Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures
Search :

Search Results (1387)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1115 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निव्वेएणं भंते! जीवे किं जणयइ? निव्वेएणं दिव्वमानुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ। सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चायं करेइ। आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! निर्वेद से जीव को क्या प्राप्त होता है ? निर्वेद से जीव देव, मनुष्य और तिर्यंच – सम्बन्धी काम – भोगों में शीघ्र निर्वेद को प्राप्त होता है। सभी विषयों में विरक्त होता है। आरम्भ का परित्याग करता है। आरम्भ का परित्याग कर संसार – मार्ग का विच्छेद करता है और सिद्धि मार्ग को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1118 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आलोयणाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादंसणसल्लाणं मोक्खमग्गविग्घाणं अनंतसंसारवद्धणाणं उद्धरणं करेइ, उज्जुभावं च जणयइ। उज्जुभावपडिवन्ने य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बंधइ। पुव्वबद्धं च णं निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! आलोचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आलोचना से मोक्षमार्ग में विघ्न डालनेवाले और अनन्त संसार को बढ़ानेवाले माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्यों को निकाल फेंकता है। ऋजुभाव को प्राप्त होता है। जीव माया – रहित होता है। अतः वह स्त्री – वेद, नपुंसक – वेद का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध की निर्जरा करता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 743 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ हं एवमाहंसु दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अनुभविउं जे संसारम्मि अनंतए ॥

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 753 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चिरं पि से मुंडरुई भवित्ता अथिरव्वए तवनियमेहि भट्ठे । चिरं पि अप्पाणं किलेसइत्ता न पारए होई हु संपराए ॥

Translated Sutra: जो अहिंसादि व्रतों में अस्थिर है, तप और नियमों से भ्रष्ट है – वह चिर काल तक मुण्डरुचि रहकर और आत्मा को कष्ट देकर भी वह संसार से पार नहीं हो सकता।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 788 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनेगछंदा इह मानवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा दिव्वा मनुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥

Translated Sutra: यहाँ संसार में मनुष्यों के अनेक प्रकार के अभिप्राय होते हैं। भिक्षु उन्हें अपने में भी भाव से जानता है। अतः वह देवकृत, मनुष्यकृत तथा तिर्यंचकृत भयोत्पादक भीषण उपसर्गों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 796 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुद्दं य महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: समुद्रपाल मुनि पुण्य – पाप दोनों ही कर्मों का क्षय करके संयम से निश्चल और सब प्रकार से मुक्त होकर समुद्र की भाँति विशाल संसार – प्रवाह को तैर कर मोक्ष में गए। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 827 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइंदियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने! लहुं लहुं ॥

Translated Sutra: वासुदेव ने लुप्त – केशा एवं जितेन्द्रिय राजीमती को कहा – कन्ये ! तू इस घोर संसार – सागर को अति शीघ्र पार कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 885 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साहु गोयम! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा! ॥

Translated Sutra: ‘‘गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह सन्देह दूर किया। मेरा एक और भी सन्देह है। गौतम ! उस विषय में भी मुझे कहें। इस संसार में बहुत से जीव पाश से बद्ध हैं। मुने ! तुम बन्धन से मुक्त और लघुभूत होकर कैसे विचरण करते हो ?’’ सूत्र – ८८५, ८८६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 918 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नावा य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: वह नौका कौन सी है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – शरीर नौका है, जीव नाविक है और संसार समुद्र है, जिसे महर्षि तैर जाते हैं। सूत्र – ९१८, ९१९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 923 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भानू य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: वह सूर्य कौन है ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – जिसका संसार क्षीण हो गया है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन – भास्कर उदित हो चुका है। वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा। सूत्र – ९२३, ९२४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 962 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एया पवयणमाया जे सम्मं आयरे मुनी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो पण्डित मुनि इन प्रवचनमाताओं का सम्यक्‌ आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1172 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? नाणसंपन्नयाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ। नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ। नाणविनयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयसंघायणिज्जे भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! ज्ञान – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ज्ञानसम्पन्नता से जीव सब भावों को जानता है। ज्ञान – सम्पन्न जीव चार गतिरूप अन्तों वाले संसार वन में नष्ट नहीं होता है। जिस प्रकार ससूत्र सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता। ज्ञान, विनय, तप और चारित्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1174 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दंसणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? दंसणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ। परं अविज्झाएमाणे अनुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विरहइ।

