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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान् श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत् देवलोक में उत्पन्न होकर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत् त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 111 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत् (पहले निदान के समान सब कथन करना) मानुषिक, दिव्य कामभोग, भव परंपरा बढ़ानेवाले हैं। यदि मेरे सुचरित तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल विशेष हो तो मैं भी भविष्य में अन्त, प्रान्त, तुच्छ, दरिद्र, कृपण या भिक्षुकुल में पुरुष बनुं, जिस से प्रव्रजित होने के लिए | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 112 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा।
तते Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् तप संयम की साधना करते हुए, वह निर्ग्रन्थ सर्व काम, राग, संग, स्नेह से विरक्त हो जाए, सर्व चारित्र परिवृद्ध हो, तब अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन यावत् परिनिर्वाण मार्ग में आत्मा को भावित करके अनंत, अनुत्तर आवरण रहित, सम्पूर्ण | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 114 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगते एवं आइक्खइ एवं भासति एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिट्ठाणे नामं अज्जो! अज्झयणे, सअट्ठं सहेउयं सकारणं सुत्तं च अत्थं च तदुभयं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेति। Translated Sutra: उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में एकत्रित देव – मानव आदि पर्षदा के बीच कईं श्रमण – श्रमणी श्रावक – श्राविका को इस प्रकार आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण किया।हे आर्य ! ‘‘आयति स्थान’’ नाम के अध्ययन का अर्थ – हेतु – व्याकरण युक्त और सूत्रार्थ और स्पष्टीकरण युक्त सूत्रार्थ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 94 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ, गुणसिलए चेइए।
रायगिहे नगरे सेणिए नामं राया होत्था–रायवण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सद्धिं विहरति। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્રની આ છેલ્લી દશા છે. જેમાં સૂત્ર – ૯૪ થી ૧૧૪ એટલે કે ૨૧ – સૂત્રોનો સમાવેશ થયો છે. આ સૂત્રોનો ક્રમશઃ અનુવાદ આ પ્રમાણે છે. અનુવાદ: તે કાળે અને તે સમયે આ અવસર્પિણી કાળના ચોથા આરાના અંતિમ ભાગમાં. રાજગૃહ નામની નગરી હતી. નગર વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રની ચંપા નગરી માફક જાણવું.. તે નગરની બહાર ગુણશીલ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Gujarati | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: આ જિન પ્રવચનમાં. નિશ્ચયથી સ્થવિર ભગવંતોએ વીસ અસમાધિસ્થાન કહેલા છે. એ સ્થાનો કયા છે? ૧. અતિ શીઘ્ર ચાલવાવાળા હોવું. ૨. અપ્રમાર્જિતાચારી હોવું – રજોહરણ આદિથી પ્રમાર્જના કર્યા સિવાયના સ્થાને ચાલવું ઇત્યાદિ. ૩. દુષ્પ્રમાર્જિતાચારી હોવું – ઉપયોગ રહિતપણે કે આમતેમ જોતા જોતા પ્રમાર્જના કરવી. ૪. વધારાના શય્યા – આસન | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Gujarati | 13 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहपरिण्णासंपदा? संगहपरिण्णासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुजनपाओग्गताए वासावासासु खेत्तं पडिलेहित्ता भवति, बहुजनपाओग्गताए पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारयं ओगेण्हित्ता भवति। कालेणं कालं समाणइत्ता भवति, अहागुरुं संपूएत्ता भवति।
से तं संगहपरिण्णासंपदा। Translated Sutra: તે સંગ્રહ પરિજ્ઞા સંપત્તિ કઈ છે ? સંગ્રહ પરિતા સંપત્તિ ચાર પ્રકારે છે, તે આ પ્રમાણે – ૧. વર્ષાવાસ માટે અનેક મુનિજનોને રહેવા યોગ્ય ઉચિત સ્થાન જોવું. ૨. અનેક મુનિજનોને માટે પાછા દેવાનું કહીને પીઠફલક, શય્યા, સંથારો ગ્રહણ કરવા. ૩. કાળને આશ્રીને ઉચિતકાર્ય કરવું – કરાવવું, ૪. ગુરુજનોનો યથાયોગ્ય પૂજા – સત્કાર કરવો. