जंबाल पूइ रुहिर खार दुगंधासुईहिं विलत्तमणाहं विलवमाणं दट्ठूणं कुलाल चक्कस्सोवरिं काऊणं साणेणं समुद्दिसिउमारद्धं ताव

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो सुज्ञश्री कहाँ उत्पन्न हुई ? हे गौतम ! छठ्ठी नरक पृथ्वी में, हे भगवंत ! किस कारण से ? उसके गर्भ का नौ मास से ज्यादा समय पूर्ण हुआ तब सोचा कि कल सुबह गर्भ गिरा दूँगी। इस प्रकार का अध्य – वसाय करते हुए उसने बच्चे को जन्म दिया। जन्म देने के बाद तुरन्त उसी पल में मर गई। इस कारण से सुज्ञश्री छठ्ठी नरक में गई। हे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1525 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोइय निंदियगरहिए णं कय पायच्छित्ते वि भवित्ताणं। जयणं अयाणमाणे भमिही सुइरं तु संसारे॥

Translated Sutra: आलोचना, निन्दा, गर्हा, प्रायश्चित्त करने के बावजूद भी जयणा का अनजान होने से दीर्घकाल तक संसार में भ्रमण करेगा। हे भगवंत ! कौन – सी जयणा उसने न पहचानी कि जिससे उस प्रकार के दुष्कर काय – क्लेश करके भी उस प्रकार के लम्बे अरसे तक संसार में भ्रमण करेगा ? हे गौतम ! जयणा उसे कहते हैं कि अठ्ठारह हजार शील के सम्पूर्ण अंग
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 144 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमनाइं, देवलोग-गमनाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति। दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइं। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाइं। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओवक्खाइया-सयाइं– एवमेव सपुव्वावरेणं अद्धट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति त्ति मक्खायं। नायाधम्मकहाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों के नगरों, उद्यानों, चैत्यों, वनखण्डों व भगवान्‌ के समवसरणों का तथा राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक संबंधी ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, दीक्षा, पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधान – तप, संलेखना, भक्त – प्रत्याख्यान, पादपोप
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 151 Gatha Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दस चोद्दस अट्ठ, अट्ठारसेव बारस दुवे य वत्थूणि । सोलस तीसा वीसा, पन्नरस अनुप्पवायम्मि ॥

Translated Sutra: पहले में १०, दूसरे में १४, तीसरे में ८, चौथे में १८, पाँचवें में १२, छठे में २, सातवें में १६, आठवें में ३०, नवमें में १५, ग्यारहवें में १२, बारहवें में १३, तेरहवें में ३० और चौदहवें में २५ वस्तु है। आदि के चार पूर्वों में क्रम से – प्रथम में ४, द्वितीय में १२, तृतीय में ८ और चतुर्थ पूर्व में १० चूलिकाऍं हैं। शेष पूर्वों
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 90 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू नितियं अग्गपिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी हंमेशा अग्रपिंड़ मतलब भोजन से पहले अलग किया गया या विशेष ऐसा, एक ही घर से पूर्ण मतलब सबकुछ, बरतन, थाली आदि में से आधा या तीसरे – चौथे हिस्से का, दान के लिए नीकाले गए हिस्से का, छठ्ठे हिस्से का पिंड़ मतलब आहार या भोजन ले यानि कि उपभोग करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। (ऐसा करनेमें
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 68 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह मीसओ य पिंडो एएसिं विय नवण्ह पिंडाणं । दुगसंजोगाईओ नायव्वो जाव वरमोति ॥

Translated Sutra: भावपिंड़ दो प्रकार के हैं। १. प्रशस्त, २. अप्रशस्त। प्रशस्त – एक प्रकार से दश प्रकार तक हैं। प्रशस्त भावपिंड़ एक प्रकार से यानि संयम। दो प्रकार यानि ज्ञान और चारित्र। तीन प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन और चारित्र। चार प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। पाँच प्रकार यानि – १. प्राणातिपात विरमण, २. मृषावाद विरमण,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 117 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥

Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 380 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह चेव पुव्वलित्ते काया दाउं पुणोऽवि तह चेव । उवलिप्पंते काया मुइअंगाइं नवरि छठ्ठे

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७६
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 603 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अइरं फलाइपिहितं वणंमि इयरं तु छब्ब पिच्छ पिढराई । कच्छवसंचाराई अनंतरानंतरे छठ्ठे

Translated Sutra: देखो सूत्र ६००
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

उद्गम्

Gujarati 380 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जह चेव पुव्वलित्ते काया दाउं पुणोऽवि तह चेव । उवलिप्पंते काया मुइअंगाइं नवरि छठ्ठे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૮
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

एषणा

Gujarati 603 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अइरं फलाइपिहितं वणंमि इयरं तु छब्ब पिच्छ पिढराई । कच्छवसंचाराई अनंतरानंतरे छठ्ठे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૦૦
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 198 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठुत्तरं च तीसं, छव्वीसं चेव सतसहस्सं तु । अट्ठारस सोलसगं, चोद्दसमहियं तु छट्ठीए ॥

Translated Sutra: (नारकावासों का भूमिभाग – ) छठी नरक तक; एक लाख से ऊपर – अठहत्तर, तीस, छब्बीस, अठारह और छठी नरकपृथ्वी में – चौदह हजार योजन हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 200 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तीसा य पण्णवीसा, पन्नरस दसेव सयसहस्साइं । य पंचूणेगं, पंचेव अनुत्तरा नरया ॥

Translated Sutra: (नारकावासों की संख्या) (छठी नरक तक लाख की संख्या में) तीस, पच्चीस, पन्द्रह, दस, तीन तथा पाँच कम एक और सातवीं नरकपृथ्वी में केवल पाँच ही अनुत्तर नरक हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 235 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सिद्धाणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! सिद्धा परिवसंति? गोयमा! सव्वट्ठसिद्धस्स महाविमानस्स उवरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालस जोयणे उड्ढं अबाहाए, एत्थ णं ईसीपब्भारा नामं पुढवी पन्नत्ता– पणतालीसं जोयणसतसहस्साणि आयामविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सतसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे जोयणसते किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता। ईसीपब्भाराए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभाए अट्ठजोयणिए खेत्ते अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं पन्नत्ते, ततो अनंतरं च णं माताए माताए–पएसपरिहाणीए परिहायमाणी-परिहायमाणी सव्वेसु चरिमंतेसु मच्छियपत्तातो तनुयरी अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सिद्धों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम! सर्वार्थसिद्ध विमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से १२ योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है, जिसकी लम्बाई – चौड़ाई ४५ लाख योजन है। उसकी परिधि योजन १४२०३२४९ से कुछ अधिक है। ईषत्प्राग्भारा – पृथ्वी के बहुत मध्यभाग में ८ योजन का क्षेत्र है, जो आठ योजन मोटा है। उसके अनन्तर
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Hindi 260 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया दाहिणेणं, उत्तरेणं विसेसाहिया, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया। दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा आउक्काइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया। दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा तेउक्काइया दाहिणुत्तरेणं, पुरत्थिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया। दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पुरत्थिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया। दिसानुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं

Translated Sutra: दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिणदिशा में हैं, उत्तर में विशेषाधिक हैं, पूर्वदिशा में विशेषाधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं। दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं। दिशाओं की अपेक्षा
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३ अल्पबहुत्त्व

Hindi 297 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ... ...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५.

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! अब मैं समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण करने वाले महादण्डक का वर्णन करूँगा – १. सबसे कम गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं, २. मानुषी संख्यातगुणी अधिक हैं, ३. बादर तेजस्कायिक – पर्याप्तक असंख्यात – गुणे हैं, ४. अनुत्तरौपपातिक देव असंख्यातगुणे हैं, ५. ऊपरी ग्रैवेयकदेव संख्यातगुणे हैं, ६. मध्यमग्रैवेयकदेव
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-६ व्युत्क्रान्ति

Hindi 335 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अस्सण्णी खलु पढमं, दोच्चं च सिरीसवा तइय पक्खी । सीहा जंति चउत्थिं, उरगा पुन पंचमिं पुढविं ॥

