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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं सेणियस्स रन्नो उयरवलिमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विणेंति।
तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा Translated Sutra: तत्पश्चात् परिपूर्ण तीन मास बीतने पर चेलना देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं यावत् वे पुण्यशालिनी हैं, उन्होंने पूर्व में पुण्य उपार्जित किया है, उनका वैभव सफल है, मानवजन्म और जीवन का, सुफल प्राप्त किया है जो श्रेणिक राजा की उदरावली के शूल पर सेके हुए, तले हुए, भूने हुए मांस का तथा सूरा | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा चेल्लणा देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण राइंदियाणं वीइक्कंताणं सूमालं सुरूवं दारगं पयाया।
तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए इमे एयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाइं खाइयाइं, तं न नज्जइ णं एस दारए संवड्ढमाणे अम्हं कुलस्स अंतकरे भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झावित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता दासचेडिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी – गच्छ णं तुमं देवानुप्पिए! एयं दारगं एगंते उक्कुरुडियाए उज्झाहि।
तए णं सा दासचेडी चेल्लणाए देवीए एवं Translated Sutra: तत्पश्चात् नौ मास पूर्ण होने पर चेलना देवी ने एक सुकुमार एवं रूपवान् बालक का प्रसव किया – पश्चात् चेलना देवी को विचार आया – ‘यदि इस बालक ने गर्भ में रहते ही पिता की उदरावली का मांस खाया है, तो हो सकता है कि यह बालक संवर्धित होने पर हमारे कुल का भी अंत करनेवाला हो जाय ! अतएव इस बालक को एकान्त उकरड़े में फेंक देना | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणिं पासइ, पासित्ता चेल्लणाए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता चेल्लणं देविं एवं वयासी–
किं णं अम्मो! तुम्हं न तुट्ठी वा न ऊसए वा न हरिसे वा न आणंदे वा, जं णं अहं सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरामि?
तए णं सा चेल्लणा देवी कूणियं रायं एवं वयासी–कहं णं पुत्ता! ममं तुट्ठी वा ऊसए वा हरिसे वा आणंदे वा भविस्सइ? जं णं तुमं सेणियं रायं पियं देवयं गुरुजणं अच्चंतनेहानुरागरत्तं नियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया-महया रायाभिसेणं अभिसिंचावेसि?
तए णं से कूणिए राया चेल्लणं देविं एवं वयासी–घाएउकामे णं अम्मो! ममं सेणिए राया, Translated Sutra: किसी दिन कूणिक राजा स्नान कर के, बलिकर्म कर के, विघ्नविनाशक उपाय कर, मंगल एवं प्रायश्चित्त कर और फिर अवसर के अनुकूल शुद्ध मांगलिक वस्त्रों को पहनकर, सर्व अलंकारों से अलंकृत होकर चेलना देवी के चरणवंदनार्थ पहुँचा। उस समय कूणिक राजा ने चेलना देवी को उदासीन यावत् चिन्ताग्रस्त देखा। चेलना देवी से पूछा – माता | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए कूणियस्स रन्नो सहोयरे कनीयसे भाया वेहल्ले नामं कुमारे होत्था– सूमाले जाव सुरूवे।
तए णं तस्स वेहल्लस्स कुमारस्स सेणिएणं रन्ना जीवंतएणं चेव सेयनए गंधहत्थी अट्ठारसवंके हारे य पुव्वदिन्ने।
तए णं से वेहल्ले कुमारे सेयनएणं गंधहत्थिणा अंतेउरपरियालसंपरिवुडे चंपं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता अभिक्खणं-अभिक्खणं गंगं महानइं मज्जणयं ओयरइ। तए णं सेयनए गंधहत्थी देवीओ सोंडाए गिण्हइ, गिण्हित्ता अप्पेगयाओ पट्ठे ठवेइ, अप्पेगइयाओ खंधे ठवेइ, अप्पेगइयाओ कुंभे ठवेइ, अप्पेगइयाओ सीसे ठवेइ, अप्पेगइयाओ Translated Sutra: उस चंपानगरीमें श्रेणिक राजा का पुत्र, चेलना देवी का अंगज कूणिक राजा का कनिष्ठ सहोदर भ्राता वेहल्ल राजकुमार था। वह सुकुमार यावत् रूप – सौन्दर्यशाली था। अपने जीवित रहते श्रेणिक राजा ने पहले ही वेहल्लकुमार को सेचनक नामक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार दिया था। वेहल्लकुमार अन्तःपुर परिवार के साथ सेचनक गंधहस्ती | |||||||||
