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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1507 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] त्ति भाणिऊणं अद्दंसणं गया देवया इति ते छइल्ल पुरिसे लहुं च गंतूण साहियं तेहिं नरवइणो। तओ आगओ बहु विकप्प कल्लोल मालाहि णं आऊरिज्जमाण हियय सागरो हरिस विसाय वसेहिं भीऊड्डपाया-तत्थ चकिर-हियओ सणियं गुज्झ सुरंग खडक्किया दारेणं कंपंत सव्वगत्तो महया कोऊहल्लेणं कुमार दंसणुक्कंठिओ य तमुद्देसं। दिट्ठो य तेणं सो सुगहियणामधेज्जो महायसो महासत्तो महानुभावो कुमार महरिसी, अपडिवाइ महोही पच्चएणं साहेमाणो संखाइयाइ भवाणुहूयं दुक्खसुहं सम्मत्ताइलंभं संसार सहावं कम्मबंध ट्ठिती विमोक्खमहिंसा लक्खणमणगारे वयरबंधं नरादीणं सुहनिसन्नो सोहम्माहिवई धरिओवरिपंडुरायवत्तो। ताहे

Translated Sutra: यह अवसर देखकर उस चतुर राजपुरुषने जल्द राजा के पास पहुँचकर देखा हुआ वृत्तान्त निवेदन किया। उसे सुनकर कईं विकल्प रूप तरंगमाला से पूरे होनेवाले हृदयसागरवाला हर्ष और विषाद पाने से भय सहित खड़ा हो गया। त्रास और विस्मययुक्त हृदयवाला राजा धीरे – धीरे गुप्त सुरंग के छोटे द्वार से कंपते सर्वगात्रवाले महाकौतुक से
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1190 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठ-ट्ठम-दसम-दुवालसेहिं लयाहिं णेइ दस वरिसे। अकयमकारियमसंकप्पिएहिं, परिभूयभिक्ख-लद्धेहिं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११८९
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1285 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगागी कप्पडा-बीओ, दुग्गारन्नं गिरी-सरी। लंघित्ता बहु-कालेणं, दुक्खदुक्खं पत्तो तहिं॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १२८४
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1384 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संकट्ठाणं विवज्जंतो। पंच समिय तिगुत्तो गोयर चरियाए पाहुडियं न पडियरिया, तस्स णं चउत्थं पायच्छित्तं उवइसेज्जा। जइ णं नो अभत्तट्ठी ठवणाकुलेसु पविसे खवणं। सहसा पडिवुत्थं पडिगाहियं, तक्खणा न परिट्ठवे निरुवद्दवे थंडिले, खवणं। अकप्पं पडिगाहेज्जा, चउत्थाइ। जहा जोगं कप्पं वा पडिसेहेइ, उवट्ठावणं। गोयर-पविट्ठो कहं, वा विकहं वा, उभयकहं, वा पत्थावेज्ज, वा उदीरेज्ज, वा कहेज्ज, वा निसामेज्ज, वा छट्ठं। गोयर-मागओ य भत्तं, वा पाणं, वा भेसज्जं, वा जं जेण चित्तियं, जं जहा य चित्तियं, जहा य पडिगाहियं तं तहा सव्वं णालोएज्जा, पुरिवड्ढं। इरियाए अपडिक्कंताए भत्त-पाणाइयं आलोएज्जा, पुरिवड्ढं,

Translated Sutra: देखो सूत्र १३८३
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जाव णं वयासि गोयमा वासारत्तियं पंथगामियं वसहि पारिभोगियं गच्छायारमइक्कमणं संघायारमइक्कमणं गुत्ती भेय पयरणं सत्त मंडली धम्माइक्कमणं अगीयत्थ गच्छ पयाण जायं कुसील संभोगजं अविहीए पव्वज्जादाणोवट्ठावणा जायं अओग्गस्स सुत्तत्थोभयपन्नवणजायं अणाययणेक्क खण विरत्तणा जायं देवसियं राइयं पक्खियं मासियं चाउम्मासियं संवच्छरियं एहियं पारलोइयं मूल गुण विराहणं उत्तर गुण विराहणं आभोगानाभोगयं आउट्टि पमाय दप्प कप्पियं वय समण धम्म संजम तव नियम कसाय दंड गुत्तीयं मय भय गारव इंदियजं वसनायंक रोद्द ट्टज्झाण राग दोस मोह मिच्छत्त दुट्ठ

Translated Sutra: हे भगवंत ! विशेष तरह का प्रायश्चित्त क्यों नहीं बताते ? हे गौतम ! वर्षाकाले मार्ग में गमन, वसति का परिभोग करने के विषयक गच्छाचार की मर्यादा का उल्लंघन के विषयक, संघ आचार का अतिक्रमण, गुप्ति का भेद हुआ हो, सात तरह की मांड़ली के धर्म का अतिक्रमण हुआ हो, अगीतार्थ के गच्छ में जाने से होनेवाले कुशील के साथ वंदन आहारादिक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1524 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं सा सुज्जसिरी कहिं समुववन्ना गोयमा छट्ठीए नरय पुढवीए। से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा तीए पडिपुण्णाणं साइरेगाणं णवण्हं मासाणं गयाणं इणमो विचिंतियं जहा णं पच्चूसे गब्भं पडावेमि, त्ति एवमज्झवसमाणी चेव बालयं पसूया। पसूयमेत्ता य तक्खणं निहणं गया। एतेणं अट्ठेणं गोयमा सा सुज्जसिरी छट्ठियं गयं त्ति। से भयवं जं तं बालगं पसविऊणं मया सा सुज्जसिरी तं जीवियं किं वा न व त्ति गोयमा जीवियं। से भयवं कहं गोयमा पसूयमेत्तं तं बालगं तारिसेहिं जरा जर जलुस जंबाल पूइ रुहिर खार दुगंधासुईहिं विलत्तमणाहं विलवमाणं दट्ठूणं कुलाल चक्कस्सोवरिं काऊणं साणेणं समुद्दिसिउमारद्धं ताव

Translated Sutra: हे भगवंत ! वो सुज्ञश्री कहाँ उत्पन्न हुई ? हे गौतम ! छठ्ठी नरक पृथ्वी में, हे भगवंत ! किस कारण से ? उसके गर्भ का नौ मास से ज्यादा समय पूर्ण हुआ तब सोचा कि कल सुबह गर्भ गिरा दूँगी। इस प्रकार का अध्य – वसाय करते हुए उसने बच्चे को जन्म दिया। जन्म देने के बाद तुरन्त उसी पल में मर गई। इस कारण से सुज्ञश्री छठ्ठी नरक में गई। हे
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1526 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयराओ य तेणं जयणा न विन्नाया, जओ णं तं तारिसं सुदुक्करं कायकेसं काऊणं पि तहा वि णं भमिहिइ सुइरं तु संसारे गोयमा जयणा णाम अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं संपुन्नाणं अखंडिय विराहियाणं जावज्जीव महण्णि-साणुसमयं धारणं कसिणं संजम किरियं अनुमन्नंति। तं च तेण न विण्णायंति। ते णं तु से अहन्ने भमिहिइ सुइरं तु संसारे। से भयवं केणं अट्ठेणं तं च तेणं न विण्णायंति गोयमा ते णं जावइए कायकेसे कए तावइयस्स अद्ध भागेणेव जइ से बाहिर पाणगं विवज्जंते ता सिद्धीए मनुवयंते नवरं तु तेण बाहिर पाणगे परिभुत्ते बाहिरपाणग परिभोइस्स णं गोयमा बहूए वि कायकेसे णिरत्थगे हवेज्जा। जओ णं गोयमा

