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Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 396 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! सच्चभास-त्ताए निसिरति, नो मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए निसिरति, नो असच्चामोस-भासत्ताए निसिरति। एवं एगिंदियविगलिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमाणिए। एवं पुहत्तेण वि। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं मोसभासत्ताए गेण्हति ताइं किं सच्चभासत्ताए निसिरति? मोसभासत्ताए निसिरति? सच्चामोसभासत्ताए निसिरति? असच्चामोसभासत्ताए निसिरति? गोयमा! नो सच्चभासत्ताए निसिरति, मोसभासत्ताए निसिरति नो सच्चामोसभासत्ताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्थितिद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औघिक जीव के समान कहना। विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करना। जैसे सत्यभाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहा है, वैसे ही मृषा तथा सत्यामृषाभाषा में
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१२ शरीर

Hindi 404 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा, सिद्धाणं अनंतभागो। पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल से – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से वे असंख्यात लोक – प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सलेस्सा णं भंते! नेरइया सव्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासनिस्सासा? स च्चेव पुच्छा। एवं जहा ओहिओ गमओ तहा सलेस्सगमओ वि णिरवसेसो भाणियव्वो जाव वेमानिया। कण्हलेस्सा णं भंते! नेरइया सव्वे समाहारा समसरीरा समुस्सासनिस्सासा पुच्छा। गोयमा! जहा ओहिया, नवरं– नेरइया वेदनाए माइमिच्छद्दिट्ठिउववन्नगा य अमाइसम्मद्दिट्ठिउववन्नगा य भाणियव्वा। सेसं तहेव जहा ओहियाणं। असुरकुमारा जाव वाणमंतरा एते जहा ओहिया, नवरं–मनूसाणं किरियाहिं विसेसो जाव तत्थ णं जेते सम्मद्दिट्ठी ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–संजया असंजया संजयासंजया य, जहा ओहियाणं। जोइसिय-वेमानिया आइल्लिगासु तिसु लेस्सासु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सलेश्य सभी नारक समान आहारवाले, समान शरीरवाले और समान उच्छ्‌वास – निःश्वासवाले हैं? सामान्य गम के समान सभी सलेश्य समस्त गम यावत्‌ वैमानिकों तक कहना। भगवन्‌ ! क्या कृष्णलेश्यावाले सभी नैरयिक समान आहारवाले, समान शरीरवाले और समान उच्छ्‌वास – निःश्वासवाले होते हैं ? गौतम ! सामान्य नारकों के समान कृष्णलेश्यावाले
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१७ लेश्या

उद्देशक-२ Hindi 458 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पिड्ढिया वा महिड्ढिया वा? गोयमा! कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा महिड्ढिया, नीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिड्ढिया, एवं काउलेस्सेहिंतो तेउलेस्सा महिड्ढिया, तेउलेस्सेहिंतो पम्हलेस्सा महिड्ढिया, पम्हलेस्सेहिंतो सुक्कलेस्सा महिड्ढिया। सव्वप्पिड्ढिया जीवा किण्हलेस्सा, सव्वमहिड्ढिया जीवा सुक्कलेस्सा। एतेसि णं भंते! नेरइयाणं कण्हलेसाणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पि-ड्ढिया वा महिड्ढिया वा? गोयमा! कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा महिड्ढिया, नीललेस्सेहिंतो काउलेस्सा महिड्ढिया।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इन कृष्णलेश्यावाले, यावत्‌ शुक्ललेश्यावाले जीवों में से कौन, किनसे अल्प ऋद्धिवाले अथवा महती ऋद्धि वाले होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्यी से नीललेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे कापोतलेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे तेजोलेश्यी महर्द्धिक हैं, उनसे पद्मलेश्यी महर्द्धिक हैं और उनसे शुक्ललेश्यी महर्द्धिक हैं। कृष्णलेश्यी
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२० अन्तक्रिया

