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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 191 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगरुवर-पवरधूवण उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु रज्जमाणा, रमंति घाणिंदिय-वसट्टा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 192 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घाणिंदिय-दुद्दंतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जं ओसहिगंधेणं, बिलाओ निद्धावई उरगो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 193 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तित्त-कडुयं कसायं, महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्झेसु । आसायंमि उ गिद्धा, रमंति जिब्भिंदिय-वसट्टा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 194 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिब्भिंदिय-दुद्दंतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जं गललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरेल्लिओ मच्छो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 195 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु रज्जमाणा, रमंति फासिंदिय-वसट्टा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 196 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फासिंदिय-दुद्दंतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 197 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कल-रिभिय-महुर-तंती-तल-ताल-वंस-कउहाभिरामेसु । सद्देसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥

Translated Sutra: कल, रिभित एवं मधुर तंत्री, तलताल तथा बाँसुरी के श्रेष्ठ और मनोहर वाद्यों के शब्दों में जो आसक्त नहीं होते, वे वशार्त्तमरण नहीं मरते। स्त्रियों के स्तन, जघन, मुख, हाथ, पैर, नयन तथा गर्वयुक्त विलास वाली गति आदि समस्त रूपों में जो आसक्त नहीं होते, वे वशार्त्तमरण नहीं मरते। उत्तम अगर, श्रेष्ठ धूप, विविध ऋतुओं में वृद्धि
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 198 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-गव्विय-विलासियगईसु । रूवेसु जे न रत्ता, वसट्टमरणं न ते मरए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १९७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 199 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगरुवर-पवर-धूवण-उउयमल्लाणुलेवणविहीसु । गंधेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १९७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 200 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तित्त-कडुयं, कसायं, महुरं बहुखज्ज-पेज्ज-लेज्झेसु । आसायंमि न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १९७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 201 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उउ-भयमाणसुहेसु य, सविभव-हिययमण-निव्वुइकरेसु । फासेसु जे न गिद्धा, वसट्टमरणं न ते मरए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १९७
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 202 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्देसु य भद्दय-पावएसु सोयविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: साधु को भद्र श्रोत्र के विषय शब्द प्राप्त होने पर कभी तुष्ट नहीं होना चाहिए और पापक शब्द सूनने पर रुष्ट नहीं होना चाहिए। शुभ या अशुभ रूप चक्षु के विषय होने पर – साधु को कभी न तुष्ट होना चाहिए और न रुष्ट होना चाहिए। घ्राण – इन्द्रिय को प्राप्त हुए शुभ अथवा अशुभ गंध में साधु को कभी तुष्ट अथवा रुष्ट नहीं होना चाहिए। जिह्वा
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 203 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवेसु य भद्दय-पावएसु चक्खुविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 204 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधेसु य भद्दय-पावएसु घाणविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 205 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रसेसु य भद्दय-पावएसु जिब्भविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 206 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०२
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 207 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते

Translated Sutra: जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सत्रहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है। वही मैं तुझसे कहता हूँ।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 208 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठारसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं धने नामं सत्थवाहे। भद्दा भारिया। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा–धने धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया होत्था–सूमालपाणिपाया। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स चिलाए नामं दासचेडे होत्था–अहीनपंचिंदियसरीरे

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, (वर्णन)। वहाँ धन्य नामक सार्थवाह निवास करता था। भद्रा नामकी उसकी पत्नी थी। उस धन्य सार्थवाह के पुत्र, भद्रा के आत्मज पाँच सार्थवाहदारक थे। धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित। धन्य सार्थवाह
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 209 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाधरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ। तए णं से चिलाए दासचेडे अनोहट्टिए अनिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था। तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था–विसम-गिरिक-डग-कोलंब-सन्निविट्ठा वंसोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिन्नसेल-विसमप्प-वाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अनेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अब्भिंतरपाणिया

