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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२८. तपसूत्र | Hindi | 472 | View Detail | ||
Mool Sutra: तम्हा सव्वपयत्ते, विणीयत्तं मा कदाइ छंडेज्जा।
अप्पसुदो वि य पुरिसो, खवेदि कम्माणि विणएण।।३४।। Translated Sutra: इसलिए सब प्रकार का प्रयत्न करके विनय को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अल्पश्रुत का अभ्यासी पुरुष भी विनय के द्वारा कर्मों का नाश करता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२९. ध्यानसूत्र | Hindi | 494 | View Detail | ||
Mool Sutra: पुरीसायारो अप्पा, जोई वरणाणदंसणसमग्गो।
जो झायदि सो जोई, पावहरो हवदि णिद्दंदो।।११।। Translated Sutra: जो योगी पुरुषाकार तथा केवलज्ञान व केवलदर्शन से पूर्ण आत्मा का ध्यान करता है, वह कर्मबन्धन को नष्ट करके निर्द्वन्द्व हो जाता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२९. ध्यानसूत्र | Hindi | 502 | View Detail | ||
Mool Sutra: न कसायसमुत्थेहि य, वहिज्जइ माणसेहिं दुक्खेहिं।
ईसा-विसाय-सोगा-इएहिं, झाणोवगयचित्तो।।१९।। Translated Sutra: जिसका चित्त इस प्रकार के ध्यान में लीन है, वह आत्मध्यानी पुरुष कषाय से उत्पन्न ईर्ष्या, विषाद, शोक आदि मानसिक दुःखों से बाधित (ग्रस्त या पीड़ित) नहीं होता। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२९. ध्यानसूत्र | Hindi | 503 | View Detail | ||
Mool Sutra: चालिज्जइ बीभेइ य, धीरो न परीसहोवसग्गेहिं।
सुहुमेसु न संमुच्छइ, भावेसु न देवमायासु।।२०।। Translated Sutra: वह धीर पुरुष न तो परीषह, न उपसर्ग आदि से विचलित और भयभीत होता है तथा न ही सूक्ष्म भावों व देवनिर्मित मायाजाल में मुग्ध होता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३०. अनुप्रेक्षासूत्र | Hindi | 528 | View Detail | ||
Mool Sutra: सुइं च लद्धं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं।
बहवे रोयमाणा वि, नो एणं पडिवज्जए।।२४।। Translated Sutra: धर्म-श्रवण तथा (उसके प्रति) श्रद्धा हो जाने पर भी संयम में पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत-से लोग संयम में अभिरुचि रखते हुए भी उसे सम्यक्रूपेण स्वीकार नहीं कर पाते। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 569 | View Detail | ||
Mool Sutra: धीरेण वि मरियव्वं, काउरिसेण वि अवस्समरियव्वं।
तम्हा अवस्समरणे, वरं खु धीरत्तणे मरिउं।।३।। Translated Sutra: निश्चय ही धैर्यवान् को भी मरना है और कापुरुष को भी मरना है। जब मरण अवश्यम्भावी है, तो फिर धीरतापूर्वक मरना ही उत्तम है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 571 | View Detail | ||
Mool Sutra: इक्कं पंडियमरणं, पडिवज्जइ सुपुरिसो असंभंतो।
खिप्पं सो मरणाणं, काहिइ अंतं अणंताणं।।५।। Translated Sutra: असम्भ्रान्त (निर्भय) सत्पुरुष एक पण्डितमरण को प्राप्त होता है और शीघ्र ही अनन्त-मरण का--बार-बार के मरण का अन्त कर देता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 588 | View Detail | ||
Mool Sutra: जावन्तऽविज्जापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा।
लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए।।१।। Translated Sutra: समस्त अविद्यावान् (अज्ञानी पुरुष) दुःखी हैं-दुःख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ़ अनन्त संसार में बार-बार लुप्त होते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 589 | View Detail | ||
Mool Sutra: समिक्ख पंडिए तम्हा, पासजाइपहे बहू।
अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएसु कप्पए।।२।। Translated Sutra: इसलिए पण्डितपुरुष अनेकविध पाश या बन्धनरूप स्त्री-पुत्रादि के सम्बन्धों की, जो कि जन्म-मरण के कारण हैं, समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखे। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | Hindi | 600 | View Detail | ||