Hindi 507 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! असंजयभवियदव्वदेवाणं अविराहियसंजमाणं विराहियसंजमाणं अविराहियसंजमा-संजमाणं विराहियसंजमासंजमाणं असण्णीणं तावसाणं कंदप्पियाणं चरगपरिव्वायगाणं किब्बि-सियाणं तेरिच्छियाणं आजीवियाणं आभिओगियाणं सलिंगीणं दंसनवावन्नगाणं देवलोगेसु उवव-ज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाओ पन्नत्तो? गोयमा! अस्संजयभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवनवासीसु उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जगेसु। अविराहियसंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे। विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवनवासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे। अविराहियसंजमा-संजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं अच्चुए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंयत भव्य – द्रव्यदेव जिन्होंने संयम की विराधना की है और नहीं की है, जिन्होंने संयमासंयम की विराधना की है और नहीं की है, असंज्ञी, तापस, कान्दर्पिक, चरक – परिव्राजक, किल्बिषिक, तिर्यंच, आजीविक मतानुयायी, अभियोगिक, स्वलिंगी साधु तथा जो सम्यग्दर्शनव्यापन्न हैं, ये जो देवलोकों में उत्पन्न हों तो किसका
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-१ Hindi 552 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सचित्ताहारा अचित्ताहारा मोसाहारा? गोयमा! नो सचित्ताहारा, अचित्ताहारा, नो मीसाहारा एवं असुरकुमारा जाव वेमानिया। ओरालियसरीरी जाव मनूसा सचित्ताहारा वि अचित्ताहारा वि मीसाहारा वि। नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी। नेरइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! नेरइयाणं आहारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगनिव्वत्तिए य अणाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जेसे अणाभोगनिव्वत्तिए से णं अणुसमयमविरहिए आहारट्ठे समुप्पज्जति। तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए आहारट्ठे समुप्पज्जति। नेरइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या नैरयिक सचित्ताहारी होते हैं, अचित्ताहारी होते हैं या मिश्राहारी ? गौतम ! वे केवल अचित्ताहारी होते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों पर्यन्त जानना। औदारिकशरीरी यावत्‌ मनुष्य सचित्ताहारी भी हैं, अचित्ताहारी भी हैं और मिश्राहारी भी हैं। भगवन्‌ ! क्या नैरयिक आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-१ Hindi 554 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! आहारट्ठी? हंता! आहारट्ठी। पुढविक्काइयाणं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? गोयमा! अनुसमयं अविरहिए आहरट्ठे समुप्पज्जति। पुढविक्काइया णं भंते! किमाहारमाहारेंति एवं जहा नेरइयाणं जाव–ताइं भंते! कति दिसिं आहारेंति? गोयमा! णिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं, नवरं– ओसन्नकारणं न भवति, वण्णतो काल-नील-लोहिय-हालिद्द-सुक्किलाइं, गंधओ सुब्भिगंध-दुब्भिगंधाइं, रसओ तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-महुराइं, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाइं, तेसिं पोराणे वण्णगुणे गंधगुणे रसगुणे फासगुणे विप्परिणामइत्ता

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या पृथ्वीकायिक जीव आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। पृथ्वीकायिक जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होती है ? गौतम ! प्रतिसमय बिना विरह के होती है। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव किस वस्तु का आहार करते हैं ? गौतम ! नैरयिकों के कथन के समान जानना; यावत्‌ पृथ्वीकायिक जीव कितनी दिशाओं से आहार करते हैं
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-१ Hindi 555 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! आहारट्ठी? हंता गोयमा! आहारट्ठी। बेइंदिया णं भंते! केवतिकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जति? जहा नेरइयाणं, नवरं–तत्थ णं जेसे आभोगनिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए वेमायाए आहारट्ठे समुप्पज्जति। सेसं जहा पुढविक्काइयाणं जाव आहच्च नीससंति, नवरं–नियमा छद्दिसिं। बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति? कतिभागं अस्साएंति? गोयमा! असंखेज्जतिभागं आहारेंति, अनंतभागं अस्साएंति। बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति? नो सव्वे आहारेंति? गोयमा! बेइंदियाणं दुविहे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या द्वीन्द्रिय जीव आहारार्थी होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! द्वीन्द्रिय जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा होत है ? गौतम ! नारकों के समान समझना। विशेष यह कि उनमें जो आभोग – निर्वर्तित आहार है, उसकी अभिलाषा असंख्यातसमय के अन्तर्मुहूर्त्त में विमात्रा से होती है। शेष कथन पृथ्वी – कायिकों
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-२ Hindi 562 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सलेसे णं भंते! जीवे किं आहारए? अनाहारए? गोयमा! सिय आहारए सिय अनाहारए। एवं जाव वेमानिए सलेसा णं भंते! जीवा किं आहारगा? अनाहारगा? गोयमा! जीवेगिंदिवज्जो तियभंगो। एवं कण्हलेसाए वि नीललेसाए वि काउलेसाए वि जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। तेउलेस्साए पुढवि-आउ-वणप्फइकाइयाणं छब्भंगा। सेसाणं जीवादिओ तियभंगो जेसिं अत्थि तेउलेस्सा। पम्हलेस्साए य सुक्कलेस्साए य जीवादीओ तियभंगो। अलेस्सा जीवा मनूसा सिद्धा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो आहारगा, अनाहारगा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सलेश्य जीव आहारक होता है या अनाहारक ? गौतम ! कदाचित्‌ आहारक और कदाचित्‌ अनाहारक होता है। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना। भगवन्‌ ! (बहुत) सलेश्य जीव आहारक होते हैं या अनाहारक ? गौतम ! समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर इनके तीन भंग हैं। इसी प्रकार कृष्ण, नील और कापोतलेश्यी में भी समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-२ Hindi 566 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणी जहा सम्मद्दिट्ठी। आभिनिबोहियनाणिसुतनाणिसु बेइंदिय-तेइंदिय चउरिंदिएसु छब्भंगा। अवसेसेसु जीवा-दीओ तियभंगो जेसिं अत्थि। ओहिनाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिया आहारगा नो अनाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो जेसिं अत्थि ओहिनाणं। मनपज्जवनाणी जीवा मनूसा य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि आहारगा, नो अनाहारगा। केवलनाणी जहा नोसण्णी-नोअसण्णी। अन्नाणी मइअन्नाणी सुयअन्नाणी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। विभंगनाणी पंचेंदियतिरिक्ख-जोणिया मनूसा य आहारगा, नो अनाहारगा। अवसेसेसु जीवादीओ तियभंगो।

