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Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 184 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अंतो मनुस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा तु उववन्ना । पंचविहा जोतिसिया, चंदा सूरा गहगणा य ॥

Translated Sutra: इस तरह चंद्र की वृद्धि एवं हानि होती है, इसी अनुभाव से चंद्र काला या प्रकाशवान होता है।
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 189 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रिक्खग्गहतारग्गं, दीवसमुद्दे जतिच्छसी नाउं । तस्स ससीहिं गुणितं, रिक्खग्गहतारगग्गं तु ॥

Translated Sutra: घातकी खण्ड से आगे – आगे चंद्र का प्रमाण तीनगुना एवं पूर्व के चंद्र को मिलाकर होता है। (जैसे कि – कालोदसमुद्र है, घातकी खण्ड के बारह चंद्र को तीनगुना करने से छत्तीस हुए उनमें पूर्व के लवणसमुद्र के चार और जंबूद्वीप के दो चंद्र मिलाकर बयालीस हुए)।
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 196 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: देखो सूत्र १९५
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 199 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता

Translated Sutra: हे भगवंत ! चंद्रादि का अनुभाव किस प्रकार से है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ है। एक कहता है कि चंद्र – सूर्य जीवरूप नहीं है, अजीवरूप है; घनरूप नहीं है, सुषिररूप है, श्रेष्ठ शरीरधारी नहीं, किन्तु कलेवररूप है, उनको उत्थान – कर्म – बल – वीर्य या पुरिषकार पराक्रम नहीं है, उनमें विद्युत, अशनिपात ध्वनि नहीं है, लेकिन
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 200 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाने कंता देवा कंताओ देवीओ कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा। ता कहं ते सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया णं समयाति वा आवलियाति वा आनापानुति वा थोवेति वा जाव ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीति वा, एवं खलु सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! राहु की क्रिया कैसे प्रतिपादित की है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है कि – राहु नामक देव चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है, दूसरा कहता है कि राहु नामक कोई देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है। पहले मतवाला का कथन यह है कि – चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ कभी अधोभाग को ग्रहण
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 201 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं। एवं सूरस्सवि भाणितव्वं। ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? ता से जहानामए–केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगघरं हव्वमागए ण्हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! चंद्र को शशी क्युं कहते हैं ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्त – देव, कान्तदेवीयाँ, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते हैं, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्‌, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है इसलिए ‘चंद्र – शशी’ ऐसा कहा जाता है। हे भगवन्‌ ! सूर्य को आदित्य
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 202 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे

Translated Sutra: ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष राज चंद्र की कितनी अग्रमहिषीयाँ है ? चार – चंद्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा इत्यादि कथन पूर्ववत्‌ जान लेना। सूर्य का कथन भी पूर्ववत्‌। वह चंद्र – सूर्य कैसे कामभोग को अनुभवते हुए विचरण करते हैं ? कोई पुरुष यौवन के आरम्भकाल वाले बल से युक्त, सदृश पत्नी के साथ तुर्त में विवाहीत
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 203 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंगालए वियालए, लोहियक्खे निच्छरे चेव । आहुणिए पाहुणिए, कनगसणामा उ पंचेव ॥

Translated Sutra: निश्चय से यह अठ्ठासी महाग्रह कहे हैं – अंगारक, विकालक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, आधुनिक, प्राधूणिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसंताणक, सोम, सहित, आश्वासन, कायोपग, कर्बटक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, कंस, कंसनाभ, कंसवर्णाभ, नील, नीलावभास, रूप्य, रूप्यभास, भस्म, भस्मराशी, तिल, तिलपुष्पवर्ण, दक, दकवर्ण, काक, काकन्ध, इन्द्राग्नि,
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 207 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले । जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले

Translated Sutra: देखो सूत्र २०४
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 215 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो पवयण-कुल-गण-संघबाहिरो नाणविनयपरिहीनो । अरहंतथेरगणहरमेरं किर होति वोलीणो ॥

