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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Gujarati 396 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य। पढमसमयनेरइया णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा!

Translated Sutra: અથવા સર્વજીવો નવ ભેદે કહ્યા. તે આ – પ્રથમ સમય નૈરયિક, અપ્રથમ સમય નૈરયિક, પ્રથમ સમય તિર્યંચયોનિક, અપ્રથમ સમય તિર્યંચયોનિક, પ્રથમ સમય મનુષ્ય, અપ્રથમ સમય મનુષ્ય, પ્રથમ સમય દેવ, અપ્રથમ સમય દેવ અને સિદ્ધ. ભગવન્‌ ! પ્રથમ સમય નૈરયિક, તે જ રૂપે કેટલો સમય રહે ? ગૌતમ ! એક સમય. અપ્રથમ સમય નૈરયિકની કાયસ્થિતિ જઘન્ય સમય ન્યૂન ૧૦,૦૦૦
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Gujarati 397 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया। पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउकाइए। वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं। बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं

Translated Sutra: તેમાં જેઓ દશ ભેદે સર્વ જીવો કહે છે, તે આ પ્રમાણે કહે છે – પૃથ્વી૦ અપ્‌૦ તેઉ૦ વાયુ૦ વનસ્પતિકાયિક, બે – ત્રણ – ચાર – પાંચ ઇન્દ્રિય, અનિન્દ્રિય. ભગવન્‌ ! પૃથ્વીકાયિક, તે રૂપે કેટલો કાળ રહે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ અસંખ્યાતકાળ – અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણી અવસર્પિણી કાળથી, ક્ષેત્રથી અસંખ્યાત લોક. એ પ્રમાણે
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Gujarati 398 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमनूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा। पढमसमयनेरइए णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ

Translated Sutra: અથવા સર્વે જીવો દશ ભેદે કહ્યા છે તે આ – પ્રથમ સમય નૈરયિક, અપ્રથમ સમય નૈરયિક, પ્રથમ સમય તિર્યંચ – યોનિક, અપ્રથમ સમય તિર્યંચયોનિક, પ્રથમ સમય મનુષ્ય, અપ્રથમ સમય મનુષ્ય, પ્રથમ સમય દેવ, અપ્રથમ સમય દેવ, પ્રથમ સમય સિદ્ધ અને અપ્રથમ સમય સિદ્ધ એ દશ. ભગવન્‌ ! પ્રથમ સમય નૈરયિક, તે જ રૂપે કેટલો કાળ રહે છે ? ગૌતમ ! એક સમય. અપ્રથમ સમય
Kalpavatansika કલ્પાવતંસિકા Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ महापद्म

Gujarati 2 Sutra Upang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा कूणियस्स रन्नो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था। तीसे णं सुकालीए पुत्ते सुकालं नामं कुमारे। तस्स णं सुकालस्स कुमारस्स महापउमा नामं देवी होत्था–सूमाला। तए णं सा महापउमा देवी अन्नया कयाइं तंसि तारिसगंसि एवं तहेव महापउमे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨. ભગવન્‌ ! ભગવંત મહાવીરે પહેલાં અધ્યયનનો ઉક્ત અર્થ કહ્યો, તો બીજાનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે ચંપા નામે નગરી, પૂર્ણભદ્ર નામે ચૈત્ય હતું, કોણિક નામે રાજા હતો, તેને પદ્માવતી નામે રાણી હતી. ત્યાં શ્રેણિક રાજાની પત્ની, કોણિક રાજાની લઘુમાતા સુકાલી નામે રાણી પણ હતી. તેણીને સુકાલ નામે પુત્ર હતો.
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 40 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं पयासयं सोहओ, तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे गोयम मोक्खो न अन्नहा उ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३८
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 76 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निप्परिकम्मे अकंडुयणे अनिमिसच्छी य केवली। एग-पासित्त दो पहरे मूणव्वय-केवली तहा॥

Translated Sutra: शरीर की मलिनता साफ करने समान निष्पत्तिकर्म करते हुए, न खुजलानेवाले, आँख की पलक भी न झपकाते केवली बने, दो प्रहर तक एक बगल में रहकर, मौनव्रत धारण करके भी केवली बने, ‘‘साधुपन पालने के लिए मैं समर्थ नहीं हूँ इसलिए अनशन में रहूँ’’ ऐसा करते हुए केवली बने, नवकार गिनते हुए केवली बने, ‘‘मैं धन्य हूँ कि मैंने ऐसा शासन पाया,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Hindi 130 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जेणागच्छति पच्छित्तं, वाया मनसा य कम्मुणा। पुढवि-दगागनि-वाऊ-हरिय-कायं तहेव य॥

Translated Sutra: जिसे करने से प्रायश्चित्त हो वैसे मन, वचन, काया के कार्य, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पतिकाय और बीजकाय का समारम्भ, दो – तीन, चार – पाँच इन्द्रियवाले जीव का समारम्भ यानि हत्या नहीं करूँगी, झूठ नहीं बोलूंगी, धूल और भस्म भी न दिए हुए ग्रहण नहीं करूँगी, सपने में भी मन से मैथुन की प्रार्थना नहीं करूँगी, परिग्रह नहीं
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 737 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य संणिहि-उक्खड-आहड-मादीण नाम-गहणे वि। पूई-कम्माभीए आउत्ता कप्प तिप्पंति॥