Translated Sutra: ज्ञानी को सम्यग्दृष्टि के समान समझना। आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतु – रिन्द्रिय जीवों में छह भंग समझना। शेष जीव आदि में जिनमें ज्ञान होता है, उनमें तीन भंग हैं। अवधिज्ञानी पंचे – न्द्रियतिर्यंच आहारक होते हैं। शेष जीव आदि में, जिनमें अवधिज्ञान पाया जाता है, उनमें तीन
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२८ आहार

उद्देशक-२ Hindi 570 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ससरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। ओरालियसरीरीसु जीव-मनूसेसु तियभंगो। अवसेसा आहारगा, नो अनाहारगा, जेसिं अत्थि ओरालियसरीरं। वेउव्वियसरीरी आहारगसरीरी य आहारगा, नो अनाहारगा, जेसिं अत्थि। तेय-कम्मगसरीरी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। असरीरी जीवा सिद्धा य नो आहारगा, अनाहारगा।

Translated Sutra: समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष जीवों में तीन भंग हैं। औदारिकशरीरी जीवों और मनुष्यों में तीन भंग हैं। शेष जीवों और औदारिकशरीरी आहारक होते हैं। किन्तु जिनके औदारिक शरीर होता है, उन्हीं को कहना। वैक्रियशरीरी और आहारकशरीरी आहारक होते हैं। किन्तु यह कथन वैक्रिय और आहारकशरीरी के लिए है। समुच्चय
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३४ परिचारणा

Hindi 587 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! आहारे किं आभोगनिव्वत्तिए? अणाभोगनिव्वत्तिए? गोयमा! आभोगनिव्वत्तिए वि अनाभोगनिव्वत्तिए वि। एवं असुरकुमाराणं जाव वेमानियाणं, नवरं– एगिंदियाणं नो आभोग-निव्वत्तिए, अनाभोगनिव्वत्तिए। नेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं जाणंति पासंति आहारेंति? उदाहु न जाणंति न पासंति आहारेंति? गोयमा! न जाणंति न पासंति, आहारेंति। एवं जाव तेइंदिया। चउरिंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अत्थेगइया न जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थेगइया, न जाणंति न पासंति आहारेंति। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! अत्थेगइया जाणंति पासंति आहारेंति, अत्थे-गइया जाणंति न पासंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों का आहार आभोग – निर्वर्तित होता है या अनाभोग – निर्वर्तित ? गौतम ! दोनों होता है। इसी प्रकार असुरकुमारों से वैमानिकों तक कहना। विशेष यह कि एकेन्द्रिय जीवों का आहार अनाभोगनिर्वर्तित ही होता है। भगवन्‌ ! नैरयिक जिन पुद्‌गलों को आहार के रूपमें ग्रहण करते हैं, क्या वे उन्हें जानते हैं, देखते हैं
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 612 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेदनासमुग्घाए समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरपमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं नियमा छद्दिसिं एवइए खेत्ते अफुण्णे एवइए खेत्ते फुडे। से णं भंते! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे? केवइकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण वा एवइकालस्स अफुण्णे एवइकालस्स फुडे। ते णं भंते! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुभति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तस्स, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तस्स। ते णं भंते! पोग्गला निच्छूढा समाणा जाइं तत्थ पाणाइं भूयानं जीवाइं सत्ताइं अभिहणंति वत्तेंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वेदनासमुद्‌घात से समवहत हुआ जीव समवहत होकर जिन पुद्‌गलों को निकालता है, भंते ! उन पुद्‌गलों से कितना क्षेत्र परिपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और स्थूलता की अपेक्षा शरीरप्रमाण क्षेत्र को नियम से छहों दिशाओं में व्याप्त करता है। इतना क्षेत्र आपूर्ण और इतना ही क्षेत्र स्पृष्ट होता है। वह
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 613 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभति तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवतिए खेत्ते अफुण्णे? केवतिए खेत्ते फुडे? गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं जोयणाइं एगदिसिं विदिसिं वा एवतिए खेत्ते अफुण्णे एवतिए खेत्ते फुडे। से णं भंते! खेत्ते केवतिकालस्स अफुण्णे? केवतिकालस्स फुडे? गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेण एवतिकालस्स अफुण्णे एवतिकालस्स फुडे। सेसं तं चेव जाव पंचकिरिया वि। एवं नेरइए वि, नवरं–आयामेणं जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मारणान्तिकसमुद्‌घात के द्वारा समवहत हुआ जीव, समवहत होकर जिन पुद्‌गलों को आत्म – प्रदेशों से पृथक्‌ करता है, उन पुद्‌गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण तथा स्पृष्ट होता है ? गौतम ! विस्तार और बाहल्य की अपेक्षा से शरीरप्रमाण क्षेत्र तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग तथा उत्कृष्ट असंख्यात योजन
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Hindi 617 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगंतूणं समुग्घायं, अनंता केवली जिना । जर-मरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगतिं गता ॥

