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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा |
Gujarati | 1527 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो चउवीसाए तित्थंकराणं, ॐ नमो तित्थस्स, ॐ नमो सुयदेवयाए भगवईए, ॐ नमो सुयकेव-लीणं ॐ नमो सव्वसाहूणं ॐ नमो [सव्वसिद्धाणं] ॐ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवई महइ महाविज्जा व् इ इ र् ए म ह् अ अ व् इ इ र् ए, ज य द् इ इ र् ए स् ए न व् इ इ र् ए वद्ध म् अ अ ण् अ व् इ इ र् ए ज य् अ इ त् ए अ प् अ र् अ अ ज् इ ए स् व् अ अ ह् अ अ
[वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जयइ ते अपराजिए स्वाहा]
उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विज्जा सव्वगओ ण् इ त्थ् अ अ र ग प् अ अ र ग् अ ओ होइ उवट्ठ् अ अ व ण् अ अ गणस्स वा अ ण् उ ण् ण् आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा [नित्थारगो पारगो होइ]
जे णं कप्पसमत्तीए Translated Sutra: આ સૂત્રમાં ‘વર્ધમાન વિદ્યા’ આપેલી છે. તેથી તેની ગુર્જર છાયા આપી નથી. જિજ્ઞાસુઓએ અમારું ‘આગમસુત્તાણિ ભાગ – ૩૯, મહાનિસીહં નું પૃષ્ઠ ૧૪૨ – ૧૪૩ જોવું. | |||||||||
Mahapratyakhyan | महाप्रत्याख्यान | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Hindi | 60 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसू देवुत्तरकुरवसंपसूएसु ।
उववाए ण य तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसु ॥ Translated Sutra: देवकुरु, उत्तरकुरु में उत्पन्न होनेवाले कल्पवृक्ष से मिले सुख से और मानव, विद्याधर और देव के लिए उत्पन्न हुए सुख द्वारा यह जीव तृप्त न हो सका। | |||||||||
Mahapratyakhyan | મહાપ્રત્યાખ્યાન | Ardha-Magadhi |
विविधं धर्मोपदेशादि |
Gujarati | 60 | Gatha | Painna-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसू देवुत्तरकुरवसंपसूएसु ।
उववाए ण य तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૮ | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 25 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जे कंस-संख-ताडण-मारुय-जिय-गगन-पंकय-तरूणं ।
सरिकप्पा, सुयकप्पियआहार-विहार-गगन-पंकय-तरूणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 38 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जोएसु किलायंता सरीरसंकप्प वोढुमचयंता ।
अविकंथऽवज्जभीरू उवेंति अब्भुज्जयं मरणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 79 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ विसेसो भण्णइ, छलणा अवि नाम होज्ज जिनकप्पे ।
किं पुण इयरमुणीणं? तेण विही देसिओ इणमो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 85 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वयछक्क ६ कायछक्कं १२ बारसगं तह अकप्प १३ गिहिभाणं १४ ।
पलियंक १५ गिहिनिसेज्जा १६ ससोभ १७ पलिमज्जणसिणाणं १८ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 93 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तेसिं मेरु-महोयहि-मेयणि-ससि-सूरसरिसकप्पाणं ।
पामूले य विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 251 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुयसंपसूएसुं ।
परिभोगेण न तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसुं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 333 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाऽकप्पविहन्नू दुवालसंगसुयसारही सव्वं ।
छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविसारया धीरा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 347 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] आगरसमुट्ठियं तह अझुसिरवाग-तण-पत्त-कडए य ।
कट्ठ-सिला-फलगम्मि व अणभिज्जिय निप्पकप्पम्मि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 355 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] इहलोए परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य ।
वासी-चंदनकप्पो समो य मानाऽवमानेसु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 520 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमम्मि कप्पम्मि ।
सिरितिलयम्मि विमाने उक्कोसठिई सुरो जाओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 657 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जे कडुयदुमुप्पन्ना कीडा वरकप्पपायवपरोक्खा ।
तेसिं विसालवल्लीविसं व सग्गो य मोक्खो य ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Hindi | 658 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुरविमूढदिट्ठीया ।
जिनसासनकप्पतरुवरपारोक्खरसा किलिस्संति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 25 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जे कंस-संख-ताडण-मारुय-जिय-गगन-पंकय-तरूणं ।
सरिकप्पा, सुयकप्पियआहार-विहार-गगन-पंकय-तरूणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 38 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जोएसु किलायंता सरीरसंकप्प वोढुमचयंता ।
अविकंथऽवज्जभीरू उवेंति अब्भुज्जयं मरणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 79 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ विसेसो भण्णइ, छलणा अवि नाम होज्ज जिनकप्पे ।