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Gujarati | 16 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે રીતે સાંસારિક આત્માને ધન, વૈભવ, ભૌતિક વસ્તુની પ્રાપ્તિ આદિ થવાની ચિત્ત આનંદમય બને છે. તે જ રીતે મુમુક્ષુ આત્મા અથવા સાધુજન આત્મગુણોની અનુપમ ચિત્ત સમાધિ પ્રાપ્ત થાય છે. જે ચિત્ત સમાધિસ્થાનનું આ ‘દશા’માં વર્ણન કરાયેલ છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્ ! તે નિર્વાણપ્રાપ્ત ભગવંતના સ્વમુખેથી મેં એવું | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Gujarati | 35 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: જે આત્મા શ્રમણપણાના પાલન માટે અસમર્થ હોય તેવા આત્મા શ્રમણપણાનું લક્ષ્ય રાખી તેના ઉપાસક બને છે. તેને શ્રમણોપાસક કહે છે. ટૂંકમાં તેઓ ઉપાસક તરીકે ઓળખાય છે. આવા ઉપાસકને આત્મા સાધના માટે ૧૧ પ્રતિમા અર્થાત્ વિશિષ્ટ પ્રકારની ‘પ્રતિજ્ઞાનું આરાધન’ જણાવેલ છે, તેનું અહીં વર્ણન છે. અનુવાદ: હે આયુષ્યમાન્ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Gujarati | 49 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स Translated Sutra: હવે એક માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમા કહે છે – માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમાને ધારણ કરતા સાધુ કાયાને વોસીરાવી દીધેલા અને શરીરના મમત્વભાવના ત્યાગી હોય છે. દેવ, મનુષ્ય કે તિર્યંચ સંબંધી જે કાંઈ ઉપસર્ગ આવે છે. તેને તે સમ્યક્ પ્રકારે સહન કરે છે. ઉપસર્ગ કરનારને ક્ષમા કરે છે, અદીન ભાવે સહન કરે છે, શારીરિક ક્ષમાપૂર્વક તેનો સામનો | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Gujarati | 52 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए।
एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति।
एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं Translated Sutra: અગિયારમી ભિક્ષુપ્રતિમા – આ પ્રતિમાને એક અહોરાત્રિકી ભિક્ષુપ્રતિમા કહે છે. તેની વિધિ આદિ પૂર્વ પ્રતિમા મુજબ જાણવુ. વિશેષ વિધિ આ પ્રમાણે જાણવી – ૧. નિર્જળ છઠ્ઠભક્ત એટલે કે ચોવિહારો છઠ્ઠ કરીને ભોજન તથા પાનનું ગ્રહણ કરવું કલ્પે. ૨. ગામ યાવત્ રાજધાનીની બહાર બંને પગોને સંકોચીને, બે હાથ જાનુ પર્યન્ત લાંબા રાખી, તે | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ८ पर्युषणा |
Gujarati | 53 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था, तं जहा–हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वक्कंते। हत्थुत्तराहिं गब्भातो गब्भं साहरिते। हत्थुत्तराहिं जाते। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारितं पव्वइए। हत्थुत्तराहिं अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने। सातिणा परिनिव्वुए भयवं जाव भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ।
Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની પાંચ બાબતો ઉત્તરા ફાલ્ગુની નક્ષત્રમાં થઈ – ૧. ઉત્તરા ફાલ્ગુનીમાં દેવલોકથી ચ્યવીને ગર્ભમાં આવ્યા ૨. ઉત્તરા ફાલ્ગુનીમાં ગર્ભ સંહરણ થયું ૩. ઉત્તરા ફાલ્ગુનીમાં જન્મ થયો ૪. ઉત્તરા ફાલ્ગુની નક્ષત્રમાં મુંડીત થઈને અગારમાંથી અનગારપણાને – સાધુપણાને પામ્યા. ૫. ઉત્તરાફાલ્ગુની | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 54 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा– Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આઠ કર્મોમાં મોહનીય કર્મ પ્રબળ છે. તેની સ્થિતિ પણ સૌથી વધુ લાંબી છે. તેનો સંપૂર્ણ ક્ષય થતાં જ ક્રમશઃ બાકીના કર્મો ક્ષય પામે છે. આ મોહનીય કર્મના બંધન માટે ત્રીશ સ્થાનો અર્થાત્ કારણો આ દશામાં કહેવાયેલા છે. તે આ રીતે – અનુવાદ: તે કાળે અને તે સમયે ચંપા નામક નગરી હતી. વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર. નગરી બહાર | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 96 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति।
तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि–
जस्स णं देवाणुप्पिया Translated Sutra: તે કાળે અને તે સમયમાં પંચયામ ધર્મપ્રવર્તક તીર્થંકર ભગવંત મહાવીર ભગવાન યાવત્ ગ્રામાનુગ્રામ વિચરતા યાવત્ આત્મસાધના કરતા ગુણશીલ ચૈત્યમાં પધાર્યા. તે સમયે રાજગૃહ નગરના ત્રણ રસ્તા, ચાર રસ્તા અને ચોકમાં થઈને યાવત્ પર્ષદા નગરની બહાર નીકળી યાવત્ પ્રભુને પર્યુપાસના કરવા લાગી. તે સમયે શ્રેણિક રાજાના સેવક | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 100 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमना परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहिया सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति सेणियस्स रण्णो एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाता कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता।
