Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (18391)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 135 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि। नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि। नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए

Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्य है या नहीं है ? नियमतः ये तीनों द्रव्य हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त हैं ? तीनों द्रव्य असंख्यात ही हैं। नैगम – व्यवहारनयसम्मत अनेक आनुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग में रहते हैं ? इत्यादि प्रश्न है। एक द्रव्य
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 136 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी? पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुक्कित्तणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अनुगमे।

Translated Sutra: संग्रहनय सम्मत अनौपधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? वह पाँच प्रकार की है। अर्थपदप्ररूपणता, भंग समुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 137 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया? संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्तानुपुव्वीए संगहस्स तहा कालानुपुव्वीए वि भाणियव्वाणि, नवरं–ठितीअभिलावो जाव। से तं अनुगमे। से तं संगहस्स अनोवनिहिया कालानुपुव्वी। से तं अनोवनिहिया कालानुपुव्वी।

Translated Sutra: संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? इन पाँचों द्वारों संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी समान जानना। विशेष यह कि ‘प्रदेशावगाढ’ के बदले ‘स्थिति’ कहना।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 138 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा

Translated Sutra: औपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत्‌ दस समय की स्थिति वाले यावत्‌ संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 139 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उक्कित्तणानुपुव्वी? उक्कित्तणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उसभे अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–वद्धमाणे जाव उसभे। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए चउवीसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से

Translated Sutra: उत्कीर्तनानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? इस प्रकार है – ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपार्श्र्व, चन्द्रप्रभ, सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शांति, कुन्थु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, अरिष्टनेमि,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 140 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गणनानुपुव्वी? गणनानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–एगो दसं सयं सहस्सं दससहस्साइं सयसहस्सं दससयसहस्साइं कोडी दसकोडीओ कोडिसयं दसकोडिसयाइं। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–दसकोडिसयाइं जाव एगो। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसकोडिसय-गच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं गणणानुपुव्वी।

Translated Sutra: गणनानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? एक, दस, सौ, सहस्र, दस सहस्र, लाख, दस लाख, करोड़, दस कोटि, कोटिशत, दस कोटिशत, इस प्रकार से गिनती करना पूर्वानुपूर्वी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? दस अरब से लेकर व्युत्क्रम से एक पर्यन्त की गिनती करना पश्चानुपूर्वी
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 141 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संठाणानुपुव्वी? संठाणानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समचउरंसे नग्गोहपरिमंडले साई खुज्जे वामणे हुंडे। से तं पुव्वानुपुव्वी से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–हुंडे जाव समचउरंसेसे तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी– एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं संठाणानुपुव्वी।

Translated Sutra: संस्थानापूर्वी क्या है ? उनके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी किसे कहते हैं? समचतुरस्रसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, सादिसंस्थान, कुब्जसंस्थान, वामनसंस्थान, हुंडसंस्थान के क्रम से संस्थानों के विन्यास करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। पश्चानुपूर्वी क्या
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 142 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सामायारियानुपुव्वी? सामायारियानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा– पुव्वानुपुव्वी पच्छानु-पुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–

Translated Sutra: समाचारी – आनुपूर्वी क्या है ? वह तीन प्रकार की है – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है। वह इस प्रकार है –
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 143 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य निमंतणा ॥

Translated Sutra: इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आवश्यकी, नैषेधिकी, आप्रच्छना, प्रतिप्रच्छना, छंदना, निमंत्रणा और उपसंपद्‌। यह इस प्रकार की सामाचारी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? उपसंपद्‌ से लेकर इच्छाकार पर्यन्त स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है। अनानुपूर्वी क्या है ? एक से लेकर दस पर्यन्त एक – एक की वृद्धि द्वारा श्रेणी रूप में
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 144 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवसंपया य काले, सामायारी भवे दसविहा उ । –से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–उवसंपया जाव इच्छा। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं सामायारियानुपुव्वी।

