Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (2582)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 330 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना। अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत्‌ अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 331 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी –नेवट्ठि नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं सरीरसंघातत्ताए परिणमंति। एवं जाव अनुत्तरोववातिया। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा सरीरा पन्नत्ता, तं जहा –भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते समचउरंस-संठाणसंठिता पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते नानासंठाणसंठिता पन्नत्ता जाव अच्चुओ। गेवेज्जादेवाणं भंते! सरीरा किंसंठिता पन्नत्ता? गोयमा! एगे भवधारणिज्जे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशानकल्प में देवों के शरीर का संहनन कौन सा है ? गौतम ! एक भी नहीं; क्योंकि उनके शरीर में न हड्डी होती है, न शिराएं होती हैं और न नसें ही होती हैं। जो पुद्‌गल इष्ट, कान्त यावत्‌ मनोज्ञ – मनाम होते हैं, वे उनके शरीर रूप में एकत्रित होकर तथारूप में परिणत होते हैं। यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 332 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता। सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि। लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा। अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं। सोहम्मीसानेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 337 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं कति समुग्घाता पन्नत्ता? गोयमा! पंच समुग्घाता पन्नत्ता, तं जहा– वेदनासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते वेउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। एवं जाव अच्चुया। गेवेज्जनुत्तराणं पुच्छा। गोयमा! पंच–वेदणासमुग्घाते कसायसमुग्घाते मारणंतियसमुग्घाते विउव्वियसमुग्घाते तेजससमुग्घाते। नो चेव णं वेउव्वियसमुग्घातेण वा तेयासमुग्घातेण वा समोहणिंसु वा समोहण्णंति वा समोहणिस्संति वा। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसयं खुहपिवासं पच्चणुभवमाणा विहरंति? गोयमा! तेसि णं देवाणं नत्थि खुहपिवासा। एवं जाव अनुत्तरोववातिया। सोहम्मीसानेसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशानकल्पों में देवों में कितने समुद्‌घात हैं ? गौतम ! पाँच – वेदनासमुद्‌घात, कषाय – समुद्‌घात, मारणान्तिकसमुद्‌घात, वैक्रियसमुद्‌घात और तेजससमुद्‌घात। इसी प्रकार अच्युतदेवलोक तक कहना। ग्रैवेयकदेवों के आदि के तीन समुद्‌घात कहे गये हैं – भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशान देवलोक के देव कैसी भूख – प्यास
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 338 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरनवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पन्नत्ता। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पन्नत्ताओ? गोयमा! दुविधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउव्वियाओ य। तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ णं आभरनवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पन्नत्ताओ। तत्थ णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव विभूषा की दृष्टि से कैसे हैं ? गौतम ! वे देव दो प्रकार के हैं – वैक्रिय – शरीर वाले और अवैक्रियशरीर वाले। उनमें जो वैक्रियशरीर वाले हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत्‌ दसों दिशाओं को उद्योतित करनेवाले, यावत्‌ प्रतिरूप हैं। जो अवैक्रियशरीर वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 341 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसाए विमानावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि विमानावासंसि सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीक्काइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसनसयनखंभभंडमत्तो-वकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो। एवमीसानेवि। सणंकुमारे पुच्छा। हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवित्ताए जाव गेवेज्जा। पंचसु णं भंते! महतिमहालएसु अनुत्तरविमाणेसु सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढवीकाइयत्ताए देवत्ताए देवित्ताए आसणसयणखंभभंडमत्तोवकरणत्ताए उववन्नपुव्वा? हंता गोयमा! असइं अदुवा अनंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा देवित्ताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सौधर्म – ईशानकल्पों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व पृथ्वीकाय के रूप में, देव के रूप में, देवी के रूप में, आसन – शयन यावत्‌ भण्डपोकरण के रूप में पूर्व में उत्पन्न हो चूके हैं क्या ? हाँ, गौतम! हो चूके हैं। शेष कल्पों में ऐसा ही कहना, किन्तु देवी के रूप में उत्पन्न होना नहीं कहना। ग्रैवेयक विमानों
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

वैमानिक उद्देशक-२ Hindi 342 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं मनुस्सा। देवा जहा नेरइया। नेरइए णं भंते! नेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? जहा कायट्ठिती देवाणवि एवं चेव। तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं। मनुस्से णं भंते! मनुस्सेति कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। नेरइयस्स णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। मनुष्यों की भी यहीं है। देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जानना। देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है। तिर्यंक की कायस्थिति जघन्य
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पंचविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 344 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु–पंचविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया। से किं तं एगिंदिया? एगिंदिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं जाव पंचिंदिया दुविहा –पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एगिंदियस्स णं भंते! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। बेइंदिया जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि। एवं तेइंदियस्स एगूणपण्णं राइंदियाणं, चउरिंदियस्स छम्मासा, पंचिंदियस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं। एगिंदियअपज्जत्तगस्स णं केवतियं

Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव पाँच प्रकार के हैं, वे उनके भेद इस प्रकार कहते हैं, यथा – एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय जीवों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! दो, पर्याप्त और अपर्याप्त। पंचेन्द्रिय पर्यन्त सबके दो – दो भेद कहना। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय जीवों की कितने काल
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 346 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया। से किं तं पुढविकाइया? पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविकाइया बादरपुढविकाइया य। सुहुमपुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एवं बादरपुढवि-काइयावि। एवं जाव वणस्सतिकाइया। से किं तं तसकाइया? तसकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।