किं ते? वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खुड्ड-एगावली-कंठमुरज-तिसरय -वरवलय-हेमसुत्तय-कुंड-लुज्जोवियाणणा रयणभूसियंगी चीनंसुयं वत्थं परिहिता दुगुल्ल-सुकुमार-कंतरमणिज्ज-उत्तरिज्जा सव्वोउय-सुरभिकुसुम-सुंदररयित-पलंब-सोहंत-कंत-विकसंत-चित्तमाला Translated Sutra: તે સમયે ચેલ્લણા દેવી શ્રેણિક રાજા પાસે આ પ્રમાણે સાંભળીને, અવધારીને હર્ષિત થઈ, સંતુષ્ટ થઈ – યાવત્ – સ્નાનગૃહમાં ગઈ. ત્યાં ચેલ્લણાએ સ્નાન કર્યું પછી બલિકર્મ કર્યું કૌતુક – મંગલ – યાવત્ – દુઃસ્વપ્નના નિવારણ માટે પ્રાયશ્ચિત્ત ઇત્યાદિ પૂર્વવત્ કર્યા. પોતાના સુકુમાલ પગોમાં ચેલ્લણાએ ઝાંઝર પહેર્યા, કેડે મણિજડિત | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 103 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोत्ति! समणे भगवं महावीरे ते बहवे निग्गंथा निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासि–सेणियं रायं चेल्लणं देविं पासित्ता इमेतारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुपज्जित्था–अहो णं सेणिए राया महिड्ढीए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे, जे णं ण्हाते कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते चेल्लणादेवीए सद्धिं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति।
न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि सक्खं खलु अयं देवे।
जति इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं वयमवि आगमेस्साइं इमाइं एयारूवाइं ओरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઘણા નિર્ગ્રન્થ – નિર્ગ્રન્થીને આમંત્રિત કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – પ્રશ્ન – હે આર્યો ! શ્રેણિક રાજા અને ચેલ્લણા દેવીને જોઈને આવા પ્રકારનો અધ્યવસાય યાવત્ વિચાર ઉત્પન્ન થયો કે, અહો ! શ્રેણિક રાજા મહર્દ્ધિક છે યાવત્ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? અહો ! ચેલ્લણા દેવી મહર્દ્ધિક છે યાવત્ આ શ્રેષ્ઠ થશે ? હે આર્યો | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 104 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाया यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणो पासेज्जा–से जा इमा इत्थिया भवति– एगा एगजाया एगाभरण-पिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલું છે. જેમ કે આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ – બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ શ્રમણી ધર્મની શિક્ષા માટે ઉપસ્થિત થઈને ભૂખ તરસ આદિ પરિગ્રહ સહન કરતા પણ – કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય તો તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી કામવાસનાના શમન માટે યત્ન કરે છે. તે | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 105 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवट्ठिते विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा। से य परक्क-मेज्जा। से य परक्कममाणे पासेज्जा– से जा इमा इत्थिका भवति–एगा एगजाता एगाभरणपिहाणा तेल्लपेला Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. જો કોઈ નિર્ગ્રન્થ કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે તત્પર થાય, તેને ભૂખ – તરસ ઇત્યાદિ પરીષહો સહન કરતા કદાચિત કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય થઈ જાય. ત્યારે તે તપ – સંયમની ઉગ્ર સાધના દ્વારા તે કામવાસનાને શમન | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 106 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिता विहरमाणी पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वाततवेहिं पुट्ठा, विरूवरूवेहिं य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाता यावि विहरेज्जा। सा य परक्कमेज्जा। सा य परक्कममाणी पासेज्जा– से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया, भोगपुत्ता महामाउया, Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે યાવત્ બધા દુઃખોનો અંત કરે છે. એવા તે કેવલિ પ્રરૂપિત ધર્મની આરાધના માટે કોઈ સાધ્વી તત્પર થાય અને ક્ષુધા, તૃષા આદિ પરીષહ સહન કરે. પરંતુ તેમ સહન કરતા કદાચિત કોઈ કામવાસનાનો પ્રબળ ઉદય તેણીને થઈ પણ જાય તો – તે સંયમની ઉગ્ર સાધના થકી | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 107 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे पडिपुण्णे केवले संसुद्धे नेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधी सव्वदुक्ख-पहीणमग्गे। इत्थं ठिया जीवा सिज्झंती बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथो वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवट्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुट्ठे, विरूवरूवेहि य परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामभोगे यावि विहरेज्जा। से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा– मानुस्सगा Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ જ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે. યાવત્ સર્વ દુઃખોનો અંત કરે છે, પૂર્વવત જાણવું. કોઈ સાધુ કે સાધ્વી કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આરાધના માટે ઉપસ્થિત થઈને વિચરણ કરતા – યાવત્ – સંયમમાં પરાક્રમ કરતા માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે આ પ્રમાણે વિચારે કે – ૧. | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 108 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–से य परक्कमेज्जा। से य परक्कममाणे मानुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेदं गच्छेजा– मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ णो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે. યાવત્ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતા એવા સાધુ માનવ સંબંધી શબ્દાદિ કામ – ભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને એમ વિચારે કે – માનવસંબંધી કામભોગ અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. ઉપર દેવલોકમાં જે દેવ છે, તે ૧. ત્યાં અન્ય દેવીઓ સાથે વિષયસેવન કરતા નથી. ૨. પરંતુ પોતાની વિકુર્વિત દેવીઓ | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 109 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રરૂપણ કરેલું છે યાવત્ સંયમની સાધનામાં પરાક્રમ કરતો એવો નિર્ગ્રન્થ માનવ સંબંધી કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે – માનવ સંબંધી કામભોગ અધ્રુવ અને ત્યાજ્ય છે. જે ઉપર દેવલોકમાં દેવ છે, તે ત્યાં – ૧. બીજા દેવોની દેવી સાથે વિષય સેવન કરતા નથી. ૨. સ્વયંની વિકુર્વિત | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 110 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा।
जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता Translated Sutra: હે આયુષ્માન્ શ્રમણો! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે યાવત્ સંયમ સાધનામાં પરાક્રમ કરતો નિર્ગ્રન્થ દિવ્ય અને માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ એમ વિચારે કે – માનુષિક કામભોગ અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. દેવ સંબંધી કામભોગ પણ અધ્રુવ, અનિત્ય, શાશ્વત, ચલાચલ સ્વભાવવાળા, જન્મ – મરણ વધારનારા અને પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 111 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा। मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स-विप्पजहणिज्जा जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं जाइं इमाइं अंतकुलाणि वा Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું નિરૂપણ કરેલ છે યથાવત્ સંયમની સાધનામાં પ્રયત્ન કરતો સાધુ દિવ્ય માનુષિક કામભોગોથી વિરક્ત થઈ જાય અને તે એમ વિચારે કે, માનુષિક કામભોગો અધ્રુવ યાવત્ ત્યાજ્ય છે. દિવ્ય કામભોગો પણ અધ્રુવ યાવત્ ભવ – પરંપરાને વધારનાર છે. તથા પહેલાં કે પછી અવશ્ય ત્યાજ્ય છે. જો સમ્યક્ પ્રકારથી | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 112 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा।
तते Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ – તપ, સંયમની ઉગ્ર સાધના કરતી વેળાએ તે નિર્ગ્રન્થ સર્વે કામ, રાગ, સંગ, સ્નેહથી વિરક્ત થઈ જાય. સર્વ ચારિત્ર પરિવૃદ્ધ થાય ત્યારે – અનુત્તર જ્ઞાન, અનુત્તર દર્શન, યાવત પરિનિર્વાણ માર્ગમાં આત્માને ભાવિત કરીને તે શ્રમણ – અનંત, | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 114 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगते एवं आइक्खइ एवं भासति एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिट्ठाणे नामं अज्जो! अज्झयणे, सअट्ठं सहेउयं सकारणं सुत्तं च अत्थं च तदुभयं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेति। Translated Sutra: તે કાળ અને તે સમયે –... શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે રાજગૃહ નગરની બહાર – ગુણશીલ ચૈત્યમાં એકઠા થયેલા – દેવ, મનુષ્ય આદિ પર્ષદા મધ્યે અનેક શ્રમણ – શ્રમણીઓ, શ્રાવક, શ્રાવિકાઓને – આ પ્રકારે આખ્યાન, ભાષણ પ્રજ્ઞાપના, પ્રરૂપણા કરી. હે આર્ય ! આયતિ સ્થાન નામના અધ્યયનનો અર્થ – હેતુ – વ્યાકરણ યુક્ત તથા સૂત્ર – અર્થ અને સ્પષ્ટીકરણ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 375 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लूहवित्ती सुसंतुट्ठे अप्पिच्छे सुहरे सिया ।
आसुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चाणं जिनसासनं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 376 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कण्णसोक्खेहिं सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए ।
दारुणं कक्कसं फासं काएण अहियासए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 377 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खुहं पिवासं दुस्सेज्जं सोउण्हं अरई भयं ।
अहियासे अव्वहिओ देहे दुक्खं महाफलं ॥ Translated Sutra: क्षुधा, पिपासा, दुःशय्या, शीत, उष्ण, अरति और भय को (मुनि) अव्यथित होकर सहन करे; (क्योंकि) देह में उत्पन्न दुःख को समभाव से सहना महाफलरूप होता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 378 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अनुग्गए ।
आहारमइयं सव्वं मनसा वि न पत्थए ॥ Translated Sutra: सूर्य के अस्त हो जाने पर और सूर्य उदय न हो जाए तब तक सब प्रकार के आहारादि पदार्थों की मन से भी इच्छा न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 379 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अतिंतिणे अचवले अप्पभासी मियासणे ।
हवेज्ज उयरे दंते थोवं लद्धुं न खिंसए ॥ Translated Sutra: साधु तनतनाहट न करे, चपलता न करे, अल्पभाषी, मितभोजी और उदर का दमन करने वाला हो। थोड़ा पाकर निन्दा न करे। किसी जीव का तिरस्कार न करे। उत्कर्ष भी प्रकट न करे। श्रुत, लाभ, जाति, तपस्विता और बुद्धि से मद न करे। जानते हुए या अनजाने अधार्मिक कृत्य हो जाए तो तुरन्त उससे अपने आपको रोक ले तथा दूसरी बार वह कार्य न करे। अनाचार | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 380 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुक्कसे ।
सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्चा तवसिबुद्धिए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 381 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] से जाणमजाणं वा कट्टु आहम्मियं पयं ।
संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं तं न समायरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 382 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनायारं परक्कम्म नेव गूहे न निण्हवे ।
सुई सया वियडभावे अइसत्ते जिइंदिए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ आचारप्रणिधि |
Hindi | 383 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अमोहं वयणं कुज्जा आयरियस्स महप्पणो ।
तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए ॥ Translated Sutra: मुनि महान् आत्मा आचार्य के वचन को सफल करे। वह उनके कथन को भलीभाँति ग्रहण करके कार्य द्वारा सम्पन्न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका |
Hindi | 1 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्मो मंगलमुक्किट्ठं अहिंसा संजमो तवो ।
देवा वि तं नमंसंति जस्स धम्मे सया मणो ॥ Translated Sutra: धर्म उत्कृष्ट मंगल है। उस धर्म का लक्षण है – अहिंसा, संयम और तप। जिसका मन सदा धर्म में लीन रहता है उसे देव भी नमस्कार करते है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका |
Hindi | 2 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियइ रसं ।
न य पुप्फं किलामेइ सो य पीणेइ अप्पयं ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार भ्रमर, वृक्षों के पुष्पों में सें थोड़ा – थोड़ा रस पीता है तथा पुष्प को पीड़ा नहीं पहुँचाता और वह अपने आपको तृप्त कर लेता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका |
Hindi | 3 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एमेए समणा मुत्ता जे लोए संति साहुणो ।
विहंगमा व पुप्फेसु दाणभत्तेसणे रया ॥ Translated Sutra: उसी प्रकार लोक में जो मुक्त, श्रमण साधु हैं, वे दान – भक्त की एषणा में रत रहते है; जैसे भौंरे फूलों में। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका |
Hindi | 4 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वयं च वित्तिं लब्भामो न य कोइ उवहम्मई ।