Translated Sutra: देखो सूत्र १४३
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 145 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं भावानुपुव्वी? भावानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी। से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामिए सन्निवाइए। से तं पुव्वानुपुव्वी। से किं तं पच्छानुपुव्वी? पच्छानुपुव्वी–सन्निवाइए जाव उदइए। से तं पच्छानुपुव्वी। से किं तं अनानुपुव्वी? अनानुपुव्वी–एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अनानुपुव्वी। से तं भावानुपुव्वी। से तं आनुपुव्वी।

Translated Sutra: भावानुपूर्वी क्या है ? तीन प्रकार की है। पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव, पारिणामिकभाव, सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास पूर्वानुपूर्वी है। पश्चानुपूर्वी क्या है ? सान्निपातिकभाव से लेकर औदयिकभाव पर्यन्त
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 146 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नामे? नामे दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगनामे दुनामे तिनामे चउनामे पंचनामे छनामे सत्तनामे अट्ठनामे नवनामे दसनामे।

Translated Sutra: नाम क्या है ? नाम के दस प्रकार हैं। एक नाम, दो नाम, तीन नाम, चार नाम, पाँच नाम, छह नाम, सात नाम, आठ नाम, नौ नाम, दस नाम।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 147 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं एगनामे? एगनामे–

Translated Sutra: एकनाम क्या है ? द्रव्यों, गुणों एवं पर्यायों के जो नाम लोक में रूढ़ हैं, उन सबकी ‘नाम’ ऐसी एक संज्ञा आगम रूप निकष में कही गई है। यह एकनाम है। सूत्र – १४७–१४९
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 148 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नामानि जानि कानि वि, दव्वाण गुणाण पज्जवाणं च । तेसिं आगम-निहसे, नामंति परूविया सन्ना ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४७
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 149 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं एगनामे।

Translated Sutra: देखो सूत्र १४७
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 150 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दुनामे? दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगक्खरिए य अनेगक्खरिए य। से किं तं एगक्खरिए? एगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–ह्रोः श्रीः धीः स्त्री। से तं एगक्खरिए। से किं तं अनेगक्खरिए? अनेगक्खरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–कन्ना वीणा लता माला। से तं अनेगक्खरिए। अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–जीवनामे य अजीवनामे य। से किं तं जीवनामे? जीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा-देवदत्तो जन्नदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो।से तं जीवनामे से किं तं अजीवनामे? अजीवनामे अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–घडो पडो कडो रहो। से तं अजीवनामे। अहवा दुनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–विसेसिए

Translated Sutra: द्विनाम क्या है ? द्विनाम के दो प्रकार हैं – एकाक्षरिक और अनेकाक्षरिक। एकाक्षरिक द्विनाम क्या है ? उसके अनेक प्रकार हैं। जैसे कि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि एकाक्षरिक नाम हैं। अनेकाक्षरिक द्विनाम का क्या स्वरूप है ? उसके अनेक प्रकार हैं। यथा – कन्या, वीणा, लता, माला आदि अनेकाक्षरिक द्विनाम हैं। अथवा द्विनाम के
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 151 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिनामे? तिनामे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वनामे गुणनामे पज्जवनामे। से किं तं दव्वनामे? दव्वनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगासत्थिकाए जीवत्थि-काए पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए। से तं दव्वनामे। से किं तं गुणनामे? गुणनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे संठाणनामे। से किं तं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णनामे नीलवण्णनामे लोहिय-वण्णनामे हालिद्दवण्णनामे सुक्किल्लवण्णनामे। से तं वण्णनामे। से किं तं गंधनामे? गंधनामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधनामे य दुब्भिगंधनामे य। से तं गंधनामे। से

Translated Sutra: त्रिनाम क्या है ? त्रिनाम के तीन भेद हैं। वे इस प्रकार – द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम। द्रव्यनाम क्या है ? द्रव्यनाम छह प्रकार का है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्‌गलास्तिकाय, अद्धासमय। गुणनाम क्या है ? पाँच प्रकार से हैं। वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, संस्थाननाम। वर्णनाम
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 152 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तं पुण नामं तिविहं, इत्थी पुरिसं नपुंसगं चेव । एएसिं तिण्हंपि य, अंतम्मि परूवणं वोच्छं ॥