Translated Sutra: जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार हैं – पृथ्वीकायिक यावत्‌ त्रसकायिक। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादरपृथ्वी
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 347 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। आउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, तेउकाइयस्स तिन्नि राइंदियाइं, वाउकाइयस्स तिन्नि वास-सहस्साइं, वणस्सतिकाइयस्स दस वाससहस्साइं, तसकाइयस्स तेत्तीसं सागरोवमाइं। अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं। पज्जत्तगाणं सव्वेसिं उक्को-सिया ठिती अंतोमुहुत्तूणा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिकों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। इसी प्रकार सबकी स्थिति कहना। त्रसकायिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। सब अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण है। सब पर्याप्तकों
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 348 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइयत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउक्काइयाणं। वणस्सइकाइयाणं अनंतं कालं–अनंताओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा–असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते णं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जतिभागे। तसकाइए णं भंते! तसकाइयत्ति कालतो केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं। अपज्जत्तगाणं छण्हवि जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकाय, पृथ्वीकाय के रूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट असंख्येय काल यावत्‌ असंख्येय लोकप्रमाण आकाशखण्डों का निर्लेपनाकाल। इसी प्रकार यावत्‌ वायुकाय की संचिट्ठणा जानना। वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है यावत्‌ आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 350 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पज्जत्तगाणं सव्वेसिं एवं पुढविकाइयस्स णं भंते केवतियं कालं अंतरं होति गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सतिकालो एवं आउ तेउ वाउकाइयाणं वणस्सइकालो तसकाइयाणवि वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो वणस्सईणं पुढविकालो, पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो। पुढविक्काइयपज्जत्तए णं भंते! पुढविक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइं। एवं आऊवि। तेउक्काइयपज्जत्तए णं भंते! तेउक्काइयपज्जत्तएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकाय का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार यावत्‌ वायुकाय का अन्तर वनस्पतिकाल है। त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है। वनस्पति – काल का अन्तर पृथ्वीकायिक कालप्रमाण (असंख्येयकाल) है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पति – काल है।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 351 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयं- सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउ-काइया विसेसाहिया, वाउक्काइया विसेसाहिया, वणस्सतिकाइया अनंतगुणा। एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि। एतेसि णं भंते! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा। सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्सतिकाइयावि। सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा। एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तगअपज्जत्तगाण

Translated Sutra: सबसे थोड़े त्रसकायिक, उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुण, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक, उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण। अपर्याप्त पृथ्वी – कायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार से है। पर्याप्त पृथ्वीकायादि का अल्पबहुत्व भी उक्त प्रकार की है। भगवन्‌! पृथ्वीकाय के
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 354 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुहुमस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। सुहुमपुढविकाइयस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जतिभागे। एवं जाव वाऊ। सुहुमवणस्सति-सुहुमनिओगस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं जहा ओहियस्स अंतरं। एवं अपज्जत्ता-पज्जत्तगाणवि अंतरं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूक्ष्म, सूक्ष्म से नीकलने के बाद फिर कितने समय में सूक्ष्मरूप से पैदा होता है ? यह अन्तराल कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी काल रूप है तथा क्षेत्र से अंगुलासंख्येय भाग क्षेत्र में जितने आकाशप्रदेश हैं उन्हें प्रति समय एक – एक का
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 355 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुमआउवाऊ विसेसाहिया, सुहुमनिओया असंखेज्जगुणा, सुहुमवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, सुहुमा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगाणं, पज्जत्तगाणवि एवं चेव। एतेसि णं भंते! सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्तगा, सुहुमा पज्जत्ता संखेज्जगुणा। एवं जाव सुहुमणिगोया। एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहुमपुढविकाइयाणं जाव सुहुमनिओयाण य पज्जत्तापज्जत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा सुहुमतेउकाइया

