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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 1878 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निक्खिप्पिपडिग्गहगं वोसिरितुं नेयसो तु निल्लेवे । एतेण कारणेणं जिनकप्पिउ एगपातो तु ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 1918 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जदि एक्कभाणजिमिता गिहिणो वि य दीहमेत्तिया होंति । जिनवयण बहिब्भूता धम्मं पुण्णं अयानंता ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2067 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनथेराणं कप्पं अहुणा वोच्छामि आनुपुव्वीए । जं जत्थ जहा निवयति समासओ तं तहा सुणसु ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2068 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनथेराणं कप्पो जम्हा उट्ठितंमि अठिए चेव । ठित अट्ठितकप्पाणं जम्हा अंतग्गता एते ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2069 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो तु विसेसो एत्थं तं तु समासेण नवरि वक्खामि । जिनथेराणं कप्पे जिनकप्पे ता इमं वोच्छं ॥

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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2074 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनभिग्गहेण न वि ता गेण्हेति विही उ एस जिनकप्पे । अहुणा उ थेरकप्पे वोच्छामि विहिं समासेणं ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2163 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठाण जिन थेर पज्जुसणमेव सुत्ते चरित्तमज्झयणे । उद्देस वायण पडिच्छणा य परियट्टऽनुप्पेहा ॥

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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2250 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं जिनकप्पो वि हु ठियकप्पे अट्ठिए यऽणुन्नाओ । एमेव थेरकप्पो ठितमठिते होतिऽनुणातो ॥

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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2270 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आह जिनकप्पियाण वि आइण्णं किंचि अत्थि अह नत्थि? । भण्णति न अत्थी किं पुन आयरे जिनकप्पिताइण्णं

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2274 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संधाणकप्प एसो भणितो तु समासतो जिनक्खातो । संखेवसमुद्दिट्ठं एत्तो वोच्छं चरणकप्पं ॥

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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2340 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भवसयसहस्सदुलहं जिनवयणं भावओ जहंतस्स । जस्स न जायं दुक्खं न तस्स दुक्खं परे दुहिए ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2483 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रसयादनुकंपट्ठा अगनीमादीण चेव रक्खट्ठा । असहूणऽनुकंपट्ठा य उवहीगहणं जिना बेंति ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2532 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो पुव्विं वक्खाओ जिनथेराणं तु दोण्ह वी कप्पो । रूढणहकक्खमादी सो चेव इहं पि नायव्वो ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2551 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिन-थेर-अहालंदे परिहरिते अज्ज मासकप्पो उ । खेत्ते कालमुवस्सयपिंडग्गहणे य नाणत्तं ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2553 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नत्थि उ खेत्तं जिनकप्पियाण उडुबद्ध मासकालो तु । वासासुं चउमासा वसही अममत्त अपरिकम्मा ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2559 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहलंदियाण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिनाणं तु । नवरं कालविसेसो उडुवासे पणग चतुमासो ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2562 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिहारविसुद्धीणं जहेव जिनकप्पियाण नवरं तु । आयंबिलं तु भत्तं गेण्हंती वासकप्पं च ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2564 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सेसं जह थेराणं पिंडो य उवस्सओ य तह तासिं । सो सव्वो वि य दुविहो जिनकप्पो थेरकप्पो य ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2565 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जिनकप्पि-अहालंदी-परिहारविसुद्धियाण जिनकप्पो । थेराणं अज्जाण य बोधव्वो थेरकप्पो उ ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2566 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहो य मासकप्पो जिनकप्पो चेव थेरकप्पो य । निरनुग्गहो जिनाणं थेराण अनुग्गहपवत्तो ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Gujarati 2567 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उडुवास कालतीते जिनकप्पीणं तु गुरुग गुरुगा य । होंति दिनंमि दिनंमी थेराणं ते च्चिय लहूओ ॥

Translated Sutra: Not Available
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 1 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा जोयणा पमाणे य । इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडनिज्जुत्ती ॥

Translated Sutra: पिंड़ यानि समूह। वो चार प्रकार के – नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। यहाँ संयम आदि भावपिंड़ उपकारक द्रव्यपिंड़ है। द्रव्यपिंड़ के द्वारा भावपिंड़ की साधना की जाती है। द्रव्यपिंड़ तीन प्रकार के हैं। आहार, शय्या, उपधि। इस ग्रंथ में मुख्यतया आहारपिंड़ के बारे में सोचना है। पिंड़ शुद्धि आठ प्रकार से सोचनी है। उद्‌गम, उत्पादना,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