Nirayavalika | निरयावलिकादि सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Hindi | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: तब कूणिक राजा ने उस दूत द्वारा चेटक के इस उत्तर को सूनकर और उसे अधिगत कर के क्रोधाभिभूत हो यावत् दाँतों को मिसमिसाते हुए पुनः तीसरी बार दूत को बुलाया। उस से तुम वैशाली नगरी जाओ और बायें पैर से पादपीठ को ठोकर मारकर चेटक राजा को भाले की नोक से यह पत्र देना। पत्र दे कर क्रोधित यावत् मिसमिसाते हुए भृकुटि तानकर | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 7 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे कालीए देवीए अन्नया कयाइ कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु ममं पुत्ते काले कुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं मनुयकोडीहिं गरुलव्वूहे एक्कारसमेणं खंडेणं कूणिएणं रन्ना सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए– से मन्ने किं जइस्सइ? नो जइस्सइ? जीविस्सइ? पराजिणिस्सइ? नो पराजिणिस्सइ? कालं णं कुमारं अहं जीवमाणं पासिज्जा? ओहयमन संकप्पा करयलपल्हत्थ- मुही अट्टज्झाणोवगया ओमंथियवयणनयनकमला दीनविवन्नवयणा झियाइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा Translated Sutra: ત્યારપછી તે કાલીદેવીને અન્ય કોઈ દિવસે કુટુંબ જાગરિકા કરતા આવો આધ્યાત્મિક યાવત્ સંકલ્પ ઉત્પન્ન થયો. નિશ્ચે મારો પુત્ર કાલકુમાર ૩૦૦૦ હાથી આદિ સાથે યુદ્ધે ચડેલ છે. તો શું તે જીતશે કે નહીં જીતે ? જીવશે કે નહીં જીવે ? બીજાનો પરાભવ કરશે કે નહીં કરે ? કાલકુમારને હું જીવતો જોઈશ ? એ રીતે અપહત મનવાળા થઈને યાવત્ ચિંતામગ્ન | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 11 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जइ ताव इमेणं दारएणं गब्भगएणं चेव पिउणो उयरवलिमंसाइं खाइयाइं, तं सेयं खलु मे एयं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तं गब्भं बहूहिं गब्भसाडणेहि य गब्भपाडणेहि य गब्भगालणेहि य गब्भविद्धंसणेहि य इच्छइ तं गब्भं साडित्तए वा पाडित्तए वा गालित्तए वा विद्धंसित्तए वा, नो चेव णं से गब्भे सडइ वा पडइ वा गलइ वा विद्धंसइ वा।
तए णं सा चेल्लणा देवी तं गब्भं जाहे नो संचाएइ बहूहिं गब्भसाडणेहि य जाव Translated Sutra: ત્યારે તે ચેલ્લણાદેવી, તે દોહદ પૂર્ણ ન થતાં શુષ્ક, ભૂખી, નિર્માંસ, અવરુગ્ણા, ભગ્ન શરીરી, નિસ્તેજ, દીન વિમનવદના, પાંડુમુખી, અવનમિત નયન અને વદન કમળવાળી થઈ, યથોચિત પુષ્પ – વસ્ત્ર – ગંધ – માળા – અલંકારનો ઉપભોગ ન કરતી, હાથ વડે મસળેલ કમળમાળા જેવી, અપહત મનોસંકલ્પા થઈ યાવત્ ચિંતામગ્ન થઈ. પછી તે ચેલ્લણા દેવીની અંગ પરિચારિકાઓએ | |||||||||
Nirayavalika | નિરયાવલિકાદિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ काल |
Gujarati | 18 | Sutra | Upang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया तस्स दूयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते कालादीए दस कुमारे सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिते णं सेयनगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं हारं अंतेउरं सभंडं च गहाय चंपाओ निक्खमइ, निक्खमित्ता वेसालिं अज्जगं चेडयं रायं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं मए सेयनगस्स गंधहत्थिस्स अट्ठारसवंकस्स हारस्स अट्ठाए दूया पेसिया। ते य चेडएण रन्ना इमेणं कारणेणं पडिसेहित्ता अदुत्तरं च णं ममं तच्चे दूए असक्कारिए असम्माणिए अवद्दारेणं निच्छुहाविए, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं चेडगस्स रन्नो जुत्तं गिण्हित्तए।
तए Translated Sutra: ત્યારે તે કોણિક રાજાએ તે દૂત પાસે આ અર્થને સાંભળી, સમજી, ક્રોધિત થઈ કાલાદિ દશ કુમારોને બોલાવીને કહ્યું – દેવાનુપ્રિય ! નિશ્ચે વેહલ્લકુમાર મને કહ્યા વિના સેચનક હાથી અને અઢારસરો હાર લઈ પૂર્વવત્ ચાલ્યો ગયો છે. મેં દૂતો મોકલ્યા ઇત્યાદિ પૂર્વવત્ બધું કથન કર્યું. હે દેવાનુપ્રિયો ! આપણે ચેટક રાજાની સાથે યુદ્ધ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 328 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू पाडिहारियं पायपुंछणयं जाइत्ता तमेव रयणिं पच्चप्पिणिस्सामित्ति सुए पच्चप्पिणति, पच्चप्पिणंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी प्रातिहारिक का (शय्यातर आदि के पास से वापस देने का कहकर लाया गया प्रातिहारिक), सागरिक (अन्य किसी गृहस्थ) का पाद प्रोंछनक अर्थात् रजोहरण, दंड़, लकड़ी, पाँव में लगा कीचड़ ऊखेड़ने की शलाखा विशेष या वाँस की शलाखा, उसी रात को या अगली सुबह को वापस कर दूँगा ऐसा