Mool Sutra: अप्पपसंसण-करणं, पुज्जेसु वि दोसगहण-सीलत्तं।
वेरधरणं च सुइरं, तिव्वकसायाण लिंगाणि।।१३।। Translated Sutra: अपनी प्रशंसा करना, पूज्य पुरुषों में भी दोष निकालने का स्वभाव होना, दीर्घकाल तक वैर की गाँठ को बाँधे रखना--ये तीव्रकषायवाले जीवों के लक्षण हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | Hindi | 667 | View Detail | ||
Mool Sutra: पुरिसम्मि पुरिससद्दो, जम्माई-मरणकालपज्जन्तो।
तस्स उ बालाईया, पज्जवजोया बहुवियप्पा।।८।। Translated Sutra: पुरुष में पुरुष शब्द का व्यवहार जन्म से लेकर मरण तक होता है। परन्तु इसी बीच बचपन-बुढ़ापा आदि अनेक पर्यायें उत्पन्न हो-होकर नष्ट होती जाती हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | Hindi | 670 | View Detail | ||
Mool Sutra: पिउ-पुत्त-णत्तु-भव्वय-भाऊणं एगपुरिससंबंधो।
ण य सो एगस्स पिय, त्ति सेसयाणं पिया होइ।।११।। Translated Sutra: एक ही पुरुष में पिता, पुत्र, पौत्र, भानेज, भाई आदि अनेक सम्बन्ध होते हैं। एक ही समय में वह अपने पिता का पुत्र और अपने पुत्र का पिता होता है। अतः एक का पिता होने से वह सबका पिता नहीं होता। (यही स्थिति सब वस्तुओं की है।) | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | Hindi | 671 | View Detail | ||
Mool Sutra: सवियप्प-णिवियप्पं इय, पुरिसं जो भणेज्ज अवियप्पं।
सवियप्पमेव वा णिच्छएण, ण स निच्छओ समए।।१२।। Translated Sutra: निर्विकल्प तथा सविकल्प उभयरूप पुरुष को जो केवल निर्विकल्प अथवा सविकल्प (एक ही) कहता है, उसकी मति निश्चय ही शास्त्र में स्थिर नहीं है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
४१. समन्वयसूत्र | Hindi | 734 | View Detail | ||
Mool Sutra: सयं सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं।
जे उ तत्थ विउस्संति, संसारं ते विउस्सिया।।१३।। Translated Sutra: इसलिए जो पुरुष केवल अपने मत की प्रशंसा करते हैं तथा दूसरे के वचनों की निन्दा करते हैं और इस तरह अपना पांडित्य-प्रदर्शन करते हैं, वे संसार में मजबूती से जकड़े हुए हैं--दृढ़ रूप में आबद्ध हैं। | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३१. लेश्यासूत्र | Gujarati | 537 | View Detail | ||
Mool Sutra: पथिका ये षट् पुरुषाः, परिभ्रष्टा अरण्यमध्यदेशे।
फलभरितवृक्षमेकं, प्रेक्ष्य ते विचिन्तयन्ति।।७।। Translated Sutra: છ પ્રવાસીઓ વનમાં ભૂલા પડ્યા. ભૂખ્યા થયેલ એ પ્રવાસીઓએ ફળથી લચી પડેલું એક વૃક્ષ જોયું. છમાંથી દરેકને જુદો જુદો વિચાર આવ્યો : ૧ - આખું ઝાડ મૂળસહિત ઊખેડીએ અને ફળ ખાઈએ. ૨ - થડમાંથી આખું ઝાડ કાપી લઈએ. ૩ - મોટી મોટી ડાળીઓ કાપીએ. ૪ - ફળવાળાં ડાળખાં જ કાપ સંદર્ભ ૫૩૭-૫૩૮ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Hindi | 224 | View Detail | ||
Mool Sutra: दर्शनशुद्धः शुद्धः, दर्शनशुद्धः लभते निर्वाणम्।
दर्शनविहीनः पुरुषः, न लभते तम् इष्टं लाभम्।।६।। Translated Sutra: (वास्तव में) जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वही निर्वाण प्राप्त करता है। सम्यग्दर्शन-विहीन पुरुष इच्छित लाभ नहीं कर पाता। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Hindi | 227 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा सलिलेन न लिप्यते, कमलिनीपत्रं स्वभावप्रकृत्या।
तथा भावेन न लिप्यते, कषायविषयैः सत्पुरुषः।।९।। Translated Sutra: जैसे कमलिनी का पत्र स्वभाव से ही जल से लिप्त नहीं होता, वैसे ही सत्पुरुष सम्यक्त्व के प्रभाव से कषाय और विषयों से लिप्त नहीं होता। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Hindi | 229 | View Detail | ||