Translated Sutra: अल्पबहुत्वद्वार इस प्रकार है – सबसे थोड़े सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक, सूक्ष्म अप्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक क्रमशः विशेषाधिक, सूक्ष्म – निगोद असंख्येयगुण, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुण और सूक्ष्म विशेषाधिक हैं। सूक्ष्म अपर्याप्तों और सूक्ष्म पर्याप्तों का अल्पबहुत्व भी इसी क्रम
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 356 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बायरस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता एवं बायरतसकाइयस्सवि बायरपुढवीकाइयस्स बावीस वाससहस्साइं बायरआउस्स सत्तवाससहस्सं बायरतेउस्स तिन्नि राइंदिया बायरवाउस्स तिन्नि वाससहस्साइं बायरवण दस वाससहस्साइं एवं पत्तेयसरीरबादरस्सवि निओयस्स जहन्नेणवि उक्कोसेणवि अंतोमु, एवं बायरनिओयस्सवि अपज्जत्तगाणं सव्वेसिं अंतोमुहुत्तं पज्जत्तगाणं उक्कोसिया ठिई अंतोमुहुत्तूणा कायव्वा सव्वेसिं, बादरपुढविकाइयस्स बावीसं वाससहस्साइं, बादरआउकाइयस्स सत्त वाससहस्साइं, बादरतेउकाइयस्स तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बादर की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। बादर त्रसकाय की भी यही स्थिति है। बादर पृथ्वीकाय की २२००० वर्ष की, बादर अप्कायिकों की ७००० वर्ष की, बादर तेजस्काय की तीन अहोरात्र की, बादर वायुकाय की ३००० वर्ष की और बादर वनस्पति की १०००० वर्ष की उत्कृष्ट स्थिति है।
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 357 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। बायरपुढविकाइयाआउतेउ वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायरनिओयस्स एतेसिं जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ संखातीयाओ समाओ अंगुलभागे तहा असंखेज्जा ओहे य वायरतरु अनुबंधो सेसओ वोच्छं, बादरपुढविसंचिट्ठणा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव बादरवाऊ। बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ। बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। निओते जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणियाँ हैं तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 361 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बादरस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो। बादरपुढविकाइयस्स वणस्सतिकालो जाव बादरवाउकाइयस्स, बादरवणस्सतिकाइयस्स पुढविकालो, पत्तेयबादरवणस्सइकाइयस्स वणस्सतिकालो, णिओदो बादरणिओदो य जहा बादरो ओहिओ, बादरतसकाइयस्स वणस्सतिकालो। अपज्जत्ताणं पज्जत्ताणं च एसेव विही।

Translated Sutra: औघिक बादर, बादर वनस्पति, निगोद और बादर निगोद, इन चारों का अन्तर पृथ्वीकाल है, अर्थात्‌ असंख्यातकाल – असंख्यातकाल असंख्येय उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी के बराबर है तथा क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाश के प्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लिप्त हो जायें, उतना कालप्रमाण जानना
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

षडविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 362 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अप्पाबहुयाणि– सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरतेउकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादर-वणस्सतिकाइया असंखेज्जगुणा, बायरणिओया असंखेज्जगुणा, बायरपुढविकाइया असंखेज्ज-गुणा आउवाउकाइया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सतिकाइया अनंतगुणा, बायरा विसेसाहिया। एवं अपज्जत्तगाणवि। पज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा बायरतेउक्काइया, बायरतसकाइया असंखेज्जगुणा, पत्तेगसरीरबायरा असंखेज्जगुणा, सेसा तहेव जाव बादरा विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! बायराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्व त्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, एवं सव्वे

Translated Sutra: प्रथम औघिक अल्पबहुत्व – सबसे थोड़े बादर त्रसकाय, उनसे बादर तेजस्काय असंख्येयगुण, उनसे प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्काय, बादर वायुकाय क्रमशः असंख्येयगुण, उनसे बादर वनस्पतिकायिक अनन्तगुण, उनसे बादर विशेषाधिक। अपर्याप्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सप्तविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 365 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खा तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ। नेरइयस्स ठितो जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिअवमाइं। एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मनुस्साणवि, मनुस्सीणवि। देवाणं ठिती तहा नेरइयाणं। देवीणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाणि। नेरइयदेवदेवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा। तिरिक्खजोणिएणं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणिणीणं

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद हैं। नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। तिर्यक्‌योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यक्‌स्त्री, मनुष्य और मनुष्यस्त्री
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

अष्टविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 366 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ जेते एवमाहंसु अट्ठविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पढमसमयनेरइया अपढमसमय-नेरइया पढमसमयतिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमनुस्सा अपढम-समयमनुस्सा पढमसमयदेवा अपढमसमयदेवा। पढमसमयनेरइयस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं ठिती पन्नत्ता। अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयगाणं एगं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं समयूणाइं। मनुस्साणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं

Translated Sutra: जो आचार्यादि ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव आठ प्रकार के हैं, उनके अनुसार – १. प्रथमसमय – नैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्‌योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्‌योनिक, ५. प्रथमसमय मनुष्य ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव और ८. अप्रथमसमयदेव। स्थिति – भगवन्‌ ! प्रथमसमयनैरयिक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

नवविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 367 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु–पुढविक्काइया आउक्काइया तेउक्काइया वाउक्काइया वणस्सइकाइया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया। ठिती सव्वेसिं भाणियव्वा। पुढविक्काइयाणं संचिट्ठणा पुढविकालो जाव वाउक्काइयाणं, वणस्सईणं वणस्सतिकालो, बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया संखेज्जं कालं, पंचेंदियाणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं। अंतरं सव्वेसिं अनंतं कालं, वणस्सतिकाइयाणं असंखेज्जं कालं। अप्पाबहुगं–सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, तेउक्काइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया,

Translated Sutra: जो नौ प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे ऐसा कहते हैं – १. पृथ्वीकायिक, २. अप्‌ – कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. द्वीन्द्रिय, ७. त्रीन्द्रिय, ८. चतुरिन्द्रिय और ९. पंचेन्द्रिय। सबकी स्थिति कहना। पृथ्वीकायिकों की संचिट्ठणा पृथ्वीकाल है, इसी तरह वायुकाय पर्यन्त कहना। वनस्पतिकाय
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