Translated Sutra: देखो सूत्र १५२५
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1527 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ॐ नमो चउवीसाए तित्थंकराणं, ॐ नमो तित्थस्स, ॐ नमो सुयदेवयाए भगवईए, ॐ नमो सुयकेव-लीणं ॐ नमो सव्वसाहूणं ॐ नमो [सव्वसिद्धाणं] ॐ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवई महइ महाविज्जा व्‌ इ इ र्‌ ए म ह्‌ अ अ व्‌ इ इ र्‌ ए, ज य द्‌ इ इ र्‌ ए स्‌ ए न व्‌ इ इ र्‌ ए वद्ध म्‌ अ अ ण्‌ अ व्‌ इ इ र्‌ ए ज य्‌ अ इ त्‌ ए अ प्‌ अ र्‌ अ अ ज्‌ इ ए स्‌ व्‌ अ अ ह्‌ अ अ [वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जयइ ते अपराजिए स्वाहा] उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विज्जा सव्वगओ ण्‌ इ त्थ्‌ अ अ र ग प्‌ अ अ र ग्‌ अ ओ होइ उवट्ठ्‌ अ अ व ण्‌ अ अ गणस्स वा अ ण्‌ उ ण्‌ ण्‌ आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा [नित्थारगो पारगो होइ] जे णं कप्पसमत्तीए

Translated Sutra: इस सूत्र में ‘‘वर्धमान विद्या’’ दी है। इसलिए उसकी हिन्दी – छाया नहीं दी। जिज्ञासु लोग हमारा आगम सुत्ताणि – भाग – ३९ महानिसीह सूत्र पृष्ठ – १४२ – १४३ देखे। ‘महानिसीह’ सूत्र ४५०४ श्लोक प्रमाण अभी मिलता हैं। सूत्र – १५२७, १५२८
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 2 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो णं राग-दोस-मोह-विसय-कसाय-नाणालंबणानेग-पमाय-इड्ढि-रस-साया गारव-रोद्द-ट्टज्झाण-विगहामिच्छत्ताविरइ- दुट्ठ-जोग- अनाययनसेवना- कुसीलादि-संसग्गी- पेसुन्नऽब्भक्खाण- कलह-जातादि-मय-मच्छरामरीस-ममीकार-अहंकारादि-अनेग-भेय-भिन्न-तामस-भाव-कलुसिएणं हियएणं हिंसालिय-चोरिक्क-मेहुण-परिग्गहारंभ-संकप्पादि- गोयर-अज्झव-सिए- घोर-पयंड-महारोद्द-घन-चिक्कण-पावकम्म-मल-लेव-खवलिए असंवुडासव-दारे

Translated Sutra: પરંતુ રાગ, દ્વેષ, મોહ, વિષય, કષાય, જ્ઞાન આલંબનને નામે થતા અનેક પ્રમાદ, ઋદ્ધિ, રસ, શાતા એ ત્રણ પ્રકારના ગારવો, રૌદ્ર ધ્યાન, આર્ત્તધ્યાન, વિકથા, મિથ્યાત્વ, અવિરતિ મન – વચન – કાયાના. દુષ્ટ યોગો, અનાયતન સેવન, કુશીલ આદિનો સંસર્ગ, ચાડી ખાવી, ખોટું આળ ચઢાવવું, કલહ કરવા, જાતિ આદિ આઠ ભેદે મદ કરવો, ઇર્ષ્યા, અભિમાન, ક્રોધ, મમત્વભાવ,
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 14 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्तत्तीया समेच्चा सयल-पाणिणो कप्पयंतऽप्पणप्पं। दुट्ठं वइ-काय-चेट्ठं मनसिय-कलुसं जुंजयंते चरंते॥ निच्चं तं च सिट्ठे ववगय–कलुसे पक्खवायं विमुच्चा। विक्खंतऽच्चंतपावे कलुसिय-हिययं दोस-जालेहिं नद्धं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 493 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं कयराए विहिए पंच-मंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं (२) गोयमा इमाए विहिए पंचमंगलस्स णं विणओवहाणं कायव्वं, तं जहा–सुपसत्थे चेव सोहने तिहि-करण-मुहुत्त-नक्खत्त-जोग-लग्ग-ससीबले (३) विप्पमुक्क-जायाइमयासंकेण, संजाय-सद्धा-संवेग-सुतिव्वतर-महंतुल्लसंत-सुहज्झ-वसायाणुगय-भत्ती-बहुमान-पुव्वं निन्नियाण-दुवालस-भत्त-ट्ठिएणं, (४) चेइयालये जंतुविरहिओगासे, (५) भत्ति-भर-निब्भरुद्धसिय-ससीसरोमावली-पप्फुल्ल-वयण-सयवत्त-पसंत-सोम-थिर-दिट्ठी (६) नव-नव-संवेग- समुच्छलंत- संजाय- बहल- घन- निरंतर- अचिंत- परम- सुह- परिणाम-विसेसुल्लासिय-सजीव-वीरियानुसमय-विवड्ढंत-पमोय-सुविसुद्ध-सुनिम्मल-विमल-थिर-दढयरंत

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! કઈ વિધિથી પંચમંગલનું વિનય ઉપધાન કરવું ? ગૌતમ ! અમે તે વિધિ આગળ જણાવીશું. અતિ પ્રશસ્ત તેમજ શોભન તિથિ, કરણ, મુહૂર્ત્ત, નક્ષત્ર, યોગ, લગ્ન, ચંદ્રબલ હોય જેના શ્રદ્ધા સંવેગ નિઃશંક અતિશય વૃદ્ધિ પામેલા હોય. અતિ તીવ્ર ઉલ્લાસ પામતા, શુભાધ્યવસાય સહિત પૂર્ણ ભક્તિ – બહુમાન સહ કોઈ જ આલોક – પરલોકના ફળની ઇચ્છા રહિત સળંગ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું આ ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમાન પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલા છે ? હે ગૌતમ ! આ અચિંત્ય ચિંતામણી કલ્પવૃક્ષ સમ મનોવાંછિત પૂર્ણ કરનાર શ્રુતસ્કંધના સૂત્ર અને અર્થ પ્રરૂપેલ છે. તે આ રીતે – જેમ તલમાં તેલ, કમલમાં મકરંદ, સર્વલોકમાં પંચાસ્તિકાય વ્યાપીને રહેલા છે, તેમ આ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 97 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंते ऽनाइकालाओ अत्त-कम्मेहिं दुम्मई। बहुविकप्प-कल्लोले आलोएंते वी अहोगए॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૬
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 109 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिट्ठ-पोत्थय-पच्छित्ते सयं पच्छित्त-कप्पगे। एवइयं एत्थ पच्छित्तं पुव्वालोइय-मनुस्सरे॥