कहकर लाने के बाद निर्दिष्ट वक्त पर वापस न करे | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 5 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अंगादानं कक्केण वा लोद्देण वा पउमचुण्णेण वा न्हाणेण वा सिणाणेण वा वण्णेण वा चुण्णेण वा उव्वट्टेज्ज वा परिवट्टेज्ज वा, उव्वट्टेंतं वा परिवट्टेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी जननांग को चन्दन आदि मिश्रित गन्धदार द्रव्य, लोघ्र नाम के सुगंधित द्रव्य या कमलपुष्प के चूर्ण आदि उद्वर्तन द्रव्य से सामान्य या विशेष तरह से स्नान करे, पीष्टी या विशेष तरह के चूर्ण द्वारा सामान्य या विशेष मर्दन करे, करवाए या मर्दन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। जिस तरह धारवाले शस्त्र | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 7 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू अंगादानं निच्छल्लेति, निच्छल्लेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु पुरुषचिह्न की चमड़ी का अपवर्तन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त, जैसे सुख से सोनेवाले साँप का मुँह कोई खोले तो उसे साँप नीगल जाए ऐसे ऐसे मुनि का चारित्र नीगल जाता है – नष्ट हो जाता है। | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 118 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावतिकुलेसु वा परियावसहेसु वा अन्नउत्थियं वा गारत्थियं वा असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासति, ओभासंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी धर्मशाला, उपवन, गाथापति का कुल या तापस के निवास स्थान में रहे अन्यतीर्थिक या गृहस्थ ऐसे किसी एक पुरुष, कईं पुरुष या एक स्त्री, कईं स्त्रियों के पास १. दीनता पूर्वक (ओ भाई ! ओ बहन मुझे कोई दे उस तरह से) २. कुतूहल से, ३. एक बार सामने से लाकर दे तब पहले ‘ना’ कहे, फिर उसके पीछे – पीछे जाकर या आगे – पीछे उसके | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-४ | Hindi | 307 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता ण पुंछति, ण पुंछंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी मल – मूत्र त्याग करने के बाद मलद्वार को साफ न करे, बांस या वैसी लकड़े की चीर, ऊंगली या धातु की शलाखा से मलद्वार साफ करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ३०७, ३०८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 379 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अलं थिरं धुवं धारणिज्जं परिभिंदिय-परिभिंदिय परिट्ठवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी अखंड़ – दृढ़, लम्बे अरसे तक चले ऐसे टिकाऊ और इस्तमाल में आ सके ऐसे तुंबड़े, लकड़े के या मिट्टी के पात्रा को तोड़कर या टुकड़े कर दे, परठवे, वस्त्र, कंबल या पाद प्रोंछनक (रजोहरण) के टुकड़े करके परठवे, दांड़ा, दांड़ी, वांस की शलाखा आदि तोड़कर टुकड़े करके परठवे, परठवाए या उसकी अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 393 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए वेति, विन्नवेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी हो तो पुरुष को) विनती करे, हस्त कर्म करे मतलब हाथ से होनेवाली क्रियाए करे, जननेन्द्रिय का संचालन करे यावत् शुक्र (साध्वी हो तो रज) बाहर नीकाले। (उद्देशक – १ में सूत्र २ से १० तक वर्णन की हुई सभी क्रियाए यहाँ समझ लेना।) यह काम खुद करे, दूसरों से करवाए या करनेवाले की | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 403 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए अवाउडिं सयं कुज्जा, सयं बूया वा, करेंतं वा वयंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी – पुरुष को) वस्त्र रहित करे, वस्त्र रहित होने के लिए कहे – स्त्री (पुरुष) के साथ क्लेश झगड़े करे, क्रोधावेश से बोले, लेख यानि खत लिखे। यह काम करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ४०३–४०५ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 406 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए पोसंतं वा पिट्ठंतं वा भल्लायएण उप्पाएति, उप्पाएंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से स्त्री को (साध्वी – पुरुष