Translated Sutra: समुद्‌घात किये बिना ही अनन्त केवलज्ञानी जिनेन्द्र जरा और मरण से सर्वथा रहित हुए हैं तथा श्रेष्ठ सिद्धिगति को प्राप्त हुए हैं।
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 1 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ववगयजर-मरणभए, सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेणं । वंदामि जिनवरिंदं, तेलोक्कगुरुं महावीरं ॥

Translated Sutra: જરા, મૃત્યુ અને ભયથી રહિત સિદ્ધોને ત્રિવિધ અભિવંદન કરીને, ત્રૈલોક્ય ગુરુ જિનવરેન્દ્ર મહાવીરને વાંદુ છું.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Gujarati 2 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुयरयणनिहाणं जिनवरेण, भवियजणणिव्वुइकरेण । उवदंसिया भयवया, पन्नवणा सव्वभावाणं ॥

Translated Sutra: ભવ્યજનોને મોક્ષનું કારણ અને જિનવર મહાવીરે શ્રુતરત્નોના નિધાનભૂત એવી સર્વ ભાવોની પ્રજ્ઞાપના બતાવી છે.
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 178 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जिनदिट्ठे भावे, चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, निस्सग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૭
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Gujarati 187 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिनाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૭
Pragnapana પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

पद-३६ समुद्घात

Gujarati 617 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगंतूणं समुग्घायं, अनंता केवली जिना । जर-मरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगतिं गता ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૧૫
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ अब्रह्म

Hindi 19 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा। भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम

Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ अब्रह्म

Hindi 20 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु। अवरे परदारेहिं हम्मंति विसुणिया घननासं सयणविप्पनासं च पाउणंति। परस्स दाराओ जे अविरया मेहुण-सण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मनुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्तओ, जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं, रोगत्ता वाहिया य वड्ढेंति रोय-वाही, दुवे य लोया दुआराहगा भवंति–इहलोए चेव परलोए–परस्स दाराओ जे अविरया। तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया

Translated Sutra: जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अत्यन्त आसक्त है और मूढता अथवा से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों से घात करते हैं। कोई – कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब धन का विनाश और स्वजनों का सर्वथा
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 23 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा। उड्ढलोगवासी दुविहा

Translated Sutra: उस परिग्रह को लोभ से ग्रस्त परिग्रह के प्रति रुचि रखने वाले, उत्तम भवनों में और विमानों में निवास करने वाले ममत्वपूर्वक ग्रहण करते हैं। नाना प्रकार से परिग्रह को संचित करने की बुद्धि वाले देवों के निकाय यथा – असुरकुमार यावत्‌ स्तनितकुमार तथा अणपन्निक, यावत्‌ पतंग और पिशाच, यावत्‌ गन्धर्व, ये महर्द्धिक व्यन्तर
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 24 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा। एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स

Translated Sutra: परिग्रह में आसक्त प्राणी परलोक में और इस लोक में नष्ट – भ्रष्ट होते हैं। अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट होते हैं। तीव्र मोहनीयकर्म के उदय से मोहित मति वाले, लोभ के वश में पड़े हुए जीव त्रस, स्थावर, सूक्ष्म और बादर पर्यायों में तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्थाओं में यावत्‌ चार गति वाले संसार – कानन में परिभ्रमण
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Hindi 28 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं सक्का काउं जे, जं णेच्छह ओसहं मुहा पाउं । जिनवयणं गुणमहुरं, विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥

Translated Sutra: जिन भगवान के वचन समस्त दुःखों का नाश करने के लिए गुणयुक्त मधुर विरेचन औषध हैं, किन्तु निःस्वार्थ भाव से दिये जाने वाले इस औषध को जो पीना ही नहीं चाहते, उनके लिए क्या किया जा सकता है ?
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 3 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचविहो पन्नत्तो, जिनेहिं इह अण्हओ अणादीओ । हिंसा - मोसमदत्तं, अब्बंभ - परिग्गहं चेव ॥