Translated Sutra: धन्य सार्थवाह द्वारा अपने घर से नीकाला हुआ यह चिलात दासचेटक राजगृह नगर में शृंगाटकों यावत्‌ पथों में अर्थात्‌ गली – कूचों में, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, जुआरियों में, अड्डो में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपानगृहों में मजे से भटकने लगा। उस समय उस दास – चेटक चिलात को कोई हाथ पड़ककर रोकने वाला तथा वचन
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 210 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया। फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन – मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सूरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 211 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से धने सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं अवहरियं जाणित्ता महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं गहाय जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! चिलाए चोरसेनावई सीहगुहाओ चोरपल्लीओ इहं हव्वमागम्म पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं मम गिहं धाएत्ता सुबहुं धन-कनगं सुंसुमं च दारियं गहाय रायगिहाओ पडि-निक्खमित्ता जेणेव सीहगुहा तेणेव पडिगए। तं इच्छामो णं देवानुप्पिया! सुंसुमाए दारियाए कूवं गमित्तए। तुब्भं णं देवानुप्पिया! से विपुले धनकनगे, ममं

Translated Sutra: चोरों के चले जाने के पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह अपने घर आया। आकर उसने जाना कि मेरा बहुत – सा धन कनक और सुंसुमा लड़की का अपहरण कर लिया गया है। यह जानकर वह बहुमूल्य भेंट लेकर के रक्षकों के पास गया और उनसे कहा – ‘देवानुप्रियो ! चिलात नामक चोरसेनापति सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से यहाँ आकर, पाँच सौ चोरों के साथ, मेरा घर लूटकर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 212 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए समोसढे। तए णं धने सत्थवाहे सुपुत्ते धम्मं सोच्चा पव्वइए। एक्कारसंगवी। मासियाए संलेहणाए सोहम्मे कप्पे उववन्ने। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। जहा वि य णं जंबू! धनेणं सत्थवाहेणं नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा सुंसुमाए दारियाए मंससोणिए आहारिए, नन्नत्थ एगाए रायगिह-संपावणट्ठयाए। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स खेलासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह के गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय धन्य सार्थवाह वन्दना करने के लिए भगवान के निकट पहुँचा। धर्मोपदेश सूनकर दीक्षित हो गया। क्रमशः ग्यारह अंगों का वेत्ता मुनि हो गया। अन्तिम समय आने पर एक मास की संलेखना करके सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्यवन करके महाविदेह
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 213 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, एगूणवीसइमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे, सीयाए महानईए उत्तरिल्ले कूले, नीलवंतस्स [वासहरपव्वयस्स?] दाहिणेणं, उत्तरिल्लस्स सीयामुहवनसंडस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलगस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं पुक्खलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं पुंडरीगिणी नामं रायहाणी पन्नत्ता–नवजोयणवित्थिण्णा दुवालस जोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया पासाईया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पुंडरीगिणीए