Translated Sutra: जो प्रवचन, कुल, गण या संघ से बाहर निकाले गए हो, ज्ञान – विनय से हीन हो, अरिहंत – गणधर और स्थवीर की मर्यादा से रहित हो – (ऐसे को यह प्रज्ञप्ति नहीं देना।)
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 20 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नयरी होत्था रिद्ध-त्थिमिय-समिद्धा, वण्णओ। तीसे णं मिहिलाए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए, वण्णओ। तीसे णं मिहिलाए नयरीए जियसत्तू नामं राया, धारिणी नामं देवी, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया।

Translated Sutra: શ્રી વીતરાગ પરમાત્માને નમસ્કાર થાઓ. અરિહંતોને નમસ્કાર થાઓ. તે કાળે, તે સમયે(ચોથા આરામાં ભગવંત મહાવીર વિચારતા હતા ત્યારે) મિથિલા નામે ઋદ્ધિ સંપન્ન અને સમૃદ્ધ નગરી હતી, ત્યાં પ્રમુદિત લોકો રહેતા હતા યાવત્‌ તે પ્રાસાદીય, દર્શનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતી. તે મિથિલા નગરીની બહાર ઈશાન દિશામાં અહીં માણિભદ્ર નામક
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 21 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવન્‌ મહાવીરના મુખ્ય શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર, ગૌતમ ગોત્રીય હતા. સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભ નારાચ સંઘયણી હતા. યાવત્‌ તે આ પ્રમાણે બોલ્યા –
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 36 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेति, तेसि णं अयं दोसे। तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, तेसि

Translated Sutra: તે એક મંડલથી બીજા મંડલમાં સંક્રમણ કરતો – કરતો સૂર્ય કઈ રીતે ચાર ચરે છે ? સૂર્યના એક મંડલ પરથી બીજા મંડલ ઉપર જવાના વિષયમાં અન્યતીર્થિકોની બે પ્રતિપત્તિ(માન્યતા)ઓ કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – તે વિષયમાં નિશ્ચે આ બે પ્રતિપત્તિઓ કહી છે – તેમાં એક એ પ્રમાણે કહે છે કે – તે એક મંડલથી બીજા મંડલમાં સંક્રમણ કરતો – કરતો સૂર્ય
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 43 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ... ... एवं परिहावेतव्वं–सोलसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ते दिवसे

Translated Sutra: સૂર્યની આપે ઉદય સંસ્થિતિ(વ્યવસ્થા) આપે કઈ રીતે કહી છે ? તેમાં આ ત્રણ પ્રતિપત્તિ (અન્ય તીર્થિકોની માન્યતા) કહેલી છે – ૧. કોઈક અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે કે – જ્યારે જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં અઢાર મુહૂર્ત્તનો દિવસ થાય છે, ત્યારે ઉત્તરાર્દ્ધમાં પણ અઢાર મુહૂર્ત્તનો દિવસ થાય છે. જ્યારે ઉત્તરાર્દ્ધમાં અઢાર
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 120 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चयणोववाता आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव ता एगे पुण एवमाहंसु–ता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वदामो–ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्ढिया महाजुतीया महाबला महाजसा महाणुभावा महासोक्खा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए काले अण्णे चयंति

Translated Sutra: ચંદ્ર અને સૂર્યનું ચ્યવન (મરણ) અને ઉપપાત કઈ રીતે કહેલા છે ? ચંદ્ર અને સૂર્યનું ચ્યવન અને ઉપપાતના વિષયમાં આ પચીશ પ્રતિપત્તિઓ(અન્યતીર્થિકની માન્યતા) કહેલી છે – ૧. તેમાં એક એમ કહે છે કે – અનુસમય જ ચંદ્ર – સૂર્ય અન્ય સ્થાને ચ્યવી, અન્યત્ર ઉપજે છે. ૨. એક વળી એમ કહે છે કે – અનુમુહૂર્ત્ત જ ચંદ્ર – સૂર્ય અન્ય સ્થાને ચ્યવી,
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 131 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जोतिसिया णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं। ता जोतिसिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता सूरविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 145 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता धायईसंडं णं दीवे कालोए नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव नो विसमचक्कवाल-संठाणसंठिते। ता कालोए णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता कालोए णं समुद्दे अट्ठ जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते, एक्कानउतिं जोयणसत-सहस्साइं सत्तरिं च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता कालोए णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता कालोए समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बातालीसं सूरिया तवेंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, एक्कारस बावत्तरा