Mool Sutra: सेवमानोऽपि न सेवते, असेवमानोऽपि सेवकः कश्चित्।
प्रकरणचेष्टा कस्यापि, न च प्राकरण इति स भवति।।११।। Translated Sutra: कोई तो विषयों का सेवन करते हुए भी सेवन नहीं करता और कोई सेवन न करते हुए भी विषयों का सेवन करता है। जैसे अतिथिरूप से आया कोई पुरुष विवाहादि कार्य में लगा रहने पर भी उस कार्य का स्वामी न होने से कर्ता नहीं होता। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 569 | View Detail | ||
Mool Sutra: धीरेणापि मर्त्तव्यं, कापुरुषेणाप्यवश्यमर्त्तव्यम्।
तस्मात् अवश्यमरणे, वरं खलु धीरत्वे मर्त्तुम्।।३।। Translated Sutra: निश्चय ही धैर्यवान् को भी मरना है और कापुरुष को भी मरना है। जब मरण अवश्यम्भावी है, तो फिर धीरतापूर्वक मरना ही उत्तम है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 571 | View Detail | ||
Mool Sutra: एकं पण्डितमरणं, प्रतिपद्यते सुपुरुषः असम्भ्रान्तः।
क्षिप्रं सः मरणानां, करिष्यति अन्तं अनन्तानाम्।।५।। Translated Sutra: असम्भ्रान्त (निर्भय) सत्पुरुष एक पण्डितमरण को प्राप्त होता है और शीघ्र ही अनन्त-मरण का--बार-बार के मरण का अन्त कर देता है। | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 95 | View Detail | ||
Mool Sutra: विश्वसनीयो मातेव, भवति पूज्यो गुरुरिव लोकस्य।
स्वजन इव सत्यवादी, पुरुषः सर्वस्य भवति प्रियः।।१४।। Translated Sutra: A person who speaks the truth becomes trustworthy like a mother, venerable like a preceptor to his people and dear to all others as their relatives. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 115 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा शीलरक्षकाणां, पुरुषाणां निन्दिता भवन्ति महिलाः।
तथा शीलरक्षकाणां, महिलानां निन्दिता भवन्ति पुरुषाः।।३४।। Translated Sutra: Just as women become censurable by men observing calibacy, similarly men become censurable by women observing celibacy. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१३. अप्रमादसूत्र | English | 161 | View Detail | ||
Mool Sutra: सीदन्ति स्वपताम्, अर्थाः पुरुषाणां लोकसारार्थाः।
तस्माज्जागरमाणा, विधूनयत पुराणकं कर्म।।२।। Translated Sutra: He who sleeps, his many excellent things of this world are lost unknowingly. Therefore, remain awake all the while and destroy the Karmas, accumulated in the past. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१६. मोक्षमार्गसूत्र | English | 201 | View Detail | ||
Mool Sutra: सौवर्णिकमपि निगलं, बध्नाति कालायसमपि यथा पुरुषम्।
बध्नात्येवं जीवं, शुभमशुभं वा कृतं कर्म।।१०।। Translated Sutra: Just as fetter whether made of iron or gold binds a person similarly Karma whether auspicious (punya) or inauspicious (Papa) binds the soul. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | English | 224 | View Detail | ||
Mool Sutra: दर्शनशुद्धः शुद्धः, दर्शनशुद्धः लभते निर्वाणम्।
दर्शनविहीनः पुरुषः, न लभते तम् इष्टं लाभम्।।६।। Translated Sutra: He who has Right Faith is certainly pure; he who is possessed of Right Faith attains liberation. A person devoid of Ritht Faith does not attain the desired result (i.e. liberation). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | English | 227 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा सलिलेन न लिप्यते, कमलिनीपत्रं स्वभावप्रकृत्या।
तथा भावेन न लिप्यते, कषायविषयैः सत्पुरुषः।।९।। Translated Sutra: Just as it is on account of its very nature that a lotusleaf remains untouched by water, similarly a righteous person remains really un-affected by passions and by the objects of sensiuous enjoyment. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२८. तपसूत्र | English | 472 | View Detail | ||