Translated Sutra: जम्बूस्वामी प्रश्न करते हैं – ‘भगवन्‌ ! यदि यावत्‌ सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अठारहवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो उन्नीसवे ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? श्री सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा – जम्बू ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 214 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं थेरा अन्नया कयाइ पुनरवि पुंडरीगिणीए रायहाणीए नलिन वने उज्जाणे समोसढा। पुंडरीए राया निग्गए। कंडरीए महाजणसद्दं सोच्चा जहा महाबलो जाव पज्जुवासइ। थेरा धम्मं परिकहेंति। पुंडरीए समणोवासए जाए जाव पडिगए। तए णं कंडरीए थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थेरे तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह। जं नवरं–पुंडरीयं रायं आपुच्छामि। तओ पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया! तए णं से कंडरीए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ एक बार किसी समय पुनः स्थविर पुंडरीकिणी राजधानी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। पुंडरीक राजा उन्हें वन्दना करने के लिए नीकला। कंडरीक भी महाजनों के मुख से स्थविर के आने की बात सूनकर महाबल कुमार की तरह गया। यावत्‌ स्थविर की उपासना करने लगा। स्थविर मुनिराज ने धर्म का उपदेश दिया। धर्मोपदेश सूनकर पुंडरीक
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 215 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कंडरीयस्स अनगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पानभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ। तए णं थेरा अन्नया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिनीवने समोसढा। पुंडरीए निग्गए। धम्मं सुणेइ। तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ कंडरीक अनगार के शरीर में अन्त – प्रान्त अर्थात्‌ रूखे – सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के समान यावत्‌ दाह – ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण होकर रहने लगे। तत्पश्चात्‌ एक बार किसी समय स्थविर भगवंत पुण्डरीकिणी नगरी में पधारे और नलिनीवन उद्यान में ठहरे। तब पुंडरीक राजमहल से नीकला और उसने धर्म – देशना
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 216 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, सयमेव चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता कंडरीयस्स संतियं नायाधम्मकहाओभंडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ–कप्पइ मे थेरे वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं तओ पच्छा आहारं आहारित्तए त्ति कट्टु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता णं पुंडरीगिणीए पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामे दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ पुण्डरीक ने स्वयं पंचमुष्टिक लोच किया और स्वयं ही चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। कंडरीक के आचारभाण्ड ग्रहण किए और इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण किया। ‘स्थविर भगवान को वन्दन – नमस्कार करने और उनके पास से चातुर्याम धर्म अंगीकार करने के पश्चात्‌ ही मुझे आहार करना कल्पता है।’ इस प्रकार का अभिग्रह धारण
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 217 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कंडरीयस्स रन्नो तं पणीयं पाणभोयणं आहारियस्स समाणस्स अइजागरएण य अइभोयप्पसंगेण य से आहारे नो सम्मं परिणमइ। तए णं तस्स कंडरीयस्स रन्नो तंसि आहारंसि अपरिणममाणंसि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगय-सरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ। तए णं से कंडरीए राया रज्जे य रट्ठे य अंतेउरे य मानुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अट्टदुहट्टवसट्टे अकामए अवसवसे कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववन्ने। एवामेव समणाउसो!

Translated Sutra: प्रणीत आहार करने वाले कण्डरीक राजा को अति जागरण करने से और मात्रा से अधिक भोजन करने के कारण वह आहार अच्छी तरह परिणत नहीं हुआ, पच नहीं सका। उस आहार का पाचन न होने पर, मध्यरात्रि के समय कण्डरीक राजा के शरीर में उज्ज्वल, विपुल, कर्कश, अन्यन्त गाढ़ी, प्रचंड और दुःखद वेदना उत्पन्न हो गई। उसका शरीर पित्तज्वर से व्याप्त
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 218 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पुंडरीए अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चंपि चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाण ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स भिक्खायरियं अडमाणे सीयलुक्ख पाण भोयणं पडिगाहेइ, पडिगाहेत्ता अहापज्जत्तमिति कट्टु पडिनियत्तेइ, जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपानं पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता थेरेहिं भगवंतेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बिलमिव पन्नगभूएणं

Translated Sutra: पुंडरिकीणी नगरी से रवाना होने के पश्चात्‌ पुंडरीक अनगार वहाँ पहुँचे जहाँ स्थविर भगवान थे। उन्होंने स्थविर भगवान को वन्दना की, नमस्कार किया। स्थविर के निकट दूसरी बार चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। फिर षष्ठभक्त के पारणक में, प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, (दूसरे प्रहर में ध्यान किया), तीसरे प्रहर में यावत्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-५ पिशाच आदि अग्रमहिषी ३२

अध्यन १ थी ५४

Hindi 229 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. कमला २. कमलप्पभा चेव, ३. उप्पला य ४. सुदंसणा । ५. रूववई ६. बहुरूवा, ७. सुरूवा ८. सुभगावि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२८
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-५ पिशाच आदि अग्रमहिषी ३२

अध्यन १ थी ५४

Hindi 230 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ९. पुण्णा १०. बहुपुत्तिया चेव, ११. उत्तमा १२. तारयावि य । १३. पउमा १४. वसुमई चेव, १५. कणगा १६. कनगप्पभा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२८
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-५ पिशाच आदि अग्रमहिषी ३२