दशविध जीव प्रतिपत्ति

Hindi 368 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–पढमसमयएगिंदिया अपढमसमयएगिंदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया पढमसमयतेइंदिया अपढमसमय-तेइंदिया पढमसमयचउरिंदिया अपढमसमयचउरिंदिया पढमसमयपंचिंदिया अपढमसमयपंचिंदिया। पढमसमयएगिंदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! एगं समयं। अपढमसमयएगिंदियस्स जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समयूणाइं। एवं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं एगं समयं, अपढमसमयिकाणं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं समयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समयूणा जाव पंचिंदियाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं

Translated Sutra: जो आचार्यादि दस प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का प्रतिपादन करते हैं, वे कहते हैं – १. प्रथमसमय – एकेन्द्रिय, २. अप्रथमसमयएकेन्द्रिय, ३. प्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ४. अप्रथमसमयद्वीन्द्रिय, ५. प्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ६. अप्रथमसमयत्रीन्द्रिय, ७. प्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ८. अप्रथमसमयचतुरिन्द्रिय, ९. प्रथमसमयपंचेन्द्रिय
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

द्विविध सर्वजीव Hindi 369 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सव्वजीवाभिगमे? सव्वजीवेसु णं इमाओ नव पडिवत्तीओ एवमाहिज्जंति। एगे एवमाहंसु–दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता जाव दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता। तत्थ णं जेते एवमाहंसु दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, ते एवमाहंसु, तं जहा– सिद्धा चेव असिद्धा चेव। सिद्धे णं भंते! सिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! साइए अपज्जवसिए। असिद्धे णं भंते! असिद्धेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! असिद्धे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनाइए वा अपज्जवसिए, अनाइए वा सपज्जवसिए। सिद्धस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? गोयमा! साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। असिद्धस्स णं भंते! केवइयं अंतरं होइ? गोयमा! अनाइयस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सर्वजीवाभिगम क्या है ? गौतम ! सर्वजीवाभिगम मे नौ प्रतिपत्तियाँ कही हैं। उनमें कोई ऐसा कहते हैं कि सब जीव दो प्रकार के हैं यावत्‌ दस प्रकार के हैं। जो दो प्रकार के सब जीव कहते हैं, वे ऐसा कहते हैं, यथा – सिद्ध और असिद्ध। भगवन्‌ ! सिद्ध, सिद्ध के रूप में कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! सादिअपर्यवसित। भगवन्‌
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

द्विविध सर्वजीव Hindi 373 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दुविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–भासगा य अभासगा य। भासए णं भंते! भासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। अभासए णं भंते! अभासएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! अभासए दुविहे पन्नत्ते–साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। भासगस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सति-कालो। अभासगस्स साइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं – सभाषक और अभाषक। भगवन्‌ ! सभाषक, सभाषक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त्त। गौतम ! अभाषक दो प्रकार के हैं – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें जो सादि – सपर्यवसित अभाषक हैं, वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट में अनन्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

त्रिविध सर्वजीव Hindi 376 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता–परित्ता अपरित्ता नोपरित्तानोअपरित्ता। परित्ते णं भंते! परित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? परित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायपरित्ते य संसार-परित्ते य। कायपरित्ते णं भंते! कायपरित्तेत्ति कालतो केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुढविकालो। संसारपरित्ते णं भंते! संसारपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं। अपरित्ते णं भंते! अपरित्तेत्ति कालओ केवचिरं होति? अपरित्ते दुविहे पन्नत्ते–कायअपरित्ते य संसारअपरित्ते य। कायअपरित्ते जहन्नेणं

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – परित्त, अपरित्त और नोपरित्त – नोअपरित्त। परित्त दो प्रकार के हैं – कायपरित्त और संसारपरित्त। भगवन्‌ ! कायपरित्त, कायपरित्त के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येय काल तक यावत्‌ असंख्येय लोक। भन्ते ! संसारपरित्त, संसारपरित्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

त्रिविध सर्वजीव Hindi 379 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी। संज्ञी, संज्ञी रूप में जघन्य से अन्त – मूहूर्त्त और उत्कृष्ट से सागरोपमशतपृथक्त्व से कुछ अधिक समय तक रहता है। असंज्ञी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल। नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी सादि – अपर्यवसित है। संज्ञी का अन्तर जघन्य
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

त्रिविध सर्वजीव Hindi 381 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा तिविहा सव्वजीवा तं जहा तसा थावरा नोतसानोथावरा तसे णं भंते कालओ अजहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाइं थावरस्स संचिट्ठणा वणस्सतिकालो नोतस-नोथावरा सातीए अपज्जवसिए तसस्स अंतरं वणस्सतिकालो थावरस्स तसकालो नोतसनोथावरस्स नत्थि अंतरं अप्पाबहुगं सव्वत्थोवा तसा, नोतसानोथावरा अनंतगुणा, थावरा अनंत गुणा, से तं तिविधा सव्वजीवा।

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव तीन प्रकार के हैं – त्रस, स्थावर और नोत्रस – नोस्थावर। त्रस, त्रस के रूप में जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक दो हजार सागरोपम तक रहता है। स्थावर, स्थावर के रूप में वनस्पतिकाल पर्यन्त रहता है। नोत्रस – नोस्थावर सादि – अपर्यवसित हैं। त्रस का अन्तर वनस्पतिकाल है और स्थावर का अन्तर साधिक
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