अहागडेसु रीयंति पुप्फेसु भमरा जहा ॥ Translated Sutra: हम इस ढंग से वृत्ति भिक्षा प्राप्त करेंगे, (जिससे) किसी जीव का उपहनन न हो, जिस प्रकार भ्रमर अनायास प्राप्त, फूलों पर चले जाते हैं, (उसी प्रकार) श्रमण भी गृहस्थों के द्वारा अपने लिए सहजभाव से बनाए हुए, आहार के लिए, उन घरों में भिक्षा के लिए जाते है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ द्रुमपुष्पिका |
Hindi | 5 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया ।
नाणापिंडरया दंता तेण वुच्चंति साहुणो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनिश्रित हैं, नाना [विध अभिग्रह से युक्त होकर] पिण्डों में रत हैं और दान्त हैं, वे अपने गुणों के कारण साधु कहलाते है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 6 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए ।
पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ॥ Translated Sutra: जो व्यक्ति काम ( – भोगों) का निवारण नहीं कर पाता, वह संकल्प के वशीभूत होकर पद – पद पर विषाद पाता हुआ श्रामण्य का कैसे पालन कर सकता है ? | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 7 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य ।
अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: जो (व्यक्ति) परवश होने के कारण वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्रियों, शय्याओं और आसनादि का उपभोग नहीं करते, (वास्तव में) वे त्यागी नहीं कहलाते। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 8 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य कंते पिए भोए, लद्धे वि पिट्ठिकुव्वई ।
साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: त्यागी वही कहलाता है, जो कान्त और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर भी (उनकी ओर से) पीठ फेर लेता है और स्वाधीन रूप से प्राप्त भोगों का (स्वेच्छा से) त्याग करता है। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 9 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समाइ पेहाइ परिव्वयंतो सिया मणो निस्सरई बहिद्धा ।
न सा महं नोवि अहं पि तीसे इच्चेव ताओ विणइज्ज रागं ॥ Translated Sutra: समभाव की प्रेक्षा से विचरते हुए (साधु का) मन कदाचित् (संयम से) बाहर निकल जाए, तो ‘वह (स्त्री या कोई काम्य वस्तु) मेरी नहीं है, और न मैं ही उसका हूँ‘ इस प्रकार का विचार करके उस पर से राग को हटा ले। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 10 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयावयाही चय सोगमल्लं कामे कमाही कमियं खु दुक्खं ।
छिंदाहि दोसं विणइज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥ Translated Sutra: आतापना ले, सुकुमारता का त्याग कर। कामभोगों का अतिक्रम कर। (इससे) दुःख स्वतः अतिक्रान्त होगा। द्वेषभाग का छेदन कर, रागभाव को दूर कर। ऐसा करने से तू संसार में सुखी हो जाएगा। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 11 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं ।
नेच्छंति वंतयं भोत्तुं कुले जाया अगंधणे ॥ Translated Sutra: अगन्धनकुल में उत्पन्न सर्प प्रज्वलित दुःसह अग्नि में कूद जाते हैं, किन्तु वमन किये हुए विष को वापिस चूसने की इच्छा नहीं करते। हे अपयश के कामी ! तुझे धिक्कार है ! जो तू असंयमी जीवन के लिए वमन किये हुए को पीना चाहता है, इस से तो तेरा मर जाना ही श्रेयस्कर है। सूत्र – ११, १२ | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 12 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धिरत्थु ते जसोकामी जो तं जीवियकारणा ।
वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११ | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 13 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहं च भोयरायस्स तं च सि अंघगवण्हिणो ।
मा कुले गंधणा होमो संजमं निहुओ चर ॥ Translated Sutra: मैं भोजराजा की पुत्री हूँ, और तू अन्धकवृष्णि का पुत्र है। उत्तम कुल में उत्पन्न हम दोनों गन्धन कुलोत्पन्न सर्प के समान न हों। (अतः) तू स्थिरचित्त हो कर संयम का पालन कर। | |||||||||
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अध्ययन-२ श्रामण्यपूर्वक |
Hindi | 14 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ तं काहिसि भावं जा जा दिच्छसि नारिओ ।
वायाविद्धो व्व हडो अट्ठिअप्पा भविस्ससि ॥ Translated Sutra: तू जिन – जिन नारियों को देखेगा, उनके प्रति यदि इस प्रकार रागभाव करेगा तो वायु से आहत हड वनस्पति की तरह अस्थिरात्मा हो जाएगा। |