Translated Sutra: जिस गच्छ में रूप सन्निधि – उपभोग के लिए स्थापित चीज रखी नहीं जाती, तैयार किए गए भोजनादिक, सामने लाकर आहारादि न ग्रहण करे और पूतिकर्म दोषवाले आहार से भयभीत, पातरा बार – बार धोने पड़ेंगे ऐसे भय से, दोष लगने के भय से, उपयोगवंत साधु जीसमें हो वो गच्छ है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 345 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वावस्सगमुज्जुत्तो सव्वालंबणविरहिओ। विमुक्को सव्वसंगेहिं सबज्झब्भंतरेहि य॥

Translated Sutra: सर्व आवश्यक क्रिया में उद्यमवन्त बने हुए, प्रमाद, विषय, राग, कषाय आदि के आलम्बन रहित बाह्य अभ्यंतर सर्व संग से मुक्त, रागद्वेष मोह सहित, नियाणा रहित बने, विषय के राग से निवृत्त बने, गर्भ परम्परा से भय लगे, आश्रव द्वार का रोध करके क्षमादि यतिधर्म और यमनियमादि में रहा हो, उस शुक्ल ध्यान की श्रेणी में आरोहण करके शैलेशीकरण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 387 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा (२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ। (३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा (४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा, (५) जाव णं

Translated Sutra: हे भगवंत ! आप ऐसा क्यों कहते हैं कि – स्त्री के मर्म अंग – उपांग की ओर नजर न करना, उसके साथ बात न करना, उसके साथ वास न करना, उसके साथ मार्ग में अकेले न चलना ? हे गौतम ! सभी स्त्री सर्व तरह से अति उत्कट मद और विषयाभिलाप के राग से उत्तेजित होती है। स्वभाव से उस का कामाग्नि हंमेशा सुलगता रहता है। विषय की ओर उसका चंचल चित्त
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 488 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) तत्थ जे ते अपसत्थ-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे, तं जहा– सावज्ज-वाय-विज्जा-मंत-तंत-पउंजण-कुसीले १, विज्जा-मंत-तंताहिज्जण-कुसीले २, वत्थु-विज्जा पउंजणाहिज्जण-कुसीले ३-४, गह-रिक्ख-चार-जोइस -सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ५-६, निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिज्जण कुसीले ७-८, सउण-लक्खण-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ९-१०, हत्थि-सिक्खा-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ११-१२, धणुव्वेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १३-१४, गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १५-१६, पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले १७-१८, काम-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १९-२०, कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले २१-२२, आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले

Translated Sutra: उसमें जो अप्रशस्त ज्ञान कुशील है वो २९ प्रकार के हैं। वो इस तरह – १. सावद्यवाद विषयक मंत्र, तंत्र का प्रयोग करने समान कुशील। २. विद्या – मंत्र – तंत्र पढ़ाना – पढ़ना यानि वस्तुविद्या कुशील। ३. ग्रह – नक्षत्र चार ज्योतिष शास्त्र देखना, कहना, पढ़ाना समान लक्षण कुशील। ४. निमित्त कहना। शरीर के लक्षण देखकर कहना, उसके
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 492 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं (२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं (३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं, (४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो (५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं (६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं (७)

Translated Sutra: हे भगवंत ! यदि ऐसा है तो क्या पंच मंगल के उपधान करने चाहिए ? हे गौतम ! प्रथम ज्ञान और उसके बाद दया यानि संयम यानि ज्ञान से चारित्र – दया पालन होता है। दया से सर्व जगत के सारे जीव – प्राणी – भूत – सत्त्व को अपनी तरह देखनेवाला होता है। जगत के सर्व जीव, प्राणी, भूत सत्त्व को अपनी तरह सुख – दुःख होता है, ऐसा देखनेवाला होने
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररूपेल हैं। वो इस प्रकार – जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 531 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं जहा–मेरुत्तुंगे मणि-मंडिएक्क-कंचणगए परमरम्मे। नयन-मनाऽऽनंदयरे पभूय-विण्णाण-साइसए॥

Translated Sutra: लाख योजन प्रमाण मेरु पर्वत जैसे ऊंचे, मणिसमुद्र से शोभायमान, सुवर्णमय, परम मनोहर, नयन और मन को आनन्द देनेवाला, अति विज्ञानपूर्ण, अति मजबूत, दिखाई न दे उस तरह जुड़ दिया हो ऐसा, अति घिसकर मुलायम बनाया हुआ, जिसके हिस्से अच्छी तरह से बाँटे गए हैं ऐसा कईं शिखरयुक्त, कईं घंट और ध्वजा सहित, श्रेष्ठ तोरण युक्त कदम – कदम पर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 562 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा धम्मतित्थंकरे जिने अरहंते। अह तारिसे वि इड्ढी-पवित्थरे, सयल-तिहुयणाउलिए। साहीणे जग-बंधू मनसा वि न जे खणं लुद्धे॥

Translated Sutra: हे गौतम ! धर्म तीर्थंकर भगवंत, अरिहंत, जिनेश्वर जो विस्तारवाली ऋद्धि पाए हुए हैं। ऐसी समृद्धि स्वाधीन फिर भी जगत्‌ बन्धु पलभर उसमें मन से भी लुभाए नहीं। उनका परमैश्वर्य रूप शोभायमय लावण्य, वर्ण, बल, शरीर प्रमाण, सामर्थ्य, यश, कीर्ति जिस तरह देवलोक में से च्यवकर यहाँ अवतरे, जिस तरह दूसरे भव में, उग्र तप करके देवलोक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 570 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] होही खणं अप्फालिय-सूसर-गंभीर-दुंदुहि-णिग्घोसा। जय-सद्द-मुहल-मंगल-कयंजली जह य खीर-सलिलेणं॥

