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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-८ Hindi 30 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता सव्वावि णं मंडलवता केवतियं बाहल्लेणं, केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं अहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसहस्साइं तिन्नि य नवनउए जोयणसए परिक्खेवेणं पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वावि णं मंडलवता जोयणं बाहल्लेणं, एगं जोयणसहस्सं एगं च चउतीसं जोयणसयं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसहस्साइं चत्तारि बिउत्तरे जोयणसए परिक्खेवेणं पन्नत्ता–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता सव्वावि

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! सर्व मंडलपद कितने बाहल्य से, कितने आयाम विष्कंभ से तथा कितने परिक्षेप से युक्त हैं ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। पहला परमतवादी कहता है कि सभी मंडल बाहल्य से एक योजन, आयाम – विष्कम्भ से ११३३ योजन और परिक्षेप से ३३९९ योजन है। दूसरा बताता है कि सर्वमंडल बाहल्य से एक योजन, आयामविष्कम्भ से ११३४
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

Hindi 3 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कइ मंडलाइ वच्चइ? तिरिच्छा किं व गच्छइ? । ओभासइ केवइयं? सेयाइ किं ते संठिई? ॥

Translated Sutra: सूर्य एक वर्ष में कितने मण्डलों में जाता है ? कैसी तिर्यग्‌ गति करता है ? कितने क्षेत्र को प्रकाशीत करते हैं ? प्रकाश की मर्यादा क्या है ? संस्थिति कैसी है ? उसकी लेश्या कहाँ प्रतिहत होती है ? प्रकाश संस्थिति किस तरह होती है ? वरण कौन करता है ? उदयावस्था कैसे होती है ? पौरुषीछाया का प्रमाण क्या है ? योग किसको कहते हैं
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 8 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वड्ढोवुड्ढी मुहुत्ताणमद्धमंडलसंठिई । के ते चिन्ने परियरइ? अंतरं किं चरंति य? ॥

Translated Sutra: मुहूर्त्तों की वृद्धि – हानि, अर्द्धमंडल संस्थिति, अन्य व्याप्त क्षेत्रमें संचरण, संचरण का अन्तर प्रमाण – अवगाहन और गति कैसी है ? मंडलों का संस्थान और उसका विष्कम्भ कैसा है ? यह आठ प्राभृतप्राभृत पहले प्राभृत में हैं। सूत्र – ८, ९
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 10 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छप्पंच य सत्तेव य, अट्ठ य तिन्नि य हवंति पडिवत्ती । पढमस्स पाहुडस्स उ, हवंति एयाओ पडिवत्ती ॥ १०:१ [से तं पढमे पाहुडे पाहुड पाहुड पडिवत्ति संखा]

Translated Sutra: प्रथम प्राभृत में ये उनतीस परमतरूप प्रतिपत्तियाँ हैं। जैसे की – चौथे प्राभृतप्राभृत में छह, पाँचवे में पाँच, छठ्ठे में सात, सातवे में आठ और आठवें में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। दूसरे प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में उदयकाल और अस्तकाल आश्रित घातरूप अर्थात्‌ परमत की दो प्रतिपत्तियाँ हैं। तीसरे प्राभृतप्राभृत
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 12 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निक्खममाणे सिग्घगई, पविसंते मंदगईइ य । चूलसीइसयं पुरिसाणं, तेसिं च पडिवत्तीओ ॥

Translated Sutra: सर्वाभ्यन्तर मण्डल से बाहर गमन करते हुए सूर्य की गति शीघ्रतर होती है। और सर्वबाह्य मंडल से अभ्यन्तर मंडल में गमन करते हुए सूर्य की गति मन्द होती है। सूर्य के १८४ मंडल हैं। उसके सम्बन्ध में १८४ पुरुष प्रतिपत्ति अर्थात्‌ मतान्तररूप भेद हैं।
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 13 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उदयम्मि अट्ठ भणिया, भेयघाए दुवे य पडिवत्ती । चत्तारिमुहुत्तगईए, हुंति तइयम्मि पडिवत्ती ॥ १३:१ [से तं दोच्चे पाहुडे पाहुड पाहुड पडिवत्ति संखा]

Translated Sutra: पहेले प्राभृतप्राभृत में सूर्योदयकाल में आठ प्रतिपत्तियाँ कही है। दूसरे प्राभृतप्राभृत में भेदघात सम्बन्धी दो और तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्त्तगति सम्बन्धी चार प्रतिपत्तियाँ हैं।
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 14 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आवलिय मुहुत्तग्गे, एवंभागा य जोगसा । कुलाइं पुण्णमासी य, सन्निवाए य संठिई ॥

Translated Sutra: दसवें प्राभृत के पहले प्राभृतप्राभृत में नक्षत्रों की आवलिका, दूसरे में मुहूर्त्ताग्र, तीसरे में पूर्व पश्चिमादि विभाग, चौथे में योग, पाँचवे में कुल, छठ्ठे में पूर्णमासी, सातवें में सन्निपात और आठवे में संस्थिति, नवमें प्राभृत – प्राभृत में ताराओं का परिमाण, दसवे में नक्षत्र नेता, ग्यारहवे में चन्द्रमार्ग,
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 20 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता एयाए णं अद्धाए सूरिए कइ मंडलाइं दुक्खुत्तो चरइ? ता चुलसीयं मंडलसयं चरइ–बासीतं मंडलसयं दुक्खुत्तो चरइ, तं जहा–निक्खममाणे चेव पविसमाणे चेव, दुवे य खलु मंडलाइं चारं चरइ, तं जहा–सव्वब्भंतरं चेव मंडलं सव्वबाहिरं चेव मंडलं।