अध्यन १ थी ५४

Hindi 231 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १७. वडेंसा १८. केउमई चेव, १९. वइरसेणा २०. रइप्पिया । २१. रोहिणी २२. नवमिया चेव, २३. हिरी २४. पुप्फवईवि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२८
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-५ पिशाच आदि अग्रमहिषी ३२

अध्यन १ थी ५४

Hindi 232 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] २५. भुयगा २६. भुयगावई चेव, २७. महाकच्छा २८. फुडा इय । २९. सुघोसा ३०. विमला चेव, ३१. सुस्सरा य ३२. सरस्सई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२८
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-५ पिशाच आदि अग्रमहिषी ३२

अध्यन १ थी ५४

Hindi 233 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कमला देवी कमलाए रायहाणीए कमलवडेंसए भवणे कमलंसि सीहासनंसि सेसं जहा कालीए तहेव, नवरं–पुव्वभवे नागपुरे नयरे सहसंबवणे उज्जाणे कमलस्स गाहावइस्स कमलसिरीए भारियाए कमला दारिया पासस्स अंतिए निक्खंता। कालस्स पिसाय-कुमारिंदस्स अग्गमहिसी। अद्धपलिओवमं ठिई। एवं सेसा वि अज्झयणा दाहिणिल्लाणं इंदाणं भाणियव्वाओ। नागपुरे सहसंबवणे उज्जाणे। मायापियरो धूया–सरि-नामया। ठिई अद्धपलिओवमे।

Translated Sutra: अध्ययन – १ का उपोद्‌घात कहना चाहिए, जम्बू! उस काल उस समय राजगृहनगर था। भगवान महावीर वहाँ पधारे। यावत्‌ परीषद्‌ नीकलकर भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय कमला देवी कमला नामक राजधानी में, कमलावतंसक भवन में, कमल नामक सिंहासन पर आसीन थी। शेष काली देवी अनुसार ही जानना। विशेषता यह – पूर्वभव में कमला
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-६ महाकालेन्द्रादि अग्रमहिषी ३२

अध्ययन-१ थी ३२

Hindi 234 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठो वि वग्गो पंचमवग्ग-सरिसो, नवरं–महाकालाईणं उत्तरिल्लाणं इंदाणं अग्गमहिसीओ। पुव्वभवे सागेए नगरे। उत्तरकुरु-उज्जाणे। मायापियरो धूया–सरिनामया। सेसं तं चेव।

Translated Sutra: छठा वर्ग भी पाँचवे वर्ग के समान है। विशेषता यह कि सब कुमारियाँ महाकाल इन्द्र आदि उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियाँ हुई। पूर्वभव में सब साकेतनगर में उत्पन्न हुई। उत्तरकुरु उद्यान था। इन कुमारियों के नाम के समान ही उनके माता – पिता के नाम थे। शेष सब पूर्ववत्‌।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-७ सूर्यअग्रमहिषी चार

अध्ययन-१ थी ४

Hindi 235 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं छट्ठस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–सूरप्पभा, आयवा, अच्चिमाली, पभंकरा। जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पन्नत्ता, सत्तमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभा देवी सूरंसि विमाणंसि सूरप्पभंसि सीहासनंसि।

Translated Sutra: सातवें वर्ग का उत्क्षेप कहना चाहिए – हे जम्बू ! भगवान महावीर ने सप्तम वर्ग के चार अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं। सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा। प्रथम अध्ययन का उपोद्‌घात कहना चाहिए। जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह में भगवान पधारे यावत्‌ परीषद्‌ उनकी उपासना करने लगी। उस काल और उस समय सूर्य प्रभादेवी सूर्य
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-८ चंद्र अग्रमहिषी चार

अध्ययन-१ थी ४

Hindi 236 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–चंदप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा। जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्ठमस्स वग्गस्स चत्तारि अज्झयणा पन्नत्ता, अट्ठमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदप्पभा देवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्पभंसि