Translated Sutra: पलभर हाथ हिलाना, सुन्दर स्वर में गाना, गम्भीर दुंदुभि का शब्द करते, क्षीर समुद्र में से जैसे शब्द प्रकट हो वैसे जय जय करनेवाले मंगल शब्द मुख से नीकलते थे और जिस तरह दो हाथ जोड़कर अंजलि करते थे, जिस तरह क्षीर सागर के जल से कईं खुशबूदार चीज की खुशबू से सुवासित किए गए सुवर्ण मणिरत्न के बनाए हुए ऊंचे कलश से जन्माभिषेक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 600 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं सुदुक्करं पंच-मंगल-महासुयक्खंधस्स विणओवहाणं पन्नत्तं, महती य एसा नियंतणा, कहं बालेहिं कज्जइ (२) गोयमा जे णं केइ न इच्छेज्जा एयं नियंतणं, अविनओवहाणेणं चेव पंचमंगलाइ सुय-नाणमहिज्जिणे अज्झावेइ वा अज्झावयमाणस्स वा अणुन्नं वा पयाइ। (३) से णं न भवेज्जा पिय-धम्मे, न हवेज्जा दढ-धम्मे, न भवेज्जा भत्ती-जुए, हीले-ज्जा सुत्तं, हीलेज्जा अत्थं, हीलेज्जा सुत्त-त्थ-उभए हीलेज्जा गुरुं। (४) जे णं हीलेज्जा सुत्तत्थोऽभए जाव णं गुरुं, से णं आसाएज्जा अतीताऽणागय-वट्टमाणे तित्थयरे, आसाएज्जा आयरिय-उवज्झाय-साहुणो (५) जे णं आसाएज्जा सुय-नाणमरिहंत-सिद्ध-साहू, से तस्स णं सुदीहयालमणंत-संसार-सागरमाहिंडेमाणस्स

Translated Sutra: हे भगवंत ! यह पंचमंगल श्रुतस्कंध पढ़ने के लिए विनयोपधान की बड़ी नियंत्रणा – नियम बताए हैं। बच्चे ऐसी महान नियंत्रणा किस तरह कर सकते हैं ? हे गौतम ! जो कोई ईस बताई हुई नियंत्रणा की ईच्छा न करे, अविनय से और उपधान किए बिना यह पंचमंगल आदि श्रुतज्ञान पढ़े – पढ़ाए या उपधान पूर्वक न पढ़े या पढ़ानेवाले को अच्छा माने उसे नवकार
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 621 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयरे ते दंसण-कुसीले गोयमा दंसण-कुसीले दुविहे नेए–आगमओ नो आगमओ य। तत्थ आगमो सम्मद्दंसणं, १ संकंते, २ कंखंते, ३ विदुगुंछंते, ४ दिट्ठीमोहं गच्छंते अणोववूहए, ५ परिवडिय-धम्मसद्धे सामन्नमुज्झिउ-कामाणं अथिरीकरणेणं, ७ साहम्मियाणं अवच्छल्लत्तणेणं, ८ अप्पभावनाए एतेहिं अट्ठहिं पि थाणंतरेहिं कुसीले नेए।

Translated Sutra: हे भगवंत ! दर्शनकुशील कितने प्रकार के होते हैं ? हे गौतम ! दर्शनकुशील दो प्रकार के हैं – एक आगम से और दूसरा नोआगम से। उसमें आगम से सम्यग्‌दर्शन में शक करे, अन्य मत की अभिलाषा करे, साधु – साध्वी के मैले वस्त्र और शरीर देखकर दुगंछा करे। घृणा करे, धर्म करने का फल मिलेगा या नहीं, सम्यक्त्व आदि गुणवंत की तारीफ न करना।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 627 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिंडस्स जा विसोही ४७ समितीओ ५ भावना १२ तवो दुविहो। पडिमा १२ अभिग्गहा वि य उत्तरगुण मो वियाणाहि॥

Translated Sutra: उत्तर गुण के लिए पिंड़ की जो विशुद्धि, समिति, भावना, दो तरह के तप, प्रतिमा धारण करना, अभिग्रह ग्रहण करना आदि उत्तर गुण जानना। उसमें पिंड़ विशुद्धि – सोलह उद्‌गम दोष, सोलह उत्पादना दोष, दस एषणा के दोष और संयोजनादिक पाँच दोष, उसमें उद्‌गम दोष इस प्रकार जानना। १. आधाकर्म, २. औद्देशिक, ३. पूति कर्म, ४. मिश्रजात, ५. स्थापना,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 677 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवमायण्णिऊण तओ भणियं सुमइणा। जहा–तुमं चेव सत्थवादी भणसु एयाइं, नवरं न जुत्तमेयं जं साहूणं अवन्नवायं भासिज्जइ। अन्नं तु–किं न पेच्छसि तुमं एएसिं महानुभागाणं चेट्ठियं छट्ठ-ट्ठम-दसम दुवालस-मास- खमणाईहिं आहा-रग्गहणं गिम्हायावणट्ठाए वीरासण-उक्कुडुयासण-नाणाभिग्गह-धारणेणं च कट्ठ-तवोणुचरणेणं च पसुक्खं मंस-सोणियं ति महाउ-वासगो सि तुमं, महा-भासा-समिती विइया तए, जेणेरिस-गुणोवउत्ताणं पि महानुभागाणं साहूणं कुसीले त्ति नामं संकप्पियंति। तओ भणियं नाइलेणं जहा मा वच्छ तुमं एतेणं परिओसमुवयासु, जहा अहयं आसवारेणं परिमुसिओ। अकाम-निज्जराए वि किंचि कम्मक्खयं भवइ, किं पुन