पिण्ड

Hindi 68 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह मीसओ य पिंडो एएसिं विय नवण्ह पिंडाणं । दुगसंजोगाईओ नायव्वो जाव वरमोति ॥

Translated Sutra: भावपिंड़ दो प्रकार के हैं। १. प्रशस्त, २. अप्रशस्त। प्रशस्त – एक प्रकार से दश प्रकार तक हैं। प्रशस्त भावपिंड़ एक प्रकार से यानि संयम। दो प्रकार यानि ज्ञान और चारित्र। तीन प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन और चारित्र। चार प्रकार यानि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। पाँच प्रकार यानि – १. प्राणातिपात विरमण, २. मृषावाद विरमण,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 117 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संजमठाणाणं कंडगाण लेसाठिईविसेसाणं । भावं अहे करेई तम्हा तं भावऽहेकम्मं ॥

Translated Sutra: संयमस्थान – कंड़क संयमश्रेणी, लेश्या एवं शाता वेदनीय आदि के समान शुभ प्रकृति में विशुद्ध विशुद्ध स्थान में रहे साधु को आधाकर्मी आहार जिस प्रकार से नीचे के स्थान पर ले जाता है, उस कारण से वो अधःकर्म कहलाता है। संयम स्थान का स्वरूप देशविरति समान पाँचवे गुण – स्थान में रहे सर्व उत्कृष्ट विशुद्ध स्थानवाले जीव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 241 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओहेन विभागेन य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे । उद्दिट्ठ कडे कम्मे एक्केक्कि चउक्कओ भेओ ॥

Translated Sutra: औद्देशिक दोष दो प्रकार से हैं। १. ओघ से और २. विभाग से। ओघ से यानि सामान्य और विभाग से यानि अलग – अलग। ओघ औद्देशिक का बयान आगे आएगा, इसलिए यहाँ नहीं करते। विभाग औद्देशिक बारह प्रकार से है। वो १.उदिष्ट, २.कृत और ३.कर्म। हर एक के चार प्रकार यानि बारह प्रकार होते हैं। ओघ औद्देशिक – पूर्वभवमें कुछ भी दिए बिना इस भव
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 266 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छक्कायनिरनुकंपा जिनपवयणबाहिरा बहिप्फोडा । एवं वयंति फोडा लुक्कविलुक्का जह कवोडा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४१
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 269 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोट्ठिनिउत्तो धम्मी सहाए आसन्नगोट्ठिभत्ताए । समियसुखल्लमीसं अजिन्न सन्ना महिसिपोहो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४१
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 302 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सट्ठाणपरट्ठाणे दुविहं ठवियं तु होइ नायव्वं । खीराइ परंपरए हत्थगय धरंतरं जाव ॥

Translated Sutra: गृहस्थने अपने लिए आहार बनाया हो उसमें से साधु को देने के लिए रख दे वो तो स्थापना दोषवाला आहार कहलाता है। स्थापना के छह प्रकार – स्वस्थान स्थापना, परस्थान स्थापना, परम्पर स्थापना, अनन्तर स्थापना, चिरकाल स्थापना और इत्वरकाल स्थापना। स्वस्थान स्थापना – आहार आदि जहाँ तैयार किया हो वहीं चूल्हे पर साधु को देने
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उद्गम्

Hindi 429 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दव्वाइओ विवेगो दव्वे जं दव्व जं जहिं खेत्तो । काले अकालहीनं असढो जं पस्सई भावे ॥

Translated Sutra: विवेक (परठना) चार प्रकार से – द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। द्रव्य विवेक – दोषवाले द्रव्य का त्याग। क्षेत्र विवेक – जिस क्षेत्र में द्रव्य का त्याग करे वो, काल विवेक, पता चले कि तुरन्त देर करने से पहले त्याग करे। भाव विवेक – भाव से मूर्च्छा रखे बिना उसका त्याग करे वो या असठ साधु जिन्हें दोषवाला देखके उसका त्याग
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 445 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीराहारो रोवइ मज्झ कपासाय देहि णं पिज्जे । पच्छा व मज्झ दाहिति अलं व मुज्जो व एहामि ॥