Translated Sutra: आठवें वर्ग का उपोद्‌घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! श्रमण भगवान ने आठवे वर्ग के चार अध्ययन प्ररूपित किए हैं। चन्द्रप्रभा, दोसिणाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा। प्रथम अध्ययन का उपोद्‌घात पूर्ववत्‌ कह लेना चाहिए। जम्बू ! उस काल और उस समय में भगवान राजगृह नगर में पधारे यावत्‌ परीषद्‌ उनकी पर्युपास्ति करने लगी। उस काल और
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-९ शक्र अग्रमहिषी आठ

अध्ययन-१ थी ८

Hindi 237 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं अट्ठमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं नवमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– १. पउमा २. सिवा ३. सई ४. अंजू, ५. रोहिणी, ६. नवमिया इ य । ७. अयला, ८. अच्छरा ॥ जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पन्नत्ता, नवमस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?० एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं पउमावई देवी सोहम्मे कप्पे पउमवडेंसए

Translated Sutra: नौंवे वर्ग का उपोद्‌घात। हे जम्बू ! यावत्‌ नौवे वर्ग के आठ अध्ययन कहे हैं, पद्मा, शिवा, सती, अंबूज, रोहिणी, नवमिका, अचला और अप्सरा। प्रथम अध्ययन का उत्क्षेप कह लेना चाहिए। जम्बू ! उस काल और उस समय स्वामी – भगवान महावीर राजगृह में पधारे। यावत्‌ जनसमूह उनकी पर्युपासना करने लगा। उस काल और उस समय पद्मावती देवी सौधर्म
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१० ईशानेन्द्र अग्रमहिषी आठ

अध्ययन-१ थी ८

Hindi 238 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं नवमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं दसमस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: दसवें वर्ग का उपोद्‌घात। जम्बू ! यावत्‌ दसवें वर्ग के आठ अध्ययन प्ररूपित किए हैं। कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्र और वसुन्धरा। ये आठ ईशानेन्द्र की आठ अग्रमहिषियाँ हैं। सूत्र – २३८, २३९
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१० ईशानेन्द्र अग्रमहिषी आठ

अध्ययन-१ थी ८

Hindi 239 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. कण्हा य २. कण्हराई, ३. रामा तह ४. रामरक्खिया । ५. वसू या ६. वसुगुत्ता ७ वसुमित्ता ८. वसुंधरा चेव ईसाने ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २३८
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१० ईशानेन्द्र अग्रमहिषी आठ

अध्ययन-१ थी ८

Hindi 240 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कण्हा देवी ईसाणे कप्पे कण्हवडेंसए विमाणे सभाए सुहम्माए कण्हंसि सीहासनंसि, सेसं जहा कालीए। एवं अट्ठ वि अज्झयणा काली-गमएणं नायव्वा, नवरं–पुव्वभवो वाणारसीए नयरीए दोजणीओ। रायगिहे नयरे दोजणीओ। सावत्थीए नयरीए दोजणीओ। कोसंबीए नयरीए दोजणीओ। रामे पिया धम्मा माया। सव्वाओ वि पासस्स अरहओ अंतिए पव्वइयाओ। पुप्फचूलाए अज्जाए सिस्सिणियत्ताए। ईसाणस्स अग्गमहिसीओ। ठिई नवपलिओवमाइं। महाविदेहे वासे सिज्झिहिंति बुज्झिहिंति मुच्चिहिंति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति। एवं खलु

Translated Sutra: प्रथम अध्ययन का उपोद्‌घात कहना चाहिए। जम्बू ! उस काल और उस समय में स्वामी राजगृह नगर में पधारे, यावत्‌ परिषद्‌ ने उपासना की। उस काल और उस समय कृष्णा देवी ईशान कल्प में कृष्णावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में, कृष्ण सिंहासन पर आसीन थी। शेष काली देवी के समान। आठों अध्ययन काली – अध्ययन सदृश हैं। विशेष यह कि पूर्वभव
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१० ईशानेन्द्र अग्रमहिषी आठ

अध्ययन-१ थी ८

Hindi 241 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेण जाव सिद्धिगइ नामधेज्जं ठाणं संपत्तेणं धम्मकहाणं अयमट्ठे पन्नत्ते।