को) जननेन्द्रिय, गुह्य हिस्सा या छिद्र को औषधि विशेष से लेप करे, अचित्त ऐसे ठंड़े या गर्म पानी से एक बार या बार – बार प्रक्षालन करे, प्रक्षालन बाद एक या कईं बार किसी आलेपन विशेष से विलेपन करे, विलेपन के बाद तेल, घी, चरबी या मक्खन से अभ्यंगन या म्रक्षण करे, उसके | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 470 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिंडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु (स्त्री के साथ) साध्वी (पुरुष के साथ) मैथुन सेवन की ईच्छा से तृण, मुन (एक तरह का तृण), बेल, मदनपुष्प, मयुर आदि के पींच्छ, हाथी आदि के दाँत, शींग, शंख, हड्डियाँ, लकड़े, पान, फूल, फल, बीज, हरित वनस्पति की माला करे, लोहा, ताम्र, जसत्, सीसुं, रजत, सुवर्ण के किसी आकार विशेष, हार, अर्द्धहार, एकसरो हार, सोने के हाथी दाँत के रत्न | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 536 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए अनंतरहियाए पुढवीए निसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, निसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु मैथुन सेवन की ईच्छा से किसी स्त्री को (साध्वी हो तो पुरुष को) सचित्त भूमि पर, जिसमें धुण नामके लकड़े को खानेवाले जीव विशेष का निवास हो, जीवाकुल पीठफलक – पट्टी हो, चींटी आदि जीवयुक्त स्थान, सचित्त बीजवाला स्थान, हरितकाययुक्त स्थान, सूक्ष्म हिमकणवाला स्थान, गर्दभ आकार कीटक का निवास हो, अनन्तकाय ऐसी फूग हो, | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 548 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नयरं तेइच्छं आउट्टति, आउट्टंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु मैथुन की ईच्छा से स्त्री की (साध्वी पुरुष की) किसी तरह की चिकित्सा करे, अमनोज्ञ ऐसे पुद्गल (अशुचिपुद्गल) शरीर में से बाहर नीकाले मतलब शरीर शुद्धि करे, मनोज्ञ पुद्गल शरीर पर फेंके यानि शरीर गन्धदार करे या शोभा बढ़ाए ऐसा वो खुद करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ५४८–५५० | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 551 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नयरं पसुजातिं वा पक्खिजातिं वा पायंसि वा पक्खंसि वा पुंछंसि वा सीसंसि वा गहाय उव्विहति वा पव्विहति वा संचालेति वा, उव्विहंतं वा पव्विहंतं वा संचालेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु (साध्वी) मैथुन सेवन की ईच्छा से किसी पशु या पंछी के पाँव, पंख, पूँछ या सिर पकड़कर उसे हिलाए, संचालन करे, गुप्तांग में लकड़ा, वांस की शलाखा, ऊंगली या धातु की शलाका का प्रवेश करवाके, हिलाए, संचालन करे, पशु – पंछी में स्त्री (या पुरुष) की कल्पना करके उसे आलिंगन करे, दृढ़ता से आलिंगन करे, सर्वत्र चुंबन करे, करवाए, करनेवाले | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 554 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी – पुरुष के साथ) मैथुन सेवन की ईच्छा से अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप चतुर्विध आहार, वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, सूत्रार्थ, (इन तीनों में से कोई भी) दे या ग्रहण करे, (खुद करे, अन्य से करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे) तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ५५४–५५९ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 560 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नयरेणं इंदिएणं आकारं करेति, करेंतं वा सातिज्जति–
तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं। Translated Sutra: जो साधु स्त्री के साथ (साध्वी पुरुष के साथ) मैथुन की ईच्छा से किसी भी इन्द्रिय का आकार बनाए, तसवीर बनाए या हाथ आदि से ऐसे काम की चेष्टा करे, करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। इस प्रकार उद्देशक – ७ में कहे अनुसार किसी भी एक या ज्यादा दोष का सेवन करे, करवाए या अनुमोदना करे तो वो साधु – साध्वी का ‘‘चातुर्मासिक | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 561 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा एगो एगित्थीए सद्धिं विहारं वा करेइ, सज्झायं वा