चतुर्विध सर्वजीव Hindi 382 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–मनजोगी वइजोगी कायजोगी अजोगी। मनजोगी णं भंते! मणजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। एवं वइजोगीवि। कायजोगी णं भंते! कायजोगित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। अजोगी साइए अपज्जवसिए। मनजोगिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एवं वइजोगिस्स वि। कायजोगिस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। अयोगिस्स नत्थि अंतरं। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा मनजोगी, वइजोगी असंखेज्जगुणा, अजोगी अनंतगुणा,

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव चार प्रकार के हैं वे चार प्रकार ये हैं – मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी। मनोयोगी, मनोयोगी रूप में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त तक रहता है। वचनयोगी का भी अन्तर यही है। काययोगी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल तक रहता है। अयोगी सादि – अपर्य – वसित
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

चतुर्विध सर्वजीव Hindi 383 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–इत्थिवेयगा पुरिसवेयगा नपुंसगवेयगा अवेयगा। इत्थिवेयए णं भंते! इत्थिवेयएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एगेण आएसेणं जहा कायट्ठितीए। पुरिसवेदस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं। नपुंसगवेदस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। अवेयए दुविहे पन्नत्ते–साइए वा अपज्जवसिते, साइए वा सपज्जवसिए, तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिते से जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। इत्थिवेदस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। पुरिसवेदस्स अंतरं जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं – स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक। स्त्रीवेदक, स्त्रीवेदक के रूप में विभिन्न अपेक्षा से (पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक) एक सौ दस, एक सौ, अठारह, चौदह पल्योपम तक अथवा पल्योपम पृथक्त्व रह सकता है। जघन्य से एक समय तक रह सकता है। पुरुषवेदक, पुरुषवेदक के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

चतुर्विध सर्वजीव Hindi 384 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी केवलदंसणी। चक्खुदंसणी णं भंते! चक्खुदंसणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं। अचक्खुदंसणी दुविहे पन्नत्ते–अणादिए वा अपज्जवसिए, अनादिए वा सपज्जवसिए। ओहिदंसणी जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो छावट्ठीओ सागरोवमाणं साइरेगाओ। केवलदंसणी साइए अपज्जवसिए। चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। अचक्खुदंसणिस्स दुविधस्स नत्थि अंतरं। ओहिदंसणिस्स जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। केवलदंसणिस्स

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं – चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलीदर्शनी। चक्षुर्दर्शनी काल से जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है। अचक्षुर्दर्शनी दो प्रकार के हैं – अनादि – अपर्यवसित और अनादि – सपर्यवसित। अवधिदर्शनी जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 390 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया। संचिट्ठणंतरं जहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा पंचेंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेंदिया विसेसाहिया, अनिंदिया अनंतगुणा, एगिंदिया अनंतगुणा। अहवा छव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरी वेउव्वियसरीरी आहारगसरीरी तेयगसरीरी कम्मगसरीरी असरीरी। ओरालियसरीरी णं भंते! ओरालियसरीरीत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं दुसमऊणं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं। वेउव्वियसरीरी जहन्नेणं एक्कं समयं,

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव छह प्रकार के हैं – औदारिकशरीरी, वैक्रियशरीरी, आहारकशरीरी, तेजसशरीरी, कार्मण – शरीरी और अशरीरी। औदारिकशरीरी जघन्य से दो समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से असंख्येयकाल तक रहता है। यह असंख्येयकाल अंगुल के असंख्यातवें भाग के आकाशप्रदेशों के अपहारकाल के तुल्य है। वैक्रियशरीरी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 391 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया तसकाइया अकाइया। संचिट्ठणंतरा जहा हेट्ठा। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउकाइया असंखेज्जगुणा, पुढविकाइया विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउकाइया विसेसाहिया, अकाइया अनंतगुणा, वणस्सइकाइया अनंतगुणा।

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सब जीव सात प्रकार के हैं, वे ऐसा प्रतिपादन करते हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्‌ – कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक और अकायिक। इनकी संचिट्ठणा और अन्तर पहले कहे जा चूके हैं। अल्पबहुत्व – सबसे थोड़े त्रसकायिक, उनसे तेजस्कायिक असंख्यातगुण, उनसे पृथ्वी – कायिक विशेषाधिक, उनसे
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 392 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा सत्तविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा अलेस्सा। कण्हलेसे णं भंते! कण्हलेसत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं। नीललेस्से णं भंते! णीललेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं। काउलेस्से णं भंते! काउलेस्सेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागमब्भहियाइं। तेउलेस्से णं भंते!

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव सात प्रकार के कहे गये हैं – कृष्णलेश्या वाले यावत्‌ शुक्ललेश्या वाले और अलेश्य। कृष्ण लेश्या वाला, कृष्णलेश्या वाले के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तेंतीस सागरोपम तक रह सकता है। नीललेश्या वाला जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्येयभाग
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 393 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी ओहि नाणी मनपज्जवनाणी केवलनाणी मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी। आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहियनाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं। एवं सुयनाणीवि। ओहिनाणी णं भंते! ओहिणाणित्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छावट्ठिसागरोवमाइं सातिरेगाइं। मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणित्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। केवलनाणी णं भंते!