Translated Sutra: પુસ્તકમાં લખ્યા મુજબ પ્રાયશ્ચિત્ત કરે. સ્વમતિ કલ્પનાથી પ્રાયશ્ચિત્ત કરે. પૂર્વકૃત આલોચના મુજબ તે જ પ્રાયશ્ચિત્ત કરી લે. જાતિ, કુળ, ઉભય, ક્ષુત, લાભ, ઐશ્વર્ય, તપ, પંડિતાઈ, સત્કાર એ બધાના મદમાં લુબ્ધ થાય. ગારવોથી ઉત્તેજિત થઈ આલોચના કરે. હું અપૂજ્ય એકાકી છું એવું વિચારે. હું પાપીમાં પણ પાપી છું. એવી કલુષિતતાથી આલોચના
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ शल्यउद्धरण

Gujarati 156 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहु-विह-विकप्प-कल्लोल-माला-उक्कलिगाहिणं। वियरंतं ते न लक्खेज्जो दुरवगाह-मन-सागरं॥

Translated Sutra: અનેક પ્રકારના વિકલ્પો રૂપી કલ્લોલ શ્રેણી તરંગોમાં અવગાહન કરનાર, દુઃખે અવગાહ્ય એવા મનરૂપી સાગરમાં વિચરતાને ઓળખવા અશક્ય છે. જેમના ચિત્ત સ્વાધીન નથી. તેમને આલોચના કેવી રીતે આપી શકાય ? આવા શલ્યવાળાનું શલ્ય જેઓ ઉદ્ધરે છે, તેઓ ક્ષણે ક્ષણે વંદનીય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૫૬, ૧૫૭
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-१ Gujarati 232 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मेहुण-संकप्प-रागाओ मोहा अन्नाण-दोसओ। पुढवादिसु गएगिंदी न याणंती दुक्खं सुहं॥

Translated Sutra: મૈથુન વિષયક સંકલ્પ અને તેના રાગથી, અજ્ઞાન દોષથી પૃથ્વીકાય આદિ એકેન્દ્રિયમાં ઉત્પન્ન થયેલાને દુઃખ કે સુખનો ખ્યાલ આવતો નથી. તે એકેન્દ્રિયોનું અનંતાકાળે પરિવર્તન થાય, તે બેઇન્દ્રિયત્વ પામે, કેટલાક ન પામે, કેટલાક અનાદિ કાળે પામે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૩૨, ૨૩૩
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 387 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा (२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ। (३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा (४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा, (५) जाव णं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આપ કેમ કહો છો કે સ્ત્રીના અંગોપાંગ તરફ નજર ન કરવી, તેની સાથે વાતો ન કરવી, વસવાટ ન કરવો, માર્ગમાં એકલા ન ચાલવું ? ગૌતમ ! સર્વ સ્ત્રી સર્વ પ્રકારે અતિ ઉત્કટ મદ અને વિષયાભિલાષના રાગથી ઉત્તેજિત બનેલી હોય છે. સ્વભાવથી તેણીનો કામાગ્નિ નિરંતર સળગતો રહે છે. વિષયો પ્રતિ તેણીનું ચંચળ ચિત્ત દોડે છે. હૃદયમાં કામાગ્નિ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 406 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा णं गोयमा इत्थीयं नाम पुरिसाणं अहमाणं सव्व-पाव-कम्माणं वसुहारा, तम-रय-पंक-खाणी सोग्गइ-मग्गस्स णं अग्गला, नरयावयारस्स णं समोयरण-वत्तणी (२) अभूमयं विसकंदलिं, अणग्गियं चडुलिं अभोयणं विसूइयं अणामियं वाहिं, अवेयणं मुच्छं, अणोवसग्गं मारिं अनियलिं गुत्तिं, अरज्जुए पासे, अहेउए मच्चू, (३) तहा य णं गोयमा इत्थि-संभोगे पुरिसाणं मनसा वि णं अचिंतणिज्जे, अणज्झव-सणिज्जे, अपत्थणिज्जे, अणीहणिज्जे, अवियप्पणिज्जे, असंकप्पणिज्जे, अणभिलसणिज्जे, असंभरणिज्जे तिविहं तिविहेणं ति। (४) जओ णं इत्थियं नाम पुरिसस्स णं, गोयमा सव्वप्पगारेसुं पि दुस्साहिय-विज्जं पि व दोसुप्पपायणिं, सारंभ

Translated Sutra: ગૌતમ ! આ સ્ત્રીઓ પુરુષો માટે સર્વે પાપકર્મોની, સર્વે અધર્મોની ધનવૃષ્ટિરૂપ વસુધારા સમાન છે, મોહ અને કર્મરજના કાદવની ખાણ સમાન, સદ્‌ગતિના માર્ગની અર્ગલા, નરક માટે નિસરણી, ભૂમિહીન વિષવેલ, અગ્નિહીન અંબાડીયું, ભોજન રહિત વિસૂચિકા, નામહીન વ્યાધિ, ચેતનારહિત મૂર્ચ્છા, ઉપસર્ગરહિત મરકી, બેડી રહિત કેદ, દોરડા રહિત ફાંસો,
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 408 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा य इत्थीओ नाम गोयमा पलय-काल-रयणी-मिव सव्व-कालं तमोवलित्ताओ भवंति। (२) विज्जु इव खणदिट्ठ-नट्ठ-पेम्माओ भवंति। (३) सरणागय-घायगो इव एक्क-जम्मियाओ तक्खण-पसूय-जीवंत-मुद्ध-निय-सिसु-भक्खीओ इव महा-पाव-कम्माओ भवंति। (४) खर-पवणुच्चालिय-लवणोवहि-वेलाइव बहु-विह-विकप्प-कल्लोलमालाहिं णं। खणं पि एगत्थ हि असंठिय-माणसाओ भवंति। (५) सयंभुरमणोवहिममिव दुरवगाह-कइतवाओ भवंति। (६) पवणो इव चडुल-सहावाओ भवंति (७) अग्गी इव सव्व-भक्खाओ, वाऊ इव सव्व-फरिसाओ, तक्करो इव परत्थलोलाओ, साणो इव दानमेत्तमेत्तीओ, मच्छो इव हव्व-परिचत्त-नेहाओ, (१) एवमाइ-अनेग-दोस-लक्ख-पडिपुन्न-सव्वंगोवंग-सब्भिंतर-बाहिराणं