Translated Sutra: ऐसा सुनकर सुमति ने कहा – तुम ही सत्यवादी हो और इस प्रकार बोल सकते हो। लेकिन साधु के अवर्णवाद बोलना जरा भी उचित नहीं है। वो महानुभाव के दूसरे व्यवहार पर नजर क्यों नहीं करते ? छट्ठ, अट्ठम, चार – पाँच उपवास मासक्षमण आदि तप करके आहार ग्रहण करनेवाले ग्रीष्म काल में आतापना लेते है। और फिर विरासन उत्कटुकासन अलग – अलग
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 681 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं तेणं सुमइ जीवेणं तक्कालं समणत्तं अनुपालियं तहा वि एवंविहेहिं नारय तिरिय नरामर विचित्तोवाएहिं एवइयं संसाराहिंडणं गोयमा णं जमागम बाहाए लिंगग्गहणं कीरइ, तं डंभमेव केवलं सुदीह संसार हेऊभूयं। नो णं तं परियायं संजमे लिक्खइ, तेणेव य संजमं दुक्करं मन्ने। अन्नं च समणत्ताए एसे य पढमे संजम पए जं कुसील संसग्गी णिरिहरणं अहा णं नो निरिहरे, ता संजममेव न ठाएज्जा, ता तेणं सुमइणा तमेवायरियं तमेव पसंसियं तमेव उस्सप्पियं तमेव सलाहियं तमेवाणुट्ठियं ति। एयं च सुत्तमइक्कमित्ताणं एत्थं पए जहा सुमती तहा अन्नेसिमवि सुंदर विउर सुदंसण सेहरणीलभद्द सभोमे य खग्गधारी तेणग समण

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस सुमति के जीव ने उस समय श्रमणपन अंगीकार किया तो भी इस तरह के नारक तिर्यंच मानव असुरादिवाली गति में अलग – अलग भव में इतने काल तक संसार भ्रमण क्यों करना पड़ा ? हे गौतम ! जो आगम को बाधा पहुँचे उस तरह के लिंग वेश आदि ग्रहण किए जाए तो वो केवल दिखावा ही है और काफी लम्बे संसार का कारण समान वो माने जाते हैं। उसकी
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अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 682 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं ते साहुणो तस्स णं णाइल सड्ढगस्स छंदेणं कुसीले उयाहु आगम जुत्तीए गोयमा कहं सड्ढगस्स वरायस्सेरिसो सामत्थो जे णं तु सच्छंदत्ताए महानुभावाणं सुसाहूणं अवन्नवायं भासे तेणं सड्ढगेणं हरिवंस तिलय मरगयच्छ-विणो बावीसइम धम्म तित्थयर अरिट्ठनेमि नामस्स सयासे वंदन वत्तियाए गएणं आयारंगं अनंत गमपज्जवेहिं पन्नविज्जमाणं सम-वधारियं। तत्थ य छत्तीसं आयारे पन्नविज्जंति। तेसिं च णं जे केइ साहू वा साहुणी वा अन्नयरमायारमइक्कमेज्जा, से णं गारत्थीहिं उवमेयं। अहन्नहा समनुट्ठे वाऽऽयरेज्जा वा पन्नवेज्जा वा तओ णं अनंत संसारी भवेज्जा। ता गोयमा जे णं तु मुहनंतगं अहिगं

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या वो पाँच साधु को कुशील रूप में नागिल श्रावक ने बताया वो अपनी स्वेच्छा से या आगम शास्त्र के उपाय से ? हे गौतम ! बेचारे श्रावक को वैसा कहने का कौन – सा सामर्थ्य होगा ? जो किसी अपनी स्वच्छन्द मति से महानुभाव सुसाधु के अवर्णवाद बोले वो श्रावक जब हरिवंश के कुलतिलक मरकत रत्न समान श्याम कान्तिवाले बाईसवें
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 697 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरेहि णं लिंगेहिं वइक्कमियमेरं आसायणा-बहुलं उम्मग्ग-पट्ठियं गच्छं वियाणेज्जा गोयमा जं असंठवियं सच्छंदयारिं अमुणियसमयसब्भावं लिंगोवजीविं पीढग फलहग पडिबद्धं, अफासु बाहिर पाणग परिभोइं अमुणिय सत्त-मंडली धम्मं सव्वावस्सग कालाइक्कमयारिं, आवस्सग हाणिकरं ऊणाइरित्ता वस्सगपवित्तं, गणणा पमाण ऊणाइरित्त रयहरण पत्त दंडग मुहनंतगाइ उवगरणधारिं गुरुवगरण परिभोइं, उत्तरगुणविराहगं गिहत्थछंदानुवित्ताइं सम्माणपवित्तं पुढवि दगागणि वाऊ वणप्फती बीय काय तस पाण बि ति चउ पंचेंदियाणं कारणे वा अकारणे वा असती पमाय दोसओ संघट्टणादीसुं अदिट्ठ दोसं आरंभ परिग्गह पवित्तं

Translated Sutra: हे भगवंत ! किन निशानीओं से मर्यादा का उल्लंघन बताया है ? काफी आशातना बताई है और गच्छ ने उन्मार्ग में प्रवेश किया है – ऐसा माने ? हे गौतम ! जो बार – बार गच्छ बदलता हो, एक गच्छ में स्थिर न रहता हो, अपनी मरजी के अनुसार व्यवहार करनेवाला, खाट – पाटला, पटरी आदि ममता रखनेवाला, अप्रासुक बाह्य प्राणवाले सचित्त जल का भोग करनेवाले,
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 747 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं पगासयं सोहओ तवो संजमो उ गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे मोक्खो नेक्कस्स वि अभावे॥