Translated Sutra: भन्ते ! दर्शन – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? दर्शन सम्पन्नता से संसार के हेतु मिथ्यात्व का छेदन करता है, उसके बाद सम्यक्त्व का प्रकाश बुझता नहीं है। श्रेष्ठ ज्ञान – दर्शन से आत्मा को संयोजित कर उन्हें सम्यक्‌ प्रकार से आत्मसात्‌ करता हुआ विचरण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति

Hindi 1358 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ कम्माइं वोच्छामि आनुपुव्विं जहक्कमं । जेहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तए ॥

Translated Sutra: मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार आठ कर्मों का वर्णन करूँगा, जिनसे बँधा हुआ यह जीव संसार में परिवर्तन करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 1001 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया! । मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥

Translated Sutra: मुझे भिक्षा से कोई प्रयोजन नहीं है। हे द्विज ! शीघ्र ही अभिनिष्क्रमण कर। ताकि भय के आवर्तों वाले संसार सागर में तुझे भ्रमण न करना पड़े।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 1002 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ॥

Translated Sutra: भोगों में कर्म का उपलेप होता है। अभोगी कर्मों से लिप्त नहीं होता है। भोगी संसार में भ्रमण करता है। अभोगी उससे विप्रमुक्त हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1007 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं । जं चरित्ताण निग्गंथा तिन्ना संसारसागरं ॥

Translated Sutra: सामाचारी सब दुःखों से मुक्त कराने वाली है, जिसका आचरण करके निर्ग्रन्थ संसार सागर को तैर गए हैं। उस सामाचारी का मैं प्रतिपादन करता हूँ –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1058 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसा सामायारी समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: संक्षेप में यह सामाचारी कही है। इसका आचरण कर बहुत से जीव संसारसागर को तैर गये हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1060 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वहणे वहमाणस्स कंतारं अइवत्तई । जोए वहमाणस्स संसारो अइवत्तई ॥

Translated Sutra: शकटादि वाहन को ठीक तरह वहन करने वाला बैल जैसे कान्तार को सुखपूर्वक पार करता है, उसी तरह योग में संलग्न मुनि संसार को पार कर जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1135 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनुप्पेहाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? अनुप्पेहाए णं आउयवज्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ धनियबंधनबद्धाओ सिढिलबंधनबद्धाओ पकरेइ, दीहकालट्ठिइयाओ हस्सकालट्ठिइयाओ पकरेइ, तिव्वानुभावाओ मंदानुभावाओ पकरेइ, बहुपएसग्गाओ अप्पपएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ। असाया-वेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं खिप्पामेव वीइवयइ।

Translated Sutra: भन्ते! अनुप्रेक्षा से जीव को क्या प्राप्त होता है? अनुप्रेक्षा से जीव आयुष्‌ कर्म छोड़कर शेष ज्ञानावरणादि सात कर्म प्रकृतियों के प्रगाढ़ बन्धन को शिथिल करता है। उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन करता है। उनके तीव्र रसानुभाव को मन्द करता है। बहुकर्म प्रदेशों को अल्प – प्रदेशों में परिवर्तित करता है। आयुष्‌
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1145 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विनियट्टणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? विनियट्टणयाए णं पावकम्माणं अकरणयाए अब्भुट्ठेइ, पुव्वबद्धाण य निज्जरणयाए तं नियत्तेइ, तओ पच्छा चाउरंतं संसारकंतारं वीइवयइ।

Translated Sutra: भन्ते ! विनिवर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विनिवर्तना से – मन और इन्द्रियों को विषयों से अलग रखने की साधना से जीव पाप कर्म न करने के लिए उद्यत रहता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा से कर्मों को निवृत्त करता है। चार अन्तवाले संसार कान्तार को शीघ्र ही पार कर जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३० तपोमार्गगति

Hindi 1225 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयं तवं तु दुविहं जे सम्मं आयरे मुनी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो पण्डित मुनि दोनों प्रकार के तप का सम्यक्‌ आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से विमुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1226 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चरणविहिं पवक्खामि जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा तिण्णा संसारसागरं ॥