Translated Sutra: ગૌતમ ! સ્ત્રીઓ પ્રલયકાળની રાત્રિ સમ હંમેશા અંધકાર અજ્ઞાનથી લીંપાયેલ હોય છે. વિજળી સમ ક્ષણમાં જોતા જ નાશ પામવાના સ્નેહ સ્વભાવવાળી, શરણાગત ઘાતકની જેમ તત્કાળ જન્મ આપેલ બાળકના જીવનું જ ભક્ષણ કરનાર સમ મહાપાપ કરનારી સ્ત્રીઓ હોય છે. પવનયોગે ઉછળતી લવણ સમુદ્રવેળા સમાન અનેક પ્રકારના તરંગોની શ્રેણીની જેમ એક સ્થાને
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Gujarati 662 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया अनुपहेणं गच्छमाणेहिं दिट्ठा तेहिं पंच साहुणो छट्ठं समणोवासगं ति। तओ भणियं नाइलेण जहा–भो सुमती भद्दमुह पेच्छ, केरिसो साहु सत्थो ता एएणं चेव साहु-सत्थेणं गच्छामो, जइ पुणो वि, नूणं गंतव्वं। तेण भणियं एवं होउ त्ति। तओ सम्मिलिया तत्थ सत्थे-जाव णं पयाणगं वहंति ताव णं भणिओ सुमती नातिलेणं जहा णं भद्दमुह मए हरिवंस-तिलय-मरगयच्छविणो सुगहिय-नाम-धेज्जस्स बावीसइम-तित्थगरस्स णं अरिट्ठनेमि नामस्स पाय-मूले सुहनिसन्नेणं एवमव-धारियं आसी, जहा, जे एवंविहे अनगार-रूवे भवंति ते य कुसीले, जे य कुसीले ते दिट्ठीए वि निरक्खिउं न कप्पंति। ता एते साहुणो तारिसे मणागं, न कप्पए एतेसिं

Translated Sutra: દેશાંતર પ્રયાણ કરતા તે બંનેએ માર્ગમાં પાંચ સાધુ અને છઠ્ઠો શ્રાવક જોયા. ત્યારે નાગીલે સુમતિને કહ્યું કે હે સુમતિ ! જો જો આ સાધુનો સાર્થ કેવો છે, તો આપણે તેમની સાથે જઈએ. તેણે કહ્યું, ભલે તમે થાઓ. પછી તેના સાર્થમાં સાથે ચાલ્યા. માત્ર એક મુકામે જવા પ્રયાણ કર્યું. ત્યાં નાગીલે સુમતિને કહ્યું – હરિવંશના તિલકભૂત મરકત
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 520 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अकसिण-पवत्तगाणं विरयाऽविरयाण एस खलु जुत्तो। जे कसिण-संजमविऊ पुप्फादीयं न कप्पए तेसिं [तु]॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧૯
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 533 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुविसाल-सुवित्थिन्ने पए पए पेच्छियव्वय-सिरीए। मघ-मघ-मघेंत-डज्झंत-अगलु-कप्पूर-चंदनामोए॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩૧
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 591 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (७) एत्थ य जत्थ जत्थ पयं पएणाऽनुलग्गं सुत्तालावगं न संपज्जइ, तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलि-हिय-दोसो न दायव्वो त्ति (८) किंतु जो सो एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्पभूयस्स महानिसीह-सुयक्खंधस्स पुव्वायरिसो आसि, तहिं चेव खंडाखंडीए उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवे पन्नगा परिसडिया। (९) तहा वि अच्चंत-सुमहत्थाइसयं ति इमं महानिसीह-सुयक्खंधं कसिण-पवयणस्स परम-सार-भूयं परं तत्तं महत्थंति कलिऊणं (१०) पवयण-वच्छल्लत्तणेणं बहु-भव-सत्तोवयारियं च काउं, तहा य आय-हियट्ठयाए आयरिय-हरिभद्देणं जं तत्थाऽऽयरिसे दिट्ठं तं सव्वं स-मतीए साहिऊणं लिहियं ति (११) अन्नेहिं पि सिद्धसेन दिवाकर-वुड्ढवाइ-जक्खसेण-देवगुत्त-जसवद्धण-खमासमण-सीस-रविगुत्त-णेमिचंद-जिणदासगणि-खमग-सच्चरिसि-पमुहेहिं

Translated Sutra: અહીં જ્યાં જ્યાં પદો – પદોની સાથે જોડાયેલા હોય અને સળંગ સૂત્રાલાપક પ્રાપ્ત ન થાય ત્યાં શ્રુતધરોએ લહીયાઓને ખોટું લખ્યું છે, એવો દોષ ન આપવો. પરંતુ જે કોઈ અચિંત્ય ચિંતામણી અને કલ્પવૃક્ષ સમાન મહાનિશીથ શ્રુતસ્કંધની પહેલાંની લખેલ પ્રત હતી તેમાં જે ઉધઈ આદિ જીવાતોથી ખવાઈને ટૂકડાવાળી પ્રત બની ગઈ. ઘણા પત્રો સડી ગયા
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 592 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं एवं जहुत्तविणओवहाणेणं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ताणं पुव्वानु-पुव्वीए, पच्छानुपुव्वीए, अनानुपुव्वीए, सर-वंजन-मत्ता-बिंदु-पयक्खर-विसुद्धं थिर-परिचियं काऊणं महया पबंधेणं सुत्तत्थं च विन्नाय, तओ य णं किम-हिज्जेज्जा (२) गोयमा इरियावहियं। (३) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ, जहा णं पंचमंगल-महासुयक्खंधमहिज्जित्ता णं पुणो इरियावहियं अहीए (४) गोयमा जे एस आया से णं जया गमणाऽगमणाइ परिणए अनेग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अणो वउत्त-पमत्ते संघट्टण-अवद्दावण-किलामणं-काऊणं, अणालोइय-अपडिक्कंते चेव असेस-कम्मक्खयट्ठयाए किंचि चिइ-वंदन-सज्झाय -ज्झाणाइसु अभिरमेज्जा, तया