Translated Sutra: पूर्व परिचित घर में साधु भिक्षा के लिए गए हो, वहाँ बच्चे को रोता देखकर बच्चे की माँ को कहे कि, यह बच्चा अभी स्तनपान पर जिन्दा है, भूख लगी होगी इसलिए रो रहा है। इसलिए मुझे जल्द वहोराओ, फिर बच्चे को खिलाना या ऐसा कहे कि, पहले बच्चे को स्तनपान करवाओ फिर मुझे वहोरावो, या तो कहे कि, अभी बच्चे को खिला दो फिर मैं वहोरने के
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 532 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विज्जामंतपरूवण विज्जाए भिक्खुवासओ होइ । मंतींम सीसवेयण तत्थ मरुंडेण दिट्ठंतो ॥

Translated Sutra: जप, होम, बलि या अक्षतादि की पूजा करने से साध्य होनेवाली या जिसके अधिष्ठाता प्रज्ञाप्ति आदि स्त्री देवता हो वो विद्या। एवं जप होम आदि के बिना साध्य होता हो या जिसका अधिष्ठाता पुरुष देवता हो वो मंत्र। भिक्षा पाने के लिए विद्या या मंत्र का उपयोग किया जाए तो वो पिंड़ विद्यापिंड़ या मंत्रपिंड़ कहलाता है। ऐसा पिंड़
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

उत्पादन

Hindi 538 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चुन्ने अंतद्धाणे चाणक्के पायलेवणे समिए । मूल विवाहे दो दंडिणी उ आयाणपरिसाडे ॥

Translated Sutra: चूर्णपिंड़ – अदृश्य होना या वशीकरण करना, आँख में लगाने का अंजन या माथे पर तिलक करने आदि की सामग्री चूर्ण कहलाती है। भिक्षा पाने के लिए इस प्रकार के चूर्ण का उपयोग करना, चूर्णपिंड़ कहलाता है। योगपिंड़ – सौभाग्य और दौर्भाग्य को करनेवाले पानी के साथ घिसकर पीया जाए ऐसे चंदन आदि, धूप देनेवाले, द्रव्य विशेष, एवं आकाशगमन,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 563 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संकाए चउभंगो दोसुवि गहणे य भुंजणे लग्गो । जं संकियमावन्नो पणवीसा चरिमए सुद्धो ॥

Translated Sutra: शंकित दोष में चार भाँगा होते हैं। आहार लेते समय दोष की शंका एवं खाते समय भी शंका। आहार लेते समय दोष की शंका लेकिन खाते समय नहीं। आहार लेते समय शंका नहीं लेकिन खाते समय शंका। आहार लेते समय शंका नहीं और खाते समय भी शंका नहीं। चार भाँगा में दूसरा और चौथा भाँगा शुद्ध है। शंकित दोष में सोलह उद्‌गम के दोष और मक्षित
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 614 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बाले वुड्ढे मत्ते उम्मत्ते वेविए य जरिए य । अंधिल्लए पगलिए आरूढे पाउयाहिं च ॥

Translated Sutra: नीचे बताए गए चालीस प्रकार के दाता के पास से उत्सर्ग मार्ग से साधु को भिक्षा लेना न कल्पे। बच्चा – आठ साल से कम उम्र का हो उससे भिक्षा लेना न कल्पे। बुजुर्ग हाजिर न हो तो भिक्षा आदि लेने में कईं प्रकार के दोष रहे हैं। एक स्त्री नई – नई श्राविका बनी थी। एक दिन खेत में जाने से उस स्त्री ने अपनी छोटी बेटी को कहा कि,
Pindniryukti पिंड – निर्युक्ति Ardha-Magadhi

एषणा

Hindi 655 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] घेत्तव्वमलोवकडं लेवकडे मा हु पच्छकम्माई । न य रसगेहिपसंगो इअ वुत्ते चोयगो भणइ ॥

Translated Sutra: लिप्त का अर्थ है – जिस अशनादि से हाथ, पात्र आदि खरड़ाना, जैसे की दहीं, दूध, दाल आदि द्रव्यों को लिप्त कहलाते हैं। जिनेश्वर परमात्मा के शासन में ऐसे लिप्त द्रव्य लेना नहीं कल्पता, क्योंकि लिप्त हाथ, भाजन आदि धोने में पश्चात्कर्म लगते हैं तथा रस की आसक्ति का भी संभव होता है। लिप्त हाथ, लिप्त भाजन, शेष बचे हुए द्रव्य
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

उद्गम्

Gujarati 266 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छक्कायनिरनुकंपा जिनपवयणबाहिरा बहिप्फोडा । एवं वयंति फोडा लुक्कविलुक्का जह कवोडा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૬૪
Pindniryukti પિંડ – નિર્યુક્તિ Ardha-Magadhi