Translated Sutra: जिनेश्वर देव ने इस जगत में अनादि आस्रव को पाँच प्रकार का कहा है – हिंसा, असत्य, अदत्तादान, अब्रह्म और परिग्रह।
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 4 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जारिसओ जंनामा, जह य कओ जारिसं फलं देति । जेवि य करेंति पावा, पाणवहं तं निसामेह ॥

Translated Sutra: प्राणवधरूप प्रथम आस्रव जैसा है, उसके जो नाम हैं, जिन पापी प्राणियों द्वारा वह किया जाता है, जिस प्रकार किया जाता है और जैसा फल प्रदान करता है, उसे तुम सूनो।
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 5 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पाणवहो नाम एस निच्चं जिणेहिं भणिओ–पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहसिओ अनारिओ निग्घिणो निस्संसो महब्भओ पइभओ अतिभओ बीहणओ तासणओ अणज्जो उव्वेयणओ य निरवयक्खो निद्धम्मो निप्पिवासो निक्कलुणो निरयवास-गमन-निधनो मोह-महब्भय-पवड्ढओ-मरण वेमणंसो पढमं अधम्मदारं।

Translated Sutra: जिनेश्वर भगवान ने प्राणवध को इस प्रकार कहा है – यथा पाप, चण्ड, रुद्र, क्षुद्र, साहसिक, अनार्य, निर्घृण, नृशंस, महाभय, प्रतिभय, अतिभय, भापनक, त्रासनक, अन्याय, उद्वेगजनक, निरपेक्ष, निर्धर्म, निष्पिपास, निष्करुण, नरकवास गमन – निधन, मोहमहाभय प्रवर्तक और मरणवैमनस्य यह प्रथम अधर्मद्वार है।
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 7 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी पाणवहं भयंकरं बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, किं ते? पाढीण-तिमि-तिमिंगिल-अनेगज्झस-विविहजातिमंदुक्क-दुविहकच्छभ-नक्क-मगर-दुविह गाह-दिलिवेढय-मंदुय-सीमा-गार-पुलुय-सुंसुमार-बहुप्पगारा जलयरविहाणाकते य एवमादी। कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर-हुरब्भ-ससय-पसय-गोण-रोहिय-हय-गय-खर-करभ-खग्ग-वानर-गवय-विग-सियाल-कोल-मज्जार-कोलसुणक-सिरियंदलय-आवत्त-कोकंतिय-गोकण्ण-मिय -महिस-वियग्घ- छगल-दीविय- साण- तरच्छ-अच्छ- भल्ल- सद्दूल-सीह- चिल्लला-चउप्पय-विहाणाकए य एवमादी। अयगर-गोनस-वराहि-मउलि-काओदर-दब्भपुप्फ-आसालिय-महोरगा

Translated Sutra: कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में आसक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से हिंसा किया करते हैं। वे कैसे हिंसा करते हैं ? मछली, बड़े मत्स्य,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Hindi 8 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका। कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते? सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क

Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Hindi 12 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया। तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला। अलिएण

Translated Sutra: पूर्वोक्त मिथ्याभाषण के फल – विपाक से अनजान वे मृषावादी जन नरक और तिर्यञ्च योनि की वृद्धि करते हैं, जो अत्यन्त भयंकर है, जिनमें विश्रामरहित वेदना भुगतनी पड़ती है और जो दीर्घकाल तक बहुत दुःखों से परिपूर्ण हैं। वे मृषावाद में निरत नर भयंकर पुनर्भव के अन्धकार में भटकते हैं। उस पुनर्भव में भी दुर्गति प्राप्त
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 15 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ लोभगत्था, दद्दर ओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका भग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयनिच्छूढा लोकवज्झा, उद्दहक गामघाय पुरघाय पंथघायग आलीवग तित्थभेया लहुहत्थ संपउत्ता जूईकरा खंडरक्खत्थीचोर पुरिसचोर संधिच्छेया य गंथिभेदगपरधनहरणलोमावहार- अक्खेवी हडकारक निम्मद्दग गूढचोर गोचोर अस्सचोरग दासिचोरा य एकचोरा ओकड्ढक संपदायक उच्छिंपक सत्थघायक बिलकोलीकारका य निग्गाह विप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्नेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया। विपुलबल-परिग्गहा य बहवे रायाणो

Translated Sutra: उस चोरी को वे चोर – लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चूके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदय वाले, अत्यन्त महती ईच्छा वाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपाने वाले हैं – आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अदत्त