Translated Sutra: ગૌતમ ! પૂર્વે કહી ગયા તેમ વિનય ઉપધાન સહ પંચમંગલ મહાશ્રુતસ્કંધ નવકારને પૂર્વાનુપૂર્વી, પશ્ચાનુપૂર્વી અને અનાનુપૂર્વી વડે સ્વર, વ્યંજન, માત્રા, બિંદુ, પદાક્ષરોથી શુદ્ધ રીતે ભણી. તેને હૃદયમાં સ્થિર પરિચિત કરી, મહાવિસ્તારથી સૂત્ર અને અર્થો જાણ્યા પછી શું ભણવું ? ગૌતમ! પછી ‘ઇરિયાવહિય’ સૂત્ર ભણવું જોઈએ. ગૌતમ ! આપણો
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 597 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) एवं चाभिग्गहबंधं काऊणं जावज्जीवाए, ताहे य गोयमा इमाए चेव विज्जाए अहिमंतियाओ सत्त-गंध-मुट्ठीओ तस्सुत्तमंगे नित्थारग पारगो भवेज्जासि। त्ति उच्चारेमाणेणं गुरुणा घेतव्वाओ अ ओ म्‌। न म्‌ ओ। भगवओ अरहओ। स्‌ इ ज्झ उ। म्‌ ए। भगवती। महा वि ज्‌ ज्‌ आ। व्‌ ई र्‌ ए। म ह्‌ आ व्‌ ई र्‌ ए। ज य व्‌ ई र्‌ ए स्‌ ए ण्‌ अ व्‌ ई र्‌ ए। वद्ध म्‌ आ न व्‌ ई र्‌ ए। ज य्‌ अं त्‌ ए। अ प र्‌ आ ज्‌ इ ए। स्‌ व्‌ आ हा। [ओम्‌ नमो भगवओ अरहओ सिज्झउ मे भगवती महाविज्जा, वीरे महावीरे जयवीरे, सेणवीरे, वद्धमाणवीरे जयंते अपराजिए स्वाहा] उपचारो चउत्थभत्तेणं साहिज्जइ। एयाए विज्जाए सव्वगओ नित्थारगपारगो होइ। उवट्ठावणाए

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૬
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 626 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा चारित्तकुसीले अनेगहा-मूलगुण उत्तर-गुणेसुं। तत्थ मूलगुणा पंच-महव्वयाणी राई-भोयण-छट्ठाणि, तेसुं जे पमत्ते भवेज्जा। तत्थ पाणाइवायं पुढवि-दगागणिमारुय-वणप्फती-बिति-चउ-पंचेंदियाईणं संघटण-परिया- वण-किलामणोद्दवणे। मुसावायं सुहुमं बायरं च। तत्थ सुहुमं पयला-उल्ला मरुए एवमादि, बादरो कण्णालीगादि। अदिन्नादाणं सुहुमं बादरं च। तत्थ सुहुमं तण-डगल-च्छार-मल्लगादिणं गहणे, बादरं हिरन्न-सुवण्णादिणं। मेहुणं दिव्वोरालियं मनोवइ-काय-करण-कारावणानुमइभेदेण अट्ठरसहा; तहा करकम्मादी, सचित्ताचित्त-भेदेणं नवगुत्ति-विराहणेण वा विभूसावत्तिएण वा। परिग्गहं सुहुमं बादरं च। तत्थ

Translated Sutra: મૂલગુણ અને ઉત્તરગુણમાં ચારિત્રકુશીલ અનેક ભેદે જાણવા. તેમાં પાંચ મહાવ્રત અને રાત્રિભોજન છઠ્ઠું એમ મૂલગુણો કહ્યા. તે છમાં જે પ્રમાદ કરે, તેમાં પ્રાણાતિપાત એટલે પૃથ્વી, પાણી, અગ્નિ, વાયુ, વનસ્પતિરૂપ એકેન્દ્રિય જીવો, બે – ત્રણ – ચાર – પાંચ ઇન્દ્રિયવાળા જીવોનો સંઘટ્ટો કરવો, પરિતાપ ઉપજાવવો, કિલામણા કરવી. મૃષાવાદ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Gujarati 648 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा अभिग्गहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। तत्थ दव्वे कुम्मासाइयं दव्वं गहेयव्वं, खेत्तओ गामे बहिं वा गामस्स, कालओ पढमपोरिसिमाईसु, भावओ कोहमाइसंपन्नो जं देहि इमं गहिस्सामि। एवं उत्तर-गुणा संखेवओ सम्मत्ता। सम्मत्तो य संखेवेणं चरित्तायारो। तवायारो वि संखेवेणेहंतरगओ। (१) तहा विरियायारो। एएसु चेव जा अहाणी (२) एएसुं पंचसु आयाराइयारेसुं जं आउट्टियाए दप्पओ पमायओ कप्पेण वा अजयणाए वा जयणाए वा पडिसेवियं, तं तहेवालोइत्ताणं जं मग्ग-विउ-गुरू-उवइसंति तं तहा पायच्छित्तं नाणुचरेइ। एवं अट्ठारसण्हं सीलंग-सहस्साणं जं जत्थ पए पमत्ते भवेज्जा, से णं तेणं तेणं पमाय-दोसेणं कुसीले

Translated Sutra: અભિગ્રહો – દ્રવ્યથી, ક્ષેત્રથી, કાળથી અને ભાવથી. તેમાં દ્રવ્ય અભિગ્રહમાં બાફેલા અળદ વગેરે દ્રવ્ય ગ્રહણ કરવા. ક્ષેત્રથી ગામમાં કે ગામ બહાર ગ્રહણ કરવું. કાળથી પહેલી વગેરે પોરીસીમાં ગ્રહણ કરવું. ભાવથી ક્રોધાદિ કષાયવાળો આપે તો ગ્રહણ કરીશ. આ પ્રમાણે ઉત્તરગુણો સંક્ષેપથી કહ્યા. તેમ કહેતા ચારિત્રાચાર પણ સંક્ષેપથી
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Gujarati 677 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवमायण्णिऊण तओ भणियं सुमइणा। जहा–तुमं चेव सत्थवादी भणसु एयाइं, नवरं न जुत्तमेयं जं साहूणं अवन्नवायं भासिज्जइ। अन्नं तु–किं न पेच्छसि तुमं एएसिं महानुभागाणं चेट्ठियं छट्ठ-ट्ठम-दसम दुवालस-मास- खमणाईहिं आहा-रग्गहणं गिम्हायावणट्ठाए वीरासण-उक्कुडुयासण-नाणाभिग्गह-धारणेणं च कट्ठ-तवोणुचरणेणं च पसुक्खं मंस-सोणियं ति महाउ-वासगो सि तुमं, महा-भासा-समिती विइया तए, जेणेरिस-गुणोवउत्ताणं पि महानुभागाणं साहूणं कुसीले त्ति नामं संकप्पियंति। तओ भणियं नाइलेणं जहा मा वच्छ तुमं एतेणं परिओसमुवयासु, जहा अहयं आसवारेणं परिमुसिओ। अकाम-निज्जराए वि किंचि कम्मक्खयं भवइ, किं पुन