Translated Sutra: पूर्वोक्त कालमान में सूर्य कितने मंडलों में गति करता है ? वह १८४ मंडलों में गति करता है। १८२ मंडलों में दो बार गमन करता है। सर्व अभ्यन्तर मंडल से नीकलकर सर्व बाह्य मंडल में प्रविष्ट होता हुआ सूर्य सर्व अभ्य – न्तर तथा सर्व बाह्य मंडल में दो बार गमन करता है।
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 21 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सइं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, सइं दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, सइं दुवालसमुहुत्ता राती भवति। पढमे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, नत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे अत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे, नत्थि दुवालसमुहुत्ता राती। दोच्चे छम्मासे अत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, नत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राती, अत्थि दुवालसमुहुत्ता राती, नत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे। पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे नत्थि पन्नरसमुहुत्ते दिवसे, नत्थि पन्नरसमुहुत्ता राती। तत्थ णं को हेतूति वएज्जा? ता अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे

Translated Sutra: सूर्य के उक्त गमनागमन के दौरान एक संवत्सर में अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाणवाला एक दिन और अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण की एक रात्रि होती है। तथा बारह मुहूर्त्त का एक दिन और बारह मुहूर्त्तवाली एक रात्रि होती है। पहले छ मास में अट्ठारह मुहूर्त्त की एक रात्रि और बारह मुहूर्त्त का एक दिन होता है। तथा दूसरे छ मास में
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-२ Hindi 22 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमे दुवे अद्धमंडलसंठिती पन्नत्ता, तं जहा–दाहिणा चेव अद्धमंडलसंठिती उत्तरा चेव अद्धमंडलसंठिती। ता कहं ते दाहिणा अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा? ता अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्व-दीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं दाहिणं अद्धमंडल-संठितिं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं आयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि दाहिणाए अंतराए भागाए तस्सादिपदेसाए अब्भिंतरानंतरं उत्तरं

Translated Sutra: अर्द्धमंडल संस्थिति – व्यवस्था कैसे होती है ? दो प्रकार से अर्द्धमंडल संस्थिति मैनें कही है – दक्षिण दिग्भावि और उत्तरदिग्भावि। हे भगवन्‌ ! यह दक्षिण दिग्भावि अर्धमंडल संस्थिति क्या है ? जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से संक्रमण करके दक्षिण अर्द्धमंडल संस्थिति में गति करता है, तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-२ Hindi 23 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उत्तरा अद्धमंडलसंठिती आहितेति वएज्जा? ता अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं उत्तरं अद्धमंडलसंठितिं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। जहा दाहिणा तहा चेव, नवरं–उत्तरट्ठिओ अब्भिंतरानंतरं दाहिणं उवसंकमति, दाहिणाओ अब्भिंतरं तच्चं उत्तरं उवसंकमति। एवं खलु एएणं उवाएणं जाव सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमति, सव्वबाहिरं दाहिणं उवसंकमित्ता दाहिणाओ बाहिरानंतरं उत्तरं उवसंकमति, उत्तराओ बाहिरं तच्चं दाहिणं, तच्चाओ

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! उत्तरदिग्वर्ती अर्द्धमंडल संस्थिति कैसी है ? यह बताईए। दक्षिणार्द्धमंडल की संस्थिति के समान ही उत्तरार्द्धमंडल की संस्थिति समझना। जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर उत्तर अर्द्धमंडल संस्थिति का संक्रमण करके गति करता है तब उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्य बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। उत्तरस्थित
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 31 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते तिरिच्छगती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो मिरीची आगासंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं मिरीयं आगासंसि विद्धंसइ– एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए आगासंसि विद्धंसइ– एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पादो सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ, करेत्ता, पच्चत्थिमंसि

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! सूर्य की तिर्छी गति कैसी है ? इस विषय में आठ प्रतिपत्तियाँ हैं। (१) पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रभातकाल का सूर्य आकाश में उदित होता है वह इस समग्र जगत्‌ को तिर्छा करता है और पश्चिम लोकान्त में संध्या समय में आकाश में अस्त होता है। (२) पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रातःकाल में सूर्य आकाश में उदित होता है, तिर्यक्‌लोक
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-२ Hindi 32 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेति, तेसि णं अयं दोसे। तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, तेसि

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एक मंडल से दूसरे मंडल में संक्रमण करता सूर्य कैसे गति करता है ? इस विषय में दो प्रति – पत्तियाँ हैं – (१) वह सूर्य भेदघात से संक्रमण करता है। (२) वह कर्णकला से गमन करता है। भगवंत कहते हैं कि जो भेदघात से संक्रमण बताते हैं उसमें यह दोष है कि भेदघात से संक्रमण करता सूर्य जिस अन्तर से एक मंडल से दूसरे मंडल
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-३ Hindi 33 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केयतियं ते खेत्तं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता छ छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु –ता पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता चत्तारि-चत्तारि जोयणस-हस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ४ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता छ-छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! कितने क्षेत्र में सूर्य एकएक मुहूर्त्त में गमन करता है ? इस विषय में चार प्रतिपत्तियाँ हैं। (१) सूर्य एक – एक मुहूर्त्त में छ – छ हजार योजन गमन करता है। (२) पाँच – पाँच हजार योजन बताता है। (३) चार – चार हजार योजन कहता है। (४) सूर्य एक – एक मुहूर्त्त में छह या पाँच या चार हजार योजन गमन करता है। जो यह कहते हैं
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-३