Translated Sutra: उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं। स्त्रीनाम, पुरुषनाम और नपुंसकनाम। इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अंत्याक्षरो द्वारा होता है। पुरुषनामों के अंत में ‘आ, ई, ऊ, ओ’ इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में ‘ओ’ को छोड़कर शेष तीन वर्ण होते हैं। जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 158 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं तिनामे।

Translated Sutra: देखो सूत्र १५२
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 159 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं चउनामे? चउनामे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आगमेणं लोवेणं पयईए विगारेणं। से किं तं आगमेणं? आगमेणं–पद्मानि पयांसि कुंडानि। से तं आगमेणं। से किं तं लोवेणं? लोवेणं–ते अत्र = तेत्र, पटो अत्र = पटोत्र, घटो अत्र = घटोत्र, रथो अत्र = रथोत्र। से तं लोवेणं। से किं तं पयईए? पयईए–अग्नी एतौ, पटू इमौ, शाले एते, माले इमे। से तं पयईए। से किं तं विगारेणं? विगारेणं–दण्डस्य अग्रं = दण्डाग्रम्‌, सो आगता = सागता, दधि इदं = दधीदम्‌, नदी ईहते = नदीहते, मधु उदकं = मधूदकम्‌, वधू ऊहते = वधूहते। से तं विगारेणं। से तं चउनामे।

Translated Sutra: चतुर्नाम क्या है ? चार प्रकार हैं। आगमनिष्पन्ननाम, लोपनिष्पन्ननाम, प्रकृतिनिष्पन्ननाम, विकारनिष्पन्ननाम। आगम – निष्पन्ननाम क्या है ? पद्मानि, पयांसि, कुण्डानि आदि ये सब आगमनिष्पन्ननाम हैं। लोपनिष्पन्ननाम क्या है ? ते + अत्र – तेऽत्र, पटो + अत्र – पटोऽत्र, घटो + अत्र – घटोऽत्र, रथो + अत्र रथोऽत्र, ये लोपनिष्पन्ननाम
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 160 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पंचनामे? पंचनामे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामिकं २. नैपातिकं ३. आख्यातिकं ४. औपसर्गिकं ५. मिश्रम्‌। अश्व इति नामिकम्‌। खल्विति नैपातिकम्‌। धावतीत्याख्यातिकम्‌। परीत्यौपसर्गिकम्‌। संयत इति मिश्रम्‌। से तं पंचनामे।

Translated Sutra: पंचनाम क्या है ? पाँच प्रकार का है। नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, औपसर्गिक और मिश्र। जैसे ‘अश्व’ यह नामिकनाम का, ‘खलु’ नैपातिकनाम का, ‘धावति’ आख्यातिकनाम का, ‘परि’ औपसर्गिक और ‘संयत’ यह मिश्रनाम का उदाहरण है।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 161 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं छनामे? छनामे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. उदइए २. उवसमिए ३. खइए ४. खओवसमिए ५. पारिणामिए ६. सन्निवाइए। से किं तं उदइए? उदइए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य उदयनिप्फन्ने य। से किं तं उदए? उदए–अट्ठण्हं कम्मपयडीणं उदए णं। से तं उदए। से किं तं उदयनिप्फन्ने? उदयनिप्फन्ने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा– जीवोदयनिप्फन्ने य अजीवो-दयनिप्फन्ने य। से किं तं जीवोदयनिप्फन्ने? जीवोदयनिप्फन्ने अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइए तिरिक्ख-जोणिए मनुस्से देवे पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए वाउकाइए वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसाई मानकसाई मायाकसाई लोभकसाई, इत्थिवेए पुरिसवेए नपुंसगवेए, कण्हलेसे