Translated Sutra: ज्ञान पदार्थ को प्रकाशित करके पहचाने जाता है। तप आत्मा को कर्म से शुद्ध करनेवाला होता है। संयम मन, वचन, काया की शुद्ध प्रवृत्ति करवानेवाला होता है। तीन में से एक की भी न्यूनता हो तो मोक्ष नहीं होता।
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 814 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं इमस्स भव्वसत्तस्स मणगस्स तत्त परिन्नाणं भवउ त्ति काऊणं जाव णं दसवेयालियं सुयक्खंधं निज्जूहेज्जा। तं च वोच्छिन्नेणं तक्काल दुवालसंगेणं गणिपिडगेणं जाव णं दूसमाए परियंते दुप्पसहे ताव णं सुत्तत्थेणं वाएज्जा। से य सयलागम निस्संदं दसवेयालिय सुयक्खंधं सुत्तओ अज्झीहीय गोयमा से णं दुप्पसहे अनगारे तओ तस्स णं दसवेयालिय सुत्तस्सानुगयत्थाणुसारेणं तहा चेव पवत्तेज्जा, नो णं सच्छंदयारी भवेज्जा। तत्थ य दसवेयालिय सुयक्खंधे तक्कालमिणमो दुवालसंगे सुयक्खंधे पइट्ठिए भवे-ज्जा। एएणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा तहा वि णं गोयमा ते एवं गच्छ-ववत्थं नो विलंघिंसु।

Translated Sutra: उन्होंने इस भव्यात्मा मनक को तत्त्व का परिज्ञान हो ऐसा जानकर पूर्व में से – बड़े शास्त्र में से दशवैका – लिक श्रुतस्कंध की निर्युहणा की। उस समय जब बारह अंग और उसके अर्थ का विच्छेद होगा तब दुष्मकाल के अन्तकाल तक दुप्पसह अणगार तक दशवैकालिक सूत्र और अर्थ से पढ़ेंगे, समग्र आगम के सार समान दश – वैकालिक श्रुतस्कंध
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 816 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते पंच सए एक्क विवज्जिए साहूणं जेहिं च णं तारिस गुणोववेयस्स महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमिउं नाराहियं गोयमा णं इमाए चेव उसभ चउवीसिगाए अतीताए तेवीसइमाए चउवीसिगाए जाव णं परिनिव्वुडे चउवीसइमे अरहा ताव णं अइक्कंतेणं केवइएणं कालेणं गुणनिप्फन्ने कम्मसेल मुसुमूरणे महायसे, महासत्ते, महानुभागे, सुगहिय नामधेज्जे, वइरे नाम गच्छाहिवई भूए। तस्स णं पंचसयं गच्छं निग्गंथीहिं विना, निग्गंथीहिं समं दो सहस्से य अहेसि। ता गोयमा ताओ निग्गंथीओ अच्चंत परलोग भीरुयाओ सुविसुद्ध निम्मलंतकरणाओ, खंताओ, दंताओ, मुत्ताओ, जिइंदियाओ, अच्चंत भणिरीओ निय सरीरस्सा वि य छक्काय

Translated Sutra: हे भगवंत ! एक रहित ऐसे ५०० साधु जिन्होंने वैसे गुणयुक्त महानुभाव गुरु महाराज की आज्ञा का उल्लंघन करके आराधक न हुए, वे कौन थे ? हे गौतम ! यह ऋषभदेव परमात्मा की चोवीसी के पहले हुई तेईस चौवीसी और उस चौवीसी के चौवीसवे तीर्थंकर निर्वाण पाने के बाद कुछ काल गुण से पैदा हुए कर्म समान पर्वत का चूरा करनेवाला, महायशवाले, महासत्त्ववाले
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 818 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नं च–जइ एते तव संजम किरियं अनुपालेहिंति, तओ एतेसिं चेव सेयं होहिइ, जइ न करेहिंति, तओ एएसिं चेव दुग्गइ-गमणमनुत्तरं हवेज्जा। नवरं तहा वि मम गच्छो समप्पिओ, गच्छाहिवई अहयं भणामि। अन्नं च– जे तित्थयरेहिं भगवंतेहिं छत्तीसं आयरियगुणे समाइट्ठे तेसिं तु अहयं एक्कमवि नाइक्कमामि, जइ वि पाणोवरमं भवेज्जा। जं च आगमे इह परलोग विरुद्धं तं णायरामि, न कारयामि न कज्जमाणं समनुजाणामि। तामेरिसगुण जुत्तस्सावि जइ भणियं न करेंति ताहमिमेसिं वेसग्गहणा उद्दालेमि। एवं च समए पन्नत्ती जहा–जे केई साहू वा साहूणी वा वायामेत्तेणा वि असंजममनुचिट्ठेज्जा से णं सारेज्जा से णं वारेज्जा, से