Hindi 16 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अतिधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड चाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार निद्दय आरक्खिय खर फरुस वयण तज्जण गलत्थल्ल उत्थल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया निरयवसहिसरिसं। तत्थवि गोम्मिकप्पहार दूमण निब्भच्छण कडुयवयण भेसणग भयाभिभूया अक्खित्त नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच पास मग्गण परायणेहिं गोम्मिकभडेहिं विविहेहिं बंधणेहि, किं ते? हडि नियड बालरज्जुय कुदंडग वरत्त लोह-संकल हत्थंदुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहिं, अन्नेहि य एवमादिएहिं गोम्मिक भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण मोड-णाहि

Translated Sutra: इसी प्रकार परकीय धन द्रव्य की खोज में फिरते हुए कईं चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें मारा – पीटा जाता है, बाँधा जाता है और कैद किया जाता है। उन्हें वेग के साथ घूमाया जाता है। तत्पश्चात्‌ चोरों को पकड़ने वाले, चौकीदार, गुप्तचर उन्हें कारागार में ठूंस देते। कपड़े के चाबुकों के प्रहारों से, कठोर – हृदय सिपाहियों के तीक्ष्ण
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Hindi 33 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाइंलोकहिय-सव्वयाइं सुयसागर देसियाइं तव संजम महव्वयाइं सीलगुणवरव्वयाइं सच्चज्जवव्वयाइं नरग तिरिय मणुय देवगति विवज्जकाइं सव्वजिनसासणगाइं कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाइं दुहसयविमोयणकाइं सुहसयपवत्तणकाइं कापुरिस-दुरु-त्तराइं सप्पुरिसनिसेवियाइं निव्वाणगमणमग्गसग्गपणायगाइं संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया। तत्थ पढमं अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति– दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाणं निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंग तित्ती दया विमुत्ती खंती समत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती

Translated Sutra: हे सुव्रत ! ये महाव्रत समस्त लोक के लिए हितकारी है। श्रुतरूपी सागर में इनका उपदेश किया गया है। ये तप और संयमरूप व्रत है। इन महाव्रतों में शील का और उत्तम गुणों का समूह सन्निहित है। सत्य और आर्जव – इनमें प्रधान है। ये महाव्रत नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति से बचाने वाले हैं – समस्त जिनों – तीर्थंकरों
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Hindi 34 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एसा सा भगवती अहिंसा, जा सा– भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं। तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं। समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं। दुहट्टियाणं व ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्थगमणं। एत्तो विसिट्ठतरिका अहिंसा, जा सा– पुढवि जल अगणि मारुय वणप्फइ बीज हरित जलचर थलचर खहचर तसथावर सव्वभूय खेमकरी। [सूत्र] एसा भगवती अहिंसा, जा सा– अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण विनय तव संजमनायकेहिं तित्थंकरेहिं सव्वजग-वच्छलेहिं तिलोगमहिएहिं जिणचंदेहिं सुट्ठु दिट्ठा, ओहिजिणेहिं विण्णाया, उज्जुमतीहिं विदिट्ठा, विपुलमतीहिं विदिता, पुव्वधरेहिं अधीता, वेउव्वीहिं पतिण्णा। आभिनिबोहियनाणीहिं

Translated Sutra: यह अहिंसा भगवती जो है सो भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने समान है, प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में जहाज समान है, चतुष्पद के लिए आश्रम समान है, दुःखों से पीड़ित के लिए औषध समान है, भयानक जंगल में सार्थ समान है। भगवती अहिंसा
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ सत्य

Hindi 36 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च सच्चवयणं–सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिट्ठं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर नरवसभ पवर बलवग सुविहियजण बहुमयं परमसाहु-धम्मचरणं तव नियम परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहकं सग्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितहं, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं। सच्चेण महासमुद्दमज्झे चिट्ठंति, न निमज्जंति मूढाणिया वि पोया। सच्चेण य उदगसंभमंसि

Translated Sutra: हे जम्बू ! द्वितीय संवर सत्यवचन है। सत्य शुद्ध, शुचि, शिव, सुजात, सुभाषित होता है। यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक्‌ विचारपूर्वक कहा गया है। इसे ज्ञानीजनों ने कल्याण के समाधान के रूप में देखा है। यह सुप्रतिष्ठित है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है। सत्य सुरवरों, नरवृषभों, अतिशय बलधारियों एवं सुविहित
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-४ ब्रह्मचर्य

Hindi 43 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जेण सुद्धचरिएण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू। स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्धं चरति बंभचेरे। इमं च रति राग दोस मोह पवड्ढणकरं किंमज्झ पमायदोस पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणि य अभिक्खणं कक्खसीसकरचरणवदणधोवण संबाहण गायकम्म परिमद्दण अनु-लेवण चुण्णवास धूवण सरीरपरिमंडण बाउसिक हसिय भणिय नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल-मल्लपेच्छण बेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव संजम बंभचेर घातोवघातियाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जेयव्वाइं सव्वकालं। भावेयव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव नियम सील जोगेहिं निच्चकालं, किं ते? – अण्हाणकऽदंतधोवण सेयमलजल्लधारण