Hindi 34 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ बारस पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता एगं दीवं एगं समुद्दं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति १ एगे पुण एवमाहंसु–ता तिन्नि दीवे तिन्नि समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता अद्धुट्ठे दीवे अद्धुट्ठे समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता सत्त दीवे सत्त समुद्दे चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति–एगे एवमाहंसु ४ एगे

Translated Sutra: चंद्र – सूर्य कितने क्षेत्र को अवभासित – उद्योतित – तापित एवं प्रकाशीत करता है ? इस विषय में बारह प्रति – पत्तियाँ हैं। वह इस प्रकार – (१) गमन करते हुए चंद्र – सूर्य एक द्वीप और एक समुद्र को अवभासित यावत्‌ प्रकाशित करते हैं। (२) तीन द्वीप – तीन समुद्र को अवभासित यावत्‌ प्रकाशीत करते हैं। (३) अर्द्ध चतुर्थद्वीप
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प्राभृत-६

Hindi 37 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते ओयसंठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु २ एवं एतेणं अभिलावेणं नेतव्वा–ता अनुराइंदियमेव ३ ता अनुपक्खमेव ४ ता अनुमासमेव ५ ता अनुउडुमेव ६ ता अनुअयणमेव ७ ता अनुसंवच्छरमेव ८ ता अनुजुगमेव ९ ता अनुवाससयमेव १० ता अनुवाससहस्समेव ११ ता अनुवाससयसहस्समेव १२ ता अनुपुव्वमेव १३ अनुपुव्वसयमेव १४ ता अनुपुव्वसहस्समेव १५ ता अनु पुव्वसयसहस्समेव १६ ता अनुपलिओवममेव

Translated Sutra: सूर्य की प्रकाश संस्थिति किस प्रकार की है ? इस विषय में अन्य मतवादी पच्चीश प्रतिपत्तियाँ हैं, वह इस प्रकार हैं – (१) अनु समय में सूर्य का प्रकाश अन्यत्र उत्पन्न होता है, भिन्नता से विनष्ट होता है, (२) अनुमुहूर्त्त में अन्यत्र उत्पन्न होता है, अन्यत्र नाश होता है, (३) रात्रिदिन में अन्यत्र उत्पन्न होकर अन्यत्र विनाश
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-९

Hindi 40 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठं ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ तत्थेगे एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पंति, ते णं पोग्गला संतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं संतावेंतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला नो संतप्पंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं नो संतावेंतीति, एस णं से समिते ताव-क्खेत्ते–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु– ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला

Translated Sutra: कितने प्रमाणयुक्त पुरुषछाया से सूर्य परिभ्रमण करता है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। एक मत – वादी यह कहता है कि जो पुद्‌गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करता है वही पुद्‌गल उससे संतापित होते हैं। संतप्य – मान पुद्‌गल तदनन्तर बाह्य पुद्‌गलों को संतापित करता है। यही वह समित तापक्षेत्र है। दूसरा कोई कहता
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-१८ Hindi 71 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चारा आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमे दुविहा चारा पन्नत्ता, तं जहा–आदिच्चचारा य चंदचारा य। ता कहं ते चंदचारा आहिताति वदेज्जा? ता पंच संवच्छरिए णं जुगे अभीई नक्खत्ते सत्तसट्ठिचारे चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, सवणे णं नक्खत्ते सत्तसट्ठिचारे चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। एवं जाव उत्तरासाढा नक्खत्ते सत्तसट्ठिचारे चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। ता कहं ते आदिच्चचारा आहिताति वदेज्जा? ता पंच संवच्छरिए णं जुगे अभीई नक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएति। एवं जाव उत्तरासाढा नक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएति।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! गति भेद किस प्रकार से है ? गतिभेद (चार) दो प्रकार से है – सूर्यचार और चन्द्रचार। चंद्र चार – पाँच संवत्सरात्मक युग काल में अभिजीत नक्षत्र ६७ चार से चंद्र का योग करता है, श्रवण नक्षत्र ६७ चार से चन्द्र का योग करता है यावत्‌ उत्तराषाढ़ा भी ६७ चार से चन्द्र के साथ योग करता है। आदित्यचार – भी इसी प्रकार समझना,
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-२२ Hindi 97 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जया णं इमे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इयरेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ, जया णं इयरे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इमेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ। ता जया णं इमे सूरिए गतिसमावन्ने भवइ तया णं इयरेवि सूरिए गतिसमावन्ने भवइ, जया णं इयरे सूरिए गतिसमावन्ने भवइ तया णं इमेवि सूरिए गतिसमावन्ने भवइ। एवं गहेवि नक्खत्तेवि। ता जया णं इमे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इयरेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ, जया णं इयरे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इमेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ। एवं सूरेवि गहेवि नक्खत्तेवि। सयावि णं चंदा जुत्ता जोगेहिं सयावि णं सूरा जुत्ता जोगेहिं, सयावि णं गहा जुत्ता जोगेहिं

Translated Sutra: जिस समय यह चंद्र गति समापन्न होता है, उस समय अन्य चंद्र भी गति समापन्न होता है; जब अन्य चंद्र गति समापन्न होता है उस समय यह चंद्र भी गति समापन्न होता है। इसी तरह सूर्य के ग्रह के और नक्षत्र के सम्बन्ध में भी जानना। जिस समय यह चंद्र योगयुक्त होता है, उस समय अन्य चंद्र भी योगयुक्त होता है और जिस समय अन्य चंद्र योगयुक्त
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१५