Translated Sutra: असंज्ञी निश्चय ही पहली (नरकभूमि) में, सरीसृप दूसरी तक, पक्षी तीसरी तक, सिंह चौथी तक, उरग पाँचवी तक। तथा – स्त्रियाँ छठी (नरकभूमि) तक और मत्स्य एवं मनुष्य (पुरुष) सातवीं तक उत्पन्न होते हैं। नरकपृथ्वीयों में इनका यह उत्कृष्ट उपपात समझना। सूत्र – ३३५, ३३६
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१० चरिम

Hindi 369 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बि चउत्थ पंच छट्ठं, पन्नर सोलं च सत्तरट्ठारं । वीसेक्कवीस बावीसगं च वज्जेज्ज छट्ठम्मि ॥

Translated Sutra: षट्‌प्रदेशीस्कन्ध में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, बीसवाँ, ईक्कीसवाँ और बाईसवाँ छोड़कर, शेष भंग होते हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१० चरिम

Hindi 370 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बि चउत्थ पंच छट्ठं, पन्नर सोलं च सत्तरट्ठारं । बावीसइमविहूणा, सत्तपदेसम्मि खंधम्मि ॥

Translated Sutra: सप्तप्रदेशीस्कन्ध में दूसरे, चौथे, पाँचवे, छठे, पन्द्रहवे, सोलहवे, सत्रहवे, अठारहवे और बाईसवे भंग के सिवाय शेष भंग होते हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१० चरिम

Hindi 371 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बि चउत्थ पंच छट्ठं, पन्नर सोलं च सत्तरट्ठारं । एते वज्जिय भंगा, सेसा सेसेसु खंधेसु ॥

Translated Sutra: शेष सब स्कन्धों में दूसरा, चौथा, पाँचवां, छठा, पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ, अठारहवाँ, इन भंगों को छोड़कर, शेष भंग होत हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 404 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा, सिद्धाणं अनंतभागो। पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल से – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से वे असंख्यात लोक – प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३३ अवधि

Hindi 581 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अद्धगाउयं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति? गोयमा! जहन्नेणं अद्धट्ठाइं गाउयाइं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। सक्करप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं अद्धट्ठाइं गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। वालुयप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं गाउयाइं उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं ओहिणा जाणंति पासंति। पंकप्पभापुढविनेरइया जहन्नेणं दोन्नि गाउयाइं, उक्कोसेणं अड्ढाइज्जाइं गाउयाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक अवधि द्वारा कितने क्षेत्र को जानते – देखते हैं ? गौतम ! जघन्यतः आधा गाऊ और उत्कृष्टतः चार गाऊ। रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक अवधि से कितने क्षेत्र को जानते – देखते हैं ? गौतम ! जघन्य साढ़े तीन गाऊ और उत्कृष्ट चार गाऊ। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक जघन्य तीन और उत्कृष्ट साढ़े तीन गाऊ को, अवधि – (ज्ञान) से
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 619 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिसमइए णं भंते! केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेति, बिइए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेइ, पंचमे समए लोगं पडिसाहरति, छट्ठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति, पडिसाहरित्ता ततो पच्छा सरीरत्थे भवति। से णं भंते! तहासमुग्घायगते किं मनजोगं जुंजति? वइजोगं जुंजति? कायजोगं जुंजति? गोयमा! नो मनजोगं जुंजइ, नो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजति। कायजोगण्णं भंते! जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजति? ओरालियमीसासरीर-कायजोगं जुंजति? किं वेउव्वियसरीरकायजोगं जुंजति? वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! केवलिसमुद्‌घात कितने समय का है ? गौतम ! आठ समय का, – प्रथम समय में दण्ड करता है, द्वितीय समय में कपाट, तृतीय समय में मन्थान, चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, पंचम समय में लोक – पूरण को सिकोड़ता है, छठे समय में मन्थान को, सातवें समय में कपाट को और आठवें समय में दण्ड को सिकोड़ता है और दण्ड का संकोच करते ही शरीरस्थ
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