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि आठ प्रकार के सर्व जीव हैं, उनका मन्तव्य है कि सब जीव आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी, केवलज्ञानी, मति – अज्ञानी, श्रुत – अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं। आभिनिबो – धिकज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से साधिक छियासठ सागरोपम
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 394 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा अट्ठविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइया, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ सिद्धा। नेरइए णं भंते! नेरइयत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणिणी णं भंते! तिरिक्खजोणिणीत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। एवं मणूसे मणूसी। देवे जहा नेरइए। देवी णं भंते! देवीत्ति कालओ केवचिरं होति?

Translated Sutra: अथवा सब जीव आठ प्रकार के कहे गये हैं, जैसे कि – नैरयिक, तिर्यग्योनिक, तिर्यग्योनिकी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवी और सिद्ध। नैरयिक, नैरयिक रूप में गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम तक रहता है। तिर्यग्‌योनिक जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से अनन्तकाल तक रहता है। तिर्यग्योनिकी जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 395 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–एगिंदिया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया नेरइया पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा देवा सिद्धा। एगिंदिए णं भंते! एगिंदियत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। एवं तेइंदिएवि, चउरिंदिएवि। नेरइए णं भंते! नेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। पंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव नौ प्रकार के हैं, वे इस तरह बताते हैं – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरि – न्द्रिय, नैरयिक, पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक, मनुष्य, देव, सिद्ध। एकेन्द्रिय, एकेन्द्रिय रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक रहता है। द्वीन्द्रिय जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 396 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा नवविधा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमणूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा सिद्धा य। पढमसमयनेरइया णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा!

Translated Sutra: अथवा सर्वजीव नौ प्रकार के – १.प्रथमसमयनैरयिक, २.अप्रथमसमयनैरयिक, ३.प्रथमसमयतिर्यग्‌योनिक, ४.अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५.प्रथमसमयमनुष्य, ६.अप्रथमसमयमनुष्य, ७.प्रथमसमयदेव, ८.अप्रथमसमयदेव ९.सिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूपमें एक समय और अप्रथमसमयनैरयिक जघन्य एक समय कम १०००० वर्ष, उत्कर्ष से एक
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 397 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु दसविधा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु, तं जहा–पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सतिकाइया बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचेंदिया अनिंदिया। पुढविकाइए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। एवं आउतेउवाउकाइए। वणस्सतिकाइए णं भंते! वणस्सतिकाइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं। बेंदिए णं भंते! बेंदिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं

Translated Sutra: जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा – पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय। भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

सर्व जीव प्रतिपत्ति

४ थी ९ पंचविध यावत् दशविध सर्वजीव Hindi 398 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहवा दसविहा सव्वजीवा पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमयनेरइया अपढमसमयनेरइया पढमसमय-तिरिक्खजोणिया अपढमसमयतिरिक्खजोणिया पढमसमयमणूसा अपढमसमयमनूसा पढमसमय-देवा अपढमसमयदेवा पढमसमयसिद्धा अपढमसमयसिद्धा। पढमसमयनेरइए णं भंते! पढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयनेरइए णं भंते! अपढमसमयनेरइएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं समयूणाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाइं। पढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! पढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! एक्कं समयं। अपढमसमयतिरिक्खजोणिए णं भंते! अपढमसमयतिरिक्खजोणिएत्ति कालओ

Translated Sutra: अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा – १. प्रथमसमयनैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमय – तिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमयमनुष्य, ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव, ८. अप्रथमसमयदेव, ९. प्रथमसमयसिद्ध और १०. अप्रथमसमयसिद्ध। प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूप में ? एक समय तक। अप्रथमसमयनैरयिक
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

तिर्यंच उद्देशक-१ Gujarati 130 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं तिरिक्खजोणिया? तिरिक्खजोणिया पंचविधा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणिया बेइंदियतिरिक्खजोणिया तेइंदियतिरिक्खजोणिया चउरिंदियतिरिक्खजोणिया पंचिंदियतिरिक्खजोणिया य। से किं तं एगिंदियतिरिक्खजोणिया? एगिंदियतिरिक्खजोणिया पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वणस्सइकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया। से किं तं पुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया? पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया बादरपुढविकाइयएगिंदिय-तिरिक्खजोणिया य। से किं तं सुहुमपुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणिया?

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે તિર્યંચયોનિક શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે – એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, બેઇન્દ્રિય તિર્યંચ યોનિક, તેઇન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, ચઉરિન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક, પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક. ભગવન્‌ ! તે એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે, તે આ – પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક યાવત્‌
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 168 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता। ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा

Translated Sutra: વિજયદ્વારના બંને પડખે બંને નૈષેધિકીમાં બબ્બે પ્રકંઠકો કહેલા છે. તે પ્રકંઠકો ચાર યોજન આયામ – વિષ્કંભથી, બે યોજન બાહલ્યથી છે, તે સર્વ વજ્રમય, સ્વચ્છ યાવત્‌ પ્રતિરૂપ છે. તે પ્રત્યેક ઓટલા ઉપર પ્રત્યેક – પ્રત્યેક પ્રાસાદાવતંસક કહેલા છે. તે પ્રાસાદાવતંસક ચાર યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી, બે યોજન લંબાઈ – પહોળાઈથી છે,
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 169 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दो दो तोरणा पन्नत्ता। वण्णओ जाव सहस्स-पत्तहत्थगा तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ। वण्णओ। तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो नागदंतगा पन्नत्ता। नागदंतावण्णओ उवरिमनागदंता नत्थि। तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो हयसंघाडा दोदो गयसंघाडा एवं नरकिन्नरकिंपुरिस-महोरगगंधव्वउसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा। दोदो पउमलयाओ जाव पडिरूवाओ। तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो दिसासोवत्थिया पन्नत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो वंदनकलसा पन्नत्ता। वण्णओ। तेसि णं तोरणाणं

Translated Sutra: વિજયદ્વારના બંને પડખે બે પ્રકારની નિષિધિકામાં બબ્બે તોરણો કહ્યા છે. તે તોરણો વિવિધ મણિમય આદિ પૂર્વવત્‌ કહેવું યાવત્‌ આઠ અષ્ટમંગલો અને છત્રાતિછત્ર જાણવું. તે તોરણો આગળ બબ્બે શાલભંજિકા કહી છે. વર્ણન પૂર્વવત્‌. તે તોરણોની આગળ બબ્બે નાગદંતકો કહ્યા છે. તે નાગદંતકો મુક્તાજાલમાં અંદર લટકતી માળાયુક્ત છે. તે નાગદંતકો
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 171 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उवरिमागारे सोलसविहेहिं रतणेहिं उवसोभिते, तं जहा–रयणेहिं वइरेहिं वेरुलिएहिं जाव रिट्ठेहिं। विजयस्स णं दारस्स उप्पिं अट्ठट्ठमंगलगा पन्नत्ता, तं जहा–सोत्थिय सिरिवच्छ जाव दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। विजयस्स णं दारस्स उप्पिं बहवे कण्हचामरज्झया जाव सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। विजयस्स णं दारस्स उप्पिं बहवे छत्तातिछत्ता तहेव।

Translated Sutra: વિજયદ્વારનો ઉપરનો ભાગ સોળ પ્રકારના રત્નોથી ઉપશોભિત છે. તે આ પ્રમાણે – રત્ન, વજ્ર, વૈડૂર્ય યાવત્‌ રિષ્ટ. વિજયદ્વારની ઉપર ઘણા આઠ – આઠ મંગલો કહ્યા છે. તે આ – સ્વસ્તિક, શ્રીવત્સ યાવત્‌ દર્પણ, સર્વે રત્નમય, સ્વચ્છ યાવત્‌ પ્રતિરૂપ છે. વિજયદ્વારની ઉપર ઘણા કૃષ્ણ ચામરધ્વજ છે યાવત્‌ સર્વરત્નમય, સ્વચ્છ યાવત્‌ પ્રતિરૂપ
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 172 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–विजए णं दारे विजए णं दारे? गोयमा! विजए णं दारे विजए नाम देवे महिड्ढीए महज्जुतीए महाबले महायसे महेसक्खे महानुभावे पलिओवमट्ठितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं चउण्हं अग्ग-महिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अनियाणं सत्तण्हं अनियाहिवईणं सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, विजयस्स णं दारस्स विजयाए रायहाणीए अन्नेसिं च बहूणं विजयाए रायहाणीए वत्थव्वगाणं देवाणं देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणाईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! એમ કેમ કહેવાય છે કે વિજયદ્વાર એ વિજયદ્વાર છે ? ગૌતમ ! વિજયદ્વારે વિજય નામક મહર્દ્ધિક, મહાદ્યુતિક યાવત્‌ મહાનુભાવ એવો પલ્યોપમ – સ્થિતિક દેવ વસે છે. તે ત્યાં ૪૦૦૦ સામાનિક દેવો, સપરિવાર ચાર અગ્રમહિષી, ત્રણ પર્ષદા, સાત સૈન્ય, સાત સૈન્યાધિપતિ, ૧૬,૦૦૦ આત્મરક્ષકદેવ, વિજયદ્વાર, વિજયા રાજધાનીનું, બીજા પણ ઘણા
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 174 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयाए णं रायहाणीए चउद्दिसि पंचपंच जोयणसताइं अबाहाए, एत्थ णं चत्तारि वनसंडा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवने सत्तिवण्णवने चंपगवने चूतवने। [गाथा] पुव्वेण असोगवनं, दाहिणतो होइ सत्तिवण्णवनं । अवरेणं चंपगवनं, चूयवनं उत्तरे पासे ॥ ते णं वनसंडा साइरेगाइं दुवालस जोयणसहस्साइं आयामेणं, पंच जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता–पत्तेयंपत्तेयं पागारपरिक्खित्ता किण्हा किण्होभासा वनसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव बहवे वाणमंतरा देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति णिसीदंति तुयट्टंति रमंति ललंति कीलंति मोहंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कम्माणं कडाणं कल्लाणाणं कल्लाणं