Mool Sutra: तस्मात् सर्वप्रयत्ने, विनीतत्वं मा कदाचित् छर्दयेत्।
अल्पश्रुतोऽपि च पुरुषः, क्षपयति कर्माणि विनयेन।।३४।। Translated Sutra: Therefore, one should not abandon humility at any cost. Even a person with less scriptural knowledge can annihilate his Karmas, if he has humility. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२९. ध्यानसूत्र | English | 494 | View Detail | ||
Mool Sutra: पुरुषाकार आत्मा, योगी वरज्ञानदर्शनसमग्रः।
यः ध्यायति सः योगी, पापहरः भवति निर्द्वन्द्वः।।११।। Translated Sutra: A yogin (monk) who meditates upon the soul in human form equipped with supreme knowledge and faith, is a (real) yogi; he puts an end to all his sins and becomes free from conflicting feelings of pain and pleasure. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३१. लेश्यासूत्र | English | 537 | View Detail | ||
Mool Sutra: पथिका ये षट् पुरुषाः, परिभ्रष्टा अरण्यमध्यदेशे।
फलभरितवृक्षमेकं, प्रेक्ष्य ते विचिन्तयन्ति।।७।। Translated Sutra: Six persons who are travellers miss their way in the midst of a forest. They see a tree laden with fruits and begin to think of getting those fruits: one of them suggests uprooting the entire tree and eating the fruits; the second one suggests cutting the trunk of the tree; the third one suggests cutting the branches; the fourth one suggests cutting the twigs; the fifth one suggests plucking the fruits only; the sixth one suggests picking up only the fruits that have fallen down. The thoughts, words and bodily activities of each of these six travellers related to eating fruits are mutually different and respectively illustrative of the six Lesyas. Refers 537-538 | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | English | 569 | View Detail | ||
Mool Sutra: धीरेणापि मर्त्तव्यं, कापुरुषेणाप्यवश्यमर्त्तव्यम्।
तस्मात् अवश्यमरणे, वरं खलु धीरत्वे मर्त्तुम्।।३।। Translated Sutra: The man possessed of a calm disposition must die, the man possessed of a cowardly disposition too must die; so when death is inevitable in any case, it is better to die possessed of a calm disposition. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | English | 571 | View Detail | ||
Mool Sutra: एकं पण्डितमरणं, प्रतिपद्यते सुपुरुषः असम्भ्रान्तः।
क्षिप्रं सः मरणानां, करिष्यति अन्तं अनन्तानाम्।।५।। Translated Sutra: A wise person who is free from anxiety dies a peaceful death once; by such death, he immediately puts an end to an infinite number of deaths. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३४. तत्त्वसूत्र | English | 588 | View Detail | ||
Mool Sutra: यावन्तोऽविद्यापुरुषाः, सर्वे ते दुःखसम्भवाः।
लुप्यन्ते बहुशो मूढाः, संसारेऽनन्तके।।१।। Translated Sutra: All persons who are ignorant suffer misery; most of those who are foolish will remain confounded in this endless mundane existence. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | English | 667 | View Detail | ||
Mool Sutra: पुरुषे पुरुषशब्दो, जन्मादि-मरणकालपर्यन्तः।
तस्य तु बालादिकाः, पर्यययोग्या बहुविकल्पाः।।८।। Translated Sutra: The individual remains the same person from his birth till the time of death, though he assumes the various states of childhood etc. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | English | 670 | View Detail | ||