किं पुण इयरमुणीणं? तेण विही देसिओ इणमो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 85 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वयछक्क ६ कायछक्कं १२ बारसगं तह अकप्प १३ गिहिभाणं १४ ।
पलियंक १५ गिहिनिसेज्जा १६ ससोभ १७ पलिमज्जणसिणाणं १८ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 93 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तेसिं मेरु-महोयहि-मेयणि-ससि-सूरसरिसकप्पाणं ।
पामूले य विसोही करणिज्जा सुविहियजणेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 251 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुयसंपसूएसुं ।
परिभोगेण न तित्तो, न य नर-विज्जाहर-सुरेसुं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 333 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाऽकप्पविहन्नू दुवालसंगसुयसारही सव्वं ।
छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविसारया धीरा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 347 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] आगरसमुट्ठियं तह अझुसिरवाग-तण-पत्त-कडए य ।
कट्ठ-सिला-फलगम्मि व अणभिज्जिय निप्पकप्पम्मि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 355 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] इहलोए परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य ।
वासी-चंदनकप्पो समो य मानाऽवमानेसु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 520 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमम्मि कप्पम्मि ।
सिरितिलयम्मि विमाने उक्कोसठिई सुरो जाओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 657 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जे कडुयदुमुप्पन्ना कीडा वरकप्पपायवपरोक्खा ।
तेसिं विसालवल्लीविसं व सग्गो य मोक्खो य ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 658 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुरविमूढदिट्ठीया ।
जिनसासनकप्पतरुवरपारोक्खरसा किलिस्संति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 16 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विनय-नय-पवर-मुनिवर-फुरंत-विज्जु-ज्जलंत-सिहरस्स ।
विविहगुण-कप्परुक्खग-फलभर-कुसुमाउल-वनस्स ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १२ | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 135 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मिच्छसुयं?
मिच्छसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
१ भारहं २ रामायणं ३-४ हंभीमासुरुत्तं ५ कोडिल्लयं ६ सगभद्दियाओ ७ घोडमुहं ८ कप्पासियं ९ नागसुहुमं १० कणगसत्तरी ११ वइसेसियं १२ बुद्धवयणं १३ वेसियं १४ काविलं १५ लोगाययं १६ सट्ठितंतं १७ माढरं १८ पुराणं १९ वागरणं २० नाडगादि।
अहवा– बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेया संगोवंगा। एयाइं मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्त-परिग्ग-हियाइं मिच्छसुयं। एयाइं चेव सम्म-दिट्ठिस्स सम्मत्त-परिग्गहियाइं सम्मसुयं।
अहवा–मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं। कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ। जम्हा ते Translated Sutra: – मिथ्याश्रुत का स्वरूप क्या है ? मिथ्याश्रुत अज्ञानी एवं मिथ्यादृष्टियों द्वारा स्वच्छंद और विपरीत बुद्धि द्वारा कल्पित किये हुए ग्रन्थ हैं, यथा – भारत, रामायण, भीमासुरोक्त, कौटिल्य, शकटभद्रिका, घोटकमुख, कार्पासिक, नाग – सूक्ष्म, कनकसप्तति, वैशेषिक, बुद्धवचन, त्रैराशिक, कापिलीय, लोकायत, षष्टितंत्र, माठर, | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Hindi | 166 | Gatha | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अणुन्ना उण्णमणी नमणी नामणी ठवणा पभवो पभावण पयारो ।
तदुभय हिय मज्जाया, नाओ मग्गो य कप्पो य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २ | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Hindi | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: ज्ञान के पाँच भेद हैं – आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल। उसमें चार ज्ञानों की स्थापना, उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा नहीं है। श्रुतज्ञान के उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा के अनुयोग प्रवर्तमान है। यदि श्रुतज्ञान का उद्देश आदि है तो वह अंगप्रविष्ट के हैं या अंगबाह्य के ? दोनों के उद्देश आदि होते हैं। जो | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 16 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विनय-नय-पवर-मुनिवर-फुरंत-विज्जु-ज्जलंत-सिहरस्स ।
विविहगुण-कप्परुक्खग-फलभर-कुसुमाउल-वनस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Gujarati | 166 | Gatha | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अणुन्ना उण्णमणी नमणी नामणी ठवणा पभवो पभावण पयारो ।
तदुभय हिय मज्जाया, नाओ मग्गो य कप्पो य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 135 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मिच्छसुयं?