Translated Sutra: વિજયા રાજધાનીની ચારે દિશામાં ૫૦૦ યોજન અબાધાએ અહીં ચાર વનખંડો કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – અશોકવન, સપ્તપર્ણવન, ચંપકવન અને ચૂતવન. પૂર્વમાં અશોકવન, દક્ષિણમાં સપ્તપર્ણવન, પશ્ચિમમાં ચંપકવન, ઉત્તરમાં ચૂતવન છે. તે વનખંડો સાતિરેક ૧૨,૦૦૦ યોજન લંબાઈથી અને ૫૦૦ યોજન વિષ્કંભથી કહેલ છે. પ્રત્યેક – પ્રત્યેક પ્રાકાર વડે ઘેરાયેલ
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 175 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पन्नत्ता–अद्धत्तेरसजोयणाइं आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भुग्गयसुकयवइरवेदियातोरनवररइयसालभंजिया सुसिलिट्ठ विसिट्ठ लट्ठ संठिय पसत्थवेरुलियविमलखंभा नानामणि-कनग-रयणखइय-उज्जलबहुसम-सुविभत्तभूमिभागा ईहामिय-उसभ-तुरगनरमगर-विहगवालग-किन्नररुरु-सरभचमर-कुंजरवनलय-पउमलय-भत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुलोयणलेसा

Translated Sutra: તે મૂલ પ્રાસાદાવતંસકની ઉત્તરપૂર્વમાં અહીં વિજયદેવની સુધર્માસભા કહી છે. તે ૧૨|| યોજન લાંબી, ૬| યોજન પહોળી અને નવ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે. અનેકશત સ્તંભ સંનિવિષ્ટ છે. અભ્યુદ્‌ગત સુકૃત વજ્રવેદિકા, શ્રેષ્ઠ તોરણ ઉપર રતિદાયી શાલભંજિકા, સુશ્લિષ્ટ – વિશિષ્ટ – લષ્ટ – સંસ્થિત – પ્રશસ્ત – વૈડૂર્ય – વિમલ સ્તંભ છે. વિવિધ
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 176 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता। सा णं मणिपेढिया दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं, एत्थ णं महं एगे मानवए णाम चेइयखंभे पन्नत्ते–अद्धट्ठमाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, छकोडीए छलंसे छविग्गहिते वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपतिट्ठिते एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पडिरूवे। तस्स णं मानवगस्स चेतियखंभस्स उवरिं छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठावि छक्कोसे वज्जेत्ता, मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु

Translated Sutra: તે બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટી મણિપીઠિકા કહી છે. તે મણિપીઠિકા બે યોજન લાંબી – પહોળી, એક યોજન જાડી અને સંપૂર્ણ મણિમય છે. તે મણિપીઠિકાની ઉપર અહીં માણવક નામે ચૈત્યસ્તંભ કહેલ છે. તે સાડા સાત યોજન ઊંચો, અર્દ્ધ કોશ ઉદ્વેધથી – જમીનમાં, અર્દ્ધ કોશ વિષ્કંભથી છે. તેની છ કોટી, છ કોણ, છ ભાગ છે. તે વજ્રમય,
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 177 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुधम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतने पन्नत्ते–अद्धतेरस जोयणाइं आयामेणं, छ जोयणाइं सकोसाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं जाव गोमानसिया वत्तव्वया जा चेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्वा तहेव दारा मुहमंडवा पेच्छाघरमंडवा झया थूभा चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदाओ पुक्खरिणीओ सुधम्मासरिसप्पमाणं मनगुलिया दामा गोमानसी धूवघडियाओ तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणिफासो। तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे

Translated Sutra: સુધર્માસભાની ઉત્તરપૂર્વમાં એક મોટું સિદ્ધાયતન (જિનાલય) કહેલ છે. તે સાડા બાર યોજન લાંબી, સવા છ યોજન પહોળી, નવ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે યાવત્‌ ગોમાનસિકની વક્તવ્યતા કહેવી. જે સુધર્માસભાની વક્તવ્યતા છે, તે સંપૂર્ણ પૂર્વવત્‌. દ્વાર, મુખમંડપ, પ્રેક્ષાધર મંડપ, ધ્વજ, સ્તૂપ, ચૈત્યવૃક્ષ, માહેન્દ્ર ધ્વજ, નંદા પુષ્કરિણી,
Jivajivabhigam જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Gujarati 163 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महई एगा पउमवरवेदिया पन्नत्ता, सा णं पउमवर वेदिया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धनुसयाइं विक्खंभेणं, जगतीसमिया परिक्खेवेणं सव्वरयणामई अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं पउमवरवेइयाए अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईओ सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूवसंघाडा अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ जोतिरसामया वंसा वंसकवेल्लुया रययामईओ पट्टियाओ जातरूवमईओ ओहाडणीओ वइरामईओ उवरिपुंछणीओ

Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહુમધ્ય દેશભાગમાં અહીં એક મોટી પદ્મવર વેદિકા છે. તે પદ્મવર વેદિકા ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી અર્દ્ધ યોજન, ૫૦૦ ધનુષ વિષ્કંભથી, સર્વરત્નમય, જગતી સમાન પરિધિથી છે. તથા સર્વ રત્નમયી, સ્વચ્છ યાવત્‌ પ્રતિરૂપ છે. તે પદ્મવર વેદિકાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે – વજ્રમય નેમ, રિષ્ટરત્નમય પ્રતિષ્ઠાન, વૈડૂર્યમય સ્તંભ, સોના
Showing 1101 to 1150 of 2582 Results