Mool Sutra: पितृ-पुत्र-नातृ-भव्यक-भ्रातृणाम् एक पुरुषसम्बन्धः।
न च स एकस्य पिता इति शेषकाणां पिता भवति।।११।। Translated Sutra: One and the same person assumes the relationship of father, son, grandson, nephew and brother, but he is the father of one whose he is and not of the rest (so is the case with all the things). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३७. अनेकान्तसूत्र | English | 671 | View Detail | ||
Mool Sutra: सविकल्प-निर्विकल्पं इति पुरुषं यो भणेद् अविकल्पम्।
सविकल्पमेव वा निश्चयेन न स निश्चितः समये।।१२।। Translated Sutra: A person is certainly possessed of alternative relationships and aslo assumes single relationship. But one exclusively ascribes to this person either the former or the latter relationship, is certainly not wellversed in the scriptures. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
८. राग-परिहारसूत्र | Gujarati | 78 | View Detail | ||
Mool Sutra: एवं स्वसंकल्पविकल्पनासु, संजायते समतोपस्थितस्य।
अर्थांश्च संकल्पयतस्तस्य, प्रहीयते कामगुणेषु तृष्णा।।८।। Translated Sutra: સમતામાં સ્થિત પુરુષના સંકલ્પ-વિકલ્પોનો નાશ થાય છે અને જે પદાર્થોનો સંકલ્પ તેને થાય છે તેમાં પણ વિષયસંબંધી તૃષ્ણા વધુને વધુ ક્ષીણ થતી જાય છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | Gujarati | 95 | View Detail | ||
Mool Sutra: विश्वसनीयो मातेव, भवति पूज्यो गुरुरिव लोकस्य।
स्वजन इव सत्यवादी, पुरुषः सर्वस्य भवति प्रियः।।१४।। Translated Sutra: સત્યભાષી વ્યક્તિ, માતાની જેમ વિશ્વાસપાત્ર, ગુરુની જેમ પૂજ્ય અને સ્વજનની જેમ સૌને પ્રિય બને છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | Gujarati | 115 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा शीलरक्षकाणां, पुरुषाणां निन्दिता भवन्ति महिलाः।
तथा शीलरक्षकाणां, महिलानां निन्दिता भवन्ति पुरुषाः।।३४।। Translated Sutra: શીલના રક્ષણમાં સાવધાન રહેવા માટે પુરુષની સામે જેમ સ્ત્રીઓને નિંદનીય રૂપે વર્ણવામાં આવે છે, તેવી જ રીતે શીલધારક સ્ત્રીઓ માટે પુરુષો પણ એટલા જ નિંદનીય સમજી લેવા જોઈએ. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | Gujarati | 117 | View Detail | ||
Mool Sutra: त्रैलोक्याटविदहनः, कामाग्निर्विषयवृक्षप्रज्वलितः।
यौवनतृणसंचरणचतुरः, यं न दहति स भवति धन्यः।।३६।। Translated Sutra: કામાગ્નિ વિષયરૂપી વૃક્ષમાંથી પ્રગટે છે, યૌવનરૂપી ઘાસ એનો ચારો છે; ત્રણ લોકરૂપી વનને બાળવાની શક્તિ ધરાવતો એ અગ્નિ જેને બાળતો નથી તે પુરુષને (અને તે નારીને) ધન્ય છે! | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | Gujarati | 137 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा कूर्मः स्वअङ्गानि, स्वके देहे समाहरेत्।
एवं पापानि मेधावी, अध्यात्मना समाहरेत्।।१६।। Translated Sutra: કાચબો પોતાના અંગોને પોતાની અંદર લઈ લે છે એમ વિચારશીલ પુરુષ આત્મલક્ષ્ય વડે (અધ્યાત્મ દ્વારા) પાપોનું સંવરણ કરે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
११. अपरिग्रहसूत्र | Gujarati | 143 | View Detail | ||
Mool Sutra: मिथ्यात्ववेदरागाः, तथैव हासादिकाः च षड्दोषाः।
चत्वारस्तथा कषायाः, चतुर्दश अभ्यन्तराः ग्रन्थाः।।४।। Translated Sutra: મિથ્યાત્વ, સ્ત્રીભાવ, પુરુષભાવ, નપુંસકભાવ, હાસ્ય, રતિ(ખુશી), અરતિ(કંટાળો), શોક, ભય, જુગુપ્સા, ક્રોધ, માન, માયા અને લોભ - આ ચૌદ પ્રકારનો અભ્યંતર પરિગ્રહ છે. ખેતર, મકાન, ધન, ધાન્ય, વસ્ત્ર, વાસણ, નોકર-ચાકર, પશુ, વાહન, બિછાનાં અને ખુરશી-પલંગ-રાચ-રચી સંદર્ભ ૧૪૩-૧૪૪ | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१३. अप्रमादसूत्र | Gujarati | 161 | View Detail | ||