Translated Sutra: ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्दोष परिपालन करने से सुब्राह्मण, सुश्रमण और सुसाधु कहा जाता है। जो शुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण करता है वही ऋषि है, वही मुनि है, वही संयत है और वही सच्चा भिक्षु है। ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने वाले पुरुष को रति, राग, द्वेष और मोह, निस्सार प्रमाददोष तथा शिथिलाचारी साधुओं का शील और घृतादि
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 44 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! अपरिग्गहो संवुडे य समणे आरंभ परिग्गहातो विरते, विरते कोहमानमायालोभा। एगे असंजमे। दो चेव राग-दोसा। तिन्नि य दंडा, गारवा य, गुत्तीओ, तिन्नि य विराहणाओ। चत्तारि कसाया, ज्झाणा, सण्णा, विकहा तहा य हुंति चउरो। पंच य किरियाओ, समिति इंदिय महव्वयाइं च। छज्जीवनिकाया, छच्च लेसाओ। सत्त भया अट्ठ य मया। नव चेव य बंभचेरगुत्ती। दसप्पकारे य समणधम्मे। एक्कारस य उवासगाणं। बारस य भिक्खुपडिमा। किरियठाणा य। भूयगामा। परमाधम्मिया। गाहासोलसया। असंजम अबंभ णाय असमाहिठाणा। सबला। परिसहा। सूयगडज्झयण देव भावण उद्देस गुण पकप्प पावसुत मोहणिज्जे। सिद्धातिगुणा य। जोगसंगहे,सुरिंदा!

Translated Sutra: हे जम्बू ! जो मूर्च्छारहित है। आरंभ और परिग्रह रहित है। तथा क्रोध – मान – माया – लोभ से विरत है। वही श्रमण है। एक असंयम, राग और द्वेष दो, तीन दण्ड, तीन गौरव, तीन गुप्ति, तीन विराधना, चार कषाय – चार ध्यान – चार संज्ञा – चार विकथा, पाँच क्रिया – पाँच समिति – पाँच महाव्रत छह जीवनिकाय, छह लेश्या, सात भय, आठ मद, नव ब्रह्मचर्यगुप्ति,
Prashnavyakaran प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-५ अपरिग्रह

Hindi 45 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जो सो वीरवरवयणविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्धमूलो धितिकंदो विणयवेइओ निग्गततिलोक्कविपुल-जसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत ज्झाण सुभजोग नाण पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्हयफलो पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खर मोत्तिमग्गस्स सिहरभूओ संवर-वरपायवो। चरिमं संवरदारं। जत्थ न कप्पइ गामागर नगर खेड कब्बड मडंब दोणमुह पट्टणासमगयं च किंचि अप्पं व बहुं व अणुं व थूलं व तस थावरकाय दव्वजायं मणसा वि परिघेत्तुं। न हिरण्ण सुवण्ण खेत्त वत्थुं, न दासी दास भयक पेस हय गय गवेलगं व, न जाण जुग्ग सयणासणाइं,

Translated Sutra: श्रीवीरवर – महावीर के वचन से की गई परिग्रहनिवृत्ति के विस्तार से यह संवरवर – पादप बहुत प्रकार का है। सम्यग्दर्शन इसका विशुद्ध मूल है। धृति इसका कन्द है। विनय इसकी वेदिका है। तीनों लोकों में फैला हुआ विपुल यश इसका सघन, महान और सुनिर्मित स्कन्ध है। पाँच महाव्रत इसकी विशाल शाखाएं हैं। भावनाएं इस संवरवृक्ष
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ हिंसा

Gujarati 3 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचविहो पन्नत्तो, जिनेहिं इह अण्हओ अणादीओ । हिंसा - मोसमदत्तं, अब्बंभ - परिग्गहं चेव ॥

Translated Sutra: જિનેશ્વરોએ જગતમાં અનાદિ આસ્રવને પાંચ ભેદે કહ્યો છે – હિંસા, મૃષા, અદત્ત, અબ્રહ્મ અને પરિગ્રહ.
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ मृषा

Gujarati 12 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया। तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला। अलिएण

Translated Sutra: ઉક્ત અસત્યભાષણના ફળવિપાકથી અજાણ લોકો નરક અને તિર્યંચયોનિની વૃદ્ધિ કરે છે. જ્યાં મહાભયંકર, અવિશ્રામ, બહુ દુઃખોથી પરિપૂર્ણ અને દીર્ઘકાલિક વેદના ભોગવવી પડે છે. તે અસત્ય સાથે સારી રીતે જોડાયેલા ભયંકર અને દુર્ગતિને પ્રાપ્ત કરાવનારા અંધકાર રૂપ પુનર્ભવમાં ભટકે છે. તે પણ દુઃખે કરી અંત પામે તેવા, દુર્ગત, દુરંત, પરતંત્ર,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Gujarati 23 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा। उड्ढलोगवासी दुविहा