Translated Sutra: छहनाम क्या है ? छह प्रकार हैं। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक। औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। औदयिक और उदयनिष्पन्न। औदयिक क्या है ? ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। उदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? दो प्रकार हैं – जीवोदयनिष्पन्न, अजीवोदयनिष्पन्न। जीवोदयनिष्पन्न
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 163 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उक्कावाया दिसादाहा गज्जियं विज्जू निग्घाया जूवया जक्खालित्ता धूमिया महिया रयुग्घाओ चंदोवरागा सूरोवरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पडिचंदा पडिसूरा इंदधणू उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा नगरा घरा पव्वता पायाला भवणा निरया रयणप्पभा सक्करप्पभा वालुयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे सणंकुमारे माहिंदे बंभलोए लंतए महासुक्के सहस्सारे आणए पाणए आरणे अच्चुए गेवेज्जे अनुत्तरे ईसिप्पब्भारा परमाणुपोग्गले दुपएसिए जाव अनंतपएसिए। से तं साइपारिणामिए। से किं तं अनाइ-पारिणामिए? अनाइ-पारिणामिए–धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए आगास-त्थिकाए जीवत्थिकाए

Translated Sutra: उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्‌, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्‌घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ, वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 164 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सत्तनामे? सत्तनामे–सत्त सरा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: सप्तनाम क्या है ? सात प्रकार के स्वर रूप है। – षड्‌ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, ये सात स्वर जानना। सूत्र – १६४, १६५
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 166 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं। जिह्वा के अग्रभाग से षड्‌जस्वर का, वक्षस्थल से ऋषभस्वर, कंठ से गांधार – स्वर, जिह्वा के मध्यभाग से मध्यमस्वर, नासिका से पंचमस्वर का, दंतोष्ठ – संयोग से धैवतस्वर का और मूर्धा से निषाद स्वर का उच्चारण करना चाहिए। सूत्र – १६६–१६८
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 172 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त सरा अजीवनिस्सिया पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: अजीवनिश्रित – मृदंग से षड्‌जस्वर, गोमुखी से ऋषभस्वर, शंख से गांधारस्वर, झालर से मध्यमस्वर, चार चरणों पर स्थित गोधिका से पंचमस्वर, आडंबर से धैवतस्वर तथा महाभेरी से निषादस्वर निकलता है। सूत्र – १७२–१७४
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 175 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरलक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: इन सात स्वरों के सात स्वरलक्षण हैं। षड्‌जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति – आजीविका प्राप्त करता है। उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है। उसे गोधन, पुत्र – पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है। वह स्त्रियों का प्रिय होता है। ऋषभस्वरवाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है। सेनापतित्व, धन – धान्य, वस्त्र, गंध – सुगंधित
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 177 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रिसभेण उ एसज्जं, सेनावच्चं धनानि य । वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयनानि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७५
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 190 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा कओ हवंति? गीयस्स का हवइ जोणी? । कइसमया ऊसासा? कइ वा गीयस्स आगारा? ॥

Translated Sutra: – सप्तस्वर कहाँ से – उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्‌वासकाल का समयप्रमाण कितना है ? गीत के कितने आकार होते हैं ? सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन गीत की योनि है। पादसम – उतना उसका उच्छ्‌वास – काल होता है। गीत के तीन आकार होते हैं – आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अंत मे मंद। इस प्रकार
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 193 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छद्दोसे अट्ठगुणे, तिन्नि य वित्ताइं दोन्नि भणितीओ । जो नाही सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झंमि ॥

Translated Sutra: संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत्‌ जाननेवाला सुशिक्षित – व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 197 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अक्खरसमं पदसमं, तालसमं लयसमं गहसमं च । निस्ससिउस्ससियसमं, संचारसमं सरा सत्त ॥

Translated Sutra: (प्रकारान्तर से) सप्तस्वरसीभर की व्याख्या इस प्रकार है – अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, ग्रहसम, निश्वसितो – च्छ्‌वसितसम और संचारसम – इस प्रकार गीत स्वर, तंत्री आदि के साथ सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 201 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] केसी गायइ महुरं? केसी गायइ खरं च रुक्खं च? । केसी गायइ चउरं? केसी य विलंबियं दुतं केसी? विस्सरं पुण केरिसी? ॥