Translated Sutra: दूसरा यह शिष्य शायद तप और संयम की क्रिया का आचरण करेंगे तो उससे उनका ही श्रेय होगा और यदि नहीं करेंगे तो उन्हें ही अनुत्तर दुर्गति गमन करना पड़ेगा। फिर भी मुझे गच्छ समर्पण हुआ है, मैं गच्छाधिपति हूँ, मुझे उनको सही रास्ता दिखाना चाहिए। और फिर दूसरी बात यह ध्यान में रखनी है कि – तीर्थंकर भगवंत ने आचार्य के छत्तीस
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 824 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं सामन्ने पुच्छा, जाव णं वयासि। गोयमा अत्थेगे जे णं जोगे अत्थेगे जे णं नो जोगे। से भयवं के णं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं अत्थेगे जे णं नो जोगे गोयमा अत्थेगे जेसिं णं सामन्ने पडिकुट्ठे अत्थेगे जेसिं च णं सामन्ने नो पडिकुट्ठे। एएणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं अत्थेगे जे णं जोगे अत्थेगे जे णं नो जोगे। से भयवं कयरे ते जेसिं णं सामन्ने पडिकुट्ठे कयरे वा ते जेसिं च णं नो परियाए पडिसेहिए गोयमा अत्थेगे जे णं विरुद्धे अत्थेगे जे णं नो विरुद्धे जे णं से विरुद्धे से णं पडिसेहिए, जे णं नो विरुद्धे से णं नो पडिसेहिए। से भयवं के णं से विरुद्धे के वा णं अविरुद्धे गोयमा जे जेसुं

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२३
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 842 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ गोयमा अप्प संकिएणं चेव चिंतियं तेण सावज्जायरिएणं जहा णं– जइ इह एयं जहट्ठियं पन्नवेमि तओ जं मम वंदनगं दाउमाणीए तीए अज्जाए उत्तिमंगेण चलणग्गे पुट्ठे तं सव्वेहिं पि दिट्ठमेएहिं ति। ता जहा मम सावज्जायरियाहिहाणं कयं तहा अन्नमवि किंचि एत्थ मुद्दंकं काहिंति। अहन्नहा सुत्तत्थं पन्नवेमि ता णं महती आसायणा। ता किं करियव्वमेत्थं ति। किं एयं गाहं पओवयामि किं वा णं अन्नहा पन्नवेमि अहवा हा हा न जुत्तमिणं उभयहा वि। अच्चंतगरहियं आयहियट्ठीणमेयं, जओ न मेस समयाभिप्पाओ जहा णं जे भिक्खू दुवालसंगस्स णं सुयनाणस्स असई चुक्कखलियपमायासंकादी सभयत्तेणं पयक्खरमत्ता बिंदुमवि

Translated Sutra: तब अपनी शंकावाला उन्होंने सोचा कि यदि यहाँ मैं यथार्थ प्ररूपणा करूँगा तो उस समय वंदना करती उस आर्या ने अपने मस्तक से मेरे चरणाग्र का स्पर्श किया था, वो सब इस चैत्यवासी ने मुझे देखा था। तो जिस तरह मेरा सावद्याचार्य नाम बना है, उस प्रकार दूसरा भी वैसा कुछ अवहेलना करनेवाला नाम रख देंगे जिससे सर्व लोक में मै अपूज्य
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 856 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयम नंदिसेणेणं गिरि-पडणं जाव पत्थुयं। ताव आयासे इमा वाणी पडिओ वि नो मरिज्ज तं॥

Translated Sutra: हे गौतम ! नंदिषेण ने जब पर्वत पर से गिरने का आरम्भ किया तब आकाश में से ऐसी वाणी सुनाइ दी कि पर्वत से गिरने के बाद भी मौत नहीं मिलेगी। जितने में दिशामुख की ओर देखा तो एक चारण मुनि दिखाइ दिए। तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी अकाल मौत नहीं होगी। तो फिर विषम झहर खाने के लिए गया। तब भी विषय का दर्द न सहा जाने पर काफी दर्द
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 885 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता गोयममेय-नाएणं बहु-उवाए वियारिया। लिंगं गुरुस्स अप्पेउं, नंदिसेनेनं जहा कयं॥

Translated Sutra: इसलिए हे गौतम ! इस दृष्टांत से संयम टिकाने के लिए शास्त्र के अनुसार कईं उपाय सोचे। नंदिषेण ने गुरु को वेश जिस तरह से अर्पण किया आदि उपाय सोचे।
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1072 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमस्स पुढवि-जीवस्स जत्थेगस्स किलामणा। अप्पारंभं तयं बेंति, गोयमा सव्व-केवली॥

Translated Sutra: हे गौतम ! जहाँ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के एक जीव को कीलामणा होती है तो उस को सर्वज्ञ केवली अल्पारंभ कहते हैं। जहाँ छोटे पृथ्वीकाय के एक जीव का प्राण विलय हो उसे सभी केवली महारंभ कहते हैं। एक पृथ्वीकाय के जीव को थोड़ा सा भी मसला जाए तो उससे अशातावेदनीय कर्मबंध होता है कि जो पापशल्य काफी मुश्किल से छोड़ सके। उसी प्रकार
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1095 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं वीहाऽपोहाए पुव्वं जातिं सरित्तु सो। मोहं गंतूण खणमेक्कं, मारुया ऽऽसासिओ पुणो॥

Translated Sutra: ऐसा सोचते – सोचते एक मानव को पूर्वभव का जाति स्मरण ज्ञान हुआ। इसलिए पलभर मूर्छित हुआ लेकिन फिर वायरे से आश्वासन मिला। भान में आने के बाद थरथर काँपने लगा और लम्बे अरसे तक अपनी आत्मा की काफी नींदा करने लगा। तुरन्त ही मुनिपन अंगीकार करने के लिए उद्यत हुआ। उसके बाद वो महायश वाला पंचमुष्टिक लोच करा जितने में शुरु
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1112 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहवा हा हा अहं मूढो, पाव-कम्मी णराहमो । नवरं जइ णाणुचिट्ठामि, अन्नोऽनुचेट्ठती जणो॥