मिच्छसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठिहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
१ भारहं २ रामायणं ३-४ हंभीमासुरुत्तं ५ कोडिल्लयं ६ सगभद्दियाओ ७ घोडमुहं ८ कप्पासियं ९ नागसुहुमं १० कणगसत्तरी ११ वइसेसियं १२ बुद्धवयणं १३ वेसियं १४ काविलं १५ लोगाययं १६ सट्ठितंतं १७ माढरं १८ पुराणं १९ वागरणं २० नाडगादि।
अहवा– बावत्तरिकलाओ चत्तारि य वेया संगोवंगा। एयाइं मिच्छदिट्ठिस्स मिच्छत्त-परिग्ग-हियाइं मिच्छसुयं। एयाइं चेव सम्म-दिट्ठिस्स सम्मत्त-परिग्गहियाइं सम्मसुयं।
अहवा–मिच्छदिट्ठिस्स वि एयाइं चेव सम्मसुयं। कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ। जम्हा ते Translated Sutra: મિથ્યાશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? અજ્ઞાની અને મિથ્યાદૃષ્ટિઓ દ્વારા સ્વચ્છંદ અને વિપરીત બુદ્ધિ વડે કલ્પિત કરેલ ગ્રંથ મિથ્યાશ્રુત છે, જેમ કે – ૧. મહાભારત ૨. રામાયણ ૩. ભીમાસુરોક્ત ૪. કૌટિલ્ય ૫. શકટભદ્રિકા ૬. ઘોટક મુખ ૭. કાર્પાસિક ૮. નાગ – સૂક્ષ્મ ૯. કનકસપ્તતિ ૧૦. વૈશેષિક ૧૧. બુદ્ધવચન ૧૨. ત્રેરાશિક ૧૩. કાપિલીય ૧૪. લોકાયત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: [૧] ગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દૃષ્ટિવાદ બારમું અંગ સૂત્ર એ ગમિકશ્રુત છે. અગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગમિકથી ભિન્ન આચારાંગ આદિ કાલિકશ્રુતને અગમિકશ્રુત કહેવાય છે. આ પ્રમાણે ગમિક અને અગમિક શ્રુતનું વર્ણન છે. [૨] અથવા શ્રુત સંક્ષેપમાં બે પ્રકારનું કહ્યું છે – ૧. અંગ પ્રવિષ્ટ ૨. અંગ બાહ્ય. અંગબાહ્ય શ્રુત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं २-जोगनंदी |
Gujarati | 168 | Sutra | Chulika-01b | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणं पंचविहं पन्नत्तं, तं जहा–आभिनिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मनपज्जवनाणं केवलनाणं।
तत्थ णं चत्तारि नाणाइं ठप्पाइं ठवणिज्जाइं, नो उद्दिस्संति नो समुद्दिस्संति नो अणुण्ण-विज्जंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ।
जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अणुओगो य पवत्तइ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगे य पवत्तइ? गोयमा! अंगपविट्ठस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ, अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुन्ना अनुओगो य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं Translated Sutra: જ્ઞાન પાંચ પ્રકારે છે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુત જ્ઞાન, અવધિ જ્ઞાન, મન:પર્યવ જ્ઞાન અને કેવલ જ્ઞાન. તેમાં ચાર જ્ઞાનોની સ્થાપના કરી. તેનો ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞા નથી. શ્રુતજ્ઞાનના ઉદ્દેશ, સમુદ્દેશ અને અનુજ્ઞાનો અનુયોગ પ્રવર્તે છે. જો શ્રુતજ્ઞાનનો ઉદ્દેશ આદિ છે, તો તે અંગ પ્રવિષ્ટનો છે કે અંગ બાહ્યનો ? બંનેના | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भगवं जंबू जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उवंगाणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता, तं जहा–नियरावलियाओ कप्पवडिंसियाओ पुप्फियाओ पुप्फचूलियाओ वण्हिदसाओ।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता, तं जहा–निरयावलियाओ जाव वण्हिदसाओ।