Hindi 111 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते सिग्घगती वत्थू आहितेति वदेज्जा? ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं चंदेहिंतो सूरा सिग्घगती, सूरेहिंतो गहा सिग्घगती, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगती, नक्खत्तेहिंतो तारा सिग्घगती। सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारा। ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं चंदे केवतियाइं भागसताइं गच्छति? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स सत्तरस अडसट्ठिं भागसते गच्छति, मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठानउतीए सतेहिं छेत्ता। ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवतियाइं भागसताइं गच्छति? ता जं-जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तस्स-तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस तीसे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इन ज्योतिष्कों में शीघ्रगति कौन है ? चंद्र से सूर्य शीघ्रगति है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होते हैं। सबसे अल्पगतिक चंद्र है और सबसे शीघ्रगति ताराएं है। एक – एक मुहूर्त्त में गमन करता हुआ चंद्र, उन – उन मंडल सम्बन्धी परिधि के १७६८ भाग गमन करता हुआ मंडल के १०९८०० भाग
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१५

Hindi 112 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं सूरे गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता बावट्ठिभागे विसेसेति। ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं नक्खत्ते गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता सत्तट्ठिभागे विसेसेति। ता जया णं सूरं गतिसमावन्नं नक्खत्ते गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता पंच भागे विसेसेति। ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं अभीई नक्खत्ते गतिसमावन्ने पुरत्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अनुपरियट्टति, अनुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति

Translated Sutra: जब चंद्र गति समापन्नक होता है, तब सूर्य भी गति समापन्नक होता है, उस समय सूर्य बासठ भाग अधिकता से गति करता है। इसी प्रकार से चंद्र से नक्षत्र की गति सडसठ भाग अधिक होती है, सूर्य से नक्षत्र की गति पाँच भाग अधिक होती है। जब चंद्र गति समापन्नक होता है उस समय अभिजीत नक्षत्र जब गति करता है तो पूर्व दिशा से चन्द्र को नव
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१५

Hindi 113 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता नक्खत्तेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति? ता तेरस मंडलाइं चरति तेरस य सत्तट्ठिभागे मंडलस्स। ता नक्खत्तेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति? ता तेरस मंडलाइं चरति चोत्तालीसं च सत्तट्ठिभागे मंडलस्स। ता नक्खत्तेणं मासेणं नक्खत्ते कति मंडलाइं चरति? ता तेरस मंडलाइं चरति अद्धसीतालीसं च सत्तट्ठिभागे मंडलस्स। ता चंदेणं मासेणं चंदे कति मंडलाइं चरति? ता चोद्दस सचउभागाइं मंडलाइं चरति एगं च चउव्वीससतभागं मंडलस्स। ता चंदेणं मासेणं सूरे कति मंडलाइं चरति? ता पन्नरस चउभागूणाइं मंडलाइं चरति एगं च चउवीससतभागं मंडलस्स। ता चंदेणं मासेणं नक्खत्ते कति मंडलाइं चरति? ता पन्नरस

Translated Sutra: नक्षत्र मास में चंद्र कितने मंडल में गति करता है ? वह तेरह मंडल एवं चौदहवे मंडल में चवालीस सड – सट्ठांश भाग पर्यन्त गति करता है, सूर्य तेरह मंडल और चौदहवें मंडल में छयालीस सडसठांश भाग पर्यन्त गति करता है, नक्षत्र तेरह मंडल एवं चौदह मंडल के अर्द्ध सडतालीश षडषठांश भाग पर्यन्त गति करता है।चन्द्र मास में इन सब की
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१५

Hindi 114 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं चंदे कति मंडलाइं चरति? ता एगं अद्धमंडलं चरति एक्कतीसाए भागेहिं ऊणं नवहिं पन्नरसेहिं सतेहिं अद्धमंडलं छेत्ता। ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं सूरे कति मंडलाइं चरति? ता एगं अद्धमंडलं चरति। ता एगमेगेणं अहोरत्तेणं नक्खत्ते कति मंडलाइं चरति? ता एगं अद्धमंडलं चरति दोहिं भागेहिं अहियं सत्तहिं दुवत्तीसेहिं सतेहिं अद्धमंडलं छेत्ता। ता एगमेगं मंडलं चंदे कतिहिं अहोरत्तेहिं चरति? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरति एक्कतीसाए भागेहिं अहिएहिं चउहिं बातालेहिं सतेहिं राइंदियं छेत्ता। ता एगमेगं मंडलं सूरे कतिहिं अहोरत्तेहिं चरति? ता दोहिं अहोरत्तेहिं चरति। ता

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एक – एक अहोरात्र में चंद्र कितने मंडलों में गमन करता है ? ९१५ से अर्धमंडल को विभक्त करके इकतीस भाग न्यून ऐसे मंडल में गति करता है, सूर्य एक अर्द्ध मंडल में गति करता है और नक्षत्र एक अर्द्ध – मंडल एवं अर्द्धमंडल को ७३२ से छेदकर – दो भाग अधिक मंडल में गति करता है। एक – एक मंडल में चंद्र दो अहोरात्र एवं एक
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१८

Hindi 124 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो सिग्घगती वा मंदगती वा? ता चंदेहिंतो सूरा सिग्घगती, सूरेहिंतो गहा सिग्घगती, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगती, नक्खत्तेहिंतो तारा सिग्घगती। सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारा। ता एतेसि णं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्ता-तारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पिड्ढिया वा महिड्ढिया वा? ता ताराहिंतो नक्खत्ता महिड्ढिया, नक्खत्तेहिंतो गहा महिड्ढिया, गहेहिंतो सूरा महिड्ढिया, सूरेहिंतो चंदा महिड्ढिया। सव्वप्पिड्ढिया तारा, सव्वमहिड्ढिया चंदा।