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૩
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 146 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कानउतिं सतराइं, सहस्साइं परिरओ तस्स । अहियाइं छच्च पंचुत्तराइं कालोदधिवरस्स

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૩
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 147 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बातालीसं चंदा, बातालीसं च दिनकरा दित्ता । कालोदहिंमि एते, चरंति संबद्धलेसागा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૩
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 149 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिंमि बारस य सहस्साइं । नव य सता पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૩
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 150 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं? ता सोलस जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बानउतिं च सतसहस्साइं अउणानउतिं च सहस्साइं अट्ठचउनउते जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता चोतालं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोतालं सूरियाणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૩
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 179 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढति चंदो, परिहानी केण होति चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, केननुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૯. ચંદ્ર કઈ રીતે વધે છે ? ચંદ્રની હાનિ કઈ રીતે થાય છે? ચંદ્ર કયા અનુભાવથી કાળો કે શુક્લ થાય છે? સૂત્ર– ૧૮૦. કૃષ્ણ રાહુ વિમાન નિત્ય ચંદ્રથી અવિરહિત હોય છે. ચાર અંગુલ ચંદ્રની નીચેથી ચરે છે. સૂત્ર– ૧૮૧. શુક્લ પક્ષમાં જ્યારે ચંદ્રની વૃદ્ધિ થાય છે, ત્યારે એક – એક દિવસમાં ૬૨ – ૬૨ ભાગ પ્રમાણથી ચંદ્ર તેનો ક્ષય
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 181 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं-बावट्ठिं, दिवसे-दिवसे तु सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्ढति चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 183 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढति चंदो, परिहानी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, एयनुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 196 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૯
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 199 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता

Translated Sutra: તે રાહુકર્મ કઈ રીતે કહેલ છે ? તે વિષયમાં નિશ્ચે આ બે પ્રતિપત્તિઓ કહેલી છે – તેમાં એક એમ કહે છે કે – રાહુ નામે દેવ છે, જે ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રસિત કરે છે. એક એમ કહે છે. એક વળી એમ કહે છે – જે ચંદ્ર – સૂર્યને ગ્રસે છે, તેવો રાહુ નામે કોઈ દેવ નથી. પહેલા મતવાળો કહે છે કે ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રહણ કરતો રાહુ ક્યારેક અધોભાગને ગ્રહણ
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 201 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं। एवं सूरस्सवि भाणितव्वं। ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? ता से जहानामए–केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगघरं हव्वमागए ण्हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૦
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 202 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૨. તેમાં નિશ્ચે આ૮૮ – મહાગ્રહો કહેલા છે. તે આ રીતે – ૧. અંગારક, ૨. વિકાલક, ૩. લોહિતાક્ષ, ૪. શનૈશ્ચર, ૫. આધુનિક, ૬. પ્રાધુનિક, ૭. કણ,૮. કનક,૯. કણકનક. ૧૦. કણવિતાનક, ૧૧. કણ સંતાનક, ૧૨. સોમ, ૧૩. સહિત, ૧૪. આશ્વાસન, ૧૫. કાયોપગ, ૧૬. કર્બટક, ૧૭. અજકરક, ૧૮. દુંદુભક, ૧૯. શંખ, ૨૦. શંખનાભ. ૨૧. શંખવર્ણાભ, ૨૨. કંસ, ૨૩. કંસનાભ, ૨૪. કંસવર્ણાભ, ૨૫.
Chandrapragnapati ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Gujarati 207 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले । जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૨
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 140 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो विसहइ बावीसं परीसहा, दुस्सहा उवस्सग्गा । सुन्ने व आउले वा सो मरणे होइ कयजोगो ॥

Translated Sutra: जो मुनि बाईस परीषह और दुःसह ऐसे उपसर्ग को शून्य स्थान या गाँव नगर आदि में सहन करता है, वो मरणकाल में समाधि में भी झैल सकता है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 144 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जं अज्जियं च कम्मं अनंतकालं पमायदोसेणं । तं निहयराग-दोसो खवेइ पुव्वाण कोडीए ॥