Translated Sutra: या तो सचमुच मैं मूँढ पापकर्म नराधम हूँ, भले मैं वैसा नहीं करता लेकिन दूसरे लोग तो वैसा व्यवहार करते हैं। और फिर अनन्त ज्ञानी सर्वज्ञ भगवंत ने यह हकीकत प्ररूपी है। जो कोई उनके वचन के खिलाफ बात करे तो उसका अर्थ टिक नहीं सकता। इसलिए अब मैं इसका घोर अति दुष्कर उत्तम तरह का प्रायश्चित्त जल्द अति शीघ्रतर समय में
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1147 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयवं नाहं वियाणामि, लक्खणदेवी हु अज्जिया। जा अणुकलुसमगीयत्थत्ता काउं पत्ता दुक्ख-परंपरं॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! लक्ष्मणा आर्या जो अगीतार्थ और कलुषतावाली थी और उसकी वजह से दुःख परम्परा पाई वो मैं नहीं जानता। हे गौतम ! पाँच भरत और पाँच ऐरावत्‌ क्षेत्र के लिए उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के सर्व काल में एक – एक संसार में यह अतिध्रुव चीज है। जगत्‌ की यह स्थिति हंमेशा टिकनेवाली है। हे गौतम ! मैं हूँ उस तरह सात हाथ के प्रमाणवाली
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1267 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाव एरिस-मन-परिणामं ताव लोगंतिया सुरा। थुणिउं भणंति जग-जीव-हिययं तित्थं पवट्टिही॥

Translated Sutra: जितने में इस तरह के मन – परीणाम होते हैं, उतने में लोकान्तिक देव भगवंत को विनती करते हैं – हे भगवंत ! जगत के जीव का हित करनेवाला धर्मतीर्थ आप प्रवर्तो। उस वक्त सारे पाप वोसिराकर देह ममत्व का त्याग कर के सर्व जगत में सर्वोत्तम ऐसे वैभव का तिनके की तरह त्याग करके इन्द्र के लिए भी जो दुर्लभ है वैसा निसंग उग्र कष्टकारी
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥

Translated Sutra: ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1384 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संकट्ठाणं विवज्जंतो। पंच समिय तिगुत्तो गोयर चरियाए पाहुडियं न पडियरिया, तस्स णं चउत्थं पायच्छित्तं उवइसेज्जा। जइ णं नो अभत्तट्ठी ठवणाकुलेसु पविसे खवणं। सहसा पडिवुत्थं पडिगाहियं, तक्खणा न परिट्ठवे निरुवद्दवे थंडिले, खवणं। अकप्पं पडिगाहेज्जा, चउत्थाइ। जहा जोगं कप्पं वा पडिसेहेइ, उवट्ठावणं। गोयर-पविट्ठो कहं, वा विकहं वा, उभयकहं, वा पत्थावेज्ज, वा उदीरेज्ज, वा कहेज्ज, वा निसामेज्ज, वा छट्ठं। गोयर-मागओ य भत्तं, वा पाणं, वा भेसज्जं, वा जं जेण चित्तियं, जं जहा य चित्तियं, जहा य पडिगाहियं तं तहा सव्वं णालोएज्जा, पुरिवड्ढं। इरियाए अपडिक्कंताए भत्त-पाणाइयं आलोएज्जा, पुरिवड्ढं,

Translated Sutra: देखो सूत्र १३८३
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जाव णं वयासि गोयमा वासारत्तियं पंथगामियं वसहि पारिभोगियं गच्छायारमइक्कमणं संघायारमइक्कमणं गुत्ती भेय पयरणं सत्त मंडली धम्माइक्कमणं अगीयत्थ गच्छ पयाण जायं कुसील संभोगजं अविहीए पव्वज्जादाणोवट्ठावणा जायं अओग्गस्स सुत्तत्थोभयपन्नवणजायं अणाययणेक्क खण विरत्तणा जायं देवसियं राइयं पक्खियं मासियं चाउम्मासियं संवच्छरियं एहियं पारलोइयं मूल गुण विराहणं उत्तर गुण विराहणं आभोगानाभोगयं आउट्टि पमाय दप्प कप्पियं वय समण धम्म संजम तव नियम कसाय दंड गुत्तीयं मय भय गारव इंदियजं वसनायंक रोद्द ट्टज्झाण राग दोस मोह मिच्छत्त दुट्ठ

Translated Sutra: हे भगवंत ! विशेष तरह का प्रायश्चित्त क्यों नहीं बताते ? हे गौतम ! वर्षाकाले मार्ग में गमन, वसति का परिभोग करने के विषयक गच्छाचार की मर्यादा का उल्लंघन के विषयक, संघ आचार का अतिक्रमण, गुप्ति का भेद हुआ हो, सात तरह की मांड़ली के धर्म का अतिक्रमण हुआ हो, अगीतार्थ के गच्छ में जाने से होनेवाले कुशील के साथ वंदन आहारादिक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1447 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अंकूर-कुहर-किसलय-पवाल-पुप्फ-फल-कंदलाईणं। हत्थ-फरिसेण बहवे जंति खयं वणप्फती-जीवे॥