करेइ, असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेइ, अन्नयरं वा अनारियं निट्ठुरं असमनपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: धर्मशाला, बगीचा, गृहस्थ के घर या तापस आश्रम में, उद्यान में, उद्यानगृह में, राजा के निर्गमन मार्ग में, निर्गमन मार्ग में रहे घर में, गाँव या शहर के किसी एक हिस्से में जिसे ‘‘अट्टालिका’’ कहते हैं वहाँ, ‘‘अट्टालिका’’ के किसी घर में, ‘‘चरिका’’ यानि कि किसी मार्ग विशेष, नगर द्वार में, नगर द्वार के अग्र हिस्से में, पानी | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 590 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रन्नो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं अन्नयरं उववूहणियं समीहियं पेहाए ताए परिसाए अनुट्ठियाए अभिन्नाए अव्वोच्छिन्नाए जो तं अन्नं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति।
अह पुण एवं जाणेज्जा– इहज्ज राया खत्तिए परिवुसिए जे भिक्खू ताए गिहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए विहारं वा करेति, सज्झायं वा करेति, असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा आहारेति, उच्चारं वा पासवणं वा परिट्ठवेति, अन्नयरं वा अनारियं निट्ठुरं असमनपाओग्गं कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी राजा आदि के अन्य अशन आदि आहार में से किसी भी एक शरीर पुष्टिकारक, मनचाही चीज देखकर उसकी जो पर्षदा खड़ी न हुई हो (यानि कि पूरी न हुई हो), एक भी आदमी वहाँ से न गुज़रा हो, सभी वहाँ से चले गए न हो उसके अशन आदि आहार ग्रहण करे, करवाए, अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त, दूसरी बात ये भी जानना कि राजा आदि कहाँ निवास करते | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 599 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रन्नो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा परस्स नीहडं पडिग्गाहेति, पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति, तं जहा–खत्तियाण वा राईण वा कुराईण वा रायपेसियाण वा। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी, राजा आदि के अशन आदि आहार कि जो दूसरों के निमित्त से जैसे कि, क्षत्रिय, राजा, खंड़िया राजा, राजसेवक, राजवंशज के लिए किया हो उसे ग्रहण करे, (उसी तरह से) राजा आदि के नर्तक, कच्छुक (रज्जुनर्तक), जलनर्तक, मल्ल, भाँड़, कथाकार, कुदक, यशोगाथक, खेलक, छत्रधारक, अश्व, हस्ति, पाड़ा, बैल, शेर, बकरे, मृग, कुत्ते, शुकर, सूवर, | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 762 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू कट्ठकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा दंतकम्माणि वा मणिकम्माणि वा सेलकम्माणि वा गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघातिमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी चक्षुदर्शन अर्थात् देखने की अभिलाषा से यहाँ कही गई दर्शनीय जगह देखने का सोचे या संकल्प करे, करवाए या अनुमोदना करे। लकड़े का कोतरकाम, तसवीरे, वस्त्रकर्म, लेपनकर्म, दाँत की वस्तु, मणि की चीज, पत्थरकाम, गूँथी – अंगूठी या कुछ भी भरके बनाई चीज, संयोजना से निर्मित पत्ते निर्मित या कोरणी, गढ़, तख्ता, छोटे | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१३ | Hindi | 848 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू धाइपिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी नीचे बताने के अनुसार भोजन करे, करवाए, करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। धात्रि, दूति, निमित्त, आजीविका, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ, विद्या, मंत्र, योग, चूर्ण या अंतर्धान इसमें से किसी भी पिंड़ यानि भोजन खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे। धात्री – गृहस्थ के बच्चे के साथ खेलकर | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1242 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू गाएज्ज वा हसेज्ज वा वाएज्ज वा णच्चेज्ज वा अभिणएज्ज वा हयहेसियं वा हत्थिगुलगुलाइयं वा उक्कुट्ठसीहणायं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी वितत, तन, धन और झुसिर उस चार तरह के वांजित्र के शब्द को कान से सुनने की ईच्छा से मन में संकल्प करे, दूसरों