Translated Sutra: ज्योतिष्क देवों की गति का अल्पबहुत्व – चंद्र से सूर्य शीघ्रगति होता है, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारा शीघ्रगति होते हैं सर्व मंदगति चंद्र है और सर्व शीघ्रगति तारा है। तारारूप से नक्षत्र महर्द्धिक होते हैं; नक्षत्र से ग्रह, ग्रह से सूर्य और सूर्य से चंद्र महर्द्धिक हैं। सर्व अल्पर्द्धिक
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 192 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: मनुष्य क्षेत्र के अन्तर्गत्‌ जो चंद्र – सूर्य – ग्रह – नक्षत्र और तारागण हैं, वह क्या ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पोपपन्न ? विमानोपपन्न है ? अथवा चारोपपन्न है ? वे देव विमानोपपन्न एवं चारोपपन्न है, वे चारस्थितिक नहीं होते किन्तु गतिरतिकगतिसमापन्नक – ऊर्ध्वमुखीकलंबपुष्प संस्थानवाले हजारो योजन तापक्षेत्रवाले,
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-३ Gujarati 33 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केयतियं ते खेत्तं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ चत्तारि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता छ छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु –ता पंच-पंच जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता चत्तारि-चत्तारि जोयणस-हस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता छवि पंचवि चत्तारिवि जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति–एगे एवमाहंसु ४ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता छ-छ जोयणसहस्साइं सूरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! કેટલા ક્ષેત્રમાં સૂર્ય એક એક મુહૂર્ત્તમાં ગમન કરે છે ? તેમાં આ ચાર પ્રતિપત્તિઓ કહેલી છે. ૧. તેમાં એક એ પ્રમાણે કહે છે – છ – છ હજાર યોજન સૂર્ય એક – એક મુહૂર્ત્તથી જાય છે. ૨. બીજા કોઈ કહે છે – તે પાંચ – પાંચ હજાર યોજન સૂર્ય એક – એક મુહૂર્ત્તથી જાય છે. ૩. એક કોઈ કહે છે કે – તે સૂર્ય એક – એક મુહૂર્ત્તમાં ચાર – ચાર
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-९

Gujarati 40 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कतिकट्ठं ते सूरिए पोरिसिच्छायं निव्वत्तेति आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ तत्थेगे एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्पंति, ते णं पोग्गला संतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं संतावेंतीति, एस णं से समिते तावक्खेत्ते–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला नो संतप्पंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंतराइं बाहिराइं पोग्गलाइं नो संतावेंतीति, एस णं से समिते ताव-क्खेत्ते–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु– ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला

Translated Sutra: સૂર્ય કેટલાં પ્રમાણયુક્ત પુરુષછાયાથી નિવર્તે છે અર્થાત પડછાયાને ઉત્પન્ન કરે છે ? તેમાં નિશ્ચે આ ત્રણ પ્રતિપત્તિઓ (અન્ય તીર્થિકોની માન્યતા) કહેલી છે – તેમાં કોઈ અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે કે – જે પુદ્‌ગલો સૂર્યની લેશ્યાને સ્પર્શે છે, તે પુદ્‌ગલો સંતપ્ત થાય છે. તે સંતપ્યમાન પુદ્‌ગલો તેની પછીના બાહ્ય પુદ્‌ગલોને
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-२२ Gujarati 97 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जया णं इमे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इयरेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ, जया णं इयरे चंदे गतिसमावण्णए भवइ तया णं इमेवि चंदे गतिसमावण्णए भवइ। ता जया णं इमे सूरिए गतिसमावन्ने भवइ तया णं इयरेवि सूरिए गतिसमावन्ने भवइ, जया णं इयरे सूरिए गतिसमावन्ने भवइ तया णं इमेवि सूरिए गतिसमावन्ने भवइ। एवं गहेवि नक्खत्तेवि। ता जया णं इमे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इयरेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ, जया णं इयरे चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ तया णं इमेवि चंदे जुत्ते जोगेणं भवइ। एवं सूरेवि गहेवि नक्खत्तेवि। सयावि णं चंदा जुत्ता जोगेहिं सयावि णं सूरा जुत्ता जोगेहिं, सयावि णं गहा जुत्ता जोगेहिं

Translated Sutra: જ્યારે આ ચંદ્ર ગતિ સમાપન્ન હોય છે(ગતિ કરે છે), ત્યારે બીજો પણ ચંદ્ર ગતિસમાપન્ન થાય છે. જ્યારે બીજો પણ ચંદ્ર ગતિ સમાપન્ન થાય છે, ત્યારે આ ચંદ્ર પણ ગતિસમાપન્ન થાય છે. જ્યારે આ સૂર્ય ગતિ સમાપન્ન થાય છે, ત્યારે બીજો પણ સૂર્ય ગતિ સમાપન્ન થાય છે. જ્યારે બીજો સૂર્ય ગતિ સમાપન્ન હોય છે ત્યારે આ સૂર્ય પણ ગતિ સમાપન્ન હોય છે. એ
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१५

Gujarati 112 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं सूरे गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता बावट्ठिभागे विसेसेति। ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं नक्खत्ते गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता सत्तट्ठिभागे विसेसेति। ता जया णं सूरं गतिसमावन्नं नक्खत्ते गतिसमावन्ने भवति, से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति? ता पंच भागे विसेसेति। ता जया णं चंदं गतिसमावन्नं अभीई नक्खत्ते गतिसमावन्ने पुरत्थिमाते भागाते समासादेति, समासादेत्ता नव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स चंदेण सद्धिं जोयं जोएति, जोएत्ता जोयं अनुपरियट्टति, अनुपरियट्टित्ता विजहति विप्पजहति