Translated Sutra: એમ સાંભળી સુમતિએ કહ્યું કે તમે જ સત્યવાદી છો અને આમ બોલી શકો છો, પણ સાધુના અવર્ણવાદ બોલવા તે બિલકુલ યોગ્ય ન ગણાય. તે મહાનુભાવોનો બીજો આચાર કેમ જોતા નથી ? છઠ્ઠ, અઠ્ઠમ, ચાર – પાંચ ઉપવાસાદિ તપ કરીને આહાર લેતા, આતાપના લેતા, વિરાસન આદિ વિવિધ અભિગ્રહોને ધારણ કરનારા, કષ્ટવાળા તપો કરવા ઇત્યાદિ ધર્માનુષ્ઠાન આચરી જેમણે
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Gujarati 682 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं ते साहुणो तस्स णं णाइल सड्ढगस्स छंदेणं कुसीले उयाहु आगम जुत्तीए गोयमा कहं सड्ढगस्स वरायस्सेरिसो सामत्थो जे णं तु सच्छंदत्ताए महानुभावाणं सुसाहूणं अवन्नवायं भासे तेणं सड्ढगेणं हरिवंस तिलय मरगयच्छ-विणो बावीसइम धम्म तित्थयर अरिट्ठनेमि नामस्स सयासे वंदन वत्तियाए गएणं आयारंगं अनंत गमपज्जवेहिं पन्नविज्जमाणं सम-वधारियं। तत्थ य छत्तीसं आयारे पन्नविज्जंति। तेसिं च णं जे केइ साहू वा साहुणी वा अन्नयरमायारमइक्कमेज्जा, से णं गारत्थीहिं उवमेयं। अहन्नहा समनुट्ठे वाऽऽयरेज्जा वा पन्नवेज्जा वा तओ णं अनंत संसारी भवेज्जा। ता गोयमा जे णं तु मुहनंतगं अहिगं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! શું તે પાંચે સાધુઓને કુશીલરૂપે નાગીલ શ્રાવકે ગણાવ્યા તે પોતાની સ્વેચ્છાથી કે આગમ – શાસ્ત્રની યુક્તિથી ? ગૌતમ ! બિચારા શ્રાવકને તેમ કહેવાનું સામર્થ્ય શું હોય ? જે કોઈ પોતાની સ્વચ્છંદ મતિથી મહાનુભવ સુસાધુના અવર્ણવાદ બોલે તે, શ્રાવક જ્યારે હરિવંશના કુલતિલક મરકત રત્ન સમાન શ્યામ કાંતિવાળા બાવીશમાં
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 692 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं से गच्छे जे णं वासेज्जा एवं तु गच्छस्स पुच्छा जाव णं वयासी। गोयमा जत्थ णं सम सत्तु मित्त पक्खे अच्चंत सुनिम्मल विसुद्धंत करणे आसायणा भीरु सपरोवयारमब्भुज्जए अच्चंत छज्जीव निकाय वच्छले, सव्वालंबण विप्पमुक्के, अच्चंतमप्पमादी, सविसेस बितिय समय सब्भावे रोद्दट्ट ज्झाण विप्पमुक्के, सव्वत्थ अनिगूहिय बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमे, एगंतेणं संजती कप्प परिभोग विरए एगंतेणं धम्मंतराय भीरू, एगंतेणं तत्त रुई एगंतेणं इत्थिकहा भत्तकहा तेणकहा राय-कहा जनवयकहा परिभट्ठायारकहा, एवं तिन्नि तिय अट्ठारस बत्तीसं विचित्त सप्पभेय सव्व विगहा विप्पमुक्के, एगंतेणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! એવા કયા ગચ્છો છે, જેમાં વાસ કરાય ? એ રીતે ગચ્છની પૃચ્છા આદિ આ પ્રમાણે કહેલી જાણવી. ગૌતમ ! જેમ શત્રુ અને મિત્રપક્ષ તરફ સમાન ભાવ વર્તતો હોય. અત્યંત સુનિર્મળ વિશુદ્ધ અંતઃકરણવાળા સાધુઓ હોય. આશાતના કરવામાં ભય રાખતા હોય. પોતાને અને બીજાના આત્માનો ઉપકાર કરવામાં ઉદ્યમી હોય. છ જીવનિકાયના જીવો ઉપર અત્યંત વાત્સલ્ય
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 697 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरेहि णं लिंगेहिं वइक्कमियमेरं आसायणा-बहुलं उम्मग्ग-पट्ठियं गच्छं वियाणेज्जा गोयमा जं असंठवियं सच्छंदयारिं अमुणियसमयसब्भावं लिंगोवजीविं पीढग फलहग पडिबद्धं, अफासु बाहिर पाणग परिभोइं अमुणिय सत्त-मंडली धम्मं सव्वावस्सग कालाइक्कमयारिं, आवस्सग हाणिकरं ऊणाइरित्ता वस्सगपवित्तं, गणणा पमाण ऊणाइरित्त रयहरण पत्त दंडग मुहनंतगाइ उवगरणधारिं गुरुवगरण परिभोइं, उत्तरगुणविराहगं गिहत्थछंदानुवित्ताइं सम्माणपवित्तं पुढवि दगागणि वाऊ वणप्फती बीय काय तस पाण बि ति चउ पंचेंदियाणं कारणे वा अकारणे वा असती पमाय दोसओ संघट्टणादीसुं अदिट्ठ दोसं आरंभ परिग्गह पवित्तं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! આ ચિહ્નોથી મર્યાદાનું ઉલ્લંઘન કહ્યું છે ? ઘણી આશાતના કહી છે અને ગચ્છ ઉન્માર્ગમાં પ્રવેશ્યો એમ જાણવું ? ગૌતમ ! જે વારંવાર ગચ્છ બદલાવતો હોય, એક ગચ્છમાં સ્થિરતાથી ન રહેતો હોય, પોતાની ઇચ્છા પ્રમાણે વર્તતો, ગુરુ આજ્ઞા મુજબ ન રહેતો હોય, શાસ્ત્રના રહસ્યો ન જાણતો, વેશથી આજીવિકા કરનાર, પાટ – પાટલા – પાટિયા આદિની
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 735 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य अज्जा कप्पं पाण-च्चाए वि रोरव-दुब्भिक्खे। ण य परिभुज्जइ सहसा गोयम गच्छं तयं भणियं॥

Translated Sutra: ગમે તેવો ભયંકર દુષ્કાળ હોય, પ્રાણના ત્યાગનો પ્રસંગ આવે તો પણ સહસાત્કારે પણ સાધ્વીની વહોરી લાવેલ વસ્તુ ન વાપરે તે ગચ્છ કહેવાય.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 737 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य संणिहि-उक्खड-आहड-मादीण नाम-गहणे वि। पूई-कम्माभीए आउत्ता कप्प तिप्पंति॥

Translated Sutra: જે ગચ્છમાં ઉપભોગ માટે સ્થાપિત વસ્તુ રખાતી નથી, તૈયાર કરાયેલ ભોજનાદિ, સામે લાવીને અપાતા આહારાદિ, પૂતિકર્મ દોષવાળા આહારથી ભયભીત, પાત્ર વારંવાર ધોવાના ભયથી દોષ લાગવાના ભયવાળા ઉપયોગવંત સાધુ હોય તે ગચ્છ.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 761 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ य गोयम बहु विहविकप्प-कल्लोल-चंचल-मणाणं। अज्जाणमनुट्ठिज्जइ भणियं तं केरिसं गच्छं॥