Translated Sutra: अंकुरण, बीज, कूंपण, प्रवाल पुष्प, फूल, कंदल, पत्र आदि के वनस्पतिकाय के जीव हाथ के स्पर्श से नष्ट होते हैं। दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले त्रसजीव अनुपयोग से और प्रमत्तरूप से चलते – चलते, आते – जाते, बैठते – उठते, सोते – जगते यकीनन क्षय हो तो मर जाते हैं। सूत्र – १४४७, १४४८
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1484 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 40 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं पयासयं सोहओ, तवो संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाओगे गोयम मोक्खो न अन्नहा उ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૮
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 488 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) तत्थ जे ते अपसत्थ-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे, तं जहा– सावज्ज-वाय-विज्जा-मंत-तंत-पउंजण-कुसीले १, विज्जा-मंत-तंताहिज्जण-कुसीले २, वत्थु-विज्जा पउंजणाहिज्जण-कुसीले ३-४, गह-रिक्ख-चार-जोइस -सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ५-६, निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिज्जण कुसीले ७-८, सउण-लक्खण-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ९-१०, हत्थि-सिक्खा-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ११-१२, धणुव्वेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १३-१४, गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १५-१६, पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले १७-१८, काम-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १९-२०, कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले २१-२२, आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले

Translated Sutra: તેમાં અપ્રશસ્ત જ્ઞાનકુશીલ ૨૯ પ્રકારે જાણવા – ૧. સાવદ્યવાદ વિષયક મંત્ર – તંત્રના પ્રયોગ કરવારૂપ કુશીલ. ૨. વિદ્યા મંત્ર – તંત્ર ભણવા – ભણાવવા તે વસ્તુવિદ્યા કુશીલ. ૩. ગ્રહણ, નક્ષત્ર – ચાર જ્યોતિષ શાસ્ત્ર જોવા, કહેવા, ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ. ૪. નિમિત્ત કહેવા, શરીરના લક્ષણો જોવા, તેના શાસ્ત્રો ભણાવવા રૂપ લક્ષણ કુશીલ, ૫.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 492 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं (२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं (३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं, (४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो (५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं (६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं (७)

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! જો એમ છે તો શું પંચમંગલના ઉપધાન કરવા જોઈએ ? ગૌતમ ! પહેલું જ્ઞાન – પછી દયા એટલે સંયમ અર્થાત્‌ જ્ઞાનથી ચારિત્ર – દયા પાલન થાય છે. દયાથી સર્વ જગતના તમામ જીવો, પ્રાણો, ભૂતો, સત્ત્વોને પોતાના સમાન દેખનારો થાય છે. તેથી બીજા જીવોને સંઘટ્ટન કરવા, પરિતાપના – કિલામણા – ઉપદ્રવાદિ દુઃખ ઉત્પાદન કરવા, ભય પમાડવા, ત્રાસ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમાન પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલા છે ? હે ગૌતમ ! આ અચિંત્ય ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમ મનોવાંછિત પૂર્ણ કરનાર શ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલ છે. તે આ રીતે – જેમ તલમાં તેલ, કમલમાં મકરંદ, સર્વલોકમાં પંચાસ્તિકાય વ્યાપીને રહેલા છે, તેમ આ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 76 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निप्परिकम्मे अकंडुयणे अनिमिसच्छी य केवली। एग-पासित्त दो पहरे मूणव्वय-केवली तहा॥

Translated Sutra:
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 106 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निच्छिन्ने वि य पच्छित्ते, न काहं वुड्ढिजायगे। रंजवण-मेत्तलोगाणं वाया-पच्छित्ते तहा॥

Translated Sutra: તુષ્ટિકારી છૂટક પ્રાયશ્ચિત્ત હું નહીં કરું. લોક ખુશી માટે માત્ર જીભેથી પ્રાયશ્ચિત્ત નહીં કરું એમ કહી પ્રાયશ્ચિત્ત ન કરે. પ્રાયશ્ચિત્ત સ્વીકારીને લાંબા ગાળે આચરે અથવા પ્રાયશ્ચિત્ત કબૂલી કંઈક જૂદું કરે. નિર્દયતાથી વારંવાર મહાપાપ આચરે. કંદર્પ વિષયક અભિમાન – ‘ગમે તેટલું પ્રાયશ્ચિત્ત કરવા માટે સમર્થ છું.’
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Gujarati 238 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहेसी किसि-कम्मत्तं सेवा-वाणिज्ज-सिप्पयं। कुव्वंताऽहन्निसं मनुया धुप्पंते, एसिं कुओ सुहं॥

Translated Sutra: મનુષ્યપણામાં સુખનો અર્થી ખેતીકર્મ સેવા – ચાકરી વેપાર શિલ્પકળા નિરંતર રાત – દિવસ કરે છે. તેમાં તાપ તડકો વેઠે છે, એમાં તેમને કયું સુખ છે ? કેટલાક બીજાના સમૃદ્ધિ આદિ જોઈને હૃદયમાં બળતરા કરે છે. કેટલાક પેટનો ખાડો પૂરી શકતા નથી. કેટલાકની હોય તે લક્ષ્મી પણ ક્ષીણ થાય છે. પુન્ય વધે તો યશ, કીર્તિ, લક્ષ્મી વધે છે, પુન્ય
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-२ Gujarati 255 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वालग्ग-कोडि-लक्ख-मयं भागमेत्तं छिवे धुवे। अथिर-अन्नन्नपदेससरं कुंथुं मनह वित्तिं खणं॥

Translated Sutra: કેશાગ્રના લાખ ક્રોડમાં ભાગને સ્પર્શ કરવામાં આવે તો પણ નિર્દોષવૃત્તિક કુંથુઆના જીવને એટલી તીવ્ર પીડા થાય કે જો આપણને કોઈ કરવતથી કાપે કે હૃદયને અથવા મસ્તકને શસ્ત્રથી ભેદે તો આપણે થરથર કાંપીએ, તેમ કંથુઆના બધા અંગો સ્પર્શ માત્રથી પીડા પામે. તેને અંદર – બહાર ભારે પીડા થાય. તેના શરીરમાં સળવળાટ અને કંપ થવા લાગે,
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