उद्गम्

Gujarati 269 Gatha Mool-02B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गोट्ठिनिउत्तो धम्मी सहाए आसन्नगोट्ठिभत्ताए । समियसुखल्लमीसं अजिन्न सन्ना महिसिपोहो ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૬૭
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 1 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ववगयजर-मरणभए, सिद्धे अभिवंदिऊण तिविहेणं । वंदामि जिनवरिंदं, तेलोक्कगुरुं महावीरं ॥

Translated Sutra: जरा, मृत्यु और उभय से रहित सिद्धों को त्रिविध अभिवन्दन कर के त्रैलोक्यगुरु जिनवरेन्द्र श्री भगवान्‌ महावीर को वन्दन करता हूँ।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 2 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुयरयणनिहाणं जिनवरेण, भवियजणणिव्वुइकरेण । उवदंसिया भयवया, पन्नवणा सव्वभावाणं ॥

Translated Sutra: भव्यजनों को निवृत्ति करनेवाले जिनेश्वर भगवान्‌ ने श्रुतरत्ननिधिरूप सर्वभाव – प्रज्ञापना का उपदेश दिया है।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 3 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वायगवरवंसाओ तेवीसइमेणं धीरपुरिसेण । दुद्धरधरेणं मुनिना पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीण ॥

Translated Sutra: वाचक श्रेष्ठवंशज ऐसे तेईसमें धीरपुरुष, दुर्धर एवं पूर्वश्रुत से जिनकी बुद्धि समृद्ध हुई है ऐसे मुनि द्वारा – श्रुतसागर से संचित कर के उत्तम शिष्यगण को जो दिया है, ऐसे आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार हो। सूत्र – ३, ४
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-१ प्रज्ञापना

Hindi 46 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे यावन्ने तहप्पगारा। एएसि णं मूला वि असंखेज्जजीविया, कंदा वि खंधा वि तया वि साला वि पवाला वि। पत्ता पत्तेयजीविया। पुप्फा अनेगजीविया फला बहुबीया। से त्तं बहुबीयगा। से त्तं रुक्खा। से किं तं गुच्छा? गुच्छा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: (जिनके फल में बहुत बीज हों; वे सब बहुजीवक वृक्ष समझने चाहिए।) इन (बहुजीवक वृक्षों) के मूल जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी (असंख्यात जीवात्मक होते हैं।) इनके पत्ते प्रत्येक जीवात्मक होते हैं। पुष्प अनेक जीवरूप (होते हैं) और फल बहुत बीजों वाले (हैं)। वे गुच्छ किस प्रकार के होते हैं
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 178 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जिनदिट्ठे भावे, चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, निस्सग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७७
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 179 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एते चेव उ भावे, उवदिट्ठे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जो व्यक्ति छद्मस्थ या जिन किसी दूसरेके द्वारा उपदिष्ट इन्हीं पदार्थों पर श्रद्धा करता है, वो उपदेशरुचि।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 180 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो हेउमयानंतो, आणाए रोयए पवयणं तु । एमेव नन्नह त्ति य, एसो आणारुई नाम ॥

Translated Sutra: जो हेतु को नहीं जानता हुआ; केवल जिनाज्ञा से प्रवचन पर रुचि रखता है, तथा यह समझता है कि जिनोपदिष्ट तत्त्व ऐसे ही हैं, अन्यथा नहीं; वह आज्ञारुचि है।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 187 Gatha Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिनाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जो व्यक्ति जिनोक्त अस्तिकायधर्म, श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म पर श्रद्धा करता है, उसे धर्मरुचि समझना।
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-२ स्थान

Hindi 203 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! भवनवासी देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं भवनवासीणं देवाणं सत भवनकोडीओ बावत्तरिं च भवनावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भवना बाहिं वट्टा अंतो समचउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किन्नंतर- विउलगंभीरखातप्परिहा पाणारट्टालय-कवाड-तोरग-पडिदुवारदेसभागा जंत-सयग्घि-मुसल-मुसुंढि-परिवारिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयाल-कोट्ठगरइया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पर्याप्त और अपर्याप्त भवनवासी देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,८०,००० योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन में भवनवासी देवों के ७,७२,००,००० भवनावास हैं। वे भवन बाहर से गोल और भीतर से समचतुरस्र तथा नीचे पुष्कर की कर्णिका के आकार के हैं। चारों ओर गहरी और विस्तीर्ण खाइयाँ और परिखाएं हैं,
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-६ व्युत्क्रान्ति