Translated Sutra: अनन्तकाल से प्रमाद के दोष द्वारा उपार्जन किए कर्म को, राग – द्वेष को परास्त करनेवाले – खत्म कर देनेवाले मुनि केवल कोटि पूर्व साल में ही खपा देते हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 14 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुल्लहया आयरिया विज्जाणं दायगा समत्ताणं । ववगयचउक्कसाया दुल्लहया सिक्खगा सीसा ॥

Translated Sutra: इस विषम काल में समस्त श्रुतज्ञान के दाता आचार्य भगवंत मिलने अति दुर्लभ हैं और फिर क्रोध, मान आदि चार कषाय रहित श्रुत ज्ञान को शीखनेवाले शिष्य मिलने भी दुर्लभ हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 23 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवी विव सव्वसहं १ मेरु व्व अकंपिरं २ ठियं धम्मे ३ । चंदं व सोमलेसं ४ तं आयरियं पसंसंति ॥

Translated Sutra: पृथ्वी की तरह सबकुछ सहनेवाले, मेरु जैसे निष्प्रकंप – धर्म में निश्चल और चन्द्र जैसी सौम्य कान्तिवाले, शिष्य आदि ने आलोचन किए हुए दोष दूसरों के पास प्रकट न करनेवाले। आलोचना के उचित आशय, कारण और विधि को जाननेवाले, गंभीर हृदयवाले, परवादी आदि से पराभव नहीं पानेवाले। उचितकाल, देश और भाव को जाननेवाले, त्वरा रहित,
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 25 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालन्नू ११ देसन्नू १२ सयमन्नू १३ अतुरियं १४ असंभंतं १५ । अनुवत्तयं १६ अमायं १७ तं आयरियं पसंसंति ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २३
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 48 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विनयन्नू । लोह-भय-मोहरहियं जियनिद्द-परीसहं चेव ॥

Translated Sutra: काल, देश और समय – अवसर को पहचाननेवाला, शीलरूप और विनय को जाननेवाला, लोभ, भय, मोहरहित, निद्रा और परीषह को जीतनेवाला हो, उसे कुशल पुरुष उचित शिष्य कहते हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 96 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हु मरणम्मि उवग्गे सक्का बारसविहो सुयक्खंधो । सव्वो अनुचिंतेउं धणियं पि समत्थचित्तेणं ॥

Translated Sutra: मरण के वक्त समग्र द्वादशांगी का चिन्तन होना वो अति समर्थ चित्तवाले मुनि से भी मुमकीन नहीं है। इसलिए उस देश – काल में एक भी पद का चिन्तन आराधना में उपयुक्त होकर जो करता है उसे जिनेश्वर ने आराधक कहा है। सूत्र – ९६, ९७
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 97 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एक्कं पि पयं चिंतंतो तम्मि देस-कालम्मि । आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहगो भणिओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 98 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आराहणोवउत्तो सम्मं काऊण सुविहिओ कालं । उक्कोसं तिन्निभवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं ॥

Translated Sutra: सुविहित मुनि आराधना में एकाग्र होकर समाधिपूर्वक काल करके उत्कृष्ट से तीन भव में यकीनन मोक्ष पाता है। अर्थात्‌ निर्वाण – शाश्वत पद पाता है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 120 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम्मि । भवइ य परीसहसहो विसयसुहनिवारिओ अप्पा ॥

Translated Sutra: पूर्व तप आदि का अभ्यास करनेवाले और समाधि की कामनावाला मुनि यदि वैषयिक – सुख की ईच्छा रोक ले तो परीषह को समता से सहन कर सकता है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 121 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं कयपरिकम्मो पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते । छिंदइ परीसहमिणं निच्छयपरसुप्पहारेणं ॥

Translated Sutra: पहले शास्त्रोक्त विधि के मुताबिक विगई त्याग, उणोदरी उत्कृष्ट तप आदि करके क्रमशः सर्व आहार का त्याग करनेवाले मुनि मरण काल से निश्चयनयरूप परशु के प्रहार द्वारा परीषह की सेना छेद ड़ालते हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 122 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाहिंति इंदियाइं पुव्वमकारियपइन्नचारिस्स । अकयपरिकम्म जीवो मुज्झइ आराहणाकाले