Mool Sutra: सीदन्ति स्वपताम्, अर्थाः पुरुषाणां लोकसारार्थाः।
तस्माज्जागरमाणा, विधूनयत पुराणकं कर्म।।२।। Translated Sutra: જગતમાં સારભૂત એવા જ્ઞાનાદિ પદાર્થોને સૂઈ રહેનારો આત્મા ખોઈ નાખે છે. માટે જાગૃત રહીને પુરાણાં કર્મોને ખંખેરતા રહો. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१३. अप्रमादसूत्र | Gujarati | 165 | View Detail | ||
Mool Sutra: न कर्मणा कर्म क्षपयन्ति बाला, अकर्मणा कर्म क्षपयन्ति धीराः।
मेधाविनो लोभमदाद् व्यतीताः, सन्तोषिणो नो प्रकुर्वन्ति पापम्।।६।। Translated Sutra: બાળજીવો કર્મ (પ્રવૃત્તિ) દ્વારા કર્મને ક્ષય કરવા ઈચ્છે છે, પણ તેમ થતું નથી. જ્ઞાનીજનો અકર્મ (નિવૃત્તિ) દ્વારા કર્મોનો ક્ષય કરે છે. લોભ અને ભયથી મુક્ત અને સંતોષી એવા મેધાવી પુરુષો પાપથી બચે છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१५. आत्मसूत्र | Gujarati | 183 | View Detail | ||
Mool Sutra: वर्णरसगन्धस्पर्शाः, स्त्रीपुंनपुंसकादि-पर्यायाः।
संस्थानानि संहननानि, सर्वे जीवस्य नो सन्ति।।७।। Translated Sutra: વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ, સ્ત્રીત્વ, પુરુષત્વ, નપુંસકત્વ, સંસ્થાન, સંઘયણ-શુદ્ધ આત્મામાં આ બધું નથી. (સંસ્થાન=શરીરના આકાર. સંહનન=શરીરનું બંધારણ.) | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१६. मोक्षमार्गसूत्र | Gujarati | 201 | View Detail | ||
Mool Sutra: सौवर्णिकमपि निगलं, बध्नाति कालायसमपि यथा पुरुषम्।
बध्नात्येवं जीवं, शुभमशुभं वा कृतं कर्म।।१०।। Translated Sutra: લોઢાની સાંકળ માણસને બાંધે છે તો સોનાની સાંકળ પણ બાંધે છે જ. એ જ રીતે શુભ કે અશુભ જે કર્મ કરાય તે જીવને બાંધનારું જ બને છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Gujarati | 224 | View Detail | ||
Mool Sutra: दर्शनशुद्धः शुद्धः, दर्शनशुद्धः लभते निर्वाणम्।
दर्शनविहीनः पुरुषः, न लभते तम् इष्टं लाभम्।।६।। Translated Sutra: જેનું દર્શન શુદ્ધ છે તે શુદ્ધ છે, તે નિર્વાણ પામશે. સમ્યગ્દર્શનરહિત વ્યક્તિ પોતાના ઈષ્ટને-મોક્ષને પ્રાપ્ત કરી શકતી નથી. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Gujarati | 226 | View Detail | ||
Mool Sutra: किं बहुना भणितेन, ये सिद्धाः नरवराः गते काले।
सेत्स्यन्ति येऽपि भव्याः, तद् जानीत सम्यक्त्वमाहात्म्यम्।।८।। Translated Sutra: વધારે શું કહેવું? ભૂતકાળમાં અનેક મહાપુરુષો મુક્ત થયા છે ને ભવિષ્યમાં મુક્ત થશે તે બધો સમ્યક્ત્વનો પ્રભાવ છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Gujarati | 227 | View Detail | ||
Mool Sutra: यथा सलिलेन न लिप्यते, कमलिनीपत्रं स्वभावप्रकृत्या।
तथा भावेन न लिप्यते, कषायविषयैः सत्पुरुषः।।९।। Translated Sutra: કમલનું પાંદડું સ્વભાવથી જ પાણીથી અલિપ્ત રહે છે તેમ સત્પુરુષ સમ્યગ્દર્શનના પ્રભાવે કષાય અને વિષયથી અલિપ્ત રહે છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Gujarati | 244 | View Detail | ||
Mool Sutra: प्रावचनी धर्मकथी, वादी नैमित्तिकः तपस्वी च।
विद्यावान् सिद्धश्च कविः, अष्टौ प्रभावकाः कथिताः।।२६।। Translated Sutra: પ્રભાવશાળી વક્તા, કથાકાર, તત્ત્વજ્ઞાની, નૈમિત્તિક (ભવિષ્યવેત્તા), તપસ્વી, વિદ્યાધર, સિદ્ધયોગી, કવિ-આ આઠ પ્રકારના વિશિષ્ટ શક્તિશાળી પુરુષો લોકોમાં ધર્મમાર્ગનો પ્રભાવ વિશેષરૂપે ફેલાવી શકે છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
१९. सम्यग्ज्ञानसूत्र | Gujarati | 260 | View Detail | ||
Mool Sutra: यो जानात्यर्हन्तं, द्रव्यत्वगुणत्वपर्ययत्वैः।
स जानात्यात्मानं, मोहः खलु याति तस्य लयम्।।१६।। Translated Sutra: દ્રવ્ય-ગુણ-પર્યાય વડે અર્હંતોને જે જાણે છે તે પોતાના આત્માને પણ જાણે છે. એ પુરુષનો મોહ વિલય પામે છે. |