Translated Sutra: जीव को सुख प्रदान करने वाली उस चरण – विधि का कथन करूँगा, जिसका आचरण करके बहुत से जीव संसार – सागर को तैर गए हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1228 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रागद्दोसे य दो पावे पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रुंभई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: पाप कर्म के प्रवर्तक राग और द्वेष हैं। इन दो पापकर्मों का जो भिक्षु सदा निरोध करता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1229 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंडाणं गारवाणं च सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: तीन दण्ड, तीन गौरव और तीन शल्यों का जो भिक्षु सदैव त्याग करता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1230 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिव्वे य जे उवसग्गे तहा तेरिच्छमानुसे । जे भिक्खू सहई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: देव, तिर्यंच और मनुष्य – सम्बन्धी उपसर्गों को जो भिक्षु सदा सहन करता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1231 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विगहाकसायसण्णाणं ज्झाणाणं च दुयं तहा । जे भिक्खू वज्जई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: जो भिक्षु विकथाओं का, कषायों का, संज्ञाओं का और आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान का सदा वर्जन करता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1232 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वएसु इंदियत्थेसु समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: जो भिक्षु व्रतों और समितियों के पालन में तथा इन्द्रिय – विषयों और क्रियाओं के परिहार में सदा यत्नशील रहता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1233 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लेसासु छसु काएसु छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: जो भिक्षु छह लेश्याओं, पृथ्वी कायं आदि छह कायों और आहार के छह कारणों में सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1234 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिंडोग्गहपडिमासु भयट्ठाणेसु सत्तसु । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: पिण्डावग्रहों में, आहार ग्रहण की सात प्रतिमाओं में और सात भय – स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1235 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मएसु बंभगुत्तीसु भिक्खुधम्मंमि दसविहे । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: मद – स्थानों में, ब्रह्मचर्य की गुप्तियों में और दस प्रकार के भिक्षु – धर्मों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1236 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवासगाणं पडिमासु भिक्खूणं पडिमासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: उपासकों की प्रतिमाओं में, भिक्षुओं की प्रतिमाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1237 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किरियासु भूयगामेसु परमाहम्मिएसु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: क्रियाओं में, जीव – समुदायों में और परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1238 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गाहासोलहसएहिं तहा अस्संजमम्मि य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: गाथा – षोडशक में और असंयम में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1239 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बंभंमि नायज्झयणेसु ठाणेसु य समाहिए । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छई मंडले ॥

Translated Sutra: ब्रह्मचर्य में, ज्ञातअध्ययनों में, असमाधि – स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1240 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगवीसाए सबलेसु बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: इक्कीस शबल दोषों में और बाईस परीषहों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1241 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेवीसइ सूयगडे रूवाहिएसु सुरेसु अ । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों में, रूपाधिक अर्थात्‌ चौबीस देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1242 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पणवीसभावणाहिं उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: पच्चीस भावनाओं में, दशा आदि (दशाश्रुत स्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प) के २६ उद्देश्यों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1243 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनगारगुणेहिं च पकप्पम्मिं तहेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: २७ अनगार – गुणों में और तथैव प्रकल्प (आचारांग) के २८ अध्ययनों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1244 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पावसुयपसंगेसु मोहट्ठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: २९ पापश्रुत – प्रसंगों में और ३० मोह – स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1245 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धाइगुणजोगेसु तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निच्चं से न अच्छइ मंडले ॥

Translated Sutra: सिद्धों के ३१ अतिशायी गुणों में, ३२ योग – संग्रहों में, तैंतीस आशातनाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३१ चरणविधि

Hindi 1246 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इइ एएसु ठाणेसु जे भिक्खू जयई सया । खिप्पं से सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिओ ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: इस प्रकार जो पण्डित भिक्षु इन स्थानों में सतत उपयोग रखता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1263 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मोक्खाभिकंखिस्स वि मानवस्स संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए जहित्थिओ बालमनोहराओ ॥

Translated Sutra: मोक्षाभिकांक्षी, संसारभीरु और धर्म में स्थित मनुष्य के लिए लोक में ऐसा कुछ भी दुस्तर नहीं है, जैसे कि अज्ञानियों के मन को हरण करनेवाली स्त्रियाँ दुस्तर हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1280 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: रूप में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1293 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: शब्द में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे – जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1306 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: गन्ध में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे – जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1319 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रसे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: रस में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे – जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1332 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फासे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: स्पर्श में विरक्त मनुष्य शोकरहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है। जैसे जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1345 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भावे विरत्तो मनुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥

Translated Sutra: भाव में विरक्त मनुष्य शोक – रहित होता है। वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे जलाशय में कमल का पत्ता जल से।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1512 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसारत्था य सिद्धा य दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धा णेगविहा वुत्ता तं मे कित्तयओ सुण ॥

Translated Sutra: जीव के दो भेद हैं – संसारी और सिद्ध। सिद्ध अनेक प्रकार के हैं। उनका कथन करता हूँ, सुनो।
Showing 1251 to 1300 of 1387 Results