Translated Sutra: कौन स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है ? पुरुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? द्रुत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकृत स्वर में कौन गाती है ? श्यामा स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर और रूक्ष स्वर में, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से, कानी स्त्री विलंबित
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 203 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सत्त सरा तओ गामा, मुच्छणा एगवीसई । ताणा एगूणपन्नासं, समत्तं सरमंडलं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिये उनके उनपचास भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ। सूत्र – २०३, २०४
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 204 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं सत्तनामे।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०३
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 205 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अट्ठनामे? अट्ठनामे–अट्ठविहा वयणविभत्ती पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: अष्टनाम क्या है ? आठ प्रकार की वचनविभक्तियों अष्टनाम हैं। वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैं – निर्देश अर्थ में प्रथमा, उपदेशक्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया, क्रिया के प्रति साधकतम कारण में तृतीया, संप्रदान में चतुर्थी, अपादान में पंचमी, स्व – स्वामित्वप्रतिपादन में षष्ठी, सन्निधान में सप्तमी और संबोधित
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 206 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निद्देसे पढमा होइ, बितिया उवएसणे । तइया करणम्मि कया, चउत्थी संपयावणे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २०५
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 208 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ पढमा विभत्ती, निद्देसे–सो इमो अहं व त्ति । बिइया पुण उवएसे–भण कुणसु इमं व तं व त्ति ॥

Translated Sutra: निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे – वह, यह अथवा मैं। उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है। – जैसे इसको कहो, उसको करो आदि। करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे – उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके ओर मेरे द्वारा किया गया। संप्रदान, नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है। अपादान में पंचमी होती
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 212 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं अट्ठनामे।

Translated Sutra: देखो सूत्र २०८
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 213 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नवनामे? नवनामे–नव कव्वरसा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: नवनाम क्या है ? काव्य के नौ रस नवनाम कहलाते हैं। जिनके नाम हैं – वीररस, शृंगाररस, अद्‌भुतरस, रौद्ररस, व्रीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, कारुण्यरस और प्रशांतरस। सूत्र – २१३, २१४
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 215 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे सत्तुजणविणासे य । अननुसय-धिति-परक्कमलिंगो वीरो रसो होइ ॥

Translated Sutra: इन नव रसों में १. परित्याग करने में गर्व या पश्चात्ताप न होने, २. तपश्चरण में धैर्य और ३. शत्रुओं का विनाश करने में पराक्रम होने रूप लक्षण वाला वीररस है। राज्य – वैभव का परित्याग करके जो दीक्षित हुआ और दीक्षित होकर काम – क्रोध आदि रूप महाशत्रुपक्ष का जिसने विघात किया, वही निश्चय से महावीर है। सूत्र – २१५, २१६
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 217 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिंगारो नाम रसो, रतिसंजोगाभिलाससंजणणो । मंडण-विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमणलिंगो ॥

Translated Sutra: शृंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य – लीला और रमण ये सब शृंगाररस के लक्षण हैं। कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा क्षुद्र घंटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है। सूत्र – २१७, २१८
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 219 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विम्हयकरो अपुव्वो, ऽनुभूयपुव्वो य जो रसो होइ । हरिसविसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुओ नाम ॥

Translated Sutra: पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी – आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्‌भुतरस है। हर्ष और विषाद की उत्पत्ति अद्‌भुतरस का लक्षण है। इस जीवलोकमें इससे अधिक अद्‌भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं। सूत्र
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 221 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भयजणणरूव-सद्दंधकार-चिंता-कहासमुप्पन्नो । संमोह-संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो रोद्दो ॥

Translated Sutra: भयोत्पादक रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन, कथा, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है और संमोह, संभ्रम, विषाद एवं मरण उसके लक्षण हैं। भृकुटियों से तेरा मुख विकराल बन गया है, तेरे दाँत होठों को चबा रहे हैं, तेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा है, तेरे मुख से भयानक शब्द निकल रहे हैं, जिससे तू राक्षस जैसा हो गया है और पशुओं की
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 223 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विनओवयार-गुज्झ-गुरुदार-मेरावइक्कमुप्पन्नो । वेलणओ नाम रसो, लज्जासंकाकरणलिंगो ॥