Translated Sutra: જ્યારે ચંદ્ર ગતિ સમાપન્નક હોય, ત્યારે સૂર્ય ગતિ સમાપન્નક હોય છે, તે ગતિ માત્રાથી કેટલા વિશેષ હોય ? અર્થાત ચંદ્ર કરતા સૂર્યની ગતિ કેટલી વધુ હોય છે ? પ્રત્યેક મુહુર્તે ચંદ્ર કરતા સૂર્ય બાસઠ ભાગ વધુ ચાલે છે. જ્યારે ચંદ્ર ગતિ સમાપન્નક હોય ત્યારે નક્ષત્ર ગતિ સમાપન્નક હોય છે, તે ગતિમાત્રાથી કેટલા વિશેષ હોય ? અર્થાત
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 192 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૫
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-१ Hindi 27 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चावयाणि गच्छंता गब्भमेस्संतणंतसो । नायपुत्ते महावीरे एवमाह जिणोत्तमे ॥

Translated Sutra: वे ऊंच और नीच गतियों में भटकते हुए अनन्त बार गर्भ में आएंगे। – ऐसा जिनेश्वर ज्ञातपुत्र महावीर ने कहा है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-२ Hindi 30 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न सयं कडं न अन्नेहिं वेदयंति पुढो जिया । संगइयं तं तहा तेसिं इहमेगेसिमाहियं ॥

Translated Sutra: जीव तो स्वयंकृत का अनुभव करते हैं और न ही अन्यकृत। वह तो सांगतिक/नियतिकृत होता है। ऐसा कुछ (नियतिवादी) कहते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-१ Hindi 91 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘मायाहि पियाहि लुप्पई नो सुलहा सुगई य पेच्चओ’ । ‘एयाइ भयाइ’ देहिया आरंभा विरमेज्ज सुव्वए ॥

Translated Sutra: वह कदाचित्‌ माता – पिता से पहले ही मर जाता है। परलोक में सुगति सुलभ नहीं होती है। इन भय – स्थलों को देखकर व्रती पुरुष हिंसा से विराम ले।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-१ Hindi 254 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीहं जहा व कुणिमेणं निब्भयमेगचरं पासेणं । एवित्थियाओ बंधंति संवुडमेगतियमणगारं

Translated Sutra: स्त्रियाँ संवृत और अकेले अनगार को (मोहपाश में) वैसे ही बाँध लेती हैं, जैसे प्रलोभन पाश में निर्भय एगचारी सिंह को बाँधता है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-६ वीरस्तुति

Hindi 368 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनुत्तरग्गं परमं महेसी ‘असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धिं गतिं साइमणंत पत्ते नाणेन सीलेन य दंसणेण’ ॥

Translated Sutra: महर्षि ज्ञात पुत्र ने ज्ञान, शील और दर्शन – बल से समस्त कर्म – विशोधन कर अनुत्तर तथा सादि अनन्त सिद्ध गति को प्राप्त किया।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-७ कुशील परिभाषित

Hindi 410 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘अवि हम्ममाणे’ फलगावतुट्ठी समागमं कंखइ अंतगस्स । णिद्धय कम्मं न पवंचुवेइ अक्खक्खए वा सगडं ति बेमि ॥

Translated Sutra: परीषहों से हन्यमान भिक्षु फलक की तरह शरीर कृश होने पर काल की आकांक्षा करता है। मैं ऐसा कहता हूँ कि वह कर्म – क्षय करने पर वैसे ही प्रपंच में/संसार में गति नहीं करता, जैसे धुरा टूटने पर गाड़ी नहीं चलती। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-८ वीर्य

Hindi 415 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माइणो कट्टु मायाओ ‘कामभोगे समारभे’ । हंता छेत्ता पगतित्ता आय-सायाणुगामिणो ॥

Translated Sutra: मायावी माया करके कामभोग प्राप्त करते हैं। वे स्व – सुखानुगामी हनन, छेदन और कर्तन करते हैं। वे असंयती यह कार्य मन, वचन और अन्त में काया से, स्व – पर या द्विविध करते हैं। सूत्र – ४१५, ४१६
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१२ समवसरण

Hindi 554 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्तान जो जाणइ जो य लोगं ‘जो आगतिं’ जाणइ ऽनागतिं च । जो सासयं जान असासयं च जातिं मरणं च चयणोववातं ॥

Translated Sutra: जो आत्मा, लोक, आगति, अनागति, शाश्वत, अशाश्वत, जन्म – मरण, च्यवन और उपपात को जानता है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१३ यथातथ्य

Hindi 572 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाइं मदाइं विगिंच ‘धीरा णेताणि सेवंति’ सुधीरधम्मा । ते सव्वगोतावगता महेसी उच्चं अगोतं च गतिं वयंति ॥

Translated Sutra: सुधीरधर्मी धीर इन मदों को छोड़कर पुनः सेवन नहीं करते हैं। सभी गोत्रों से दूर वे महर्षि उच्च और अगोत्र गति की ओर व्रजन करते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१३ यथातथ्य

Hindi 574 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरतिं रतिं च अभिभूय भिक्खू बहुजणे वा तह एगचारी । एगंतमोणेण वियागरेज्जा एगस्स जंतो गतिरागती य ॥