को वैसा संकल्प करने के लिए प्रेरित करे या वैसा संकल्प करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। – भेरी, ढोल, ढोल जैसा वाद्य, मृदंग, (बारह वाद्य साथ बज रहे हो वैसा वाद्य) नंदि, झालर, वल्लरी, ड़मरु, | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Gujarati | 87 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू वर-गवेसियं पडिग्गहगं धरेति, धरेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી પ્રધાનપુરુષ ગવેષિત પાત્રને ધારણ કરે કે ધારણ કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Gujarati | 393 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए वेति, विन्नवेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: આ ઉદ્દેશામાં સૂત્ર – ૩૯૩ થી ૪૬૯ અર્થાત્ ૭૭ – સૂત્રો છે. જેમાનાં કોઈપણ દોષનું ત્રિવિધે સેવન કરનારને ‘ચાતુર્માસિક પરિહાસ સ્થાન અનુદ્ઘાતિક’ નામનું પ્રાયશ્ચિત્ત આવે. જેને ‘ગુરુ ચૌમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત’ કહે છે. પ્રત્યેક સૂત્રને અંતે પ્રાયશ્ચિત્ત આવે એમ જોડવાનું છે. અમે બધા સ્થાને એ નિર્દેશ કર્યો | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Gujarati | 403 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए अवाउडिं सयं कुज्जा, सयं बूया वा, करेंतं वा वयंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીને (સાધ્વી – પુરુષને) આ પ્રમાણે કરે કે કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૧. સ્ત્રીને વસ્ત્રરહિત કરે કે વસ્ત્રરહિત થવા દે. ૨. કલહ કરે, કલહ ઉત્પાદક વચન કહે, કલહ માટે જાય. ૩. પત્ર લખે, લખાવે, લખવા માટે બહાર જાય. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૦૩–૪૦૫ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 470 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए तणमालियं वा मुंजमालियं वा वेत्तमालियं वा भिंडमालियं वा मयणमालियं वा पिच्छमालियं वा दंतमालियं वा सिंगमालियं वा संखमालियं वा हड्डमालियं वा कट्ठमालियं वा पत्तमालियं वा पुप्फमालियं वा फलमालियं वा बीजमालियं वा हरियमालियं वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: નિશીથસૂત્રના આ ઉદ્દેશામાં સૂત્ર – ૪૭૦ થી ૫૬૦ એ પ્રમાણે કુલ – ૯૧ સૂત્રો છે. જેમાનાં કોઈપણ દોષનું સેવન કરનારને ‘ચાતુર્માસિક પરિહારસ્થાન અનુદ્ઘાતિક’ પ્રાયશ્ચિત્ત આવે, જેનું બીજું નામ ‘ગુરુ ચૌમાસી’ પ્રાયશ્ચિત્ત છે. અહીં પ્રત્યેક સૂત્રને અંતે ‘ગુરુ ચૌમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે’ આ વાક્ય જોડવું જરૂરી | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 473 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अय-लोहाणि वा तंब-लोहाणि वा तउय-लोहाणि वा सीसग-लोहाणि वा रुप्प-लोहाणि वा सुवण्ण-लोहाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી લોઢાનું, તાંબાનું, ત્રપુષનું, શીશાનું, ચાંદીનું કે સોનાનું કડું ૧. બનાવે કે બનાવનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૨. ધારણ કરે કે ધારણ કરનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૩. પહેરે કે પહેરનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૭ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 476 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए हाराणि वा अद्धहाराणि वा एगावली वा मुत्तावली वा कनगावली वा, रयणावली वा कडगाणि वा तुडियाणि वा केऊराणि वा, कुंडलाणि वा पट्टाणि वा मउडाणि वा पलंबसुत्ताणि वा सुवण्णसुत्ताणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી હાર, અર્ધહાર, એકાવલી, મુક્તાવલી, કનકાવલી, રત્નાવલી, કટિસૂત્ર, ભૂજબંધ, કેયૂર, કુંડલ, મુગટ, પ્રલંબસૂત્ર કે સુવર્ણસૂત્ર ૧. બનાવે કે બનાવનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૨. ધારણ કરે કે ધારણ કરનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૩. પહેરે કે પહેરનારની | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 479 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आईणाणि वा सहिणाणि वा कल्लाणि वा सहिणकल्लाणाणि वा आयाणि वा कायाणि वा खोमाणि वा दुगुल्लाणि वा तिरीडपट्टाणि वा मलयाणि वा पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा चीणंसुयाणि वा देसरागाणि वा अमिलाणि वा गज्जलाणि वा फाडिगाणि वा कोतवाणि वा कंबलाणि वा पावारगाणि वा कनगाणि वा कनगकताणि वा कनगपट्टाणि वा कनग-खचियाणि वा कनगफुल्लियाणि वा वग्घाणि वा विवग्घाणि वा आभरणाणि वा आभरणविचित्ताणि वा उद्दाणि वा गोरमिगाईणगाणि वा किण्हमिगाईणगाणि वा नीलमिगाईणगाणि वा पेसाणि वा पेसलेसाणि वा करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી મૃગચર્મ, સૂક્ષ્મવસ્ત્ર, સૂક્ષ્મ કલ્યાણક વસ્ત્ર, આજાતિ, કાયાતિ, ક્ષૌમિક, દુકુલક, તિરીડપટ્ટ, મલયજ, પત્રુલ્લ, અંશુક, ચિનાંશુક, દેશરાગ, અમ્લાય, ગજ્જલ, સ્ફટિક, કોનવ, કુંબલ, પાવર, ઉદ્દગ, પેશલ, પેસલેશ, કૃષ્ણ – નીલ – ગૌર – મૃગચર્મ, કાનક, કનકાંત, કનકપટ્ટ, કનક ખચિત, | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 483 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नमन्नस्स पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: આ ૫૩ સૂત્રો છે. જે ત્રીજા ઉદ્દેશાના ૧૩૩ થી ૧૮૫ સૂત્ર મુજબ જ સમજી લેવા. આ પ્રકારે ૫૩ સૂત્ર ત્રીજા ઉદ્દેશા પછી ચોથા અને છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં પણ આવેલ છે. સૂત્રો બધે જ આ જ છે, પણ તે ક્રિયા કરવા પાછળના હેતુમાં ફરક છે. આ ઉદ્દેશામાં ‘મૈથુનની ઇચ્છાથી આ ક્રિયા પરસ્પર કરે’ તે હેતુ છે. જે સાધુ સ્ત્રી સાથે મૈથુનની ઇચ્છાથી સાધ્વી | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 536 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए अनंतरहियाए पुढवीए निसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, निसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: જે સાધુ મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી કોઈ સ્ત્રીને (સાધ્વી હોય તો કોઈ પુરુષને) અનુવાદ: સૂત્ર– ૫૩૬. સચિત્ત પૃથ્વીની નિકટની ભૂમિ ઉપર, સૂત્ર– ૫૩૭. સચિત્ત જળથી સ્નિગ્ધ ભૂમિ ઉપર, સૂત્ર– ૫૩૮. સચિત્ત રજ યુક્ત ભૂમિ ઉપર, સૂત્ર– ૫૩૯. સચિત્ત માટી યુક્ત ભૂમિ ઉપર, સૂત્ર– ૫૪૦. સચિત્ત એવી પૃથ્વી ઉપર, સૂત્ર– ૫૪૧. સચિત્ત | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 546 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामं मेहुण-वडियाए आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु वा निसीयावेज्ज वा तुयट्टावेज्ज वा, निसीयावेंतं वा तुयट्टावेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી તેને ધર્મશાળામાં, બગીચામાં, ગૃહસ્થના ઘેર, પરિવ્રાજકના સ્થાનમાં – ૧. બેસાડે, સૂવડાવે કે તેમ કરનારને અનુમોદે – ૨. બેસાડી કે સૂવડાવી અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમ ખવડાવે, પીવડાવે કે તેમ કરનારને અનુમોદે – સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૪૬, ૫૪૭ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 548 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नयरं तेइच्छं आउट्टति, आउट्टंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ મૈથુનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીની સાધ્વી – પુરુષની. કોઈ પ્રકારે ચિકિત્સા કરે કે કરનારને અનુમોદે. | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 549 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अमणुण्णाइं पोग्गलाइं अवहरति, अवहरंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ મૈથુનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીની (સાધ્વી – પુરુષની) અમનોજ્ઞ પુદ્ગલોને બહાર કાઢે કે તેમ કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયાશ્ચિત્ત. | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 550 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए मणुण्णाइं पोग्गलाइं उवहरति, उवहरंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ મૈથુનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીની (સાધ્વી – પુરુષની) મનોરમ પુદ્ગલોનો પ્રક્ષેપ કરે. તેમ કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયાશ્ચિત્ત | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 554 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा देति, देंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ સાધ્વી. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીને પુરુષને. અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમ ૧. આપે કે આપનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. ૨. લે કે લેનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૫૪, ૫૫૫ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 556 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा देति, देंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી સ્ત્રીને કે સાધ્વી – પુરુષને. વસ્ત્ર, પાત્ર, કંબલ, પાદપ્રૌંછન ૧. આપે કે આપનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત, ૨. લે અથવા લેનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૫૬, ૫૫૭ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 558 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए सज्झायं वाएति, वाएंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી સૂત્રાર્થની વાચના ૧. આપે કે આપનારને અનુમોદન કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત ૨. લે કે લેનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત સૂત્ર સંદર્ભ– ૫૫૮, ૫૫૯ | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 560 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुण-वडियाए अन्नयरेणं इंदिएणं आकारं करेति, करेंतं वा सातिज्जति–
तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं। Translated Sutra: જે સાધુ – સ્ત્રી સાથે સાધ્વી – પુરુષ સાથે. મૈથુન સેવનની ઇચ્છાથી કોઈપણ ઇન્દ્રિયનો આકાર બનાવે કે હાથ વગેરેથી તેવી કામચેષ્ટા કરે કે કરાવનારને અનુમોદે. એ પ્રમાણે ઉદ્દેશા – ૭ માં કોઈપણ એક કે વધુ દોષનું સેવન કરે યાવત્ અનુમોદે. તેને ‘ચાતુર્માસિક પરિહારસ્થાન અનુદ્ઘાતિક’ અર્થાત્ ‘ગુરુ ચૌમાસી’ પ્રાયશ્ચિત્ત | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Gujarati | 570 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू राओ वा वियाले वा इत्थीमज्झगते इत्थीसंसत्ते इत्थीपरिवुडे अपरिमाणाए कहं कहेति, कहेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ રાત્રિમાં કે વિકાળે સ્ત્રી પર્ષદામાં, સ્ત્રીયુક્ત પર્ષદામાં, સ્ત્રીઓથી ઘેરાયેલા રહીને અપરિમિત કથા કરે કે કથા કહેનારની અનુમોદના કરે – (ઉક્ત દશે સૂત્રો સાધ્વી માટે – પુરુષના સંદર્ભમાં સમજવા..) | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Gujarati | 762 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू कट्ठकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा दंतकम्माणि वा मणिकम्माणि वा सेलकम्माणि वा गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघातिमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: જે સાધુ – સાધ્વી ચક્ષુદર્શન અર્થાત્ જોવાની અભિલાષાથી નીચે મુજબના દર્શનીય સ્થળો જોવાને જાય કે જનારની અનુમોદના કરે તો પ્રાયશ્ચિત્ત. અનુવાદ: સૂત્ર– ૭૬૨. કાષ્ઠકર્મ, ચિત્રકર્મ, પુસ્તક કર્મ, દંત કર્મ, મણિ કર્મ, પથ્થર કર્મ, ગ્રંથિમ, વેષ્ટિમ, પૂરિમ, સંઘાતિમ, માળાદિ બનાવવાના સ્થળ, પત્રછેદ્ય કે | |||||||||
Nishithasutra | નિશીથસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१३ | Gujarati | 848 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू धाइपिंडं भुंजति, भुंजंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી અહીં દર્શાવેલા પંદર ભેદોમાંના કોઈ પીંડ આહારને ભોગવે કે ભોગવનારને અનુમોદે લઘુ ચૌમાસી પ્રાયશ્ચિત્ત આવે. ૧. ધાત્રિપીંડ – બાળકને રમાડી ગૌચરી મેળવે. ૨. દૂતિપીંડ – બાળકને રમાડીને ગૌચરી મેળવે. ૩. નિમિત્તપીંડ – સંદેશાની આપ – લે કરી ગૌચરી મેળવે. ૪. આજીવક પીંડ – જાતિ, કળા, પ્રશંસાથી નિર્વાહ કરે. ૫. વનીપક | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
उद्गम् |
Hindi | 101 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दव्वंमि लड्डगाई मावे तिविहोग्गमो मुनेयव्वो ।
दंसणनाणचरित्ते चरिउग्गमेणेत्थ अहिगारो ॥ Translated Sutra: उसमें उद्गम के सोलह दोष हैं। वो इस प्रकार – आधाकर्म – साधु के लिए हो जो आहार आदि बनाया गया हो वो। उद्देशिक – साधु आदि सभी भिक्षाचर को उद्देशकर आहार आदि किया गया हो वो। पूतिकर्म – शुद्ध आहार के साथ अशुद्ध आहार मिलाया गया हो। मिश्र – शुरू से गृहस्थ और साधु दोनों के लिए तैयार किया गया हो वो। स्थापना – साधु के लिए |