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૩. પૂર્વોક્ત પરિગ્રહના લોભથી ગ્રસ્ત, પરિગ્રહ પ્રત્યે રુચિ રાખનાર, ઉત્તમ ભવન અને વિમાન નિવાસી, મમત્વપૂર્વક પરિગ્રહને ગ્રહણ કરે છે. પરિગ્રહરૂચિ, વિવિધ પરિગ્રહ કરવાની બુદ્ધિવાળા દેવનિકાય જેમ કે. અસુર, નાગ, સુવર્ણ, વિદ્યુત, અગ્નિ, દ્વીપ, ઉદધિ, દિશિ, વાયુ, સ્તનિત – કુમારો તથા અણપન્નિ, પણપન્નિ, ઋષિવાદી, ભૂતવાદી,
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Gujarati 24 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा। एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૩
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ परिग्रह

Gujarati 28 Gatha Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] किं सक्का काउं जे, जं णेच्छह ओसहं मुहा पाउं । जिनवयणं गुणमहुरं, विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫
Prashnavyakaran પ્રશ્નવ્યાપકરણાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

संवर द्वार श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ अहिंसा

Gujarati 33 Sutra Ang-10 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाइंलोकहिय-सव्वयाइं सुयसागर देसियाइं तव संजम महव्वयाइं सीलगुणवरव्वयाइं सच्चज्जवव्वयाइं नरग तिरिय मणुय देवगति विवज्जकाइं सव्वजिनसासणगाइं कम्मरयविदारगाइं भवसयविणासणकाइं दुहसयविमोयणकाइं सुहसयपवत्तणकाइं कापुरिस-दुरु-त्तराइं सप्पुरिसनिसेवियाइं निव्वाणगमणमग्गसग्गपणायगाइं संवरदाराइं पंच कहियाणि उ भगवया। तत्थ पढमं अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति– दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाणं निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंग तित्ती दया विमुत्ती खंती समत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૨
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 5 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभ-विमानवासीहिं वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति। तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे?) भारहे

Translated Sutra: उस काल उस समय में सूर्याभ नामक देव सौधर्म स्वर्ग में सूर्याभ नामक विमान की सुधर्मा सभा में सूर्याभ सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देवों, सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और बहुत से सूर्याभ विमानवासी वैमानिक देवदेवियों सहित अव्याहत निरन्तर
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 13 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइना परमसोमनस्सिया हरिसवस विसप्प-माणहियया अप्पेगइया वंदनवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्मानवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया असुयाइं सुणिस्सामो, अप्पेग-इया सुयाइं अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमनुयत्तेमाणा अप्पेगइया अन्नमन्नमनुवत्तेमाणा अप्पेगइया जिनभतिरागेणं अप्पेगइया धम्मो त्ति अप्पेगइया जीयमेयं

Translated Sutra: तदनन्तर पदात्यनीकाधिपति देव से इस बात को सूनकर सूर्याभविमानवासी सभी वैमानिक देव और देवियाँ हर्षित, सन्तुष्ट यावत्‌ विकसितहृदय हो, कितने वन्दना करने के विचार से, कितने पर्युपासना की आकांक्षा से, कितने सत्कार की भावना से, कितने सम्मान की ईच्छा से, कितने जिनेन्द्र भगवान प्रति कुतूहलजनित भक्ति – अनुराग से, कितने
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 15 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनंपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता

Translated Sutra: तदनन्तर वह आभियोगिक देव सूर्याभदेव द्वारा इस प्रकार का आदेश दिये जाने पर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ यावत्‌ प्रफुल्ल हृदय हो दोनों हाथ जोड़ यावत्‌ आज्ञा को सूना यावत्‌ उसे स्वीकार करके वह ईशानकोण में आया। वहाँ आकर वैक्रिय समुद्‌घात किया और संख्यात योजन ऊपर – नीचे लंबे दण्ड बनाया यावत्‌ यथाबादर पुद्‌गलों को
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 16 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं उत्तरवेउव्वियरूवं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, दोहिं अनिएहिं, तं जहा–गंधव्वाणिएण य नट्ठाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमानं अनुपयाहिणी-करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासन-वरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमानं

Translated Sutra: तदनन्तर आभियोगिक देव ने उस सिंहासन के पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तर पूर्व दिग्भाग में सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवों के बैठने के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्र महिषियों के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिणपूर्व दिशा में सूर्याभदेव की आभ्यन्तर
Rajprashniya राजप्रश्नीय उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्याभदेव प्रकरण

Hindi 36 Sutra Upang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा। सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ। तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं

Translated Sutra: उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैकड़ों खम्भों पर सन्निविष्ट यावत्‌ अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर हैं। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में। ये द्वार ऊंचाई में सोलह
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