Translated Sutra: विनय करने योग्य माता – पिता आदि गुरुजनों का विनयन करने से, गुप्त रहस्यों को प्रकट करने से तथा गुरुपत्नी आदि के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने से व्रीडनकरस उत्पन्न होता है। लज्जा और शंका उत्पन्न होना, इस रस के लक्षण हैं। इस लौकिक व्यवहार से अधिक लज्जास्पद अन्य बात क्या हो सकती है – मैं तो इससे बहुत लजाती हूँ कि
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 225 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असुइ-कुणव-दुद्दंसण-संजोगब्भासगंधनिप्फन्नो । निव्वेयविहिंसालक्खणो रसो होइ बीभत्सो ॥

Translated Sutra: अशुचि, शव, मृत शरीर, दुर्दर्शन को बारंबार देखने रूप अभ्यास से या उसकी गंध से बीभत्सरस उत्पन्न होता है। निर्वेद और अविहिंसा बीभत्सरस के लक्षण हैं। अपवित्र मल से भरे हुए झरनों से व्याप्त और सदा सर्वकाल स्वभावतः दुर्गन्ध – युक्त यह शरीर सर्व कलहों का मूल है। ऐसा जानकर जो व्यक्ति उसकी मूर्च्छा का त्याग करते हैं,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 227 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूव-वय-वेस-भासाविवरीयविलंबणासमुप्पन्नो । हासो मनप्पहासो, पगासलिंगो रसो होइ ॥

Translated Sutra: रूप, वय, वेष और भाषा की विपरीतता से हास्यरस उत्पन्न होता है। हास्यरस मन को हर्षित करनेवाला है और प्रकाश – मुख, नेत्र आदि का विकसित होना, अट्टहास आदि उनके लक्षण हैं। प्रातः सोकर उठे, कालिमा से – काजल की रेखाओं से मंडित देवर के मुख को देखकर स्तनयुगल के भार से नमित मध्यभाग वाली कोई युवती ही – ही करती हँसती है। सूत्र
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 229 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पियविप्पओग-बंध-वह-वाहि-विनिवाय-संभमुप्पन्नो । सोइय-विलविय-पव्वाय-रुन्नलिंगो रसो करुणो ॥

Translated Sutra: प्रिय के वियोग, बंध, वध, व्याधि, विनिपात, पुत्रादि – मरण एवं संभ्रम – परचक्रादि के भय आदि से करुणरस उत्पन्न होता है। शोक, विलाप, अतिशय म्लानता, रुदन आदि करुणरस के लक्षण हैं। हे पुत्रिके ! प्रियतम के वियोग में उसकी वारंवार अतिशय चिन्ता से क्लान्त – मुर्झाया हुआ और आंसुओं से व्याप्त नेत्रोंवाला तेरा मुख दुर्बल
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 231 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निद्दोसमण-समाहाणसंभवो जो पसंतभावेणं । अविकारलक्खणो सो, रसो पसंतो त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: निर्दोष, मन की समाधि से और प्रशान्त भाव से जो उत्पन्न होता है तथा अविकार जिसका लक्षण है, उसे प्रशान्तरस जानना चाहिए। सद्‌भाव के कारण निर्विकार, रूपादि विषयों के अवलोकन की उत्सुकता के परित्याग से उपशान्त एवं क्रोधादि दोषों के परिहार से प्रशान्त, सौम्य दृष्टि से युक्त मुनि का मुखकमल वास्तव में अतीव श्रीसम्पन्न
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 233 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए नव कव्वरसा, बत्तीसदोसविहिसमुप्पन्ना । गाहाहिं मुणेयव्वा, हवंति सुद्धा व मीसा वा ॥

Translated Sutra: गाथाओं द्वारा कहे गये नव काव्यरस अलीकता आदि सूत्र के बत्तीस दोषों से उत्पन्न होते हैं और ये रस कहीं शुद्ध भी होते हैं और कहीं मिश्रित भी होते हैं।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 234 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] –से तं नवनामे।

Translated Sutra: नवनाम का निरूपण पूर्ण हुआ।
Showing 1151 to 1200 of 18391 Results