Translated Sutra: पूर्वे चारित्र पालन में भारी कोशीश न करनेवाले मुनि को मरण के वक्त इन्द्रिय पीड़ा देती है। समाधि में बाधा पैदा करती है। इस तरह तप आदि के पहले अभ्यास न करनेवाले मुनि अन्तिम आराधना के वक्त कायर – भयभीत होकर घबराते हैं।
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Hindi 125 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपरव्वसविउत्तो । अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले

Translated Sutra: इन्द्रिय सुख – शाता में व्याकुल घोर परीषह की पराधीनता से घिरा, तप आदि के अभ्यास रहित कायर पुरुष अंतिम आराधना के वक्त घबरा जाता है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 149 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तम्मि धणियं अहीगारो । कायव्वो बुद्धिमया मरणसमुग्घायकालम्मि

Translated Sutra: बुद्धिमान पुरुष को मरणसमुद्‌घात के अवसर पर मिथ्यात्व का वमन करके सम्यक्त्व को प्राप्त करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना चाहिए।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 152 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ताहे जं देज्ज गुरू पायच्छित्तं जहारिहं जस्स । ‘इच्छामि’ त्ति भणिज्जा ‘अहमवि नित्थारिओ तुब्भे’ ॥

Translated Sutra: उस वक्त गुरु भगवंत जो उचित प्रायश्चित्त देवे, उसका ईच्छापूर्वक स्वीकार करके तथा गुरु का अनुग्रह मानते हुए कहे कि हे भगवन्‌ ! मैं आपके द्वारा दिया गया प्रायश्चित्त – तप करना चाहता हूँ, आपने मुझे पाप से निकालकर भवसमुद्र पार करवाया है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 157 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुनी विहरिऊणं । मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहओ भणिओ ॥

Translated Sutra: जो मुनि पाँच समिति से सावध होकर, तीन गुप्ति से गुप्त होकर, चिरकाल तक विचरकर भी यदि मरण के समय धर्म की विराधना करे तो उसे ज्ञानी पुरुष ने अनाराधक – आराधना रहित कहा है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 158 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ । आराहणोवउत्तो जिनेहिं आराहओ भणिओ ॥

Translated Sutra: काफी वक्त पहले अति मोहवश जीवन जी कर अन्तिम जीवन में यदि संवृत्त होकर मरण के वक्त आराधना में उपयुक्त हो तो उसे जिनेश्वर ने आराधक कहा है।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 162 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवत्त मानुसत्तं तिरिक्खजोणिं तहेव नरयं च । पत्तो अनंतखुत्तो पुव्विं अन्नाणदोसेणं ॥

Translated Sutra: पूर्वे – भूतकालमें अज्ञान दोष द्वारा अनन्त बार देवत्व, मनुष्यत्व, तिर्यंच योनि और नरकगति पा चूका हूँ। लेकिन दुःख के कारण ऐसे अपने ही कर्म द्वारा अब तक मुझे न तो संतोष प्राप्त हुआ न सम्यक्त्व विशुद्धि पाई। सूत्र – १६२, १६३
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 164 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुचिरं पि ते मनूसा भमंति संसारसायरे दुग्गे । जे हु करेंति पमायं दुक्खविमोक्खम्मि धम्मम्मि ॥

Translated Sutra: दुःख से मुक्त करवानेवाले धर्म में जो मानव प्रमाद करते हैं, वो महा भयानक ऐसे संसार सागर में दीर्घ काल तक भ्रमण करते हैं।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 167 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न वि माया, न वि य पिया, न बंधवा, न वि पियाइं मित्ताइं । पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥

Translated Sutra: पुरुष के मरण वक्त माता, पिता, बन्धु या प्रिय मित्र कोई भी सहज मात्र भी आलम्बन समान नहीं बनता मतलब मरण से नहीं बचा सकते।
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 168 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हिरण्ण-सुवण्णं वा दासी-दासं च जाण-जुग्गं च । पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥

Translated Sutra: चाँदी, सोना, दास, दासी, रथ, बैलगाड़ी या पालखी आदि किसी भी बाह्य चीजें पुरुष को मरण के वक्त काम नहीं लगते, आलम्बन नहीं दे सकते। अश्वबल, हस्तीबल, सैनिकबल, धनुबल, रथबल आदि किसी बाह्य संरक्षक चीजें मानव को मरण से नहीं बचा सकते। सूत्र – १६८, १६९
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