Translated Sutra: हे जम्बू ! धर्म की आदि करने वाले, तीर्थ के संस्थापक, स्वयं बोध प्राप्त करने वाले, पुरुषोत्तम यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कन्ध का यह अर्थ कहा है। धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कन्ध दस वर्गों में समाप्त।
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે સાતમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો આઠમા જ્ઞાત અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપના મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મેરુ પર્વતની પશ્ચિમે નિષધ વર્ષધર પર્વતની ઉત્તરે, શીતોદા મહાનદીની દક્ષિણે સુખાવહ વક્ષસ્કાર પર્વતની
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 77 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरहंत–सिद्ध–पवयण–गुरु–थेर–बहुस्सुय–तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसिं, अभिक्ख नाणोवओगे य ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 78 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दंसण–विनए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो । खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाहीए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 79 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयण–पहावणया । एएहिं कारणेहिं, तित्थयरत्तं लहइ सो उ ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 80 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव एगराइयं। तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अनगारा खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तं जहा– चउत्थं करेंति, सव्वकामगुणियं पारेंति। छट्ठं करेंति, चउत्थं करेंति। अट्ठमं करेंति, छट्ठं करेंति। दसमं करेंति, अट्ठमं करेंति। दुवालसमं करेंति, दसमं करेंति। चोद्दसमं करेंति, दुवालसमं करेंति। सोलसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति। अट्ठारसमं करेंति, सोलसमं करेंति। वीसइमं करेंति, सोलसमं करेंति। अट्ठारसमं करेंति, चोद्दसमं करेंति। सोलसमं करेंति, दुवालसमं करेंति। चोद्दसमं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 81 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं महब्बलवज्जाणं छण्हं देवाणं देसूणाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स य पडिपुण्णाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पि देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठितिक्खएणं अनंतरं च यं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं-पत्तेयं कुमारत्ताए पच्चायाया, तं जहा– पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीनसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई। तए णं से महब्बले देवे तिहिं नाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाणगएसुं

Translated Sutra: ત્યાં કેટલાક દેવોની સ્થિતિ ૩૨ – સાગરોપમ છે, ત્યાં મહાબલ સિવાયના છ દેવોની સ્થિતિ દેશોન ૩૨ – સાગરોપમ હતી, મહાબલ દેવની પ્રતિપૂર્ણ ૩૨ – સાગરોપમ સ્થિતિ હતી. ત્યારપછી તે મહાબલ સિવાયના છ દેવો ત્યાંથી દેવ સંબંધી આયુનો, દેવ સંબંધી સ્થિતિનો, દેવ સંબંધી ભવનો ક્ષય થતા અનંતર ચ્યવીને આ જંબૂદ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં વિશુદ્ધ
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 82 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहयरियाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणुस्सवं, नवरं–मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा। तया णं कुंभए राया बहूहिं भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयरजम्मणा-भिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्मं जाव नाम-करणं–जम्हा णं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसय-णिज्जंसि डोहले विणीए, तं होउ णं अम्हं दारिया नामेणं मल्ली। तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवड्ढई०।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૨. તે કાળે, તે સમયે અધોલોકમાં વસનારી આઠ મહત્તરિકા દિશાકુમારીઓ, જેમ જંબૂદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિમાં જન્મ – વર્ણન છે, તે સર્વે કહેવું. વિશેષ આ – મિથિલામાં કુંભના ભવનમાં, પ્રભાવતીનો આલાવો કહેવો. યાવત્‌ નંદીશ્વર દ્વીપમાં મહોત્સવ કર્યો. ત્યારપછી કુંભરાજા તથા ઘણા ભવનપતિ આદિ ચારે દેવોએ તીર્થંકરનો જન્માભિષેક યાવત્‌
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 83 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सा वड्ढई भगवई दिवलोयचुया अणोवमसिरीया । दासी दास परिवुडा परिकिण्णा पीढमद्देहिं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 84 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असियसिरया सुनयणा बिंबोट्ठी धवलदंतपंतीया । वरकमल कोमलंगी फुल्लुप्पल गंध नीसासा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨
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