Translated Sutra: भिक्षु अरति और रति का त्याग करके संघवासी अथवा एकचारी बने। जो बात मौन/मुनित्व से सर्वथा अविरुद्ध हो उसीका निरूपण करे। गतिआगति एकाकी जीव की होती है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 634 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुरिसे पुरत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणिं, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासंति तं महं एगं पउमवर-पोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। तए णं से पुरिसे एवं वयासी–अहमंसि पुरिसे ‘देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू। अहमेतं पउमवरपोंडरीयं ‘उण्णिक्खिस्सामि त्ति वच्चा’ से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणिं। जाव-जावं च णं अभिक्कमेइ ताव-तावं च णं महंते उदए महंते सेए पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए ‘णो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए

Translated Sutra: अब कोई पुरुष पूर्वदिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर उस पुष्करिणी के तीर पर खड़ा होकर उस महान उत्तम एक पुण्डरीक को देखता है, जो क्रमशः सुन्दर रचना से युक्त यावत्‌ बड़ा ही मनोहर है। इसके पश्चात्‌ उस श्वेतकमल को देखकर उस पुरुष ने इस प्रकार कहा – ‘‘मैं पुरुष हूँ, खेदज्ञ हूँ, कुशल हूँ, पण्डित, व्यक्त, मेघावी तथा अबाल हूँ।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 635 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाते–अह पुरिसे दक्खिणाओ दिसाओ आगम्म तं पुक्खरणिं, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। तं च एत्थ एगं पुरिसजाय पासइ पहीणतीरं, अपत्तपउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए ‘नो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णं’। तए णं से पुरिसे तं पुरिसं एवं वयासी–अहो! णं इमे पुरिसे ‘अदेसकालण्णे अखेत्तण्णे अकुसले अपंडिए अविअत्ते अमेधावी बाले नो मग्गण्णे नो मग्गविदू नो मग्गस्स गति-आगतिण्णे नो परक्क-मण्णू’, जण्णं एस पुरिसे ‘अहं देसकालण्णे खेत्तण्णे

Translated Sutra: अब दूसरे पुरुष का वृत्तान्त बताया जाता है। दूसरा पुरुष दक्षिण दिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर दक्षिण किनारे पर ठहर कर उस श्रेष्ठ पुण्डरीक को देखता है, जो विशिष्ट क्रमबद्ध रचना से युक्त है, यावत्‌ अत्यन्त सुन्दर है। वहाँ वह उस पुरुष को देखता है, जो किनारे से बहुत दूर हट चूका है, और उस प्रधान श्वेत – कमल तक पहुँच
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 636 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चे पुरिसजाते– अह पुरिसे पच्चत्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पोक्खरणिं, तीसे पोक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। ते तत्थ दोण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए नो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे। तए णं से पुरिसे एवं वयासी–अहो! णं इमे पुरिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला नो मग्गण्णा नो मग्गविदू नो मग्गस्स गति-आगतिण्णा नो परक्कमण्ण, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे– ‘अम्हे तं पउमवरपोंडरीयं

Translated Sutra: दूसरे पुरुष के पश्चात्‌ तीसरा पुरुष पश्चिम दिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर उसके किनारे खड़ा हो कर उस एक महान श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल को देखता है, जो विशेष रचना से युक्त यावत्‌ पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त अत्यन्त मनोहर है। वह वहाँ उन दोनों पुरुषों को भी देखता है, जो तीर से भ्रष्ट हो चूके और उस उत्तम श्वेत कमल को भी
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 637 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे पुरिसजाते–अह पुरिसे उत्तराओ दिसाओ आगम्म तं पोक्खरणिं, तीसे पोक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति ‘तं महं’ एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। ते तत्थ तिण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए नो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे। तए णं से पुरिसे एवं वयासी–अहो! णं इमे पुरिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला नो मग्गण्णा नो मग्गविदू नो मग्गस्स गति-आगतिण्णा नो परक्कमण्णू, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे–’अम्हे एतं पउमवरपोंड-रीयं

Translated Sutra: तीसरे पुरुष के पश्चात्‌ चौथा पुरुष उत्तर दिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर, किनारे खड़ा होकर उस एक महान श्वेत कमल को देखता है, जो विशिष्ट रचना से युक्त यावत्‌ मनोहर है। तथा वह वहाँ उन तीनों पुरुषों को भी देखता है, जो तीर से बहुत दूर हट चूके हैं और श्वेत कमल तक भी नहीं पहुँच सके हैं अपितु पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 638 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भिक्खू लूहे तोरट्ठी देसकालण्णे खेत्तण्णे कुसले पंडिते विअत्ते मेधावी अबाले मग्गण्णे मग्गविदू मग्गस्स गति-आगतिण्णे परक्कमण्णू अन्नतरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगम्म तं पोक्खरणिं, तीसे पोक्खरणीए तीरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं अणुपुव्वट्ठियं ऊसियं रुइलं वण्णमंतं गंधमंतं रसमंतं फासमंतं पासादियं दरिसणीयं अभिरूवं पडिरूवं। ते तत्थ चत्तारि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं, अपत्ते पउमवरपोंडरीयं, नो हव्वाए नो पाराए, अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे। तए णं से भिक्खू एवं वयासी–अहो! णं इमे पुरिसा अदेसकालण्णा अखेत्तण्णा अकुसला अपंडिया अविअत्ता अमेधावी बाला