Translated Sutra: ગૌતમ! જ્યાં ઘણા પ્રકારના વિકલ્પોના કલ્લોલો અને ચંચળ મનવાળી આર્યાના વચનાનુસાર વર્તવામાં આવે તેને ગચ્છ કેમ કહેવાય ?
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 811 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अट्ठण्हं साहूणमसइं उस्सग्गेण वा अववाएण वा चउहिं अनगारेहिं समं गमनागमनं नियंठियं तहा दसण्हं संजईणं हेट्ठा उसग्गेणं, चउण्हं तु अभावे अववाएणं हत्थ-सयाओ उद्धं गमनं नाणुण्णायं। आणं वा अइक्कमंते साहू वा साहूणीओ वा अनंत-संसारिए समक्खाए। ता णं से दुप्पसहे अनगारे असहाए भवेज्जा। सा वि य विण्हुसिरी अनगारी असहाया चेव भवेज्जा। एवं तु ते कहं आराहगे भवेज्जा गोयमा णं दुस्समाए परियंते ते चउरो जुगप्पहाणे खाइग सम्मत्त नाण दंसण चारित्त समण्णिए भवेज्जा। तत्थ णं जे से महायसे महानुभागे दुप्पसहे अनगारे से णं अच्चंत विसुद्ध सम्मद्दंसण नाण चारित्त गुणेहिं उववेए सुदिट्ठ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! ઉત્સર્ગે આઠ સાધુના અભાવમાં અથવા અપવાદથી ચાર સાધુઓ સાથે સાધ્વીનું ગમનાગમન નિષેધેલ છે. તેમજ ઉત્સર્ગથી દશ સંયતિથી ઓછી, અપવાદથી ચાર સંયતિના અભાવે ૧૦૦ હાથ ઉપરાંત જવાનું. ભગવંતે નિષેધેલ છે. આ આજ્ઞા ઉલ્લંધક સાધુ હોય કે સાધ્વી, તેને અનંતસંસારી કહેલાં છે. તો પાંચમા આરાને અંતે એકલા અસહાય દુષ્પસહ અણગાર હશે.
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ नवनीतसार

Gujarati 816 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं ते पंच सए एक्क विवज्जिए साहूणं जेहिं च णं तारिस गुणोववेयस्स महानुभागस्स गुरुणो आणं अइक्कमिउं नाराहियं गोयमा णं इमाए चेव उसभ चउवीसिगाए अतीताए तेवीसइमाए चउवीसिगाए जाव णं परिनिव्वुडे चउवीसइमे अरहा ताव णं अइक्कंतेणं केवइएणं कालेणं गुणनिप्फन्ने कम्मसेल मुसुमूरणे महायसे, महासत्ते, महानुभागे, सुगहिय नामधेज्जे, वइरे नाम गच्छाहिवई भूए। तस्स णं पंचसयं गच्छं निग्गंथीहिं विना, निग्गंथीहिं समं दो सहस्से य अहेसि। ता गोयमा ताओ निग्गंथीओ अच्चंत परलोग भीरुयाओ सुविसुद्ध निम्मलंतकरणाओ, खंताओ, दंताओ, मुत्ताओ, जिइंदियाओ, अच्चंत भणिरीओ निय सरीरस्सा वि य छक्काय

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે ૪૯૯ સાધુઓ જેઓએ તેવા ગુણયુક્ત મહાનુભાવ ગુરુ મહારાજની આજ્ઞા ઉલ્લંઘીને આરાધક ન બન્યા તે કોણ હતા ? ગૌતમ! ઋષભદેવ પરમાત્માની પૂર્વે થયેલ ત્રેવીશ ચોવીશી અને તે ચોવીશીના ચોવીશમાં તીર્થંકર નિર્માણ પામ્યા પછી કેટલોક કાળ ગુણથી ઉત્પન્ન થયેલ કર્મરૂપી પર્વતનો ચૂરો કરનાર મહાયશા, મહાસત્વી, મહાનુભાવ, સવારમાં
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1076 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा मेहुण-संकप्पं पुढवादीणं विराहणं। जावज्जीवं दुरंत-फलं, तिविहं तिविहेण वज्जए॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૭૨
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1078 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गीयत्थस्स उ वयणेणं, विसं हलाहलं पि वा। निव्विकप्पो पभक्खेज्जा, तक्खणा जं समुद्दवे॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૭૭
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1079 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ विसं तोसं, अमयरसायणं खु तं। णिव्विकप्पं न संसारे, मओ वि सो अमयस्समो॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૭૭
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1190 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठ-ट्ठम-दसम-दुवालसेहिं लयाहिं णेइ दस वरिसे। अकयमकारियमसंकप्पिएहिं, परिभूयभिक्ख-लद्धेहिं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૮૯
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Gujarati 1285 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगागी कप्पडा-बीओ, दुग्गारन्नं गिरी-सरी। लंघित्ता बहु-कालेणं, दुक्खदुक्खं पत्तो तहिं॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૮૪
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Gujarati 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: પ્રતિક્રમણ ન કરે તેને ઉપસ્થાપના પ્રાયશ્ચિત્ત. બેઠા બેઠા કરે તેને ઉપવાસ, શૂન્યાશૂન્યપણે અર્થાત્‌ અનુપયોગથી પ્રમત્તપણે પ્રતિક્રમણ કરે તો પાંચ ઉપવાસ, માંડલીમાં પ્રતિક્રમણ ન કરે તો ઉપસ્થાપના, કુશીલ સાથે કરે તો ઉપસ્થાપના, બ્રહ્મચર્યવ્રતથી ભ્રષ્ટ સાથે કરે તો પારંચિત પ્રાયશ્ચિત્ત આપવું. સર્વે શ્રમણસંઘને ત્રિવિધ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Gujarati 1384 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संकट्ठाणं विवज्जंतो। पंच समिय तिगुत्तो गोयर चरियाए पाहुडियं न पडियरिया, तस्स णं चउत्थं पायच्छित्तं उवइसेज्जा। जइ णं नो अभत्तट्ठी ठवणाकुलेसु पविसे खवणं। सहसा पडिवुत्थं पडिगाहियं, तक्खणा न परिट्ठवे निरुवद्दवे थंडिले, खवणं। अकप्पं पडिगाहेज्जा, चउत्थाइ। जहा जोगं कप्पं वा पडिसेहेइ, उवट्ठावणं। गोयर-पविट्ठो कहं, वा विकहं वा, उभयकहं, वा पत्थावेज्ज, वा उदीरेज्ज, वा कहेज्ज, वा निसामेज्ज, वा छट्ठं। गोयर-मागओ य भत्तं, वा पाणं, वा भेसज्जं, वा जं जेण चित्तियं, जं जहा य चित्तियं, जहा य पडिगाहियं तं तहा सव्वं णालोएज्जा, पुरिवड्ढं। इरियाए अपडिक्कंताए भत्त-पाणाइयं आलोएज्जा, पुरिवड्ढं,