Hindi 338 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? किं नेरइएहिंतो जाव देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो वि उववज्जंति। जदि तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति। जदि एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं पुढविकाइएहिंतो जाव वणप्फइ-काइएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पुढविकाइएहिंतो वि जाव वणप्फइकाइएहिंतो वि उववज्जंति। जदि पुढविकाइएहिंतो उववज्जंति किं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचयोनिकों, मनुष्ययोनिकों तथा देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि (वे) तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो एकेन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं। यदि एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से (वे) उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 391 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अठियाइं गेण्हति? गोयमा! ठियाइं गेण्हति, नो अठियाइं गेण्हति। जाइं भंते! ठियाइं गेण्हति ताइं किं दव्वओ गेण्हति? खेत्तओ गेण्हति? कालओ गेण्हति? भावओ गेण्हति? गोयमा! दव्वओ वि गेण्हति, खेत्तओ वि गेण्हति, कालओ वि गेण्हति, भावओ वि गेण्हति। जाइं दव्वओ गेण्हति ताइं किं एगपएसियाइं गेण्हति दुपएसियाइं गेण्हति जाव अनंतपएसियाइं गेण्हति? गोयमा! नो एगपएसियाइं गेण्हति जाव नो असंखेज्जपएसियाइं गेण्हति, अनंतपएसियाइं गेण्हति। जाइं खेत्तओ गेण्हति ताइं किं एगपएसोगाढाइं गेण्हति दुपएसोगाढाइं गेण्हति जाव असंखेज्जपएसोगाढाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्थित द्रव्यों को ही ग्रहण करता है। भगवन्‌ ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, उन्हें क्या द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से अथवा भाव से ग्रहण करता है ? गौतम ! वह द्रव्य से भी यावत्‌ भाव
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 393 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं संतरं गेण्हति? निरंतरं गेण्हति? गोयमा! संतरं पि गेण्हति, निरंतरं पि गेण्हति। संतरं गिण्हमाणे जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अंतरं कट्टु गेण्हति। निरंतरं गिण्ह-माणे जहन्नेणं दो समए, उक्कोसेणं असंखेज्जसमए अनुसमयं अविरहियं निरंतरं गेण्हति। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाइं निसिरति ताइं किं संतरं निसिरति? निरंतरं निसिरति? गोयमा! संतरं निसिरति, नो निरंतरं निसिरति। संतरं णिसिरमाणे एगेणं समएणं गेण्हइ एगेणं समएणं निसिरति। एएणं गहणणिसिरणोवाएणं जहन्नेणं दुसमइयं उक्कोसेणं असंखेज्ज-समइयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें सान्तर ग्रहण करता है या निरन्तर ? गौतम ! दोनों। सान्तर ग्रहण करता हुआ जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात समय का अन्तर है और निरन्तर ग्रहण करता हुआ जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय प्रतिसमय बिना विरह के ग्रहण करता है। भगवन्‌
Pragnapana प्रज्ञापना उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

पद-११ भाषा

Hindi 395 Sutra Upang-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइएणं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अट्ठियाइं गेण्हति? गोयमा! एवं चेव जहा जीवे वत्तव्वया भणिया तहा नेरइयस्सवि जाव अप्पाबहुयं। एवं एगिंदियवज्जो दंडओ जाव वेमानिया। जीवा णं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गेण्हंति ताइं किं ठियाइं गेण्हंति? अट्ठियाइं गेण्हंति? गोयमा! एवं चेव पुहत्तेण वि नेयव्वं जाव वेमानिया। जीवे णं भंते! जाइं दव्वाइं सच्चभासत्ताए गेण्हति ताइं किं ठियाइं गेण्हति? अट्ठियाइं गेण्हति? गोयमा! जहा ओहियदंडओ तहा एसो वि, नवरं–विगलेंदिया न पुच्छिज्जंति। एवं मोसभासाए वि सच्चामोसभासाए वि। असच्चामोसभासाए वि एवं चेव, नवरं–असच्चामोसभासाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, उन्हें स्थित (ग्रहण करता) है अथवा अस्थित ? गौतम ! (औघिक) जीव के समान नैरयिक में भी कहना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना। जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या (वे) उन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, अथवा अस्थित द्रव्यों
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