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ राग – द्वेष रहित, संसार – सागर के तीर यावत्‌ मार्ग की गति और पराक्रम का विशेषज्ञ तथा निर्दोष भिक्षापात्र से निर्वाह करने वाला साधु किसी दिशा अथवा विदिशा से उस पुष्करिणी के पास आकर उसके तट पर खड़ा होकर उस श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल को देखता है, जो अत्यन्त विशाल यावत्‌ मनोहर है। और वहाँ वह भिक्षु उन चारों
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 642 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चे पुरिसजाए पंचमहब्भूइए त्ति आहिज्जइ– इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा–आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति– महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति–उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: पूर्वोक्त प्रथम पुरुष से भिन्न दूसरा पुरुष पञ्चमहाभूतिक कहलाता है। इस मनुष्यलोक की पूर्व आदि दिशाओं में मनुष्य रहते हैं। वे क्रमशः नाना रूपों में मनुष्यलोक में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि – कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य। यावत्‌ कोई कुरूप आदि होते हैं। उन मनुष्यों में से कोई एक महान पुरुष राजा होता है। यावत्‌
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-१ पुंडरीक

Hindi 644 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे पुरिसजाते नियतिवाइए त्ति आहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अनुपुव्वेणं लोगं उववण्णा, तं जहा– आरिया वेगे अनारिया वेगे, उच्चागोया वेगे नियागोया वेगे, कायमंता वेगे हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवति–महाहिमवंत-मलय-मंदर-महिंदसारे जाव पसंतडिंबडमरं रज्जं पसाहेमाणे विहरति। तस्स णं रण्णो परिसा भवति– उग्गा उग्गपुत्ता, भोगा भोगपुत्ता, इक्खागा इक्खागपुत्ता, नागा नागपुत्ता, कोरव्वा कोरव्वपुत्ता, भट्टा भट्टपुत्ता, माहणा माहणपुत्ता, लेच्छई लेच्छइपुत्ता,

Translated Sutra: अब नियतिवादी नामक चौथे पुरुष का वर्णन किया गया है। इस मनुष्यलोक में पूर्वादि दिशाओं के वर्णन से यावत्‌ प्रथम पुरुषोक्त पाठ के समान जानना। पूर्वोक्त राजा और उसके सभासदों में से कोई पुरुष धर्मश्रद्धालु होता है। उसे धर्मश्रद्धालु जान कर उसके निकट जाने का श्रमण और ब्राह्मण निश्चय करते हैं। यावत्‌ वे उसके
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 670 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–जइ खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्म-समुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वाओ पानाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए,सव्वाओ अदिन्नादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ

Translated Sutra: पश्चात्‌ दूसरे धर्मपक्ष का विवरण है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं पुरुष ऐसे होते हैं, जो अनारम्भ, अपरिग्रह होते हैं, जो धार्मिक होते हैं, धर्मानुसार प्रवृत्ति करते हैं या धर्म की अनुज्ञा देते हैं, धर्म को ही अपना इष्ट मानते हैं, या धर्मप्रधान होते हैं, धर्म की ही चर्चा करते हैं, धर्ममयजीवी, धर्म
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 673 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: ते सव्वे पावादुया आइगरा धम्माणं, नानापण्णा नानाचंदा नानासीला नानादिट्ठी नानारुई नानारंभा नानाज्झवसाणसंजुत्ता एगं महं मंडलिबंधं किच्चा सव्वे एगओ चिट्ठंति। पुरिसे य सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं अओमएणं संडासएणं गहाय ते सव्वे पावादुए आइगरे धम्माणं, नानापण्णे नानाछंदे नानासीले नानादिट्ठी नानारुई नानारंभे नानाज्झ-वसाणसंजुत्ते एवं वयासी– हंभो पावादया! आइगरा! धम्माणं, नानापण्णा! नानाछंदा! नानासीला! नानादिट्ठी! नानारुई! नानारंभा! नानाज्झवसाणसंजुत्ता! इमं ताव तुब्भे सागणियाणं इंगालाणं पाइं बहुपडिपुण्णं गहाय मुहुत्तगं-मुहुत्तगं पाणिणा धरेह। नो बहु संडासगं

Translated Sutra: वे पूर्वोक्त प्रावादुक अपने – अपने धर्म के आदि – प्रवर्तक हैं। नाना प्रकार की बुद्धि, नाना अभिप्राय, विभिन्न शील, विविध दृष्टि, नानारुचि, विविध आरम्भ और विभिन्न निश्चय रखने वाले वे सभी प्रावादुक एक स्थान में मंडलीबद्ध होकर बैठे हों, वहाँ कोई पुरुष आग के अंगारों से भरी हुई किसी पात्री को लोहे की संडासी से पकड़
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-३ आहार परिज्ञा

Hindi 699 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता नानाविहजोणिया नानाविहसंभवा नानाविह-वक्कमा, सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरवक्कमा, सरीराहारा कम्मोवगा कम्मणियाणा कम्मगइया कम्मठिइया कम्मणा चेव विप्परियासमुवेंति। सेवमायाणह सेवमायाणित्ता आहारगुत्ते समिए सहिए सया जए।

Translated Sutra: समस्त प्राणी, सर्व भूत, सर्व सत्त्व और सर्व जीव नाना प्रकार की योनियों में उत्पन्न होते हैं, वहीं वे स्थित रहते हैं, वहीं वृद्धि पाते हैं। वे शरीर से ही उत्पन्न होते हैं, शरीर में ही रहते हैं, तथा शरीर में ही बढ़ते हैं, एवं वे शरीर का ही आहार करते हैं। वे अपने – अपने कर्म का अनुसरण करते हैं, कर्म ही उस – उस योनि में
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