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૮૩
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Gujarati 1401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं सविसेसं पायच्छित्तं जाव णं वयासि गोयमा वासारत्तियं पंथगामियं वसहि पारिभोगियं गच्छायारमइक्कमणं संघायारमइक्कमणं गुत्ती भेय पयरणं सत्त मंडली धम्माइक्कमणं अगीयत्थ गच्छ पयाण जायं कुसील संभोगजं अविहीए पव्वज्जादाणोवट्ठावणा जायं अओग्गस्स सुत्तत्थोभयपन्नवणजायं अणाययणेक्क खण विरत्तणा जायं देवसियं राइयं पक्खियं मासियं चाउम्मासियं संवच्छरियं एहियं पारलोइयं मूल गुण विराहणं उत्तर गुण विराहणं आभोगानाभोगयं आउट्टि पमाय दप्प कप्पियं वय समण धम्म संजम तव नियम कसाय दंड गुत्तीयं मय भय गारव इंदियजं वसनायंक रोद्द ट्टज्झाण राग दोस मोह मिच्छत्त दुट्ठ

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! વિશેષ પ્રકારે પ્રાયશ્ચિત્ત કેમ નથી કહેતા ? ગૌતમ ! વર્ષાકાળે માર્ગગમન અને વસતીપરિભોગ કરવા વિષયક ગચ્છાચારની મર્યાદાનું ઉલ્લંઘન કરવા વિષયક, સંઘાચારનું અતિક્રમણ, ગુપ્તિભેદ, સાત પ્રકારના માંડલી ધર્મનું અતિક્રમણ, અગીતાર્થના ગચ્છમાં જવાથી થયેલ કુશીલ સાથેનો વંદન, આહારાદિ વ્યવહાર, અવિધિથી પ્રવ્રજ્યા
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Gujarati 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! તે બ્રાહ્મણીએ એવું શું કર્યું હતું કે જેથી આ પ્રમાણે સુલભબોધિ પામીને સવારના પહોરમાં નામ ગ્રહણ કરવા લાયક બની ? તેમજ તેના ઉપદેશથી અનેક ભવ્યજીવો, નર અને નારીના સમુદાય કે જેઓ અનંત સંસારના ઘોર દુઃખમાં સબડી રહેલા હતા તેમને સુંદર ધર્મદેશના વગેરે દ્વારા શાશ્વત સુખ આપીને તેણીએ તેમનો ઉદ્ધાર કર્યો ? હે ગૌતમ
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Gujarati 1507 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] त्ति भाणिऊणं अद्दंसणं गया देवया इति ते छइल्ल पुरिसे लहुं च गंतूण साहियं तेहिं नरवइणो। तओ आगओ बहु विकप्प कल्लोल मालाहि णं आऊरिज्जमाण हियय सागरो हरिस विसाय वसेहिं भीऊड्डपाया-तत्थ चकिर-हियओ सणियं गुज्झ सुरंग खडक्किया दारेणं कंपंत सव्वगत्तो महया कोऊहल्लेणं कुमार दंसणुक्कंठिओ य तमुद्देसं। दिट्ठो य तेणं सो सुगहियणामधेज्जो महायसो महासत्तो महानुभावो कुमार महरिसी, अपडिवाइ महोही पच्चएणं साहेमाणो संखाइयाइ भवाणुहूयं दुक्खसुहं सम्मत्ताइलंभं संसार सहावं कम्मबंध ट्ठिती विमोक्खमहिंसा लक्खणमणगारे वयरबंधं नरादीणं सुहनिसन्नो सोहम्माहिवई धरिओवरिपंडुरायवत्तो। ताहे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૦૪
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Gujarati 1524 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं सा सुज्जसिरी कहिं समुववन्ना गोयमा छट्ठीए नरय पुढवीए। से भयवं केणं अट्ठेणं गोयमा तीए पडिपुण्णाणं साइरेगाणं णवण्हं मासाणं गयाणं इणमो विचिंतियं जहा णं पच्चूसे गब्भं पडावेमि, त्ति एवमज्झवसमाणी चेव बालयं पसूया। पसूयमेत्ता य तक्खणं निहणं गया। एतेणं अट्ठेणं गोयमा सा सुज्जसिरी छट्ठियं गयं त्ति। से भयवं जं तं बालगं पसविऊणं मया सा सुज्जसिरी तं जीवियं किं वा न व त्ति गोयमा जीवियं। से भयवं कहं गोयमा पसूयमेत्तं तं बालगं तारिसेहिं जरा जर जलुस जंबाल पूइ रुहिर खार दुगंधासुईहिं विलत्तमणाहं विलवमाणं दट्ठूणं कुलाल चक्कस्सोवरिं काऊणं साणेणं समुद्दिसिउमारद्धं ताव

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! પેલી સુજ્ઞશ્રી ક્યાં ઉત્પન્ન થઈ ? હે ગૌતમ ! છઠ્ઠી નરક પૃથ્વીમાં. હે ભગવન્‌ ! કયા કારણે તેમ થયું ? હે ગૌતમ ! તેનો ગર્ભ નવ માસથી અધિક થયો. ત્યારે તેણીએ એવો વિચાર કર્યો કે આવતીકાલે સવારે ગર્ભ પડાવીશ. એવા પ્રકારના અધ્યવસાયને કરતી તેણે બાળકને જન્મ આપ્યો. જન્મ આપ્યા પછી તુરંત જ, ત્યાં જ મૃત્યુ પામી. એ કારણે સુજ્ઞશ્રી
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Gujarati 1526 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयराओ य तेणं जयणा न विन्नाया, जओ णं तं तारिसं सुदुक्करं कायकेसं काऊणं पि तहा वि णं भमिहिइ सुइरं तु संसारे गोयमा जयणा णाम अट्ठारसण्हं सीलंग सहस्साणं संपुन्नाणं अखंडिय विराहियाणं जावज्जीव महण्णि-साणुसमयं धारणं कसिणं संजम किरियं अनुमन्नंति। तं च तेण न विण्णायंति। ते णं तु से अहन्ने भमिहिइ सुइरं तु संसारे। से भयवं केणं अट्ठेणं तं च तेणं न विण्णायंति गोयमा ते णं जावइए कायकेसे कए तावइयस्स अद्ध भागेणेव जइ से बाहिर पाणगं विवज्जंते ता सिद्धीए मनुवयंते नवरं तु तेण बाहिर पाणगे परिभुत्ते बाहिरपाणग परिभोइस्स णं गोयमा बहूए वि कायकेसे णिरत्थगे हवेज्जा। जओ णं गोयमा

Translated Sutra: હે ભગવન્‌ ! તેણે કઈ જયણા ન જાણી, કે જેના કારણે તેવા પ્રકારના દુષ્કર કાય કલેશ કરીને પણ તે પ્રકારે લાંબો કાળ સુધી તે સુસઢ સંસારમાં ભ્રમણ કરશે ? હે ગૌતમ ! જયણા તેને કહેવાય કે ૧૮૦૦૦ શીલના સંપૂર્ણ અંગો અખંડિત અને અવિરાધિતપણે યાવજ્જીવ રાત – દિવસ દરેકે દરેક સમયે ધારણ કરીને રાખે. તેમજ સમગ્ર સંયમ ક્રિયાને બરાબર સેવે. તે
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