पढमस्स णं भंते! वग्गस्स उवंगाणं नियरावलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स Translated Sutra: उस समय जम्बूस्वामी को श्रद्धा – संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पर्युपासना करते हुए उन्होंने कहा ‘भदन्त ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त – भगवान् महावीर ने उपांगो का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उपांगों के पाँच वर्ग कहे हैं। निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा। | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 7 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु ममं पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मनुयकोडीहिं गरुलव्वूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए– से मन्ने किं जइस्सइ? नो जइस्सइ? जीविस्सइ? पराजिणिस्सइ? नो पराजिणिस्सइ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासिज्जा? ओहयमन संकप्पा करयलपल्हत्थ- मुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयनकमला दीनविवन्नवयणा झियाइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा Translated Sutra: तब एक बार अपने कुटुम्ब – परिवार की स्थिति पर विचार करते हुए काली देवी के मन में इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘मेरा पुत्रकुमार काल ३००० हाथियों आदि को लेकर यावत् रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ है। तो क्या वह विजय प्राप्त करेगा अथवा नहीं ? वह जीवित रहेगा अथवा नहीं ? शत्रु को पराजित करेगा या नहीं ? क्या मैं | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– काले णं भंते! कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगामं संगामेमाणे चेडएणं रन्ना एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी– एवं खलु गोयमा! काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव रहमुसलं संगामं संगामेमाणे चेडएणं रन्ना एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोविए समाणे कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमाभे नरगे दससागरोवम-ट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने। Translated Sutra: भगवान गौतम, श्रमण भगवान महावीर के समीप आए और वंदन – नमस्कार करके अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा – भगवन् ! जो काल कुमार रथमूसल संग्राम करते हुए चेटक राजा के एक ही आघात – से रक्तरंजित हो, जीवनरहित – होकर मृत्यु को प्राप्त करके कहाँ गया है ? कहाँ उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने गौतमस्वामी से कहा – ‘गौतम ! युद्धप्रवृत्त | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 9 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] काले णं भंते! कुमारे केरिसएहिं आरंभेहि केरिसएहिं आरंभसमारंभेहिं केरिसएहिं भोगेहिं केरिसएहिं भोगसंभोगेहिं केरिसेण वा असुभकडकम्मपब्भारेणं कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए जाव नेरइयत्ताए उववण्णे?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धे।
तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे।
तस्स णं सेणियस्स रन्नो नंदा नामं देवी होत्था–सूमालपाणिपाया जाव विहरइ।
तस्स णं सेणियस्स रन्नो पुत्ते नंदाए देवीए अत्तए अभए नामं कुमारे होत्था–सूमालपाणिपाए जाव सुरूवे, साम-दंड-भेय-उवप्पयाण-अत्थसत्थ-ईहामइ-विसारए Translated Sutra: गौतम ने पुनः पूछा – भदन्त ! किस प्रकार के भोग – संभोगों को भोगने से, कैसे – कैसे आरम्भों और आरम्भ – समारंभों से तथा कैसे आचारित अशुभ कर्मों के भार से मरण करके वह काल कुमार चौथी पंकप्रभापृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ? भगवान् ने बताया – गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वह नगर वैभव से सम्पन्न, | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं सेणियस्स रन्नो उयरवलिमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विणेंति।
तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा Translated Sutra: तत्पश्चात् परिपूर्ण तीन मास बीतने पर चेलना देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं यावत् वे पुण्यशालिनी हैं, उन्होंने पूर्व में पुण्य उपार्जित किया है, उनका वैभव सफल है, मानवजन्म और जीवन का, सुफल प्राप्त किया है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मांस का तथा सूरा | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाइं खाइयाइं, तं सेयं खलु मे एयं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं गब्भं बहूहिं गब्भसाडणेहि य गब्भपाडणेहि य गब्भगालणेहि य गब्भविद्धंसणेहि य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धंसइ वा।
तए णं सा चेल्लणा देवी तं गब्भं जाहे नो संचाएइ बहूहिं गब्भसाडणेहि य जाव Translated Sutra: कुछ समय व्यतीत होने के बाद एक बार चेलना देवी को मध्य रात्रिमें जागते हुए इस प्रकार का यह यावत् विचार उत्पन्न हुआ – ‘इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावली का मांस खाया है, अतएव इस गर्भ को नष्ट कर देना, गिरा देना, गला देना एवं विध्वस्त कर देना ही मेरे लिए श्रेयस्कर होगा,’ उसने ऐसा निश्चय करके बहुत सी गर्भ को | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा चेल्लणा देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण राइंदियाणं वीइक्कंताणं सूमालं सुरूवं दारगं पयाया।
तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाइं खाइयाइं, तं न नज्जइ णं एस दारए संवड्ढमाणे अम्हं कुलस्स अंतकरे भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झावित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी – गच्छ णं तुमं देवानुप्पिए! एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि।
तए णं सा दासचेडी चेल्लणाए देवीए एवं Translated Sutra: तत्पश्चात् नौ मास पूर्ण होने पर चेलना देवी ने एक सुकुमार एवं रूपवान् बालक का प्रसव किया – पश्चात् चेलना देवी को विचार आया – ‘यदि इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावली का मांस खाया है, तो हो सकता है कि यह बालक संवर्धित होने पर हमारे कुल का भी अंत करनेवाला हो जाय ! अतएव इस बालक को एकान्त उकरड़े में फेंक देना | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्ता वरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं सेणियस्स रन्नो वाघाएणं नो संचाएमि सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तं सेयं खलु मम सेणियं रायं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तएत्तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता सेणियस्स रन्नो अंतराणि य छिद्दाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ।
तए णं से कूणिए कुमारे सेणियस्स रन्नो अंतरं वा छिद्दं वा विरहं वा मम्मं वा अलभमाणे अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता Translated Sutra: तत्पश्चात् उस कुमार कूणिक को किसी समय मध्यरात्रिमें यावत् ऐसा विचार आया कि श्रेणिक राजा के विघ्न के कारण मैं स्वयं राज्यशासन और राज्यवैभव का उपभोग नहीं कर पाता हूँ, अतएव श्रेणिक राजा को बेड़ी में डाल देना और महान् राज्याभिषेक से अपना अभिषेक कर लेना मेरे लिए श्रेयस्कर होगा। उसने इस प्रकार का संकल्प किया | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता चेल्लणाए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता चेल्लणं देविं एवं वयासी–
किं णं अम्मो! तुम्हं न तुट्ठी वा न ऊसए वा न हरिसे वा न आणंदे वा, जं णं अहं सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरामि?
तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं रायं एवं वयासी–कहं णं पुत्ता! ममं तुट्ठी वा ऊसए वा हरिसे वा आणंदे वा भविस्सइ? जं णं तुमं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणं अच्चंतनेहानुरागरत्तं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेणं अभिसिंचावेसि?
तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं एवं वयासी–घाएउकामे णं अम्मो! ममं सेणिए राया, Translated Sutra: किसी दिन कूणिक राजा स्नान कर के, बलिकर्म कर के, विघ्नविनाशक उपाय कर, मंगल एवं प्रायश्चित्त कर और फिर अवसर के अनुकूल शुद्ध मांगलिक वस्त्रों को पहनकर, सर्व अलंकारों से अलंकृत होकर चेलना देवी के चरणवंदनार्थ पहुँचा। उस समय कूणिक राजा ने चेलना देवी को उदासीन यावत् चिन्ताग्रस्त देखा। चेलना देवी से पूछा – माता | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणियस्स रन्नो सहोयरे कनीयसे भाया वेहल्ले नामं कुमारे होत्था– सूमाले जाव सुरूवे।
तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएणं रन्ना जीवंतएणं चेव सेयनए गंधहत्थी अट्ठारसवंके हारे य पुव्वदिन्ने।
तए णं से वेहल्ले कुमारे सेयनएणं गंधहत्थिणा अंतेउरपरियालसंपरिवुडे चंपं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अभिक्खणं-अभिक्खणं गंगं महानइं मज्जणयं ओयरइ। तए णं सेयनए गंधहत्थी देवीओ सोंडाए गिण्हइ, गिण्हित्ता अप्पेगयाओ पट्ठे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, अप्पेगइयाओ कुंभे ठवेइ, अप्पेगइयाओ सीसे ठवेइ, अप्पेगइयाओ Translated Sutra: उस चंपानगरीमें श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज कूणिक राजा का कनिष्ठ सहोदर भ्राता वेहल्ल राजकुमार था। वह सुकुमार यावत् रूप – सौन्दर्यशाली था। अपने जीवित रहते श्रेणिक राजा ने पहले ही वेहल्लकुमार को सेचनक नामक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। वेहल्लकुमार अन्तःपुर परिवार के साथ सेचनक गंधहस्ती | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत् दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 4 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भगवं जंबू जायसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उवंगाणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता, तं जहा–नियरावलियाओ कप्पवडिंसियाओ पुप्फियाओ पुप्फचूलियाओ वण्हिदसाओ।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता, तं जहा–निरयावलियाओ जाव वण्हिदसाओ।
पढमस्स णं भंते! वग्गस्स उवंगाणं नियरावलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पन्नत्ता?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स Translated Sutra: ત્યારે તે જંબૂસ્વામી જાતશ્રદ્ધ થઈ યાવત્ પર્યુપાસના કરતા આમ કહે છે કે – ભગવન્ ! શ્રમણ યાવત્ સંપ્રાપ્તે ઉપાંગોનો શો અર્થ કહેલો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ ! શ્રમણ ભગવંતે યાવત્ એ પ્રમાણે ઉપાંગોના પાંચ વર્ગો કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – નિરયાવલિકા, કલ્પવતંસિકા, પુષ્પિકા, પુષ્પચૂલિકા અને વૃષ્ણિદશા. ભગવન્ ! જો શ્રમણ ભગવંત | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 7 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु ममं पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मनुयकोडीहिं गरुलव्वूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए– से मन्ने किं जइस्सइ? नो जइस्सइ? जीविस्सइ? पराजिणिस्सइ? नो पराजिणिस्सइ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासिज्जा? ओहयमन संकप्पा करयलपल्हत्थ- मुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयनकमला दीनविवन्नवयणा झियाइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा Translated Sutra: ત્યારપછી તે કાલીદેવીને અન્ય કોઈ દિવસે કુટુંબ જાગરિકા કરતા આવો આધ્યાત્મિક યાવત્ સંકલ્પ ઉત્પન્ન થયો. નિશ્ચે મારો પુત્ર કાલકુમાર ૩૦૦૦ હાથી આદિ સાથે યુદ્ધે ચડેલ છે. તો શું તે જીતશે કે નહીં જીતે ? જીવશે કે નહીં જીવે ? બીજાનો પરાભવ કરશે કે નહીં કરે ? કાલકુમારને હું જીવતો જોઈશ ? એ રીતે અપહત મનવાળા થઈને યાવત્ ચિંતામગ્ન |